“दो दिलों को ये दुनिया मिलने ही नहीं देती” - मंजु और बालकराम
.......शिशिर कृष्ण शर्मा
हिन्दी सिनेमा के इतिहास में कई ऐसी महिलाओं के नाम दर्ज हैं जिन्होंने शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचकर अचानक ही अपने फलते-फूलते करियर का मोह त्यागा, एक आम हिंदुस्तानी औरत की तरह घर-गृहस्थी को प्राथमिकता देते हुए शादी की और ख़ुद को सिनेमाई चमक-दमक से अलग कर लिया। इन्हीं में से एक नाम है गायिका-अभिनेत्री मंजु का जिन्होंने ‘प्रभात फ़िल्म कंपनी’ की साल 1939
में हिंदी और मराठी में बनी फ़िल्म ‘आदमी’ (मराठी में माणुस) से करियर की शुरूआत की थी, लेकिन महज़ छह साल के अपने करियर में साल 1944 में बनी ‘रतन’ के बाद शादी करके फ़िल्म-जगत को अलविदा कह दिया था। मंजु की ही तरह उनके छोटे भाई बालकराम ने भी बहुत कम उम्र में बतौर गायक-अभिनेता अपनी पहचान बना ली थी। बदक़िस्मती से बालकराम तो महज़ 41
साल की उम्र में ही चल बसे, लेकिन ये देखकर अच्छा लगता है कि मंजु आज भी हमारे बीच हैं और दक्षिण मुंबई के भूलाभाई देसाई रोड पर बेटे-बहू के भरे-पूरे परिवार के साथ रहती हैं।
अपने वक़्त के मशहूर मराठी रंगकर्मी-गायक और ‘आनंद विलास संगीत नाटक मंडली’ के सक्रिय सदस्य गंगाराम बापू की बेटी मंजु का जन्म साल 6 अक्तूबर 1928 को नागपुर में हुआ था। मंजु बताती हैं, “मेरे पिता को ‘प्रभात फ़िल्म कंपनी’ में नौकरी मिली तो हम नागपुर से पुणे चले आए। परिवार में माता-पिता के अलावा मेरी एक बड़ी बहन विजयमाला और दो छोटे भाई त्रयंबक और बालकराम भी थे। हम चारों भाई-बहन कभी भी स्कूल नहीं गए, हमने सारी पढ़ाई घर पर ही रहकर की। साथ ही मैं ‘प्रभात फ़िल्म कंपनी’ के संगीतकार पण्डित केशवराव भोले से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत भी सीखने लगी। उसी दौरान मुझे इसी बैनर की फ़िल्म ‘आदमी’ में बतौर बाल-कलाकार अभिनय करने का मौक़ा मिला। मेरा असली नाम ‘मंजुला’ है, जो फ़िल्मों में सिर्फ़ ‘मंजु’ रह गया। उन दिनों पार्श्वगायन की विधिवत शुरूआत नहीं हुई थी और हमें पर्दे पर खुद ही गाना पड़ता था। फ़िल्म ‘आदमी’ में मैंने ख़ुद पर फ़िल्माया गया गीत ‘मैं जान गयी पहचान गयी तुमरे मन की बात’ भी गाया था। उस वक़्त मेरी उम्र 11 बरस की थी।“
फ़िल्म ‘आदमी’ के मराठी वर्शन ‘माणुस’ में भी मंजु ने एक गीत गाया था और ये दोनों ही फ़िल्में साल 1939 में रिलीज़ हुई थीं। उधर प्रभात की ही साल 1940 में बनी फ़िल्म ‘संत ज्ञानेश्वर’ में मंजु ने सिर्फ़ अभिनय किया। बहन-भाईयों में सबसे छोटे बालकराम मंजु से क़रीब 5 साल छोटे थे। उनका करियर मंजु से एक साल पहले, ‘प्रभात फ़िल्म कंपनी’ की ही फ़िल्म ‘मेरा लड़का’ से शुरू हुआ था। मराठी में ‘माझा बाळ’ नाम से बनी ये द्विभाषी फ़िल्म साल 1938 में रिलीज़ हुई थी। इस फ़िल्म में अभिनय के साथ साथ बालकराम ने पंडित केशवराव भोले के संगीत में एक गीत ‘मौज बड़ी हो लाकर जल्दी मुझे दिला दो रिस्ट वॉच...’ भी गाया था। उस वक़्त उनकी उम्र क़रीब 5 साल की थी।
हाल ही में बालकराम के बेटे-बेटियों से हुई मुलाक़ात के दौरान बालकराम के विषय में बहुत सी जानकारियां हासिल हुईं। 24
फ़रवरी 1933
को जन्मे बालकराम भी परिवार की परंपरा पर चलते हुए बहुत कम उम्र से पंडित गुणीदास और फिर पंडित जगन्नाथ पुरोहित से शास्त्रीय गायन सीखने लगे थे। ‘मेरा लड़का’ के बाद वो प्रभात फ़िल्म कंपनी की ही साल 1941
