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SHRADDHANJALI ||
SHRI SAYYAD MOHAMMAD FAZIL RIZVI
(Father of our integral part Shri SMM AUSAJA)
Sad! Shri Rizvi passed away on 10.01.2015 in Mumbai
“मंज़िल तो है बड़ी दूर”
– सी.एच.आत्मा
..............शिशिर कृष्ण शर्मा
1930 और 40 के दशक में हिंदी सिनेमा के पहले स्टार गायक कुन्दनलाल सहगल की लोकप्रियता का आलम कुछ ऐसा था कि उस दौर के सिनेमाप्रेमी हरेक नए आने वाले गायक से सहगल की ही शैली में गाने की उम्मीद करते थे। यही वजह है कि मुकेश और किशोर कुमार के शुरूआती गीतों पर सहगल की छाप साफ़ नज़र आती है। इन गायकों ने तो बदलते वक़्त के साथ ख़ुद को सहगल के प्रभाव से मुक्त करके अपनी अलग पहचान बनाई और कामयाब भी हुए लेकिन सी.एच.आत्मा जैसे गायक ज़िंदगी भर सहगल की छाया से बाहर ही नहीं आ पाए।
अपनी अलग पहचान बनाने की छटपटाहट दिल में ही दबाए सी.एच.आत्मा महज़ 52 साल की उम्र में इस दुनिया से चले गए थे। उनके छोटे भाई, गायक चन्द्रू आत्मा से मेरी मुलाक़ात कैडेल रोड, माहिम स्थित उनके घर पर हुई थी। उस मुलाक़ात के दौरान चन्द्रू आत्मा ने सी.एच.आत्मा के बारे में विस्तार से बातचीत की थी। प्रस्तुत है वो बातचीत, चन्द्रू आत्मा (चित्र में) के ही शब्दों में-
“हमारे पिता हशमतराय चैनानी कराची के नामी वकील थे। संगीत का उन्हें बेहद शौक़ था और पिता की देखादेखी यही गुण हम सब भाई-बहनों में सबसे बड़े सी.एच.आत्मा में भी आ गए थे। ये वो दौर था जब हर तरफ़ कुन्दनलाल सहगल की धूम मची हुई थी। भाईसाहब भी सहगल के दीवाने थे और उन्हीं के गाने गाते थे। लेकिन महज़ शौक़िया तौर पर। गायन को व्यवसाय बनाने की उन्होंने कभी नहीं सोची थी।
एक बार छुट्टियों में भाईसाहब मौसी के घर लाहौर गए हुए थे जहां उनकी आवाज़ से लोग इतने प्रभावित हुए कि उन्हें सहगल के गीत गाने के लिए स्टेज-कार्यक्रमों में बुलाया जाने लगा। इन कार्यक्रमों की सफलता से लाहौर में वो इतने मशहूर हो गए कि एच.एम.वी. कम्पनी ने ओ.पी.नैयर की बनाई धुन पर उनकी आवाज़ में गीत रेकॉर्ड कराया ‘प्रीतम आन मिलो...दुखिया जिया बुलाए’। उन्हीं दिनों भाईसाहब ने अपना नाम ‘आत्मा हशमतराय चैनानी’ से बदलकर ‘सी.एच.आत्मा’ रख लिया था। ये साल 1945 का वाकया है।
मुल्क़ का बंटवारा हुआ तो हमारा परिवार कराची छोड़कर पुणे चला आया। उधर भाईसाहब को हिमालयन एयरवेज़ में को-पायलट की नौकरी मिली और वो कोलकाता चले गए। हममें से किसी को भी पता नहीं चला कि ‘प्रीतम आन मिलो...दुखिया जिया बुलाए’
जबर्दस्त हिट हो चुका है और इसके रेकॉर्ड्स की बेतहाशा बिक्री हो रही है।
लाहौर में उस ज़माने के जाने-माने निर्माता-निर्देशक-वितरक दलसुख पंचोली (चित्र में)
का अपना स्टूडियो था जहां ‘पंचोली आर्ट पिक्चर्स’ के बैनर में उन्होंने ‘गुल बकावली’,
‘यमला जट’,
‘चौधरी’,
‘ख़ज़ांची’,
‘ख़ानदान’
‘ज़मींदार’
और ‘पूंजी’ जैसी हिंदी और पंजाबी की कई हिट फ़िल्में बनायी थीं। संगीतकार गुलाम हैदर,
गायिका शमशाद बेगम,
अभिनेता प्राण और अभिनेत्री मनोरमा और मुनव्वर सुल्ताना ने पंचोली की फ़िल्मों से ही करियर शुरू किया था।
बंटवारे के बाद दलसुख पंचोली मुम्बई चले आए थे। ‘प्रीतम आन मिलो...’
