Saturday, October 5, 2019

“Maajhi Naiya Dhoondhe Kinara” – Yunus Parvez

मांझी नैया ढूंढे किनारायूनुस परवेज़

                     .......शिशिर कृष्ण शर्मा

सिनेमा का नाटकों से रिश्ता शुरू से ही रहा है| ख़ासतौर से बोलते सिनेमा की तो बुनियाद ही रंगमंच पर टिकी हुई थी| गुज़रे दौर के मास्टर निसार, जहांआरा कज्जन, सोहराब मोदी, पृथ्वीराज कपूर, बलराज साहनी, .के.हंगल, संजीव कुमार से लेकर नसीरूद्दीन शाह, ओम पुरी, शबाना आज़मी, अमोल पालेकर और आज के नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी और राधिका आप्टे तक बेशुमार अभिनेता-अभिनेत्रियों ने नाटकों की दुनिया से फ़िल्मों में कदम रखा और अपनी बेहतरीन पहचान बनाई| ऐसे ही कलाकारों में से एक थे चरित्र अभिनेता यूनुस परवेज़ जो 1970 से 90 के तीन दशकों के हिन्दी सिनेमा का एक जाना-पहचाना चेहरा थे| यूनुस परवेज़ अपनी स्क्री इमेज के ठीक विपरीत एक उच्चशिक्षाप्राप्त और बेहद ज़हीन शख्स़ थे जो कुछ समय के लिए राजनीति में भी सक्रिय रहे| उनसे मेरी मुलाक़ात फ़रवरी 2004 के मध्य में, मुम्बई के पश्चिमी उपनगर मीरा रोड के नया नगर क्षेत्र स्थित उनके फ्लैट में हुई थी| संयोग से वो मेरे घर से बामुश्किल डेढ़ किलोमीटर के फ़ासले पर रहते थे| ‘साप्ताहिक सहारा समयके मेरे कॉलमक्या भूलूं क्या याद करूंके लिए हुई उस मुलाक़ात के दौरान उन्होंने अपनी निजी और व्यावसायिक ज़िंदगियों के बारे में बेलाग बातचीत की थी

मूलत: उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर ज़िले के रहने वाले यूनुस परवेज़ का जन्म सितम्बर 1934 को मिर्ज़ापुर में हुआ था| उनके पिता पुलिस की नौकरी में थे| हर दो-चार साल में पिता के ट्रांसफर की वजह से यूनुस परवेज़ की स्कूली शिक्षा पूर्वी उत्तरप्रदेश के अलग अलग शहरों में हुई और फिर आगे की पढ़ाई के लिए वो इलाहाबाद चले आए| बातचीत के दौरान उन्होंने बताया था, “इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मुझे डॉहरिवंशराय बच्चन, डॉ .राही मासूम रज़ा और फ़िराक़ गोरखपुरी जैसे उच्चकोटि के शिक्षाविदों से शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला| उन्हीं दिनों मेरा जुड़ाव रंगमंच से हुआ और बी.. और फिर उर्दू में एम.. करने के साथ साथ मैं कॉलेज के नाटकों में भी पूरे जोशोख़रोश के साथ हिस्सा लेने लगा|”

यूनुस परवेज़ नेइंटरसिटी यूथ फेस्टिवलमें विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करने के साथ ही लगातार तीन बारबेस्ट एक्टरका पुरस्कार भी जीता| अखबारों में तस्वीरें और इंटरव्यू छपने लगे तो बतौर रंगकर्मी उनकी व्यापक पहचान बन गयी| उनका कहना था, “एम.. करने के बाद मैं पी.एच.डी. की तैयारियों में जुट गया था| उसी दौरान मशहूर लेखक दीवान वीरेन्द्रनाथ से मिलने का कार्यक्रम बना तो कुछ दिनों के लिए दिल्ली चला आया| दीवान वीरेन्द्रनाथ रिश्ते में अभिनेता कबीर बेदी के चाचा थेएक शाम वीरेन्द्रनाथ जी मुझे अपने साथ रूसी दूतावास में आयोजित एक पार्टी में लेकर गए जहां मेरी मुलाक़ात उस ज़माने के मशहूर रंगकर्मियों बेगम कुदसिया ज़ैदी, हबीब तनवीर, माईम आर्टिस्ट इरशाद पंजतन, और लेखक-कवि नियाज़ हैदर से हुई| उस साल मुझे उत्तरप्रदेश का बेस्ट एक्टर अवार्ड मिला था और ये सभी लोग मेरे नाम से अच्छी तरह वाक़िफ़ थे| उनके कहने पर मैं पी.एच.डी.का इरादा त्यागकर बेगम कुदसिया ज़ैदी केहिन्दुस्तानी थिएटरमें शामिल हो गया| ये साल 1959 का वाक़या है|”

