Friday, October 27, 2023

"Geet Gata Hoon Main Gungunata Hun Main" - Dev Kohli

गीत गाता हूं मैं, गुनगुनाता हूं मैं” – देव कोहली 

                                      …..शिशिर कृष्ण शर्मा


26 अगस्त 2023...दोपहर के 2.30 बजे…मुम्बई से देहरादून की यात्रा के दौरान दिल्ली हवाईअड्डे पर विमान के रूकते ही मोबाइल ऑन किया तो मुझे बंगलौर निवासी मित्र अजय कनागत जी का व्हाट्सऐप मैसेज मिला, ‘गीतकार देव कोहली का निधन’| उन्हें फ़ोन किया तो इस समाचार की पुष्टि भी हो गयी| इस अप्रत्याशित सूचना ने  मेरे मन को दुःख और अपराधबोध से भर दिया| 

दरअसल देव कोहली जी से मेरी जान पहचान लगभग दो दशकों से थी, जब मैंने साप्ताहिक सहारा समय के अपने कॉलम 'बाकलम ख़ुद' के लिए उनका इंटरव्यू किया था| उनसे संपर्क के बने रहने की एक वजह ये भी थी कि मेरे पैतृक शहर देहरादून से उनका भी निकट सम्बन्ध था|

लगभग 3 साल पहले मैंने एक बार फिर से, 'बीते हुए दिन' के लिए उनका इंटरव्यू किया था, लेकिन लगातार व्यस्तताओं के कारण मैं उसे टाइप ही नहीं कर पाया और आज–कल, आज-कल करते करते समय निकलता चला गया| और इसीलिये लम्बे समय तक मैंने उन्हें फ़ोन भी नहीं किया कि कहीं वो इंटरव्यू के सम्बन्ध में कोई सवाल न कर बैठें| और अब अचानक ये सूचना! काश उनका इंटरव्यू मैंने उनके रहते ही प्रकाशित कर दिया होता, हालांकि ये भी सच है कि वो पिछले कुछ सालों में तमाम दुनियावी बातों से इतना ऊपर उठ चुके थे कि इंटरव्यू का प्रकाशित होना न होना उनके लिए मायने नहीं रखता था!   

देव कोहली जी का जन्म 2 नवम्बर 1942 को रावलपिंडी में हुआ था| पिता सरदार जयसिंह सरकारी नौकरी में थे  और मां सोमावंती एक आम गृहिणी थीं| 4 भाई और 2 बहनों में देव कोहली चौथे नंबर पर थे| वो 3 साल के थे जब तपेदिक की बीमारी से उनकी मां गुज़र गयी थीं|  सबसे छोटी बहन उस वक़्त केवल 6 महीने की थी|

देव कोहली बताते थे, “मेरी शुरूआती पढ़ाई मदरसे में हुई जहां मैंने अलिफ़ बे लिखना पढ़ना सीखा| उधर नाते-रिश्तेदारों की सलाह पर पिताजी ने दूसरी शादी कर ली थी| शादी के बाद वो घूमने फिरने के इरादे से मसूरी गए तो उन्हें देहरादून इतना पसंद आया कि वो वहीं के होकर रह गए| ये साल 1946 की बात है| उधर हम बच्चे रावलपिंडी से 10 मील दूर रवात में चाचा-चाची के पास रहने लगे| और जब सालभर के अन्दर बंटवारा हुआ तो हम सब भाई बहन भी पहले दिल्ली और फिर पिताजी के पास देहरादून चले आए| देहरादून में पिताजी ने रेलवे स्टेशन के पास धामावाला में रेस्टोरेंट खोल लिया था|” 

देहरादून में देव कोहली ने गुरूनानक स्कूल में दाख़िला लिया| नौवीं तक की पढ़ाई ठीकठाक  चली लेकिन मैट्रिक की परीक्षा में वो फ़ेल हो गए| उनके पिता के एक दोस्त उड़ीसा के राऊरकेला में, स्टील प्लांट में काम करते थे| उनके बुलावे पर देव के पिता साल 1959-60 में रेस्टोरेंट बंद करके, देव को साथ लेकर राऊरकेला चले गए| देव के बड़े भाई सरकारी नौकरी में थे इसलिए वो देहरादून में ही रहे| देव के दूसरे नंबर के भाई मुम्बई में मोटरपार्ट्स का कारोबार करते थे|

