“कश्ती
का ख़ामोश
सफ़र है” – सुधा
मल्होत्रा
........शिशिर कृष्ण शर्मा
हिंदी
फ़िल्म संगीत
के क्षेत्र
में ललिता
देऊलकर, सुलोचना
कदम, मुबारक
बेगम, मीना
कपूर, जगजीत
कौर, मधुबाला
ज़वेरी और
कमल बारोट
जैसी कई
पार्श्वगायिकाएं हुईं
जिन्होंने काम
तो भले
ही बहुत
ज़्यादा नहीं
किया, लेकिन
जितना भी
किया, उसे
नज़रअंदाज़ नहीं
किया जा
सकता। अपनी
दमदार गायकी
के दम
पर इन
सभी ने
हिंदी सिनेमा
के क्षेत्र
में अपनी
उपस्थिति दर्ज
कराई और
फिर चाही-अनचाही
वजहों से
वो इस
जगमगाती दुनिया
को अलविदा
कह गयीं।
ऐसी ही
गायिकाओं में
एक चमकता
हुआ नाम
है सुधा
मल्होत्रा का,
जिनके करियर
की अवधि
तो महज़
10 साल रही
लेकिन उनके
गाए गीतों
की ताज़गी
आज भी
बरकरार है।
मूल रूप से लाहौर की रहने वालीं सुधा मल्होत्रा का जन्म 30 नवम्बर 1936 को दिल्ली में हुआ था, लेकिन उनका बचपन लाहौर में बीता। चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी सुधा मल्होत्रा और उनसे छोटे 3 भाई थे। सुधा मल्होत्रा कहती हैं, “हमारे घर में सभी को संगीत का शौक़ था। गायन में मेरी गहरी दिलचस्पी को देखकर माता पिता ने मुझे संगीत सीखने के लिए प्रेरित किया। मैं 6 बरस की थी जब एक प्रोग्राम में मुझे मास्टर ग़ुलाम हैदर के सामने उनके ऑर्केस्ट्रा के साथ गाने का मौक़ा मिला।
मैंने
फ़िल्म
“ख़ानदान”
का, नूरजहां
का गाया
मशहूर गीत
“तू कौन
सी बदली
में मेरे
चांद है
आ जा”
गाया जिसे
सुनकर मास्टर
ग़ुलाम हैदर
ने कहा
था कि
मैं बड़ी
होकर बहुत
नाम कमाऊंगी।
लाहौर में
ही मैंने
देशबंधु सेठी
जी से
शास्त्रीय गायन
सीखना शुरू
किया। उसी
दौरान ऑल
इण्डिया रेडियो
पर भी
गाने लगी।
बंटवारा हुआ
तो हम
लोग दिल्ली
चले आए
जहां मैं
पंडित अमरनाथ
से संगीत
सीखने लगी”।
सुधा
मल्होत्रा के
पिता शिक्षक
थे। उन्हें
प्रिंसिपल की
नौकरी मिली
तो परिवार
को साथ
लेकर वो
भोपाल चले
आए। सुधा
मल्होत्रा के
मुताबिक उनका
ननिहाल मुंबई
में था
जहां बचपन
से ही
उनका आनाजाना
होता रहता
था। संगीतकार
अनिल बिस्वास
उनके मामा
के पारिवारिक
मित्र थे।
एक रोज़
अनिल बिस्वास
ने सुधा
मल्होत्रा को
गाते सुना
तो वो
बेहद प्रभावित
हुए। उन्होंने
सुधा मल्होत्रा
को फ़िल्म
“आरज़ू”
में एक
गीत गाने
का मौक़ा
दिया। साल
1950 में बनी फ़िल्म
“आरज़ू”
में उनका
गाया वो
पहला गीत
था
“मिला गए
नैन”,
जो शशिकला
पर फ़िल्माया
गया था।
सुधा
मल्होत्रा की
उम्र उस
