“ये चमन हमारा अपना है” – सुलोचना लाटकर
.........शिशिर कृष्ण शर्मा
लीला चिटनिस, निरूपा राय, कामिनी कौशल, अचला सचदेव! हिन्दी सिनेमा की इन मशहूर माताओं की श्रेणी में एक और जानामाना नाम था सुलोचना का, जिन्होंने मराठी सिनेमा में अपनी खासी पहचान बनाने के बाद हिन्दी सिनेमा की ओर रूख किया था| बीते जुलाई में 90 वर्ष की हो चुकी सुलोचना जी आज भी हमारे बीच हैं और मुंबई के मशहूर सिद्धिविनायक मंदिर के पास प्रभादेवी के इलाक़े में रहती हैं| उनसे मेरी मुलाक़ात ‘साप्ताहिक सहारा समय’ के मेरे कॉलम ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’ के लिए हुई थी| उस अवसर पर उन्होंने अपनी ज़िंदगी के तमाम पहलुओं पर बेलाग बातचीत की थी|
सुलोचना जी का जन्म 30 जुलाई 1929 को कर्नाटक के बेलगाम जिले में स्थित खड़कलाट गांव में हुआ था| ये गांव महाराष्ट्र की सीमा के बेहद क़रीब और महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर से 40 किलोमीटर के फ़ासले पर है| सुलोचना बताती हैं, “मेरे पिता कोल्हापुर रियासत में दरोगा थे और घर में माता-पिता के अलावा मुझसे 10 साल बड़ा एक भाई था| इसके अलावा मेरी एक बालविधवा मौसी भी हमारे साथ ही रहती थीं| गांव के नाम से हम लोग ‘लाटकर’ कहलाते थे| मैं गांव के ही प्राईमरी स्कूल में पढ़ती थी हालांकि पढ़ाई-लिखाई में मेरी ज़्यादा दिलचस्पी नहीं थी|”
सुलोचना जी के अनुसार उनके गांव में दो मशहूर दरगाहें थीं, राजेबक्सर दरगाह और बालेसाब दरगाह जिनमें हर साल उर्स का मेला लगता था| उस दौरान होने वाले तमाशा, नाटक और फिल्मों के शोज़ को वो बेहद चाव से और बिला नागा सबसे आगे बैठकर देखती थीं| इसके अलावा चलती-फिरती तस्वीरों का राज़ जानने के लिए वो अक्सर परदे के पीछे भी झांकती थीं|
सुलोचना जी 12-13 बरस की थीं जब उनके माता-पिता दोनों गुज़र गए| अब इन भाई-बहन को सिर्फ़ मौसी का सहारा रह गया था| उन्हीं दिनों प्लेग फैला तो इन तीनों को अपना घरबार छोड़कर पास ही के चिकोड़ी गांव में सुलोचना जी के पिता के वकील दोस्त बिनाडेकर के घर में शरण लेनी पड़ी| सुलोचना जी बताती हैं, “बिनाडेकर ने हमारा बहुत आदर-सत्कार किया लेकिन हमारा उनपर ज्यादा दिनों तक आश्रित रहना भी तो उचित नहीं था| एक रोज़ बिनाडेकर के परिचित निर्माता-निर्देशक मास्टर विनायक उनसे मिलने के लिए आए| मास्टर विनायक कोल्हापुर स्थित फ़िल्म कंपनी ‘प्रफुल्ल पिक्चर्स’ के मालिक थे| उन्हें जब हमारे हालात के बारे में पता चला तो मौसी के आग्रह पर उन्होंने मुझे कोल्हापुर बुलाकर अपनी कंपनी में नौकरी पर रख लिया| ये साल 1943 का वाकया है| ‘प्रफुल्ल पिक्चर्स’ में सुमति गुप्ते और मीनाक्षी शिरोडकर जैसी पढ़ी-लिखी अभिनेत्रियां पहले से काम कर रही थीं|”
{सुमति गुप्ते का विवाह मराठी-हिन्दी के ख्यातिप्राप्त निर्माता-निर्देशक वसंत जोगलेकर से हुआ था| वसंत जोगलेकर ने लता मंगेशकर की बतौर पार्श्वगायिका डेब्यू फ़िल्म ‘आपकी सेवा में’ (1947) के अलावा ‘आंचल’ (1960), ‘आज और कल’ (1963) और ‘एक कली मुस्काई’ (1968) जैसी हिट फ़िल्मों का निर्देशन किया था| ‘आज और कल’ और ‘एक कली मुस्काई’ के निर्माता भी वोही थे| फ़िल्म ‘एक कली मुस्काई’ की नायिका मीरा जोगलेकर उनकी बेटी थीं|}