देव के पिता ने राऊरकेला में दो रेस्टोरेंट खोले| साथ ही मुम्बई वाले बेटे को भी उन्होंने राऊरकेला बुला लिया, जहां दोनों भाई राशन की दुकान करने लगे| लेकिन दुकान में मन नहीं लगा तो वो दोनों साल 1964 में मुम्बई चले आए| और जब अचानक ही पिताजी की तबीयत ख़राब हुई, तो भाई को रेस्टोरेंट संभालने के लिए वापस राऊरकेला जाना पड़ा और देव मुम्बई में ही रूक गए| उधर कुछ ही समय बाद उनके पिताजी का निधन हो गया| 

देव कोहली बताते थे, “पिताजी की क्रिया देहरादून में, हम सभी भाई-बहनों की मौजूदगी में बड़े भाईसाहब के द्वारा की गयी| उनसे छोटे, मुम्बई वाले भाई को पिताजी का बिज़नेस संभालने के लिए वापस राऊरकेला लौट जाना पड़ा| मैं अकेला ही मुम्बई चला आया, जहां मैं खार के एवरग्रीन गेस्ट हाउस में रहने लगा| दो-तीन साल बाद एवरग्रीन के पास ही में जब आशीष गेस्ट हाउस खुला तो मैं उसमें शिफ्ट हो गया|”

देव कोहली को लिखने का शौक़ बचपन से ही था| फ़िल्मों में लिखने के उद्देश्य से उन्होंने फ़िल्मी लोगों से मेलजोल बढ़ाना शुरू कर दिया| इसी प्रक्रिया में उनकी मुलाक़ात संगीतकार जी.एस.कोहली से हुई, जो जल्द ही दोस्ती में बदल गयी|  

देव कोहली कहते थे, “एक रोज़ जी.एस.कोहली ने मुझे एक गीत का अंतरा लिखने को कहा| गीत का मुखड़ा और एक अंतरा वो ख़ुद ही लिख चुके थे और मुझसे दूसरा अंतरा लिखवाना चाहते थे, जो मैंने लिख दिया| 

वो गीत था, फ़िल्म 'गुंडा' का, आशा भोंसले का गाया कैबरे, ‘ख़ुशी से जान ले लो जी, दिलो ईमान ले लो जी', जो बेलाबोस पर फ़िल्माया गया था| जी.एस.कोहली ने वो गीत मेरे नाम कर दिया, हालांकि मैं उसे अपना कहूं तो बेईमानी होगी| लेकिन जी.एस.कोहली को मैं इस बात के लिए धन्यवाद ज़रूर दूंगा कि उन्होंने भयानक संघर्ष के मेरे उन दिनों में मुझे उस गीत के 500/- रूपये दिलवाए थे| ये 1966 की बात है और उस वक़्त मेरी उम्र 24 साल थी| फ़िल्म 'गुंडा' 3 साल बाद, साल 1969 में रिलीज़ हुई और इसके क्रेडिट्स में 3 गीतकारों में से एक नाम, हक़दार न होते हुए, मेरा भी था|”

देव कोहली जी का अर्जुनदेव रश्क, अनजान और नक्श लायलपुरी जैसे प्रबुद्ध लेखक-गीतकारों के साथ बांद्रा के मशहूर ग़ज़ैबो रेस्टोरेंट में उठना-बैठना और रचनापाठ करना होता रहता था| एक रोज़ कॉफ़ी की चुस्कियों के बीच देव अपनी ताज़ातरीन ग़ज़ल का पाठ कर रहे थे| पास ही की टेबल पर बैठा संगीतकार शंकर (जयकिशन) जी का मैनेजर भी उन्हें सुन रहा था| उसने देव को अपने पास बुलाकर उनकी रचना की तारीफ़ की| तब तक शैलेन्द्र गुज़र चुके थे और शंकर जी किसी अच्छे गीतकार की तलाश में थे| मैनेजर ने देव को शंकर जी से मिलने के लिए अगले दिन फ़ेमस स्टूडियो बुलाया| 

