“दिल से भुला दो तुम हमें, हम ना तुम्हें भुलाएंगे”- पूर्णिमा
............शिशिर कृष्ण शर्मा
मुंबई के पश्चिमी उपनगर खार के पॉश ‘पाली हिल’ इलाक़े को यहां रहने वाली मशहूर फ़िल्मी हस्तियों की वजह से जाना जाता है। दिलीप कुमार, सायरा बानो, गुलज़ार, राखी, ऋषि कपूर, संजय दत्त, आमिर ख़ान जैसे सितारों के बंगलों के अलावा स्वर्गीय देव आनंद का नवकेतन स्टूडियो भी पाली हिल पर ही स्थित है। इसी पाली हिल के ‘नरगिस दत्त मार्ग’ पर मौजूद है बहुमंज़िली पॉश इमारत ‘रेशमा अपार्टमेंट्स’ जिसकी छठवीं मंज़िल पर बने विशाल लेकिन सादगी भरे फ़्लैट में हिंदी सिनेमा के सुनहरे दौर की मशहूर अभिनेत्री पूर्णिमा रहती हैं। पिछले कई सालों से वो फ़िल्मों से तो दूर हैं ही, मीडिया से जुड़े लोगों से मिलने से भी कतराती हैं।
कुछ साल पहले पूर्णिमा के घर पर उनकी क़रीबी मित्र अभिनेत्री दुलारी के इंटरव्यू के वक़्त हुई मुलाक़ात के दौरान जब मैंने पूर्णिमा से भी इंटरव्यू के लिए समय निकालने का आग्रह किया तो उन्होंने कहा था, “गुज़रे ज़माने की जो हमारी इमेज लोगों के जहन में है वोही बनी रहे तो बेहतर है। क्या ज़रूरत है कि अपने ‘आज’ को और आज की अपनी तस्वीर को लोगों के सामने लाकर हम उस इमेज को तोड़ें?” लेकिन मेरे ज़ोर देने पर न सिर्फ़ वो इंटरव्यू के लिए राज़ी हुईं बल्कि उस दौर की अपनी कुछ पुरानी तस्वीरें भी उन्होंने मुझे दी थीं, जिन्हें यहां, इस आलेख के साथ देखा जा सकता है।
2 मार्च 1932 को मुंबई में जन्मीं पूर्णिमा के पिता ‘राम शेषाद्री’ अयंगार तमिल ब्राह्मण थे जो मनमोहन देसाई के फ़िल्म डिस्ट्रीब्यूटर पिता कीकूभाई देसाई के ऑफ़िस में एकाऊंट्स का काम देखते थे। पूर्णिमा की मां लखनऊ के एक मुस्लिम ख़ानदान से थीं। घर में माता-पिता के अलावा पूर्णिमा समेत 5 बेटियां और 1 बेटा थे।
पूर्णिमा की सबसे बड़ी बहन शीरीन (चित्र में) ने भी 1930
के दशक में ‘बम्बई की सेठानी’ (1935),
‘पासिंग शो’ (1936), ‘ख़्वाब की दुनिया’ (1937), ‘स्टेट एक्स्प्रेस’ (1938) और ‘बिजली’ (1939)
जैसी फ़िल्मों में काम किया था। शीरीन निर्माता-निर्देशक नानाभाई भट्ट की दूसरी पत्नी थीं और जाने-माने फ़िल्मकार महेश भट्ट इन्हीं शीरीन के बेटे और पूर्णिमा के भांजे हैं।
पूर्णिमा के मुताबिक़ उस जमाने के जाने माने निर्देशक रमन बी. देसाई ने, जो उनके पड़ोसी थे, पूर्णिमा को अपनी गुजराती फ़िल्म ‘राधेश्याम’ में राधा की भूमिका ऑफ़र की। पूर्णिमा उस वक़्त स्कूल में पढ़ रही थीं। उस फ़िल्म के लिए बड़ी बहन शीरीन ने उन्हें उनके असली नाम ‘मेहर बानो’ की जगह फ़िल्मी नाम ‘पूर्णिमा’ दिया। फ़िल्म ‘राधेश्याम’ साल 1948 में रिलीज़ हुई थी और उस वक़्त पूर्णिमा की उम्र 16 साल थी।