{मीनाक्षी शिरोडकर 1930 और 40 के दशक के मराठी-हिन्दी सिनेमा का एक जानामाना नाम और भारतीय सिनेमा की पहली ग्लैमरस अभिनेत्री थीं| उन्होंने 1938 में मराठी-हिन्दी भाषाओं में बनी फ़िल्म ‘ब्रह्मचारी’ से डेब्यू किया था और अपनी इस पहली ही फ़िल्म में स्विमसूट पहनने जैसा क्रांतिकारी कदम उठाकर उस जमाने में हंगामा खड़ा कर दिया था| मशहूर अभिनेत्रियां शिल्पा और नम्रता शिरोडकर इन्हीं मीनाक्षी शिरोडकर की पोतियां हैं|}
{मास्टर विनायक अभिनेत्री नंदा के पिता थे| वो मराठी-हिन्दी फ़िल्मों के एक जानेमाने निर्माता-निर्देशक और अभिनेता थे| उनका निधन साल 1947 में महज़ 41 साल की उम्र में हो गया था|}
‘प्रफुल्ल पिक्चर्स’ में ही सुलोचना जी की मुलाक़ात अपनी हमउम्र लता मंगेशकर से हुई| लता के हालात भी सुलोचना जी से कुछ अलग नहीं थे| उनके पिता गुज़र चुके थे और एक भाई और चार बहनों में सबसे बड़ी होने की वजह से घर की तमाम ज़िम्मेदारी लता के कंधों पर आ गई थी| इसी वजह से उन्हें भी ‘प्रफुल्ल पिक्चर्स’ में नौकरी करनी पड़ी थी| सुलोचना जी बताती हैं, “मैं चूंकि सिर्फ़ प्राईमरी पास थी और मुझे हिन्दी बोलनी भी नहीं आती थी इसलिए बेहद घबराई हुई रहती थी| ऐसे में लता ने मुझे बहुत सहारा दिया| उस दौरान हुई हमारी प्रगाढ़ मित्रता आज तक चली आ रही है|”
‘प्रफुल्ल पिक्चर्स’ महज़ तीन महीने बाद ही मुंबई स्थानांतरित हो गई| लेकिन महानगर के नाम से घबराकर सुलोचना जी ने कोल्हापुर में ही रहना बेहतर समझा| वो बताती हैं, “मुझे कोल्हापुर के ‘जयाप्रभा स्टूडियो’ में 30 रूपये महीने के वेतन पर नौकरी मिल गई थी| ‘जयाप्रभा स्टूडियो’ धार्मिक और ऐतिहासिक फ़िल्मों के निर्माण के लिए मशहूर भालजी पेंढारकर का था जिन्हें सब बाबा कहते थे| मैं ‘प्रफुल्ल पिक्चर्स’ की मराठी फ़िल्म ‘चिमुकला संसार’ (1943) में वसंत जोगलेकर के निर्देशन में एक छोटी सी भूमिका कर चुकी थी| लेकिन सही मायनों में मैंने काम सीखा ‘जयाप्रभा स्टूडियो’ में जहां बाबा हमें लाठी-तलवार चलाना, घुड़दौड़ इत्यादि तक खुद सिखाते थे| मैंने उनकी हिन्दी फ़िल्मों ‘महारथी कर्ण’ (1944) और ‘वाल्मीकि’ (1946) में अभिनय किया| मराठी फ़िल्म ‘ससुरावास’ (1947) में मैं पहली बार नायिका बनी| इस फ़िल्म में मेरे नायक मास्टर विट्ठल थे|”
सुलोचना जी के अनुसार शूटिंग पर जाने से पहले बाबा दो-तीन महीने रिहर्सल कराते थे, शूटिंग के दौरान मेकअप और गहनों-कपड़ों की कंटीन्यूटी कलाकारों को खुद ही लिखनी होती थी, उन्हें स्कूल के छात्रों की तरह फ़िल्म निर्माण के प्रत्येक पहलू की जानकारी दी जाती थी| यही वजह है कि सुलोचना जी हमेशा से बाबा को अपना गुरु ही मानती आयी हैं| वो कहती हैं, “बाबा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कट्टर हिमायती