“घट-घट
में संगीत
समाये”
- पंडित फ़ीरोज़
दस्तूर
..............शिशिर
कृष्ण शर्मा
ये
कहना गलत
नहीं होगा
कि हिंदी
सिनेमा की
बुनियाद को
मज़बूती देने
में पारसी
समुदाय का
उल्लेखनीय योगदान
रहा है।
पहली बोलती
फ़िल्म ‘आलमआरा’
के निर्माता-निर्देशक
और ‘इम्पीरियल
मूवीटोन-मुंबई’
के मालिक
आर्देशिर ईरानी,
‘वाडिया मूवीटोन-मुंबई’
के जे.बी.एच.वाडिया
और उनके
छोटे भाई
होमी वाडिया,
‘मिनर्वा मूवीटोन-मुंबई’
के सोहराब
मोदी, ‘माडन
थिएटर्स-
कोलकाता’
के जे.जे.माडन,
संगीतकार फ़ीरोज़शाह
एम.मिस्त्री,
बी.ईरानी
और ख़ुर्शीद
होमजी उर्फ़
सरस्वती देवी
जैसी बहुत
सी सम्मानित
पारसी शख़्सियतें
इस सूची
में शामिल
हैं। पंडित
फ़ीरोज़ दस्तूर
भी एक
ऐसा ही
नाम थे
जो मूल
रूप से
गायक थे
और सुरीले
गायन की
वजह से
ही उन्हें
कैमरे के
सामने आने
का मौक़ा
मिला था।
30 और 40 के दशक
में उन्होंने
बतौर गायक-अभिनेता
कई फ़िल्मों
में काम
किया और
फिर अभिनय
को अलविदा
कहकर वो
पूरी तरह
से हिंदुस्तानी
शास्त्रीय गायन
में डूब
गए।
मुंबई के सबसे पुराने इलाक़ों में से एक ग्रांट रोड के ‘मौलाना शौक़त अली रोड’ स्थित ‘दुबाश बिल्डिंग’ की दूसरी मंज़िल पर, पंडित फ़ीरोज़ दस्तूर के निवास पर हुई मुलाक़ात के दौरान उनकी ज़िंदगी के तमाम पहलुओं पर विस्तार से बातचीत हुई थी। 30 सितम्बर 1919 को मुंबई में जन्मे पंडित फ़ीरोज़ दस्तूर के पिता ‘बेजनजी होरमसजी दस्तूर’ एक नामी बिलियर्ड्स खिलाड़ी थे जिन्होंने अपने वक़्त में राष्ट्रीय चैम्पियनशिप जीती थी। पंडित फ़ीरोज़ दस्तूर के उस फ़्लैट में 20 के दशक में उनके पिता का बिलियर्ड्स सैलून हुआ करता था। उनके पिता हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के दीवाने थे और ख़ुद भी थोड़ा बहुत गुनगुना लेते थे। पंडित फ़ीरोज़ दस्तूर को भी संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से ही मिली थी जो साल में एक बार अपने घर पर किसी भी बड़े गायक को गाने के लिए आमंत्रित करते थे। उस महफ़िल में शामिल होने वाले काफ़ी श्रोताओं में काफ़ी बड़ी तादाद पारसी समुदाय के लोगों की होती थी और मुख्य कार्यक्रम शुरू होने से पहले पंडित फ़ीरोज़ दस्तूर से गवाया जाता था। ऐसे ही एक कार्यक्रम में ‘वाडिया मूवीटोन’ के मालिक ‘जे.बी.एच.वाडिया’ भी मौजूद थे जो उन दिनों अपने बैनर की पहली बोलती फ़िल्म ‘लाल-ए-यमन’ बना रहे थे।
फ़ीरोज़
की आवाज़
उन्हें इतनी
पसंद आयी
कि उन्होंने
फ़ीरोज़ को
अपनी फ़िल्म
में एक
गीत गाने
को कहा।
चूंकि तब
तक प्लेबैक
शुरू नहीं
हुआ था
इसलिए फ़ीरोज़
को वो
गीत कैमरे
के सामने
गाना पड़ा।
उस गीत
के बोल
थे ‘जाओ
सिधारो फतह
पाओ तुम
पे साया
रब का’।
गीतकार थे
मुंशी ’आशिक़’