में बनी फ़िल्म ‘पड़ोसी’ में एक अहम भूमिका में नज़र आए। इस फ़िल्म के निर्देशक थे वी.शांताराम, संगीतकार मास्टर कृष्णराव और गीतकार थे पंडित सुदर्शन। बालकराम ने बलवंतसिंह और गोपाल के साथ मिलकर इस फ़िल्म में मास्टर कृष्णराव के संगीत में एक गीत ‘काका अब्बा बड़े खिलाड़ी, एक दूजे से रहे अगाड़ी’ भी गाया था। प्रभात फ़िल्म कंपनी की ही, साल 1943
में बनी फ़िल्म ‘नई कहानी’ में जी.एम.दुर्रानी के गाए और नांद्रेकर पर फ़िल्माए गए गीत ‘नींद हमारी ख़्वाब तुम्हारे, कितने मीठे कितने प्यारे’ में बालकराम शास्त्रीयगायन के अपने जौहर दिखाते नज़र आए थे। इस फ़िल्म के संगीतकार थे श्यामसुंदर। फ़िल्म ‘नयी कहानी’ में मंजु ने भी अभिनय के अलावा लीला मेहता के साथ मिलकर ख़ुद के लिए एक युगलगीत ‘आयी आयी उड़नखटोले पर उड़कर सावन की रानी’ गाया था।
मंजु कहती हैं, “प्रभात में रहते हुए मुझे शेख फत्तेलाल, सीताराम कुलकर्णी, बाबूराव पै और वी.शांताराम जैसे दिग्गजों से बहुत कुछ सीखने को मिला, और उसमें सबसे पहली चीज़ थी, वक़्त की पाबंदी। उस ज़माने में फ़्रीलांसिंग का चलन नहीं था और सभी कलाकार और तकनीशियन किसी एक ही स्टूडियो या फ़िल्म कंपनी में मासिक वेतन पर नौकरी किया करते थे। चूंकि मैं प्रभात फ़िल्म कंपनी में नौकरी करती थी इसलिए आगे चलकर मुझे उस बैनर की ‘चांद’ और ‘रामशास्त्री’ जैसी फ़िल्मों में भी गाने का मौक़ा मिला।“
1944 में बनी फ़िल्म ‘चांद’ से न सिर्फ़ हिंदी सिनेमा की पहली संगीतकार जोड़ी ‘हुस्नलाल भगतराम’ ने, बल्कि अभिनेत्री बेगमपारा ने भी अपने करियर की शुरूआत की थी। तब तक पार्श्वगायन पूरी तरह से प्रचलन में आ चुका था और मंजु ने इस फ़िल्म में दो गीत ‘दो दिलों को ये दुनिया मिलने ही नहीं देती’ और ‘आयी आयी मुसीबत आयी’ गाए थे जो बालकराम पर फ़िल्माए गए थे। साल 1944 में ही बनी फ़िल्म ‘रामशास्त्री’ में मंजु ने एक गीत ‘कैसे खेलूं मैं खेल नहीं भाए’ गाया था जिसे बेबी शकुंतला पर फ़िल्माया गया था। इस फ़िल्म के मराठी वर्शन में भी मंजु ने गायक सुरेश वाडकर के पिता अजीत वाडकर के साथ एक युगल गीत गाया था।
मंजु कहती हैं, “ये वो दौर था जब मेरी उम्र न तो छोटों में थी और न बड़ों में इसलिए अभिनय के मौक़े नहीं मिल रहे थे। जहां तक सवाल था गाने का तो पुणे में रिहर्सल मुझसे करवाई जाती थी और वोही गीत मुम्बई में राजकुमारी या शमशाद बेगम की आवाज़ में रेकॉर्ड करा लिए जाते थे। मेरे हिस्से में अगर कुछ आ रहा था तो वो थे सिर्फ़ बच्चों के गिने-चुने गाने। ऐसे में निराशा और छटपटाहट के साथ साथ मन में प्रभात फ़िल्म कंपनी के प्रति ग़ुस्सा भी बढ़ता जा रहा था। लेकिन मैं कॉण्ट्रेक्ट की शर्तों में बंधी हुई थी।
मेरी इस हालत से अभिनेता बी.नांद्रेकर तब से वाक़िफ़ थे जब वो फ़िल्म ‘नयी कहानी’ की शूटिंग के सिलसिले में पुणे आए थे। एक रोज़ उन्होंने मुझे पुणे से मुम्बई बुलाया जहां फ़ाज़ली ब्रदर्स की किसी फ़िल्म के लिए मेरा स्क्रीन टेस्ट लेकर मुझे मज़हर ख़ान से मिलवाया गया। लेकिन इस बात का पता चलते ही प्रभात के बाबूराव पै ने यह कहते हुए कि मैं प्रभात के कॉण्ट्रेक्ट से बंधी हुई हूं, कानूनी कार्रवाही की धमकी देकर फ़ाज़ली ब्रदर्स के साथ होने जा रहा मेरा कॉण्ट्रेक्ट रद्द करवा दिया। उधर निर्माता चिमनभाई देसाई भी मुझे अगली अपनी फ़िल्म में लेना चाहते थे। वो बाबूराव पै से उनके ऑफ़िस में जाकर मिले और किसी तरह से उन्हें मना ही लिया। इस तरह प्रभात के बैनर से बाहर मुझे जो पहली फ़िल्म मिली वो थी ‘गाली’, जो साल 1944 में रिलीज़ हुई थी। एन.