टुनटुन, बेगमपारा, श्यामा, जबीन, जीवनकला, बेला बोस! ये वो कुछ अभिनेत्रियां थीं या हैं, जिन्होंने साप्ताहिक ‘सहारा समय’ के मेरे कॉलम ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’ और ब्लॉग ‘बीते हुए दिन’ के लिए बेहद साफ़गोई और ईमानदारी के साथ खुलकर अपनी बात रखी| इनके व्यवहार में न तो मुझे किसी तरह का दुराव-छिपाव महसूस हुआ और न ही किसी के प्रति शिकायत| ऐसी ही एक अभिनेत्री हैं सोनिया साहनी, जिनकी चुटीली बातें, हंसना-हंसाना और पारदर्शी व्यवहार किसी को भी प्रभावित करने के लिए पर्याप्त है| सोनिया जी से मेरी मुलाक़ात सबसे पहले ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’ के लिए हुई थी| उसके बाद कभी-कभार ‘सिने एंड टी.वी.आर्टिस्ट एसोसिएशन’ (सिंटा) की सालाना मीटिंगों में दुआ-सलाम होती रही और एकाध बार फ़ोन पर भी बात हुई| और हाल ही में मुझे ब्लॉग ‘बीते हुए दिन’ के लिए अपडेट्स लेने के सिलसिले में एक बार फिर से सोनिया जी से मिलने का मौक़ा मिला|
सोनिया
साहनी के
पिता लाहौर
के और
माता पेशावर
की रहने
वाली थीं| पिता माईनिंग
इंजीनियर थे
और पाकिस्तान
के मशहूर
हिल स्टेशन
मरी की
पहाड़ियों में
उन्होंने सरकार
के लिए
नीलम पत्थर
की कई
खदानों की
खोज की
थी| सोनिया
जी बताती
हैं, “हम
लोग मूलत:
सिख ख़ानदान
से थे
लेकिन मेरे
माता-पिता
ने ईसाई
धर्म अपना
लिया था| पिताजी काम
के सिलसिले
में कश्मीर
आते-जाते
रहते थे| उन्हें कश्मीर
इतना पसंद
था कि
वो कुछ
समय बाद
परिवार समेत
श्रीनगर में
आकर बस
गए थे| मेरा जन्म
31 अगस्त
1946 को
श्रीनगर में
हुआ था| सात बहनों
और दो
भाईयों में
मैं सबसे
छोटी थी|”
सोनिया
जी के
पिताजी ने
अपने सभी
भाईयों को
भी कश्मीर
बुला लिया
था,
जहां वो
पुलवामा में
बस गए
थे|
सोनिया जी
के अनुसार
पुलवामा में
आज भी
उनके चाचा-ताऊ
की काफ़ी
ज़मीनें हैं| सोनिया जी
की मां
श्रीनगर के
जानेमाने ‘टाइंडेल
बिस्को स्कूल’
के प्राइमरी
सेक्शन की
हेडमिस्ट्रेस थीं| इस स्कूल
में शेख
अब्दुल्ला समेत
कश्मीर के
तमाम बड़े
घरानों के
बच्चे पढ़ते
थे| सोनिया
जी बताती
हैं, “मेरी
पढ़ाई लिखाई
श्रीनगर के
गवर्नमेंट गर्ल्स
स्कूल में
हुई| अभिनय
का शौक़
मुझे बचपन
से ही
था| स्कूल
के नाटकों
के अलावा
मैं श्रीनगर
रेडियो के
टॉक शोज़
में भी
बतौर एनाउंसर
/ एंकर हिस्सा
लेती थी
और इस
तरह अच्छी
ख़ासी पॉकेटमनी
बना लिया
करती थी| झूठ इतनी
सहजता से
बोल लेती
थी कि
किसी को
ज़रा भी
शक़ नहीं
होता था| स्कूल में
यूनिट टेस्ट
चल रहे
थे| चूंकि
मैं बिना
तैयारी के
गयी थी
इसलिए पेपर
में कुछ
भी नहीं
लिख पायी| टीचर ने
वजह पूछी
तो मैंने
रोते रोते
बताया कि
मां सख्त़
बीमार हैं
और अस्पताल
में हैं| क्लास का
माहौल ग़मगीन
हो गया| सबने मुझे
सांत्वना दी| तय हुआ
कि मेरा
टेस्ट बाद
में अलग
से ले
लिया जाएगा| लेकिन मेरी
बदकिस्मती,
कि उसी
शाम बाज़ार
में टीचर
को मेरी
मां सब्ज़ी
ख़रीदती दिख
गयीं| भांडा
फूटा और
फिर वोही
