‘दिया
ना बुझे
री आज
हमारा’-
कुमकुम
............शिशिर
कृष्ण शर्मा
1950 और
60 के दशक
की मशहूर
अभिनेत्री कुमकुम
ने हिंदी
सिनेमा में
बतौर नृत्यांगना
कदम रखा
था। लेकिन
जल्द ही
उन्हें अभिनय
के मौक़े
भी मिलने
लगे। अपने
दौर की
अग्रणी नायिकाओं
में वो
भले ही
कभी शामिल
नहीं हो
पाईं लेकिन
एक उत्कृष्ट
नृत्यांगना,
सहनायिका और
चरित्र अभिनेत्री
के तौर
पर बेहतरीन
पहचान बनाने
में ज़रूर
वो पूरी
तरह से
कामयाब रहीं।
दो दशकों
के अपने
करियर में
उन्होंने एक
सौ से
ज़्यादा फ़िल्मों
में काम
किया और
फिर शादी
करके विदेश
चली गयीं।
कुमकुम
से मेरी
मुलाक़ात बांद्रा
(पश्चिम)
के 16वें
रास्ते पर
स्थित बहुमंजिली
इमारत ‘कुमकुम’
की सबसे
ऊपरी मंजिल
के उनके
घर पर
हुई थी।
तब तक
वो क़रीब
दो दशक
विदेश में
बिताकर हमेशा
के लिए
भारत वापस
लौट आयी
थीं। सिनेमा
से उनका
रिश्ता पूरी
तरह से
टूट चुका
था और
अब वो
एक आम
गृहिणी की
भूमिका में
पति और
बेटी के
साथ ज़िंदगी
गुज़ार रही
थीं। मीडिया
से वो
दूरी बनाए
हुए थीं
और उन्हें
इंटरव्यू के
लिए मनाने
में मुझे
खासी मशक्क़त
करनी पड़ी
थी। लेकिन
उनसे रूबरू
होने पर
मैंने माहौल
को इतना
घरेलू और
सहज पाया
कि ज़रा
भी एहसास
नहीं हुआ
कि मैं
अपने दौर
की एक
स्टार अभिनेत्री
के सामने
बैठा उनसे
बातें कर
रहा हूं|
कुमकुम को बचपन से ही नृत्य का शौक़ था इसलिए स्कूली पढ़ाई ख़त्म करने के बाद वो कोलकाता से लखनऊ चली आयीं और मशहूर कथक नर्तक शम्भु महाराज की शागिर्दी में नृत्य सीखने लगीं। बहुत जल्द वो कथक में पारंगत भी हो गयीं। कुमकुम बताती हैं, ‘साल 1952 में मैं घूमने के मक़सद से मुम्बई आयी। संगीतकार नौशाद मूलत: लखनऊ के थे इसलिए उनसे मेरी अच्छी पहचान थी। मुम्बई में उनसे मिली तो जल्द ही उनके ज़रिए फ़िल्मोद्योग में ये बात फैल गयी कि एक नयी लड़की आयी है जो बहुत अच्छा नृत्य करती है। नतीजतन मुझे फ़िल्मों में नृत्य के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए। फ़िल्म ‘शीशा’ मेरी पहली फ़िल्म थी, जिसमें मैंने शमशाद बेगम के गाए गीत ‘अंगना बाजे शहनाई रे, आज मोरी जगमग अटरिया’ पर नृत्य किया था।‘
फ़िल्म ‘शीशा’ साल 1952 में प्रदर्शित हुई थी। निर्देशक शाहिद लतीफ़ की इस फ़िल्म के संगीतकार ग़ुलाम मोहम्मद और नायक-नायिका सज्जन और नर्गिस थे। कुमकुम बताती हैं, ‘मेरा असली नाम ज़ेबुन्निसा है और मुझे ज़ेबा कहकर बुलाया जाता था। लेकिन फ़िल्मी सफ़र की शुरूआत में मैंने अपना ये नया और फ़िल्मी नाम ‘कुमकुम’ रख लिया था। साल 1954 में मैंने ‘नूरमहल’ और ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ जैसी फ़िल्मों में नृत्य किया, लेकिन सही मायनों में मुझे पहचान साल 1954 में ही प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘आरपार’ से मिली थी।‘
