Monday, March 18, 2013

“Ye Raat Phir Na Ayegi” - Bombay Talkies

ये रात फिर आएगी- बॉम्बे टॉकीज़

               ...........शिशिर कृष्ण शर्मा

मुंबई के प्रमुख उपनगर मालाड (पश्चिम) में एस.वी.रोड और लिंक रोड के बीच स्थित हैबी.टी.कम्पाऊंड कीचड़ और कूड़े-करकट से अटी बेतरतीब और बेहिसाब तंग गलियों में बंटा और सैकड़ों कारखानों और लघु-उद्योगों को ख़ुद में समेटे ये औद्योगिक क्षेत्र हर वक़्त मशीनों, घनों और छेनी-हथौड़ी की आवाज़ों से गूंजता रहता है। अपनी ज़िंदगी का अच्छा-ख़ासा समय इन कल-कारखानों को दे चुके लोगों में से ज़्यादातर को इस जगह के गौरवशाली अतीत के विषय में जानकारी होना तो दूर, ये तक नहीं पता कि इसका नामबी.टी.कम्पाऊंडक्यों पड़ा।अजी साहब, इतनी फ़ुर्सत ही किसे है?...और होती भी तो क्या मिल जाता इसके बारे में जानकर हमें?” पूछने पर पान की दुकान पर खड़ा, मज़दूर सा दिखने वाला एक आदमी सीधे-सपाट लहजे में कहता है।

उसकी बात काफ़ी हद तक सही भी है। ज़िंदगी की ज़द्दोज़हद में उलझे एक आम आदमी को इस बात से क्या सरोकार कि ये वोहीबॉम्बे टॉकीज़ कम्पाऊंडहै, जहां किसी ज़माने में मशीनों, घनों और छेनी-हथौड़ी की जगहलाईट्स’, साऊण्ड’, ‘कैमरा’, ‘एक्शनऔरकटकी आवाज़ें गूंजा करती थीं, याअछूत कन्या’, ‘कंगन’, ‘बंधन’, ‘झूला’, ‘किस्मत’, ‘ज्वार भाटा’, ‘ज़िद्दीऔरमहलसमेत 3 दर्जन से भी ज़्यादा सफल फ़िल्में देने वालेबॉम्बे टॉकीजसे ही शशधर मुकर्जी जैसे प्रख्यात निर्माता, अशोक कुमार, दिलीप कुमार और मधुबाला जैसे कलाकारों, किशोर कुमार जैसे गायक-अभिनेता और कवि प्रदीप जैसे गीतकार-गायक ने अपने करियर की शुरूआत की थी।

बी.टी.कम्पाऊंडके बीचोंबीच अपेक्षाकृत थोड़े खुले से स्थान पर आज भी उस बंगले का मेहराबदार ढांचा खड़ा है जिसमेंबॉम्बे टॉकीज़के संस्थापक हिमांशु राय का निवास और ऑफ़िस हुआ करता था।बी टी. कम्पाऊंड स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशनके पूर्व अध्यक्ष जे.एम.शर्मा के मुताबिक़ 1980 के दशक तक ये बंगला ठीकठाक हालत में था और इसमें दो-तीन कारखाने हुआ करते थे। लेकिन अचानक एक रोज़ आग लगने से बंगला नष्ट हो गया और तब से ये ढांचा इसी तरह खड़ा है। बंगले के क़रीब हीबॉम्बे टॉकीज़के दोनों शूटिंग फ़्लोर आज भी मौजूद हैं लेकिन दोनों ही अब कारखानों में तब्दील हो चुके हैं।   

आज़ादी की लड़ाई की मशहूर तिकड़ीलाल-बाल-पालके बिपिनचन्द्र पाल के बेटे निरंजन पाल मेडिकल की पढ़ाई के लिए लंदन गए तो वहां कानून की पढ़ाई कर रहे हिमांशु राय से उनकी मुलाक़ात हुई जो जल्द ही गहरी दोस्ती में बदल गयी। निरंजन पाल का मन पढ़ाई में नहीं लगा तो उन्होंने डॉक्टर बनने का ख्याल मन से निकालकर साल 1913 मेंकेंट फ़िल्म कम्पनीमें नौकरी कर ली। हिमांशु राय को अभिनेता बनाने का श्रेय निरंजन पॉल को ही जाता है क्योंकि उन्होंने ही अपने नाटकगॉडेसमें हिमांशु राय को बतौर हीरो काम करने के लिए प्रेरित किया था।

