Wednesday, December 9, 2015

“Thoda Sa Dil Laga Ke Dekh” - Shammi Aunty

थोड़ा सा दिल लगा के देख” - शम्मी आंटी

                       ........शिशिर कृष्ण शर्मा

क़रीब साढ़े छह दशक पहले उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा था। शुरुआती दौर में कई फ़िल्मों में नायिका और सहनायिका के तौर पर नज़र आने के बाद उन्होंने चरित्र भूमिकाओं की ओर रुख किया। इस लम्बे अंतराल में उनकी अभिनय यात्रा बिना किसी विराम के लगातार जारी रही। ये उनके जादुई व्यक्तित्व और मधुर व्यवहार का ही असर है कि आज समूचा सिने जगत उन्हें प्यार और सम्मान से शम्मी आंटी  कहकर बुलाता है।

24 अप्रैल 1929 को गुजरात के नागरौल - संजान में अपने नाना के घर पर जन्मी, पारसी माता-पिता की संतान शम्मी आंटी कुछ ही महिनों की थीं जब उनके पिता परिवार को साथ लेकर मुम्बई चले आए थे। बकौल शम्मी आंटी, फ़िल्मी दुनिया से उनके परिवार का दूर-दूर तक का सम्बन्ध नहीं था। घर में पारसी-पुरोहित पिता और गृहिणी मां के अलावा एक बड़ी बहन मणि रबाड़ी थीं जिन्होंने आगे चलकर सिर्फ़ फ़ैशन डिज़ाईनिंग की दुनिया में नाम कमाया, बल्कि अपनी कला के दम पर उस ज़माने में राष्ट्रपति-पुरस्कार भी हासिल किया था।

फ़िल्मों में शम्मी आंटी का आना सिर्फ़ एक संयोग था, हालांकि रिश्तेदारी-बिरादरी में उनके इस कदम का उस वक़्त विरोध भी बहुत हुआ था। कुछ समय पहले हुई एक मुलाक़ात के दौरान शम्मी आंटी ने बताया कि वो सिर्फ़ तीन साल की थीं जब उनके पिता का देहांत हुआ था। आय का कोई साधन था नहीं, इसलिए दोनों बेटियों के पालन-पोषण के लिए मां को तमाम तक़लीफ़ें सहनी पड़ीं। जब बेटियां थोड़ी बड़ी हुईं तो उन्हें अपनी पढ़ाई का ख़र्च ख़ुद उठाने के लिए टाटा की खिलौना फैक्ट्री में काम करना पड़ा। बड़ी बहन पीपुल्स थिएटर की सक्रिय सदस्या थीं इसलिए उनके साथ नाटकों की रिहर्सल में शम्मी आंटी  का भी अक्सर आना-जाना होता था, जहां उनकी मुलाक़ात महबूब ख़ान के असिस्टेण्ट चिमनकांत गांधी से हुई थी।

शम्मी आंटी बताती हैं, “चिमनकांत गांधी ने मुझे सिर्फ़ फ़िल्मों में काम करने के लिए प्रेरित किया, बल्कि निर्माता-निर्देशक-अभिनेता शेख़ मुख़्तार से भी मिलवाया जो उन दिनों फ़िल्मउस्ताद पेड्रोमें सहनायिका की भूमिका के लिए किसी नई लड़की की तलाश में थे। शेख़ मुख़्तार के घर पर उनसे मुलाक़ात हुई तो उनका पहला सवाल था, हिन्दी बोल लेती हो?

इस पर मेरे मुंह से निकल पड़ा, “आपसे बात कर रही हूं तो बोल ही लेती होऊंगी।“ मेरा ये बेबाक़ अंदाज़ शेख़ मुख़्तार (चित्र में) को इतना पसन्द आया कि उन्होंने उसी वक़्त मुझे फ़िल्मउस्ताद पेड्रोकी दूसरी नायिका की भूमिका के लिए साईन कर लिया।“ 