आर.देसाई प्रोडक्शंस (मुम्बई) के बैनर में बनी इस फ़िल्म के निर्देशक थे आर.एस.चौधरी, संगीत हनुमान प्रसाद और सज्जाद हुसैन का था और मुख्य कलाकार थे करण दीवान, निर्मला, याक़ूब, कन्हैयालाल और जिल्लोबाई। इस फ़िल्म में मैंने अभिनय करने के साथ ही कुछ गीत भी गाए थे जिनमें से एक ‘होली मैं खेलूंगी उन संग डट के’ मुझ पर ही फ़िल्माया गया था।“
उधर बालकराम के बेटे चन्द्रकांत जाधव बताते हैं, प्रभात फ़िल्म कंपनी के कॉण्ट्रेक्ट से आज़ाद होकर मंजु मुंबई आयीं तो परिवार को भी साथ में आना पड़ा। ऐसे में फ़िल्म ‘चांद’ के बाद प्रभात फ़िल्म कंपनी के साथ बालकराम का रिश्ता भी टूट गया। चूंकि बालकराम भी उस वक़्त उम्र के ऐसे दौर में थे कि न तो वो छोटे थे न बड़े, इसलिए मुंबई में उनके लिए काम हासिल कर पाना मुश्किल हो चला था। लेकिन उन्हीं दिनों मंजु को ज़रूर एक बेहतरीन मौक़ा हाथ लगा। फ़िल्म ‘गाली’ के नायक करण दीवान के बड़े भाई निर्माता जैमिनी दीवान फ़िल्म ‘रतन’ बना रहे थे। इस फ़िल्म के निर्देशक थे एम.सादिक़ और मुख्य भूमिकाओं में करण दीवान और स्वर्णलता थे। मंजु को इस फ़िल्म के सहनायक वास्ती की बहन की भूमिका के लिए चुन लिया गया।
‘अंखियां मिला के जिया भरमा के चले नहीं जाना’, ‘सावन के बादलों उनसे ये जा कहो’, ‘रूमझुम बरसे बादरवा मस्त घटाएं छाईं’, ‘ओ जाने वाले बालमवा लौट के आ लौट के आ’, ‘मिल के बिछड़ गयीं अंखियां’, ‘जब तुम ही चले परदेस लगा कर ठेस’ जैसे जोहराबाई अंबालावाली, अमीरबाई कर्नाटकी, मंजु, करण दीवान और श्याम कुमार के गाए इस फ़िल्म के सभी दस गीत उस ज़माने में बेहद लोकप्रिय हुए थे। साल 1944
में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म के गीतों की लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि निर्माता जैमिनी दीवान को महज़ 75,000/
रूपयों की लागत से बनी इस फ़िल्म के सिर्फ़ गीतों की रॉयल्टी से ही साढ़े तीन लाख रूपये से ज़्यादा की आमदनी हुई थी। संगीतकार नौशाद के करियर की भी ये पहली हिट फ़िल्म थी। मंजु ने इस फ़िल्म में दो सोलो गीत ‘अंगड़ाई तेरी है बहाना, साफ़ कह दो हमें तो जाना जाना’ और ‘झूठे हैं सब सपने सुहाने’ गाए थे जो ख़ुद उन्हीं पर फ़िल्माए गए थे।
फ़िल्म रतन की ज़बर्दस्त कामयाबी का लाभ मंजु को भी मिला और उनके सामने अभिनय और गायन के बेशुमार ऑफ़र्स आने लगे। लेकिन ‘रतन’ उनकी आख़िरी फ़िल्म साबित हुई। मंजु बताती हैं, “इस फ़िल्म की रिलीज़ के तुरंत बाद करण दीवान से मेरी शादी हुई और मुझे फ़िल्म जगत को अलविदा कह देना पड़ा क्योंकि मेरी सास नहीं चाहती थीं कि उनकी बहू फ़िल्मों में काम करे। यही वजह है कि उस दौर में शुरू होने जा रही अपनी सभी फ़िल्मों के कॉण्ट्रेक्ट मुझे रद्द करवा देने पड़े जिनमें से एक गायिका-अभिनेत्री नूरजहां और उनके निर्माता-निर्देशक शौहर शौक़त हुसैन रिजवी की 1945 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘ज़ीनत’ भी थी।“