जर्मन कंपनीएमेल्का कॉंजर्नऔर भारतीय निर्माता मोतीसागर की ग्रेट ईस्टर्न फ़िल्म कॉरपोरेशनद्वारा भागीदारी में बनाई गयी फ़िल्म लाईट ऑफ़ एशियाउर्फ़प्रेम सन्यासहिमांशु राय की पहली फ़िल्म थी जिसमें उन्होंने भगवान बुद्ध की भूमिका की थी। साल 1925 में प्रदर्शित हुई इस फ़िल्म में उनकी नायिका एक एंग्लोइंडियन महिला सीता देवी थीं जिनका असली नाम रेन स्मिथ था। इसके बाद उन्होंने थ्रो ऑफ़ डाईसउर्फ़प्रपंच पाशऔरशीराज़में हीरो की भूमिका की। ये सभी साईलेंट फ़िल्में थीं।

साल 1933 में लंदन में बनीकर्माहिमांशु राय की पहली टॉकी फ़िल्म थी जो अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों भाषाओं में बनी थी। हिमांशु राय इस फिल्म के निर्माता भी थे। लंदन में आर्किटेक्चर की पढ़ाई कर रहीं गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की भांजी देविका रानी फ़िल्मकर्माकी सेट-डिज़ाईनिंग के सिलसिले में हिमांशु राय के सम्पर्क में आयीं तो हिमांशु राय ने उन्हें ही इस फ़िल्म की हिरोईन बना दिया। जे.जे.फ़ीयर हण्ट द्वारा निर्देशित और अर्नेस्ट ब्रेड हर्स्ट द्वारा संगीतबद्ध इस फ़िल्म के फ़ायनेंसर सर रिचर्ड टेम्पल थे जिनके पिता कभी मुंबई के गवर्नर रह चुके थे। ये तमाम जानकारियां मुझे एक मुलाक़ात के दौरान निरंजन पाल के बेटे और हिंदी सिनेमा के अपने वक़्त के मशहूर पी.आर.. कॉलिन पॉल ने दी थीं, जिनका बचपनबॉम्बे टॉकीज़में गुज़रा था।

(कॉलिन पॉल के मुताबिक सर रिचर्ड टेम्पल के पिता मुंबई के गवर्नर थे। लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के मुताबिक मुंबई के टेम्पल उपनाम के सिर्फ़ एक गवर्नर हुए और उनका नाम भी रिचर्ड टेम्पल था। वो साल 1877 से 1880 तक इस पद पर थे। कुछ साल पहले कॉलिन पॉल का भी निधन हो चुका है और अब इस बात की पुष्टि कर पाना संभव नहीं है कि क्या पिता और पुत्र दोनों का नाम रिचर्ड टेम्पल था?)   

कॉलिन पॉल के मुताबिक पहले से शादीशुदा हिमांशु राय ने फ़िल्मकर्माके दौरान देविका रानी से शादी कर ली थी और उनकी पहली पत्नी एक जर्मन महिला थीं।कर्माके रिलीज़ होने के बाद हिमांशु राय, देविका रानी और सर रिचर्ड टेम्पल मुंबई चले आए जहां साल 1933 में उन्होंने एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी के तौर परबॉम्बे टॉकीज़की बुनियाद रखी। सर रिचर्ड टेम्पल के प्रभाव से उस ज़माने के जाने-माने उद्योगपति एफ..दिनशा, सर फ़ीरोज़ सेठना, सर चिमनलाल सीतलवाड़ और सर कावसजी जहांगीर भीबॉम्बे टाकीज़से जुड़ गए थे और स्टूडियो बनाने के लिए मालाड स्थित ज़मीन सर एफ़..दिनशा से ख़रीदी गयी थी।