और संगीत
तैयार किया
था जोसफ़
डेविड और
मास्टर मोहम्मद
ने। फ़ीरोज़
के काम
से जे.बी.एच.वाडिया
इतने ख़ुश
हुए कि
उन्होंने फ़ीरोज़
से न
सिर्फ़ कुछ
और गीत
गवाए बल्कि
उन्हें एक
भूमिका भी
दे दी।
फ़िल्म ‘लाल-ए-यमन’
के वो
बाक़ी गीत
थे, ‘तस्वीरे
ग़म बना
हूं मैं
हैरत में
मुब्तिला हूं’,
‘तोरी हरदम
परवर आस’,
‘मशहूर थे
जहां में
जो इज्जो-शान
वाले’,
‘अब नहीं
धारत धीर
जियरवा’
और ‘ख़ालिक़
तोरी नजरिया
नजरिया रे
तोरी’।
पंडित फ़ीरोज़
दस्तूर का
कहना था,
‘इस तरह
बिना किसी
योजना के
मैं अभिनेता
भी बन
गया। फ़िल्म
‘लाल-ए-यमन’
के लिए
मुझे सौ
रूपए मेहनताना
मिला था
और उस
वक़्त मेरी
उम्र क़रीब
15 बरस थी।‘
साल
1934 में फ़ीरोज़
ने ‘वाडिया
मूवीटोन’
की कुल
प्रदर्शित 4 फ़िल्मों में
से 3,
‘बाग-ए-मिसर’,
‘काला ग़ुलाब’
और ‘वामन
अवतार’
में अभिनय
किया और
कई गीत
भी गाए
जैसे
- ‘कुदरत अयां
चमके-झमके’,
‘पलट गयी
हवा ऐ
मौला’,
‘दिल का
रंज सोहे
नाहीं”,
ऐ दो
जहान वाले
फरियाद सुन
हमारी’,
‘कर तू
सखावत ऐ
नेक बंदे’
और ‘मौला
ने बड़ी
शौक़त दी
इस्लाम की’
(बाग़-ए-मिसर),
‘खालिक़ अक़बर
क़ादिर तू
क़ुदरतवाला’
और ‘नहीं
परे जी
को चैन
ख़ुदाया’
(काला
ग़ुलाब)
और ‘रूप
धरा सदा
जगत के
पालन को’,
‘मांगूं दान
बिकट काज’,
‘ब्याह करे
वो बाला’,
‘सारा जगत
माया बंधन
में क़ैद’,
‘तुम वृक्ष
लतासम रहो
मिल के’
और ‘बहुत
गयी थोड़ी
रही, क्यूं
तू व्याकुल
होय’
(वामन अवतार)।
उस ज़माने
में ‘वाडिया
मूवीटोन’
के स्थायी
संगीतकार थे
जोसेफ़ डेविड
और मास्टर
मोहम्मद और
गीतकार थे
जोसेफ़ डेविड
और मुंशी
‘आशिक़’।
संगीतकार जयदेव
ने भी
‘काला ग़ुलाब’
और ‘वामन
अवतार’
समेत ‘वाडिया
मूवीटोन’
की उस
दौर की
कई फ़िल्मों
में अभिनय
किया था।
‘वामन अवतार’
में वो
नारद की
भूमिका में
नज़र आए
थे। फ़िल्म
‘लाल-ए-यमन’
की सीक्वल
और साल
1935 में बनी
‘नूर-ए-यमन’
‘वाडिया मूवीटोन’
के बैनर
में फ़ीरोज़
की आख़िरी
फ़िल्म साबित
हुई जिसके
बाद ‘वाडिया
मूवीटोन’
छोड़कर वो
‘ईस्टर्न आर्ट्स
कंपनी’
में चले
गए।
फ़ीरोज़
ने ‘ईस्टर्न
आर्ट्स कंपनी’
की फ़िल्मों
‘भारत की
बेटी’,
‘धर्म की
देवी’
(दोनों
1935),
‘प्रेम रात्रि
(नाईट
ऑफ़ लव)
और ‘शेर
का पंजा’
(दोनों
1936)
में रतनबाई,
अमीरबाई कर्नाटकी,
मिज्जन कुमार,
सरदार अख़्तर,
हरि शिवदासानी,
नज़ीर और
गोप जैसे
मंझे हुए
कलाकारों के
साथ न
सिर्फ़ अभिनय
किया बल्कि
उस्ताद झंडे
खां, अनिल
बिस्वास और
शंकर राव
जैसे जाने-माने
संगीतकारों के
निर्देशन में
गीत भी
गाए। ऐसे
ही कुछ
गीत थे
– ‘’भारतवासी करो
आज दुखी
जनसेवा’
(सहगायिका-सरदार
अख़्तर),
‘आज़ाद हूं
दुनिया में
दुनिया है
ये घर
मेरा’,
‘’दर्द ने
दिल में
चमक कर
तुर्फ़ा सामां
