‘ऐ
रात ज़रा
आहिस्ता ग़ुज़र’
- जे.पी.कौशिक
.........शिशिर
कृष्ण शर्मा
(सर्वप्रथम
श्री गजेन्द्र
खन्ना द्वारा
संचालित वेबसाईट
www.anmolfankaar.com में प्रकाशित|)
स्वतंत्रता
सेनानी, भारतीय
वायुसेना के
सेवानिवृत्त अधिकारी,
मंझे हुए
तैराक, कसरत
के शौक़ीन
और एक
उत्कृष्ट संगीतकार...ये
है परिचय
वयोवृद्ध जगफूल
कौशिक का,
जिन्हें हिंदी
फिल्म संगीतप्रेमी
जे.पी.कौशिक
के नाम
से जानते
हैं। लेखक-निर्माता-निर्देशक
ख्वाजा अहमद
अब्बास की
साल 1963
में प्रदर्शित
हुई फिल्म
‘शहर और
सपना’
से अपने
करियर की
शुरुआत करने
वाले संगीतकार
जे.पी.कौशिक
के हिस्से
में भले
ही गिनी-चुनी
फिल्में आई
हों लेकिन
अपने काम
की गुणवत्ता
के साथ
उन्होंने कभी
भी समझौता
नहीं किया।
मूल रूप से हरियाणा के रोहतक जिले के परहावर गांव के रहने वाले, और पुलिस विभाग में नौकरी कर रहे कौशिक के दादा अपना गांव छोड़कर रोहतक शहर में आ बसे थे। कौशिक के पिता डनलप कम्पनी में सुपरवाईज़र थे। 12 अक्टूबर 1924 को रोहतक शहर में जन्मे और पले-बढ़े कौशिक ने गौड़ हाईस्कूल से फर्स्ट डिविज़न में मैट्रिक पास करने के बाद रोहतक के ही गवर्नमेण्ट कॉलेज में 11वीं में दाखिला ले लिया था।
कौशिक
बताते हैं,
“उन दिनों
आज़ादी की
लड़ाई अपने
चरम पर
थी, जिससे
मैं भी
अछूता नहीं
रह पाया।
11वीं
की पढ़ाई
अधूरी छोड़कर
मैं भी
आज़ादी की
लड़ाई में
कूद पड़ा।
फिर कुछ
ही समय
बाद मुझे
भारतीय वायुसेना
में नौकरी
मिली तो
अपनी पहली
पोस्टिंग पर
मैं लाहौर
चला गया।
8 जनवरी
1943 को
जब मैंने
नौकरी ज्वाईन
की थी
तो उस
समय मेरी
उम्र 18
साल थी।
चूंकि उन
दिनों नाम
के आगे
सिंह लगाने
का रिवाज
था इसलिए
सरकारी काग़ज़ात
में मैंने
भी अपना
नाम जे.पी.सिंह
लिखाया था,
जो मेरे
पेंशन के
खातों में
आज भी
बदस्तूर चला
आ रहा
है।“
संगीत
का शौक़
कौशिक को
विरासत में
मिला था।
बचपन से
जहां वो
एक तरफ
अपने दादा
को होली
के गीत
गाते देखते-सुनते
आए थे
वहीं दूसरी
तरफ उनके
पिता को
भी हारमोनियम
पर गाने
का बेहद
शौक था।
नौकरी लगने
पर पिता
का वोही
हारमोनियम कौशिक
का साथी
बन गया।
आज वो
हॉरमोनियम परिवार
की चौथी
पीढ़ी यानि
कौशिक के
बेटे संगीतकार
बेटे सुनील
कौशिक की
बड़ी बेटी
नीमा के
पास है।
कौशिक बताते
हैं, “लाहौर,
अम्बाला, कोहाट,
कराची, पूर्वी-पाकिस्तान
(अब बांग्लादेश)
का फैनी,
बर्माफ्रण्ट,
जोधपुर, मद्रास,
जहां-जहां
पोस्टिंग हुई,
वो हरमोनियम
मेरे साथ
ही रहा।
कराची पोस्टिंग
के दौरान
क्लब में
वॉयलिन पर
नज़र पड़ी
तो वो
भी प्रैक्टिस
करते-करते
मैंने खुद
ही सीख
ली। मेरा
गायन और
वादन वायुसेना
के सांस्कृतिक
कार्यक्रमों का
अभिन्न अंग
हुआ करता
था। लेकिन
संगीत मेरे
लिए महज़
एक शौक़
था, इसे
रोज़ी-रोटी
का ज़रिया
बनाने की
बात मैंने
कभी नहीं
सोची थी।
फिल्मों में
जाने की
बात ज़हन
में तब
आई जब
मेरे सहकर्मी
मित्र मुझे
इसके लिए
प्रेरित करने
लगे।“
कौशिक
के ऐसे
ही एक
सहकर्मी थे
के.पी.एस.टण्डन
जो कौशिक
के लिए
हाथरस स्थित
मशहूर संगीत
कार्यालय से
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय
संगीत सम्बन्धी
पुस्तकें मंगाकर
उन्हें भेंट
करते थे।
टण्डन बहुत
जल्द नौकरी
छोड़कर वापस
अपने शहर
देहरादून चले
गए थे।
कौशिक आज
भी उन्हें
याद करते
हुए कहते
हैं कि
मेरे फिल्मी
दुनिया में
आने के
बाद अगर
कभी टण्डन
ने मेरे
विषय में
पढ़ा-सुना
भी होगा
तो वो
मुझे पहचान
नहीं पाए
होंगे क्योंकि
मुझे वो
जे.पी.कौशिक
के नहीं
जे.पी.सिंह
के नाम
से जानते
थे। मैं
आज भी
उनसे या
उनके परिवार
से मिलने
के लिए
बेताब हूं।
