“लपक झपक तू आ रे बदरवा, सर की खेती सूख रही है" - भूडो आडवाणी
.......शिशिर कृष्ण शर्मा
इन्हीं जाने-पहचाने चेहरे वाले अनजाने कलाकारों में शामिल थे भूडो आडवाणी| एक बेहद आम सा, जाना-पहचाना चेहरा| लेकिन औरों से थोड़ा अलग| पतला दुबला शरीर, मुंह में दांत नहीं, सर के बाल लगभग उड़े हुए| किशोरावस्था में भी बूढ़े नज़र आने वाले| उनके बारे में आम धारणा थी कि फ़िल्मों में एक्टिंग के लिए उन्होंने अपने दांत निकलवा दिए थे|
"नहीं! ये धारणा ग़लत है| दरअसल उनके दांत पूरी तरह विकसित नहीं हो पाए थे, जिससे उन्हें तक़लीफ़ होती थी| असली दांत निकलवाकर डेन्चर लगवाए, लेकिन उन नक़ली दांतों से उनकी परेशानी और भी बढ़ गयी थी| इसलिए उन्होंने बिना दांतों के ही रहना बेहतर समझा|” - ये बात हाल ही में हुई एक मुलाक़ात के दौरान भूडो आडवाणी के बेटे रमेश आडवाणी जी ने बताई थी|
Shri Ramesh Advani |
मेरी ये समस्या एक रोज़ तब सुलझ गयी, जब ‘बीते हुए दिन' के निकट सहयोगी, वरिष्ठ फ़िल्म इतिहासकार, और पुस्तक 'Forgotten Artistes Of Early Cinema and The Same Name Confusion' के लेखक, मुम्बई निवासी श्री अरूणकुमार देशमुख जी ने बताया कि भूडो आडवाणी के बेटे रमेश आडवाणी जी का फ्लैट उन्हीं की बिल्डिंग में है, पत्नी के निधन के बाद पिछले कुछ सालों से वो अपने बेटे के पास बंगलौर में रहते हैं, लेकिन साल में एकाध महीने के लिए मुम्बई भी आते हैं|
अरूणकुमार देशमुख जी के ज़रिये मेरा संपर्क रमेश आडवाणी जी से हुआ और अक्टूबर 2023 में जब वो बेटे विनोद आडवाणी के साथ कुछ दिनों के लिए मुम्बई आए, तो अंधेरी (पश्चिम) के सात बंगला बस डिपो के पास स्थित उनके फ्लैट में भूडो आडवाणी के बारे में पिता-पुत्र से अंततः मेरी बातचीत संपन्न हो ही गयी|
सिंधी रंगमंच की मशहूर हस्ती हेमनदास गंगादास ने वो नाटक देखा था और भूडो के अभिनय से वो बेहद प्रभावित भी हुए थे| उधर भूडो मैट्रिक में फ़ेल हो गए तो उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी| ऐसे में हेमनदास ने उन्हें अपनी नाटक कंपनी में शामिल कर लिया| और यहां से भूडो का, नाटकों का सिलसिला शुरू हो गया| वो अक्सर महिलाओं की भूमिका में नज़र आते थे, लोग उनके अभिनय को बहुत पसंद करते थे और उस ज़माने की तमाम नाटक कम्पनियां उन्हें अपने नाटकों में लेने को बेताब रहती थीं|
उन्हीं दिनों भूडो ने नवलराम हीराचंद एकेडमी के नाटक 'हरीफ़' में एक बूढ़े की भूमिका की| लोगों को वो भूमिका इतनी पसंद आयी कि भूडो को, जिनका असली नाम दौलतराम आडवाणी था, लोग 'बुड्ढो' अर्थात 'बूढ़ा' आडवाणी कहने लगे| और यही 'बुड्ढो' आगे चलकर 'भूडो' आडवाणी हो गया| उसी दौरान आडवाणी परिवार हैदराबाद से कराची शिफ्ट हो गया था|
भूडो लगातार नाटकों में काम करते रहे| उनके नाटक सामाजिक समस्याओं और कुरीतियों पर प्रहार करने वाले होते थे| उन्हें जे.बी.आडवाणी एंड कंपनी में 40 रूपया प्रतिमाह के वेतन पर मैनेजर की नौकरी भी मिल गयी थी, जो उस ज़माने में अच्छी ख़ासी रकम हुआ करती थी| लेकिन नाटकों के शोज़ के लिए अक्सर ऑफ़िस से ग़ायब रहने की वजह से जल्द ही वो नौकरी उनके हाथ से निकल गयी| ऐसे में उनके एक प्रशंसक ने उन्हें कराची इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कारपोरेशन में नौकरी दिला दी|