कर दिया’
और ‘नारायण
नारायण कर
मधुसूदन की
आरती’
(धर्म
की देवी
/ अनिल बिस्वास),
नैना लड़े
हैं जी
का करूं’
और ‘जो
अपने मुल्क़
की ख़िदमत
में दुख
और दर्द
सहता है’
(प्रेम रात्रि
/ शंकर राव)
और ‘ऐसी
चलत पवन
सुखदाई’
(शेर
का पंजा
/ अनिल बिस्वास)।
इन सभी
फ़िल्मों के
गीतकार थे,
गौरीशंकर लाल
’अख़्तर’।
फ़िल्म ‘भारत
की बेटी’
के संगीतकार
उस्ताद झंडे
खां थे
लेकिन इस
फ़िल्म का
पार्श्वसंगीत और
कुल 12 में से
3 गीतों की
धुनें अनिल
बिस्वास ने
बनाई थीं।
‘धर्म की
देवी’
बतौर स्वतंत्र
संगीतकार अनिल
बिस्वास की
पहली फ़िल्म
थी।
साल
1937 में प्रदर्शित
हुई ‘मिनर्वा
मूवीटोन’
की फ़िल्म
‘आत्मा तरंग’
में हबीब
खां के
संगीत में
फ़ीरोज़ ने
‘पड़ी बिपदा
भारी हे
भगवान’,
‘रख ली
लाज मोरे
प्रभु ने
आज’,
‘झूठा ये
संसार रे
झूठी माया’,
‘जगत में
प्रेम बड़ा
बलवान’,
‘जप नाम
हरि हर
नारायण’
जैसे सोलो
और प्रभा
के साथ
दोगाना ‘कैसी
प्रेम बसंत
ऋतु सुहानी
लागे’
गाए और
अभिनय भी
किया। साल
1938 में उनके
पिता ‘बेजनजी
होरमसजी दस्तूर’
ने ‘राम
मूवीटोन’
के बैनर
में फ़िल्म
‘सुनहरा बाल’
का निर्माण
किया। निर्देशक
थे नरोत्तम
व्यास और
मुंशी ‘आशिक़’
के लिखे
गीतों की
धुनें ख़ुद
फ़ीरोज़ दस्तूर
ने तैयार
की थीं।
इस फ़िल्म
के कलाकार
थे फ़ीरोज़
दस्तूर, इंदु
रानी, शरीफ़ा
बानो, बद्रीप्रसाद
और बसंत
पहलवान और
फ़ीरोज़ ने
इस में
सोलोगीत ‘अब
तो हमको
है पाना’,
‘कृपा कर
तू नारायण’
और ‘तोरी
प्रेम कटारी
लागे कारी’
के अलावा
बद्रीप्रसाद के
साथ मिलकर
युगलगीत ‘छोड़
जाने वाले
की कैसी
आला शान’
गाया था।
साल 1940 में बनी
‘स्टेज फ़िल्म
कंपनी’
की रूस्तम
मोदी द्वारा
निर्देशित फ़िल्म
‘पाक दामन’
में अभिनय
करने के
अलावा के.एम.पवार
के संगीत
में उन्होंने
‘काकाजी’
के साथ
‘हे जगमाली
फूली डाली
डाली’
और ‘मीरा’
के साथ
‘मदभरी अंखियां
जियरा लुभाएं’
जैसे युगलगीतों
के अलावा
सोलो ‘मौला
सुन ले
इल्तिज़ा’
गाया।
पंडित
फ़ीरोज़ दस्तूर
के मुताबिक़
वो भले
ही फ़िल्मों
में काम
कर रहे
थे लेकिन
संतुष्टि उन्हें
सिर्फ़ शास्त्रीय
गायन में
मिलती थी।
साल 1942 में उन्होंने
‘वाडिया मूवीटोन’
की फ़िल्म
‘रिटर्न ऑफ़
तूफ़ान मेल’
में अभिनय
किया और
ज्ञानदत्त के
संगीत में
पंडित इंद्र
का लिखा
सोलो ‘मत
रो मत
रो ओ
मरद कहाने
वाले’
गाया। इसी
बैनर की
साल 1945 में बनी
फ़िल्म ‘शरबती
आंखें’
में उन्होंने
वनमाला, ईश्वरलाल,
सुमति गुप्ते,
आग़ा, और
राजकुमारी शुक्ला
जैसे जाने-माने
कलाकारों के
साथ अभिनय
किया तो
दूसरी तरफ़
फ़ीरोज़ निज़ामी
के संगीत
में पंडित
इन्द्र का
लिखा ‘बिखरे
कितने रूप
जगत में’
और बालम
का लिखा
‘रामा बड़े
गजब की
नार’
जैसे सोलोगीत
भी गाए।