क़रीब डेढ़ साल में तैयार हुईउस्ताद पेड्रोसाल 1951 में प्रदर्शित हुई थी। इस फ़िल्म की मुख्य भूमिकाओं में ख़ुद शेख़ मुख़्तार, एन..अंसारी और बेगमपारा थे और संगीतकार थे सी.रामचन्द्र। शम्मी आंटी ने इस फ़िल्म में एन..अंसारी की नायिका की भूमिका निभायी थी।

फ़िल्मउस्ताद पेड्रोके निर्देशक तारा हरीश उन दिनों गायक मुकेश द्वारा निर्मित फ़िल्ममल्हारका भी निर्देशन कर रहे थे। ये वोही तारा हरीश थे जो 1930 और 40 के दशक में हरीश के नाम से महबूब कीहम तुम और वो, औरत, बहनऔरएक ही रास्ताके अलावासंस्कार, जेलयात्रा, नई रोशनीऔरशरबती आंखेंजैसी कई फ़िल्मों में अभिनय कर चुके थे।उस्ताद पेड्रोऔरमल्हारके बाद उन्होंनेलालटेन, दो उस्ताद’, ‘काली टोपी लाल रुमालऔरबर्मा रोडजैसी कई और फ़िल्मों का निर्देशन भी किया था।

फ़िल्मउस्ताद पेड्रोमें शम्मी आंटी की लगन और मेहनत को देखकर तारा हरीश ने फ़िल्ममल्हारकी नायिका की भूमिका भी शम्मी आंटी को ही दे दी। इस फ़िल्म में शम्मी आंटी के नायक थे अर्जुन (चित्र में) संगीतकार रोशन द्वारा संगीतबद्ध फ़िल्ममल्हारकेबड़े अरमान से रखा है बलम तेरी कसम, तारा टूटे दुनिया देखेऔरदिल तुझे दिया था रखने कोसमेत सभी गीत उस जमाने में बहुत लोकप्रिय हुए थे। ये फ़िल्म भी साल 1951 में ही प्रदर्शित हुई थी। शम्मी आंटी  बताती हैं, “यों तो मेरा असली नाम नरगिस रबाड़ी है, लेकिन चूंकि नरगिस उस जमाने की एक बहुत बड़ी स्टार थीं इसलिए तारा हरीश ने मुझे ये नया नामशम्मी आंटीदिया जो फ़िल्ममल्हारके मेरे चरित्र का नाम था।“ 

साल 1952 में दिलीप कुमार और मधुबाला के साथ फ़िल्मसंगदिलमें शम्मी आंटी सहनायिका की भूमिका में नज़र आयीं। इस फ़िल्म से दिलीप कुमार के साथ हुई उनकी दोस्ती आज भी बरकरार है। इसके अलावा तीन अभिनेत्रियों - नरगिस, मधुबाला और आशा पारेख का जिक्र करना भी वो नहीं भूलतीं जिनके वो हमेशा ही काफ़ी क़रीब रहीं। आशा पारेख के साथ मिलकर तो शम्मी आंटी  नेबाजे पायल, कोरा कागज़, कंगनऔरकुछ पल साथ तुम्हाराजैसे धारावाहिकों का निर्माण भी किया और आज भी दोनों अभिनेत्रियां बहुत अच्छी दोस्त हैं।

1950 के दशक में शम्मी आंटी नेबाग़ी, आग का दरिया, मुन्ना, रुखसाना, पहली झलक, लगन, बंदिश’, ‘हलाकूऔरआज़ादजैसी कई फ़िल्मों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभायीं। वो बताती हैं, मैंने अपने करियर को तो कभी प्लान किया और ही बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षाएं पालीं। बस जो भी काम मिलता रहा, बिना ना-नुकुर किए करती चली गयी। यही वजह है कि जल्द ही मेरी पहचान महज़ एक चरित्र अभिनेत्री की बनकर रह गयी। नायिका के तौर पर भले ही मैं ज़्यादा काम नहीं कर पायी लेकिन चरित्र अभिनेत्री बनने का ये फ़ायदा हुआ कि मुझे बिना काम के कभी नहीं बैठना पड़ा।

