देखो
कान्हा नहीं
मानत बतियां’
– माया गोविन्द
........शिशिर
कृष्ण शर्मा
हिन्दी
सिनेमा में
गीतलेखन के
क्षेत्र में
हमेशा से
ही पुरूषों
का एकाधिकार
रहा है,
हालांकि अपवाद
के तौर
पर कभी
कभार महिलाएं
भी इस
विधा में
हाथ आज़माती
रहीं|
जैसे साल
1936 की
फिल्म
‘मैडम फैशन’
में फ़िल्म
की निर्मात्री-निर्देशिका-संगीतकार
जद्दनबाई या
1958 की
फ़िल्म
‘सम्राट चन्द्रगुप्त’ में फ़िल्म
की नायिका
निरूपा रॉय, या फिर
सरोज मोहिनी
नैयर, पद्मा
सचदेव,
रानी मलिक, कौसर मुनीर|
ये सभी
महिलाएं समय
समय पर
अपनी दमदार
उपस्थिति दर्ज
ज़रूर कराती
आयीं लेकिन
गीतलेखन की
मुख्यधारा में
वो कभी भी
शामिल नहीं
हो पायीं| लेकिन इन
सभी के
बीच एक
नाम ऐसा
है जिन्होंने
न सिर्फ़
इस क्षेत्र
में पुरूषों
के वर्चस्व
को तोड़ा
बल्कि लम्बे
समय तक
अपना एक
सम्मानजनक स्थान
भी बनाए
रखा| और
वो नाम
है श्रीमती
माया गोविन्द
का|
साल
1988 में माया
जी के
होम प्रोडक्शन ‘बहार पिक्चर्स’ की
फ़िल्म
‘तोहफ़ा मोहब्बत
का’ प्रदर्शित
हुई थी| माया जी
द्वारा प्रस्तुत
इस फ़िल्म
का निर्देशन
उनके पति
राम गोविन्द
जी ने
किया था| इस फ़िल्म
के निर्माता
थे मुकेश
कुमार जो
राम गोविन्द
जी के
रिश्ते के
भाई थे|
जब मैं
ट्रांसफर लेकर
मुम्बई आया
तो मुझे
पहली पोस्टिंग
पंजाब नेशनल
बैंक की
विलेपार्ले
(पश्चिम)
शाखा में
मिली| ये
शाखा जुहू-विलेपार्ले
डेवलपमेंट स्कीम
(जे.वी.पी.डी.एस.)
के एन.एस.रोड
नम्बर 8
पर स्थित
थी| जुहू
का ये
पॉश इलाक़ा
कई मशहूर
फ़िल्मी हस्तियों
की रिहाईश
के तौर
पर जाना
जाता है| इस शाखा
में नौकरी
के दौरान
मेरा परिचय
बहुत से
जानेमाने फ़िल्मी
लोगों से
हुआ| राम
गोविन्द जी
और मुकेश
कुमार भी
उन्हीं में
से थे
और वो
भी इसी
इलाक़े में,
बैंक के
क़रीब ही
रहते थे| मुकेश कुमार
मेरे हमउम्र
थे और
इसीलिये हमारा
परिचय जल्द
ही दोस्ती
में बदल
गया था| मुकेश कुमार
लखनऊ दूरदर्शन
के मशहूर
धारावाहिक
‘बीबी नातियोंवाली’ की शीर्ष
भूमिका निभाने
वाली अभिनेत्री
प्रमोद बाला
के बेटे
थे| उनके
साथ घर
पर जाना
आना हुआ
तो माया
जी से
भी मुलाक़ात
हुई| दुर्भाग्य
से क़रीब
15 साल
पहले मुकेश
का लम्बी
बीमारी के
बाद निधन
हो गया| लेकिन राम
गोविन्द जी
से कभीकभार
संपर्क होता
रहा| फिर
एक लम्बे
अरसे के
बाद हाल
ही में
एक बार
फिर से
माया जी
और राम
गोविन्द जी
से उनके
घर पर
मुलाक़ात हुई| मक़सद था, ब्लॉग ‘बीते
हुए दिन’ के लिए
उनका इंटरव्यू|
17 जनवरी
1940 को
लखनऊ के
एक खत्री
परिवार में
जन्मीं माया
जी के
पिता श्री
हरनाथ वहाल
कपड़े के
कारोबारी थे| माता पिता
की 3
बेटियों में
माया जी
सबसे बड़ी
थीं| वो
बताती हैं, “हमारा
सरनेम मूलत:
‘बहल’
था जो
आगे चलकर
वहाल हो
गया था| पिताजी का
कारोबार अच्छा
चल रहा
था लेकिन
अचानक ही
उनकी आंखों
की रोशनी
चली गयी| हम तीनों
बहनें बहुत
छोटी थीं| मां एक
सीधीसादी गृहिणी
थीं|
हममें से
कोई भी
ऐसा नहीं
था जो
घर-व्यापार
को संभाल
सके| ऐसे
में हमारी
सभी 3-4
दुकानों और
बंगले पर
पिताजी के
भाईयों ने
कब्ज़ा कर
लिया| और
हम किराए
के मकान
में रहने
पर मजबूर
हो गए|”
माया
जी 5 साल
की हुईं
तो उनके
पिता गुज़र
गए| नतीजतन
घर के
माली हालात
और भी
बदतर होते
चले गए| ऐसे में
माया जी
की मां
के मामा
मदद के
लिए आगे
आये| माया
जी बताती
हैं, “मां
के मामा
की दी
गयी ढाई
सौ रूपये
महीने की
मदद से
हम तीनों
बहनें पलींबढ़ी| मैंने वैदिक
कन्या पाठशाला
से 12वीं
करने के
बाद महिला
कॉलेज से
बी.ए.