नियमित सरकारी सहायता प्राप्तहिन्दुस्तानी थिएटरकी बुनियाद पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्रेरणा से रखी गयी थी| यूनुस परवेज़ क़रीब 4 सालों तकहिन्दुस्तानी थिएटरसे जुड़े रहे| उस दौरान उन्होंने हबीब तनवीर, एम.एस.सथ्यू और नरेंद्र शर्मा जैसे नामी रंगकर्मियों के साथ मिलकर इस बैनर के कई नाटकों में हिस्सा लिया| वो कहते थे, “पंडित नेहरू, डॉज़ाकिर हुसैन, कृष्ण मेनन और एस.के.पाटिल जैसे बड़े नेता अक्सर हमारे नाटकों की तैयारियां देखने तो आते ही थे, हरेक नाटक के मंचन के बाद प्रधानमंत्री निवास में पार्टी का आयोजन भी किया जाता था| एक बार मिस्र के राष्ट्रपति नासिर के सम्मान में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉराजेन्द्रप्रसाद ने हमारे नाटकशकुन्तलाका विशेष शो भी रखवाया था|” 

हिन्दुस्तानी थिएटरअपने उरूज़ पर था कि तभी बेगम कुदसिया ज़ैदी महज़ 44  बरस की उम्र में हार्ट अटैक से गुज़र गयीं| उधर भारत-चीन युद्ध की वजह से पंडित नेहरू के साथ साथ समूचे सरकारी तंत्र का ध्यान भीहिन्दुस्तानी थिएटरकी तरफ़ से हट चुका था| नतीजतनहिन्दुस्तानी थिएटरपूरी तरह बिखर गया| ऐसे में कई अन्य साथियों की तरह यूनुस परवेज़ को भी बेहतर भविष्य की तलाश में मुम्बई चले आना पड़ा| ये साथ 1964 का वाक़या है| मुम्बई आकर यूनुस परवेज़ नेइप्टाकी सदस्यता ले ली और ख्वाजा अहमद अब्बास, सागर सरहदी, बलराज साहनी और रमेश तलवार जैसे रंगकर्मियों के साथ एक बार फिर से रंगमंच पर सक्रिय हो गए|

यूनुस परवेज़ ने बताया था, “साल 1968 में रिलीज़ हुईहसीना मान जाएगीमेरी डेब्यू फ़िल्म थी| प्रकाश मेहरा की भी बतौर निर्देशक ये पहली फिल्म थी| फिर मुझे राजश्री प्रोडक्शन्स की साल 1971 की फिल्मउपहारमें मांझी की भूमिका मिली| इस फ़िल्म का मशहूर गीतमांझी नैया ढूंढें किनारामुझ पर फिल्माया गया था| मेरा संघर्ष जारी था| उस दौरान मैंने कुछेक फिल्मों में छोटे छोटे रोल किये| और फिर साल 1973 में आयी बहुचर्चित फ़िल्मगर्म हवा, जिसमें मैंने एक अवसरवादी नेता की भूमिका की थी| इस फ़िल्म ने मुझे प्रबुद्धवर्ग में तो पहचान दी ही, इस भूमिका के लिए मुझे यू.पी.जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा सम्मानित भी किया गया| लेकिन आम दर्शकों के बीच मेरी पहचान बनी 1975 की फ़िल्मदीवारसे| इस फ़िल्म में रहीम चाचा की मेरी भूमिका को दर्शकों ने बेहद पसंद किया था| फ़िल्मदीवारकी ज़बरदस्त कामयाबी के बाद मैं लगातार व्यस्त होता चला गया|”          