देव कोहली जी बताते थे, “शंकर जी से मेरी मुलाक़ात हुई| उन्होंने पूछा गीत लिखते हो? 'नहीं, ग़ज़लों का शायर हूं' - मैंने जवाब दिया| उन्होंने मेरी कुछ ग़ज़लें सुनीं और कहने लगे, ‘सरदार साहब, बहुत फ़ायर है आपमें, मिलते रहिये|' मैं हर दूसरे-तीसरे दिन उनसे मिलने जाता रहा| और फिर एक रोज़ उन्होंने मुझे एक सिचुएशन समझायी और लंच के लिए चले गए| इससे पहले वो कई लोगों के लिखे मुखड़े ख़ारिज कर चुके थे| लगभग 3 बजे वो लौटे| मैंने उन्हें मुखड़ा सुनाया, ‘गीत गाता हूं मैं, गुनगुनाता हूं मैं, मैंने हंसने का वादा किया था कभी'| उन्होंने पूछा, 'कुछ और भी लिखा सरदार साहब?’ ‘नहीं' - मैंने जवाब दिया| उन्होंने बाजा अपनी तरफ़ घसीटा और एक ही सांस में गाना शुरू कर दिया, ‘गीत गाता हूं मैं, गुनगुनाता हूं मैं...’| माहौल बना तो मैंने वहीं बैठे बैठे दोनों अंतरे भी लिख दिए| साल 1971 में रिलीज़ हुई फिल्म 'लाल पत्थर' का, किशोर कुमार का गाया ये गीत सुपरहिट हुआ था|” 

देव कोहली जी का पूरा नाम गुरूदेव सिंह कोहली था जिसे उन्होंने शंकर जी के कहने पर छोटा कर दिया था| दरअसल शंकर जी का कहना था, 'इतना लंबा नाम? ये तो पूरे स्क्रीन को घेर लेगा!’ आगे चलकर देव ने शंकर जी के लिए साल 1975 की फ़िल्म 'सन्यासी' में भी एक गीत लिखा था - 

‘मर गया पहरेदार शहर की चुंगी का, 

शहर में चल निकला है फ़ैशन लुंगी का|’ 

शंकर जी ने इस गीत की धुन भी बना ली थी, लेकिन इसे रिकॉर्ड नहीं किया गया|

‘गीत गाता हूं मैं, गुनगुनाता हूं मैं...’ जैसा ब्लॉकबस्टर गीत लिखने के बावजूद अगले 18 सालों तक देव कोहली संघर्ष ही करते रहे| वो कहते थे, “उस दौर में मैंने जगदीश जे., उषा खन्ना, सोनिक ओमी, विजय सिंह जैसे कुछ संगीतकारों के लिए गीत लिखे, लेकिन मेरा करियर बस घिसटता ही रहा| महीने में एकाध गीत रिकॉर्ड हो जाता था, और किसी तरह गुज़ारा चल जाता था| और फिर अचानक वक़्त बदला| 1989 की फ़िल्म 'मैंने प्यार किया' के मेरे दो गीत 'आते जाते हंसते गाते' और 'आजा शाम होने आयी' इतने बड़े हिट हुए कि जल्द ही मैंने एक साथ 21 फ़िल्में साईन कर लीं|”

आने वाले वक़्त में देव कोहली ने कई सुपरहिट गीत लिखे, जैसे 'ये काली काली आंखें' (बाज़ीगर), ‘मिस्टर लोवा लोवा तेरी आंखों का जादू' (इश्क़), ‘माई नी माई मुंडेर पे तेरी' (हम आपके हैं कौन), ‘ऊंची है बिल्डिंग लिफ्ट तेरी बंद है' (जुड़वां), ‘तेरी बिंदिया उड़ा के ले गयी मेरी निंदिया' (जोड़ी नंबर वन), ‘दीवाना दिल बिन सजना के माने ना' (पत्थर के फूल), ‘मैं दूर चली जाऊंगी' (आतंक), ‘थाम ख़ुशियों के जाम' (राजू बन गया जेंटलमैन), ‘ओ अजनबी मेरे अजनबी' (मैं प्रेम की दीवानी हूं')|

देव कोहली जी से मैं जब भी मिला, उन्हें भगवा या गेरुआ कपड़ों में ही पाया| और इसकी वजह थी, उनका पूरी तरह से आध्यात्म में डूबा होना| वो बताते थे, “फ़िल्म 'लाल पत्थर' के बाद मुझे अनुभूति हुई कि वो गीत मैंने नहीं लिखा, बल्कि किसी अदृश्य शक्ति ने मुझसे लिखवाया था| 3-4 साल बाद एक शाम आशीष गेस्ट हाउस के अपने कमरे में मैंने मांसाहारी भोजन मंगाया तो उसे देखते ही मन में वितृष्णा और विरक्ति सी पैदा हो गयी| अगले दिन मोहम्मद अली रोड के एक होटल में भी यही हुआ तो उसी रोज़ से मैं शाकाहारी हो गया| 