उधर बालकराम भी मुंबई में बनने वाली हिंदी फ़िल्मों में काम पाने की जद्दोज़हद में जुटे हुए थे। क़रीब 3 सालों के संघर्ष के बाद उन्हें 1947 में रिलीज़ हुई फ़िल्मों ‘कृष्णसुदामा’ और ‘नैया’ में सहायक भूमिकाएं मिलीं। ‘कृष्णसुदामा’ में उन्होंने श्यामबाबू पाठक के संगीत में एक गीत ‘जग है दर्शन का मेला...’ भी गाया था। आने वाले सालों में बालकराम ‘सीता स्वयंवर’ (1948), ‘लाहौर’, ‘सती अहिल्या’, ‘माया बाज़ार’ और ‘संत जनाबाई’ (सभी 1949), ‘कमल के फूल’ (1950), ‘मालती माधव’ (1951) और ‘शिव लीला’ (1952) जैसी फ़िल्मों में नज़र आए। फ़िल्म ‘माया बाज़ार’ में उन्होंने सुधीर फड़के के संगीत में ललिता (देऊलकर) फड़के के साथ दो युगलगीत ‘बचपन मेरा बचपन तेरा’ और ‘आज की रात निराली है’ गाए थे। उधर ‘संत जनाबाई’ से ‘प्रभात फ़िल्म कंपनी’ के साथ उनका एक बार फिर से जुड़ाव हुआ लेकिन ‘संत जनाबाई’ ‘प्रभात फ़िल्म कंपनी’ की आख़िरी फ़िल्म साबित हुई। हिंदी सिनेमा में अपने करियर के ग्राफ़ से बालकराम ख़ुश नहीं थे इसलिए उन्होंने मराठी फ़िल्मों, नाटकों और शास्त्रीय गायन की तरफ़ रूख कर लिया जिसमें उन्हें भरपूर कामयाबी भी मिली।
‘केला इशारा जाता जाता’, ‘शेवग्या च्या शेंडा’, ‘क्षण आला भाग्याचा’, स्वयंवर झाले सीतेचे’, ‘सवाल माझा आईका’, ‘वावटळ’ और ‘सौभाग्याकांक्षिणी’ जैसी उनकी कई मराठी फ़िल्में, उनके गाए गीत और शास्त्रीय गायन के उनके कार्यक्रम बेहद पसंद किए गए। फ़िल्म ‘वावटळ’ के लिए बालकराम को महाराष्ट्र शासन द्वारा ‘सर्वश्रेष्ठ गायन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। मराठी नाटक ‘कटियार काळजात घुसली’ में उनकी गायी हिंदी क़व्वाली ‘नाज़ुक़ सी कलाई हो जिनकी, वो तीर चलाना क्या जानें’ अपने ज़माने में बेहद मशहूर हुई थी। तब तक उनकी सबसे बड़ी बहन विजयमाला भी मराठी नाटकों की अभिनेत्री के तौर पर और बड़े भाई त्रयंबक बतौर तबला और सितारवादक अपनी ख़ासी पहचान बना चुके थे। साल 1968 में बालकराम एक बार फिर से हिंदी फ़िल्म ‘बलराम श्रीकृष्ण’ में भगवान विष्णु की भूमिका में नजर आए थे। उधर मंजु, दीवान परिवार की बहू बनकर घर-गृहस्थी संभाल रही थीं।
दीवान परिवार मूल रूप से गुजरांवाला का रहने वाला था। करण दीवान ने साल 1941 में लाहौर में बनी पंजाबी फ़िल्म ‘मेरा माही’ में रागिनी और मनोरमा के साथ काम किया था। उस ज़माने में लाहौर में बतौर फ़िल्म पत्रकार काम कर रहे बी.आर.चोपड़ा ने करण दीवान की फ़ोटोज़ देविका रानी को भेजीं, जिनके बुलावे पर करण मुम्बई चले आए, हालांकि बॉम्बे टॉकीज़ के भीतर चल रही उठापटक की वजह से देविका रानी, करण दीवान की ख़ास मदद नहीं कर पायीं। ऐसे में करण दीवान अभिनेता-अभिनेत्रियों को उर्दू का उच्चारण सिखाने के काम में जुट गए। मुम्बई में उन्हें जो पहली फ़िल्म मिली, वो थी साल 1943 में बनी सन आर्ट पिक्चर्स की सी.एम.लोहार द्वारा निर्देशित “स्कूल मास्टर” जिसमें उनकी हिरोईन माया बनर्जी थीं। दीवान परिवार के तीन भाईयों में सबसे बड़े भीष्म दीवान कानपुर में जा बसे थे तो मंझले भाई जैमिनी दीवान और सबसे छोटे करण दीवान मुम्बई चले आए थे। जैमिनी ने ‘रतन’ के बाद ‘दो दिल’(1947) और ‘लाहौर’ (1949) के अलावा एक पंजाबी फ़िल्म ‘चमन’ (1948) का भी निर्माण किया था।