किया और
फिर बी.एड.
में दाखिला
ले लिया| बी.एड.
के पहले
साल में
थी कि
मेरी शादी
प्रयागराज
(तत्कालीन इलाहाबाद)
में कर
दी गयी| लेकिन उस
घर में
एक एक
दिन बिताना
मेरे लिए
मुश्किल हो
गया| बहुत
ही अजीब
सा परिवार
था| संस्कारों,
संस्कृति,
साहित्य, संगीत, कला से
किसी का
कोई रिश्ता
नहीं| पीना-पिलाना, रात को
देर से
घर लौटना, बात बात
में गाली
गलौज,
मारपीट|
नतीजतन मैं
तीन महीने
में ही
मां के
घर वापस
लौट आयी|”
लखनऊ
लौटकर माया
जी ने
बी.एड.
के साथ
साथ भातखंडे
संगीत विद्यालय
से 4
साल का
संगीत का
कोर्स किया| शम्भू महाराज
से एक
साल कत्थक
सीखा| लखनऊ
रेडियो की
स्टाफ़ आर्टिस्ट
के तौर
पर कई
रेडियो नाटक
किये| ‘बाल
विद्या मंदिर’ में पढ़ाने
लगीं| साथ
ही लखनऊ
के मशहूर
रंगकर्मी कुंवर
कल्याण सिंह
के नाटकों
में भी
काम करने
लगीं| माया
जी बताती
हैं, “11-12
साल की
उम्र से
मैं कविताएं
भी लिखने
लगी थी| साल 1966 में हमारे
स्कूल में
अभिनेता भारत
भूषण और
उनके निर्माता-निर्देशक
भाई आर.चंद्रा
(रमेश चन्द्र)
आए| आर.चंद्रा
ने नीरज
को अलीगढ़
से बुलाकर
फ़िल्म
‘नयी उमर
की नयी
फ़सल’ के
गीत लिखवाए
थे| साल
1966 में
रिलीज़ हुई
इस फ़िल्म
से नीरज
ने डेब्यू
किया था| आर.चंद्रा
ने मेरी
कविताएं सुनीं
जो उन्हें
बहुत पसंद
आयीं| उन्होंने
उसी वक़्त
मुझे तीन
फिल्मों
‘मेघ मल्हार’, ‘मुशायरा’ और
‘बाप बेटे’ के लिए
साईन कर
लिया|”
कुछ
समय बाद
आर.चंद्रा
के बुलावे
पर माया
जी मुम्बई
आयीं| उन्होंने
फिल्म
‘मुशायरा’ के
लिए 11
गाने लिखे
और फिर
वापस लखनऊ
चली गयीं| इस फ़िल्म
में खैयाम
का संगीत
था| माया
जी के
लखनऊ लौटने
के बाद
आशा भोंसले
की आवाज़
में इस
फ़िल्म के
दो मुजरागीत
रिकॉर्ड भी
हुए| वो
गीत थे,
‘सारी रतिया
मचावे उत्पात
सिपहिया सोने
न दे,
हाए अम्मा’ और
‘हमें हुक्म
था ग़म
उठाना पड़ेगा, इसी ज़िद
पे हमने
जवानी लुटा
दी’| लेकिन
तभी अचानक
आर.चंद्रा
गुज़र गए
और तीनों
ही फ़िल्में
बंद हो
गयीं| आगे
चलकर आर.चंद्रा
के निर्माता
बेटे राकेश
चंद्रा ने
ये दोनों
गीत साल
1975
में बनी
फ़िल्म
‘मुट्ठी भर
चावल’ में
इस्तेमाल किये|
साल
1965-66 में
माया जी
राम गोविन्द
जी के
संपर्क में
आयीं| समस्तीपुर
बिहार के
रहने वाले
मशहूर लेखक-रंगकर्मी
राम गोविन्द
जी,
जिनका असली
नाम गोविन्द
अरोड़ा है, अपने नाटकों
की मुख्य
भूमिका के
लिए एक
अभिनेत्री की
तलाश में
थे और
इसी सिलसिले
में वो
लखनऊ आकर
माया जी
से मिले