गीत से वो इतने प्रभावित थे कि उन्होंने भाईसाहब को खोजकर फ़िल्म ‘नगीना’ (1951)
में गाने के लिए कोलकाता से मुम्बई बुला लिया। इस फ़िल्म में भाईसाहब ने शंकर-जयकिशन के संगीत में 3 सोलो ‘रोऊं मैं सागर के किनारे’, ‘इक सितारा है आकाश में’ और ‘दिल बेक़रार है मेरा’ गाए, जो काफ़ी पसंद किए गए। फ़िल्म ‘नगीना’ नूतन की बतौर हिरोईन पहली फ़िल्म थी।
अगले साल यानि 1952 में पंचोली ने ‘प्रीतम आन मिलो...’ के संगीतकार ओ.पी.नैयर को उनके करियर की पहली फ़िल्म ‘आसमान’ दी, हालांकि ओ.पी.नैयर इससे पहले साल 1949 में बनी फ़िल्म ‘कनीज़’ में बैकग्राऊण्ड म्यूज़िक दे चुके थे। फ़िल्म ‘आसमान’ में भाईसाहब ने ओ.पी.नैयर (चित्र में) के संगीत में 3 सोलो ‘इस बेवफ़ा जहां में’, ‘रात सुहानी हंसते तारे’ और ‘कछु समझ नहीं आए’ गाए थे। फ़िल्म ‘आसमान’ से ही आशा पारेख ने अपना अभिनय करियर बतौर बालकलाकार शुरू किया था।
दलसुख पंचोली ने भाईसाहब को साल 1954 में फ़िल्म ‘भाईसाहब’ में बतौर नायक पेश किया। इस फ़िल्म में उनकी नायिकाएं पूर्णिमा और स्मृति बिस्वास थीं। उसी साल वो फ़िल्म ‘बिल्वमंगल’ में भी सुरैया के साथ नायक बनकर आए। फ़िल्म ‘भाईसाहब’ में उन्होंने नीनू मजूमदार के संगीत में 8 और ‘बिल्वमंगल’ में बुलो सी.रानी के संगीत में 6 गीत गाए थे। लेकिन ये दोनों ही फ़िल्में नहीं चलीं।
ये वो दौर था जब हिंदी फ़िल्म संगीत के क्षेत्र में नई नई प्रतिभाएं कदम रख रही थीं। सहगल की शैली के गायक पुराने हो चुके थे। नतीजतन करियर की शुरूआत में ही भाईसाहब पार्श्वगायन के लिए अनुपयोगी मान लिए गए। इसके बावजूद अनिल बिस्वास के संगीत में ‘महात्मा कबीर’ (1954),
ओ.पी.नैयर के संगीत में ‘ढाके की मलमल’ (1956)
और बुलो सी.रानी के संगीत में फ़िल्म ‘जहाज़ी लुटेरा’ (1957)
में उन्हें एक एक गीत गाने का मौक़ा ज़रूर मिला। लेकिन स्टेज कार्यक्रमों और प्राईवेट अलबमों में वो लगातार व्यस्त रहे। साल 1957 में नैरोबी जाकर देश से बाहर कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले वो पहले भारतीय गायक थे।
भाईसाहब मुझसे 15 साल बड़े थे। वो 3 दिसम्बर 1923 को कराची में जन्मे थे। उनके कोलकाता से आते ही मैं भी पुणे छोड़कर उनके पास मुम्बई चला आया था। मुम्बई में हमारे घर पर अक्सर तलत,
मुकेश और जयकिशन जैसे फ़नकारों की महफ़िलें जमा करती थीं। भाईसाहब के स्टेज कार्यक्रमों में भी मैं उनके साथ मौजूद रहता था। ऐसे माहौल में मेरा झुकाव भी गायन की ओर होने लगा। भाईसाहब ही मेरे गुरू थे जिन्होंने मेरे शौक़ को देखते हुए मुझे संगीत सिखाना शुरू कर दिया था। नतीजतन मैं भी जल्द ही निजी महफ़िलों में गाने लगा।
मंच पर गाने का पहला मौक़ा मुझे तब मिला जब 1960 के दशक के मध्य में एक कार्यक्रम के दौरान अचानक भाईसाहब की तबीयत बिगड़ गयी और माईक मुझे सम्भालना पड़ा। कार्यक्रम सफल रहा और इसके बाद मैं भी स्टेज पर व्यस्त होता चला गया। नाम हुआ तो एच.एम.वी ने और फिर टी-सीरीज़ ने मेरे कई प्राईवेट अलबम निकाले। भाईसाहब को देखते हुए लोगों ने मुझे भी चन्द्रू हशमतराय चैनानी की जगह चन्द्रू आत्मा कहना शुरू कर दिया।
वनराज भाटिया के संगीत में मैंने ‘मेरी ज़िंदगी की कश्ती तेरे प्यार का सहारा’ (‘भूमिका’ / 1977),
मदनमोहन के संगीत में ‘हम पापी तू बख़्शनहार’ (साहिब बहादुर / 1977),
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत में ‘सांवरिया तोरी प्रीत नए नए रूप दिखाए’
(प्रेम बंधन / 1978)
और राजेश रोशन के संगीत में ‘तुमसे बढ़कर दुनिया में ना देखा कोई और’ (कामचोर / 1982)
और ‘पागल मन मेरा प्रेम दीवाना’ (मारधाड़ / 1988)
जैसे कुछ फ़िल्मी गीत गाए लेकिन मुझे भी सहगल के ही ढांचे में बांध दिया गया।
भाईसाहब को ये बात हमेशा सालती रही कि फ़िल्मों में उनकी मौलिक आवाज़ का इस्तेमाल कभी किया ही नहीं गया। फ़िल्म ‘गीत गाया पत्थरों ने’ (1964) में उन्होंने उमर ख़ैयाम की भूमिका निभाने के साथ ही रामलाल के संगीत में दो गीत ‘मड़वे तले ग़रीब के’ और ‘इक पल जो मिला है तुझको’ गाए थे जिसके बाद फ़िल्मों से उनका रिश्ता क़रीब क़रीब टूट ही गया था। उधर उनकी शादीशुदा ज़िंदगी भी सफल नहीं रही जिसका उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा।