थे| उनके स्टूडियो में रोज़ाना सुबह-शाम संघ की प्रार्थना होती थी जिसमें स्टूडियो से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को अनिवार्य रूप से भाग लेना होता था| मेरा असली नाम नगाबाई और प्रचलित नाम रंगू है| बाबा ने ही मुझे ये फ़िल्मी नाम ‘सुलोचना’ दिया था| ‘जयाप्रभा स्टूडियो’ में नौकरी के दौरान 15 बरस की उम्र में मेरी शादी कोल्हापुर के एक जमींदार परिवार के आबासाहेब चव्हाण से हो गई थी|”
गांधी की हत्या हुई तो पूरे महाराष्ट्र में ब्राह्मणों और संघ के कार्यकर्ताओं के खिलाफ़ दंगे भड़क उठे| उन्हें चुनचुनकर मारा गया, उनकी संपत्ति जला दी गई जिसमें ‘जयाप्रभा स्टूडियो’ भी शामिल था| भालजी पेंढारकर (बाबा) को गिरफ़्तार कर लिया गया| ऐसे में उन्होंने स्टूडियो के सभी कर्मचारियों को 2-2 महीने का वेतन देकर नौकरी से मुक्त कर दिया| सुलोचना जी कहती हैं, “जयाप्रभा स्टूडियो के बंद होने के बाद मैं कोल्हापुर से पुणे चली आई जहां मुझे ‘मंगल पिक्चर्स’ की फ़िल्म ‘जीवाचा सखा’ में नायिका की भूमिका मिली| ‘मंगल पिक्चर्स’ की स्थापना कोल्हापुर के ही कुछ लोगों ने मिलकर की थी| साल 1948 में रिलीज़ हुई ‘जीवाचा सखा’ की कामयाबी के बाद मैं पूरी तरह से मराठी फ़िल्मों में व्यस्त हो गई|”
साल 1952 में प्रदर्शित हुई सुलोचना जी की मराठी फ़िल्म ‘स्त्री जन्म तुझी कहाणी’ सुपरहिट हुई थी| रणजीत मूवीटोन के मालिक सरदार चंदूलाल शाह को ये फ़िल्म इतनी पसंद आई कि उन्होंने इसका हिन्दी रीमेक बनाने का फैसला कर लिया| ‘औरत तेरी यही कहानी’ के नाम से बनने वाली हिन्दी रीमेक के लिए उन्होंने सुलोचना जी को साईन किया तो साल 1953 में सुलोचना जी को पुणे छोड़कर मुंबई आना पड़ा| ‘औरत तेरी यही कहानी’ में सुलोचना जी के नायक भारत भूषण थे| ये फ़िल्म साल 1954 में प्रदर्शित हुई थी| सुलोचना जी बताती हैं, “मैंने सुरेन्द्रनाथ के साथ ‘महात्मा कबीर’ (1954), अनूप कुमार के साथ ‘सजनी’ (1956) और मोतीलाल के साथ ‘मुक्ति’ (1960) जैसी कुछ फ़िल्में बतौर नायिका कीं लेकिन इनमें से कोई भी नहीं चल पायी| लेकिन साल 1956 में प्रदर्शित हुई ‘सती अनुसूया’ की ज़बरदस्त कामयाबी ने मुझे धार्मिक फ़िल्मों की स्टार ज़रूर बना दिया|”
सुलोचना जी को इस स्टारडम का नुकसान भी सहना पड़ा| धार्मिक फ़िल्मों से जुड़े लोग उस ज़माने में भी दूसरे-तीसरे दर्जे के माने जाते थे इसलिए सुलोचना जी को सामाजिक फ़िल्मों में काम मिलना बंद हो गया| ‘आर.के.फ़िल्म्स’ की म्यूज़िकल हिट बाल फ़िल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ (1957) ज़रूर अपवाद साबित हुई जिसका निर्देशन अमर कुमार ने किया था| इस फ़िल्म के संगीतकार दत्ताराम थे| फ़िल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ का मशहूर गीत ‘ये चमन हमारा अपना है..’ सुलोचना और मास्टर रोमी पर फ़िल्माया गया था| इसके अलावा सुपरडुपर हिट बालगीत ‘चुन चुन करती आई चिड़िया, दाल का दाना लायी चिड़िया’ भी इसी फ़िल्म का था| लेकिन इस फ़िल्म की कामयाबी का सुलोचना जी को कोई लाभ नहीं मिला|