वक़्त करीब
14 साल थी।
गीत रेकॉर्ड
कराकर वो
वापस भोपाल
चली गयी
थीं।
“मिला गए
नैन”
को लोगों
ने बेहद
पसंद किया।
सुधा मल्होत्रा
के मुताबिक़
उस गीत
की ज़बर्दस्त
कामयाबी के
बाद उन्हें
लगातार गाने
के प्रस्ताव
मिलने लगे।
वो मुंबई
आकर गाना
रेकॉर्ड करातीं,
और फिर
वापस भोपाल
लौट जाती
थीं। क़रीब
2-3 साल तक
यही सिलसिला
चलता रहा।
लेकिन धीरे
धीरे काम
बढ़ता चला
गया तो
उन्हें स्थायी
रूप से
भोपाल से
मुंबई आ
जाना पड़ा।
{सुधा
मल्होत्रा के
कथन के
विपरीत जोधपुर
स्थित मशहूर
रिकॉर्ड संग्राहक
श्री गिरधारीलाल
विश्वकर्मा का सप्रमाण कहना है कि
सुधा जी
की डेब्यू
फ़िल्म “आरज़ू”
नहीं बल्कि
साल 1949
में बनी
“आख़िरी पैग़ाम”
उर्फ़ “द
लास्ट मैसेज”
थी| इस
फ़िल्म में
सुधा जी
ने आबिद
हुसैन खान
और सुशांत
बनर्जी के
संगीत में
तीन गीत
गाए थे
जिनमें एक
सोलो, एक
फ़ीमेल डुएट
(सहगायिका उमादेवी)
और एक
मेल डुएट
(सहगायक विनोद)
था|}
सुधा
मल्होत्रा कहती
हैं, “मुझे
उस दौर
के तकरीबन
सभी छोटे-बड़े
संगीतकारों के
साथ काम
करने का
मौक़ा मिला।
क़रीब 10 सालों के
अपने करियर
के दौरान
मैंने 135 फ़िल्मों में
क़रीब 250 गीत गाए।
“मोहब्बत की
धुन बेक़रारों
से पूछो”
(दिले
नादान
/ 1953),
“आवाज़ दे
रहा है
कोई आसमान
से”
(गौहर
/ 1953),
“गंगा की
रेती पे
बंगला उठवाई
दे”
(मिर्ज़ा
ग़ालिब
/ 1954),
“घूंघट हटाय
के नज़रें
मिलाय के”
(रंगीन
रातें
/ 1956),
“मालिक तेरे
जहां में”
(अब
दिल्ली दूर
नहीं
/ 1957),
“मेरा जला
रात भर
दिया”
(चमक
चांदनी
/ 1957),
“सपनों का
चंदा आया”
(मिस्टर
एक्स
/ 1957),
“हम तुम्हारे
हैं ज़रा
घर से
निकल कर
देख लो”
(चलती
का नाम
गाड़ी
/ 1958),
“जाने कैसा
जादू किया
रे”
(परवरिश
/ 1958),
“देखो जी
मेरा हाल,
बदल गयी
चाल”
(सोलहवां
साल
/ 1958),
“हट हट
हट जा
रे नटखट
पिया”
(स्वर्ण
सुंदरी
/ 1958),
“कासे कहूं
मन की
बात”
(धूल
का फूल
/ 1959),
“सन सन
सन वो
चली हवा”
(काग़ज़
के फूल
/ 1959),
और “ग़म
की बदली
में चमकता...कल
हमारा है”
(कल
हमारा है
/ 1959)
जैसे मेरे
गाए कई
गीत बेहद
पसंद किए
गए”।
1950 के
दशक में
सुधा मल्होत्रा
पार्श्वगायन में
बेहद व्यस्त
रहीं। फिर
मशहूर
“शिकागो रेडियो”
के मालिक
मोटवानी परिवार
में उनकी
शादी हो
गयी। सुधा
मल्होत्रा कहती
हैं, “फ़िल्मों
में काम
करना उस
जमाने में
अच्छा नहीं
माना जाता
था। एक
इज़्ज़तदार घराने
की नयी
बहू को
इसकी इजाज़त