थे| माया
जी ने
समस्तीपुर जाकर
नाटक में
काम किया,
राम गोविन्द
जी के
साथ उनकी
दोस्ती हुई,
नाटक के
बाद राम
गोविन्द जी
उन्हें छोड़ने
लखनऊ आए
और फिर
लखनऊ के
ही होकर
रह गए| 1967 में
राम गोविन्द
जी ने
माया जी
से शादी
कर ली| उन दोनों
ने मिलकर
लखनऊ की
ख्यातिप्राप्त नाट्यसंस्था
‘दर्पण’ की
नींव रखी
और 1968-69
में इस
बैनर के
तहत पहला
नाटक
‘ख़ामोश अदालत
जारी है’ किया| नाटकों
से चूल्हा
जलना मुश्किल
था| रेडियो
कार्यक्रमों से
माया जी
की जो
थोड़ी बहुत
आय होती
थी उसी
से गुज़ारा
चलता था|
माया
जी बताती
हैं, “बतौर
कवियित्री मेरी
ख़ासी पहचान
बन चुकी
थी| प्रख्यात
कवि रामरिख
मनहर मुझे
अक्सर कवि
सम्मेलनों में
भाग लेने
के लिए
आमंत्रित करते
थे| 1972
में उन्होंने
मुझे मुम्बई
में होने
वाले कवि
सम्मलेन के
लिए बुलाया
जहां दर्शकों
में रामानंद
सागर भी
शामिल थे| मैंने काव्यपाठ
किया जो
सबको बेहद
पसंद आया| रामरिख मनहर
ने मुझे
‘राजश्री प्रोडक्शंस‘
के मालिक
ताराचंद बड़जात्या
और उनके
बेटे राजकुमार
बड़जात्या से
मिलवाया| उन्होंने
प्राइवेट अल्बम
के लिए
मेरी तीन
कविताएं रिकॉर्ड
कीं| फिर
उन्होंने कवियों
और कविताओं
पर ढाई
घंटे की
एक फ़िल्म
‘कवि सम्मेलन’ बनाई जिसमें
मुझे भी
शामिल किया
गया| उसमें
मैंने कविता
पढ़ी थी,
‘तुम एक
बार प्रिय
आ जाओ
तो आंचलभर
सुहाग ओढूं’| उधर
रामानंद सागर
ने मुझसे
फ़िल्म
‘जलते बदन’
में चारों
गाने लिखवाए| ये फ़िल्म
साल 1973 में
रिलीज़ हुई
थी|”
रामानंद
सागर की
फ़िल्म
‘गीत’ (1970)
की सिल्वर
जुबली पार्टी
में माया
जी और
राम गोविन्द
जी की
मुलाक़ात गुरूदत्त
के भाई
आत्माराम से
हुई|
गुरूदत्त की
मृत्यु के
बाद
‘गुरूदत्त फ़िल्म्स’ की कमान
आत्माराम ने
संभाल ली
थी| उस
बैनर में
उन्होंने फ़िल्म
‘शिकार’ (1968)
बनाई और
फिर बैनर
का नाम
बदलकर ‘गुरूदत्त फ़िल्म्स कम्बाईन’ कर
दिया था| ‘गुरूदत्त
फ़िल्म्स कम्बाईन’
के बैनर
में
‘चन्दा और
बिजली’ (1969),
‘उमंग’ (1970),
‘मेमसाब’ (1972)
और ‘ये
गुलिस्तां हमारा’ (1972) जैसी
कुछ फ़िल्में
बनाने के
बाद आत्माराम
अब फ़िल्म
‘आरोप’ बनाने
जा रहे
थे| उन्होंने
माया जी
को इस
फ़िल्म के
गीत और
राम गोविन्द
जी को
पटकथा लिखने
के लिए
साईन कर
लिया| फ़िल्म
‘आरोप’ साल
1974 की
कामयाब फ़िल्मों
में से
थी| भूपेन
हज़ारिका द्वारा
संगीतबद्ध इस
फ़िल्म के
तमाम गीत
भी हिट
हुए थे|
गोविन्द
दंपत्ति ने
शुरू के
5 महीने
पाली हिल
पर
(स्व.)