हुआ जो
ऐसे मामलों
में हमेशा
से होता
आया है|”
सोनिया
जी श्रीनगर
के एक
ड्रामा ग्रुप
से जुड़ी
हुई थीं| इस ग्रुप
ने मशहूर
अंग्रेज़ी नाटक
‘माय अंकल’स
ड्रीम’ को
हिन्दी-उर्दू
में
‘ख़ालाजान का
ख़्वाब’ के
नाम से
तैयार किया| उन दिनों
अभिनेता आई.एस.जौहर
किसी शूटिंग
के सिलसिले
में कश्मीर
आए हुए
थे| उन्हें
चीफ़ गेस्ट
के तौर
पर नाटक
देखने के
लिए आमंत्रित
किया गया| सोनिया जी
कहती हैं, “जौहर
साहब मेरे
अभिनय से
बेहद प्रभावित
हुए| उन्होंने
मुझसे मुम्बई
आकर मिलने
को कहा| ये साल
1965 की
बात है| मैं उन
दिनों 12वीं
में पढ़
रही थी
सो इम्तहान
देते ही
मुम्बई चली
आयी| साथ
में मेरी
बहन भी
थी| लेकिन
उसे मुम्बई
रास नहीं
आया और
वो पढ़ाई
पूरी करने
के बहाने
जल्द ही
वापस लौट
गयी|”
सोनिया
जी को
मुम्बई आकर
ज़रा भी
संघर्ष नहीं
करना पड़ा| और इसकी
वजह थी, आई.एस.जौहर
के बैनर
के साथ
उनका पांच
साल का
कांट्रेक्ट,
जिसके तहत
उन्हें रहने
के लिए
फ्लैट और
गाड़ी जैसी
तमाम सुखसुविधाओं
के अलावा
हर महीने
अच्छाख़ासा वेतन
भी मिलने
लगा| इस
विषय पर
सोनिया जी
कहती हैं, “शायद
आज भी
मेरे पास
वो सुविधाएं
और वो
बेफ़िक्री न
हो जो
उन दिनों
हुआ करती
थी| मेरा
असली नाम
उषा साहनी
है|
सोनिया मेरा
फ़िल्मी नाम
है जो
मुझे जौहर
साहब ने
दिया था|”
उन
पांच सालों
के दौरान
सोनिया जी
ने
‘जौहर’
और
‘जौहर महमूद’
के टाइटल
वाली सभी
फ़िल्मों में
बतौर नायिका
काम किया| उनकी डेब्यू
फ़िल्म
‘जौहर महमूद
इन गोवा’ (1965) समेत
‘जौहर इन
कश्मीर’(1966),
‘जौहर इन
बॉम्बे’ (1967), ‘मेरा
नाम जौहर’ (1967) और
‘जौहर महमूद
इन हांगकांग’
(1971) इसी
श्रृंखला की
फ़िल्में थीं| उस दौरान
उन्होंने किशोरकुमार
के साथ
‘अक्लमंद’ (1966), देव
कुमार के
साथ
‘रात के
अंधेरे में’(1969) और शैलेन्द्र
के साथ
‘बंदिश’ (1969) जैसी
बाहर की
फ़िल्में भी
कीं| साथ
ही एक
अंग्रेज़ी फ़िल्म
‘माया’ (1966)
में भी
काम किया|
इस फ़िल्म
का निर्माण
अमेरिका की
कंपनी
‘किंग ब्रदर्स
प्रोडक्शन्स’
ने और
निर्देशन हॉलीवुड
के मशहूर
फ़िल्मकार जॉन
बैरी ने
किया था| सोनिया जी
बताती हैं, “जौहर
के बैनर
के साथ
मेरे कांट्रेक्ट
की वजह
से उस
दौरान बाहर
की जितनी
भी फिल्में
मैंने कीं, उन सभी
का कांट्रेक्ट
मेरी जगह
‘जौहर फ़िल्म्स’ के साथ
हुआ करता
था|”
{विशेष :- फ़िल्म ‘बंदिश’ (1969) के हीरो शैलेन्द्र का असली नाम प्रद्युम्नसिंह है और वो पहलवान-अभिनेता दारासिंह के बेटे हैं| दारासिंह की 2 शादियां हुई थीं| उनकी पहली शादी 1937 में महज़ 9 साल की उम्र में कर दी गयी थी| लेकिन पहली पत्नी से कुछ सालों बाद उनका तलाक़ हो गया था | 1945 में जन्मे प्रद्युम्नसिंह दारासिंह की पहली शादी से हैं| प्रद्युम्न ने रामानंद सागर की फिल्म ‘आंखें’ में अकरम नाम के किरदार से अभिनय की शुरूआत की थी| फ़िल्म ‘बंदिश’ में वो ‘शैलेन्द्र’ के नाम से हीरो बनकर आए | ‘बंदिश’ गायक जसपाल सिंह की भी डेब्यू फिल्म थी जो आगे चलकर फिल्म ‘गीत गाता चल’ के गीतों से मशहूर हुए| इस फ़िल्म का निर्माण जसपाल सिंह के जीजा जसबीर सिंह खुराना ने ख़ासतौर से जसपाल सिंह को लांच करने के लिए किया था| इस फ़िल्म में उन्होंने उषा खन्ना के संगीत में अपने करियर का पहला गीत ‘देखो लोगों ये कैसा ज़माना, संभालो संभालो हुआ मैं दीवाना’ गाया था जो एक सोलो था| उधर दारासिंह के बेटे प्रद्युम्न ने 1971 की ‘गंगा तेरा पानी अमृत’ में भी एक रोल किया था| वो अब मेरठ में रहते हैं|}
जौहर
के साथ
कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म
हुआ तो
सोनिया जी
की ‘भावना’, ‘शराफ़त’, और
‘उपासना’ जैसी
दो-चार
और फ़िल्में
बतौर नायिका
/ सहनायिका रिलीज़
हुईं| लेकिन
इन भूमिकाओं
में उनका
करियर ज़्यादा
नहीं चल
पाया| वो
कहती हैं, “1960 का
दशक ख़त्म
होते होते
ब्लैक एंड
व्हाईट फिल्में
बननी बंद
हो गयी
थीं|
इस वजह
से मेरी
भी कई
फ़िल्में बीच
में ही
बंद हो
गयीं| इनमें
से कुछ
में मेरे
नायक संजीव
कुमार थे| उधर रंगीन
फ़िल्मों का
दौर शुरू
हुआ तो
रेखा, हेमा,
राखी जैसी
कई नयी
लड़कियां इंडस्ट्री
में आ
गयीं| नतीजतन
बतौर नायिका
मेरा करियर
महज़
6 साल ही
चल पाया|”
सोनिया
जी ने
साल 1970 में
बनी फ़िल्म
‘दर्पण’ से
कैरेक्टर रोल्स
की शुरूआत
की| वो
कहती हैं, “अभिनय
के इस
नए दौर
में मैंने
कॉमेडी, निगेटिव, चाची, ताई, मां जैसे
हर तरह
के रोल
किये लेकिन
बैनर का
हमेशा ध्यान
रखा| राज
साहब की
‘बॉबी’, बी.आर.
की
’36 घंटे’,
ओ.पी.रल्हन
की
‘हलचल’, मनमोहन
देसाई की
‘चाचा भतीजा’, ‘नवकेतन’ की
‘बुलेट’, ‘हृषिकेश
मुकर्जी की
‘बुड्ढा मिल
गया’ और
मदन मोहला
की
‘शराफ़त’ के
अलावा
‘मालिक’, ‘जंगल
में मंगल’, ‘बाबुल
की गलियां’, ‘साज़िश’, ‘कसौटी’ जैसी कई
फ़िल्में कीं
और साल
1970 से
शुरू हुआ
ये सिलसिला
1990 के
दशक तक
चलता रहा| फ़िल्म
‘बॉबी’ में
मैंने ऋषि
कपूर की
मां का
रोल किया
था|
इस फ़िल्म
में मैंने
आधुनिक और
ग्लैमरस रोल
करके फ़िल्मी
मां की
अब तक
चली आ
रही सीधीसादी
घरेलू औरत
की इमेज
को तोड़ा
था|”
साल
1976 में
गुजरात की
पालिताना रियासत
के महाराजा
शिवेंद्र सिंह से सोनिया
साहनी का
विवाह हुआ| शिवेंद्र सिंह
से उनकी
मुलाक़ात अपनी
एक दोस्त
और अपने
मुंहबोले भाई
विजय के
ज़रिये हुई
थी| सोनिया
जी बताती
हैं, “शिवेंद्र
तलाक़शुदा थे
और पहली
शादी से
उनका एक
बेटा भी
था| हमारी
वो मुलाक़ात
दोस्ती में
और फिर
जल्द ही
प्यार में
बदल गयी| और फिर
2 साल
बाद हमने
शादी कर
ली|”
सोनिया
जी शादी
के बाद
भी अभिनय
करती रहीं| वो कहती
हैं, “जौहर
साहब ने
एक गुरु
की तरह
मेरा मार्गदर्शन
किया और
अभिनय की
बारीकियां और
फ़िल्मी दुनिया
के तौर
तरीक़े समझाए|
उस ज़माने
में बड़े-छोटे
का बहुत
ख्याल रखा
जाता था| वहीदा जी, आशा पारेख
जी जैसी
सीनियर अभिनेत्रियां
सेट पर
आती थीं
तो हम
लोग खड़े
हो जाया
करते थे| एक रोज़
महमूद साहब
को उनके
नाम से
पुकारने पर
जौहर साहब
ने मुझे
सेट पर
सबके बीच
जिस तरह
डांटा था, उसे मैं
