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***SHRADDHANJALI***
SHRI ASIS KUMAR
SENGUPTA
(Veteran Actor)
01.08.1934 – 23.11.2013
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‘वो भूली दास्तां, लो फिर याद आ गयी’ – अनीता गुहा
......................शिशिर कृष्ण शर्मा
अनीता जी के पिता वन अधिकारी थे और नौकरी के सिलसिले में उनका ज़्यादातर समय पूर्वोत्तर के राज्यों में गुज़रा था। अनीता जी के मुताबिक़ उनका जन्म 17 जनवरी 1939 को बर्मा की सीमा से लगे जंगलों में हुआ था और उनका बचपन भी पूर्वोत्तर के जंगलों, दार्जिलिंग और सुंदरवन में गुज़रा था। एक भाई और दो बहनों में वो सबसे छोटी थीं। बंटवारे के बाद उनका परिवार कोलकाता आकर बस गया था जहां अनीता जी ने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की।
अनीता जी ने बताया था, “1950 के दशक के शुरू में मैंने ‘मिस कोलकाता’ का ताज हासिल किया। साल 1952 में मुंबई के ‘कारदार स्टूडियो’ और हॉलिवुड के ‘ली कैमरिन’ ने मिलकर ‘कारदार-कॉलिनोज़ टेलेंट कॉम्पिटिशन’ आयोजित किया, जिसमें हिस्सा लेने के लिए मैं मुंबई चली आयी। इस प्रतियोगिता के सभी राऊण्ड्स में मैंने पहला स्थान हासिल किया। लेकिन सबसे बड़ी अड़चन ये थी कि मुझे हिंदी नहीं आती थी। ‘कारदार स्टूडियो’ ने मेरे साथ 300 रूपए प्रतिमाह के वेतन पर 2 साल का कांट्रेक्ट किया लेकिन उनकी शर्त थी कि मुझे 6 महिने में हिंदी सीखनी होगी। इस प्रतियोगिता में मेरे साथ चांद उस्मानी का भी चुनाव हुआ था और कांट्रेक्ट की शर्तें मंज़ूर करके मैं वापस कोलकाता लौट गयी थी|”
(अभिनेत्री पीस कंवल का कहना है कि इस प्रतियोगिता में पहला स्थान उन्होंने हासिल किया था। चूंकि अब उस दौर के और उस प्रतियोगिता से जुड़े अन्य लोग हमारे बीच नहीं हैं, इसलिए किसका दावा सही है, इस बात की पुष्टि कर पाना हमारे लिए मुमक़िन नहीं है। लेकिन इतना तय है कि पीस कंवल, अनीता गुहा और चांद उस्मानी, इन तीनों ही अभिनेत्रियों ने ‘कारदार-कॉलिनोज़ टेलेंट कॉम्पिटिशन’ के ज़रिए हिंदी सिनेमा में क़दम रखा था।)
अनीता जी के मुताबिक़, “बांग्ला फ़िल्म उद्योग में जब ये बात फैली कि मैं मुंबई से ‘कारदार-कॉलिनोज़ टेलेंट कॉम्पिटिशन’ जीतकर लौटी हूं तो बांग्ला फ़िल्मों के निर्माताओं में मुझे साईन करने की होड़ लग गयी। तब तक मेरे पिता का निधन हो चुका था और मां मुझे मुंबई भेजने को तैयार नहीं थीं। मजबूरी में मुझे ‘कारदार स्टूडियो’ के साथ हुआ अनुबंध रद्द कराना पड़ा। साल 1953 में मेरी पहली बांग्ला फ़िल्म ‘बांशेर केल्ला’ रिलीज़ हुई जिसमें मेरे हीरो अनूप कुमार थे, लेकिन मेरा मन तो मुंबई आने के लिए छटपटा रहा था।”
उन्हीं दिनों अभिनेता ओमप्रकाश अपनी किसी फ़िल्म की रिलीज़ पर कोलकाता पहुंचे। अनीता जी के मुताबिक वो फ़िल्म ‘लहरें’ या ‘झांझर’ में से एक थी जिसका निर्माण भी ओमप्रकाश ने ही किया था। अनीता जी ओमप्रकाश से मिलीं तो उन्होंने अनीता जी को फ़िल्म ‘दुनिया गोल है’ के लिए साईन करके मुंबई बुला लिया। साल 1955 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘दुनिया गोल है’ से अनीता गुहा ने हिंदी फ़िल्मों में कदम रखा था। इस फ़िल्म में उनके हीरो करण दीवान थे। अनीता जी की उम्र उस समय महज़ 16 साल थी।