करण दीवान ने आगे चलकर दुनिया, परदेस, दहेज, एक नज़र, बहार, तीन बत्ती चार रास्ता, बहू, मुसाफ़िरखाना, छूमंतर, चंदन, शहीद, आमने सामने, जीने की राह, नादान, शहज़ादा, हिमालय से ऊंचा, और काला सोना जैसी क़रीब तीन दर्जन फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें से बाद की फ़िल्मों में वो चरित्र भूमिकाओं में नज़र आए। और फिर अगस्त 1979
में करण दीवान के गुज़रने के बाद मंजु का फिल्म जगत से रहा-सहा रिश्ता भी पूरी तरह से टूट गया।
बालकराम के शास्त्रीय गायन के कार्यक्रम बेहद पसंद किए जाते थे। 70 के दशक की शुरूआत में लीवर की बीमारी की वजह से बाहर आना-जाना सीमित हुआ तो वो अपना ज़्यादातर वक़्त संगीत साधना में बिताने लगे। दादर में उन्होंने पंडित यशवंत देव के घर पर ‘गुणीदास संगीत विद्यालय’ की स्थापना की और बच्चों को शास्त्रीय संगीत सिखाने लगे। लेकिन उनकी हालत बहुत तेज़ी से बिगड़ती चली गयी और लीवर का ऑपरेशन कराने के 8 दिनों बाद 2 मार्च 1974 को महज़ 41 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी श्रीमती वसुमति जाधव मुंबई पोर्ट ट्रस्ट में नौकरी करती थीं। साथ ही वो लक्ष्मी-प्यारे और कल्याणजी-आनंदजी के ऑर्केस्ट्रा में और रेडियो पर गाती भी थीं। उनका निधन साल 2008 में हुआ।
वर्तमान में बालकराम की बड़ी बेटी श्रीमती कल्पना पाटणकर और बेटा चन्द्रकांत जाधव ठाणे के घोड़बंदर रोड पर और दूसरी बेटी श्रीमती सीमा कुलकर्णी लोनावला में रहती हैं। उनकी सबसे छोटी बेटी श्रीमती छाया कुलकर्णी कनाडा में हैं। उधर 5
बेटियों और 2 बेटों की मां मंजु अब 84 बरस की हो चुकी हैं और मुंबई के अलावा उनका ज़्यादातर वक़्त देहरादून में अपनी बेटी के और शारजाह में रहने वाले छोटे बेटे के साथ गुज़रता है। उनके बड़े बेटे दीपक दीवान मुंबई में ही रहते हैं।
मंजु का, और उनके और बालकराम के परिवारों का आज सिनेमा से कोई भी रिश्ता नहीं है। वो रिश्ता करण दीवान और बालकराम के गुज़रने के साथ ही बरसों पहले टूट चुका था।
(दिनांक 12 अक्टूबर 2020 को मंजु जी के दामाद श्री किशोर माथुर और बालकराम के बेटे श्री चंद्रकांत जाधव के साथ टेलिफ़ोन पर हुई बातचीत के दौरान हासिल हुई ताज़ातरीन जानकारी -
1. मंजु जी के बड़े बेटे श्री दीपक दीवान का निधन साल 2013 में हुआ था|
2. बालकराम की बड़ी बेटी श्रीमती कल्पना पाटणकर और उनके पति क्रमश: साल 2017 और 2016 में गुज़रे|
3. 92 वर्षीया मंजु जी वर्त्तमान में अपने छोटे बेटे श्री राजेश दीवान के साथ शारजाह में रह रही हैं|)
अभिनेत्री - गायिका मंजु , पत्नी (स्वर्गीय) करण दीवान, का निधन 93 साल की उम्र में 11 अक्टूबर 2021 की सुबह उनके बेटे राजेश दीवान के, मुम्बई के निकट पनवेल स्थित घर पर हुआ| वो कुछ समय से किडनी सम्बंधित परेशानियों से पीड़ित थीं|
We
are thankful to –
Mr.
D.B.Samant, Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their
valuable suggestion, guidance, and support.
(Late)
Balakram’s daughter Mrs. Kalpana Patankar, son Mr. Chandrakant Jadhav, Mrs.
Manju Dewan’s daughter Mrs. Jaishri Mathur and son Mr. Deepak Dewan for
providing various pictures and all the required information for the write-up.
Mr.
Sanjeev Tanwar for providing Keshav Rao Bhole’s picture.
Mr. S.M.M.Ausaja
for providing movies’ posters.
Ms.