देश के विभाजन के समय कौशिक कराची में पोस्टेड थे। विभाजन के बाद उन्हें जोधपुर भेज दिया गया जहां उनकी मुलाक़ात वायुसेना के एक कार्यक्रम में शामिल होने आए सरोद-वादक उस्ताद अली अक़बर खां साहब से हुई जो उस ज़माने में जोधपुर दरबार के राज-संगीतकार हुआ करते थे। कौशिक ने उस्ताद अली अक़बर खां से विधिवत रुप से संगीत सीखना शुरु कर दिया। उस्ताद के कहने पर कौशिक ने सरोद के बजाय वॉयलिन को ही अपनी संगीत शिक्षा का माध्यम बनाए रखा। उसी दौरान कौशिक की दोस्ती सचिनदेव बर्मन और जयदेव जैसे धुरन्धर संगीतकारों से हुई जो अक्सर उस्ताद अली अक़बर खां से मिलने के लिए जोधपुर आते रहते थे।
क़रीब
4 साल उस्ताद
अली अक़बर
खां साहब
की शागिर्दी
में ग़ुज़ारने
के बाद
कौशिक अगली
पोस्टिंग पर
मद्रास चले
आए जहां
उनकी मुलाक़ात
कथाकली के
गुरु गोपीनाथ
और थंगामणी,
शास्त्रीयगायक सुब्रह्मण्यम
अय्यर, भरतनाट्यम
नृत्यांगना बालासरस्वती
और उस्ताद
अमीरखां साहब
से हुई।
कौशिक कहते
हैं, “वो
दौर मेरे
जीवन का
स्वर्णिम दौर
था जब
मुझे ऐसे
महान और
गुणी फनकारों
का साथ
मिला।“
दो
महिने की
सालाना छुट्टियों
में कौशिक
हर साल
मुम्बई चले
आते थे।
वो बताते
हैं, “उस
दौरान मैं
अपना ज़्यादातर
समय सचिनदेव
बर्मन और
जयदेव की
रेकॉर्डिंग्स पर
ग़ुज़ारता था।
इस तरह
बिना किसी
को असिस्ट
किए धीरे-धीरे
मैंने फिल्म
संगीत से
सम्बन्धित तमाम
तकनीकी जानकारियां
हासिल कर
ली थीं।“
19 जुलाई 1959 को नौकरी से त्यागपत्र देकर जे.पी.कौशिक मुम्बई चले आए, जहां अपने गुरूभाई जयदेव की सलाह पर वो गायक मुकेश से मिले. उन्होंने मुकेश की आवाज़ में एक एच.एम.वी. की एक प्राईवेट अलबम के लिए दो गीत ‘आज गगन से चंदा उतरा’ और ‘बात अधूरी रह गयी’ संगीतबद्ध किए जिनके गीतकार थे मधुकर राजस्थानी। इससे उन्हें थोड़ी-बहुत पहचान मिली और गुरुदत्त, मोहन सहगल, ख़्वाज़ा अहमद अब्बास, राजिन्दर सिंह बेदी, पं.मुखराम शर्मा, अली सरदार जाफ़री, क़ैफी आज़मी और साहिर जैसे ज़हीन फिल्मकारों और लेखकों से उनका मिलने-जुलने का सिलसिला शुरु हो गया।
कौशिक
कहते हैं,
“संघर्ष के
उस दौर
में चंडीगढ़
में रहने
वाले मेरे
दोनों छोटे
भाईयों हरफूल
कौशिक और
मनफूल कौशिक
ने मेरी
हर तरह
से मदद
की। न
तो उन्होंने
मुझे पैसे
की कमी
महसूस होने
दी और
न ही
कोई ऐसा
मौक़ा आने
दिया कि
मुझे पत्नी-बच्चों
की चिंता
करनी पड़े।
जब तक
मैं मुंबई
में पूरी
तरह से
जम नहीं
गया, मेरे
पत्नी-बच्चे
उनके परिवार
के बीच
रहे। मेरे
बच्चों की
शुरूआती पढ़ाई-लिखाई
भी चंडीगढ़
में ही
हुई।“
मद्रास में कौशिक की मुलाक़ात जैमिनी स्टूडियो की फिल्म इंसानियत की शूटिंग में शामिल होने के लिए आए फिल्म के लेखक रामानन्द सागर और अभिनेता मनमोहन कृष्ण और गजानन जागीरदार से हुई थी जो जैमिनी गेस्ट हाऊस में ठहरे हुए थे। मुम्बई आने के बाद मनमोहन कृष्ण और जागीरदार से कौशिक का सम्पर्क बना रहा। मनमोहन कृष्ण एक बहुत उम्दा गायक भी थे। एक रोज़ उन्होंने कौशिक को एक नज़्म गाकर सुनाई। कौशिक ने तुरंत उस नज़्म को नयी धुन में ढाल दिया जो मनमोहन को इतनी पसन्द आई कि उन्होंने कौशिक से एक और नज़्म की धुन बनाने को कहा और फिर दोनों नज़्मों को अपनी आवाज़ में टेपरेकॉर्डर पर रेकॉर्ड कर लिया।
कौशिक
कहते हैं,
“रेकॉर्ड करने
के बाद
मनमोहन कृष्ण
ने मुझे
बताया कि
ये दोनों
नज़्में वो
ख़्वाजा अहमद
अब्बास की
आने वाली
फिल्म
‘शहर और
सपना’
में गाने
वाले थे।
अब्बास को
भी मेरी
बनायी धुनें
इतनी पसन्द
आयीं कि
उन्होंने
‘शहर और
सपना’
के संगीत
की ज़िम्मेदारी
मुझे दे
दी, हालांकि
काफी पहले
काम मांगने
पर वो
मुझसे कह
चुके थे
कि उनके
बैनर के
स्थायी संगीतकार
अनिल बिस्वास
हैं जिनकी
जगह किसी
और संगीतकार