फिर एक रोज़ विद्याविहार स्टेशन के बाहर फुटपाथ पर एक विक्रेता के पास मुझे धूप में चमकती, प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की भगवान कृष्ण की मूर्ति दिखी जो मैंने पांच रूपये में ख़रीदी और नित्य उसे पूजने लगा| उन्हीं दिनों फ़िल्म 'गंगा की सौगंध' के लेखक संतोष व्यास जी से दोस्ती हुई| वो रोज़ गीतापाठ करते थे| मैंने भी उनके साथ गीता पढ़नी शुरू की तो आध्यात्म में डूबता चला गया| उस प्रक्रिया में मद्यपान भी कब छूट गया, पता ही नहीं चला| मेरा जीवन पूरी तरह गीतामय हो गया था|”

करियर के शुरूआती दिनों में संगीतकार जी.एस.कोहली ने देव कोहली को प्रिंटिंग के कारोबारी भाईयों सतीश आनंद  और देवराज आनंद से मिलवाया था| देव कोहली ने आनंद भाईयों की मेट्रो प्रिंटिंग कंपनी में साल 1966 में नौकरी शुरू की जो वो 23 सालों तक करते रहे| वो नौकरी उन्होंने फ़िल्म ‘मैंने प्यार किया' की सफलता के बाद छोड़ी थी|

9 मार्च 2020 को देव कोहली जी के अंधेरी-लोखंडवाला स्थित घर पर हुई बातचीत के दौरान उन्होंने कहा था, “13 साल पहले मैं टी.सीरीज़ के ऑफ़िस से लौटा तो अचानक मेरा बदन कांपने लगा| मुझे ध्यान की अनुभूति हुई| घर में दाख़िल होते ही मैं बिस्तर पर लेटा और अपनेआप ही ध्यानावस्था में चला गया| तब से मैं रोज़ शाम को 6 से 9 ध्यान करता हूं| उस दौरान जो अनुभूति होती है, उस पर लिख लेता हूं| 8-8, 10-10 गीतों की 9 प्राइवेट अल्बम भी की हैं| कृष्णभक्ति पर आधारित मेरी पुस्तक 'शून्य से शून्य तक' प्रकाशित हो चुकी है और अब अगली पुस्तक पर काम कर रहा हूं| इस सब में मन इतना रम गया है कि अब फ़िल्में नहीं करता| ऑफर्स आते भी हैं तो हाथ जोड़ देता हूं| फ़िल्मों में लगभग 175 गीत लिखने के बाद अब जीवन में अगर कुछ शेष है तो केवल कृष्ण भक्ति|

देव कोहली जी आजीवन अविवाहित रहे| इसीलिये 26 अगस्त 2023 को उनके निधन का समाचार मिलने के बाद से मैं लगातार असमंजस में रहा कि शोक प्रकट करूं भी तो किससे? उनके परिवार में आख़िर था ही कौन?


We are thankful to –

Mr. Harish Raghuvanshi (Surat) & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ (Kanpur) for their valuable suggestion, guidance, and support.

Mr. Ashok Mittal (Ex-PNB / Dehradun) for providing pictures of Guru Nanak School, Dehradun 

Dr. Ravinder Kumar (NOIDA) for the English translation of the write up.

Mr. S.M.M.Ausaja (Mumbai) for providing movies’ posters.

Mr. Manaswi Sharma (Zurich-Switzerland) for the technical support.


Dev Kohli ji on YT Channel BHD


"Geet Gaata Hoon Mai Gungunata Hoon Mai"

              ...…..Shishir Krishna Sharma

It was at 2.30 pm on 26th August 2023 while on a flight from Mumbai to Dehradun, I switched on my mobile phone at Delhi airport, I received a shocking message from my Banguluru based friend Ajay Kanagat ji that ‘Lyricist Dev Kohli was no more’. I rang up Ajay Kanagat ji and the news was confirmed. I was filled with the sense of agony and guilt.

I had known Dev Kohli ji for the last two decades when I had interviewed him for my column ‘Baakalam Khud’ in Sahara Samay, a weekly journal. Another reason to be consistently in touch with him; he too had close links with my ancestral city Dehradun.

