Monday, January 1, 2018

“Toone Zindagi Me Ek Baar Pee” - Bahadur Sohrabji Nanji

तूने ज़िंदगी में एक बार पी - बहादुर सोहराबजी नानजी

               .........................शिशिर कृष्ण शर्मा

हिन्दी सिनेमा के इतिहास में ग़ैरहिन्दीभाषी पारसियों का हमेशा से महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यहां तक कि हिंदी सिनेमा की नींव रखने का श्रेय भी एक पारसी को ही जाता है। साल 1931 में बनी और प्रदर्शित हुई पहली भारतीय और हिंदी टॉकी फ़िल्मआलमआराके निर्माता-निर्देशक आर्देशिर ईरानी पारसी थे। उधर सबसे पहले बननी शुरू हुई लेकिन रिलीज़ को लेकर आलमआरा से कुछ ही हफ़्तों पिछड़ गयी टॉकी फ़िल्मशीरीं-फ़रहादका निर्माण और निर्देशन करने वाले, कोलकाता के माडन थिएटर के मालिक जे.जे.माडन भी पारसी थे। बॉम्बे टॉकीज़ की संगीतकार ख़ुर्शीद मिनोचर होमजी उर्फ़ सरस्वती देवी, निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी, जे.बी.एच.वाडिया, होमी वाडिया, कैमरामैन फ़ली मिस्त्री, जाल मिस्त्री, संगीतकार वी.बलसारा, गायक-अभिनेता फ़ीरोज़ दस्तूर, अभिनेत्री शम्मी जैसी कई पारसी शख़्सियतें हैं जिन्होंने हिन्दी सिनेमा को समृद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन्हीं में एक नाम है बहादुर सोहराबजी नानजी का जो बहादुर नानजी के नाम से कहीं ज़्यादा जाने जाते हैं। 40 के दशक में बतौर गायक फ़िल्मोद्योग में कदम रखने वाले बहादुर नानजी ने आगे चलकर वादक और अरेंजर रूप में अपनी एक अलग पहचान बनाई।

14 दिसंबर 1921 को मुंबई में जन्मे बहादुर के पिता सोहराबजी नवरोज़जी नानजी एक स्टेज कलाकार थे और कोलकाता की इम्पीरियल थिएटर कंपनी के नाटकों के जाने-माने कॉमेडियन थे।बीते हुए दिनके साथ हुई एक मुलाक़ात के दौरान बहादुर ने बताया था कि उनकी मां हाऊसवाईफ़ थीं लेकिन बहादुर सिर्फ़ दो साल के थे जब मां का देहांत हो गया था। बहादुर कहते हैं, ‘मुझे पता ही नहीं मेरी मां की शक़्लो-सूरत कैसी थी क्योंकि उनकी कोई तस्वीर तक मौजूद नहीं थी घर में पिता के अलावा बहादुर की बड़ी बहन धन और एक भाई फ़ली थे। बहादुर ने चर्नी रोड के बेहराम जीजीबाई चैरिटेबल इंस्टिट्यूट से मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की। गाने का शौक़ उन्हें बचपन से था और वो कोलकाता केन्यू थिएटर्सकी फ़िल्मों के और ख़ासतौर से सहगल के गीतों के दीवाने थे। संगीत की प्रारंभिक शिक्षा उन्हें अपनी बहन से मिली थी जो संगीत की टीचर थीं। धन के पति फ़ीरोज़शाह मिस्त्री हॉरमोनियम बजाने में माहिर थे। बहादुर ने उनसे हॉरमोनियम बजाना सीखा। वो बताते हैं, ‘हम लोग खेतवाड़ी की गली नंबर 12 केपटेल्स बंगलेमें रहते थे जहां पास ही में मास्टर दयालाल का संगीत विद्यालय था। वो अक्सर मुझे गाते-गुनगुनाते सुनते रहते थे। एक रोज़ उनके एक दोस्त मुझे फ़ोर्ट के रूबी रेकॉर्ड्स में लेकर गए जहां मेरे गाने की रेकॉर्डिंग की गयी। मेरा पहला रेकॉर्ड न्यू थिएटर की फ़िल्मों के गीतों का एक वर्शन रेकॉर्ड था जो मैंने सुरैया के साथ गाया था। उसके बाद हमारे गाए करीब 7 वर्शन रेकॉर्ड बाज़ार में आये। ये चालीस के दशक के शुरू की बात है

