|| REMEMBRANCE! ON HER 82nd BIRTH ANNIVERSARY TODAY ||
“ऐ इश्क़ ये सब दुनिया वाले बेकार की बातें करते हैं” – शीला दलाया
.........शिशिर
कृष्ण शर्मा
हिन्दी
सिनेमा के
इतिहास में
स्वर्णाक्षरों में
अपना नाम
दर्ज करा
चुकी फ़िल्म
‘मुग़ले आज़म’
की ज़बरदस्त
कामयाबी की
बुनियाद में
थी उसकी
अचम्भित कर
देने वाली
पटकथा, और
संवाद| फ़िल्म
के छोटे
से छोटे
चरित्र तक
को कहानी
में इतनी
ख़ूबसूरती से
पिरोया गया
था कि
उस फ़िल्म
का एक
एक चरित्र
और उन्हें
निभाने वाले
कलाकारों की
शक्लोसूरत आज
भी दर्शकों
के ज़हन
में उतनी
ही ताज़ा
है| इन्हीं
कलाकारों में
से एक
थीं शीला
दलाया, जिन्होंने
फ़िल्म ‘मुग़ले आज़म’ में
अनारकली अर्थात
मधुबाला की
छोटी बहन
सुरैया का
किरदार किया
था| चंचल, शोख़ और
बेहद ख़ूबसूरत
शीला दलाया|
फ़िल्म
‘मुग़ले आज़म’
का मशहूर
गीत
‘ऐ इश्क़
ये सब
दुनिया वाले
बेकार की
बातें करते
हैं’
शीला दलाया
पर ही
फ़िल्माया गया
था|
अजमेर
में स्टेशन
रोड पर
मार्टिंडेल ब्रिज
के ठीक
सामने एक
फोटोग्राफर की
दुकान के
बाहर शोकेस
में लगी
शीला दलाया
की तस्वीर
मुझे हमेशा
ही बेहद
आकर्षित करती
थी| तब
तक मैं
उन्हें मुग़ले
आज़म की
सुरैया के
नाम से
जानता था| पूछने
पर पता
चला था
कि उनका
असली नाम
शीला दलाया
है और
वो अजमेर
की ही
रहने वाली
हैं| ये
सत्तर के
दशक की
बात है,
मैं तब
स्कूल में
पढ़ता था
और मेरी
गर्मी की
छुट्टियां आमतौर
पर अजमेर
में बुआजी
के घर
पर बीतती
थीं|
साल
दर साल
गुज़रते गए| अपना पैतृक
शहर देहरादून
छोड़कर मैं
मुम्बई के
ग्लैमर वर्ल्ड
का हिस्सा
हो गया| इस शहर
ने मुझे
एक फ़िल्म
इतिहासकार और
लेखक की
पहचान दी| भूले बिसरे
रिटायर्ड कलाकारों
को ढूंढ–ढूंढकर
उनका इंटरव्यू
करना और
उन्हें एक
बार फिर
से उनके
चाहने वालों
के सामने
लाना मेरे
कार्यक्षेत्र का
हिस्सा बन
गया| इसी
प्रक्रिया में
एक रोज़
पता चला,
शीला दलाया
को गुज़रे
हुए कई
साल हो
चुके हैं, इन्डियन नेवी
के एक
अधिकारी से
शादी करके
वो शीला
दलाया से
श्रीमती शीला
अवस्थी हो
गयी थीं,
और पति
के रिटायरमेंट
के बाद
उन्होंने ज़िंदगी
के आख़िरी
बरस डिफ़ेंस
कॉलोनी देहरादून
के अपने
बंगले में
गुज़ारे थे|
अगली
देहरादून यात्रा
के दौरान
मैं अपने
पैतृक घर
से महज़
दो किलोमीटर
की दूरी
पर स्थित
उस बंगले
में पहुंचा, तो उसमें
अपने दो
बेटों के साथ
रहने वाली
महिला ने
अपना परिचय
बंगले की
केयरटेकर के
रूप में
दिया| उन्होंने
ये भी
बताया कि
शीला दलाया
के पति
को भी
गुज़रे हुए
कई साल
हो चुके
हैं, उनके
दो बेटे
हैं जिनमें
से एक
असम में
और दूसरे
विदेश में
रहते हैं
और वो
पांच-सात
साल में
एकाध बार
ही देहरादून
आते हैं|
इसी
बीच ग्वालियर
निवासी फ़िल्मप्रेमी
श्री आनंद
पराशर ने
भी शीला
दलाया के
बारे में
महत्वपूर्ण जानकारी
दी कि
भारतीय ईसाई
परिवार में
जन्मी सुश्री