सुलोचना जी कहती हैं, “एक रोज़ बिमल रॉय ने मुझे फ़िल्म ‘सुजाता’ में मां की भूमिका के लिए बुलाया| मैंने उन्हें ना तो नहीं कहा लेकिन दुविधा में ज़रूर पड़ गई कि महज़ 30 बरस की उम्र में मां की भूमिका कैसे स्वीकार कर लूं| लेकिन दुर्गा खोटे और ललिता पंवार की सलाह पर आखिरकार मैंने खुद को चरित्र भूमिकाओं के लिए तैयार कर ही लिया| फ़िल्म ‘सुजाता’ बेहद कामयाब हुई और देखते ही देखते मैं सामाजिक फ़िल्मों की अतिव्यस्त चरित्र अभिनेत्री बन गई|”
‘सुजाता’ साल 1959 में रिलीज़ हुई थी| इसके बाद अगले 2 दशकों तक सुलोचना जी बतौर चरित्र अभिनेत्री लगातार व्यस्त रहीं| ‘दिल देके देखो’, ‘संघर्ष’, ‘आई मिलन की बेला’, ‘दुनिया’, ‘आदमी’, ‘आए दिन बहार के’, ‘नयी रोशनी’, ‘जॉनी मेरा नाम’, ‘साजन’, ‘कटी पतंग’, ‘मजबूर’, ‘कसौटी’, ‘सन्यासी’, ‘प्रेम नगर’, ‘कोरा कागज़’, ‘गंगा की सौगंध’, ‘मुक़द्दर का सिकंदर’, ‘अंधा कानून’ और ’क्रांति’ जैसी कई फ़िल्मों में उन्होंने बेहतरीन चरित्र भूमिकाएं कीं| साथ ही मराठी फ़िल्मों में भी अपनी सम्मानजनक जगह बनाए रखी| और फिर समय के साथ साथ काम कम होता चला गया|
साल 1999 में सुलोचना जी को भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया था| साल 2004 में उन्हें ‘फ़िल्मफ़ेयर लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवार्ड’ मिला| एक उत्कृष्ट अभिनेत्री के तौर पर उन्होंने लगभग 40 विभिन्न अवार्ड हासिल किये|
सुलोचना जी के परिवार में बेटी कंचन और नातिन (कंचन की बेटी) रश्मि हैं| सुलोचना जी बताती हैं, “सुप्रसिद्ध मराठी रंगकर्मी और फ़िल्म अभिनेता (स्वर्गीय) डॉ.काशीनाथ घाणेकर मेरे दामाद थे| वो मराठी फ़िल्मों के तो स्टार थे ही, ‘दादी मां’ और ‘अभिलाषा’ जैसी हिन्दी फ़िल्मों में भी उन्होंने अहम भूमिकाएं की थीं| उन्हें गुज़रे हुए 30 साल से ज्यादा हो चुके हैं| उनके नाम से बने ट्रस्ट के ज़रिए हर साल नामचीन रंगकर्मियों को पुरस्कृत किया जाता है| मुझे फ़िल्मों से दूर हुए बरसों बीत चुके हैं, बीते जुलाई में 90 बरस की हो चुकी हूं और अब मेरा सारा समय ट्रस्ट का कामकाज देखने में ही बीत जाता है|”
{विशेष: सुप्रसिद्ध फ़िल्म इतिहासकार (स्व.) श्री बी.डी.सामंत और (स्व.) श्री शहाबुद्दीन अक्सर कहते थे कि सुलोचना लाटकर जी का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था और उनका असली नाम साहिब जान है| जब मैंने कंचन जी से इस बात की पुष्टि करनी चाही तो उन्होंने साफ़तौर पर इस बात को ग़लत करार दे दिया, हालांकि सुलोचना जी के परिचित कुछ लोग आज भी उनके मुस्लिम परिवार से होने वाली बात को सही कहते हैं|}
सुलोचना जी का निधन 4 जून 2023 को 94 साल की उम्र में मुम्बई में हुआ|
We are thankful to –
Mr.
Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Ms.
Aksher Apoorva for the English
translation of the write ups.
Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