फ़िल्म
‘आरपार’
के निर्माता-निर्देशक
और नायक
गुरूदत्त थे।
फ़िल्म तैयार
थी और
प्रदर्शन की
तारीख़ भी
तय हो
चुकी थी।
तभी सेंसरबोर्ड
ने शमशाद
बेगम के
गाए और
जगदीप पर
फ़िल्माए गए
इसके शीर्षक-गीत
‘कभी आर
कभी पार
लागा तीरे
नज़र’
को इस
आपत्ति के
साथ फ़िल्म
से हटाने
का आदेश
दे दिया
कि ये
गीत किसी
महिला कलाकार
पर फ़िल्माया
जाना चाहिए
था। कुमकुम
कहती हैं,
‘गुरूदत्त के
पास ज़्यादा
वक़्त नहीं
था। उन्होंने
मुझे बुलाया,
मेरा टेस्ट
लिया और
फिर इस
गीत पर
मुझसे नृत्य
करवाया। इसका
नृत्य निर्देशन
भी उन्होंने
ख़ुद ही
किया था।‘
फ़िल्म
‘आरपार’
और इसके
संगीत को
ज़बर्दस्त कामयाबी
मिली। संगीतकार
ओ.पी.नैयर
के करियर
की ये
पहली हिट
फ़िल्म थी।
इससे पहले
उनकी तीनों
फ़िल्में ‘आसमान’,
‘छमछमाछम’
और ‘बाज़’
असफल हो
गयी थीं।
‘गुरूदत्त फ़िल्म्स
प्राईवेट लिमिटेड’
के बैनर
की भी
ये पहली
फ़िल्म थी।
‘आरपार’
की शानदार
कामयाबी ने
गुरूदत्त को
निर्माता के
रूप में
पहचान दी,
तो ओ.पी.नैयर
और कुमकुम
को भी
फ़िल्मोद्योग में
स्थापित कर
दिया था।
एक
बेमिसाल नृत्यांगना
के तौर
पर पहचान
बना चुकीं
कुमकुम को
अभिनय का
मौक़ा भी
गुरूदत्त ने
ही दिया
था। वो
फ़िल्म थी
साल 1955 में बनी
‘मिस्टर एंड
मिसेज़ 55’।
कुमकुम कहती
हैं, ‘इस
फ़िल्म में
गुरूदत्त ने
मुझे 5 बच्चों की
मां की
भूमिका दी।
मैं उस
वक़्त किशोरावस्था
में थी।
फ़िल्म के
कैमरामैन वी.के.मूर्ति
ने गुरूदत्त
के फ़ैसले
का ये
कहते हुए
विरोध किया
कि ये
तो अभी
ख़ुद ही
बच्ची है।
लेकिन गुरूदत्त
अपने फैसले
पर अड़े
रहे। ‘मिस्टर
एंड मिसेज़
55’
भी बेहद
कामयाब हुई
और मैं
नृत्य के
साथ साथ
अभिनय में
भी व्यस्त
होती चली
गयी।‘
आने
वाले वक़्त
में कुमकुम
ने ‘घर
नम्बर-44’, ‘करभला’,
‘प्यासा’,
‘फंटूश’,
‘मदर इंडिया’,
‘स्वर्णसुन्दरी’,
‘मिस्टर कार्टून
एम.ए.’,
‘करोड़पति’,
‘चार दिल
चार राहें’,
‘आंखें’,
‘गीत’
और ‘धरती’
जैसी कई
फ़िल्मों में
छोटी-बड़ी
भूमिकाएं कीं|
उसी दौरान
उन्होंने ‘घर
संसार’,
‘दिल भी
तेरा हम
भी तेरे’,
‘तेल मालिश
बूट पॉलिश’,
‘किंगकांग’,
‘सन ऑफ़
इंडिया’,
‘मिस्टर एक्स
इन बाम्बे’,
‘क़व्वाली की
रात’,
‘गंगा की
लहरें’,
‘एक सपेरा
एक लुटेरा’,
‘मैं वोही
हूं’,
‘तू नहीं
और सही’
और ‘धमकी’
जैसी हिन्दी
फ़िल्मों के
अलावा भोजपुरी
की ‘गंगा
मैया तोहरे
पीर चढ़ाईबो’,
‘गंगा’
और ‘भौजी’
में नायिका
की भूमिका
भी की|
साल 1961 में प्रदर्शित
हुई ‘गंगा
मैया तोहरे
पीर चढ़ाईबो’
भोजपुरी में
बनी पहली
फिल्म थी,
तो ‘गंगा’
का निर्माण
खुद कुमकुम
ने ही
किया था|
‘ऐ
दिल है
मुश्किल जीना
यहां’
(सी.आई.डी.),
‘जा जा
रे जा
बालमवा’
(बसंत बहार),
‘रेशमी शलवार
