“फिर
वोही दिल
लाया हूं”
– जॉय मुकर्जी
..........शिशिर
कृष्ण शर्मा
स्टार
अभिनेता अशोक
कुमार के
भांजे...निर्माता
शशधर मुकर्जी
के बेटे...’फ़िल्मालय
स्टूडियो’
के साझीदारों
में से
एक...अपने
दौर के
सुपरस्टार...और
इन सबसे
बढ़कर मेरे
पसंदीदा संगीतकार
ओ.पी.नैयर
की
‘एक मुसाफ़िर
एक हसीना’,
‘फिर वोही
दिल लाया
हूं’
और
‘दिल और
मोहब्बत’
जैसी सुपर
हिट फ़िल्मों
के नायक...ज़ाहिर
है मेरे
ज़हन में
जॉय मुकर्जी
की छवि
एक ‘लार्जर
दैन लाईफ़’
स्टार की
थी। यही
वजह थी
कि ‘साप्ताहिक
सहारा समय’
के अपने
कॉलम
‘क्या भूलूं
क्या याद
करूं’
में इंटरव्यू
के लिए
जॉय मुकर्जी
को फ़ोन
करते समय
मैं थोड़ा
घबराया हुआ
सा था
कि पता
नहीं वो
सीधे मुंह
बात भी
करेंगे या
नहीं। लेकिन
फ़ोन पर
उनके साथ
हुई संक्षिप्त
सी बातचीत
ने उनके
प्रति मेरी
तमाम धारणाओं
को सिरे
से ख़ारिज
कर दिया।
उनकी आवाज़
में ख़ासी
गर्मजोशी थी
और बिना
किसी नानुकुर
के उन्होंने
मुझे मिलने
का समय
दे दिया
था।
जॉय
मुकर्जी के
पिता शशधर
मुकर्जी मूलत:
झांसी के
एक समृद्ध
बंगाली परिवार
के थे।
साल 1933
में हिमांशु
राय और
देविका रानी
ने लंदन
से आकर
मुम्बई के
मालाड
(पश्चिम)
में
‘बॉम्बे टॉकीज़’
की नींव
रखी तो
शशधर मुकर्जी
झांसी से
मुम्बई चले
आए। जॉय
मुकर्जी के
अनुसार उनके
पिता बतौर
साऊण्ड रेकॉर्डिस्ट
‘बॉम्बे टॉकीज़’
से जुड़े
थे,
लेकिन उनकी
मेहनत और
लगन से
प्रभावित होकर
हिमांशु राय
ने जल्द
ही उन्हें
कम्पनी में
पार्टनर बना
लिया था।
उन्हीं दिनों
शशधर मुकर्जी
ने अपने
साले अशोक
कुमार को
भी मुम्बई
बुलाकर
‘बॉम्बे टॉकीज़’
में लैब
असिस्टेंट की
नौकरी पर
रखवा दिया
था। आगे
चलकर अशोक
कुमार हिंदी
सिनेमा के
एक मशहूर
अभिनेता बने।
24 फ़रवरी 1939 को झांसी में जन्मे जॉय मुकर्जी का पालन-पोषण और पढ़ाई-लिखाई मुम्बई में हुई। जॉय के शब्दों में - “जब मैंने होश सम्भाला तो उस वक़्त तक मेरे कई क़रीबी रिश्तेदार फ़िल्मों में अपनी जगह बना चुके थे। लेकिन फ़िल्मों में मेरी ज़रा भी दिलचस्पी नहीं थी। बल्कि मुझे तो बचपन से ही ख़ुद को फ़िल्मी परिवार का बताते हुए संकोच होता था। मेरे चचेरे भाई निर्देशक राम मुकर्जी फ़िल्म ‘हम हिंदुस्तानी’ बना रहे थे। इस फ़िल्म के निर्माता मेरे पिता थे और उनकी कम्पनी ‘फ़िल्मालय’ के बैनर में बनने वाली ये दूसरी फ़िल्म थी। साल 1959 में प्रदर्शित हुई ‘फ़िल्मालय’ की पहली फ़िल्म ‘दिल देके देखो’ बहुत बड़ी हिट साबित हुई थी।
फ़िल्म ‘हम हिंदुस्तानी’ के नायक सुनील दत्त के छोटे भाई की भूमिका के लिए राम मुकर्जी किसी नए लड़के की तलाश में थे। मैं उन दिनों कॉलेज में पढ़ रहा था। मेरी दिलचस्पी खेलकूद में थी और मेरा ज़्यादातर समय कुश्ती, टेनिस और फ़ुटबॉल खेलने में बीतता था। अचानक एक रोज़ राम ने मुझसे ‘हम हिंदुस्तानी’ की वो भूमिका करने को कहा लेकिन चूंकि फ़िल्मों के लिए मैं मानसिक तौर पर तैयार नहीं था इसलिए मैंने साफ़ इंकार कर दिया।“जॉय
के मुताबिक
राम मुकर्जी
ने उनसे
कहा,
“अगर मैं
तुम्हें तुम्हारी
पॉकेटमनी पन्द्रह
रूपए की
जगह दो
सौ रूपए
दूं तो?”