‘सेंट्रल स्टूडियो’
की साल
1947 में बनी
रूस्तम मोदी
निर्देशित फ़िल्म
‘गुल बकावली’
में उन्होंने
मुंशी शेफ़ता
और शौक़त
हाशमी के
लिखे गीतों
की धुनें
बनाईं, मेनकाबाई
के साथ
युगलगीत ‘आलम
शबाब का
है और
जोश पर
जवानी’
और सोलोगीत ‘तूफ़ानखेज
मौजें और
दूर है
किनारा’
और ‘ये
बाग़ ये
बहार मेरे
लिए ख़िजां
हैं’
गाए और
अभिनय भी
किया। फ़िल्म
‘गुल बकावली’
में उनके
अलावा एक
अन्य संगीतकार
‘प्रोफ़ेसर बुंदू
खां’
भी थे।
साल 1949 में प्रदर्शित
हुई फ़िल्म
‘नेकी और
बदी’
में राजकुमारी
के साथ
‘जमुना तट
पर नटवर
गिरधर’
और अमीरबाई
कर्नाटकी के
साथ ‘हमें
न रोको
हमें उनके
पास जाने
दो’
और ‘क्यों
जी सेंट
लगाया है’
जैसे युगलगीत
गाए। ये
सभी गीत
केदार शर्मा
ने लिखे
थे। उल्लेखनीय
है कि
‘नेकी और
बदी’
संगीतकार रोशन
के करियर
की पहली
फ़िल्म थी।
40 के दशक के उत्तरार्ध फ़ीरोज़ ने फ़िल्मी दुनिया को अलविदा कहा और पूरी तरह से संगीत-साधना में रम गए। उन्होंने किराना घराने के पंडित के.डी.जावकर, सवाई गंधर्व और बालकृष्ण बुवा से शास्त्रीयगायन की शिक्षा ली और बहुत जल्द अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खयाल और ठुमरी गायक के तौर पर पहचाने जाने लगे। भाईयों समेत उनके तमाम क़रीबी रिश्तेदार अमेरिका में जा बसे थे जो चाहते थे फ़ीरोज़ उनके साथ आकर रहें लेकिन आजीवन अविवाहित रहे फ़ीरोज़ को अपनी जड़ें छोड़कर जाना मंज़ूर नहीं था। ‘सूरदास संगीत सम्मेलन’, ‘सुर सिंगार संसद’, तानसेन संगीत महोत्सव’ और सवाई गंधर्व महोत्सव’ में उनकी शिरकत अपरिहार्य थी। भारत सरकार का ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ (1986), मध्यप्रदेश सरकार का ‘तानसेन पुरस्कार’ (1988), ‘दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय-सूरत’ की ऑनररी डॉक्ट्रेट (1989) और ‘महाराष्ट्र राज्य गौरव पुरस्कार’ (1990) जैसे कई सम्मान उन्होंने हासिल किए। साल 1977 में बनी श्याम बेनेगल की फ़िल्म ‘भूमिका’ में पंडित फ़ीरोज़ दस्तूर’ ने राग ललित की बंदिश ‘घट घट में राम रमैया’ गाई थी। मुंबई विश्वविद्यालय के संगीत विभाग से वो आजीवन जुड़े रहे और उनके कई शिष्य जैसे सुधा दिवेकर, उत्तरा केलकर, उषा देशपांडे, अच्युत अभ्यंकर, श्रीकांत देशपांडे और चंद्रशेखर वजे आज उनकी गायन-परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
भगवान
कृष्ण के
अनन्य भक्त
रहे पंडित
फ़ीरोज़ दस्तूर
का निधन
89 साल की
उम्र में
दिनांक 9 मई 2008 को हुआ।
उनका अंतिम
संस्कार उनके
शिष्य और
मशहूर शास्त्रीय
गायक गिरीश
सांझगिरी के
हाथों दक्षिण
मुंबई के
चंदनवाड़ी श्मशानघाट
पर हिंदू
रीति-रिवाज
से कर
दिया गया।
We
are thankful to –
Mr.