कुर्ता जाली
का’
(नया दौर),
‘तेरा जलवा
जिसने देखा’
(उजाला),
‘तेरा तीर
ओबे पीर
दिल के
आरपार है’
(शरारत),
‘मधुबन में
राधिका नाचे
रे’
(कोहेनूर),
‘दगा दगा
वई वई
वई...तुमसे
उल्फत हो
गयी’
(काली टोपी
लाल रूमाल),
‘दिया ना
बुझे री
आज हमारा’
(सन ऑफ़
इंडिया),
‘मेरी सुन
ले अरज
बनवारी’
(आंखें),
‘मेरा नाम
है चमेली’
(राजा और
रंक)
जैसे हिन्दी
फिल्म संगीत
के इतिहास
में दर्ज
कई हिट
गीत कुमकुम
पर ही
फिल्माए गए
थे|
कुमकुम बताती हैं, ‘साल 1973 में बनी ‘जलते बदन’ के बाद मैं फ़िल्मों से अलग हो गयी थी| इस फिल्म में मेरे नायक किरण कुमार थे| लेकिन मेरी आख़िरी प्रदर्शित फिल्म साल 1976 की ‘बाम्बे बाय नाईट’ थी जो काफ़ी वक़्त में और रूक-रूककर बनी थी| ब्लैक एंड व्हाईट में बनी इस फ़िल्म में मेरे नायक संजीव कुमार थे|’
साल
1975 में कुमकुम
की शादी
हुई| लखनऊ
के रहने
वाले उनके
शौहर सज्जाद
अकबर खान
सऊदी अरब
में नौकरी
करते थे|
शादी के
बाद कुमकुम
भी सऊदी
चली गयीं
जहां उन्होंने
करीब 20 बरस गुज़ारे|
साल 1995 में वो
अपने परिवार
के साथ
हमेशा के
लिए भारत
वापस लौट
आयीं|
कुमकुम
बताती हैं,
‘मुम्बई लौटने
पर मेरे
शौहर ने
बिल्डर का
काम शुरू
किया| इस
ज़मीन पर
मेरा बंगला
हुआ करता
था जिसे
तुड़वाकर उन्होंने
यह बहुमंजिली
इमारत बनवाई|
फ़िल्मों से
मेरा रिश्ता
दशकों पहले
टूट चुका
था| मेरे
छोटे से
परिवार में
मेरे शौहर
और एक
बेटी अंदलीब
हैं जिनके
साथ मैं
सुकूनभरी ज़िंदगी
गुज़ार रही
हूं|
विशेष :
कुमकुम
के कथन
के विपरीत
मशहूर कत्थक
नृत्यांगना सितारा
देवी जी
का कहना
था कि
कुमकुम बनारस
के मशहूर
तबला-वादक
वासुदेव महाराज
की बेटी
हैं जो
अभिनेता गोविंदा
के नाना
थे।
दरअसल अक्सर सुनने में आता था कि कुमकुम अभिनेता गोविंदा की सगी मौसी हैं| लेकिन मैंने इस बात को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया क्योंकि मेरी जानकारी के अनुसार गोविंदा की मां निर्मला देवी जो एक ख्यातिप्राप्त ठुमरी गायिका थीं, और अभिनेत्री कुमकुम की पारिवारिक पृष्ठभूमि ही नहीं बल्कि मज़हब भी अलग-अलग थे| लेकिन जब इस विषय में लोग मुझसे भी सवाल करने लगे तो मन में उत्सुकता पैदा हुई| इंटरनेट को खंगाला तो कुमकुम को निर्मला देवी की बहन साबित करने के पक्ष में कई तरह की मज़ेदार दलीलें नज़र आयीं जिनमें प्रमुख थी, निर्मला देवी का मुस्लिम परिवार में जन्म लेकर शादी के बाद हिन्दू हो जाना|
यही
जानकारी फ़िल्मी
कलाकारों पर
छपी एक
किताब में
भी मिली
जिसमें निर्मला
देवी के
तथाकथित धर्मपरिवर्तन
से पहले
का नाम
तक दिया
गया है
जो महज़
एक कल्पना
है| उल्लेखनीय
है कि
निर्मला देवी
के पति
अभिनेता अरूण
आहूजा 1940 के दशक
के एक
जाने-माने
अभिनेता थे।
हालांकि एकाध
जगह ये