अपने अब तक के करियर में शम्मी आंटी ने क़रीब दो सौ फ़िल्मों में छोटी-बड़ी भूमिकाएं निभाने के साथ हीदेख भाई देख’, ‘श्रीमान श्रीमती’, ‘कभी ये कभी वोजैसे कई टी.वी.धारावाहिकों में भी अभिनय किया।सहारा वनचैनल के धारावाहिकघर एक सपनामें वो आलोक नाथ की मां की भूमिका में नज़र आयी थीं। अब तक की उनकी अन्तिम फ़िल्मशीरीं फ़रहाद की तो निकल पड़ीहै जो साल 2012 में प्रदर्शित हुई थी।

साल 1970 में शम्मी आंटी ने निर्माता-निर्देशक सुल्तान अहमद से शादी की थी। उन्होंने पति के साथ मिलकर फ़िल्महीरा(1973) औरगंगा की सौगंध(1978) का निर्माण किया, जिनका निर्देशन ख़ुद सुल्तान अहमद ने किया था। इसके साथ ही शम्मी आंटी बाहर की फ़िल्मों में अभिनय भी करती रहीं। लेकिन कुछ ख़ास वजहों से महज़ 7 साल बाद उन्हें पति से अलग हो जाना पड़ा। पति से अलगाव के बाद शम्मी आंटी ने संगीतकार कल्याणजी के बेटे रमेश शाह के साथ मिलकर फ़िल्मपिघलता आसमानका निर्माण किया था। साल 1985 में प्रदर्शित हुई इस फ़िल्म की मुख्य भूमिकाओं में शशि कपूर, राखी और रति अग्निहोत्री थे। इस फ़िल्म के संगीतकार थे कल्याणजी आनंदजी।

शम्मी आंटी बताती हैं, 7 बरस के वैवाहिक जीवन के दौरान उन्हें सुल्तान अहमद के छोटे भाई के बेटे इक़बाल रिज़वी (चित्र में) से इतना प्यार और लगाव हो चला था कि इक़बाल आज भी शम्मी आंटी को मां का दर्जा देते हैं। इक़बाल रिज़वी टेलिविज़न के सफल निर्देशकों में जाने जाते हैं।

शम्मी आंटी तक मैं इक़बाल रिज़वी के ही ज़रिए पहुंचा था जो उन दिनों कलर्स चैनल के धारावाहिकजाने क्या बात हुईका निर्देशन कर रहे थे और मैं उस धारावाहिक के संवाद लिख रहा था। शम्मी आंटी के साथ ये बातचीत मुम्बई की मशहूर जुहू स्कीम के जुहू सर्किल स्थित गुलमोहर सोसायटी के उनके घर पर हुई थी। संगीत सुनने और पढ़ने का शम्मी आंटी को हमेशा से शौक़ रहा जिसका अंदाज़ा किताबों और सीडी के उनके संग्रह को देखकर ही लगाया जा सकता था। आध्यात्म और पूजापाठ की तरफ़ भी शुरु से ही उनका झुकाव रहा। भगवान गणेश की भक्त शम्मी आंटी के संग्रह में विभिन्न आकार-प्रकार की सैकड़ों गणेश-मूर्तियां मौजूद हैं।

शम्मी आंटी के अनुसार उनकी सुबह ललिता सहस्रनाम और हनुमान चालिसा के पाठ से होती है और वो जब भी घर पर होती हैं तो घर में हमेशा ही विष्णु सहस्रनाम स्त्रोतम की सीडी बजती रहती है। जीवन को लेकर शम्मी आंटी का नज़रिया पूरी तरह से स्पष्ट है। वो कहती हैं, मैंने जिंदगी को हमेशा अपनी शर्तों पर जिया और जो कुछ पाया, उसे ईश्वर का प्रसाद समझा। मैं खुश हूं कि मुझे लोगों का भरपूर प्यार और इक़बाल जैसा क़ाबिल बेटा मिला। अपने जीवन से मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूं।

बढ़ती उम्र और गिरते स्वास्थ्य की वजह से शम्मी आंटी अब पिछले काफ़ी समय से इक़बाल रिज़वी के परिवार के साथ अंधेरी (पश्चिम) के मिल्लत नगर में रहती हैं।

शम्मी आंटी का निधन 5 मार्च 2018 को 89 साल की उम्र में मुम्बई में हुआ|


We are thankful to

We are thankful to Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Kalakad V Ganapathy for the English translation of the write ups.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.