कभी नहीं
भूल सकती|”
सोनिया
जी घर-गृहस्थी
में व्यस्त
होती चली
गयी थीं| उनके बेटे
और बेटी
का जन्म
हुआ तो
व्यस्तताएं और
भी बढ़
गयीं| वो
कहती हैं, “ज़िंदगी
सुख से
गुज़र रही
थी| लेकिन
अचानक मेरे
पति बीमार
पड़े और
फिर 28
जून 1990
को लम्बी
बीमारी के
बाद उनका
देहांत हो
गया| मैंने
बामुश्किल ख़ुद
को सम्भाला| बच्चों की
सलाह पर
ख़ालीपन को
दूर करने
के लिए
एक बार
फिर से
ख़ुद को
अभिनय के
लिए तैयार
किया| इस
दौर की
शुरूआत मैंने
सीरियलों से
की| महेश
भट्ट का
‘ज़मीन आसमान’ मेरा पहला
सीरियल था| उसके बाद
‘स्वाभिमान’, ‘स्पर्श’, ‘अर्धांगिनी’, ‘जन्नत’, ‘कुसुम’ और
‘सामने वाली
खिड़की’ जैसे
कई सीरियलों
में काम
किया| ‘बालाजी
टेलीफिल्म्स’
के सीरियलों
की तो
मैं स्थायी
कलाकार थी| इसके अलावा
कई सालों
तक
‘सिने एंड
टी.वी.आर्टिस्ट
एसोसिएशन
- (सिंटा)’
की मैनेजिंग
कमेटी की
सदस्य के
तौर पर
भी मैंने
अपनी सक्रियता
बनाए रखी| मेरा हालिया
सीरियल
‘एंड टी.वी’ का
‘संतोषी मां’
था जिसमें
मैंने दादी
का रोल
किया था|”
सोनिया जी के बेटे और बेटी, दोनों की शादी हो चुकी है| उनका बेटा हॉस्पिटैलिटी बिजनेस में है और एक सफल व्यवसायी है| सोनिया जी की बेटी और दामाद दोनों ही इंडिगो एयरलाइन्स में पायलट हैं|
सोनिया
जी कहती
हैं, “जौहर
साहब की
डांट और
उनकी दी
हुई शिक्षा
का ही
असर था
कि अनुशासन,
संयम और
अच्छा व्यवहार
हमेशा के
लिए मेरी
आदतों में
शामिल हो
चुके थे|
मैं आज
भी सेट
पर समय
पर पहुंचती
हूं| न
पहले कभी
नखरे किये
और न
ही आज
करती हूं|
कभी किसी
को परेशान
नहीं किया|
कभी भी
पैसे के
पीछे नहीं
भागी| यही
वजह है
कि आज
भी लोग
मेरे साथ
बहुत सम्मान
और अपनेपन
से पेश
आते हैं| जीवन की
सबसे बड़ी
कमाई यही
तो है
कि हर
किसी के
मन में
हमारी
‘एक अच्छा
इन्सान’
वाली इमेज
बन जाए|”
“Ankhiyon Ka Noor Hai Tu, Ankhiyon Se Door Hai Tu” – Sonia Sawhney
..........Shishir Krishna Sharma
Tuntun, Begum Para, Jabeen, Jeevankala, Bela Bose! These are the names of some of the actresses who I interviewed for my column, ‘Kya Bhooloon Kya Yaad Karoon’ for the weekly ‘Sahara Samay’ and blog ‘Beete Hue Din’ and who talked to me with complete honesty and transparency. I did not get the feeling of anything being hidden nor any other complaint. Another such actress is Sonia Sawhney, whose interesting way of speaking with a dash of humour and wholehearted behaviour are capable of impressing anyone. I met with Sonia ji for the first time for ‘Kya Bhooloon Kya Yaad Karoon’. Then we interacted during the annual meetings of ‘Cine and TV Artistes Association’ (CINTAA) and then we spoke on the phone occasionally Recently, I got the opportunity to meet Sonia ji in order to get further updates from her for the blog ‘Beete Hue Din’.