बॉम्बे टॉकीज़की पहली फ़िल्मजवानी की हवासाल 1935 में रिलीज़ हुई थी, जिसके हीरो नजमल हुसैन, हिरोईन देविका रानी और संगीतकार सरस्वती देवी थीं।बॉम्बे टॉकीज़की शुरूआती 16 फ़िल्मोंजवानी की हवा(1935), ‘ममता’, ‘मियांबीवी’, ‘जीवन नैया’, ‘अछूतकन्या’, ‘जन्मभूमि(सभी 1936), ‘इज़्ज़त’, ‘जीवन प्रभात’, ‘प्रेम कहानी’, ‘सावित्री (सभी 1937), ‘भाभी’, ‘निर्मला’, ‘वचन(सभी 1938), ‘दुर्गा’, ‘कंगनऔरनवजीवन(सभी 1939) का निर्देशन जर्मनी के रहने वाले फ़्रांज़ ऑस्टिन ने किया था और इनमें से शुरूआती 8 फ़िल्मों के कथा-पटकथाकार निरंजन पाल थे। फ़िल्मजीवन नैयासे हीबॉम्बे टॉकीज़में बतौर लैब असिस्टेंट काम कर रहे अशोक कुमार ने अभिनय की शुरूआत की थी और इसी कंपनी की फ़िल्मबसंत(1942) में मधुबाला बतौर बालकलाकार पहली बार कैमरे के सामने आयी थीं। दिलीप कुमार की पहली फ़िल्मज्वार भाटा(1944) और गायक-अभिनेता किशोर कुमार की पहली फ़िल्मज़िद्दी(1948) का निर्माण भी इसी बैनर तले हुआ था।  

(कहा जाता है किबॉम्बे टॉकीज़की पहली फ़िल्मजवानी की हवाके निर्माण के दौरान देविका रानी को फ़िल्म के हीरो नजमल हुसैन से प्यार हो गया था और वो अपने पति हिमांशु राय औरबॉम्बे टॉकीज़को छोड़कर नजमल हुसैन के साथ कोलकाता चली गयी थीं।बॉम्बे टॉकीज़के शेयरधारक और जाने माने निर्माता शशधर मुकर्जी की कोशिशों से देविका रानी तो पति के पास वापस लौट आयीं लेकिन नजमल हुसैन की वापसी के तमाम रास्ते बंद हो चुके थे। अगली दो फ़िल्मोंममताऔरमियां बीवीमें बॉम्बे टॉकीज़ के गीतकार जमुना स्वरूप कश्यप ने बतौर हीरो काम किया। उनके अचानक बीमार पड़ जाने की वजह से ही फ़िल्मजीवन नैयामें अशोक कुमार को, जो शशधर मुकर्जी के साले थे, जबरन हीरो बनाया गया था।)

वयोवृद्ध फ़िल्म पत्रकार (स्वर्गीय) बद्री प्रसाद जोशी जी के मुताबिक साल 1940 में हिमांशु राय के अचानक गुज़र जाने के बादबॉम्बे टॉकीज़की बागडोर देविका रानी ने संभाल ली थी। लेकिन देविका रानी की विवादास्पद कार्यशैली को लेकर जल्द ही कंपनी के शेयरधारकों और कर्मचारियों के बीच मतभेद उभरने लगे। हालात इतने ज़्यादा बिगड़ गए कि शशधर मुकर्जी, अशोक कुमार, रायबहादुर चुन्नीलाल कोहली, कवि प्रदीप, कैमरामैन मार्शल ब्रगेंज़ा, दत्ताराम पै और कनु रॉय नेबॉम्बे टॉकीज़से अलग होकर साल 1943 में मुंबई के उपनगर गोरेगांव (पश्चिम) मेंफ़िल्मिस्तान कंपनीकी स्थापना कर ली।

उधर साल 1943 में रिलीज़ हुईबॉम्बे टॉकीज़की अशोक कुमार अभिनीत फ़िल्मकिस्मतने कोलकाता के एक सिनेमाहॉल में लगातार 3 साल चलने का रेकॉर्ड बनाया। 1943 में ही बनीहमारी बातदेविका रानी की आख़िरी फ़िल्म साबित हुई जिसमें अभिनय करने के बाद उन्होंने अपने सभी शेयर निर्माता शीराज़ अली हक़ीम को बेचे और रूसी चित्रकार रोरिख से शादी करके पहले कुल्लू-मनाली और फिर बंगलौर में जा बसीं। कॉलिन पॉल के मुताबिक देविका रानी के जाने के बादबॉम्बे टॉकीज़का स्वामित्व उस ज़माने के चांदी के एक बड़े कारोबारी गोबिंदराम सेकसरिया के हाथ में गया था तो प्रबन्धन हितेन चौधरी ने संभाल लिया था।

अगले 4 सालों मेंबॉम्बे टॉकीज़के बैनर में महज़ 5 फ़िल्में, ‘चार आंखें’, ‘ज्वार भाटा(दोनों 1944), ‘प्रतिमा(1945), ‘मिलन(1946) औरनतीजा(1947) बनीं लेकिन इनमें से कोई भी बॉक्स ऑफ़िस पर कमाल नहीं दिखा पायी। उधर अशोक कुमार भावनात्मक तौर परबॉम्बे टॉकीज़से इतने जुड़े हुए थे कि उनका मन फ़िल्मिस्तान में नहीं लगा और साल 1947 में वो वापसबॉम्बे टॉकीज़में लौट आए। 