को लेना
उनके लिए
मुमक़िन नहीं
होगा।“
अनिल बिस्वास
इससे पहले
न केवल
अब्बास की
‘मुन्ना’,
‘राही’,
‘परदेसी’
और
‘चार दिल
चार राहें’
जैसी कई
फिल्मों में
संगीत दे
चुके थे
बल्कि फिल्म
‘शहर और
सपना’
के लिए
भी दो
गीत रेकॉर्ड
करा चुके
थे, जिन्हें
बाद में
फिल्म से
निकाल दिया
गया।
अली
सरदार जाफ़री
की लिखी,
मनमोहन कृष्ण
की गाई
और जे.पी.कौशिक
द्वारा संगीतबद्ध
वो दोनों
नज़्में
‘ये शाम
भी कहां
हुई’
और
‘प्यार को
आज नयी
तरह निभाना
होगा’
अपने दौर
में बेहद
सराही गयी
थीं। इस
तरह 1963
में बनी
फिल्म
‘शहर और
सपना’
से कौशिक
के करियर
की शुरुआत
हुई।
‘शहर
और सपना’
साल 1963
की सर्वश्रेष्ठ
फिल्म के
राष्ट्रपति पुरस्कार
के साथ
ही बंगाल
जर्नलिस्ट एसोसिएशन
का भी
पुरस्कार हासिल
करने में
कामयाब रही
थी। राष्ट्रपति
पुरस्कार समारोह
में अब्बास
फिल्म की
पूरी यूनिट
को साथ
लेकर दिल्ली
गए थे।
समारोह के
दौरान पण्डित
जवाहरलाल नेहरु
ने अब्बास
को बच्चों
के लिए
भी फिल्म
बनाने की
सलाह दी।
इस पर
अमल करते
हुए अब्बास
ने फिल्म
‘हमारा घर’
बनाई। साल
1964 में
प्रदर्शित हुई
इस फिल्म
के लिए
कौशिक ने
चार गीत
संगीतबद्ध किए।
ये गीत
थे, नवोदित
विद्या मजूमदार
के गाए
‘सारे जहां
से अच्छा
हिन्दोस्तां हमारा’,
‘चले हवा
पुरवाई’,
‘राजाजी पछताएंगे’
और महेन्द्र
कपूर का
गाया
‘तुझको अपनी
दुनिया आप
बनानी है’।
इस फिल्म
का एक
शो खासतौर
पर तत्कालीन
राष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली
राधाकृष्णन के
लिए भी
रखा गया
था जिसमें
फिल्म से
जुड़े सभी
बालकलाकारों और
तकनीशियनों के
अलावा तत्कालीन
उपराष्ट्रपति ज़ाकिर
हुसैन भी
शामिल हुए
थे। इस
फिल्म में
कौशिक के
बेटे सुनील
और अभिनेत्री
नीलिमा अज़ीम
के भाई
पाशा अज़ीम
ने भी
बतौर बालकलाकार
अभिनय किया
था जो
रिश्ते में
अब्बास के
नाती थे।
1965 में प्रदर्शित
हुई अब्बास
की फिल्म
‘आसमान महल’
में कौशिक
ने
‘खूबसूरत है
तेरी तरह
शिकायत तेरी’
(महेन्द्र कपूर),
‘तूने समझी
ही नहीं
क्या है
हक़ीक़त मेरी’
(विद्या मजूमदार)
और
‘मैं आहें
भर नहीं
सकता’
(महेन्द्र कपूर,
विद्या मजूमदार)
के अलावा
मुजरा गीत
‘ऐ रात
ज़रा आहिस्ता
ग़ुज़र’
में पहली
बार गीता
दत्त की
आवाज़ का
इस्तेमाल किया।
इस गीत
का शुमार
आज भी
गीता दत्त
के सर्वश्रेष्ठ
गीतों में
किया जाता
है। इस
गीत में
गीता का
साथ दिया
था गायक-अभिनेता
मधुकर ने
जो इस
गीत में
फकीर के
रूप में
तो नज़र
आए ही
थे, खुद
पर फिल्माई
गयी इस
गीत की
पंक्तियां भी
उन्होंने खुद
ही गाई
थीं। अब्बास
की ही
फिल्म
‘सात हिन्दुस्तानी’
में अभिनय
करने के
बाद वो
मद्रास चले
गए थे
जहां कुछ
साल पूर्व
एक मोटरसाईकिल
दुर्घटना में
उनका निधन
हो गया।
गीता दत्त को याद करते हुए कौशिक कहते हैं, “उस वक़्त गीता अपनी ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल दौर से ग़ुज़र रही थीं। गुरुदत्त को ग़ुज़रे ज़्यादा समय नहीं हुआ था। बच्चे छोटे थे। निजी तौर पर मुझे उनकी आवाज़ और गायकी बहुत पसन्द थी लेकिन उनसे गवाने के मेरे फैसले का थोड़ा विरोध हुआ। पूछने पर महबूब स्टूडियो के साऊण्ड रेकॉर्डिस्ट आर.कौशिक ने बताया कि गीता अब ज़्यादातर नशे की हालत में रहती हैं और गाते गाते अक्सर भूल जाती हैं। लेकिन मैं अपने फैसले पर अडिग रहा।
रेकॉर्डिंग
से पहले
मैंने गीता
से उस
गीत की
खूब रिहर्सल
कराई। उस
दौरान मैंने
यही पाया
कि निजी
ज़िन्दगी में
तमाम दुखों
के बावजूद
गीता एक
बेहद सभ्य,
सुसंस्कृत, मधुर
स्वभाव की
और कलात्मक
अभिरुचि वाली
महिला थीं,
जिनके बारे
में कही-सुनी
जा रही
विपरीत बातों
में सच्चाई
कम, अफवाहें
ज़्यादा थीं।
आगे चलकर