साल 1934 में अजन्ता सिनेटोन बंद हुआ तो निर्माता चिमनलाल देसाई के बुलावे पर भूडो उनकी कंपनी सागर मूवीटोन में चले गए, जहां उन्हें के.पी.घोष, महबूब खान और सर्वोत्तम बादामी जैसे उस दौर के बड़े निर्देशकों के साथ काम करने का मौक़ा मिला| 1933 से 1940 के बीच भूडो ने कुल 35 फ़िल्मों में अभिनय किया| इनमें सागर मूवीटोन के बैनर की 'डॉ.मधुरिका', ‘डेकन क्वीन', ‘दो दीवाने', ‘जागीरदार', ‘मनमोहन’, 'हम तुम और वो', ‘महागीत' और 'पोस्टमैन' जैसी 20 फ़िल्में भी शामिल थीं|
1940 के दशक में भी भूडो ने कुल 35 फ़िल्मों में काम किया, जिनमें महबूब खान की कंपनी 'महबूब प्रोडक्शंस’ के बैनर की 'अनमोल घड़ी' और 'अनोखी अदा’ के अलावा 'मेरी कहानी', ‘अमानत', 'बीसवीं सदी', ‘दुखियारी', 'इस्मत', ‘पूजा' और 'शौहर' जैसी फ़िल्में शामिल थीं| महबूब खान ने 'महबूब प्रोडक्शंस’ की नींव सागर मूवीटोन के विलय के बाद, साल 1943 में रखी थी|”
भूडो एक बेहतरीन कॉमेडियन थे और ज़्यादातर फ़िल्मों में वो कॉमेडी ही करते नज़र आए थे| 1950 के दशक में भूडो आडवाणी 'मीना बाज़ार', ‘आदमी', 'आख़िरी दांव', ‘बूट पॉलिश', ‘श्री 420’, ‘जागते रहो', ‘अब दिल्ली दूर नहीं', ‘मधुमती', ‘मधुर मिलन', ‘मिस कोकाकोला', ‘क़ैदी नंबर 911’ और 'आंखें' जैसी कुल 20 फ़िल्मों में नज़र आए| इनमें से ‘बूट पॉलिश' के कॉमेडी गीत 'लपक झपक तू आ रे बदरवा, सर की खेती सूख रही है" में उनके काम को बहुत सराहा गया|
'Lapak jhapak tu aa re badarwa' - Boot Polish / 1954 |
1960 के दशक में भूडो ने 'अनुराधा' और 'खामोशी' समेत केवल 5 फ़िल्में कीं| 44 साल के अपने करियर में उन्होंने 102 हिन्दी, 2 गुजराती और 4 सिंधी फ़िल्मों में काम किया| इनमें से दो सिंधी फ़िल्मों ‘इंसाफ़ कित्थे आ' और 'राए दियाच' में उनकी पत्नी ने भी अभिनय किया था| 'राए दियाच' में भूडो और उनकी पत्नी ने हीरो के मां-बाप की भूमिका की थी|
Bhudo ji with wife, son, d/l & grandchildren |
भूडो की अन्य तीनों बेटियां शानू लालवाणी, सोनू इदनानी और पूनम अरोड़ा मुम्बई में ही रहती हैं| रमेश आडवाणी जी से 'बीते हुए दिन' की इस बातचीत के दो दिन बाद, 22 अक्टूबर 2023 को उनके 80वें जन्मदिन की पार्टी में, जुहू-वर्सोवा लिंक रोड के रेनेसां क्लब में उनकी तीनों बहनों से भी मेरा परिचय हुआ था|
भूडो आडवाणी जी दक्षिण मुम्बई के ताड़देव स्थित सेन्ट्रल स्टूडियो कम्पाऊंड में एक विशाल फ्लैट में रहते थे| साल 1977 में वो ताड़देव छोड़कर अंधेरी पश्चिम के सात बंगला इलाक़े की शांतिनिकेतन बिल्डिंग में रहने आ गए थे| उनकी आख़िरी फ़िल्म सत्यजित रे की साल 1977 की ही 'शतरंज के खिलाड़ी' थी| साल 1979 में उनकी पत्नी का निधन हुआ| और 25 जुलाई 1985 को, 80 साल की उम्र में भूडो आडवाणी भी दुनिया को अलविदा कह गए|
We are thankful to –
Mr. Harish Raghuvanshi (Surat) & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ (Kanpur) for their valuable suggestion, guidance, and support.
Mr. Ramesh Advani S/O Mr. Bhudo Advani (Banglore/Mumbai) for providing us the required information about his father.
Mr. Vinod Advani S/O Mr. Ramesh Advani (Banglore) for providing us dozens of his grandfather's rare pictures.
Mr. Arun Kumar Deshmukh (Mumbai) & Mr. Biren Kothari (Vadodara / Writer of the Book 'Sagar Moviretone) for their valuable inputs about Mr. Bhudo Advani.
Dr. Ravinder Kumar (NOIDA) for the English translation of the write up.
Mr. S.M.M.Ausaja (Mumbai) for providing movies’ posters.
Mr. Manaswi Sharma (Zurich-Switzerland) for the technical support.
Bhudo Advani on BHD