पूर्णिमा के मुताबिक़, ‘मेरी पहली हिंदी फ़िल्म केदार शर्मा की ‘ठेस’ थी जिसमें मैं सहनायिका थी। भारतभूषण और शशिकला की मुख्य भूमिकाओं वाली ये फ़िल्म साल 1949 में रिलीज़ हुई थी।‘
(वरिष्ठ फ़िल्म इतिहासकार श्री हरीश रघुवंशी द्वारा संकलित फ़िल्मोग्राफ़ी के मुताबिक़ फ़िल्म ‘ठेस’ से पहले साल 1947 में पूर्णिमा दो हिंदी फ़िल्मों ‘मैनेजर’ और ‘तुम और मैं’ में अभिनय कर चुकी थीं। इसके अलावा 1948 में ‘राधेश्याम’ के अलावा वो निर्देशक राजा याज्ञिक की गुजराती फ़िल्म ‘सावकी मां’ में भी काम कर चुकी थीं।)
‘ठेस’ के अलावा साल 1949 में पूर्णिमा की 2 और फ़िल्में, ‘नारद मुनि’ और ‘पतंगा’ रिलीज़ हुईं और इन दोनों ही फ़िल्मों में वो सहनायिका के तौर पर नज़र आयीं। रमण बी.देसाई की गुजराती और हिंदी में बनी ‘नारद मुनि’ और केदार शर्मा की ‘ठेस’ तो कोई ख़ास करिश्मा नहीं दिखा पायीं लेकिन निर्माता भगवानदास वर्मा की फ़िल्म ‘पतंगा’ बेहद कामयाब रही। सी.रामचन्द्र द्वारा संगीतबद्ध इस म्यूज़िकल हिट फ़िल्म के दो मशहूर गीत ‘दिल से भुला दो तुम हमें’ और ‘ओ जाने वाले तूने अरमानों की दुनिया लूट ली’ पूर्णिमा पर फ़िल्माए गए थे और इस फ़िल्म के रिलीज़ होने के बाद पूर्णिमा बेहद व्यस्त हो गयी थीं।
पूर्णिमा का कहना था, ‘मैंने निर्देशक केदार शर्मा की ‘जोगन’ (1950), अमेय चक्रवर्ती की ‘गौना’ (1950)
और ‘बादल’ (1951), भगवान हाजेला की ‘बेबस (1950),
एच.एस.रवेल की ‘सगाई’ (1951) और ‘शग़ूफ़ा’
(1953), ओ.पी.दत्ता की ‘पर्वत’ (1952), गुरूदत्त की ‘जाल’ (1952), बी.आर.चोपड़ा की ‘शोले’ (1953), रामानंद सागर की ‘मेहमान’ (1953) और भगवानदास वर्मा की ‘औरत’ (1953) और ‘पूजा’ (1954) जैसी अपने वक़्त की क़रीब 20 कामयाब फ़िल्मों में बतौर नायिका और सहनायिका काम किया और फिर साल 1954 में निर्माता-निर्देशक भगवानदास वर्मा से शादी करके अभिनय को अलविदा कह दिया। लेकिन अचानक वक़्त बदला और घर की माली हालत बिगड़ती चली गयी। हालात यहां तक पहुंच गए कि मुझे अपना बंगला भी बेच देना पड़ा। ये वोही जगह थी जहां आज विजय आनंद का ‘केतनव स्टूडियो’ खड़ा है’।
(फ़िल्मोद्योग के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि पूर्णिमा और भगवानदास वर्मा, दोनों की ही ये दूसरी शादी थी। पूर्णिमा की पहली शादी फ़िल्म पत्रकार शौक़त हाशमी से हुई थी जो पूर्णिमा से अलग होने के बाद पाकिस्तान चले गए थे। शौक़त हाशमी से पूर्णिमा का एक बेटा है। उधर भगवानदास वर्मा भी पहले से शादीशुदा और पत्नी-बच्चों वाले व्यक्ति थे।)