मैंने गीता
से बालचित्रसमिति
की फिल्म
‘बन्दर मेरा
साथी’
के लिए
एक लोरी
‘नानी कहती
थी एक
कहानी’
भी गवाई।“
फिल्म
‘बन्दर मेरा
साथी’
में कौशिक
ने गायिका
शांति माथुर
से भी
दो बालगीत
गवाए थे।
1969 में ख़्वाजा
अहमद अब्बास
की दो
फिल्में प्रदर्शित
हुईं। ये
थीं
‘बम्बई रात
की बाहों
में’
और
‘सात हिन्दुस्तानी’, जिनका
संगीत जे.पी.कौशिक
ने तैयार
किया था।
फिल्म
‘बम्बई रात
की बाहों
में’
के चारों
गीत हसन
कमाल ने
लिखे थे।
इस फिल्म
का शीर्षक
गीत आशा
भोंसले ने
गाया था।
अन्य गीत
थे, ‘दिल
जो दुनिया
के ग़मोदर्द
से घबराया
है’
(महेन्द्र कपूर,
सुलक्षणा पण्डित),
‘उसने जो
कहा मुझसे
एक गीत’
(कृष्णा कल्लै)
और
‘जलती हुई
जवानियां’
(महेन्द्र कपूर)।
इस फिल्म
के लिए
कौशिक को
उत्तरप्रदेश जर्नलिस्ट
एसोसिएशन द्वारा
साल 1969
के सर्वश्रेष्ठ
संगीतकार के
पुरस्कार से
सम्मानित किया
गया था।
उधर
‘सात हिन्दुस्तानी’
में, जिससे
अमिताभ बच्चन
ने अपने
करियर की
शुरुआत की
थी, कौशिक
ने क़ैफी
आज़मी के
लिखे गीत
‘आंधी आए
या तूफान
कोई ग़म
नहीं’
को सुरों
में ढाला
था। फिल्म
में बार-बार
बजने वाले
इस गीत
को महेन्द्र
कपूर ने
गाया था।
ख्वाजा
अहमद अब्बास
की फिल्मों
के अलावा
जे.पी.कौशिक
ने निर्माता-निर्देशक
राजिन्दरसिंह बेदी
की अप्रदर्शित
फिल्म
‘आंखिन देखी’,
राजदीप की
‘बस्ती और
बाज़ार’
(1973), निर्माता
सुखदेव धमीजा
की जगदीश
द्वारा निर्देशित
‘धमाका’
(1980), निर्माता
हरीश कटारिया
की राजदीप
द्वारा निर्देशित
‘सिस्टर’
(1980) और
सुमित्रा-सतीश
की
‘सांझी’
(1985) के
अलावा हरियाणवी
बोली में
बनी बहुरानी,
चन्द्रावल, पनघट,
लम्बरदार, धनपराया,
बटेहू, फूलबदन,
तक़दीर की
तकरार, लाड्डो
बसंती, बैरी,
चन्द्रकिरण,
छोरी सपेले
की और
छोरी नट
की, राजस्थानी
बोली की
धरम भाई
और लाड्डो
रानी और
गुजराती भाषा
की 'मारी
लाज राखजे
वीरा' जैसी
कई फिल्मों
में संगीत
दिया। इन
सभी फिल्मों
का संगीत
अपने वक़्त
में बेहद
लोकप्रिय हुआ।
फिल्म चन्द्रावल
के गीत
‘जीजा तू
काला मैं
गोरी घणी’
और
‘मेरा चुन्दड़
मंगा दे
रे ओ
ननदी के
वीरा’
आज भी
समूचे उत्तर
भारत में
शादी-ब्याह
में ज़ोर-शोर
से गाये-बजाये
जाते हैं।
हरियाणवी लोकसंगीत
पर आधारित
‘मेरा चुन्दड़
मंगा दे
रे’
की ज़बर्दस्त
कामयाबी ने
ही भप्पी
लाहिड़ी को
इस गीत
की धुन
पर फिल्म
शराबी का
हिट गीत
‘मुझे नौलखा
मंगा दे
रे ओ
सैयां दीवाने’
बनाने के
लिए प्रेरित
किया था।
मन्ना डे, रफी, महेन्द्र कपूर, आशा भोंसले और गीता दत्त जैसे नामचीन गायक-गायिकाओं के साथ-साथ कौशिक ने सुलक्षणा पण्डित, कृष्णा कल्लै, विद्या मजूमदार, बेला सावर, भूपेन्द्र, अनुराधा पोडवाल, दिलराज कौर और प्रीति सागर जैसे उस दौर के उभरते हुए फनकारों की आवाज़ का भी अपने गीतों में बखूबी इस्तेमाल किया। फिल्म ‘सांझी’ में अनुराधा पोडवाल से उन्होंने ‘बादल उठा री सखी सासरे कि ओर’, दिलराज कौर से ‘तेरे मुखड़े पे जम गयी नजरिया’ और भूपेन्द्र से ‘रात में तारों भरी तारों की अंजुमन’ जैसे गीत गवाए तो ‘आंखिन देखी’ के ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई’ में रफी और इसी फिल्म के सुपरहिट युगलगीत ‘सोना रे तुझे कैसे मिलूं’ में रफी और सुलक्षणा पण्डित की आवाज़ का इस्तेमाल किया। फिल्म ‘बस्ती और बाज़ार’ का गीत ‘हम तो मनमौजी’ महेन्द्र कपूर और सुलक्षणा पण्डित ने, ‘ऐ जानेमन नादां न बन’ बेला सावर ने तो ‘हम पत्थर हैं हम नहीं रोते’ मन्ना डे और बेला सावर ने गाया था। बेला सावर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की जानी-मानी संगीतकार-गायिका आशा पुतली की बहन हैं। फिल्म ‘धमाका’ का गीत ‘है मुक़ाबला इंसान का शैतान से’ भूपेन्द्र की और ‘ओ लालपरी बन्द कली’ बेला सावर और महेन्द्र कपूर की आवाज़ों में था तो ‘मेरी आंखों में शोले’ आशा भोंसले ने गाया था।