ओमप्रकाश ने मुंबई में पैर जमाने में अनीता जी की बहुत मदद की। साल 1955 में ही फ़िल्म ‘तांगावाली’ रिलीज़ हुई जिसमें अनीता जी के सहकलाकार शम्मी कपूर, निरूपा राय और बलराज साहनी थे। अनीता जी के मुताबिक, “एक तो मैं मुंबई जैसे बिल्कुल अनजान शहर में थी, उस पर मुझे फ़िल्मी तौर-तरीक़ों का भी कोई ज्ञान नहीं था। और फिर उम्र से भी मैं ज़्यादा परिपक्व नहीं थी, इसलिए करियर को लेकर कभी कोई योजना ही नहीं बना पायी। जैसा भी काम मिलता रहा, करती चली गयी। फ़िल्म ‘छूमंतर’ में मैं सहनायिका थी तो ‘आंख का नशा’, ‘लाल-ए-यमन’ और ‘यहूदी की बेटी’ जैसी बी ग्रेड फ़िल्में बतौर नायिका कीं। ये सभी फ़िल्में साल 1956 में बनीं थीं”।
शुरूआत में ही इस किस्म की भूमिकाओं ने अनीता जी के करियर पर बुरा असर डाला। ‘एक झलक’, ‘देख कबीरा रोया’, ‘शारदा’, ‘उस्ताद’ (सभी 1957) जैसी फ़िल्में उन्होंने बतौर सहनायिका कीं तो ‘भला आदमी’, ‘कल क्या होगा’, ‘माया बाज़ार’ और ‘टैक्सी स्टैंड’ (सभी 1958) जैसी बी ग्रेड फ़िल्मों में वो मुख्य भूमिका में नज़र आयीं। अनीता जी के मुताबिक़, “बतौर नायिका, मुख्यधारा की ए ग्रेड फ़िल्में न मिल पाने का मुझे बेहद दुख था लेकिन हालात मेरे बस में नहीं थे। ओमप्रकाश जी ने ज़रूर मेरे करियर को सहारा देने की कोशिश की। अपने निजी बैनर ‘लाईट एंड शेड’ में उन्होंने फ़िल्म ‘चाचा ज़िंदाबाद’ (1959) और ‘संजोग’ (1961) बनाईं तो उनमें मुख्य भूमिका मुझे दी। लेकिन तब तक मुझे पौराणिक फ़िल्मों की नायिका के तौर पर पहचाना जाने लगा था”।
दरअसल पौराणिक फ़िल्मों के लिए मशहूर कंपनी ‘बसंत पिक्चर्स’ के मालिक और निर्माता-निर्देशक होमी वाडिया ने अनीता जी को फ़िल्म ‘पवनपुत्र हनुमान’ (1957) में सीता की भूमिका ऑफ़र की थी। मन में पौराणिक फ़िल्मों का ठप्पा लग जाने की हिचकिचाहट होने के बावजूद अनीता जी को हामी भरनी पड़ी। इस फ़िल्म की ज़बर्दस्त कामयाबी के बाद उन्हें लगातार पौराणिक फ़िल्में मिलने लगीं। फ़िल्म सम्पूर्ण रामायण (1961), ‘श्री राम भरत मिलाप’ और ‘शंकर सीता अनुसूया’ (दोनों 1965) में भी वो सीता की भूमिका में नज़र आयीं। इसके अलावा उन्होंने बतौर नायिका ‘सम्राट पृथ्वीराज चौहान’, ‘टीपू सुल्तान’ (दोनों 1959), ‘संगीत सम्राट तानसेन’ (1962), ‘महारानी पद्मिनी’ (1964) और ‘संत तुकाराम’ (1965) जैसी ऐतिहासिक फ़िल्में भी कीं।
अनीता जी का कहना था, ‘मेरे पति की मृत्यु के बाद से माला सिन्हा, स्मृति बिस्वास और बेलाबोस जैसी क़रीबी सहेलियों और मेरी बड़ी बहन की बेटी अभिनेत्री प्रेमा नारायण ने कभी भी मुझे अकेलेपन का एहसास नहीं होने दिया। इन सभी ने हर क़दम पर मेरा साथ दिया’।
फ़िल्म ‘शारदा’ और ‘गूंज उठी शहनाई’ की भूमिकाओं के लिए अनीता जी का नामांकन ‘फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार’ के लिए हुआ था लेकिन दोनों ही बार ये पुरस्कार उनके हाथ नहीं आ पाया। क़रीब 40 सालों के करियर के दौरान उन्होंने हिंदी के अलावा बांग्ला, राजस्थानी और भोजपुरी जैसी भाषाओं समेत 100 से ज़्यादा फ़िल्मों में अभिनय किया। साल 1991 में हिंदी में बनी ‘लखपति’ उनकी आख़िरी प्रदर्शित फ़िल्म थी।
अनीता गुहा का निधन 68 साल की उम्र में 20 जून 2007 को मुंबई में हुआ।
We
are thankful to –
Veteran
actress Smt. Bela Bose Sengupta for providing some important inputs about her close
friend (Late) Smt. Anita Guha.