Sonia Sawhney’s father was from Lahore and Mother from Peshawar. Her father was a Mining Engineer who had discovered many sapphire mines for the government in Pakistan’s famous hill station Murree. Sonia ji told us, “Though, we were originally a Sikh family, my parents had converted to Christianity. My father would often visit Kashmir for work. He grew so fond of Kashmir that he shifted with the family there after some time. I was born on 31st August 1946 in Srinagar. I was the youngest among seven sisters and two brothers.”
Sonia ji’s father had brought all his brothers to Kashmir where they got settled in Pulwama. According to Sonia ji, her uncles still have lots of land in Pulwama. Sonia ji’s mother was the Head Mistress of the primary section of Srinagar’s well known, ‘Tyndale Bescoe School’. In this school, the children of almost all top families including that of Sheikh Abdullah used to study. Sonia ji tells us, “I was educated at Srinagar’s Government Girls School. I was interested in acting from my childhood. In addition to acting in the school plays, I would participate in Srinagar Radio’s Talk shows as an anchor/announcer which fetched me a decent amount as pocket money! I could lie with such dexterity that no one would doubt a thing. I recall that once our school’s unit tests were in progress. Since, I had given the exam without any preparation, I could not write anything in the exam. When my teacher enquired about it, I replied tearfully that my mother was seriously ill and admitted in the hospital. Instantly, the atmosphere in the class became one of sadness. Everyone consoled me and It was decided that I would be permitted to appear again for the test separately. To my bad luck, that evening, my teacher saw my mother shopping for vegetables in the market. My lie was revealed and all that happens usually in such cases, took place!”
Sonia ji was associated with a drama group of Srinagar. This group had staged the famous English Play, ‘My Uncle’s Dream’s Hindi/Urdu adaptation by the name of ‘Khaala Jaan Ka Khwab’. Actor I S Johar was in Kashmir in those days in connection with a shooting assignment. He had been invited as the chief guest to witness the play. Sonia ji says, “Johar sahib was impressed with my acting and he invited me to Mumbai. This incident is of the year 1965. After I finished my 12th exams, I went to Mumbai with my sister. However, she did not like Mumbai much and went back to Srinagar soon to complete her studies.”
Sonia ji did not have to struggle at all after coming to Mumbai. The reason was, the five-year contract she had signed with I S Johar’s banner, according to which in addition to all facilities like a flat and car she was also given a handsome monthly salary. On the topic she recalls, “Perhaps even today I do not have the facilities and carefree days which I had at that time. My real name is Usha Sawhney. My stage name Sonia was given to me by Johar Sahib himself.”
During those five years Sonia ji played the heroine in all movies with the ‘Johar’ and ‘Johar Mehmood’ titles. This series of movie included her debut film ‘Johar Mehmood in Goa’ (1965), ‘Johar In Kashmir’ (1966), ‘Johar In Bombay’ (1967), ‘Mera Naam Johar’ (1967), and ‘Johar Mahmood in Hong Kong’ (1971). During this period she also did films with other producers like ‘Akalmand’ (1966) with Kishore Kumar, ‘Raat Ke Andhere Mein’ (1969) with Dev Kumar and ‘Bandish’ (1969) with Shailendra. She also worked in an English Movie ‘Maya’ (1966) around this time. This film was produced by America’s ‘King Brothers Productions’ and was directed by Hollywood’s famous film maker John Barry. Sonia ji tell us, “Due to my contract with Johar ji’s banner, all the outside films I did, their contracts used to be with ‘Johar Films’ instead of me.”