फिल्म
‘सिस्टर’
में आशा
भोंसले ने
‘न टूटी
कोई खिड़की
विड़की’
गाया तो
सुलक्षणा पण्डित
ने
‘सच्चा जिसका
प्यार जहां
में’
और प्रीतिसागर
ने इसी
गीत का
एक अन्य
वर्ज़न गाया
था। इस
फिल्म का
एक बेहद
खूबसूरत गीत
‘तू अकेला
नहीं तेरे
जैसे कई
लोग हैं’
रफी की
आवाज़ में
था। अली
सरदार जाफ़री
के अलावा
कौशिक ने
जिन अन्य
गीतकारों के
गीतों को
सुरों में
ढाला उनमें
प्रमुख हैं,
नक़्श लायलपुरी,
हसन कमाल,
निदा फाज़ली,
नियाज़ हैदर,
सूरज भारद्वाज,
महेन्द्र देहलवी
और पद्मा
सचदेव। फिल्म
संगीत के
क्षेत्र में
महत्वपूर्ण योगदान
के लिए
30 अप्रैल 2010
को मुम्बई
स्थित दादा
साहब फाल्के
एकेडमी द्वारा
उन्हें लाईफटाईम
अचीवमेण्ट एवॉर्ड
से सम्मानित
किया गया
था।
जे.पी.कौशिक
चार बेटों
में सबसे
बड़े सतीश
डॉक्यूमेण्टरी फिल्म
मेकर हैं
तो सुनील
फिल्मोद्योग के
जाने-माने
गिटारवादक, संगीतकार
और अरेंजर,
जिन्हें मराठी
फिल्म
‘चेकमेट’
के संगीत
के लिए
साल 2008 के
शांताराम पुरस्कार
से सम्मानित
किया गया
था। तीसरे
बेटे स्वर्गीय
सुरेन्द्र इम्पोर्ट-एक्स्पोर्ट
मैनेजर थे
और सबसे
छोटे संजय
ने बतौर
एसोसिएट डायरेक्टर
सुखवंत ढड्ढा
और अजय
कश्यप की
कई फिल्में
की थीं।
संजय का
निधन 19 दिसंबर
2010 को
हुआ।
जे.पी.कौशिक
की पत्नी
कौशल्या का
निधन 1984
में हुआ
था। कुछ
समय पहले
तक वो
स्वर्गीय सुरेन्द्र
की पत्नी-बच्चों
के साथ
सांताक्रुज़ में
रहते थे।
फिर वो
बड़े बेटे
सतीश के
साथ मीरा
रोड पर
रहने लगे।
जीवन के
9 दशक
पूरे करने
के बावजूद
शारीरिक तौर
पर काफ़ी
हद तक
चुस्त-दुरुस्त
कौशिक कहते
थे, “कसरत
का शौक़
मुझे बचपन
से था।
एयरफोर्स की
नौकरी के
दौरान मैंने
तैराकी भी
सीखी। मेरी
फिटनेस का
राज़ संतुलित
आहार, व्यसन
रहित जीवन,
कसरत और
तैराकी ही
हैं। संगीत
से मेरा
जुड़ाव आज
भी बरकरार
है और
कुछ समय
पहले मैंने
हरियाणवी फिल्म
‘कुणबा’
के लिए
दो गीत
संगीतबद्ध किए
थे। जीवन
में मैंने
जो भी
थोड़ा-बहुत
हासिल किया
है उसका
श्रेय अगर
मैं दूंगा
तो वो
हैं उस्ताद
अली अकबर
खां साहब,
एयरफोर्स के
मेरे सहयोगी
के.पी.एस.टण्डन
और ख्वाजा
अहमद अब्बास,
जिन्होंने हर
कदम पर
मेरा साथ
दिया।“
जे.पी.कौशिक
जी का
निधन मुम्बई
में 14
मार्च 2017
को 93 साल
की उम्र
में हुआ|
We
are thankful to –
Mr.
Harish Raghuvanshi & Mr.
Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance, and support.
Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Mr.
Satish Kaushik for the English translation
of the write ups.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
“Aye Raat Zara Ahista Guzar” – J. P. Kaushik
……Shishir Krishna Sharma
(First published in the website www.anmolfankaar.com run by Mr. Gajendra Khanna)
Freedom fighter, an ex-Indian Air Force Officer, an Expert Swimmer, a devout fitness freak and an inimitable Music Composer….these are the adjectives which describe an old die hard music composer, Jagphool Kaushik, whom music lovers know as Shri J. P. Kaushik. He started his career with Shehar Aur Sapna, a 1963 released film by Writer, Producer & Director Khwaja Ahmad Abbas. Though he got very selective films in his repertoire, yet he never compromised in the quality of his music and proved his mettle with his quality music compositions.