फ़िल्मों में बहादुर के गायन की शुरूआतलहरी कैमरामैन, ‘रंगीले दोस्त’ (दोनों 1944) औरबैरमखां(1946) जैसी फ़िल्मों के निर्माता हवेवाला की कंपनीस्टैंडर्ड पिक्चर्सकी फ़िल्मों से हुई जहां उन्हें सौ रूपए महिने के वेतन पर नौकरी मिल गयी थी। लेकिन फ़िल्मबैरमखांके संगीतकार ग़ुलाम हैदर द्वारा लिए गए ऑडिशन में रिजेक्ट हो जाने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी। उस ऑडिशन में सिर्फ़ बहादुर बल्कि मोहम्मद रफ़ी को भी रिजेक्ट कर दिया गया था। लेकिन दोनों को ही कभी कभार इधर-उधर गाने के मौक़े मिलते रहे। हुस्नलाल-भगतराम (चित्र में) के संगीत में अमीरबाई कर्नाटकी के साथ फ़िल्मबाम्बीके लिए बहादुर का गाया एक युगल गीततुमने प्यार सिखाया मुझको, प्यारा रूप दिखाया मुझकोभी अपने दौर में बेहद पसंद किया गया था। चालीस के दशक में फ़्लोर पर गयी ये फ़िल्म प्रदर्शित नहीं हो पाई थी। इसके अलावा 1950 में बनी फ़िल्मबसेरामें संगीतकार एम..रऊफ़ के लिए एक युगल गीतदेखो जी बात सुनो हमसे तुम आन मिलोउन्होंने मुबारक बेगम के साथ गाया था।

फ़िल्म संगीत के तेज़ी से बदलते परिदृश्य में बतौर गायक तो बहादुर नानजी को ज़्यादा सफलता नहीं मिल पायी लेकिन बतौर वादक और अरेंजर उन्होंने अच्छी पहचान बनाई। साल 1946 से 1950 तक उन्होंने एच.एम.वी. में बतौर वादक और कोरस गायक नौकरी की। बैरमखां के ऑडिशन में रिजेक्ट होने के बाद मोहम्मद रफ़ी भी शुरूआती दौर में बहादुर के साथ एच.एम.वी. की रेकॉर्डिंग्स में बतौर कोरस गायक हिस्सा लेते रहे और यहां से हुई उन दोनों की दोस्ती रफ़ी के निधन तक बरकरार रही। हॉरमोनियम, ऑर्गन, वॉयलिन, व्योला और प्यानो बजाने में बहादुर माहिर थे। बहादुर के अनुसार, संगीतकार .पी.नैयर और गायक सी.एच.आत्मा को पहचान देने वाले मशहूर ग़ैरफ़िल्मी गीतप्रीतम आन मिलोकी मुम्बई में हुई रेकॉर्डिंग में उन्होंने ऑर्गन बजाया था नैयर के अलावा उन्होंने शंकर-जयकिशन, हेमंत कुमार, मदनमोहन और रोशन जैसे टॉप के संगीतकारों के साथ भी काम किया। बहादुर कहते हैं, ‘शंकर-जयकिशन के लिए मैंने साल 1955 में बनी फ़िल्मसीमाके गीतहमें भी दे दो सहारा कि बेसहारे हैंऔर 1963 में बनीदिल एक मंदिरके गीतयाद जाए, बीते दिनों कीमें हॉरमोनियम बजाया तोसीमाके ही गीतसुनो छोटी सी गुड़िया की लंबी कहानीमें मुझे प्यानो औरकहां जा रहा है तू जाने वालेमें ऑर्गन बजाने का मौक़ा मिला। नौशाद के लिए मैंने फ़िल्मबैजू बावराके गीत दुनिया के रखवालेमें ऑर्गन बजाया था  