गुरूदत्त के
फ्लैट में
गुज़ारे जहां
भूपेन हज़ारिका
उनके बगल
के कमरे
में रहते
थे| फिर
उन्होंने पाली
हिल छोड़कर
रोड नम्बर
9 जुहू स्कीम
पर किराये
का मकान
ले लिया| और फिर
जल्द ही
दोनों ने
अपने अपने
क्षेत्र में
अपनी एक
मज़बूत स्थिति
बना ली| माया जी
बताती हैं, “किराये
के उस
मकान में
हम कुछ
साल रहे| उस बीच
रोड नम्बर
8 स्थित
‘लोखंडवाला बिल्डर्स’ की मोनालिसा
बिल्डिंग में
हमने 2 बेडरूम
फ्लैट बुक
करा लिया
था| फ्लैट
तैयार हुआ
तो बिल्डर
सिराज भाई
ने वो
फ्लैट देने
से ये
कहते हुए
इनकार कर
दिया कि
मैं आपको
3 बेडरूम वाला फ्लैट दूंगा,
बस शर्त
ये है
कि मेरे
लिए आपको
एक कवि
सम्मेलन करना
होगा| हमने
सम्मेलन की
तैयारी की| स्मारिका के
लिए मिले
विज्ञापनों से
1.25 लाख
रूपये जमा
हुए|
सिराज भाई
ने हमसे
मात्र
90 हज़ार रूपये
लिए और
जुहू स्कीम
के एन.एस.
रोड नम्बर
10 पर 3 बेडरूम
वाला ये
फ्लैट हमारे
नाम कर
दिया| ये
साल 1980
की बात
है| तब
से आज
तक यही
घर हमारा
आशियाना बना
हुआ है|”
‘तोहफ़ा
मोहब्बत का’ के बाद
माया जी
और रामगोविंद
जी ने
गोविंदा, जीतेंद्र, जयाप्रदा को
लेकर फ़िल्म
‘तांडव’ का
निर्माण शुरू
किया था| लेकिन हालात
कुछ ऐसे
बने कि
13 रील
बन जाने
के बावजूद
वो फ़िल्म
पूरी नहीं
हो पायी| इससे हुए
आर्थिक नुकसान
की वजह
से गोविन्द
दम्पत्ति को
अपना बैनर
‘बहार पिक्चर्स’
हमेशा के
लिए बंद
कर देना
पड़ा| लेकिन
बतौर गीतकार
माया जी
के करियर
ने अपनी
ऊंचाईयां बनाए
रखीं| उनकी
अभी तक
की आख़िरी
फ़िल्म
‘बाज़ार-ए-हुस्न’ साल 2014
में रिलीज़
हुई थी| इस फिल्म
के संगीतकार
खैयाम थे| चार दशकों
के अपने
करियर में
उन्होंने दर्जनों
हिट गीत
लिखे जैसे
–
‘वादा
भूल न
जाना’ (जलते
बदन),
‘नैनों में
दर्पण है’ (आरोप),
‘यहां कौन
है असली
कौन है
नक़ली,
ये तो
राम जाने’ (क़ैद),
‘तेरी मेरी
प्रेम कहानी
किताबों में
भी न
मिलेगी’ (पिघलता
आसमान),
‘कजरे की
बाती अंसुअन
के तेल
में’ (सावन
को आने
दो),
‘चार दिन
की ज़िंदगी
है’ (एक
बार कहो),
‘लो हम
आ गए
हैं फिर
तेरे दर
पर’ (खंज़र’), ‘मोरे
घर आए
सजनवा’ (ईमानदार),
‘ठहरे हुए
पानी में
कंकर न
मार सांवरे’ (दलाल),
‘दरवज्जा खुल्ला
छोड़ आयी
नींद के
मारे’ (नाजायज़),
‘प्रेम का
ग्रन्थ पढ़ाओ
सजनवा’ (तोहफ़ा
मोहब्बत का),
‘आंखों में
बसे हो
तुम तुम्हें
दिल में
छुपा लूंगा’ (टक्कर),
‘शुभ घड़ी
आयी रे’
(रज़िया सुल्तान),
‘हम दोनों
हैं अलग
अलग हम
दोनों हैं
जुदा जुदा’ (मैं
खिलाड़ी तू
अनाड़ी),
‘चन्दा देखे
चन्दा तो
चन्दा शरमाए’ (झूठी),
‘मेरी पायल
बोले छम...छमछम’
(गजगामिनी),
‘मुझे ज़िन्दगी
की दुआ
न दे’ (गलियों
का बादशाह),
डैडी कूल
कूल कूल’ (चाहत)
और
‘देखो कान्हा
नहीं मानत
बतियां’ (पायल
की झंकार)|
साल
1993 में