क़रीब 3 साल अभिनय से दूर रहने के बाद पूर्णिमा ने घर के माली हालात संभालने के लिए एक बार फिर से अभिनय करने का फैसला लिया। उनका कहना था, ‘मेरे करियर के इस दूसरे दौर की शुरूआत साल 1957 में बनी फ़िल्म ‘चमक चांदनी’ से हुई जो एक कॉस्ट्यूम ड्रामा थी। चूंकि अब मेरा एकमात्र मक़सद पैसा कमाना था इसलिए मुझे जैसा भी काम मिला, मैंने किया। ‘बाग़ी सिपाही’, ‘जंगबहादुर’, ‘पोस्ट बॉक्स 999’, ‘सन ऑफ़ सिंदबाद’ (सभी 1958), ‘जवानी की हवा’, ‘कंगन’, ‘मैडम एक्स वाय ज़ेड’ (सभी 1959), ‘कॉलेज गर्ल’, ‘गैम्बलर’ (सभी 1960) जैसी कई अच्छी-बुरी फ़िल्में बतौर नायिका-सहनायिका करते करते मैं कब चरित्र अभिनेत्रियों की कतार में आ खड़ी हुई पता ही नहीं चला।
‘बदतमीज़’, ‘हमजोली’, ‘मेरा गांव मेरा देश’, ‘बैराग’, ‘ज़ंजीर’, ‘ख़ूनपसीना’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’, ‘धर्मकांटा’, ‘इंक़लाब’ जैसी दर्जनों फ़िल्मों में पूर्णिमा बतौर चरित्र अभिनेत्री नज़र आयीं। उनके मुताबिक़, ‘बढ़ती उम्र के साथ जब काम करते हुए मैं थकने लगी तो साल 1986
में बनी, जीतेन्द्र, रेखा और गोविंदा की मुख्य भूमिकाओं वाली फ़िल्म ‘सदा सुहागन’ के साथ ही मैंने फ़िल्मों को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया’।
पूर्णिमा के पति भगवानदास वर्मा अपने समय के मशहूर निर्माता-निर्देशक थे जिन्होंने ‘वर्मा फ़िल्म्स’ के बैनर में ‘पतंगा’, ‘सगाई’, ‘बादल’, ‘औरत’, ‘पर्वत’ और ‘पूजा’ जैसी कई कामयाब फ़िल्में बनाई थीं। साल 1962
में भगवानदास वर्मा का देहांत हो गया था। पूर्णिमा के मुताबिक़, 38 साल के अपने करियर में उन्होंने क़रीब 200
फ़िल्मों में अभिनय किया। उनका इकलौता बेटा एयर इंडिया में नौकरी करता था। शकीला, सायरा बानो और दुलारी उनकी क़रीबी मित्र हैं। शकीला और सायरा बानो उनके घर के आसपास ही रहती हैं इसलिए उनसे पूर्णिमा का मिलना जुलना होता रहता है। पूर्णिमा का कहना है, ‘मुझे सबसे ज़्यादा ख़ुशी इस बात की है कि आज मेरा पोता स्टार बन बन चुका है और अब लोग मुझे पूर्णिमा के नहीं बल्कि स्टार इमरान हाशमी की दादी के नाम से जानते हैं’।
(पूर्णिमा जी से मेरी आख़िरी बातचीत क़रीब 3 साल पहले हुई थी, लेकिन उनके फ़ोन नम्बर बदल जाने की वजह से इस बार उनसे सम्पर्क करने और हालिया जानकारी लेने की मेरी तमाम कोशिशें नाकाम रहीं। यहां तक कि ‘सिने एंड टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन - सिंटा’ के रेकॉर्ड में भी उनके पुराने नम्बर ही दर्ज हैं।)
अभिनेत्री पूर्णिमा का निधन 14 अगस्त 2013
को 81 साल की उम्र में मुम्बई में हुआ|
We are thankful to –
Delhi based film
historian & writer Mr. Sanjeev Tanwar for providing the (extremely rare)
picture of actress Shirin.
Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir
Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and
support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters & pictures.
Ms.
Aksher Apoorva for the English translation
of the write ups.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video
editing.
Purnima ji on YT Channel BHD
“Dil Se Bhula Do Tum Hamein, Hum Na Tumhe Bhulayenge”- Purnima
............Shishir Krishna Sharma
Mumbai’s western suburb Khar’s posh ‘Pali Hill’ area is known because of the big guns of the film
industry that reside there. Other than bungalows of the likes of Dilip Kumar, Saira Bano, Gulzar, Rakhi, Rishi Kapoor, Sanjay Dutt, Amir Khan etc. Late Dev Anand’s Navketan Studio is also situated at Pali Hill itself. At the very same Pali Hill’s ‘Nargis Dutt Road’ is
a posh high-rise building called ‘Reshma Apartments’
and on its 6th floor is a large but beautifully decorated apartment
that resides Hindi cinema’s golden years’ famous actress Purnima. For the past
many years, she has been away from films, shy of even meeting anyone associated
with the media.
Some years back when at Purnima’s house I was taking her close friend actress Dulari’s interview I also happened to meet her and during that meeting when I humbly requested Purnima for an interview at a later date she replied, “Our yesteryear image that is there in the minds of the people, it is better that it stays that way. What’s the need to show them our ‘today’ and to paint a picture of our present just to shatter their image of us?” But at my insistence not only did she agree to an interview, she also gave me some old pictures of her of that golden era which can be seen here with this write up.
Born on 2 March 1932 in Mumbai, Purnima’s father Ram Sheshadri Ayangar was a Tamil Brahmin who used to handle accounts at Manmohan Desai’s film distributor father Kiku Bhai Desai’s office. Purnima’s mother was from a Muslim family of Lucknow. At home other than her parents there were 5 daughters (including Purnima) and 1 son. In the 1930’s decade, Purnima’s eldest sister Shirin had also worked in films like ‘Bambai Ki Sethani’ (1935), ‘Passing Show’ (1936), ‘Khwab Ki Duniya’ (1937), ‘State Express’ (1938) and ‘Bijli’ (1939). Shirin was Producer-Director Nanabhai Bhatt’s second wife and the famous film maker Mahesh Bhatt is the same Shirin’s son and Purnima’s nephew.
According to Purnima that era’s well-known director Raman B. Desai, who was also their neighbor, had offered Purnima ‘Radha’s’ role in his Guajarati film ‘Radheshyam’. Purnima was still in school at that time. For the film, her elder sister Shirin, gave her the alias ‘Purnima’ in place of her real name ‘Meher Bano’. The film ‘Radheshyam’ was released in the year 1948 and at that time Purnima was merely 16 years old. According to Purnima, “My first Hindi film was Kedar Sharma’s ‘Thes’ where I was playing the second lead.” Featuring Bharat Bhushan and Shashikala in the main roles, this film was released in the year 1948.
(According to the senior film historian Shri Harish Raghuwanshi, in the year 1947 i.e. a year before ‘Thes’, Purnima had acted in two Hindi films ‘Manager’ and ‘Tum Aur Mai’ and in 1948 other than ‘Radheshyam’ she had also worked in Director Raja Yagnik’s Gujrati film ‘Saavaki Maa’.)
After ‘Thes’ Purnima saw 2 more releases in 1949 viz. ‘Narad Muni’, and ‘Patanga’ where she was seen playing the second lead in both the films. While Raman B.Desai’s Gujarati and Hindi bilingual film ‘Narad Muni’ and Kedar Sharma’s ‘Thes’ could not create much box office magic, Producer Bhagwan Dass Varma’s film ‘Patanga’ proved to be very successful. Composed by C.Ramchandra, 2 songs of this musical hit film ‘dil se bhula do tum hamein’ and ‘o jaane waale tone armanon ki duniya loot li’ were filmed on Purnima and after the film’s release Purnima’s schedule became very hectic.