एच.एम.वी के प्यानो वादक केरसी मिस्त्री से बहादुर की अच्छी दोस्ती थी। एच.एम.वी. की नौकरी छोड़ने के बाद केरसी की सिफ़ारिश पर बहादुर को 100 रूपए महिना वेतन पर संगीतकार वी.बलसारा के सहायक की नौकरी मिल गयी। बलसारा के संगीत में उन्हें रशियन डॉक्यूमेंटरीपैराडाईज़ ऑफ़ स्टोनमें एक युगल गीत गाने का मौक़ा मिला था जिसमें उनका साथ दिया था नरगिस रबाड़ी ने। ये वोही नरगिस रबाड़ी थीं जिन्होंने 1951 में बनी फ़िल्ममल्हारसे फ़िल्मों में कदम रखा था और जो अभिनेत्री शम्मी के नाम से मशहूर हुईं। आगे चलकर वी.बलसारा ने बहादुर को 1953 में बनी फ़िल्ममदमस्तमें सोलोतूने ज़िंदगी में एक बार पीऔर धन इंदौरवाला के साथ युगल गीतये रात सुहानी है मुहब्बत की करो बातगाने का मौक़ा दिया। गायिका धन इंदौरवाला का वी.बलसारा से विवाह हुआ था।मदमस्तसे गायक महेन्द्र कपूर ने अपने करियर की शुरुआत की थी। इस फिल्म के लिए उन्होंने अपने करियर का जो पहला गीत रिकॉर्ड किया था, वो था, ‘किसी के ज़ुल्म की तस्वीर है मज़दूर की बस्ती| ये धन इंदौरवाला के साथ महेंद्र कपूर का गाया एक युगलगीत था

वी.बलसारा के कहने पर बहादुर ने कुछ समय तक लखनऊ में दत्ता कोरगांवकर के सहायक तौर पर काम किया लेकिन जल्द ही वो वापस मुंबई लौट आये। पश्चिमी संगीत के नोटेशन लिखने में उन्हें महारत हासिल थी। अनिल बिस्वास के संगीत से सजी इण्डो-रशियन प्रोडक्शनपरदेसी(1957) औरअंगुलीमाल(1960) के संगीत के नोटेशन बहादुर ने ही लिखे थे। अनिल बिस्वास के संगीत में बिस्वास की बहन और मशहूर गायिका पारूल घोष के साथ उन्हें एक कॉमेडी गीतसरकारी सड़क है तेरा घर तो नहीं हैगाने का मौक़ा भी मिला था जो उस ज़माने में काफ़ी मशहूर हुआ था। बहादुर ने रोशन के साथ बतौर सहायक और अरेंजरमल्हार, ‘शीशम, ‘अनहोनी, ‘नौबहारऔररागरंगजैसी 16 फ़िल्में कीं तो फिल्मभाई साहब(1954) में वो नीनू मजूमदार के सहायक रहे। 50 के दशक की, संगीतकार रोशन की  अप्रदर्शित फ़िल्मराजा बेटामें लता का गाया शीर्षक गीतमेरे लाडले है मेरी दुआ...राजा बेटाऔर नीनू मजूमदार द्वारा संगीतबद्ध फिल्मभाई साहबका सी.एच.आत्मा का गायाऊंची नीची डगर ज़िंदगी की...मंज़िल तो है बड़ी दूरउस दौर में बेहद मशहूर हुए थे। इन तमाम गीतों के अलावा एम.एस.सुब्बूलक्ष्मी के गाए मशहूर मीरा-भजनमैं हरि चरणन की दासीका अरेंजमेण्ट भी बहादुर नानजी ने किया था। संगीतकार .पी.नैयर के स्टेज शोज़ और रेकॉर्डिंग्स का वो अहम हिस्सा हुआ करते थे और नैयर की फ़िल्महीरा-मोतीमें उन्होंने बतौर अरेंजर काम किया था।

बहादुर नानजी दादर (पूर्व) की पारसी कॉलोनी के वीमा दलाल मार्ग स्थितहोरमद्ज़बिल्डिंग में अकेले रहते थे| मैंने उनका ये इंटरव्यू उनके घर पर साल 2011 के अगस्त महीने में किया था| उनका इकलौता बेटा अपने परिवार के साथ नेपियनसी रोड पर रहता था। 90 साल की उम्र में भी नानजी पूरी तरह से स्वस्थ थे और घर का सारा काम ख़ुद करते थे। पश्चिमी संगीत में उनका अच्छा ख़ासा दख़ल था जिसके रेकॉर्ड्स का उनके पास बहुत बड़ा संग्रह था| अपनी लंबी उम्र और उम्दा सेहत का श्रेय संगीत को देते हुए वो कहते थे कि संगीत से जुड़ाव ही अपने आप में ईश्वर की इबादत है जो मैं बचपन से करता आया हूं और आख़िरी सांस तक करता रहूंगा।