उन्होंनेबॉम्बे टॉकीज़को ख़रीदकर उसके बैनर में  औरमजबूर’, ज़िद्दी (दोनों 1948), ‘महल(1949), ‘मशाल’, ‘मुक़द्दर’, ‘संग्राम(सभी 1950), ‘मांऔरतमाशा(1952) जैसी फ़िल्में बनाईं। फ़िल्ममांबिमल राय और नबेन्दु घोष की मुंबई में क्रमश: बतौर निर्देशक और लेखक पहली फ़िल्म थी। लेकिन विघटन के बाद से चले रहे क़रीब 28 लाख रूपए के कर्ज़ की वजह सेबॉम्बे टॉकीज़के सुनहरे दौर को फिर से लौटा लाने की अशोक कुमार की तमाम कोशिशें नाकाम रहीं औरतमाशाइस बैनर के नाम से बनी आख़िरी फ़िल्म साबित हुई।

साल 1954 मेंबॉम्बे टॉकीज़से जुड़े लोगों ने कंपनी के बिगड़े हालात को सुधारने की कोशिश में सहकारिता के आधार पर फ़िल्मबादबानबनाई लेकिन ये कोशिश भी नाकाम रही औरबादबानको मिलाकर 19 सालों में 39 फ़िल्में देने वालाबॉम्बे टॉकीज़इतिहास का हिस्सा बनकर रह गया। फिर कुछ ही समय बाद इसकी तमाम सम्पत्ति सेठ तोलाराम जालान कीप्रकाश कॉटन मिल्सद्वारा ख़रीद ली गयी। 1950 के दशक के उत्तरार्ध मेंप्रकाश कॉटन मिल्सने हरे-भरे पेड़ों से भरी इस जमीन कोरामकुमार जालान पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्टको पट्टे पर दे दिया, जिसने पेड़ काटकर उनकी जगह छोटे-छोटे शेड बनाए और उन्हें लघु उद्योगों को किराए पर दे दिया।

जे.एम.शर्मा के मुताबिकबॉम्बे टॉकीज़की कुल 17 एकड़ ज़मीन का 4 एकड़ हिस्सा अब बागीचे के तौर पर मुंबई महानगर पालिका के पास सुरक्षित है। बाक़ी 13 एकड़ जमीन पर क़रीब 900 लघु उद्योग इकाईयां कार्यरत हैं जिनमें सुईं से लेकर पानी के जहाज़ के कलपुर्जे तक बनाए जाते हैं। सन 1960-61 में शुरू हुई इस प्रक्रिया के फलस्वरूप तब काबॉम्बे टॉकीज़आजबी.टी.कम्पाऊंडके नाम से एक पूर्ण औद्योगिक क्षेत्र का आकार ले चुका है।...और मशीनों, घनों और छेनी-हथौड़ी के शोर के नीचे दबकरलाईट्स,साऊण्ड, कैमरा, एक्शनऔरकटकी आवाज़ें कभी का दम तोड़ चुकी हैं।


We are thankful to –

Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance, and support.

Mr. Isuru Udayanga Kariyawasam for providing some rare pictures.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Ms. Akhsher Apoorva for the English translation of the write up.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.


Ye Raat Phir Na Ayegi” - Bombay Talkies

                    ...........Shishir Krishna Sharma 

At one of Mumbai’s major suburb Malad (West), between SV Road and Link Road is situated the 'B.T. Compound’. Littered with sludge and garbage, divided into countless random narrow streets this Industrial area withholds in it-self hundreds of factories and small-scale industries and echoes of the din made by the machines and hat made by chisel and hammer. Those who spend most of their time amongst these factories are far from knowing the glorious past of this place in fact most of them do not even know why it was named 'B.T. Compound.  "Well sir, who has that much time? ... and even then, what will we get out of knowing about it?" said the man standing at the paan shop in plain and simple words.