रिलीज़ हुई
फ़िल्म
‘दलाल’ के
गीत
‘गुटुर गुटुर
अरे चढ़
गया ऊपर
रे अटरिया
पे लोटन
कबूतर’ को
लेकर माया
जी पर
अश्लील लेखन
के आरोप
लगे थे|
इस विवाद
ने लम्बे
अरसे तक
उनका पीछा
नहीं छोड़ा
था| क़रीब
15 साल
पहले साप्ताहिक
‘सहारा समय’ (हिन्दी)
के अपने
कॉलम
‘बाकलम ख़ुद’ के लिए
हुई बातचीत
के दौरान
जब मैंने
माया जी
से इस
गीत के
बारे में
बात करनी
चाही तो
उन्होंने खीझे
हुए स्वर
में कहा
था, “लोटन
कबूतर तो
तुम्हें याद
रहा, ‘देखो कान्हा नहीं मानत बतियां’
के बारे
में क्या
कहोगे? वो
भी मेरा
ही लिखा
हुआ है|” उनकी
बात सुनकर
मुझे ख़ामोश
हो जाना
पड़ा था| इस बार
जब मैंने
उन्हें ये
वाकया याद
दिलाया तो
उन्होंने कहा,
“उस गीत
को लेकर
हो रही
आलोचनाओं से
मैं बहुत
तंग आ
गयी थी| मेरे लिखे
अच्छे और
काव्यात्मक गीत
कोई याद
ही नहीं
करना चाहता
था| लोगों
की प्रतिक्रिया
सुनकर ऐसा
लगने लगा
था जैसे
उस एक
गीत ने
मेरी तमाम
स्तरीय रचनाओं
पर पानी
फेर दिया
हो| जबकि
उस गीत
के बोलों
में कुछ
भी अश्लील
नहीं था| रहा सवाल
गीत के
पिक्चराईज़ेशन का,
तो क्या
उसके लिए
मैं ज़िम्मेदार
हूं|”
माया
जी की
बात सौ
फ़ीसदी सही
थी| उत्तर
भारत में
तो शादीब्याह
के अवसर
पर मस्ती और छेड़छाड़भरे ऐसे
लोकगीत गाये
जाने का
प्रचलन बेहद
आम है| अगर हम
‘लोटन कबूतर’ के पिक्चराईज़ेशन को नज़रअंदाज़ करके सिर्फ़
इसके बोलों
पर गौर
करें तो
ये भी
एक मस्ती
और छेड़छाड़भरा
आम लोकगीत
सा ही
नज़र आएगा|
माया
गोविन्द जी
की लेखनी
आज भी
अपनी ऊर्जा
को बनाए
हुए है| अभी तक
उनके 11
काव्य संग्रह
प्रकाशित हो
चुके हैं| साथ ही
वो ‘फ़िल्म
जर्नलिस्ट अवार्ड
(उत्तर प्रदेश)’,
राष्ट्रभाषा परिषद
(मुम्बई)
का
‘महादेवी वर्मा
पुरस्कार’, सुरसिंगार
परिषद का
‘स्वामी हरिदास
पुरस्कार’, ‘उत्तर
प्रदेश रत्न
सम्मान’, भारती
प्रसार परिषद
का
‘गौरव भारती
पुरस्कार’, महाराष्ट्र
राज्य हिन्दी
साहित्य अकादमी
का
‘छत्रपति शिवाजी
राष्ट्रीय एकता
पुरस्कार’ जैसे
दर्जनों सम्मान
भी हासिल
कर चुकी
हैं| और
कवि सम्मेलनों
में शिरकत
का सिलसिला
तो अनवरत
चल ही
रहा है| उनके
परिवार में
पति राम
गोविन्द जी
के अलावा
इंजीनियर बेटा,
बहू ,
एक पोता
और एक
पोती शामिल
हैं|
माया जी कहती हैं, “बहुत संघर्ष किया, उन संघर्षों का भरपूर फल भी मिला, एक सम्मानजनक पहचान बनी और आज जीवन सुखपूर्वक गुज़र रहा है, इससे ज़्यादा और क्या चाहिए!”
माया गोविंद जी का निधन 7 अप्रैल 2022 को 82 साल की उम्र में मुंबई में हुआ|
We are thankful to –
Mr.
Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Mr. Gajendra Khanna for the English
translation of the write up.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video
editing.