Sulochna Latkar On YT Channel BHD
“Yeh Chaman Hamara Apna Hai” – Sulochna
..............Shishir Krishna Sharma
Leela Chitnis, Nirupa Roy, Kamini Kaushal, Achla Sachdev!
Among these famous screen mothers, was the name of Sulochna who had headed
towards Hindi films after making a name for herself in Marathi Cinema with her
well received performances. Sulochna ji
who recently turned 90 in July stays away from the limelight in the Prabhadevi
area which is near Mumbai’s famous Siddhi Vinayak Temple. I had met her in the
context of my column, “Kya Bhooloon Kya Yaad Karoon” for “Saptaahik Sahara
Samay”. On this occasion, she had a conversation with me regarding all aspects
of her life.
Sulochna ji had been born on 30th July 1929 in Khadaklaat
village of Belgaum District (Karnataka). This village is very near to the
Maharashtra border and merely 40 kilometers away from Maharashtra’s Kolhapur
town. Sulochna ji told us, “My father was a Daroga (a police post) in Kolhapur
princely state and our family comprised of my parents and my elder brother who
was 10 years senior to me. My child-widow maternal aunt (Mausi) also stayed
with us. The villagers used to call us ‘Latkar’ after our ancestral village. I
studied in village’s primary school though I was not particularly inclined
towards studies.”
Sulochna ji told us that in her village there were two
famous Dargahs ‘Rajebuxar’ & ‘Balesaab’ where annual Urs fairs used to be
held. During these plays, street acts and film shows used to be organized which
she would attend with a lot of enthusiasm without fail. Other than this she
also tried to see behind the screen to understand the secret of the moving
images!
Sulochna ji was merely 12-13 years old when she lost both
her parents. In such a situation the siblings had only their aunt to depend
upon. There was a plague epidemic at that time due to which the trio left
everything and took refuge in her father’s lawyer friend Binadekar in the
nearby Chikodi village. Sulochna ji says, “Binadekar received us with open arms
but it was improper for us to depend upon him for very long. One day,
Binadekar’s acquaintance, well known producer-director Master Vinayak came to
meet him. Master Vinayak was the owner of Kolhapur’s ‘Prafulla Pictures’ film
company. When he came to know about our dire circumstances, he invited me to
Kolhapur and gave me a job in the company. The year was 1943. Educated
actresses like Sumati Gupte and Meenakshi Shirdokar were already working for
‘Prafulla Pictures’.