न मिलना
स्वाभाविक ही
था, हालांकि
इजाज़त न
मिलने के
पीछे एक
बड़ी वजह
और भी
थी। बहरहाल
मैंने घर
के बड़े-बुज़ुर्गों
की इच्छा
का सम्मान
करते हुए
फ़िल्मों को
अलविदा कह
दिया। 1959 में रिलीज़
हुई फ़िल्म
“दीदी”
का मुकेश
के साथ
गाया दोगाना
“तुम मुझे
भूल भी
जाओ तो
ये हक़
है तुमको”
मेरा आख़िरी
रेकॉर्डेड गीत
था। यों
तो फ़िल्म
“दीदी”
के संगीतकार
एन.दत्ता
थे, लेकिन
ख़ासतौर से
इस गीत
की धुन
मैंने
ही बनाई
थी। इस
तरह महज़
14 साल की
उम्र में
शुरू हुआ
मेरा करियर
23 साल की
उम्र में
ख़त्म भी
हो गया”।
फ़िल्म “दीदी” के बाद भी काफ़ी समय तक सुधा मल्होत्रा के पहले से रेकॉर्ड हुए गीत बाज़ार में आते रहे और पसंद भी किए गए। इनमें “कश्ती का ख़ामोश सफर है” (गर्ल फ्रेंड / 1960), “सलामे हसरत कुबूल कर लो” (बाबर / 1960), “ना मैं धन चाहूं” (काला बाज़ार / 1960), “अस्सलाम आलेकुम बाबू कहो कैसा हाल है” (कल्पना / 1960),
“अलिफ़
जबर आ”
(लव
इन शिमला
/ 1960),
“ये हाथ
ही अपनी
दौलत है”
(मासूम/ 1960),
“जाने वाले
देख ले”
(देखी तेरी
बंबई
/ 1960),
“जाओ जी
जाओ बड़ी
शान के
दिखाने वाले”
(रज़िया
सुल्तान
/ 1961),
“सच्चे का
है बोलबाला”
(सच्चे
मोती
/ 1962),
“कदमों में
शमां के
परवाने”
(किनारे
किनारे
/ 1963)
और
“हम भी
थे अनजान”
(मैं
सुहागन हूं
/ 1964)
जैसे गीतों
के अलावा
फिल्म
“बरसात की
रात”
(1960) की
मशहूर क़व्वालियां
“ये इश्क़
इश्क़ है”,
“ना तो
कारवां की
तलाश है”
और
“जी चाहता
है चूम
लूं”
भी शामिल
हैं।
सुधा
मल्होत्रा बताती
हैं, “नौशाद
साहब के
संगीत निर्देशन
में फ़िल्म
उड़न खटोला
के सभी
गीत पहले
मेरी आवाज़
में रेकॉर्ड
किए गए
थे। लेकिन
जब फ़िल्म
और रेकॉर्ड
रिलीज़ हुए
तो उन
गीतों में
से मेरी
आवाज़ नदारद
थी। उधर
चेतन आनंद
ने भी
अपनी फ़िल्म
के लिए
मेरी और
गीता दत्त
की आवाज़ों
में साहिर
लुधियानवी का
लिखा एक
गीत ख़ैयाम
के संगीत
निर्देशन में
रेकॉर्ड कराया
था। वो
फ़िल्म नहीं
बनी तो
आगे चलकर
उस गीत
को यश
चोपड़ा की
फ़िल्म में
इस्तेमाल कर
लिया गया।
धुन और
बोल वोही
थे लेकिन
अब आवाज़ें
बदल चुकी
थीं। वो
गीत था,
“कभी कभी
मेरे दिल
में ख़्याल
आता है”।
फ़िल्म
“बरसात की
रात”
की क़व्वालियों
में मुख्य
स्वर मेरा
होने और
पार्श्वगायन में
बढ़ती मेरी
व्यस्तताओं की
वजह से
मेरे ख़िलाफ़
भी उठापटक
शुरू हो
गयी थी।
उस ज़माने
में संगीत
के क्षेत्र
में एच.एम.वी.