शीला दलाया
के पिता
रेवरेन्ड ए.एम.दलाया 1953 से
56 तक
इंदौर के
क्रिश्चियन कॉलेज
के एक्टिंग
प्रिंसिपल थे
और इस
पद को
संभालने वाले
वो पहले
भारतीय थे।
उन्होंने ये
भी बताया
कि फ़िल्म
मुग़ले आज़म
में काम
करने के
लिए जब
शीला दलाया
मुम्बई गयीं
तो उनके
साथ संरक्षक
के रूप
में कॉलेज
के चतुर्थ
श्रेणी कर्मचारी
श्री यशवंत
राव विन्चुरकर
को भेजा
गया था।
लेकिन न
तो किसी
अन्य स्रोत
से इन
तथ्यों की
पुष्टि हो
पायी और
न ही
शीला दलाया
के बारे
में इससे
ज़्यादा कोई
जानकारी मिल
पायी|
हाल
ही में
किसी काम
से फ़ोन
पर मेरा
सम्पर्क मध्यप्रदेश
के महू
कस्बे के
रहने वाले
लेखक और
इतिहासकार डेन्ज़िल लोबो से
हुआ जो
महू के
स्वर्णिम इतिहास
पर आधा
दर्जन से
ज़्यादा क़िताबें
लिख चुके
हैं| बातचीत
के दौरान
उन्होंने बताया
कि शीला
दलाया के
पिता रेवरेन्ड
ए.एम.दलाया
रिटायरमेंट के
बाद महू
में बस
गए थे
तो मेरे
मन में
शीला दलाया
के बारे
में जानने
की इच्छा
एक बार
फिर से
जागृत हो
उठी| डेन्ज़िल
के माध्यम
से मेरा
संपर्क शीला
दलाया के
भतीजे तरुण
दलाया से
हुआ और
तरूण के
माध्यम से
मैं शीला
के बेटे
अरविन्द अवस्थी
तक पहुंचा| अरविन्द अवस्थी
ने अपनी
मां शीला
के बारे
जो विस्तृत
जानकारी दी, वो अब
आपके सामने
है
:-
शीला
दलाया के
पिता रेवरेंड
अलेक्जेंडर मैथ्यू
(ए.एम.)
दलाया मूल
रूप से
नासिक के
रहने वाले
एक मराठी
प्रोटेस्टेंट ईसाई
परिवार से
थे और
उनकी पत्नी
रत्नागिरी की
थीं| ए.एम.
दलाया का
जन्म 31
मई 1896
को पूना
में हुआ
था| ऑक्सफ़ोर्ड
यूनिवर्सिटी से
थियोलाजी में
पढ़ाई पूरी
करने के
बाद उन्हें
पेशावर के
मशहूर एडवर्ड कॉलेज में प्रोफेसर की
नौकरी मिल
गयी थी|
30 साल
की नौकरी
के दौरान
वो काफ़ी
लम्बे समय
तक एडवर्ड
कॉलेज के
प्रिंसिपल रहे|
शीला
दलाया का
जन्म पेशावर
में 18
दिसंबर 1938
को हुआ
था| वो
चार भाईयों
की इकलौती
बहन थीं
और माता-पिता
की पांच
संतानों में
चौथे नंबर
पर थीं| उनके बड़े
भाई अरविन्द
दलाया भारतीय
वायुसेना में
फाईटर पायलट
थे जो
एयर वाईस
मार्शल के
पद से
रिटायर होने
के बाद
अब दिल्ली
में रहते
हैं| तरूण
दलाया इन्हीं
अरविन्द दलाया
के बेटे
हैं|
रेवरेंड दलाया ने बंटवारे के बाद कराची में बसना चाहा| लेकिन नए बने पाकिस्तान में ग़ैर मुस्लिमों के साथ हो रहे भेदभाव की वजह से साल 1948 में वो सपरिवार भारत लौटकर पूना में रहने लगे| खान अब्दुल गफ्फार खान उनके परिचितों में से थे| जब उन्हें पता चला कि रेवरेंड दलाया ने एडवर्ड कॉलेज का प्रिंसिपल का पद छोड़कर भारत जाने का फ़ैसला कर लिया है तो उन्होंने तत्कालीन बॉम्बे प्रोविंस के मुख्यमंत्री बी.जी. खेर को पत्र लिखकर रेवरेंड दलाया को नौकरी देने का आग्रह किया| और इस तरह रेवरेंड दलाया को मुम्बई के एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रोफेसर की नौकरी मिल गयी| फिर तीन साल बाद वो उज्जैन के माधव कॉलेज और फिर इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ाने लगे|