साल 1975 में भाईसाहब कार्यक्रम के सिलसिले में लंदन गए तो वहां की सर्दी ने उन्हें बुरी तरह जकड़ लिया। वापस लौटकर भी उनकी तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ और 8 महिने लगातार बीमार रहने के बाद महज़ 52 साल की उम्र में 6 दिसम्बर 1975 को उनका निधन हो गया”।
सी.एच.आत्मा के छोटे भाई चन्द्रू आत्मा का जन्म 17 सितम्बर 1938 को कराची में हुआ था। उनका निधन 71 साल की उम्र में 12 अप्रैल 2009 को मुम्बई में हुआ।
We are thankful to –
Delhi based film
historian & writer Mr. Sanjeev Tanwar for providing the (extremely rare)
picture of producer-director Dalsukh M.Pancholi.
Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir
Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and
support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters & pictures.
Ms.
Aksher Apoorva for the English
translation of the write ups.
Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
Playback singer C.H.Atma on YT Channel BHD
“Manzil To Hai Badi
Door” – C.H.Atma
........Shishir Krishna Sharma
In between the decade 1930 – 40 the popularity and fame of Hindi cinema’s first star singer Kundan Lal Sehgal was such that Hindi cinema lovers would expect every new-comer singer to be on par with Sehgals style of singing. That’s why Mukesh and Kishore Kumar’s early songs have a strong impression of Sehgals singing style. However these singers did manage to come out of Sehgal’s shadow with changing times and did make their own prominent style of singing but a singer like C.H.Atma couldn’t manage to step out of Sehgals shadow during his lifetime.
Holding the deep yearning to be able to
make his own identity in his chosen field C.H.Atma unfortunately left this
earthly realm at the age of 52. I met his younger brother singer Chandru Atma at his home at
Cadell Road, Mahim. During that
meeting Chandru Atma spoke about C.H.Atma in great depth.
Here we present this conversation in Chandru Atma’s words.
“Our father Hashmatrai Chainani was a well-known lawyer in Karachi. He
was very fond of music and this fondness carried on to the eldest among us
siblings C.H.Atma as well. This was the time when the name Kundan Lal Sehgal was prevalent everywhere. Bhaisahab was also a fan of Sehgal and would sing his songs only. But
this was purely for leisure. He never thought of making singing his career.
Once during vacations Bhaisahab went to visit our aunt’s house in Lahore
where people got so impressed with his voice that they started inviting him to
stage programs to sing Sehgal songs. The stage shows was such a success that he
became very famous in Lahore and H.M.V. Company recorded a song in his voice
that was composed by O.P.Nayyar titled ‘preetam aan milo ...dukhiya jiya bulaaye’. During those
days Bhaisahab had changed his name ‘Atma Hashmatrai Chainani’ to ‘C.H.Atma’. This occurrence is of the year 1945.
Because of the partition, our family left Karachi and went to Pune. At the same time Bhaisahab got a job as a Co-Pilot with Himalayan Airways and he went on to Kolkata. None of us knew that ‘preetam aan milo ...dukhiya jiya
bulaaye’ had become a
smashing hit and the record was selling like hot pancakes.