कम्पनी का
एकाधिकार था।
ये तो
मैं नहीं
कह सकती
कि कम्पनी
पर किसी
तरह का
कोई दबाव
था, लेकिन
उस दौर
में कम्पनी
ने मेरे
गाए गीतों
का एक
भी रेकॉर्ड
जारी नहीं
किया”।
सुधा
मल्होत्रा के
मुताबिक़ उनके
करियर को
बनाने में
अनिल बिस्वास
के अलावा
साहिर लुधियानवी
का भी
बहुत बड़ा
योगदान था।
एक रेकॉर्डेड
इंटरव्यू में,
जिसकी रेकॉर्डिंग
आज भी
हमारे पास
मौजूद है,
सुधा मल्होत्रा
ने बताया
था, “ख़ासतौर
से मेरे
लिए साहिर
लुधियानवी ने
बहुत से
ख़ूबसूरत गीत
लिखे थे।
मेरा रिश्ता
तय हुआ
तो साहिर
लुधियानवी के
साथ मेरी
कुछ तस्वीरें
ब्लिट्ज़ में
छपवा दी
गयीं। मुझे
नहीं पता
कि इस
सब के
पीछे कौन
था और
उसकी मंशा
क्या थी।
ब्लिट्ज़ ने
भले ही
बाद में
इसके लिए
माफ़ी मांग
ली थी,
लेकिन शादी
के बाद
मुझे गाने
की इजाज़त
न मिल
पाने की
एक बड़ी
वजह ये
भी थी।
अगर वो
तस्वीरें न
छपी होतीं
तो हो
सकता है
शादी के
बाद भी
मेरा पार्श्वगायन
जारी रहता”।
(इस
आलेख को
तैयार करते
समय हमने
अपडेट्स लेने
के लिए
सुधा जी
से एक
बार फिर
से बातचीत
की और
हमें उनका
पूरा सहयोग
भी मिला।
लेकिन इस
बार ब्लिट्ज़
में छपी
तस्वीरों से
संबंधित विवाद
पर बात
करने से
उन्होंने साफ़
इंकार कर
दिया। उनकी
इच्छा का
पूरा सम्मान
करते हुए
हमने भी
ज़्यादा आग्रह
करना उचित
नहीं समझा।)
फ़िल्मों
से अलग
होने के
बाद भी
सुधा मल्होत्रा
संगीत से
जुड़ी रहीं।
उन्होंने रियाज़
जारी रखा,
संगीत की
कक्षाएं लेती
रहीं और
कभी-कभार
मंच पर
भी गाती
रहीं। क़रीब
24 साल के
अंतराल के
बाद उन्होंने
राज कपूर
के कहने
पर साल
1982 में बनी
फ़िल्म
“प्रेमरोग”
में अनवर
के साथ
एक दोगाना
“ये प्यार
था या
कुछ और
था”
गाया जो
उनका अभी
तक का
आख़िरी पार्श्वगीत
है।
77 वर्षीया
सुधा मल्होत्रा
ख़ार (पश्चिम)
के 15वें
रास्ते पर
स्थित अपने
बंगले में बेटे-बहू
और पोते-पोती
के साथ
रहती हैं।
उनके पति
गिरधर मोटवानी
का निधन
करीब चार
साल पहले
हुआ था।
बेटा पारिवारिक
व्यवसाय सम्भालता
है और
बहू
“ल ऑफ़िशियल”
और
“सेवेंटीन”
नाम की
फ़ैशन पत्रिकाओं
का संपादन
और प्रकाशन
देखती है।
हिंदी फ़िल्म
संगीत के
क्षेत्र में
गायिका सुधा
मल्होत्रा के
योगदान को
देखते हुए
भारत सरकार
ने उन्हें
साल 2013 में पद्मश्री
पुरस्कार से
सम्मानित किया
था|
We
are thankful to –
Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for
their valuable suggestion, guidance, and support.
Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Ms. Maitri Manthan for editing the English translation of the write up.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video editing
“Kashti Ka Khamosh Safar Hai” – Sudha Malhotra
………Shishir Krishna Sharma
There have been many playback singers like
Lalita Deulkar, Sulochna Kadam, Mubarak Begum, Meena Kapoor, Jagjit Kaur,
Madhubala Zaveri and Kamal Barot in the field of Hindi film music, their
contribution is significant even in the limited work they did. With their
talent they made a mark but soon they left this glittering world due to various
reasons. Among such highly talented singers is the sweet voiced singer, Sudha
Malhotra, who was active for just about 10 years but the songs she sang
are fresh even today.
Sudha Malhotra was born in Delhi on 30th November 1936 and raised in Lahore, her hometown. She was the eldest among 4 siblings with 3 younger brothers. Sudha Malhotra says, “All of us at home were inclined towards music. My parents encouraged me to learn singing after they saw my passion for music. At the age of 6, I got a chance to sing in a program in front of Master Ghulam Hyder, that too with his orchestra. I sang Noorjehan’s “tu kaun si badli me mere chaand hai aa ja” from the film “Khandaan” which impressed Master Ghulam Hyader to such an extent that he immediately said that I’ll earn lot of name and fame in forthcoming years. I started taking lessons from Deshbandhu Sethi ji in classical vocal while in Lahore and started singing on All India radio. After the partition we shifted to Delhi where I started learning from Pandit Amar Nath”.
Sudha Malhotra’s father was an academician. He shifted to Bhopal after he got the Principal’s job there. According to Sudha Malhotra, all her maternal relatives were based in Mumbai thus she often visited the city since childhood. Composer Anil Biswas her maternal uncle’s family friend. Anil Biswas once heard Sudha Malhitra sing and he was so impressed that he gave her a chance to sing in his film “Aarzoo”. Her debut song in the film “Aarzoo”, a 1950 release was a solo “mila gaye nain” which was picturised on Shashikala. Sudha Malhotra was just 14 at that time.
After recording the song, she returned to Bhopal. “Mila gaye nain” was highly appreciated by the masses. According to Sudha Malhotra, she was offered many songs after the grand success of her debut song. She used to come all the way from Bhopal to Mumbai for the recordings and after finishing the job returned to Bhopal. This continued for 2-3 years but due to increasing work pressure, eventually she had to permanently shift from Bhopal to Mumbai.
{Contrary to
Sudha Malhotra, Jodhpur based well known Gramophone records collector Shri
Girdharilal Vishwakarma claims that Sudha ji’s debut movie wasn’t “Aarzoo” but
the 1949 release “Akhiri Paigham” aka “The Last Message”. In this movie Sudha
ji had already sung 3 songs composed by Abid Hussain Khan and Sushant Banerjee.
Among these were - 1 solo, 1 female duet (with Uma Devi) & 1 male duet
(with Vinod)}.
Sudha Malhotra says, “I got an opportunity to sing under the baton of all the big-small composers of that era. In a career spanning around 10 years I sang approximately 250 songs in 135 movies. Many of my songs like “mohabbat ki dhun beqararon se poochho” (dil-e-nadan / 1953), “awaaz de raha hai koi aasmaan se” (gauhar / 1953), “ganga ki reti pe bangla uthwai de” (mirza ghalib / 1954), “ghoonghat hataai ke nazrein milai ke” (rangeen raatein / 1956), “maalik tere jahaan me” (ab dilli door nahin / 1957), "mera jala raat bhar diya” (chamak chandni / 1957), “sapnon ka chanda aaya” (Mr.X / 1957), “hum tumhaare hain zara ghar se nikal ke dekh lo” (chalti ka naam gaadi / 1958), “jaane kaisa jadoo kiya re” (parvarish / 1958), “dekho ji mera haal, badal gayi chaal” (solva saal / 1958), “hat hat hat ja re natkhat piya” (swarn sundari / 1958), “kaase kahoon mann ki baat” (dhool ka phool / 1959), “san san san wo hawa chali (kagaz ke phool / 1959) and “gham ki badli me chamakta…kal hamara hai” (kal hamara hai / 1959) were greatly appreciated by the masses.