ये सुनते
ही जॉय
ने पैसे
के लालच
में फ़िल्म
में काम
करने के
लिए हामी
भर दी।
लेकिन उस
दौर की
कोई भी
मशहूर हिरोईन
जॉय के
साथ काम
करने को
तैयार नहीं
हुई। मजबूरन
जॉय की
हिरोईन की
भूमिका में
हेलन को
लेना पड़ा
जो एक
डांसर के
तौर पर
स्थापित हो
जाने के
बाद अब
एक अभिनेत्री
बनने के
लिए संघर्ष
कर रही
थीं।
जॉय की अगली फ़िल्म ‘लव इन शिमला’ थी| ये फ़िल्म भी ‘फ़िल्मालय’ के ही बैनर में बनी थी। इस फ़िल्म के निर्देशक आर.के.नैयर थे और इसमें जॉय की हिरोईन की भूमिका ‘फ़िल्मालय एक्टिंग स्कूल’ में अभिनय सीख रहीं साधना को दी गयी। साधना इससे पहले साल 1958 में बनी सिंधी फ़िल्म ‘अबाना’ में बतौर सहनायिका काम कर चुकी थीं, जिसकी नायिका शीला रमानी थीं।
जॉय
के अभिनय
करियर को
लेकर उनके
पिता शशधर
मुकर्जी ज़्यादा
आश्वस्त नहीं
थे और
वो नहीं
चाहते थे
कि जॉय
अभिनय में
हाथ आज़माएं।
लेकिन फ़िल्म
‘लव इन
शिमला’
के लेखक
आग़ाजान कश्मीरी
शशधर मुकर्जी
से सहमत
नहीं थे।
उन्हें जॉय
मुकर्जी में
एक भावी
स्टार नज़र
आ रहा
था। ‘लव
इन शिमला’
जॉय मुकर्जी
को आग़ाजान
कश्मीरी की
ज़िद पर
ही मिली
थी। आग़ाजान
कश्मीरी सही
साबित हुए।
‘लव
इन शिमला’
को दर्शकों
ने बहुत
पसंद किया।
जॉय
मुकर्जी के
शब्दों में,
“फ़िल्मों के
प्रति मेरे
नज़रिए में
अभी भी
कोई बदलाव
नहीं आया
था इसलिए
मैंने अपने
किसी भी
दोस्त को
इन फ़िल्मों
के बारे
में बताया
नहीं था।
मेरी पारिवारिक
पृष्ठभूमि का
पता भी
उन्हें तब
चला था
जब उन्होंने
फ़िल्मों के
पोस्टरों पर
मेरा चेहरा
देखा।
‘हम हिंदुस्तानी’
और
‘लव इन
शिमला’,
ये दोनों
ही फ़िल्में
1960 में
प्रदर्शित हुई
थीं।
‘लव इन
शिमला’
एक लो
बजट फ़िल्म
थी लेकिन
ये इतनी
कामयाब हुई
कि मैं
रातोंरात स्टार
बन गया।
मैंने किसी
तरह थर्ड
क्लास में
बी.ए.पास
किया और
फिर फ़िल्मों
में व्यस्त
हो गया।
मुझे बिन
मांगे ही
मोती मिल
गए थे।“
जॉय
मुकर्जी वैजयंतीमाला
के फ़ैन
थे। वैजयंतीमाला
के साथ
काम करने
का उनका
सपना के.अमरनाथ
की फ़िल्म
‘इशारा’
में पूरा
हुआ जो
साल 1964
में प्रदर्शित
हुई थी।
उस दौर
में जॉय
मुकर्जी ने
‘उम्मीद’,
‘एक मुसाफ़िर
एक हसीना’,
‘फिर वोही
दिल लाया
हूं’,
‘ज़िद्दी’,
‘जी चाहता
है’,
‘इशारा’,
‘दूर की
आवाज़’,
‘आओ प्यार
करें’,
‘बहू बेटी’,
‘लव इन
टोक्यो’,
‘ये ज़िंदगी
कितनी हसीन
है’,
‘साज़ और
आवाज़’,
‘शागिर्द’,
‘एक कली
मुस्काई’,
‘दिल और
मोहब्बत’
और
‘एक बार
मुस्कुरा दो’ जैसी
कई बड़ी
और हिट
फ़िल्में कीं।
जॉय के
शब्दों में,
“मेरी फ़िल्में
लगातार हिट
हो रही
थीं। मेरा
आत्मविश्वास बुलन्दियों
पर था।
मुझे लगा,
मैं ख़ुद
ही निर्माता-निर्देशक
क्यों न
बन जाऊं।
मैंने माला
सिन्हा और
शर्मिला टैगोर
को साईन
किया और
फ़िल्म
‘हमसाया’
का निर्माण
आरम्भ कर
दिया। हीरो
मैं ख़ुद