Mr. Sudarshan Talwar (Kolkata) for sharing Bangla Movie ‘Bansher Kella’s photo. .
Mr. Rajesh K.Singh (Jaipur) for sharing Anita Guha's photo in bridal dress.
Mr.
Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Ms.
Aksher Apoorva for the English
translation of the write ups.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video
editing.
Actress Anita Guha on YT Channel BHD
“Wo Bhooli Dastaan Lo Phir Yaad Aa Gayi” – Anita Guha
…..…..Shishir Krishna Sharma
The
famous Linking Road in Mumbai’s western suburb of Bandra (West). Adjacent to
the National College on Linking Road is ‘Mirabell Building’ where Anita Guha,
renowned actress of the bygone era of Hindi Cinema lived in a spacious 2nd
floor flat. I met Anita ji at her residence during the 3rd week of February in
2004. She had already bid adieu to cinema years ago and was living all alone
after her husband’s death 15 years earlier. It took me some time to persuade
her for the interview as she wasn’t ready to be photographed. After some
initial hesitation, she gave her consent for the interview. But she got so
comfortable during the conversation, that her hesitation in getting
photographed completely vanished!
Anita
ji’s father was a forest officer who was posted in the jungles of North-East
near the Burmese border. According to Anita ji, she was born on 17th January
1939 in the area adjacent to Burmese border and she spent her childhood in the
jungles of North-East, Darjeeling and the Sundarbans. She was youngest among
one brother and two sisters. Her family settled in Kolkata after partition
where Anita ji completed her schooling.
Anita
ji recalled, “I won the crown of ‘Miss Kolkata’ in early 1950’s. In the year
1952, I came to Mumbai to participate in ‘Kardar-Kolynos Talent Contest’ which
was jointly organized by Mumbai’s ‘Kardar Studio’ and Hollywood’s ‘Lee
Kamarin’. I got first position in all the rounds of the competition but the
main hindrance was my language as I didn’t know even the basics of Hindi.
‘Kardar Studio’ signed a contract with me at Rs.300/- per month salary but with
a condition that I would learn Hindi in 6 months’ time. Another contestant to
be selected in the same competition was actress Chand Usmani. I signed the
contract and then returned to Kolkata”.
(Since
no other person associated with that contest is alive today, it’s not possible
to confirm the truth. But one thing is for sure that all the three actresses
viz. Peace Kanwal, Anita Guha and Chand Usmani, entered the filmdom through
‘Kardar-Kolynos Talent Contest’ only.)
Anita
ji said, “As soon as the makers of Bangla films got wind of my winning of
‘Kardar-Kolynos Talent Contest’, I started getting offers from them. My father
had passed away by that time and my mother wasn’t ready to send me to Mumbai. I
had no other option then but to get my contract with the ‘Kardar Studio’
cancelled, which I did. My debut Bangla
movie ‘Bansher Kella’ released in the year 1953 opposite Anup Kumar as my hero.
But I was impatient to go to Mumbai”.
One
day, actor Om Prakash came to Kolkata for the release of his film (either
‘Lehrein’ or ‘Jhaanjhar’ according to Anita ji), which was produced by Om
Prakash only. Anita ji met Om Prakash who immediately signed her for the film
‘Dunia Gol Hai’ and called her to Mumbai. Thus Anita Guha debuted in Hindi
Cinema with the 1955 release ‘Dunia Gol Hai’ with Karan Dewan opposite her as
hero. Anita ji was a mere 16 years old at that time.