भी पढ़ने
को मिला
कि कुमकुम
मुस्लिम नहीं
बल्कि सिंधी
हिन्दू हैं|
ज़ाहिर है
कि ये
तमाम बातें
महज़ अंधेरे
में लाठी
भांजने की
कवायदमात्र थीं|
कुमकुम
और निर्मला
देवी का
सगी बहनें
होना मेरे
लिए भले
ही बेसरपैर
की बात
थी लेकिन
सच का
पता लगाना
भी ज़रूरी
था| अत:
एक रोज़
मैंने ये
सवाल सितारादेवी
जी से
ही पूछ
लिया क्योंकि
सितारा जी
की ही
तरह निर्मला
देवी भी
बनारस की
रहने वाली
थीं और
नृत्य और
संगीत से
जुड़े परिवार
से थीं|
मेरे सवाल
पर सितारा
जी ने
ये कहते
हुए मुहर
लगा दी
कि ‘बाप
एक थे,
माएं अलग-अलग।‘
सितारा जी
से ही
मुझे ये
भी पता
चला कि
कुमकुम की
एक छोटी
बहन भी
हैं, जिनका
नाम राधा
है।
सितारा
जी ने
अपनी बात
का खुलासा
करते हुए
कहा था,
‘पटना या
हुसैनाबाद का
तो मुझे
नहीं पता
लेकिन कुमकुम
और राधा
वासुदेव महाराज
की बेटियां
हैं| निर्मला
देवी वासुदेव
महाराज की
हिंदू ब्याहता
की संतान
थीं जबकि
कुमकुम और
राधा वासुदेव
महाराज की
उपपत्नी से
हैं जो
मुस्लिम थीं।
हम उन्हें
‘मुन्नन आपा’
कहकर पुकारते
थे। मुन्नन
आपा ही
कुमकुम को
शम्भू महाराज
की शागिर्दी
में कत्थक
सिखाने के
लिए लखनऊ
लेकर गयी
थीं|’ सितारा
जी ने
ये भी
बताया था
कि गोविंदा
के नाना
और निर्मला
देवी के
पिता वासुदेव
महाराज ठेठ
बनारसी क्षत्रिय
ख़ानदान से
थे, उनका
असली नाम
वासुदेव नारायण
सिंह था
और वो
एक मशहूर
तबलावादक थे।
उल्लेखनीय है
कि वासुदेव
महाराज के
बेटे और
गोविंदा के
मामा लक्ष्मण
नारायण सिंह
उर्फ़ लच्छू
महाराज भी
एक ख्यातिप्राप्त
तबलावादक थे
जिनका निधन
विगत जुलाई
माह के
आख़िरी हफ्ते
में हुआ|
राष्ट्रीय स्तर
के एक
समाचारपत्र में
छपे इंटरव्यू
में गोविंदा
का ये
कहना कि
‘कुमकुम आंटी
ने आदेश
दिया था...’,
सितारा जी
की कही
बातों की
पुष्टि करता
प्रतीत होता
है|
मैं
कुमकुम जी
से बात
करके सितारा
जी द्वारा
दी गयी
उपरोक्त जानकारी
के अलावा
उनकी जन्मतिथि
‘21 दिसंबर 1935’
की भी
पुष्टि करना
चाहता था
जो मुझे
सूरत निवासी
वरिष्ठ फिल्म
इतिहासकार श्री
हरीश रघुवंशी
द्वारा उपलब्ध
कराई गयी
थी| मैंने
कुमकुम जी
से संपर्क
करने की
कोशिश की
लेकिन जिन
युवक ने
फोन उठाया,
उनकी बातों
से मुझे
महसूस हुआ
कि कुमकुम
अब मीडिया
से बात
ही नहीं
करना चाहतीं|
अत:
मुझे अपुष्ट
तथ्यों को
ही इस
आलेख में
शामिल करना
पड़ा| उक्त
जन्मतिथि के
अनुसार कुमकुम
आगामी दिसंबर
माह में
81 साल की
हो जाएंगी|
अंत
में बात
कुमकुम की
छोटी बहन
राधा की,
जिन्होंने राधिका
के नाम
से ‘मिस्टर
एंड मिसेज़
55’
(1955), ‘रात के
राही’,
‘लाल निशान’
(दोनों 1959)
और ‘शोला
जो भड़के’
(1961) जैसी
कुछ फ़िल्मों
में अभिनय
किया था|
फिल्म ‘रात
के राही’
का गीत
‘दाएं बाएं
छुप छुपा
के कहां
चले’
राधिका और