उधर शीला दलाया का हमेशा से ही सिनेमा की तरफ़ रूझान था| उन दिनों मुग़ले आज़म बन रही थी| बेटी की इच्छा को देखते हुए रेवरेंड दलाया ने पेशावर के अपने पुराने परिचित पृथ्वीराज कपूर से संपर्क किया| पृथ्वीराज कपूर की सिफ़ारिश पर के.आसिफ़ ने शीला दलाया का स्क्रीन टेस्ट लिया और उन्हें सुरैया के किरदार के लिए चुन लिया| शीला उन दिनों स्कूल में पढ़ रही थीं| पढ़ाई के साथ साथ वो फ़िल्म की शूटिंग में भी व्यस्त हो गयीं| तब तक रेवरेंड दलाया चर्च के पास्टर बनकर अजमेर आ गए थे| उधर शीला दलाया किसी रिश्तेदारी में कोचीन गयीं तो वहां उनकी मुलाक़ात नेवल एकेडमी में ट्रेनिंग ले रहे कैडेट जे.एन.अवस्थी से हुई| दोनों की दोस्ती हुई जो जल्द ही मोहब्बत में बदल गयी| और फिर जनवरी 1960 में अजमेर में उन्होंने शादी कर ली|
उसी
साल फिल्म
‘मुग़ले आज़म’
रिलीज़ हुई
और उसने
कामयाबी के
तमाम रिकॉर्ड
तोड़ डाले| शीला दलाया
को भी
फ़िल्म की
इस कामयाबी
ने अच्छी
पहचान दी| लेकिन तब
तक वो
फ़िल्मी दुनिया
को अलविदा
कहकर पूरी
तरह से
अपनी घर-गृहस्थी
में रम
गयी थीं| पति की
पोस्टिंग की
वजह से
शीला का
भी समय
कोचीन,
खड़कवासला-पुणे, मुम्बई, लन्दन स्थित
भारतीय दूतावास, जामनगर, विशाखापट्टनम और
नयी दिल्ली
इत्यादि जगहों
पर गुज़रा| जे.एन.अवस्थी
साल 1984
में नेवल
हेडक्वार्टर से
कोमोडोर के
पद से
रिटायर हुए| उनका डिफेन्स
कॉलोनी देहरादून
का बंगला
साल 1988 में
बनकर तैयार
हुआ|
साल 1990
में वो
और शीला
अपने इस
नए घर
में रहने
आ गए|
जे.एन.अवस्थी
का जन्म
6 जनवरी
1932 को
दिल्ली में
हुआ था| अरविन्द,
जे.एन.अवस्थी
और शीला
के बड़े
बेटे हैं
जो नागांव-असम
के एक
टी एस्टेट
में कार्यरत
थे और
रिटायरमेंट के
बाद अब
गुड़गांव में
रहते हैं| अवस्थी दंपत्ति
के छोटे
बेटे दिलीप
कई साल
पहले अमेरिका
में जा
बसे हैं| कोमोडोर
अवस्थी 10
फ़रवरी 2003
को नागांव-असम
में बड़े
बेटे अरविन्द
के घर
पर स्ट्रोक
की वजह
से गुज़रे|
वो अल्ज़ाईमर
से भी
पीड़ित थे|
उधर
रेवरेंड दलाया
अजमेर के
बाद दिल्ली, महू और
गुड़गांव में
बतौर चर्च
पास्टर व्यस्त
रहने के
बाद रिटायरमेंट
लेकर महू
में बस
गए थे
जहां 4 जनवरी
1990 को
उनका निधन
हुआ| उनकी
पत्नी अर्थात
शीला दलाया
की मां
हृदयरोग से
ग्रसित थीं
और वो
1960 के
दशक में
ही गुज़र
गयी थीं|
अरविंद
अवस्थी के
अनुसार उनकी
मां शीला
(दलाया)
अवस्थी सर्दियों
में देहरादून
से दिल्ली
के पालम
विहार स्थित
छोटे बेटे
के फ्लैट
में रहने
चली जाती
थीं| वो
हाई ब्लडप्रेशर
के साथ
साथ हृदयरोग से भी
पीड़ित थीं| उनका निधन
19 जनवरी
2000 को
दिल्ली में
हार्टअटैक से
हुआ| उस
वक़्त उनकी
उम्र महज़
62 साल
थी|
We are thankful to –
Mr.