Originally from Parhawar, a village in Rohtak district, one the very old city near Delhi in Haryana, from where his grand father, an employee in the police department left his village and settled in the city of Rohtak, and the ancestral home and agricultural lands are testimony to that. His father, Pandit Ram Gopal Kaushik was working in Dunlop, as a supervisor, in Delhi. Born on the 12th October 1924 in the old city of Rohtak, Jagphul Kaushik matriculated from Gaud High School, in the 1st Division took admission in the 11th the Government College. Young, Jagphul Kaushik could not stay away from participating in the freedom movement, not because it was if not impossible but difficult to stay untouched by the spirit of struggle for the freedom of our country was at its peak but also, because of the passion of a young patriot, whose father, Shri Ram Gopal Kaushik had just kicked his job as he could not take orders from his British superiors. He left his studies of 11th standard and jumped in the fray of freedom movement. He used to distribute pamphlets around on after secretly cyclostyling them in the fields. Then later 8th of January 1943, he joined Indian Air Force, then Royal Air Force and in his first posting went to Lahore. He was then just an eighteen old year young man and one of the first few young men to join the air wing of the military from the city of Rohtak. One peculiar fad or custom, of those days, in that part of the country among the young men was, that they used to add ‘Singh’ to their names, probably showing their sodality with the Fire Brand icon of Bhagat Singh. Jagphul Kaushik became J. P. Singh in the air force in the technical area. As a pensioner, he still has his official papers in the name of J.P. Singh, in the Air Force.
His passion for music was not new in the family; as a matter of fact, while his ears reverberated with the Holi Folk songs, his Grand Father sang holi with Duff, (a big leather strung on a wooden round framed percussion accompaniment of a folk singer) during the festival of colours, Holi, in their courtyard with an assembled gathering of neighbours & relations. His father too, was very fond of singing with the accompaniment of a German reed-harmonium; the reeds of that harmonium have now reached the fourth generation in the family in the hands of J. P. Kaushik’s granddaughter, Nima, the elder daughter of his musician-composer, Sunil Kaushik. So the journey of the harmonium, which started from Kaushik’s father and then it was always part of his rucksack of a soldier, even in the remote postings of his, in places like Lahore, Ambala, Kohat, Karachi & air force stations of Fanny in now Bangladesh, Burma front, Jodhpur, Madras (Chennai). The remotest of his postings found this harmonium to be with him even in the front-line Air Force stations. During his posting in Karachi, he happened to see violin in the Karachi Club, and he learnt to play all by him self by constantly practicing it. Singing and playing the instruments in the social functions in the Air Force was part of his life, those days, but music was just a hobby. It never crossed his mind to adopt it as a profession. To commercialise his music in the film industry came to his mind only when his colleagues and friends prodded and encouraged him.
Among such colleagues was one Mr. K. P. S. Tandon, who also used to present him with books he used to procure from the renowned Indian Classical Music foundation of Hathras. This colleague, Mr. Tandon very soon left the Air Force and went back to his hometown, Dehradoon. Kaushik ji is very eager to meet him and family members even today as he is sure that even if Mr. Tandon may have heard or read about him, he would not have placed him as the same person whom he had encouraged in the Air Force as he knew him as J P Singh and not as J. P. Kaushik.
During the partition of India, Mr. Kaushik was posted in Karachi and later he was posted in Jodhpur, where he happened to meet the great Sarod player, Ustaad Ali Akbar Khan during one of the Air Force functions. Those days, Ustaad Ali Akbar Khan was court-musician of the Maharaja of Jodhpur. Kaushik ji formally started learning music from Ustaad Ali Akbar Khan. As advised by the teacher, Ustaad Ali Akbar Khan, Kaushik ji kept violin as his medium of education in music. During this period, he became friendly with the music composer Jaidev as he used to come to Jodhpur to meet Ustaad Ali Akbar Khan. After more than four years in the tutelage of Ustaad Ali Akbar Khan, Kaushik ji was posted to Taambram in Madras, which as per Kaushik ji, was the golden period of a posting because it was during this period that he met the greats in the south, in the field of Music and Dance like, the Kathakali masters Guru Gopinath and Thangamanee, Classical singer Shri Subramanyam Aiyyar, Bharat Natyam danseuse Bala Saraswati and Ustaad Ameer Khan, originally from Kalanaur, Mewat.
Kaushik ji used to spend his two-month annual leave from his Air Force service in Mumbai every year. Most of his time during those visits used to be in the recording rooms of Sachin Dev Burman and Jaidev. That is how; he learnt the technical knowledge about the film music with out assisting any music directors.
After resigning from Indian Air Force on 19th July 1959, J. P. Kaushik came to Mumbai and at the advice of music director guru bhai Jaidev met the gentleman singer Mukesh recorded two private geets “Aaj Gagan Se handa Utara Aa Gaya Meri Bahon Mein” & “Baat Adhuree Rah Gai Aaj Mujhe Kah Dene Do” written by Mudhukar Rajasthani with H.M.V. and with this disc of private geets began his movement in the circle of renowned writers and film makers of those days, like Guru Dutt, Mohan Sehgal, Khawaja Ahmad Abbas, Rajender Singh Bedi, Pt. Mukhram Sharma, Ali Sardar Jaffery, Kaifi Azmi and Sahir Ludhyanvi.