ही था।“
साल
1968 में
प्रदर्शित हुई
‘हमसाया’
जॉय की
बेहद महत्वाकांक्षी
फ़िल्म थी।
इस फ़िल्म
के लिए
उन्होंने बाहर
की कई
फ़िल्मों के
ऑफ़र ठुकराए।
इसके निर्माण
पर खुले
हाथ से
पैसा ख़र्च
किया। संगीत
की ज़िम्मेदारी
अपने पसंदीदा
संगीतकार ओ.पी.नैयर
को दी।
फ़िल्म के
तमाम गीत
सुपरहिट हुए
लेकिन फ़िल्म
नहीं चल
पाई।
(कहते
हैं,
शूटिंग के
दौरान माला
सिन्हा और
शर्मिला टैगोर
के बीच
हुए झगड़ों
ने फ़िल्म
को बहुत
नुक़सान पहुंचाया।
इन दोनों
के बीच
फ़िल्म के
सेट पर
हुई हाथापाई
और माला
सिंहा द्वारा
शर्मिला टैगोर
को थप्पड़
मारे जाने
की ख़बरें
भी अक्सर
सुनने में
आती हैं।)
जॉय मुकर्जी कहते थे, “फ़िल्म ‘हमसाया’ ने मुझे बहुत आर्थिक नुकसान पहुंचाया। इसके बावजूद मैंने हिम्मत बटोरते हुए कुछ समय बाद फ़िल्म ‘लव इन बॉम्बे’ का निर्माण शुरू किया। इस फ़िल्म में मेरी नायिका वहीदा रहमान थीं और संगीत शंकर जयकिशन का था। लेकिन जब तक फ़िल्म बनकर तैयार होती, नायक-नायिकाओं की नयी जमात मैदान में आ धमकी। साल 1971 में पूरी हुई ये फ़िल्म बिकी ही नहीं और आज भी डिब्बे में बन्द पड़ी है। जो मैंने चाहा था, वो मुझे मांगने पर भी नहीं मिला और जो कुछ मेरे हाथ में था, वो भी मैंने खो दिया। मैं कर्ज़े के भारी बोझ के नीचे दब गया।
राजेश खन्ना और ज़ीनत अमान की मेरे द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘छैला बाबू’ को ज़रूर अपवाद के तौर पर सफल फ़िल्मों में रखा जा सकता है। ये फ़िल्म साल 1977 में प्रदर्शित हुई थी।“(जॉय
मुकर्जी द्वारा
निर्मित और
निर्देशित फ़िल्म
‘लव इन
बॉम्बे’
42 सालों
तक डिब्बे
में बन्द
रहने के
बाद 2
अगस्त 2013
को प्रदर्शित
हुई। लेकिन
जॉय मुकर्जी
की किस्मत
में इस
फ़िल्म को
प्रदर्शित होते
देखना नहीं
था। फ़िल्म
उनके निधन
के क़रीब
डेढ़ साल
बाद प्रदर्शित
हुई थी।)
‘हमसाया’ और ‘लव इन बॉम्बे’ के निर्माण और निर्देशन की ज़िम्मेदारियों और फिर असफलताओं की वजह से 1970
का दशक आते आते जॉय मुकर्जी का स्टारडम ख़त्म हो चुका था। ऐसे में कर्ज़ चुकाने के लिए उन्हें मजबूरन ‘एहसान’, ‘पुरस्कार’, ‘मुजरिम’, ‘आग और दाग़’, ‘कहीं आर कहीं पार’ जैसी ‘बी’ और ‘सी’ ग्रेड फ़िल्मों में काम करना पड़ा। “जो कुछ मेरे हाथ में था, वो भी मैंने खो दिया” कहते हुए उनके भीतर का उद्वेलन और उदासी उनके चेहरे और आवाज़ में पूरी तरह झलक पड़े थे।