बहादुर नानजी का निधन 24 नवम्बर 2017 को 96 साल की उम्र में मुम्बई में हुआ|  




We are thankful to –

Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Ms. Mr. Gajendra Khanna for the English translation of the write ups.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.



Toone Zindagi Me Ek Baar Pee” - Bahadur Sohrabji Nanji 

               ....................................Shishir Krishna Sharma

Non-Hindi speaking Parsis have made major contributions in the history of Hindi Cinema. In fact, the credit for laying foundation of the talkies goes to a Parsi only. The first talkie ‘Aalam Ara’ which released in 1931 was made by producer-director Aadershir Irani who was a Parsi. The talkie film ‘Shirin Farhad’ which had gone on sets earlier to it and whose release was delayed by a few weeks from ‘Aalam Ara’ had also been produced and directed by the owner of Kolkata’s Madan Theater’s J.J.Madan who was also a Parsi. Bombay Talkies’ Composer Khurshid Minocher Homji alias Saraswati Devi, Producer-Director Sohrab Modi, J.B.H.Wadia, Homi Wadia, Cameraman Fali Mistry, Jaal Mistry, Composer V Balsara, Composer-Actor Feroze Dastur, Actress Shammi are some of the Parsi personalities who have immensely enriched Hindi Cinema. One such personality was Bahadur Sohrabji Nanji who was more popularly known as Bahadur Nanji. Bahadur Nanji, who entered film industry during 1940s went on to create his name as an Instrumentalist and Arranger.

Bahadur Nanji was born on 14 December 1921 in Mumbai. His father Sohrabji Navrozji Nanji was a Stage artist and a well known comedian who acted in the plays of Kolkata’s Imperial Theater Company. During the meeting with ‘Beete Hue Din’ Bahadur told us that his mother was a Housewife and had passed away when he was just two years old. Bahadur recalled “I do not even know how my mother looked like as we didn’t have even a single photograph of hers”. His family included other than his father a sister Dhan and a brother Fali. Bahadur matriculated from Charni Road’s Byramjee Jeejeebhoy Charitable Institute. He was fond of singing from childhood and he was fond of the songs of New Theatre’s movies with a special admiration for the songs of Saigal. He got his initial education in music from his sister who was a Music Teacher. Bahadur learnt how to play the harmonium from her. He recalled, “We used to stay in Khetwadi’s Lane No 12’s Patels Bungalow. Master Dayalal’s Music College was in the neighborhood and he used to often listen to me sing or hum. One day one of his friend took me to Fort’s Ruby Records where my song was recorded. My first song was the version of a New Theatres film duet which I sang with Suraiya. After that nearly seven version records sung by us were released. They released during the starting of the 1940s.”

Bahadur’s singing career started with the movies of Producer Hawewala’s company ‘Standard Pictures’ - known for making movies like Lehri Cameraman, Rangeele Dost (Both 1944) and Bairam Khan (1946) - where he was employed at a salary of Rs 100 per month. However, he left the company after being rejected during the audition for Bairam Khan by its composer Ghulam Haider. Not just Bahadur even Mohammad Rafi had also been rejected during that audition. However, both got opportunities to sing now and then elsewhere. His duet with Ameerbai Karnataki, ‘Tumne Pyaar Sikhaaya Mujhko, Pyaara Roop Dikhaaya Mujhko’ for the Husanlal-Bhagatram composed ‘Bambi’ was quite appreciated during its time. This film which had gone on the floors in 1940s remained unreleased.

He had also sung a duet ‘Dekhoji Baat Suno Humse Tum Aan Milo’ with Mubarak Begum for M A Rauf composed movie Basera (1950).