Akhsher Apoorva for the English translation of the write up.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
“Do Dilon Ko Ye Duniya Milne Bhi Nahin Deti”- Manju & Balakram
..........Shishir Krishna Sharma
The annals of the
history of Hindi cinema display names of some women who despite having conquered
the heady heights of success gave up everything in a heartbeat for domestic
bliss like the true Indian woman, and chose marriage and household over the
glitz and glamour of the show world. One such name is of singer-actress Manju
who started her career with the bilingual (Hindi and Marathi) film ‘Aadmi’
(‘Manus’ in Marathi) made under the banner of ‘Prabhat Film Company’ in 1939
and after a short spanning career of just 6 years after the film ‘Rattan’, made
in 1944, she got married and bid farewell to the glamour word. Just like Manju,
her younger brother Balakram had also made a name for himself as a singer-actor
at a very young age. Unfortunately, Balakram died at the ripe age of 41, but
it’s some consolation that Manju is still with us and stays with her wholesome
family comprising of her son and daughter in law at South Mumbai’s Bhulabhai
Desai Road.
Daughter of
Gangaram Bapu, a well-known Marathi theater singer of his times and an active
member of ‘Anand Vilas Sangeet Natak Mandali’, Manju was born to him 6 October
1928 in Nagpur. Manju says, “My father had got a job at ‘Prabhat Film Company’
so we shifted from Nagpur to Pune. Other than my parents, the family comprised
of my elder sister Vijaymala and two younger brothers Trayambak and Balakram.
All my brother sisters, we studied at home and never attended a formal school.
Meanwhile I started learning Indian Classical Music from ‘Prabhat Film
Company’s’ Music Director Pandit Keshav Rao Bhole. During this time, I got a
chance to work under the same banner, for the film ‘Aadmi’, as a child artist.
My real name is ‘Manjula’ and was shortened to just ‘Manju’ for films. In those
days, playback had not established properly as yet, and we had to sing songs
for ourselves on screen. In the film ‘Aadmi’ I sang the song ‘mai jaan gai
pehchaan gai tumre mann ki baat’ and it was also filmed on me. I was 11 years
old at that time.”
Manju also sang a
song for film ‘Aadmi’s’ Marathi version titled ‘Manus’ and both the films were
released in the year 1939. Manju just acted for the film ‘Sant Gyaneshwar’ made
under the banner of ‘Prabhat Film Company’ in 1940. The youngest in the family,
Balakram was about 5 years younger to Manju. His career had started a year
before with ‘Prabhat Film Company’s’ film ‘Mera Ladka’. This bilingual film
made in Marathi as ‘Majha Baal’ was released in 1938. Balakram not only acted
in this film but also sang a song ‘mauj badi ho jaldi laakar mujhe dila do
wristwatch…’ under the music of Pandit Keshav Rao Bhole. At that time, he was
around 5 years old.
Recently during a
meeting with Balakram’s sons and daughters I obtained a lot of information on
Balakram was obtained. Born on 24th February 1933, Balakram following the
tradition of the family had started learning classical vocal from Pandit
Gunidass and then from Pandit Jagannath Purohit at a very early age. After
‘Mera Ladka’, he was seen in an important role in ‘Prabhat Film Company’s’ film
‘Padosi’ made in 1941. This film’s director was V.Shantaram, Music Director
Master Krishna Rao and songwriter was Pandit Sudarshan. Balakram, along with
Balwant Singh and Gopal, also sang a song ‘kaka abba bade khiladi, ek dooje se
rahe agaadi’ under the music of Master Krishna Rao. In ‘Prabhat Film Company’s’
film ‘Nai Kahani’, made in 1943, in a song sung by G.M.Durrani and filmed on B. Nandrekar,
‘neend hamari khwaab tumhare, kitne meethe kitne pyaare’, Balakram was seen
professing his classical vocal finesse. The films Music Director was Shyam
Sunder. Manju was also seen acting in the film ‘Nai Kahani’ and had sung a duet
with Leela Mehta ‘aai aai udankhatole par ud kar saawan ki rani’.
Manju says, “While
in ‘Prabhat Film Company’, I got to learn a lot from veterans like Sheikh
Fattelal, Seetaram Kulkarni, Babu Rao Pai and V.Shantaram, and the foremost
thing I learned was value of time. In those days, the trend of freelancing was
not there, all artists and technicians would be employed on a monthly salary by
one studio or film company. Because I worked with ‘Prabhat Film Company’, later
on I got a chance to sing for the banner’s movies like ‘Chaand’ and ‘Ram
Shastri’.”
Made in 1944, film
‘Chaand’ marked the beginning of not only the first Music Director Duo ‘Husnlal
Bhagatram’ but also marked the beginning of actress Begumpara’s career. At this
time playback had become a trend and Manju had sung two songs for the film ‘do
dilon ko ye duniya milne hi nahin deti’ and ‘aai aai museebat aai’ which were
filmed on Balakram. Also made in 1944, manju had sung a song for the film ‘Ram
Shastri’, ‘kaise kheloon mai khel nahin bhaaye’, which was filmed on Baby
Shakuntala. In the film’s Marathi version, Manju had sung a duet with Suresh
Wadkar’s father Ajit Wadkar.