शम्मी कपूर
पर फिल्माया
गया था|
ये गीत
यूट्यूब पर
उपलब्ध है|
राधिका भी
मुम्बई में
ही अपने
परिवार के
साथ रहती
हैं|
(संलग्न चित्र : राधिका और ललिता पंवार फ़िल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज़ 55’ में)
कुमकुम का निधन मंगलवार 28 जुलाई 2020 को मुम्बई में हुआ|
We are thankful to –
Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Mr. Gajendra Khanna for the English translation of the write ups.
Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
Kumkum on YT Channel BHD
“Diya Na Bujhe Ri Aaj Hamara” – Kumkum
……Shishir Krishna Sharma
Kumkum, the famous actress of the 1950s and 60s had entered
Hindi Cinema as a dancer. However, she started getting acting offers very soon.
Although, she could not join the league of the top actresses of her time, she
did manage to achieve recognition as an accomplished dancer, second lead and
character artist. She did over hundred films during her over two-decade long
career and finally settled abroad post-marriage.
I met Kumkum at her home in an apartment complex on the 16th
road of Bandra (West). By then she had returned to India after spending nearly
two decades abroad. Her relation with cinema no longer existed and she was
spending her life as an ordinary housewife with her husband and daughter. She
maintains a distance from the media and I had to make significant efforts to
convince her for this interview. However, after meeting her face to face, I
could make such a homely and comfortable atmosphere, it did not feel as if I
was sitting and talking with a star actress of her time.
Kumkum recalls, “My father Nawab Manzoor Hassan Khan was a
landlord of Hussainabad near Patna. We had huge areas of land and at one time
our family owned more than half of Patna. I was born in Hussainabad. When I was
two-and-a-half-year-old, we shifted to Patna. Times changed and we lost the
Nawabdom. Though, the status and luxury of Nawabdom remained, the sources of
income had dried up. Thus, our financial condition started deteriorating. When
I was five, we were forced to leave Patna for Kolkata.”
Kumkum was fond of dancing from childhood. Therefore, after
finishing her schooling She went to Lucknow and started formally learning dance
from the famous Kathak master Shambhu Maharaj. She soon became adept in Kathak.