With changing tastes in Music, Bahadur did not get much success as a singer, but he created a name for himself as an instrumentalist and arranger. He worked as an instrumentalist and chorus singer in HMV from the year 1946 to 1950. After getting rejected at the Bairam Khan audition, Mohammad Rafi also worked with Bahadur Nanji for HMV recordings as a chorus singer and their friendship continued till the death of Mohammad Rafi. Bahadur was proficient in playing the Harmonium, Organ, Violin, Viola and Piano. According to Bahadur, He had played the Organ for the Mumbai recording of the famous non-film song ‘Preetam Aan Milo’ which brought recognition to composer O P Nayyar and Singer C H Atma.  Bahadur worked with many top composers other than Nayyar like Shankar Jaikishan, Hemant Kumar, Madan Mohan and Roshan. Bahadur remembers, “I played the Harmonium for Shankar Jaikishan for Seema (1955)’s song ‘Humen Bhi De Do Sahara Ki Besahare Hain’ and Dil Ek Mandir (1963)’s song ‘Yaad Na Jaaye Beete Dinon Ki’. I also played the piano for Seema’s song ‘Suno Chhoti Si Gudiya Ki Lambi Kahani’ and Organ for ‘Kahaan Jaa Raha Hai Tu Ae Jaane Waale’ For Naushad, I had played the organ for movie Baiju Bawra’s song “O Duniya Ke Rakhwale”.

Bahadur was a good friend of HMV’s pianist Kersi Mistry. On his recommendation, Bahadur got the job of composer V Balsara’s assistant with a monthly salary of Rs 100. He sang a duet with Nargis Rabadi for a Russian Documentary ‘Paradise of Stone’. Nargis had gained recognition in movies with ‘Malhar’ (1951) and is popularly known as Actress Shammi. Later V Balsara also gave chance to Bahadur to sing a solo ‘Tune Zindagi Mein Ek Baar Pee’ and a duet with Dhan Indorewala ‘Yeh Raat Suhaani Hai Mohabbat Ki Karo Baat’ in 1953 release ‘Madmast’. Dhan Indorewala was married to V Balsara. Mahendra Kapoor had got his break with ‘Madmast’. His first ever recorded song was a duet with Dhan Indorewala, ‘Kisi Ke Zulm Ki Tasveer Hai Mazdoor Ki Masti’.

On V Balsara’s suggestion Bahadur worked in Lucknow for a short time as an assistant to Datta Korgaonkar but returned soon to Mumbai. He was adept in writing notations of Western Music. It was Bahadur who had written the notations for Anil Biswas’s Indo Russian Production Pardesi (1957) and Angulimal (1960). He had also sung a comedy song ‘Sarkari Sadak Hai Tera Ghar To Nahin Hai’ under his composition sung with the composer’s sister and famous singer Parul Ghosh which was quite popular during its time. Bahadur worked with Roshan as assistant and arranger for 16 movies including ‘Malhar’, ‘Sheesham’, ‘Anhoni’, ‘Naubahar’ and ‘Raag Rang’. For movie ‘Bhai Saaheb’ (1954) he assisted Neenu Majumdar. Lata’s Roshan composed song ‘Mere Laadle Hai Meri Dua … Raja Beta’ for the unreleased movie ‘Raja Beta’ and C H Atma’s song for Neenu Majumdar composed Bhai Saheb, ‘Oonchi Neechi Dagar Zindagi Ki … Manzil To Hai Badi Door’ were very popular at the time. Other than these songs, Bahadur had done the arrangement for the famous Meera Bhajan ‘Main Hari Charnan Ki Daasi’ sung by M S Subbulaxmi. He was an integral part of the stage shows of composer O P Nayyar and had been the arranger for Nayyar’s movie ‘Heera Moti’.

Bahadur Nanji used to stay alone in Dadar (East)’s Parsi Colony’s Veema Dalal Road’s Hormadz building. I had interviewed him at his home in August 2011. His only son used to stay with his family on Napean Sea Road. Even at the age of 90 Nanji was hale and hearty and used to do all the household work himself. He was very fond of western music and was the proud owner of a very huge collection of western music records. He credited his long life and good health to music. He said that, “My association with music is God’s worship which I have been doing since childhood and I will continue doing it till my last breadth.”

Bahadur Nanji passed away on 24 November 2017 in Mumbai at the age of 96.