Manju says, “This
was during the time when my age was such that I couldn’t be counted as a child or
as an adult and that’s why I wasn’t getting any opportunities to act. Where
songs were concerned, I would do rehearsals for the songs in Pune and those
very songs would be recorded in Mumbai in the voice of Rajkumari or Shamshad
Begum. If I was getting any work, it would be the one odd song for children. In
such circumstances, along with frustration and restlessness, my anger towards
‘Prabhat Film Company’ was building. But I was bound by the comditions of the
contract. Actor B. Nandrekar was privy to my state of mind since the time he
had come to Pune for the shooting of the film ‘Nai Kahani’. One day he called
me to Mumbai from Pune where in relation to a Faazli brother’s film, he
introduced me, along with my screen test, to Mazhar khan. But as soon they got
to know, ‘Prabhat Film Company’s’ Babu Rao Pai said that I was bound by a
contract with ‘Prabhat Film Company’ and threatened to take legal action and
thus the contract I was going to sign with Faazli Brothers got canceled.
Producer Chimanbhai desai also wanted to sign me for his next film. He went to
meet Babu Rao Pai in his office and somehow managed to convince him. And hence
the first film I got outside the banner of ‘Prabhat Film Company’ was ‘Gaali’,
which was released in 1944. Made under the banner of ‘N.R.Desai Productions’
(Mumbai), this film’s director was R.S.Choudhary, music was by Hanuman Prasad
& Sajjaad Hussain and the main actors were Karan Dewan, Nirmala, Yaqoob,
Kanhaiyalal and Jillobai. Along with acting in the movie I also sang a few
songs one of which was ‘holi mai kheloongi unn sang dat ke’, this song was also
filmed on me.”
Balakram’s son
Chandrakant Jadhav tells us, “Once freed from Prabhat Film Company’s contract,
Manju came to Mumbai and hence the family too had to come with her. In such a
way, after film ‘Chaand’, Balakram’s ties with ‘Prabhat Film Company’ also
broke. Because Balakram was going through such an age where he couldn’t be
counted within the younger or the older generation, he found it very difficult
to get work in Mumbai. But at that time Manju definitely got a big opportunity.
Karan Dewan, the main lead of film ‘Gaali’, his elder brother Producer Jaimini
Dewan was making the film ‘Rattan’. The film’s director was M.Sadiq and the
main leads were Karan Dewan and Swarnalata. Manju was chosen to play the part
of second hero Wasti’s sister. All 10 Songs like ‘ankhiyaan mila ke jiarma ke
chale nahin jaana’, ‘sawan ke baadlon unse ye ja kaho’, ‘rumjhum barse badarwa,
mast ghatayein chhaayeen’, ‘o jaane waale balamwa laut kea a laut ke aa’,
‘milke bichhad gayeen ankhiyaan’, ‘jab tum hi chale pardes laga kar thes’ sung
by the likes of Johra Bai Ambalewali, Ameer Bai Karnatki, Manju, Karan Dewan
and Shyam Kumar became very popular at that time. Released in the year 1944, one
can gage the popularity of the songs of this film by the fact that Producer
Jaiminin Dewan had made the film in just 75,000/ rupees and the money
recovered, by just the song royalties, was more than three and a half lakh
rupees. This was also the first hit film of Music Director Naushad’s career.
Manju had sung two solos ‘angdai teri hai bahana saaf keh do hame to jaana
jaana’ and ‘jhoothe hain sab sapne suhaane’ for the film both of which had been
filmed on her.
Manju too reaped
the benefits of the fabulous success of ‘Rattan’ and was flooded with acting
and singing offers. However, ‘Rattan’ proved to be her last film. Manju says,
“Right after the film’s release, I got married to Karan Dewan and I had to say
goodbye to the film world as my mother-in-law didn’t want her daughter-in-law
to work in films. This was the reason that I had to annul all contracts of the
films that were about to go on floor, one of which was singer-actress Noorjehan
and her Producer-director husband Shauqat Hussain Rizvi’s film ‘Zeenat’ which
was released in 1945.” On the other hand, Balakram was also struggling to find
work in Mumbai. After about 3 years of struggle he finally found supporting
roles in films ‘Krishna Sudama’ and ‘Naiya’ which were released in 1947. In
‘Krishna Sudama’ he also sang a song under Shyambabu Pathak’s music ‘jag hai
darshan ka mela...’ In the coming years, Balakram was seen in films like ‘Seeta
Swayamvar’ (1948), ‘Lahore’, ‘Sati Ahilya’, ‘Maya Bazar’ and ‘Sant Janabai’ (all 1949), ‘Kamal Ke Phool’ (1950), ‘Malti
Madhav’ (1951) and ‘Shiv Leela’ (1952). In film ‘Maya Bazar’, under the music
of Sudhir Phadke, he sung two duets with Lalita (Deoolkar) Phadke viz. ‘bachpan
mera bachpan tera’ and ‘aaj ki raat nirali hai’. He once again joined hands
with ‘Prabhat Film Company’ through the moive ‘Sant Janabai’ but this proved to
be ‘Prabhat Film Company’s’ last film. Balakram was not very happy with his
career graph and hence turned towards Marathi films, plays and classical vocal
where he found much fame and success. His Marathi films like ‘Kela Ishara Jata
Jata’, ‘Shevagya Chya Shenda’, ‘Kshan Ala Bhagyacha’, ‘Swayamvar Jhale
Seeteche’, ‘Sawal Majha Aaika’, ‘Vavtal’ and ‘Saubhagyakankshini’ as well as
songs sung by him and his programs of classical vocal were much appreciated.