साल 1975 से 1995 के बीच यूनुस परवेज़ का करियर अपनी बुलंदियों पर रहा| उस दौरान उन्होंने अमिताभ बच्चन की तकरीबन सभी फ़िल्मों औरबी.आर.फिल्म्सकीनिकाह, ‘ बर्निंग ट्रेन, ‘इन्साफ का तराज़ू, ‘आवामऔरदहलीज़के अलावाज़ख़्मी, ‘आलाप, ‘अंगूर, ’आशा, ‘अवतार, ‘उमरावजान, ‘गोलमाल, ‘मांग भरो सजना, ‘बाज़ार, ‘लैला, ‘त्रिदेव, ‘मोहरा, ‘जालऔर .बी.सी.एल. कंपनी कीतेरे मेरे सपनेसमेत क़रीब साढ़े तीन सौ फिल्मों में काम किया| 2005 में रिलीज़ हुईबंटी और बबलीऔर 2007 में बनी भोजपुरी फ़िल्मबांके बिहारी एम.एल..’ उनकी अंतिम प्रदर्शित फ़िल्मों में से थीं

अभिनय के अलावा राजनीति में भी यूनुस परवेज़ की गहरी दिलचस्पी थी| छात्र जीवन में वो कॉलेज की राजनीति में सक्रिय थे| वो बताते थे, “साल 1984 में सुनील दत्त ने अपना पहला चुनाव लड़ा तो उस दौरान वो मुझे भी सक्रिय राजनीति में ले आए और मैंने भी कांग्रेस की सदस्यता ले ली| फिर कुछ ख़ास वजहों से मुझे कांग्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी में जाना पड़ा जिसके टिकट पर मैंने साल 1998 का लोकसभा चुनाव भी लड़ा| लेकिन फिर मैं वापस कांग्रेस में लौट आया| मेरे परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा और तीन बेटियां हैं| बेटा अरशद खान फिल्म निर्देशक है और तीनों बेटियों का विवाह हो चुका है|”

यूनुस परवेज़ का निधन 71 साल की उम्र में 11 फ़रवरी 2007 को अनियंत्रित डायबिटीज़ की वजह से उनके मीरा रोड स्थित निवास पर हुआ|



We are thankful to

Mr. Harish Raghuvanshi Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.

Mr. S.M.M. Ausaja for providing movies’ posters.

Ms. Aksher Apoorva, Mr. Gajendra Khanna & Ms. Maitri Manthan for the English translation of the write ups.

Mr. Manaswi Sharma for technical support including the video editing.


Yunus Parvez on YT Channel Beete Hue  Din



Maajhi Naiya Dhoondhe Kinara” – Yunus Parvez

                                .......Shishir Krishna Sharma

Cinema has had a relationship with theatre from its infancy. In particular, the foundation of the talkies was based on theatres. Many masters of yesteryears like Master Nisaar, Jahanara Kajjan, Sohrab Modi, Prithviraj Kapoor, Balraj Sahni, A K Hangal, Sanjeev Kumar to other numerous actors-actresses like Naseeruddin Shah, Om Puri, Shabana Azmi, Amol Palekar and today’s Nawazuddin Siddiqui and Radhika Apte have all entered films from the theatre world and made a name for themselves. One such artist was character actor Yunus Parvez who was a familiar face in Hindi cinema over three decades from 1970s to 1990s. In stark contrast to his screen image, Yunus Parvez was a highly educated and extremely intelligent personality who was also active for a short period in the field of politics. I met him in the middle of February 2004 at his flat at Mumbai’s western suburb of Mira Road’s Naya Nagar area. His house, incidentally, happened to be situated at a mere one and a half kilometer from my own residence. During this interview taken for my column ‘Kya Bhooloon Kya Yaad Karoon’ for ‘Sahara Samay weekly’, he talked at length about his personal and professional life. 

Belonging to Uttar Pradesh’s Ghazipur Area, Yunus Parvez was born on 3 September 1934 at Mirzapur. His father worked for the police force. Due to his father’s frequent transfers every two to three years, Yunus Parvez completed his school education from many towns and cities of East Uttar Pradesh after which he came down to Allahabad for his higher studies. During our conversation, he told me, “At Allahabad university I got the opportunity to learn from noted educationists like Dr Harivansh Rai Bachchan, Dr Raahi Masoom Raza and Firaaq Gorakhpuri. During this period I also got associated with theatre and parallel to my acquiring the BA and MA degrees in Urdu, I started participating whole heartedly in the college plays.”