जॉय मुकर्जी ने क़रीब 32 फ़िल्में बतौर नायक कीं। अपने करियर की आख़िरी दो फ़िल्मों ‘फूलन देवी’ और ‘इंसाफ़ मैं करूंगा’ में वो खलनायक थे। ये दोनों ही फ़िल्में साल 1985 में प्रदर्शित हुई थीं। पिता शशधर मुकर्जी और मां सती रानी के 5 बेटों और 1 बेटी के बीच जॉय दूसरे नम्बर पर थे। अभिनेता अशोक कुमार, अनूप कुमार और किशोर कुमार सती रानी के भाई और जॉय के मामा थे। ‘मुनीमजी’, ‘पेईंग गेस्ट’ ‘लव मैरिज’, ‘अप्रैल फूल’, ‘शर्मीली’ जैसी फ़िल्में देने वाले निर्माता-निर्देशक सुबोध मुकर्जी जॉय के चाचा थे। फ़िल्म ‘हम हिंदुस्तानी’ के निर्देशक राम मुकर्जी जॉय के ताऊ के बेटे थे। अभिनेत्री रानी मुकर्जी इन्हीं राम मुकर्जी की बेटी हैं। ‘सम्बन्ध’ और ‘एक बार मुस्कुरा दो’ जैसी फ़िल्मों के नायक देव मुकर्जी जॉय के छोटे भाई हैं। हिट फ़िल्म ‘वेक अप सिड’ के निर्देशक अयान मुकर्जी देव मुकर्जी के बेटे और निर्देशक आशुतोष गोवारीकर देव के दामाद हैं। अभिनेत्री तनुजा जॉय के एक अन्य भाई शोमू की पत्नी और काजोल शोमू की बेटी हैं। तनुजा साल 1972 में प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘एक बार मुस्कुरा दो’ में देव मुकर्जी और जॉय मुकर्जी के साथ बतौर हिरोईन काम कर चुकी थीं।
जॉय मुकर्जी के परिवार में पत्नी नीलम के अलावा दो बेटे सुजॉय और मोंजॉय और एक बेटी सिमरन हैं। सुजॉय 1990
के दशक की शुरूआत में ‘महबूब मेरे महबूब’, ‘हम हैं कमाल के’, और ‘प्यार प्यार’ जैसी फ़िल्मों में बतौर हीरो नज़र आए थे।
जॉय मुकर्जी साल 2009
में दूरदर्शन पर प्रसारित हुए धारावाहिक ‘ऐ दिले नादां’ में एक अहम भूमिका में नज़र आए थे। इस धारावाहिक का निर्माण उनके बेटे सुजॉय ने किया था।
जॉय मुकर्जी का निधन 9
मार्च 2012
को 73
साल की उम्र में मुम्बई में हुआ।
We are thankful to –
Mr.
Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Mr. Kalakad V. Ganapathy
for the English translation of the write ups.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video
editing.
Joy Mukerjee on YT Channel BHD
“Phir Wohi Dil Laya Hoon”
– Joy Mukerjee
..........Shishir Krishna Sharma
The nephew of star actor
Dada Moni Ashok Kumar…Producer Sasadhar Mukerjee’s son, one of the inheritors
of the famous Filmalaya studios, a superstar during the 60’s and above all, the
hero of super-hit films like “Ek Musafir Ek Haseena”, “Phir wohi dil laya hoon”
and “Dil aur Mohabbat” for which the music was composed by my favorite composer
O.P.Nayyar. It is obvious that I had a larger than life image of Joy Mukerjee.
I was preparing for my
regular column titled “Kya Bhoolon Kya Yaad Karoon” for “Sahara Samay Weekly”.
I was apprehensive about approaching Joy Mukerjee not knowing how he would
reciprocate to my request for an interview. But after speaking to him briefly
over the phone, I realized that my fears were misplaced. His voice brimmed with
enthusiasm and he agreed to meet me for an interview without much ado.