Maya Govind on YT Channel 'Beete Hue Din'
............Shishir
Krishna Sharma
The song writing
domain of Hindi Cinema has been for the most part a male dominated field though
a few ladies too tried song writing as exceptions. For example, in the 1936
film, ‘Madam Fashion’, Film producer-director-composer Jaddanbai, Actress
Nirupa Roy in ‘Samrat Chandragupt’ (1958) or others like Saroj Mohini Nayyar,
Padma Sachdev, Rani Malik, Kausar Munir etc. These ladies though seen
registering their strong presence, could not establish themselves as part of
the mainstream song writing. However, among these, there is another name who
not only broke the male bastion but also maintained a respectable position for
a long period. That name is of Smt. Maya Govind.
In the year 1988 released,
Maya ji’s home production ‘Tohfa Mohabbat Ka’ under their banner ‘Bahar
Pictures’. It was directed by her husband Ram Govind ji and was produced by
Mukesh Kumar who was the cousin of Ram Govind ji. When I got transferred to
Mumbai, my first posting was at Punjab National Bank’s Ville Parle (West)
branch. This branch was situated in Juhu-Ville Parle Development Scheme
(JVPDS)’s N S Road Number 8. This posh area of Juhu is known as the residential
area of many famous film personalities. I got introduced to many film
personalities during my service at this branch. Ram Govind ji and Mukesh Kumar
were among these and they used to stay very near the branch. Mukesh Kumar was
of similar age to me and due to this, our friendship got developed soon. Mukesh
Kumar was the son of Actress Pramod Bala, who had played the titular role in
Lucknow Doordarshan’s famous TV serial, ‘Bibi Natiyonwali’. As a result of my
visits to him, I was able to meet Maya ji as well. unfortunately, Mukesh Kumar died
due to a long illness nearly 15 years ago but I was occasionally in touch with
Ram Govind ji. Then, after a long time, I met Maya ji and Ram Govind ji at
their residence to interview them for ‘Beete Hue Din’.
Maya ji had been
born on 17th January 1940 in a Khattri family of Lucknow. Her father
Shri Harnath Wahal was a cloth merchant. Maya ji was the eldest among three
daughters of her parents. She says, “Our surname was originally Bahl which got
modified to Wahal over time. My father’s business was doing well but then,
suddenly he lost his vision. We sisters were quite small at that time. My
mother was a simple housewife. There was no one amongst us who could take over
the business. In this situation, my paternal uncles took over all 3-4 shops and
house that we owned, forcing us to stay in a rental home.”
Maya ji’s father died
sadly when she was only 5 years old. As a result, their financial condition
deteriorated even further. Under these circumstances, her mother’s maternal
uncle came to their rescue. She recalls, “My mother’s maternal uncle used to give
a monthly help of Rs 250/- due to which all of us sisters were brought up.
After completing my twelfth at Vaidik Kanya Pathshala, I completed my BA at the
Women’s College and took admission in B.Ed. I was still in my B.Ed. first year,
when I got married in a family based in Allahabad (now Prayagraj). However, it
became very difficult for me to spend even a single day there as the family
environment was quite strange for me. No one in the family had any relations
with values, culture, music, or the arts. Drinking, returning late at night,
abuses at every step and domestic violence were regular. As a result, I
returned to my mother’s home within three months.”
After returning to
Lucknow, Maya ji along with her B.Ed. did a 4 year music course at Bhatkhande
Sangeet Vidyalaya. She also learnt Kathak for a year from Shambhu Maharaj. As a
staff artist for Lucknow Radio, she did many radio plays. She started teaching
in ‘Bal Vidya Mandir’. Parallelly, she also started working in plays of
Lucknow’s famous theater personality Kunwar Kalyan Singh. Maya ji recalls, “I had started
writing poems at the age of 11-12 years. In the year 1966, Actor Bharat Bhushan
and his producer-director R Chandra (Ramesh Chandra) visited our school. R
Chandra was the producer who had called Neeraj from Aligarh and made him write
the songs for the film ‘Nayi Umar Ki Nayi Fasal’. Neeraj had made his debut
with this film in 1966 itself. R Chandra was very impressed when he listened to
my poems. He immediately signed me for three films, ‘Megh Malhar’, ‘Mushaira’
and ‘Baap Bete’”.
After some time, on
invitation of R Chandra, Maya ji came to Mumbai. She wrote 11 songs for
‘Mushaira’ and returned to Lucknow. This film had music by Khayyam. After her
return, two mujra songs for the movie were recorded in the voice of Asha Bhosle
too. These songs were,
‘Saari
Ratiya Machawe Utpaat Sipahiya Sone Na De, Haaye Amma’ and ‘Humen Hukm Tha Gham
Uthana Padega, Isi Zid Pe Humne Jawani Luta Di’. Unfortunately, then R Chandra died
and the production of all three films stopped. Later R Chandra’s producer son
Rakesh Chandra used these two songs in his 1975 release, ‘Mutthi Bhar Chawal’.