D.B. Samant, Mr. Harish Raghuvanshi &
Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance, and
support.
Professor
Surjit Singh, Mr. Gajendra Khanna & Mr. Seemakshu Mudgal for providing audio/video
files of the songs of Pt. Feroze Dastoor.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Ms. Akhsher Apoorva for editing the English
translation of the write up.
Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
Pt.Feroze Dastoor On YT Channel BHD
“Ghat Ghat me Sangeet Samaaye” - Pandit Feroze Dastoor
........... Shishir Krishna Sharma
It would be wholly justified to say that the Parsi community has contributed significantly towards strengthening the foundation of Hindi cinema. The list includes reputed personalities like Producer-Director of the first talkie film ‘Alamara’ and the owner of ‘Imperial Movietone-Mumbai’ Ardeshir Irani, J.B.H.Wadia and his younger brother Homi Wadia of ‘Wadia Movietone-Mumbai’, Sohrab Modi of ‘Minerva Movietone - Mumbai’, J.J.Madan of ‘Madan Theatres – Kolkata’, Music directors like Ferozeshah M.Mistry, B.Irani, and Khursheed Homji alias Saraswati Devi and many-many more. Pandit Feroze Dastoor was one such name, he was essentially a singer, and it was due to his melodious singing that he got a chance to appear in front of the camera. He did many films as a Singer-Actor during the 30’s and 40’s and then bid adieu to acting and fully immersed himself in Indian Classical Singing.
When I met Pandit Feroze Dastoor at his 2nd floor residence of ‘Dubash Building’ situated in one of Mumbai’s timeworn areas ‘Maulana Shaukat Ali Road’ on Grant Road, we spoke at length on the various aspects of his life. Born on 30th September 1919 in Mumbai, Pandit Feroze Dastoor’s father ‘Bejan ji Hormas Ji Dastoor’ was a well-known Billiards player who had won the National Championship during his days. In the 20’s, this same flat used to house Pandit Feroze Dastoor’s father’s Billiards Saloon. His father was an enthusiast of Indian Classical Music and could carry a tune very well. Pandit Feroze Dastoor had received his initial training from his father who would invite any renowned singer to his house once every year for a music recital. A large portion of the audience used to be from the Parsi community itself and it was Pandit Feroze Dastoor who was always told to perform the opening act before the main event. It so happened that one such event was attended by owner of ‘Wadia Movietone’ ‘J.B.H.Wadia’ who at that time was making his banner’s first talkie film ‘Laal-E-Yaman’. He liked Feroze’s voice so much that he offered him a song in his film. And because, the concept of playback hadn’t been introduced yet, Feroze had to sing that song in front of the camera. The song was ‘Jao sidharo fateh pao tum pe saaya rab ka’, lyricized by Munshi ‘Aashiq’. The film’s music was composed by Joseph David and Master Mohammad. J.B.H.Wadia was so pleased by Feroze’s work that he not only asked him to record more songs, he also gave him a role in his movie. These songs from the movie ‘Laal-E-Yaman’ were ‘tasveer-e-gham bana hoon mai hairat me mubtila hoon’, ‘tori hardam parvar aas’, ‘mash-hoor the jahan me izzo-shaan waale’, ‘ab nahin dhaarat dheer jiyarwa’ and ‘khaalik tori najariya najariya re tori’. “And just like that, without any planning”, said Pandit Feroze Dastoor, “I became an actor.” He was just 15 years old at this time and had received 100 rupees as remuneration for the movie ‘Laal-E-Yaman’.