Shammi Aunty on YT channel BHD



Thoda Sa Dil Laga Ke Dekh” - Shammi Aunty

                     ........Shishir Krishna Sharma

She had set foot in the glittery world of Bollywood almost sixty-five years ago. In the initial days, she had ample opportunities to display her histrionic abilities as a lead actress and as a second lead. Then she slowly graduated to doing supporting roles. The point to be noted here is that in such a long time her career has continued to thrive without any major hiccups. This can be attributed to her social capital in Bollywood which she was able to garner due to her magical personality and a friendly countenance with all her colleagues and associates. Meet the legendary actress Shammi nee Nargis Rabadi. May be this is the reason why Bollywood fondly calls her – Shammi Aunty.

Shammi Aunty was born on 24 April 1929 in her maternal grandmother’s home in Nagrol-Sanjan (in Gujarat) to Parsi parents. The family shifted base to Mumbai when Shammiji was only a few months old. The family had absolutely no filmi connections whatsoever.

Shammiji’s family comprised of her Parsi priest father and homemaker mother and an elder sister Mani Rabadi. Mani later earned name and fame in the world of fashion designing. She also won the President’s Award that recognized her talent in fashion designing.

It was purely a matter of providence that Shammi aunty entered films. However, it was not easy. She faced resistance from relatives in her family who were not receptive to the idea of Shammi aunty joining films. Shammi aunty was just three years old when disaster struck and her father passed away. There was no steady source of family income. Hence, Shammi aunty’s mother had to struggle to make ends meet. She had two young daughters whom she had to take care of. This was a major responsibility.

But the girls did their mother proud.  With the passage of time, both the sisters started self-funding their education by taking up a job in a toy factory owned by the Tatas.

Mani Rabadi was an active member of People’s Theatre. Whenever she went for drama rehearsals, Shammi Aunty would often accompany her. It was during one of these visits that Shammi aunty met Chimankant Gandhi who was then assisting well known & legendary film maker Mehboob Khan.

Shammi aunty reminisces, “Chimankant Gandhi not only inspired me to work in movies, but he also introduced me to producer-director-actor Sheikh Mukhtar. Sheikh Mukhtar was on the lookout for a second female lead in his upcoming movie “Ustad Pedro”. I met Sheikh Mukhtar at his residence. His first question to me was whether I could speak Hindi fluently. I immediately blurted out that if I was talking to him then I must be also speaking Hindi fluently.”

Sheikh liked her fearless and formidable demeanor so much so that he immediately signed as her the second lead for his movie. Ustad Pedro took 18 months to make and was released in the year 1951. The main star cast comprised of Sheikh Mukhtar himself along with N.A.Ansari and Begum Para. C Ramchandra was the music composer. Shammi aunty played the lead opposite actor N.A.Ansari.

Tara Harish who directed ‘Ustad Pedro’ was also directing another movie called “Malhar” that was produced by singer Mukesh. Tara Harish was the same Harish who had acted in the 1930’s & 40’s decades in movies like Mehboob’s ‘Hum Tum Aur Woh’, ‘Aurat’, ‘Bahen’, ‘Ek Hi Rasta’. He had also featured in other movies like ‘Sanskar’, ‘Jail Yatra’, ‘Nai Roshni’ and ‘Sharbati Ankhein’.

After ‘Ustad Pedro’ & ‘Malhar’, Tara Harish directed ‘Lalten’, ‘Do Ustad’, ‘Kali Topi Lal Rumal’ and ‘Burma Road’.

Shammi Aunty’s hardwork and commitment in her first film ‘Ustad Pedro’ paid off. Impressed by her diligence, Tara Harish decided to cast her as a heroine in ‘Malhar’ opposite actor Arjun. The music for ‘Malhar’ was composed by the legendary Roshan. The songs of ‘Malhar’ became a rage – “Bade armanon se rakha hai kadam”, “tara toote duniya dekhe” and “dil tujhe diya tha rakhne ko”.

‘Malhar’ also got released in 1951. Recollects Shammi aunty, “ My real name is Nargis Rabadi. But all of you know that in the 50’s Nargis was a big star. To avoid the confusion, Tara Harish re-christened me as Shammi which was actually the name of the character in “Malhar”.”