In the year 1965-66,
Maya ji met Ram Govind ji. This famous writer-theatre personality, Ram Govind
ji belonged to Samastipur Bihar. His real name is Govind Arora and he was
searching for a heroine for his plays. In this context, he came to Lucknow and
met Maya ji. Maya ji went to Samastipur to participate in the plays. After
that, Govind ji came to drop her back in Lucknow and continued to stay there.
In 1967, Ram Govind ji got married to Maya ji. Both laid the foundation of
Lucknow’s famous theatre group Darpan’. In 1968-69, the first play under their
banner ‘Khamosh Adalat Jaari Hai’ was screened. It was difficult to have an
income from plays and they subsisted on Maya ji’s small income from radio
programs.
Maya ji tells us, “I had made a name
for myself as a poetess. Famous poet Ramrikh Manhar would often invite me to
participate in Kavi Sammelans. In 1972, He invited me to participate in a Kavi
Sammelan in Mumbai where Ramanand Sagar was also part of the audience. Everyone
appreciated my recitation. Ramrikh Manhar introduced me to ‘Rajshree
Productions’’s owner Tarachand Barjatya and his son Rajkumar Barjatya. They
recorded three of my poems for a private album. Then they made a two-and-a-half-hour
long film, ‘Kavi Sammelan’ on poets and their poems in which they included me
as well. In it I recorded my poem, ‘Tum Ek Baar Priy Aa Jaao To Aanchal
Bhar Suhaag Odhoon’. On the other hand, Ramanand Sagar got four songs written
by me for the movie ‘Jalte Badan’. This film was released in 1973.”
At the silver
jubilee party of Ramanand Sagar’s film ‘Geet’ (1970), Maya ji and Ram Govind ji
met Guru Dutt’s brother Aatmaram. After the death of Guru Dutt, Aatmaram had
taken over the reins of ‘Gurudutt Films. He had made the film ‘Shikaar’ (1968)
under the banner and then had renamed the banner to ‘Guru Dutt Films Combine’.
After making few films like ‘Chanda Aur Bijli’ (1969), ‘Umang’ (1970),
‘Memsaab’ (1972) and ‘Yeh Gulistaan Hamara’ (1972) under the banner of ‘Guru
Dutt Films Combine’, Aatmaram was planning his next film, ‘Aarop’. He signed
Maya ji for writing the film’s songs and Ram Govind ji for its screenplay. Film
‘Aarop’ was one of the successful films of 1974. All its songs which had been
composed by Bhupen Hazarika proved to be hits.
The Govind couple
spent first five months in Late Guru Dutt’s flat at Pali Hill where Bhupen
Hazarika used to reside in the adjoining room. After that, they left Pali Hill
and took a house on rent in Juhu Scheme’s Road No 9. Slowly they both made a strong
position for themselves in their respective areas. Maya ji recalls, “We stayed in the
rental home for a few years. During this period, we had booked a two bedroom
flat in ‘Lokhandwala Builders’s Monalisa building on Road No 8. But the builder
Siraj Bhai declined to hand it over to us after it got ready, saying that he
would give us a 3 bedroom flat on the condition that we should organize a Kavi
Sammelan for him. We organized the Kavi Sammelan. The amount collected from the
compendium’s advertisements was 1.25 Lakh Rupees. Siraj Bhai took just ninety
thousand rupees from us and registered this three bedroom flat for us at Juhu
Scheme’s N S Road Number 10. This incident took place in the year 1980 and
since then this flat has been our homely abode.”