In Madras, now Chennai, on the sets of the film “Insaaniyat” in the Gemini Studios, Kaushik ji met the writer, of the film Ramanand Sagar and actors Manmohan Krishna & Gajanan Jagirdaar, who were in the guest house of Gemini Studios. In Mumbai he kept his contacts alive with them. Manmohan Krishna was a very good singer as well and once he recited in tarrannum a Nazm. Kaushik ji immediately tuned it into a new tune. Manmohan Krishna was very happy with the composition and asked him to tune another Nazm and after rehearsing in attendance of Kaushik ji recorded them in his own voice. After recording Manmohan Krishna told Kaushik Sahab that he has to sing these Nazms in the forth coming film of Khwaja Ahmad Abbas titled “Shehar Aur Sapna.” Abbas sahib also liked the tunes of the Nazms immensely and asked Kaushik ji to shoulder the responsibility of composing music for the entire film, despite the fact that once when Kaushik ji had met Abbas Sahab and asked for work, Abbas Sahab had told Mr Kaushik, very emphatically that Mr. Anil Biswas was the permanent Music Director of his banner and it would not be possible for him to replace his old colleague. Anil Biswas, then had by then not only given music for Abbas Sahib’s previous films like ‘Munna’, ‘Rahee’, ‘Pardesi’ and ‘Chaar Dil Chaar Raahen’ but had also recorded two songs for the current under production film ‘Shehar Aur Sapna’, which were later removed from the film.
Both the Nazms, written by Ali Sardar Jaffery, sung by Manmohan Krishna and composed by Mr J.P. Kaushik, ‘Yeh Shaam Bhee Kahaan Huee’ & ‘Pyaar Ko Aaj Nai Tarah Nibhanaa Hoga’ were very well appreciated. That is how began the film career of Mr J.P. Kaushik in 1963 with the film “Shehar Aur Sapna.”
“Shehar Aur Sapna” was adjudged the best film of the year 1963 and was presented with Gold Medal by the President of India, besides, it also got not only the best film awards but the best music awards from none other than the Association of Bengal Film Journalists and Association of U P Film Journalists and many more awards in different categories. During the function of President’s Gold Medal presentation, when the whole unit was present in Delhi with Abbas Sahib, Pt. Jawaharlal Nehru suggested Abbas Sahib to also make film for children and Abbas planned and made a film for children titled “Hamara Ghar” and released in 1964 in which Music Director J. P. Kaushik composed four songs. A new singer Vijaya Mazumdaar sang the “Sare Jahaan Se Achha”, “Chale Hawaa Puwaaee”, “Raja Ji Pachhataayenge” and Mahendra Kapoor “Tujhko Apnee Duniyaan Aap Bananee Hai.” A special show of this film was organized for the then President Dr. Sarvapalli Radhakrishnan with all the child artists and technicians of the film which was also attended by the then Vice President Dr. Zakir Hussain. This film also had Sunil Kaushik, son of Mr J. P. Kaushik and present-day noted actress Neelima Azeem’s brother, Pasha Azeem, grandson of Abbas Sahab, playing major roles as child artists.
1965 released, K A Abbas’s film “Aasmaan Mahal” had compositions of J. P. Kaushik in the form of “Khoobsoorat Hai Teri Tarah Shikayat Teri” (Mahendra Kapoor), “Toone Samjhee Hee Naheen Kyaa Hai Haqeeqat Meri” (Vijaya Mazumdaar), “Main Aahen Bhar Naheen Sakta” (Mahendra Kapoor, Vijaya Mazumdaar) and a mujra sung ‘Aye Raat Zaraa Aahista Guzar’ by none other than, Geeta Dutt, which is rated among the best songs Geeta Dutt has sung. This song, sung by Geeta Dutt had singer-actor, Madhukar, singing along, the part which was to be picturised on him in the film. After playing a role of one of the seven hindustaanis in Abbas Sahab’s film “Saat Hindustaani,” Madhukar had shifted to Madras where he died in a tragic motorcycle accident few years ago.
Recalling Geeta Dutt, Kaushik ji says, “Geeta was passing through very difficult times, then. Guru Dutt’s death was still fresh. Children were very young. Personally, I very much liked the quality of Geeta’s voice and was very much convinced about her capability to sing this mujra but my decision met with some opposition also.” After some cajoling J. P. Kaushik said, “Recordist Kaushik of Mahboob Studio said that Geeta is in no condition to sing, as she is always in a state of inebriation. She often forgets while singing. But I was adamant and would not budge from decision. Before going to the studio for the recording I rehearsed her thoroughly for days together. In my limited association with her and despite her sad personal life, I found Geeta to be extremely gentle, very well cultured, sweet natured and artistically rich lady. All the sensational stories had no element of truth in them about her but were more of rumour mongering. Later, again I got her sing a lullaby ‘Naani Kehti Thi Ek Kahani’ in one my music assignments for Children Film Society’s “Bandar Mera Saathee” made by senior actor Shri Gajanan Jagirdar.
J. P. Kaushik also got Shanti Mathur to sing two songs to be picturised on a teenager boy for “Bandar Mera Saathee.” Two films made by Khawaja Ahmad Abbas “Bambai Raat Ki Baahon Mein” & “Saat Hindustaani,” the debut film of Amitaabh Bachchan, were released in 1969; and both of them had music composed by Music Director J. P. Kaushik. In the film, “Bambai Raat Ki Baahon Mein” had all the four songs written by Mr Hasan Kamal. The title song was sung by Asha Bhonsale. The other songs were, “Dill Jo Duniyaan Ke Gham-o-dard Se Ghabraya Hai” (Mahendra Kapoor & debut singer Sulakashna Pandit), “Usne Jo Kaha Mujhse Ek Geet Suna Do Na” (Krishna Kalle) And “Jalti Hui Jawaaniyaan” (Mahendra Kapoor). For his music in “Bambai Raat Ki Baahon Mein” J. P. Kaushik was given the best music director award in 1969 by The U P Film Journalists’ Association and on the other hand in the same year the theme song, played number of times in the film, “Aandhee Aaye Ya Toofan Koi Gam Naheen” of “Saat Hindustaani” won the Best National Integration Song of the year, which was penned by Kaifi Aazmi and sung by Mahendra Kapoor.