Some three years back I once again interviewed him for ‘Beete Hue Din’, but due to my continuous preoccupations the interview could not be given a final shape. For one reason or the other, the time passed by and fearing he would inquire about the interview I did not talk to him for long even on phone. And all of a sudden this sad news of his passing away! I wish I had published his interview while he was still there to see it.

Although, it is also true that of late, he had risen above such worldly trappings.

Dev Kohli was born on 2nd Nov. 1942 in Rawalpindi. His father Sardar Jai Singh was in Government service. His mother Somavanti was a home maker. He was number 4 among four brothers and two sisters. His mother passed away due to tuberculosis when he was merely three years of age. His youngest sister was just six months old at that time.

Dev Kohli shared “My elementary education began in a Madrassa where I learnt the Urdu alphabets Alif...Be... Meanwhile on the advice of elders in the family my father had remarried. After marriage he visited Mussoorie on an excursion trip, and he fell in love with Dehradun so much that he decided to settle in there. The year was 1946. We kids stayed back with our uncle and aunt (Chacha-Chachi) in Ravaat, a village 10 miles from Rawalpindi. Following the partition, all of us siblings came to Delhi and then to Dehradun to stay with father where he had opened a Restaurant at Dhamawala, close to Railway station.

Dev Kohli got admitted in the Guru Nanak school, Dehradun. The studies were going on well till 9th standard but he failed in his Matriculation. His father’s friend who was working in Rourkela steel plant called him to Rourkela. His father closed down his Restaurant in Dehradun and relocated along with Dev to Rourkela in 1959-60. Brother, elder to Dev, was already into Government service so he stayed back at Dehradun. Dev’s second brother was in motor parts business in Mumbai. Dev’s father opened two restaurants at Rourkela and called his Mumbai based son also to stay with him, where both the brothers started a ration shop but soon got disinterested in running it and they came back to Mumbai in 1964. Suddenly, their father fell ill, so the brother had to go back to Rourkela to look after the restaurant business, whereas Dev stayed back in Mumbai. After a while the father passed away.

Dev Kohli reminiscents “Father was cremated by our eldest brother at Dehradun in presence of all us siblings and other family members. My Mumbai based brother went back to Rourkela to look after father’s restaurant business. I returned to Mumbai all alone where I stayed in Khar’s Evergreen Guest House. 2-3 years later, when Ashish Guest House came up in the neighborhood, I shifted into it”.

Dev Kohli was fond of writing right since his childhood. With a view to write in films he started familiarizing with film people. In this process he met Music Director G.S.Kohli and soon they became good friends.

Dev Kohli recalls “Once G.S. Kohli asked me to write an ‘antara’ (verse) for a song. He had already penned the ‘mukhda’ and one ‘antara’. I wrote the second one. That song, sung by Asha Bhonsle for the film ‘Gunda’, was a cabaret ‘Khushi se jaan le lo ji, dil o Imaan le lo ji..’, which was filmed on actress Bela Bose.

G.S.Kohli was extremely magnanimous to credit this song to me. Though it would be dishonest in my part to call it my song, yet I am grateful to G.S. Kohli as his noble action got me Rs.500/- for that song, a large amount for me in my days of miserable struggle.

The year was 1966, I was all of 24 years. Film ‘Gunda’ was released three years later in 1969. As a ‘Lyricist’, though not entitled for, my name too figured in credits along with the other two.

Dev Kohli was now in the company of learned lyricists viz. Arjundev Rashq, Anjaan and Naqsh Layalpuri. They would regularly meet and recite poetry at Bandra’s famous ‘Gazebo Restaurant’. Once, while sipping coffee, Dev recited his latest Ghazal. At the adjacent table the manager of Shankar ji of Music Director duo Shankar-Jaikishan, was sitting and listening the recitation. He showered praise on Dev Kohli for the Ghazal. By then Shailendra had died and Shankar was looking for a good lyricist. The Manager invited Dev to meet Shankar at Famous studio next day.