1950’s was a very busy decade in Sudha Malhotra’s career. Then she got married into the Motwani family, the owners of famed “Chicago Radio”. Sudha Malhotra says, “At that time, people connected with films were not looked up to and working in films was a taboo in respectable families. It was not easy for a newly wed daughter-in-law like me to continue with my singing career but there was one more big reason behind this denial from my in-laws. However out of respect towards the wishes of the elders in the family, I bid adieu to the film world. My last recorded song was a duet with Mukesh, “tum mujhe bhool bhi jao to ye haq hai tumko” for the 1959 release “Didi”. Though the composer for this film was N.Dutta, this particular song was composed by me. Thus, my singing career which started at the age of 14 ultimately came to an end at the age of 23”.
Even after the release of the film “Didi”,
many of Sudha Malhotra’s earlier recorded songs came in market and were
applauded by the audience. Among such songs were “kashti ka khamosh
safar hai” (girlfriend / 1960), “salaam-e-hasrat qubool kar lo” (babar /
1960), “na mai dhan chahoon” (kala bazar / 1960), “assalaam aalekum babu kaho
kaisa haal hai” (kalpana / 1960), “alif zabar aa” (love in simla / 1960), “ye
haath hi apni daulat hai” (masoom / 1960), “jaane waale dekh le” (dekhi teri
bambai / 1960), “jao ji jao badi shaan ke dikhaane waale” (razia sultan /
1961), “sachche ka hai bolbala” (sachche moti / 1962), “kadmon me shama ke
parwaane” (kinare kinare / 1963) and “hum bhi anjaan they” (mai suhagan hoon
/ 1964), and the famous qawwalis “ye ishq ishq hai”, “na to kaarwaan ki talaasha
hai” and “ji chahta hai choom loon” from the film “barsaat ki raat” (1960). Sudha Malhotra says, “Composed by Naushad Saheb, all the songs from the film “Uran Khatola” were initially recorded in my voice. But my voice disappeared from the songs when the movie and the gramophone records released. I also recorded a duet with Geeta Dutt, which was written by Sahir Ludhianvi and composed by Khayyam for a Chetan Anand movie. As the movie remained incomplete, the said song was later used by Yash Chopra in one of his films with the same tune and lyrics but with different voices. And, that song was, “kabhi kabhi mere dil me khyaal aata hai”. During those days I was a very busy singer and had gained a lot of recognition from the qawwalis in “barsaat ki raat”, thus started a lot of conspiracies against me. I can’t say if there was any pressure on the company, but HMV which had a monopoly in the field of film music then didn’t release a single gramophone record of mine during that period. According to Sudha Malhotra, apart from Anil Biswas, Sahir Ludhianvi also played an important role for the shaping up her singing career. In a recorded interview, the recording of which is still in our possession, Sudha Malhotra says, “Sahir saheb wrote some very beautiful lyrics especially for me. After I got engaged, some of my pictures with Sahir Ludhianvi were published in the Blitz. I don’t know who was behind that all and what he or she intended to, but even though the Blitz later apologized, the publication of the pictures was one of the main reasons behind why I wasn’t permitted to sing after my marriage. Had this not happened, maybe I would continue with my singing career after marriage as well”. (While preparing this write up, we again spoke to Sudha ji for the updates and she also supported us. But she flatly refused to talk on the Blitz controversy this time. Out of respect towards her feelings, we also didn’t insist on this issue.) Even after leaving the film world, Sudha Malhotra kept her passion for music alive. She continued her “riyaaz”, gave stage performances and taught music. After a gap of 24 years, on the behest of Raj Kapoor, she sang a duet “ye pyaar tha ya kuchh aur tha” with the singer Anwar in Raj Kapoor’s 1982 release “Prem Rog” which is her last recorded playback song as on today. |
77 years old Sudha Malhotra resides in her bunglow on the 15th Road of Khar (West) with her son, daughter-in-law, and grandchildren. It’s been 4 years since her husband Mr. Girdhar Motwani died. Her son looks after the family business whereas daughter-in-law is busy with the editing and publication of renowned fashion magazines “L Official” and “Seventeen”. Taking an account of singer Sudha Malhotra’s contribution into the field of Hindi Film Music, the Government of India felicitated her with the Padm Shri Award in 2013.