In 1934, Feroze acted in 3 of the 4 movies of ‘Wadia Movietone’ released that year and they were ‘Baag-E-Misar’, ‘Kala Ghulab ’ & ‘Waman Avtar’, along with that he sung many songs such as – ‘kudrat ayaan chamke-jhamke’, palat gai hawa aye maula’, ‘dil ka ranj sohe naahi’, ‘aye do jahaan waale fariyaad sun hamaari’, ‘kar tu sakhaawat aye nek bande’ aur ‘maula ne badi shauqat di islam ki’ (Baag-E-Misar), ‘khaaliq Akbar qadir tu kudratwala’ & ‘nahin parey ji ko chain aye khudaya’ (Kala Ghulab ) and ‘roop dhara sada jagat ke paalan ko’, ‘mangoon daan bikat kaaj’, byaah karey wo bala’, ‘sara jagat maya bandhan me qaid’, ‘tum vriksh latasam raho milke’ & ‘bahut gayi thodi rahi kyoon tu vyaakul hoye’ (Waman Avtar). In that era, Joseph David and Master Mohammad were the permanent music directors for ‘Wadia Movietone’ and Joseph David and Munshi ‘Aashiq’ were its permanent lyricists. Initially Music Director Jaydev had also acted in ‘Kala Ghulab’ and ‘Waman Avtar’ along with many other ‘Wadia Movietone’ films of that era. He had portrayed the role of Narad in ‘Waman Avtar’. Laal-E-Yaman’s sequel ‘Noor-E-Yaman’ released in the year 1935 under ‘Wadia Movietone’s banner proved to be Feroze’s last film with ‘Wadia Movietone’ after which he joined ‘Eastern Arts Company’.
Feroze not only acted under the banner of ‘Eastern Arts Company’ in films like ‘Bharat Ki Beti’, ‘Dharm Ki Devi’ (both 1935), ‘Prem Raatri’ (Night Of Love) & ‘Sher Ka Panja’ (both 1936) where he worked with renowned artistes like Ratan Bai, Ameer Bai Karnataki, Mijjan Kumar, Sardar Akhtar, Hari Shivdasani, Nazeer and Gope, he also sang songs under the direction of prominent composers like Ustad Jhande Khan, Anil Biswas and Shankar Rao. Some such songs were ‘bharatwasi karo aaj dukhi jan-sewa’ (co-singer : Sardar Akhtar), ‘azaad hoon duniya me duniya hai ye ghar mera’, ‘dard ne dil me chamak ke turfa saamaan kar diya’ & Narayan Narayan kar madhusoodan ki aarti’ (Dharm Ki Devi / Anil Biswas), ‘naina ladey hain ji ka karoon’ & ‘jo apne mulq ki khidmat me dukh aur dard sehta hai’ (Prem Ratri / Shankar Rao) and ‘aisi chalet pawan sukhdai’ (Sher Ka Panja / Anil Biswas). Gaurishankar Lal ‘Akhtar’ was the lyricist of all these films. Film ‘Bharat Ki Beti’s main music director was Ustad Jhande Khan but the film’s background music and 3 out of the 12 songs were composed by Anil Biswas. ‘Dharm Ki Devi’ was Anil Biswas’s first film as an independent music director.