His argument is quite accurate. Anyways what does a common man caught up in the hustle bustle of life has to do with the fact that this is the same place where once instead of the din of machines and hammer sounds of ‘lights ', ‘sound’, ‘camera', ' action’ and ‘cut’ echoed across the hallways or that prominent producers like ‘Shashdhar Mukerjee’ were birthed by Bombay Talkies which has given more than 3 dozen hit films along with Achhoot Kanya’, ‘Kangan’, ‘Bandhan’, ‘Jhoola’, ‘Kismet’, ‘Jwar Bhata’, ‘ZiddiandMahal or that actors like Ashok Kumar, Dilip Kumar and Madhubala and singer-actor Kishore Kumar and song writer and singer Kavi Pradeep they all started their careers here.

In a relatively open space in the middle of the 'BT Compound' till today stands the arched structure which once housed the residence and office of the founder Himanshu Rai. According to the ‘B.T. Compound Small Scale Industries Association’s’ former president J.M. Sharma, the structure was alright till the 1980’s decade and even housed 2-3 factories. But then suddenly one day due to a fire the bungalow was destroyed and since then just its structure stands. Next to the bungalows the studio floors still stand but both of them have turned into factory floors now.

Of the famous trio ‘Lal-Bal-Pal’ from our freedom struggle, Bipin Chandra Pal’s son Niranjan Pal was pursuing his medical studies in London when he met Himanshu Rai and soon they turned into close friends. As Niranjan pal’s aptitude was not towards studies, he soon gave up his desire to be a doctor and joined the ‘Kent Film Company’ in 1913. In fact, all the credit of making Himanshu Rai an actor goes to Niranjan Pal as he had persuaded Himanshu Rai to act as the main lead in his play ‘Goddess’. 

Made in partnership with the German Company ‘Emelka Cojern’ and Indian producer Moti Sagar’s ‘The Great Eastern Film Corporation’ the film ‘The Light of Asia’ Alias ‘Prem Sanyas’ was Himanshu Rai’ first film where he played the role of Lord Buddha. His co-star in the film which was released in 1925 was an Anglo-Indian woman named Sita Devi whose real name was Rene Smith.  There after he played the main lead in ‘A Throw Of Dice’ Alias ‘Prapanch Pash’ and ‘Shiraz’

‘Karma’ was Himanshu Rai’s first talkie film made in the year 1933 in London which was made in both English and Hindi. Himanshu Rai was also the film’s producer. Gurudev Rabindra Nath Tagore’s niece Devika Rani, who was studying architecture in London, met Himanshu Rai in reference of the films set design and Himanshu Rai ended up casting her as the heroine of the film. Directed by J.J.Feer Hunt and composed by Arnest Bread Hurst, the film’s financer was Sir Richard Temple whose father used to be Mumbai’s Governor at one time. All this information was given to me during a meeting by Niranjan Pal’s son and Hindi cinema’s once famous PRO Colin Pal whose entire childhood was spent in ‘Bombay Talkies’.

(According to Colin Pal, Sir Richard Temple’s Father was Mumbai’s Governor. But according to historical documents Mumbai had just one governor with the surname ‘Temple’ and his full name was Richard Temple. He was at this post from 1877 to 1880. Colin Pal has passed away a few years back and hence it’s not possible to verify now that maybe father and son shared the same name Richard Temple.)

According to Colin Pal Himanshu Rai was already married to a German woman when during the film ‘Karma’ he married Devika Rani. After Karmas’ release, Himanshu Rai, Devika Rani and Sir Richard Temple came to Mumbai where in the year 1933 they created the first public limited company Bombay Talkies. Due to Sir Richard Temple’s influence, the era’s known industrialist F.E.Dinshaw, Sir Feroze Sethna, Sir Chimanlal Setalwad and Sir Kawasji Jehangir also joined hands withBombay Talkiesand the land situated at Malad was bought from Sir F.E.Dinshaw to make a studio.

Bombay Talkiess’ first film Jawani Ki Hawawas released in the year 1935 and the main lead was Najmal Hussain, and the heroine was Devika Rani and composer was Saraswati Devi. The first 16 films of Bombay Talkies’ ‘Jawani Ki Hawa’ (1935), ‘Mamta’, ‘Miyan Biwi’, ‘Jeewan Naiya’, ‘Achhoot Kanya’, ‘Janm Bhoomi’ (all 1936), ‘Izzat’, ‘Jeewan Prabhat’, ‘Prem Kahani’, ‘Savitri’ (all 1937), ‘Bhabhi’, ‘Nirmala’, ‘Vachan’ (all 1938), ‘Durga’, ‘KanganandNavjeewan’ (all 1939) were directed by Germany citizen Franz Austin and the story and screenplay writer of the first 8 films was Niranjan Pal.  Ashok Kumar, who was working as a lab assistant in Bombay Talkies, started his acting career with the film Jeewan Naiyaand the company’s film Basant’ (1942) featured child actor Madhubala for the first time on screen. The banner is also responsible for producing Dilip Kumar’s first film Jwaar Bhata’ (1944) and singer-performer Kishore Kumar’s first film Ziddi’ (1948).  