Dev Kohli narrated “I met Shankar ji, he asked me ‘So you write songs?’ I said, ‘No I am a poet, I write Ghazals’. He listened to few of my Ghazals and said ‘Sardar Saab! you have a fire in you, keep in touch. Thereafter I kept meeting him every after 2-3 days. One day he described a particular ‘situation’ to me for a film song and withdrew for his lunch. He had already rejected ‘mukhda’ written by several lyricists. He returned at 3 pm. I narrated to him my ‘mukhda’, ‘Geet gata hun main gungunata hun main, maine hansne ka wada kiya tha kabhi’. Have you written anything else Sardarji? - he asked. I replied in negative. He pulled his harmonium and began singing in one breath, ‘Geet gata hun main gungunata hun main...’. When the atmosphere was set, I also wrote two ‘antaras’ then and there. This song sung by Kishore Kumar for the 1971 release ‘Lal Patthar’ was an instant super hit”.

Dev Kohli’s full name was Gurudev Singh Kohli which he shortened at the behest of Shankar ji, who told him in lighter vein, ‘your full name will occupy the whole screen’. Later, Dev Kohli wrote another song for Shankar ji for the 1975 film ‘Sanyasi’ -

Mar gaya pehredar shahar ki chungi ka,

Shahar me chal gaya fashion lungi ka”.

Shankar had composed the tune for the song but eventually the song was not recorded.

Despite giving blockbuster song ‘Geet gata hun main’ he kept on struggling for 18 years. He remembered “I wrote few songs for Jagdish J, Usha Khanna, Sonik Omi and Vijay Singh etc, but my career was just about dragging. Monthly one or two songs were being recorded; I was just about surviving.

And then suddenly the time changed. Both my songs ‘Aate jaate hanste gaate’ and ‘Aaja shaam hone aayi’ in the 1989 release ‘Maine Pyar Kiya’ became such massive hits that I immediately signed as many as 21 films.

In times to come, Dev Kohli gave super hit songs like ‘Ye kaali kaali Aankhen’ (Baazigar), ‘Mr Lova Lova teri aankhon ka jadu’ (Ishq), ‘Mai ni mai munder pe teri’ (Hum aapke hain kaun), ‘Oonchi hai building lift teri band hai’ (Judwa), ‘Teri bindiya uda ke le gayi meri nindiya’ (Jodi number one), ‘Deewana dil bin sajna ke maane na’ (Patthar ke phool), ‘Mai door chali jaoongi’ (Aatank), ‘Tham khushiyon ke jaam’ (Raju ban gaya gentleman), ‘O ajnabi mere ajnabi’ (Main Prem Ki Diwani Hun).

Whenever I met Dev Kohli, I found him in saffron attire, the reason being he was so engrossed in spiritualism. He shared “After Lal Patthar’s song I felt as if some unseen spiritual power had made me compose that song.

Three-four years later, once while having my meal, I ordered meat in Asheesh Guest House, the very sight of meat filled me with sheer disgust and dislike. Next day again the same thing happened with me in a hotel at Mohd. Ali Road. Since that very day I became a vegetarian. One day I saw the shining into sunlight an idol of Lord Krishna, made of Plaster of Paris at the pavement outside Vidya Vihar Railway station which I bought for Rupees five and began offering my prayers daily. Meanwhile I became friends with Santosh Vyas the writer of the film ‘Ganga Ki Saugandh’. He was a devout scholar of Geeta. I too started reading and imbibing teachings of Geeta and in the process I became a teetotaler and found my life entirely overpowered by the divine”.

During initial years of his career G. S. Kohli had introduced Dev Kohli to brothers duo Satish and Devraj Anand who were in the Printing Press business. Dev Kohli had started working in their Printing Press in 1966. He continued with this job in the Press for 23 years. He left this service only after the success of ‘Maine Pyar Kiya’.

On 9th March 2020 while chit chatting at Dev Kohli’s Andheri-Lokhandwala residence, he shared, “some 13 years back, when I had just returned from a visit to T-Series office, my body started shivering strangely, I felt like meditating. As soon as entered my room and lay on the bed, I went in trance. Since that day religiously I do meditation daily from 6 pm to 9 pm. Whatever vision comes during the meditation, I pen down my lyrics based on that. My nine albums, each consisting of 8-10 songs, have come out.

My book ‘Shoonya Se Shoonya Tak’ devoted to Lord Krishna has been published and now I am working on my next book. I’m so much engrossed in this pursuit now that I have taken myself apart from the films. Even if offers come my way, I politely decline. After having penned down 175 songs for films, now I’ve devoted myself totally into Krishna Bhakti.

Dev Kohli had remained unmarried whole his life. Therefore, on hearing the news of his passing away on 26 August 2023, I was in continuous dilemma as to who I send my condolences to? After all who was there for him in the name of family?