{Special :- Film ‘Bandish’ (1969)’s Hero Shailendra’s real name is Pradyumn Singh and he is the son of wrestler Dara Singh. Dara Singh had been married twice. He had first married in 1937 at the early age of 9 years but got divorced few years later. 1945 born Pradyumna Singh is from his first marriage. Pradyumna had started his career in Ramanand Sagar’s film ‘Aankhen’ playing the character of Akram. He came as a hero with the name of ‘Shailendra’ in film ‘Bandish’. ‘Bandish’ was also the debut movie of singer Jaspal Singh who had made a name for himself with the hit songs of film ‘Geet Gaata Chal’. This film ‘Bandish’ was produced by Jaspal Singh’s brother-in-law Jasbir Singh Khurana who had especially made it to launch Jaspal Singh. For this film he had sung his first song ‘Dekho Logon Yeh Kaisa Zamana, Sambhalo Sambhalo Hua Main Deewana’ composed by Usha Khanna. Dara Singh’s son Pradyumn had also done a role in 1971’s ‘Ganga Tera Paani Amrit’. He now lives in Meerut}
After completing her contract with Johar, Sonia ji also did a few more films as a heroine or second lead, in the form of, ‘Bhavna’, ‘Sharafat’ and ‘Upasana’. However, these films failed to provide the required boost to her career. Sonia ji recalls, “Towards the end of 1960s, Black and white movies had almost stopped being made. Due to this many of my movies got shelved mid-way. Sanjeev Kumar was my hero in some of these movies. On the other hand, new heroines like Rekha, Hema, Rakhi etc had entered the industry. As a result, my career as a heroine ran for a mere six years.”
Sonia ji had started doing character roles with 1970s film ‘Darpan’. She says, “During this second phase of my career, I did many types of roles like comedy, negative, Chaachi, Taai, Mother etc but I always chose the banners very carefully. Raaj Saheb’s ‘Bobby’, B R Chopra’s ’36 Ghante’, O P Ralhan’s ‘Hulchul’, Manmohan Desai’s ‘Chacha Bhateeja’, Navketan’s ‘Bullet’, Hrishikesh Mukherjee’s ‘Buddha Mil Gaya’ and Madan Mohala’s ‘Sharafat’ were some of these. Other than this, I also did many movies like ‘Maalik’, ‘Jungle Mein Mangal’, ‘Babul Ki Galiyaan’, ‘Saazish’, ‘Kasauti’ and this phase continued from 1970s to the 1990s. In the film ‘Bobby’ I had done the role of Rishi Kapoor’s mother. In this role, I had broken the mold of a simple homely mother’s image with that of a modern and glamorous role.”
In the year 1976, She got married to Gujrat’s Palitana princely state’s Maharaja Shivendra Singh. Sonia ji had met Shivendra Singh through her friend and a brother like friend Vijay. Sonia ji tells us, “Shivendra was a divorcee who also had a son from his first marriage. Our relationship started as friendship which later turned into love. After nearly two years we decided to get married.”
Sonia ji continued acting after her marriage also. She mentions, “Johar sahib mentored me like a Guru, teaching me not only the intricacies of acting, but also the ways and customs of the film world. In those days, the concept of senior and junior, big and small was very strong. When senior actresses like Waheeda ji, Asha Parekh ji came on the sets, we used to stand up. I can never forget the way Johar sahib scolded me one day on the set when I addressed Mahmood sahib by his name.”
Gradually, Sonia ji got busy in her household activities. After the birth of her son and daughter, she became even more busy. She reminisces, “My life was continuing in comfort but suddenly my husband fell ill. On 28th June 1990, he sadly passed away after a long illness. It was a big jolt for me, and I consoled myself with great difficulty. On my children’s advice, I prepared myself to start acting once again to deal with my grief and loneliness. I started this phase with serials. Mahesh Bhatt’s ‘Zameen Aasmaan’ was my first serial. After this I acted in many serials like ‘Swabhimaan’, ‘Sparsh’, ‘Ardhangini’, ‘Jannat’, ‘Kusum’ and ‘Saamne Waali Khidki’. I had become a regular artist for the serials of ‘Balaji Telefilms’. In addition, I also gave my services for many years as a member of the managing committee of ‘Cine and TV Artistes Association – (CINTAA)’. I also played the Dadi’s role in the recent ‘& TV’ serial, ‘Santoshi Maa’.”
Sonia ji’s son and daughter are both married. Her son is in the hospitality business and is a successful businessman. Her daughter and son-in-law are both pilots with Indigo Airlines.
Sonia ji summarizes, “Johar sahib’s admonishing, education and teaching was the reason that discipline, patience and good behaviour became part of my habit. I still reach the set on time. I never threw any tantrums then and I don’t do it now as well. I never troubled anyone and never ran after money. This is the reason that people still treat me with a lot of respect and belongingness. My career’s biggest earning is that everyone’s image of me is that of ‘a good person”.