{In
fact ‘Lehrein’, ‘Jhaanjhar’ (both 1953) and ‘Dunia Gol Hai’ (1955) were
produced by composer C.Ramchandra under the banner ‘New Sai Productions’. Actor
Om Prakash and C.Ramchandra were close friends and being a partner in this
banner, Om Prakash was the co-producer of these films. He was also director of
‘Dunia Gol Hai’.}
Om
Prakash helped Anita ji in settling in Mumbai. Anita ji’s next film ‘Tangawali’
with Shammi Kapoor, Nirupa Roy and Balraj Sahni as her co-artistes released in
the same year i.e. 1955. Anita ji remembered, “I was a stranger in the city of
Mumbai. Also, I was unaware of the ways and norms of the film industry. Above
all considering my age, I wasn’t mature enough to plan my career in an
appropriate manner. Therefore, whatever work I was offered, I blindly accepted.
I did ‘Chhoomantar’ as the side-heroine
and ‘Aankh Ka Nasha’, ‘Laal-E-Yaman’ and ‘Yahudi Ki Beti’ kind of B-grade
movies in main lead. All these movies released in the year 1956”.
Such
kind of roles in the initial phase itself adversely affected Anita ji’s career.
She played second lead roles in ‘Ek Jhalak’, ‘Dekh Kabira Roya’, ‘Sharda’,
‘Ustaad’ (all 1957) and did ‘Bhala Aadmi’, ‘Kal Kya Hoga’, ‘Maya Bazar’ and
‘Taxi Stand’ (all 1958) kind of B-grade movies as the main lead. According to
Anita ji, “It was very painful for me that I was not being offered A-Grade
mainstream films but the circumstances were beyond my control. Once again, Om
Prakash ji came forward and tried to support my career. He gave me the main
lead roles in ‘Chacha Zindabad’ (1959) and ‘Sanjog’ (1961) which were made
under his own banner ‘Light & Shade’. But, by that time I had already
been branded as a heroine of mythological cinema”.
In
fact, producer-director Homi Wadia, who was the owner of ‘Basant Pictures’, a
banner famous for its production of mythological movies, offered Anita ji the
role of Seeta in his film ‘Pawan Putra Hanuman’ (1957). Anita ji was hesitant
initially as she was afraid of being typecast as the heroine of the
mythological films but eventually accepted the offer.
This
movie proved to be the biggest hit of its time resulting in Anita ji getting
lots of offers for such mythological characters. Later she played Seeta in
‘Sampoorna Ramayan’ (1961), ‘Shri Ram Bharat Milap’ and ‘Shankar Seeta Anusuya’
(both 1965) too. She also played main lead in a couple of historical films like
‘Samrat Prithviraj Chauhan’, ‘Tipu Sultan’ (both 1959), ‘Sangeet Samrat Tansen’
(1962), ‘Maharani Padmini’ (1964), and ‘Sant Tukaram' (1965).
Anita
ji got married in the year 1961. Her husband Manik Dutt was a character artist
who acted in approximately 30 movies including ‘Sambandh’, ‘Adhikar’,
‘Amanush’, ‘Do Anjane’, ‘Anand Ashram’, ‘Grih Pravesh’, ‘Barsaat Ki Ek Raat’
and ‘Dushman Devta’. Anita ji said, ‘I kept myself away from movies for 4 years
between 1965 and 1968. Then, the second phase of my acting career as a
character artist started with Shakti Samanta’s ‘Aradhana’ (1969).
Later I acted in many films including
‘Sambandh’ (1969), ‘Sharmeeli’ (1971), ‘Anurag’ (1972), ‘Jhoom Utha Akash’
(1973), ‘Naagin’ (1976), ‘Anand Ashram’ (1977), ‘Tumhare liye’ (1978),
‘Fifty-Fifty’ (1981) and ‘Krishna-Krishna’ (1986). I played Santoshi Mata in
the 1975 release ‘Jai Santoshi Maa’ which is documented as one of the most
successful movies in the history of Hindi Cinema”.
According
to Anita ji, “Even after my husband’s death, my close friends Mala Sinha, Bela
Bose and Smriti Biswas as well as my elder sister’s daughter and actress Prema
Narayan never let me feel the loneliness. All of them stood by me at every step
and are my pillars of support”.
Anita
ji was nominated for the ‘Filmfare’s best supporting actress award’ for the
movies ‘Sharda’ and ‘Goonj Uthi Shehnai’ but with no luck. During a career
spanning 40 years she acted in a total of 100 films which, apart from Hindi,
also includes those made in Bangla, Rajasthani and Bhojpuri languages. Her last
release was the Hindi movie ‘Lakhpati’ (1991).
Anita Guha passed away at the age of 68 on
20th June 2007 in Mumbai.