Arvind Awasthi (Gurgaon), Mr. Denzil Lobo (Mhow) & Mr. Tarun Dalaya (Delhi)
for their support.
Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance, and support.
Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Mr. Gajendra Khanna for the English translation of the
write up.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
Sheela Dalaya on YT Channel BHD
“Ae Ishq Ye Sab Duniya Waale Bekaar Ki Baatein Karte Hain” – Sheela Dalaya
.........Shishir Krishna Sharma
Film ‘Mughal-e-Azam’’s resounding success which is engraved in golden
letters in the history of Hindi Cinema can be chiefly attributed to its amazing
screenplay and dialogues. Even the smallest characters in the story had been
woven into the story with such beauty that the audience still remembers the
faces of the artists who played those characters as if it was just yesterday.
One such artist was Sheela Dalaya who had played the role of Anarkali
(Madhubala)’s younger sister Suraiya in the film. The Bubbly, charming and
extremely beautiful Sheela Dalaya. Film ‘Mughal-e-Azam’’s famous song ‘Ae Ishq
Ye Sab Duniya Wale Bekaar Ki Baatein Karte Hain’ was picturized on Sheela
Dalaya.
Sheela Dalaya’s photo kept in the showcase of a Photographer’s shop on
Station Road opposite Ajmer’s Martindale Bridge always attracted me immensely.
Till then, I only knew her as the ‘Suraiya of Mughal-e-Azam’. On enquiring, I
came to know that her real name was Sheela Dalaya and she belonged to Ajmer
only. This was in the 1970s when I was in school and would regularly visit my
Buaji’s house in Ajmer during my summer holidays.
The years simply flew by. During these, I left my hometown Dehradun and
become a part of Mumbai’s glamour world. This city gave me recognition as a
film historian and writer. Finding and interviewing forgotten retired artists
and bringing them back in front of their admirers became a part of my work
sphere. In this process, one day I came to know that Sheela Dalaya had passed
away many years back. She became Smt. Sheela Awasthi after marrying an officer
of the Indian Navy and after his retirement, they spent their last years in
their bungalow in Dehradun’s Defence Colony.
During my next visit to Dehradun, I went to their bungalow which is hardly
2 kilometers away from my ancestral home. The lady residing in the bungalow along
with her 2 sons introduced herself as the caretaker of the bungalow. She also
informed me that Sheela Dalaya’s husband had also expired many years back, they
had two sons, one of whom resides in Assam while the other is settled abroad
and they visit Dehradun occasionally, on an average, one odd time in five to
seven years. In the interim, Gwalior Resident and Film lover Shri Anand
Parashar shared some valuable information about Sheela Dalaya with me. He told
me that she was born in an Indian Christian family. Her father Reverend A M
Dalaya was the acting principal in Indore’s Christian College from 1953 to
1956, the first Indian to hold the post. He also informed that when Sheela
Dalaya went to Mumbai to work in ‘Mughal-e-Azam’, a Group IV employee Shri
Yashwant Rao Vinchurkar of the college was also sent with her as a guardian.
However, I could not verify this information from any other source nor could I
get any additional details from other sources about Sheela Dalaya.
Recently, I had a telephonic contact with Madhya Pradesh’s town Mhow
based writer and historian Denzil Lobo who has written over half a dozen books
about the glorious history of Mhow. During our conversation, he informed me
that Sheela Dalaya’s father Reverend A M Dalaya had settled in Mhow after his
retirement which reignited my curiosity about knowing more about Sheela Dalaya.