Besides the films of Khawaja Ahmad Abbas, music director J. P. Kaushik composed music for Rajendra Singh Bedi’s unreleased film “Aakhin Dekhee”, Rajdeep’s “Bastee Aur Bazaar”(1973), Producer Sukhdev Dhameeja’s film, “Dhamaka”(1980), which was Directed Jagdish Sadana, Producer Harish Kataria’s film “Sister”(1980), Sumitra-Satish’s “Sanjhi”(1985) directed by Pradeep Huda and one film “Kishtee Lagee Kinaare” for which he recorded two songs written by Saahir Ludhyaanvi.
He not only gave music for Hindi films but also composed songs for regional cinema in the languages of Rajasthaani, Gujrati and his own mother tongue, Haryanvi. The only film made in the co-operative sector of Govt of Haryana - “Bahuraani”, then "Chandrawal", "Panghat", "Lambardaar", "Dhan Paraya", "Batehoo", "Phool Badan", "Taqdeer Ki Taqraar", "Laaddo Basantee", "Bairee", "Chandrakiran", "Chhoree Sapele Kee" and "Chhoree Nat Kee". In Rajasthaani language “Dharam Bhai” and “Laaddo Raani” and in Gujrati “Mhari Laaj Raakhyo Beera” saw his music cross the boundries of his state of Haryana and the music of all these films was immensely popular. Songs composed for “Chandrawal” namely “Jeeja Tu Kala Main Goree Ghhani” and “Mera Chundad Manga De Re O Nandee Ke Beera” are sung even today after more that thirty years in the whole of north India especially during the weddings, be it small town or big cities. The super success of “Mera Chundad Manga De re……” based on the folk of Haryana inspired Bappi Lahiri to use this tune in the film “Sharabi” in the song “Mujhe Naulakhaa Manga De Re O Sainyaan Deewane.”
Music Director J. P. Kaushik used his skills not only with veteran singers like Manna Dey, Mohammad Rafi, Mahendra Kapoor, Asha Bhonsle and Geeta Dutt but also the new and upcoming singers of those days like Sulakshna Pandit, Krishna Kalle, Vijaya Mazumdaar, Bela Sawar, Bhupendra Singh, Anuradha Paudwal, Dilraj Kaur and Preeti Sagar to make his music ever lasting in the hearts of common masses. For example he got his melodies sung by Anuradha Paudwal “Baadal Uthya Ri Sakhee Mere Saasre Kee Or,” (Sanjhi), Dilraj Kaur “Tere Mukhde Pe Jam Gayee Nazaria” (Sanjhi) and Bhupender Singh “Raat Mein Taaron Bharee Taaron Ki Anjuman” (Sanjhi), Muhammad Rafi “Uth Jaag Musafir Bhor Bhayee” (Aankhin Dekhi), Rafi & Sulakshna Pandit “Sona Re Tujhe Kaise Miloon” (a super hit romantic duet from Aankhin Dekhi).
He got Sulakshna Pandit & Mahendra Kapoor to sing “Hum To Man Moujee”, Manna Dey to sing “Hum Patthar Hain Hum Naheen Rote”, and new comer Bela Sawar to sing “Aye Jaane Man Nadaan Na Ban” all of them for Rajdeep’s ‘Basti Aur Bazaar’. Incidentally, Bela Sawar is sister of internationally renowned jazz composer/singer Asha Putli. Bhupender Singh sang “Hai Muqabala Insaan Kaa Shaitaan Se”, Mahendra Kapoor & Bela Sawar sang “O Laal Paree Bund Kalee”, Asha Bhonsle sang “Meri Aankhon Main Sholey” all for the film Dhamaka. Then came “Sister” where Asha Bhonsle sang “Na Tootee Koi Khidkee Vidkee”, Sulakshna Pandit sang “Sachcha Jiska Pyaar Jahaan Main” another version was sung by Preeti Sagar. There was another very soulful song sung by none other than Muhammad Rafi for the film “Sister” was “Tu Akela Nahin Tere Jaise Kai Log Hain.”
Besides Ali Sardar Jaffery the lyricists who wrote with Music Director J. P. Kaushik are Naqsh Layalpuri, Hasan Kamal, Nida Fazli, Niyaz Haider, Sooraj Bhardwaj, Mahendra Dehlvi, Pushp Kumar Sharma and Padma Sachdev.
For his great contribution in the field of film music in almost 5 decades Music Director J. P. Kaushik was given recognition by the film industry itself by awarding him a Lifetime Achievement Award by the Dada Saheb Phalke Academy Mumbai, on the 30th April 2010.
J. P. Kaushik fathered four sons, eldest Satish is a Documentary, TV Serial maker, Sunil is a renowned guitarist, Music composer and arranger who won the 2008 Shantaram Best Music Award for his music in Marathi Film “Check-Mate.” The late third son Surendra was a manager in an Import-Export concern and the youngest son, Sanjay, who died very recently on the 19th Dec. 2010, was associated with Film Directors like Lekh Tandon in “Agar Tum Na Hote”, Sukhwant Dhadda and Ajay Kashyap.
Presently Mr Kaushik is living in Santacruz, Mumbai, with the family of his late son Surendra. His wife Kaushalya died in 1984. At the age of 86, J. P. Kaushik is still active. He says, “I was always very fond of exercise and wrestling. During my service with Air Force I learnt swimming. The secret of my fitness has been, balanced food habits, living without any vices, exercise, and swimming. I am still active in music composing. Recently, I recorded two songs for one Haryanvi film, “Kunbaa.” Whatever little, I have achieved in my life, if I have to give credit to then it would be Ustaad Ali Akbar Khan, my colleague of Air Force Shri K. P. S. Tandon and Khawaja Ahmad Abbas, who always supported me and of course my late wife, who supported me all through my struggle time in Mumbai, with my four sons.”