She recalls, “I had come to Mumbai for a leisure trip in 1952. Since, composer
Naushad was originally from Lucknow, I was well acquainted with him. When, I
met him, it spread among the film industry that a new girl has come who is an
excellent dancer. I then started getting offers to dance in Hindi films. The
first song I got as a dancer was the song “Angana Baaje Shehnai Re, Aaj Mori
Jagmag Atariya” in the film ‘Sheesha’ which was sung by Singer Shamshad Begum.
Film ‘Sheesha’ released in 1952. Shahid Lateef was the
Director of the movie which was composed by Ghulam Mohammad. The main leads
were Sajjan and Nargis. Kumkum says, “My original name is Zebunnissa and people
used to call me Zeba. However, on entering the film world, I got the new screen
name of Kumkum. I got dancing opportunities in the films ‘Noor Mahal’ and ‘Mirza
Ghalib’ in 1954. However, I got real recognition with the film ‘Aar Paar’ which
also released in 1954.
Film ‘Aar Paar’s producer-director and lead was Guru Dutt.
The film was ready for release and its date of release had been fixed. At that
time, censor board objected to the Shamshad Begum sung song, “Kabhi Aar Kabhi
Paar Laga Teere Nazar” which was picturized on Jagdeep insisting that it be
picturized on a lady artist. Guru Dutt did not have much time. He called me for
a screen test and thus, the song was picturized on me which was also
choreographed by Guru Dutt himself.”
Film ‘Aar Paar’ and its music was a massive hit. It was the first hit in the career of composer O.P.Nayyar. His earlier three films, ‘Aasmaan’, ‘Chham Chhama Chham’ and ‘Baaz’ had not done very well commercially. This film was the first one under the banner of “Guru Dutt Films Pvt Ltd”. The success of the film gave recognition to Guru Dutt as a producer and established the careers of O.P.Nayyar and Kumkum.
Kumkum, who was already recognized as an excellent dancer,
also got an acting opportunity soon, thanks to Guru Dutt’s film ‘Mr & Mrs
55’ (1955). She recalls, “I was given the role of a mother of five children. I
was still young at that time. The movie’s cameraman V K Murthy objected to it,
saying I was still like a child myself, but it did not deter Guru Dutt. This
movie was also a big hit and I started getting opportunities as a dancer as
well as actress.”
She did small roles in movies like “House No 44”, “Kar
Bhala”, ‘Pyasa’, ‘Funtoosh”, “Mother India”, “Swarna Sundari”, “Mr Qartoon
M.A.”, “Karodpati”, “Chaar Dil Chaar Raahen”, “Aankhen”, “Geet” and Dharti.
During this time, she did lead roles in movies like “Ghar Sansaar”, “Dil Bhi
Tera Hum Bhi Tere”, “Tel Maalish Boot Polish”, “King Kong”, “Son of India”, “Mr
X in Bombay”, “Qawwali Ki Raat”, “Ganga Ki Lehren”, “Ek Sapera Ek Lutera”,
“Main Wohi Hoon”, “Tu Nahin Aur Sahi” and “Dhamki”. She also acted in the
Bhojpuri movies “Ganga Maiya Tohre Peer Chadhaibo”, “Ganga” and “Bhauji” as heroine”.
While the 1961 release, “Ganga Maiya Tohre Peer Chadhaibo” was the first ever
Bhojpuri film, “Ganga” was produced by Kumkum herself.
Many Evergreen hits like ‘Ae Dil Hai Mushqil Jeena Yahaan’ (C.I.D.), ‘Ja Ja Re Ja Balamwa’ (Basant Bahaar), ‘Reshmi Salwar Kurta Jaali Ka’ (Naya Daur), ‘Tera Jalwa Jisne Dekha’ (Ujala), ‘Tera Teer O Bepeer Dil Ke Aar Paar Hai’ (Shararat), ‘Madhuban Mein Radhika Naache Re’ (Kohinoor), “Daga Daga Wai Wai Wai … Tumse Ulfat Ho Gayi’ (Kali Topi Laal Roomal), ‘Diya Na Bujhe Ri Aaj Hamara’(Son of India), ‘Meri Sun Le Araj Banwari’ (Aankhen) and ‘Mera Naam Hai Chameli’ (Raja Aur Rank), were all picturised on her.