{Sumati Gupte got married to famous Marathi-hindi film
producer-director Vasant Joglekar. In addition to Lata Mangeshkar’s play back
debut ‘Aap Ki Seva Mein’ (1947), Vasant Joglekar also directed hit films like
‘Aanchal’ (1960), ‘Aaj Aur Kal’ (1963) and ‘Ek Kali Muskaai’ (1968). He was
also the producer of ‘Aaj aur Kal’ and ‘Ek Kali Muskaai’. Meera Joglekar, the
heroine of ‘Ek Kali Muskayi’ was their daughter.}
{Meenakshi Shirodkar was a well-known name in Marathi-Hindi
cinema in 1930s and 1940s and was Indian cinema's first glamorous actress. She
made her debut in the 1938 Marathi-Hindi bilingual ‘Brahmchari’ and had created
a scandal by taking the revolutionary step of wearing a swimsuit in this film
in those days! Famous actresses Shilpa and Namrata Shirodkar are her paternal
granddaughters.}
{Master Vinayak was the father of actress Nanda. He was a
well-known producer-director and actor of Marathi-Hindi films. He passed away
in 1947 at the early age of 41 years.}
It was at ‘Prafulla Pictures’ that Sulochana ji met her
compatriot Lata Mangeshkar. Lata’s family condition was no different from that
of Sulochna ji. Lata had also lost her father and being the eldest among the
siblings the responsibility of her family (including widowed mother, one
brother and four sisters) was now on her shoulders. As a result, she had also
been forced to take up a job in ‘Prafulla Pictures’. Sulochna ji told us,
“Since, I was merely a primary school pass out and didn’t know how to speak
Hindi, I was quite apprehensive. In this situation, Lata supported me a lot.
Our deep friendship which started at that time is still running strong.”
'Prafulla Pictures’ shifted to Mumbai within three months.
Afraid of the metro’s name Sulochna ji preferred to stay back in Kolhapur. She
says, “I got a job in Kolhapur's 'Jayaprabha Studio' at a monthly salary of Rs
30. ‘Jayaprabha’ was a studio that was specially setup to produce Mythological
and Historical movies by the famous Bhalji Pendharkar who we used to call Baba.
I had already done a small role in Prafulla Picture’s Marathi film ‘Chimukla
Sansaar’ (1943) directed by Vasant Joglekar. However, I learnt my craft in true
spirit under Baba’s guidance where he himself taught me to ride horses, use a
laathi and sword etc. I acted in his Hindi films ‘Maharati Karna’ (1944) and
‘Valmiki’ (1946). I made my debut as a heroine in the 1947 Marathi film
‘Sasuravaas’ where Master Vitthal was cast opposite me in the lead role.”
According to Sulochna ji, Baba used to get rehearsals done
for 2-3 months before starting shooting. The actors themselves had to ensure
the continuity of their makeup, jewellery and clothes. We used to be taught the
details of each aspect of film making like school children. Due to this reason
Sulochna ji considers Baba her Guru. She says, “Baba was a staunch supporter of
the Rashtriya Swayamsevak Sangh. There used to be Sangh’s prayer every morning
and evening in his studio and every person associated with the studio had to mandatorily
attend them. My real name is Nagabai but I was lovingly called ‘Rangu’. It was
Baba who gave me the screen name ‘Sulochna’. I got married at the early age of
15 to Aabasaheb Chavan who belonged to a Zamindar (landlord) family of Kolhapur
while I was still working in Jayaprabha Studio”
After the assassination of Mahatma Gandhi, riots against
Brahmins and RSS members spread across Mahrashtra. Many were killed as a result
and many properties were set afire including 'Jayaprabha Studio'. Bhalji Pendharkar
was even arrested at the time. In this situation, he relieved all the employees
of the studio of their duties after giving them two months’ salaries. Sulochna
ji says, “After Jayaprabha Studio shut down I went to Pune from Kolhapur where
I played the heroine's role in 'Mangal Picture' movie 'Jeevacha Sakha'. 'Mangal
Pictures' was setup by some individuals from Kolhapur only. After the success
of this 1948 release ‘Jeevacha Sakha’, I became totally busy with Marathi
films.”