In 1952, Shammi aunty played the second lead in “Sangdil” that featured real-life heartthrobs Dilip Kumar and Madhubala. During the shooting of this movie, Shammi aunty developed a bonding with Dilip Kumar that lasts to this day. Shammi aunty never fails to remember three actresses who were close to her – Nargis, Madhubala and Asha Parekh.

Along with her best friend Asha Parekh, Shammiji co-produced television shows like “Baaje Payal”, “Kora Kagaz”, “Kangan” and “Kucch Pal Saath Tumhara”. Shammi aunty’s friendship with Asha Parekh has been an enduring one that has remained unblemished with the ravages of time.

During the 50’s, Shammi aunty enacted several memorable roles in movies like “Baaghi”, “Aag Ka Dariya”, “Munna”, “Rukshana”, “Pehli Jhalak”, “Bandish” “Musafirkhana”, “Azad” and “Dil Apna Aur Preet Parai”. Shammi aunty says, “I never planned my career and neither was I too ambitious. I kept on accepting whatever offers came my way. This is the reason I became known as a character artiste. However I have no regrets whatsoever about the same. As a character artiste, my hands were full and there has never been a dull moment in my career. I was never bereft of work”.

Shammi aunty has acted in almost 200 films so far in small and big characters. She also got an opportunity to act in television serials like “Dekh Bhai Dekh”, “Shriman Shrimati”, “Kabhi Yeh Kabhi Woh”. In the Sahara-one serial “Ghar Ek Sapna”, Shammi aunty played the role of Alok Nath’s mother. Her last film that released in 2012 was Bela Sehgal’s “Shirin Farhad Ki to Nikhal Padi”.

Shammi aunty got married to producer-director Sultan Ahmed in the year 1970. Along with her husband, Shammi aunty co-produced blockbusters like “Heera” (1973) and “Ganga Ki Saugandh” (1978). Sultan Ahmed directed both these movies. Though she turned a producer, Shammi aunty kept acting in films produced by outside banners. However due to certain unfortunate circumstances, Shammi aunty had to separate from her husband barely 7 years after her marriage.

After the painful separation, the resilient Shammi aunty joined hands with Ramesh Shah (son of composer Kalyanji) to produce a movie called “Pighalta Aasman”. This movie was released in 1985 and featured Shashi Kapoor, Raakhee Gulzar and Rati Agnihotri. Kalyanji-Anandji composed the music for this film.

During the days that she was married to Sultan Ahmed, Shammi aunty grew so fond of Sultan’s younger brother’s son Iqbal Rizvi that till today, Iqbal revers Shammi aunty and treats her like his mother. Iqbal Rizvi is a popular director in television.

How was I able to access Shammi aunty? Rizvi was then directing a show for Colors channel called “Jaane Kya Baat Hui”. I was writing the dialogues for that show. It was only thanks to Iqbal Rizvi that I was able to meet Shammi aunty.

I happened to meet Shammi aunty in her flat in Gulmohar Society that is located in Juhu Circle near Juhu scheme. Shammi aunty is fond of listening to music. She is also a voracious reader. Her library is stocked with CDs and books and this is testimony to her interest in reading and music.

Shammi aunty has always been a spiritual person and she often espouses the immense benefits of prayers. An ardent devotee of Lord Ganesha, one can find hundreds of Lord Ganesha idols in her home. Shammi aunty begins her day by chanting the Lalita Sahasranama and Hanuman Chalisa. Whenever she is at home, she loves listening to the Vishnu Sahasranama stotra (the thousand names of Lord Vishnu).

Shammi aunty’s perspectives about life are crystal clear. She says, “I have always lived life by my own terms. Whatever I received in life, I considered it as the Almighty’s blessing. I am happy to have received so much love from people. I am fortunate to have an able son like Iqbal. I am satisfied with my life. What else do I need?”

Advancing age and failing health have resulted in Shammi aunty moving in with Iqbal Rizvi’s family at Millat Nagar near Andheri (West).

Shammi aunty died in Mumbai on 5 March 2018 at the age of 89.