Kumkum recalls, “I bid adieu to the film world after the
1973 release ‘Jalte Badan’. My hero in the movie was Kiran Kumar. However, my
last released film was ‘Bombay By Night’ (1976) which was made over a long
period with lots of delays in between the shooting schedules. My hero in that
movie made in Black & White was Sanjeev Kumar.”
Kumkum got married in the year 1975. Her Husband Sajjad
Akbar Khan belonged to Lucknow and used to work in Saudi Arabia. After her
marriage Kumkum also shifted to Saudi Arabia and spent nearly twenty years
there. She returned to India for good in the year 1995 with her family.
Kumkum tells us, “On returning to Mumbai, my husband started
working as a builder. He made this building on the land where my bungalow used
to stand. My relations with the film world had been severed decades ago. I am
now leading a life of bliss with my small family comprising of my Husband and
my daughter Andaleeb.”
Special Note:
Contrary to the statement of Kumkum, famous Kathak Danseuse Sitara Devi had told me that Kumkum was the daughter of Shri Vasudev Maharaj, the famous table maestro of Banaras who was the maternal grandfather of actor Govinda.
It used to be often heard that Kumkum is the maternal aunt
of Govinda. However, I never took it seriously as according to my information,
Govinda’s mother Nirmala Devi, who was a famous thumri singer, had a totally
different family background from Kumkum and even their religions were not the
same. However, when people started asking me about this, my curiosity got also
aroused. Internet searches suggested many interesting arguments, primary among
which was that Nirmala Devi was born into a Muslim family and embraced Hinduism
later. The same information is found published in a book on film artistes in
which even her name before so called ‘change of religion’ is mentioned, which
is nothing but the result of funny imagination. It should be noted that her
husband Arun Ahuja was a well-known actor in the 1940s. One of the articles
somewhere even said that Kumkum was not a Muslim but a Hindu from Sindh. It’s
obvious that all these ideas were far from the truth.
Even though, to me, the idea of Kumkum and Nirmala Devi
being real sisters was baseless, but it was necessary to dig out the truth.
Therefore, one day I asked Sitara Devi ji herself because like Nirmala Devi,
she also was from Banaras and her family was also involved with dance and
music. Sitara ji told me, that both shared a father, but they had different
mothers. Sitara ji also told me that Kumkum has a younger sister named Radha
too.
Sitara ji elaborated that she doesn’t know about Patna or
Hussainabad but Kumkum and Radha are the daughters of Vasudev Maharaj. Nirmala
Devi was the daughter from Vasudev Maharaj’s Hindu covert whereas Kumkum and
Radha were borne by his mistress who was a Muslim. She said, “We used to call
her Munnan Aapa. It was Munnan Aapa who had taken her daughter Kumkum to
Lucknow to learn Kathak under the tutelage of Shambhu Mharaj.” Sitara ji also
told me that Govinda’s Maternal Grandfather and Nirmala Devi’s father was from
a prominent Kshatriya family of Banaras, that his real name was Vasudev Narayan
Singh and that he was a famous table player. It’s important to note that
Vasudev Maharaj’s son and Govinda’s Maternal Uncle Lakshman Narayan Singh alias
Lachchu Maharaj was also a famous table player who passed away in the last week
of the previous July. Govinda’s word - ‘Kumkum aunty ordered me…’ in an
interview published in a national level newspaper seems to confirm Sitara Devi
ji’s above stated statement.
I wanted to discuss this point as well as confirm whether
her date of birth, ’21 December 1935’ as shared by the Surat based eminent film
historian Shri Harish Raghuvanshi ji was correct. I tried to contact Kumkum ji
but the youth who picked up her phone gave me an impression that Kumkum ji is
no longer interested in talking to the medium. Hence, I was forced to include
these unsubstantiated points in my writeup. As per the above birth date, Kumkum
ji will turn 81 in the coming month of December.
Kumkum died in
Mumbai on Tuesday, 28 July 2020.