Sulochna ji's 1952 Marathi release 'Stree Janm Tujhi Kahani'
became a superhit. Ranjeet Movietone’s owner Sardar Chandulal Shah loved it so
much that he decided to make its Hindi remake. Sulochna ji shifted from Pune to
Mumbai in 1953 when he signed her for this remake titled ‘Aurat Teri Yahi
Kahani’. Her hero in ‘Aurat Teri Yahi Kahani’ was Bharat Bhushan and it
released in 1954. Sulochna ji says, “I did the movies 'Mahatma Kabir' (1954)
opposite Surendra Nath, 'Sajni' (1956) opposite Anoop Kumar and 'Mukti' (1960)
opposite Motilal as a heroine but unfortunately none of these could make it at
box office. However, the super success of ‘Sati Anusuya’ (1956) did make me a
star of Mythological films.”
Sulochna ji had to pay the price for this stardom as well.
In those days, artists associated with mythological films were considered of
the second-third rung due to which she stopped getting offers for social films.
‘R. K. Film’s musical hit children’s film ‘Ab Dilli Door Nahin’ (1957) was an
exception which was directed by Amar Kumar. Dattaram was the composer for this
movie. Film ‘Ab Dilli Door Nahin’s famous song ‘Ye Chaman Hamara Apna Hai ...’
was picturised on Sulochna and Master Romi. Superhit children song ‘Chun Chun
Karti Aayi Chidiya, Daal Ka Daana Laayi Chidiya’ was also from this movie but
Sulochna ji did not get benefitted by the success of this movie.
Sulochna ji says, “One day Bimal Roy invited me to play the
mother's role for his film 'Sujata'. Though, I could not decline the offer, I
couldn’t help wondering how, I, at merely 30 years of age could play the role
of a mother. But on the advice of Durga Khote and Lalita Pawar, I convinced
myself mentally to take up character roles also. Film ‘Sujata’ was extremely
successful, and I soon found myself becoming an extremely in-demand character
role artist in social films.”
‘Sujata' was a 1959 release. After that, for the next two
decades, Sulochna ji was a very busy character role actress. ‘Dil Deke Dekho’,
‘Sangharsh’, ‘Aayi Milan Ki Bela’, ‘Duniya’, ‘Aadmi’, ‘Aaye Din Bahar Ke’, ‘Nayi
Roshni’, ‘Johnny Mera Naam’, ‘Sajan’, ‘Kati Patang’, ‘Majboor’, ‘Kasauti’,
‘Sanyasi’, ‘Prem Nagar’, ‘Kora Kaagaz’, ‘Ganga Ki Saugandh’, ‘Muqaddar Ka
Sikandar’, ‘Andha Kanoon’ and 'Kranti' were some of the movies where she
portayed character roles brilliantly. Parallelly, she also made a respectable
place for herself in Marathi films. But with time, slowly, her film offers
started declining.
In 1999, She was awarded the 'Padmashri' by the Govt of
India. She also got the 'Filmfare Lifetime Achievement award' in 2004. She has
received over 40 different awards for her excellent performances.
Sulochna ji's family consists of her daughter Kanchan and
granddaughter Rashmi (Kanchan's daughter). Sulochna ji says, “Famous Marathi
theatre and film actor, Late Dr Kashinath Ghanekar was my son-in-law. He was a
star in Marathi films and had also played important roles in Hindi movies like
'Dadi Maa' and 'Abhilasha'. He passed away more than 30 years ago. A trust in
his memory awards noted theatre artists every year. I have been away from films
for decades; I have turned 90 years old last July and now all my time gets
spent in carrying out all the tasks of the trust.”
{Note: Famous film historian (Late) Shri B.D. Samant and (Late)
Shri Shahabuddin often said that Sulochna Latkar ji was born in a Muslim family
and her real name is Sahib Jaan. When I tried to cross check this with Kanchan
ji, she strongly rejected the claim as being totally baseless though some
acquaintances of Sulochna ji continue to maintain the claim of her being born
in a Muslim family.}
Sulochna ji passed away in Mumbai on 4 June 2023 at the age of 94.