For film ‘Vavtal’, Balakram was honored with the ‘Best Singer’s Award’ by the
Maharashtra Government. His Hindi qawwali ‘naazuk si kalaai ho jinki, wo teer
chalana kya jaanein’ sung for a Marathi drama ‘Katiyar Kaaljaat Ghusli’ had
become very famous in its time. By then his elder sister Vijaymala had made her
mark as a Marathi actress and his elder brother Trayambak as a tabla player
& sitarist. In 1968, Balakram was once again seen essaying Lord Vishnu in a
hindi film ‘Balram Shri Krishna’. On the other hand, Manju was managing the
responsibilities of the Dewan household.
The Dewan family
basically hailed from Gujranwala (now Pakistan). Karan Dewan had worked with
Ragini and Manorama in the Panjabi film ‘Mera Mahi’ made in 1941 in Lahore. During
those days B.R.Chopra was working as a film journalist in Lahore and had sent
Karan Dewan’s pictures to Devika Rani who later called Karan Dewan to Mumbai,
however due to the ongoing internal politics at Bombay Talkies, Devika Rani
could not do much to help Karan Dewan. Hence Karan Dewan started teaching Urdu
pronunciation to actors and actresses. The first film that he got in Mumbai was
‘School Master’ directed by C.M. Lohar and made under the banner of ‘Sun Art
Pictures’ in 1943 and his heroine in the film was Maya Banerjee. Of the three
brothers of the Dewan family, the eldest Bheeshm Dewan had settled down in
Kanpur and middle brother Jaimini Dewan and the youngest Karan Dewan were in
Mumbai. After ‘Rattan’, other than producing two Hindi films ‘Do Dil’(1947) and
‘Lahore’ (1949), Jaimini also produced a Punjabi film ‘Chaman’ (1948). Later on
Karan Dewan did almost 3 dozen films like Duniya, Pardes, Dahej, Ek Nazar,
Bahaar, Teen Batti Chaar Raasta, Bahu, Musafirkhana, Chhoomantar, Chandan,
Shaheed, Aamne Saamne, Jeene Ki Raah, Nadaan, Shehzada, Himalay Se Ooncha, and
Kala Sona, of which he was seen playing character roles later on. With the
passing of Karan Dewan in August 1979, Manju lost her last few ties with the
glamour world as well.
Balakram’s programs
of classical vocal were highly favored. During the 70’s due to an illness of
the liver, his mobility got restricted and he started spending most of his time
in music practice. In Dadar at Pandit Yashwant Dev’s house, he established the
‘Gunidass Sangeet Vidyalay’ and started tutoring children in music. But his
condition rapidly deteriorated and just 8 days after his liver operation, at
the age of 41 he passed away on 2nd March 1974. His wife Smt. Vasumati Jadhav
used to work at the Mumbai Port Trust. She also used to sing in
Laxmikant-Pyarelal and Kalyanji Anandji’s orchestra as well as for the radio.
She passed away in 2008. At present, Balakram’s eldest daughter Smt.Kalpana
Patankar and son Chandrakant Jadhav live at Thane’s Ghodbandar Road and another
daughter Smt.Seema Kulkarni lives in Lonavla. Balakram’s youngest daughter
Smt.Chhaya Kulkarni is in Canada. On the other hand, mother to 5 daughters and
2 sons, Manju is now 84 years old and other than Mumbai she spends most of her
time either in Dehradoon with her daughter or with her younger son who stays in
Sharjah. Her elder son Deepak Dewan stays in Mumbai.
Neither Manju’s family nor Balakram’s family have any ties with the cinematic world. Those ties were severed years back with the deaths of Karan Dewan and Balakram.
(Latest update as
per the telephonic conversation with Manju ji’s son in law Mr. Kishore Mathur
& Balakram’s son Mr. Chandrakant Jadhav –
1. Manju ji’s elder son Mr. Deepak
Dewan died in 2013.
2. Balakram’s elder daughter Mrs. Kalpana
Patankar and her husband died in 2017 and 2016 respectively.
3. 92 years old Manju ji’s is currently
living in Sharjah with her younger son Mr. Rajesh Dewan.)
Actress - singer Manju w/o (late) Karan Dewan passed away at the age of 93 on 11 October 2021 in morning at her son Rajesh Dewan's Panvel home, near Mumbai. She was suffering from a kidney related ailment for some time.