Purnima says, “I worked as a heroine and second lead in about 20 successful films of our time like director Kedar Sharma’s ‘Jogan’ (1950), Ameya Chakravorty’s ‘Gauna’ (1950) and ‘Badal’ (1951), Bhagwan Hajela’s ‘Bebus’ (1950), H.S.Rawail’s ‘Sagai’ (1951) and ‘Shagoofa’ (1953), O.P.Dutta’s ‘Parbat’ (1952), Guru Dutt’s ‘Jaal’ (1952), B.R.Chopra’s ‘Sholey’ (1953), Ramanand Sagar’s ‘Mehmaan’ (1953) and Bhagwan Dass Varma’s ‘Aurat’ (1953) and ‘Pooja’ (1954) and then in the year 1954, I married Producer-Director Bhagwan Dass Varma and said goodbye to acting. But then suddenly times changed, and our financial condition deteriorated. Our condition was such that I had to even sell my own bungalow. This was the same place where today Vijay Anand’s ‘Ketnav Studio stands.”
(Industry sources say that it was both Purnima and Bhagwan Dass Varma’s second marriage. Purnima’s first marriage was with film journalist Shauqat Hashmi who migrated to Pakistan after separating from Purnima. Purnima also has a son by Shauqat Hashmi. Bhagwan Dass Varma was also a married family man.)
Having stayed away from acting for 3 years, Purnima decided to return to acting just so that she could stabilize the financial situation at home. She says, “The second innings of my career started with the 1957 film ‘Chamak Chandni’ which was a costume drama. Because my main aim was to earn money, I did whatever work that came my way. I did many good-bad films like ‘Baaghi Sipahi’, ‘Jang Bahadur’, ‘Post Box 999’, ‘Son Of Sindbad’ (all 1958), ‘Jawani Ki Hawa’, ‘Kangan’, ‘Madam XYZ’ (all 1959), ‘College Girl’, ‘Gambler’ (all 1960) as the main or second lead and then slowly and steadily I just didn’t realize how I had become a character artist.”
In dozens of films like ‘Badtameez’, ‘Humjoli’, ‘Mera Gaon Mera Desh’, ‘Bairaag’, ‘Zanjeer’, ‘Khoon Pasina’, ‘Mai Tulsi Tere Angan Ki’, ‘Dharam Kanta’, ‘Inqalaab’ etc. Purnima was seen as a character artist. According to her, “with my increasing age as I began to tire out while working, with the 1986 film ‘Sada Suhagan’, where Jeetendra, Rekha and Govinda were playing the lead roles, I said my farewell to acting forever.”
Purnima’s husband Bhagwan Dass Varma was a famous Producer-Director of his time who had many successful films like ‘Patanga’, ‘Sagai’, ‘Badal’, ‘Aurat’, ‘Parvat’ and ‘Pooja’ under his banner of ‘Varma Films’. Bhagwan Dass Varma passed away in 1962. According to Purnima she acted in almost 200 films in a career spanning 38 years. Her only son worked in Air India. Shakila, Saira Bano and Dulari are her close friends. Since Shakila and Saira Bano stay close to Purnima’s house they keep meeting quite regularly. Purnima says, “I am most proud of the fact that today my grandson has become a star in front of my eyes and nothing makes me prouder than the fact that now people don’t know me as Purnima but instead they know me as Star Imran Hashmi’s grandmother.”
(Last time I spoke to Purnima ji was around 3 years back but all my efforts to contact her again to gather updates failed this as her contact numbers have changed. Even the ‘Cine & TV Artist’s Association-CINTAA doesn’t have her new contact numbers.)
Actress Purnima died in Mumbai at the age of 81 on 14 August 1913.