Producer-director-distributor Dalsukh Pancholi had his
own studio in Lahore where he had made many Hindi and Punjabi hit films under his banner ‘Pancholi Art Pictures’ like ‘Gul Bakawali’, ‘Yamla Jatt’, ‘Chaoudhary’, ‘Khazanchi’, ‘Khandaan’, ‘Zamindar’ and ‘Poonji’. Music director Ghulam
Hyder, singer Shamshad Beghum, actor Pran and actresses Manorama and Munavvar Sultana started their film careers with Pancholi’s films.
After the partition Dalsukh Pancholi went to Mumbai. He was so impressed with the song ‘preetam aan milo...’ that he searched for Bhaisahab and called him from Kolkata to Mumbai to sing for his
film ‘Nagina’ (1951). Bhaisahab sang 3 solos under Shankar-Jaikishan’s music
direction viz ‘roun mai sagar ke kinaare’, ‘ik sitara hai akash me’ and ‘dil beqaraar hai
mera’ for the film which were well received.
Film ‘Nagina’ was Nutan’s first film as a heroine.
Next year in 1952, Pancholi looked for ‘preetam aan milo’s music director O.P.Nayyar and gave
him his career’s first film ‘Aasmaan ’, although O.P.Nayyar had given the background score for
another film ‘Kaneez’ which was made in 1949. Bhaisahab sang 3 solos under O.P.Nayyar’s baton for the
film ‘Aasmaan’ which were ‘iss bewafa jahan me’, ‘raat suhaani
hanste taare’ and ‘kachhu samajh
nahin aaye’. It was the same
film ‘Aasmaan’ with which Asha Parekh had started her acting career as a child artist.
Dalsukh Pancholi presented Bhaisahab as a hero in the film titled ‘Bhaisahab’ in the year 1954. His heroines in the film were Poornima and Smriti
Biswas. In the same year he also starred opposite Suraiya in the film ‘Bilwamangal’. He sung 8 songs
for the film ‘Bhaisahab’ under the music
direction of Ninu Majumdar and 6 songs for
the film ‘Bilwamangal’, this time under Bulo C.Rani‘s music direction. However,
both these films didn’t do well.
This was the period where many new talents were foraying in the field of Hindi film music. Sehgal’s style of singing had become
obsolete. Hence Bhaisahab was assumed unusable for playback at the very
beginning of his career. Despite this he got the opportunity to sing a song
each in the film ‘Mahatma Kabir’ (1954) under Anil Biswas’s music direction, in the film ‘Dhake Ki Malmal’ (1956) under O.P.Nayyar ‘s music direction and in the film ‘Jahaazi Lutera’ (1957) under Bulo C.Rani’s music direction. But he would be
continuously busy with his stage shows and private albums. He became the first
Indian to perform out of country in 1957 when he did a show in Nairobi.
Bhaisahab was 15 years
elder to me. He was born in Karachi on 3rd December in 1923. As soon as he came down from Kolkata, I too left Pune
for Mumbai and went to him. Very often artists like Talat Mehmood, Mukesh and Jaikishan would mingle at our home in Mumbai. I would also be
present with Bhaisahab at his stage shows. Because of such exposure I too
started to lean heavily towards singing. Bhaisahab was my guru as well who recognized my aspiration and
started my tutelage in music. And so, I too started singing at private mehafils.
I got my first opportunity to sing on stage during 1960’s when during a
show Bhaisahab fell ill between the show and I was asked to take over the mike.
The program was a success and I too started getting more and more shows. As I
made a name for myself, H.M.V. and then T-Series made many private albums with me. And
just like Bhaisahab, people started calling me Chandru Atma instead of Chandru Hashmatrai Chainani.
I sung film songs like Vanraj Bhatia
composed ‘meri zindagi ki
kashti tere pyar ka sahara’ (‘Bhoomika’ / 1977), Madan Mohan composed ‘hum paapi tu
bakhshanhar’ (Sahib Bahadur / 1977), Laxmikant Pyarelal composed ‘sanwaria tori
preet naye naye roop dikhaye’ (Prem Bandhan / 1978) and Rajesh Roshan
composed ‘tumse badhkar
duniya me na dekha koi aur’ (Kaamchor / 1982) and ‘paagal man mera
prem deewana’ (Maardhaad / 1988) but I too
was type casted within the Sehgal mould.
The fact that Bhaisahab’s original
voice was never used in the films, used to disturb him a lot. He played Umar
Khayyam in the film ‘Geet Gaya
Pattharon Ne’ (1964) wherein he also
sung 2 songs ‘mandve tale
ghareeb ke’ and ‘ik pal jo mila hai
tujhko’ under Ramlal’s
music direction after which his relationship with films was more or less
finished. His married life was not successful either which took a direct toll
on his health.
Bhaisahab went to London in 1975 for a program where the English cold caught a hold of
him. Even after he returned, his health didn’t improve and after suffering ill
health continuously for 8 months he passed away on 6th December 1975 at the age of 52.