After ‘Tohfa
Mohabbat Ka’ Maya ji and Ram Govind ji started the production of the movie
‘Tandav’ starring Govinda, Jeetendra and Jayaprada. Due to circumstances, it so
happened that after filming 13 reels, the film had to be shelved. Due to the
resulting financial setbacks, the Govind couple had to wrap up their ‘Bahaar
Pictures’ banner forever. However, Maya ji’s career as a lyricist maintained
its heights. Her latest film was the 2014 release, ‘Baazaar-e-Husn’ whose
composer was Khayyam. During her four decade long career, She wrote dozens of
hit songs including:–
‘Waada Bhool Na Jaana’ (Jalte Badan), ‘Nainon Mein Darpan
Hai’ (Aarop), ‘Yahaan Kaun Hai Asli
Kaun Hai Nakli, Ye to Ram Jaane’ (Qaid), ‘Teri Meri Prem
Kahani Kitaabon Mein Bhi Na Milegi’ (Pighalta Aasmaan), ‘Kajre Ki Baati
Ansuan Ke Tel Mein’
(Sawan
Ko Aane Do),
‘Chaar
Din Ki Zindagi Hai’
(Ek
Baar Kaho),
‘Lo
Hum Aa Gaye Hain Phir Tere Dar Par’ (Khanjar), ‘More Ghar Aaye
Sajanwa’
(Imaandaar), ‘Thehre Hue Paani
Mein Kankar Na Maar Sanware’ (Dalaal), ‘Darwaja Khula Chhod
Aayi Neend Ke Maare’
(Naajayaz), ‘Prem Ka Granth
Padhao Sajanwa’
(Tohfa
Mohabbat Ka),
‘Ankhon
Mein Base Ho Tum Tumhen Dil Mein Chhupa Loonga’ (Takkar), ‘Shubh Ghadi Aayi Re’ (Razia Sultan), ‘Hum Dono Hain Alag
Alag Hum Dono Hain Juda Juda’ (Main Khiladi Tu Anadi), ‘Chanda Dekhe Chanda
To Chanda Sharmaye’
(Jhoothi), ‘Meri Payal Bole
Chham… Chham Chham’
(Gaj
Gaamini),
‘Mujhe
Zindagi Ki Dua Na De’
(Galiyon
Ka Badshah),
‘Daddy
Cool Cool Cool’ (Chaahat) and ‘Dekho Kanha Nahin
Maanat Batiyaan’
(Paayal
Ki Jhankaar).
Allegations of
writing obscene lyrics had been levelled against Maya ji for writing the song
‘Gutur Gutur, Are Chadh Gaya Oopar Re Atariya Pe Lotan Kabootar’ for the 1993
release ‘Dalaal’. This controversy did not leave her for a very long time.
Nearly 15 years ago, during my chat with her for my colum ‘Baakalam Khud’ for
the Hindi weekly, ‘Sahara Samay’, when I tried to ask her about that song, she
had replied with an annoyed tone, , “You remember Lotan Kabootar, what will
you say about ‘Dekho Kanha Nahin Maanat Batiyaan’? That too has been written by
me’. I was forced to remain quiet after this comment of hers. This time when I
reminded her of the incident, she said, “I had got fed up of the criticisms
after this song. Nobody wanted to remember my good and lyrical artistic songs.
Listening to the response of people to that song, it seemed as if that one song
had whitewashed away all my high-quality creations. As such, there was nothing
obscene about the words of the song. As far as the picturization of the song is
concerned, how can I be held responsible for it?”
Maya ji’s statement
is 100 percent correct. In North India, it’s a common practice to have fun and
flirtatious folk songs being played. If one ignores the picturization of ‘Lotan
Kabootar’ and focuses only on its lyrics, then it will appear as one of such
fun and flirtatious folk songs.
Maya Govind ji’s
writing continues to maintain its energy. She has already published 11 poetry
compilations till now. In addition, she has received dozens of awards and honors
including ‘Film
Journalist Award
(Uttar
Pradesh)’,
Rashtrabhasha
Parishad (Mumbai)’s ‘Mahadevi Verma Puraskaar’, Sursingaar Parishad’s ‘Swami Haridas
Puraskaar’,
‘Uttar
Pradesh Ratna Samman’, Bharti Prasar
Parishad’s ‘Gaurav
Bharti Puraskaar’ and Maharashtra Rajya Hindi Sahitya Akademi’s ‘Chhatrapati Shivaji
Rashtriya Ekta Puraskaar’. She has also been continuously active in Kavi
Sammelans. In addition to her husband Ram Govind ji, her family includes her
Engineer son, daughter-in-law, a grandson and a granddaughter.
Maya ji concludes, “I have struggled a lot in life, I have also got a lot of fruits of my struggles, I have made a respected position for myself and I am living a content and Happy life. What more could one ask for?”
Maya Govind died in Mumbai on 7 April 2022 aged 82.
बेहतरीन आलेख।
ReplyDeleteAnother milestone... It is .. I am waiting for coming articles...
ReplyDeleteसुंदर लेख। आगामी अंकों की प्रतीक्षा रहेगी।
ReplyDeletefulll movie download
ReplyDeleteसुंदर लेख। आगामी अंकों की प्रतीक्षा रहेगी।
ReplyDeleteसर जी ...
ReplyDeleteबीते दिनों की हीरोइन वनमालाजी के बारे मे जानना चाहते है..
धन्यवाद