Feroze acted in ‘Minerva Movietone’s 1937 release ‘Aatma Tarang’ and under the direction of music composer Habib Khan he sang solos, ‘pari bipda bhaari he bhagwan’, ‘rakh li laaj more prabhu ne aaj’, ‘jhootha ye sansaar re jhoothi maya’, ‘jagat me prem bada balwaan’, ‘jap naam hari-har narayan’, and also sang a duet ‘kaisi prem basant ritu suhaani laage’ with Prabha. In the year 1938 his father ‘Bejan ji Hormas Ji dastoor’ wrote & produced ‘Sunehra Baal’ under the banner of ‘Ram Movietone’. Director was Narottam Vyas and Munshi ’Aashiq’s lyrics were composed by Feroze Dastoor himself. The cast of the film comprised of Feroze Dastoor, Indu Rani, Sharifa Bano, Badri Prasad and Basant Pahelwan and Feroze sang a duet ‘chhod jaane waale ki kaisi aala shaan’ with Badri Prasad along with his solo songs ‘ab to humko hai paana’, ‘kripa kar tu narayan’ & ‘tori katari laage kaari’. He acted in 1940’s ‘Pak Daman’ directed by Roustam Modi for the banner of ‘Stage Film Company’ and under the direction of K.M.Pawar’s music, he sang a solo ‘maula sun le iltija’ and duets ‘hey jagmali phooli daali daali’ (co-singer : Kakaji) & ‘madbhari ankhiyan jiyra lubhayein’ (co-singer : Mira).
As per Pandit Feroze Dastoor, though he worked in movies, but it was classical singing that gave him the utmost satisfaction. In 1942 he acted in ‘Return of Toofan Mail’ made under the banner of ‘Wadia Movietone’ and sang a solo ‘mat ro mat ro o marad kahaane waale’ composed by Gyan Dutt and written by Pandit Indra. Feroze acted with well-known actors like Vanmala, Ishwarlal, Sumati Gupte, Agha & Rajkumari Shukla in 1945’s ‘Sharbati Ankhein’ made under the same banner (‘Wadia Movietone’), and also sung solos composed by Feroze Nizami like ‘bikhre kitne roop jagat me’ written by Pandit Indra and ‘Rama badey ghazab ki naar’ written by ‘Balam’. He not only acted in ‘Central Studio’s 1947 release ‘Gul Bakawli’ directed by Roustam Modi, he also composed for songs written by Munshi Shefta and Shaukat hashmi, sang a duet ‘aalam shabaab ka hai aur josh par jawani’ (co-singer : Menka Bai) and solos ‘toofankhej maujein aur door hai kinara’ & ‘ye baag ye bahaar mere liye khijaan hai’. The film ‘Gul Bakawli’ featured another music director ‘Professor Bundu Khan’ as well. In the 1949 release ‘Neki Aur Badi’, he sang duets ‘jamuna tat par natwar girdhar’ (with Rajkumari) and ‘hamey na rook hamey unke paas jaane do’ & ‘kyon ji scent lagaaya hai’ (both with Amirbai Karnataki) which were penned by Kedar Sharma. ‘Neki Aur badi’ was debut movie of composer Roshan’s career.
In late 40’s Feroze said farewell to films and immersed himself completely in musical exercitation. He received tutelage in ‘Kirana-Gharana’ of classical singing by Pandit K.D.Javkar, Sawai gandharv and Bal Krishna Buwa and very soon came to be recognized as a Khayaal & Thumri Singer of global caliber. His brothers and close relatives, all based in U.S.A, wanted him to migrate there but the enduring bachelor Feroze refused to leave his roots. He remained a part of ‘Surdas Sangeet Sammelan’, ‘Sur Singar Sansad’, ‘Tansen Sangeet mahotsav’ & ‘Sawai Gandharv Mahotsav’ till the rest of his days. He was honored by the Indian government’s ‘Sangeet Natak Academy Puraskar’ (1986), Madhya Pradesh government’s “Tansen Puraskar’ (1988), ‘South Gujrat University-Surat’s honorary Doctorate (1989) and ‘Maharashtra Rajya gaurav Puraskar’ (1990). In 1977 he sang a bandish ‘Ghat Ghat me Raam Ramaiya’ in Raag Lalit for Shyam Benegal’s film ‘Bhoomika’. He maintained a lifelong association with Mumbai University’s Music Department. Today his disciples Sudha Divekar, Uttara Kelkar, Usha Deshpande, Achyut Abhyankar, Shrikant Deshpande and Chandrashekhar Vaze have been keeping his musical tradition alive.
A zealous devotee of Lord Krishna, Pandit Feroze Dastoor passed away at the age of 89 on 9th May 2008. His last rites were carried out by his pupil and celebrated classical Singer Girish Sanjhgiri at south Mumbai’s Chandanwadi crematorium as per Hindu rituals.