Accompanied by our
cameraman, I reached the venue (Joy Art Gallery located at the entrance of Shastri
Nagar near Lokhandwala circle). This place was rented out for conducting
exhibitions or sale of products for a temporary period. On one portion of the
structure was located Joy Mukerjee’s office where he spent most of the time.
Joy Mukerjee’s photographs
and movie posters adorned his office walls. I was amazed at his friendly
countenance and affable manners. Joy was candid about his personal and
professional lives; however, the glint of sadness and anguish in his voice did
not escape my attention. The reason for the latter was eventually revealed when
he commented, “My life is characterized by a pearl falling into my lap without
my asking for it and alms that I did not receive even when I requested for it”.
Joy Mukerjee’s father Sasadhar
Mukerjee belonged to an affluent Bengali family hailing from Jhansi. In 1933,
Himanshu Rai and Devika Rani came down from London to set up the foundation for
“Bombay Talkies” in Malad (West). Sasadhar Mukerjee reached Mumbai from Jhansi
during this period to get associated with “Bombay Talkies” as a sound
recordist. Sasadhar Mukerjee’s diligence and commitment inspired Himanshu Rai
to make him a partner in his company. Soon enough, Sasadhar invited his wife’s
brother Ashok Kumar Ganguly to visit Mumbai and join “Bombay Talkies” as a lab
assistant. The lab assistant later went on to become a Bollywood icon reprising
various roles as an actor of substance.
Born in Jhansi on 24
February 1939, Joy’s upbringing was in Mumbai. He also did his schooling from
Mumbai. Says Joy, “During my growing years, it dawned on me that a lot of my
relatives had made a name for themselves in Bollywood. But I was least
interested in Bollywood and in acting. I was shy of proclaiming my filmi
background to others. My cousin Ram was directing “Hum Hindustani” that was
produced by my dad. This was the second film under the “Filmalaya” banner. Filmalaya’s
1959 release debut “Dil Deke Dekho” proved to be a major success. Ram was on
the lookout for a second lead for “Hum Hindustani”. It was the role of the
hero’s younger brother. Sunil Dutt was signed to play the lead. I was studying
in college then. I was more active in sports. I used to spend lot of time
indulging in wrestling, tennis and foot ball. So when Ram requested me to play
the role of Sunil Dutt’s brother, I refused point blank as I was not mentally
prepared to become a movie actor.”
Joy quips, “Ram told me
that he would give me Rs 200/- in place of my pocket money Rs 15/- if I agreed
to act in his directorial venture”. Unable to control his avarice, Joy
immediately agreed to act in “Hum Hindustani”.” No top heroine during that era
was willing to play the female lead opposite Joy. So, Ram had no choice but to
engage Helen. Helen was branded a “cabaret dancer” (item girl, in today’s lingo)
in Bollywood and she was trying hard to break away from that image and accept
roles of substance. But Helen did not have it easy.
Joy’s next film was “Love in Simla” made under the Filmalaya banner. R K Nayyar was the director. Sadhana was learning acting in “Filmalay acting school” and she got an opportunity to debut as heroine in “Love in Simla”. Sadhana had earlier played the second lead in a Sindhi film “Abana” that had released in 1958. Sheila Ramani played the lead in this Sindhi film.
Sasadhar Mukerjee was not
too sure about Joy’s chances of success as a hero and so he dissuaded Joy from
trying his hand at acting. Aghajan Kashmiri, who wrote the script for “Love in
Simla” did not agree with Sasadhar Mukerjee as he saw huge star potential in
Joy. It was only due to his insistence that Joy landed the role in “Love in
Simla”. Kashmiri’s prediction proved right and “Love in Simla” was a big hit.
In the words of Joy
Mukerjee, “My opinion about a career in Bollywood had still not changed. So I
did not feel the need to tom-tom about my films in my social circles. My
friends came to know about my filmi antecedents only when they saw me on the
posters of “Love in Simla” and “Hum Hindustani” both of which released in 1960.
The astounding success of a small budget film like “Love in Simla” made me a
star overnight. I completed my BA in third class and then became busy in
films”.
As a great fan of
legendary actress Vyjayanthimala, it was Joy’s dream to work with her. Joy got
an opportunity to play the lead with Vyjayanthimala in the 1964 release
“Ishara” that was filmed by K.Amarnath. This was the period when Joy gave one
successful film after another – “Ummeed”, “Ek Musafir Ek Hasina”, “Door Ki
Awaz”, “Aao Pyar Kare”, “Bahu Beti”, “Phir Wohi Dil Laya Hoon”, “Ziddi”, ”Love
in Tokyo”, “Yeh Zindagi Kitni Haseen Hai”, “ Jee Chahta Hai”.