Denzil helped me get in touch with Sheela Dalaya’s nephew Tarun Dalaya through
whom I got introduced to Sheela’s son Arvind Awasthi. The elaborate details
about Sheela Dalaya which her son Arvind Awasthi gave are now being presented
in front of you here :-
Sheela Dalaya’s father Reverent Alexander Mathew (A.M.) Dalaya belonged
to a Marathi Protestant family of Nasik while his wife belonged to Ratnagiri.
A.M. Dalaya was born in Pune on 31st May 1896. After completing his
studies in Theology from Oxford University, He joined Peshawar’s famous Edward
College as a Professor. During his 30-year long career there, he also performed
duties as Edward College’s Principal for a long time. Sheela Dalaya was born in Peshawar on
18th December 1938. She
was the only sister of four brothers, and she was the fourth of the five
progeny of her parents. Her elder brother Arvind Dalaya was a fighter pilot in
the Indian Air Force who now resides in New Delhi after retiring as a Vice
Marshal. Tarun Dalaya is his son.
Reverend Dalaya planned to settle in Karachi after partition but in
view of the discrimination being faced by non-Muslims in Pakistan, in 1948, he
shifted with his family to Pune. Khan Abdul Ghaffar Khan was one of the
acquaintances of his. When Khan Abdul Ghaffar Khan came to know that Reverend
Dalaya had decided to relinquish his post as Edward College’s principal and migrate
to India, he wrote a letter to Bombay Province’s the then Chief Minister B J
Kher to give him a job. As a result, Reverend Dalaya became a Professor in
Bombay’s Elphinstone College. After three years, he joined Ujjain’s Madhav
College following which he started teaching in Indore’s Christian College.
On the other hand, Sheela Dalaya was always inclined towards cinema.
Mughal-e-Azam was on the floors in those days. In view of her interest,
Reverend Dalaya contacted his old acquaintance from Peshawar Prithviraj Kapoor.
On his recommendation, K. Asif took Sheela Dalaya’s screen test and selected
her for the role of Suraiya. Sheela was still in school in those days. Along
with her studies, she would be busy in the film’s shooting. By then Reverend
Dalaya had come to Ajmer as a Church Pastor. Meanwhile, Sheela Dalaya while
visiting her relatives in Cochin, met Cadet J N Awasthi who was undergoing
training at the Naval Academy there. Their friendship soon turned into love and
they got married in January 1960.
Film ‘Mughal-e-Azam’ released the same year breaking all records of
popularity. Sheela Dalaya also received a lot of recognition, thanks to the
film’s popularity but by then she had already bid adieu to the film world
preferring to spend time in domestic bliss. As a result of her husband’s
postings, she spent time in places like Cochin, Khadakvasla-Pune, Mumbai, the
High Commission of India in London, Jamnagar, Vishkhapatnam and New Delhi. J N
Awasthi retired in 1984 as a Commodore from the Naval Headquarters. Their
Bungalow in Dehradun’s Defence Colony became ready in 1988. The couple started
staying in their new home from 1990 onwards.
J N Awasthi was born in Delhi on 6th
January 1932. Arvind,
J N Awasthi and Sheela’s elder son worked in a tea estate in Nagaon, Assam and is
now settled in Gurgaon post-retirement. The couple’s younger son Dilip is
settled in America since many years. Comodore Awasthi died on 10 February 2003
at Arvind’s home at Nagaon, Assam due to a stroke. He was also suffering from Alzheimer.
On the other hand, Reverend Dalaya after serving as a Pastor in Ajmer,
Delhi, Mhow and Gurgaon settled down in Mhow post-retirement where he passed
away on 4th January 1990. His wife i.e. Sheela Dalaya’s mother was a
heart patient and had sadly passed away way back in the 1960s.
Arvind Awasthi told us that his mother Sheela (Dalaya) Awasthi
preferred to spend the winters in her younger son’s flat in Delhi’s Palam Vihar
over Dehradun. She suffered from High blood pressure as well as a cardiac
condition. She unfortunately passed away as a result of it on 19th
January 2000 in Delhi. She was merely 62 years old at that time.
Though, Sheela Dalaya post-marriage preferred to be seen as a ‘One film wonder’ in order to attend to her family, I have no doubt that had she considered continuing her cine career as well, she would have achieved heights that most artists can only dream of.