Yunus Parvez while representing his college in the university’s ‘Intercity Youth Festival’ won the prestigious ‘Best Actor’ award for three continuous years. His photos and interviews were published in the newspapers regularly due to which he became well known as a theatre enthusiast. He told us, “After completing my MA, I started preparing for my PhD. At that time I went to Delhi for a few days to meet famous actor Dewan Virendranath. Dewan Virendranath was the paternal uncle of actor Kabir Bedi. One evening, Virendranath ji took me to Russian embassy for a party where I got introduced to famous theatre personalities Begum Qudsia Zaidi, Habib Tanvir, Mime Artist Irshad Panjtan and Writer-poet Niaz Haider. I had won Utttar Pradesh’s Best Actor award the same year and they were all already familiar with my work. On their suggestion I dropped my idea of pursuing a PhD and joined Begum Qudsia Zaidi’s ‘Hindustani Theatre’. This incident took place in 1959.”

The foundation of ‘Hindustani Theatre’ was laid by the inspiration of Pt Jawaharlal Nehru and it received government support regularly. Yunus Parvez was associated with ‘Hindustani Theatre’ for a period of nearly four years. Under the theatre’s banner he worked for many plays along with noted theatre artists like Habib Tanveer, M S Sathyu and Narendra Sharma. He said, “Top politicians like Pt Nehru, Dr Zakir Hussain, Krishna Menon and S K Patil used to often visit to see our preparations for various plays. After the successful screening of a play there used to be a party organized at the Prime Minister’s house. On one occasion, the then president, Dr Rajendra Prasad had even kept the screening of our play ‘Shakuntala’ in honour of Egypt’s President Nasser.”

‘Hindustani Theatre’ was at its pinnacle when the demise of Begum Qudsia Zaidi at the age of just 44 years of cardiac arrest occurred. On the other hand, as a result of the Sino-India war, the focus of Pt Nehru and the whole government apparatus had shifted away from ‘Hindustani Theatre’. As a result, ‘Hindustani Theatre’ lost its glory. In such a situation, like many of his co-artists, Yunus Parvez also came to Mumbai to try his luck around 1964. At Mumbai, Yunus Parvez became a member of IPTA and became active in theatre again along with stalwarts like Khwaja Ahmed Abbas, Sagar Sarhadi, Balraj Sahni and Ramesh Talwar.

Yunus Parvez recalled, “My debut film was the 1968 release, ‘Haseena Maan Jaayegi’ after which I got the role of Maajhi in Rajshree Production’s 1971 film ‘Uphaar’. Its superhit song ‘Maajhi Naiya Dhoondhe Kinara’ was picturized on me. My struggle was continuing. I worked in a few films in small roles. Then I did the role of an opportunist political leader in the well-received film ‘Garm Hawa’ in 1973. This film on one hand gave me recognition above the masses and on the other hand fetched me a felicitation from the U.P. Journalist Association. My recognition among the masses however came with the 1975 release ‘Deewaar’. My character of Raheem Chacha in the movie was appreciated a lot by the audience. After the stupendous success of the film ‘Deewar’, I became quite busy.”         

During the period 1975 to 1995, Yunus Parvez’a career was at its peak. He acted in nearly 350 films including almost all Amitabh Bachchan films, B.R. film’s ‘Nikaah’, ‘The Burning Train’, ‘Insaaf Ka Taraazu’, ‘Awaam’, ‘Dehleez’ and also ‘Zakhmi’, ‘Alaap’, ‘Angoor’, ‘Asha’, ‘Avtar’, ‘Umrao Jaan’, ‘Golmaal’, ‘Maang Bharo Saajna’, ‘Baazaar’, ‘Laila’, ‘Tridev’, ‘Mohra’, ‘Jaal’ and ABCL company’s ‘Tere Mere Sapne’. The 2005 release ‘Bunty Aur Babli’ and 2007’s Bhojpuri Film, ‘Baanke Bihaari M.L.A.’ were among his last released films.

Yunus Parvez also had a deep interest in politics in addition to Acting. He was active in politics during his college days as well. He told us, “In the year 1984, Sunil Dutt fought his first election. Having entered active politics, he invited me too and I took the membership of Congress. But due to some special reasons, I was forced to leave Congress to join Samajwadi Party. I even fought the 1998 Lok Sabha Elections on their ticket after which I returned back to Congress. My family consists of my wife, one son and three daughters. My son Arshad Khan is a film director while all my daughters are well settled after marriage.”

Yunus Parvez passed away at his Mira Road residence at the age of 71 on 11th February 2007 due to complications arising out of his uncontrolled diabetes.