Says Joy, “I was on
cloud nine as my films continued to succeed at the turnstiles. My
self-confidence was at an all-time high. This triggered a desire in me to
produce and direct films under my own banner. I signed Sharmila Tagore and Mala
Sinha for “Humsaaya” and commenced production. I decided to play the lead”.
The 1968 release
“Humsaaya” was an important film for Joy Mukerjee. He had rejected offers from
outside banners to dedicate his time and effort for the home production. He
spent lavishly for “Humsaaya”. The responsibility of composing music was given
to his favorite music director O.P.Nayyar. All the songs of this movie proved
to be super-hits; however the film tanked and sank without a trace at the box
office.
(It is alleged that the catfights
between the lead actresses of “Humsaaya” caused heavy damage to the movie
schedule. There were reports of fisticuffs between the actresses so much so
that rumours spread thick and fast that Mala Sinha had slapped Sharmila Tagore
during a scuffle on the set).
Joy Mukerjee admits that
“Humsaya” caused him humongous and devastating financial loss - the severity of
which lasted a lifetime. Not losing heart, Joy started work on his next production
– “Love in Bombay” in which Waheeda Rehman was signed to play the female lead
and Shankar Jaikishan were signed on as music directors. Ill luck continued to
plague Joy. When “Love in Bombay” was ready for release in 1971, there were no
takers as a new breed of actors and actresses had started adorning the cloud
line of Bollywood. The film was destined to lie in the cans. Reminisces Joy, “I
could not get what I aspired to have and to add insult to injury, I ended up
losing whatever I had. I was in heavy debt. I directed “Chaila Babu” starring
Rajesh Khanna and Zeenat Aman and to add balm to my wounds, the movie was
declared a hit when it released in 1977.”
(After lying in the cans
for close to 42 years, “Love in Bombay” released on 2nd August 2013.
But Joy did not live to see the day as he passed away 18 months before its
release.)
The failure of “Humsaya”
and the inability to release “Love in Bombay” resulted in Joy Mukerjee losing
his stardom as soon as the 70’s dawned. To repay his debts, Joy was forced to
act in B- and C- grade movies like “Ehsan”, “Puraskar”, “Mujrim”, “Aag aur
Daag”, “Kahin Aar Kahin Par”. This ended up denting his reputation further.
Joy’s sorrow and inner anguish reflected in his face and the sadness that had
crept on his face was palpable.
As a hero, Joy Mukerjee
appeared only in 32 films. In his last two outings – “Phoolan Devi” and “Insaf
Main Karoonga”, Joy took up the role of the villain. Both these films were
released in 1985. Among Sasadhar Mukerjee and Sati Rani’s brood comprising 5
sons and a daughter, Joy was in the number two slot. Actors Ashok Kumar,
Kishore Kumar and Anoop Kumar were Sati Rani’s brothers and Joy’s maternal
uncles. Producer-Director Subodh Mukerjee who is known for movies like
“Munimji”, “Paying guest”, “Love marriage”, “April Fool” and “Sharmilee” was
his paternal uncle (Sasadhar’s younger brother).
Ram Mukerjee who
directed “Hum Hindustani” is Joy’s cousin. Actress Rani Mukerjee is Ram’s
daughter. Deb Mukerjee who played the lead in “Sambandh” and “Ek Bar Muskaro
Do” is Joy’s younger brother. Ashutosh Gowariker is married to Deb’s daughter
while Deb’s son Ayan Mukerjee directed the sleeper hit – “Wake Up Sid”. Joy’s
brother Shomu was married to actress Tanuja and Kajol is their elder daughter.
(Incidentally Tanuja played the lead with Deb and Joy in “Ek Bar Muskura Do”, a
1972 release.)
Joy’s family comprises
spouse Neelam, daughter Simran and sons – Sujoy and Mojoy. Sujoy had featured
in a few films in the early 90’s
like “Mehboob Mere Mehboob”, “Hum Hain Kamal Ke” and “Pyar Pyar” but sadly he
couldn’t achieve a modicum of success that his father had achieved.
In 2009, Joy made his TV debut in the serial “Ae
Dil-E-Nadan” in an important role. This serial was produced by his son Sujoy.
On 9th March 2012, Joy Mukerjee passed away in Mumbai at the age of 73 years.