(It is said that during the making of ‘Bombay Talkies’s’ first film ‘Jawani Ki Hawa’ Devika Rani fell in love with the films hero Najmal Hussain and left her husband Himanshu Rai and  ‘Bombay Talkies’ both, and went to Kolkata with Najmal Hussain. Because of the efforts of ‘Bombay Talkies’s’ shareholder and well-known director Shashdhar Mukerjee, Devika Rani returned to her husband’s side but all roads for Najmal Hussain’s return were sealed. ‘Bombay Talkies’s’ lyricist Jamuna Swaroop Kashyap was the hero in the next two films ‘Mamta’ and ‘Miyaan Biwi’. But due to his sudden illness, Ashok Kumar, who was Shashdhar Mukerjee‘s brother in law (wife’s brother), had to be promptly made the hero of the film ‘Jeevan Naiya’.)

According to senior film journalist (late) Badri Prasad Joshi ji, after Himanshu Rai’s sudden death in 1940, Bombay Talkiesresponsibility was taken by Devika Rani. But Devika Rani’s unconventional working style created a rift between the company’s shareholders and staff members. The situation became so bad that Shashdhar Mukerjee, Ashok Kumar, Raibahadur Chunnilal Kohli, Kavi Pradeep, camera man Marshall Bragenza, Dattaram Pai and Kanu Roy separated from Bombay Talkiesand established the Filmistan companyin 1943, in Mumbai’s suburb Goregaon (West).

At the same time Ashok Kumar’s film Kismet which was release in 1943 by Bombay Talkiesmade a record of being screened in Kolkata for three years in a row. Also made in 1943, film Hamari Baatproved to be Devika Rani’s last film after which she sold all her shares to producer Shiraz Ali Haqeem and married the Russian painter Roerich and eventually settled in Kullu-Manali and then in Banglore. According to Colin Pal, after Devika Rani’ departure, Bombay Talkieswas owned by the era’s well-established silver mogul Gobind Ram Seksaria and the management was looked after by Hiten Chowdhary.

In the next 4 years only 5 films were made under the banner of Bombay Talkies’, ‘Chaar Ankhein’, ‘Jwar Bhata’ (both 1944), ‘Pratima’ (1945), ‘Milan’ (1946) and Nateeja’ (1947) but none could create any box office success. Ashok Kumar was so emotionally attached with ‘Bombay Talkiesthat he couldn’t affiliate himself with Filmistan and in 1947 he returned to Bombay Talkies. He bought Bombay Talkiesand made films likeMajboor’, Ziddi (both 1948), ‘Mahal’ (1949), ‘Mashaal’, ‘Muqaddar’, ‘Sangram’ (all 1950), ‘MaaandTamasha’ (1952) under its banner. After coming to Mumbai from kolkatta, Director Bimal Roy and writer Nabendu Ghosh stepped into the Mumbai film industry through the film Maa. But despite all efforts by Ashok Kumar to pull back the company from the strain of 28 lakh rupees it incurred during its dissolution he couldn’t return Bombay Talkies to its former glory and Tamashaproved to be the last film made under this banner.  

In 1954 some people associated withBombay Talkiesdecided to do something about the deteriorating condition of the company and started a cooperative to finance the filmBaadbaanbut their efforts proved to be futile as well and Bombay Talkies which had given 39 films including Baadbaan in 19 years, became a part of history. In some time, the entire property was bought by Seth Tolaram Jalan’sPrakash Cotto Mills. During the end of the 1950’s decade, Prakash Cotton Millsgave the green lush grounds full of trees to Ramkumar Jalan Public Charitable Truston lease who promptly cut the trees and made shades all over to create small scale industries on the once green grounds.

According to J.M.Sharma, 4 acres of the 17 acres of land, of Bombay Talkieshas been reserved by the Mumbai Municipal Corporation as space for a garden. In the rest of the 13 acres of land almost 900 small industries are active that make products from a needle to parts of a ship. As a result due to the process started in 1960-61 the then Bombay Talkieshas become an industrial area known asB.T.Compound….and beneath the din of machines and hammer, the sounds of ‘lights ', ‘sound’, ‘camera', 'action’ and ‘cut’ have been lost forever.