“ये समां ये ख़ुशी कुछ बोलो जी बोलो जी” – अज़रा
..........शिशिर कृष्ण शर्मा
1930 और
40 के
दशक की
सबसे बड़ी
फ़िल्म कम्पनी,
दादर
(पूर्व)
स्थित रणजीत
मूवीटोन और
रणजीत स्टूडियो
का फ़िल्मों
से रिश्ता
भले ही
दशकों पहले
टूट चुका
हो, लेकिन
वो कमरा
जिसमें कभी
सरदार चंदूलाल
शाह के
भांजे और
निकट सहयोगी
निर्देशक रतिभाई
पुणातर बैठते
थे, आज
भी उसी
70 साल पुरानी
स्थिति में
है। सरदार
चंदूलाल शाह,
गौहर और
रतिभाई पुणातर
तो अब
नहीं रहे
लेकिन रतिभाई
के कमरे
में आज
उनके बेटे
जयराज भाई
पुणातर बैठते
हैं।
जयराज भाई समय के गर्त में खो चुकी फ़िल्मों के निगेटिव और प्रिंट तलाशने के कारोबार में हैं| एक रोज़ मैं और जयराज भाई उसी कमरे में बैठे बातचीत कर रहे थे कि अचानक ही गुज़रे ज़माने के मशहूर निर्माता-निर्देशक नानूभाई वकील और उनकी फ़िल्मों का ज़िक्र छिड़ गया। उस रोज़ मुझे पता चला कि ‘मदर इंडिया’ और ‘लव इन शिमला’ जैसी फ़िल्मों से अपनी पहचान बनाने वाली अभिनेत्री अज़रा नानूभाई वकील की बेटी हैं और मुम्बई में ही रहती हैं, हालांकि अज़रा जी का नाम मेरे ज़हन से कभी का मिट चुका था।
मैंने
अज़रा जी
का इंटरव्यू
करने की
इच्छा ज़ाहिर
की तो
जयराज भाई
ने मुझे
उनका मोबाईल
नम्बर तो
दे दिया
लेकिन साथ
ही ये
भी कह
दिया कि
अज़रा जी
बरसों पहले
फ़िल्मी दुनिया
को अलविदा
कहकर शांति
से ज़िंदगी
गुज़ार रही
हैं, और
कितनी भी
कोशिश कर
लो वो
इंटरव्यू नहीं
देंगी। यही
बात जब
अज़रा जी
की क़रीबी
दोस्त और
1960 और 70
की मशहूर
अभिनेत्री-नृत्यांगना
बेला बोस
जी ने
भी दोहराई
तो मैंने
उम्मीद ही
छोड़ दी।
अचानक
ही कुछ
महिनों पहले
मुझे अमेरिका
से श्री
सलीम शाह
का भेजा
एक ईमेल
संदेश मिला।
उन्होंने लिखा
था कि
वो ‘बीते
हुए दिन’
के नियमित
पाठक और
प्रशंसक हैं,
दिसम्बर (2015)
के पहले
हफ़्ते में
कुछ दिनों
के लिए
भारत आ
रहे हैं
और उस
दौरान वो
मुझसे मिलना
चाहेंगे। इसके
साथ ही
उन्होंने अपना
जो परिचय
दिया, वो
अत्यंत प्रभावशाली
और उत्साहवर्धक
था। उन्होंने
लिखा था
कि वो
सन 1930
और 40
की स्टार
अभिनेत्री इंदुरानी
और मोहन
स्टूडियो के
मालिक निर्माता-निर्देशक
रमणीकलाल शाह
(चित्र में)
के बेटे
हैं और
हमेशा की
तरह इस
बार भी
मुम्बई में
अपनी मौसी
की बेटी
अभिनेत्री अज़रा
के घर
पर रूकेंगे।
मुम्बई
के एक
मशहूर पश्चिमी
उपनगर के
सबसे पॉश
इलाक़ों में
से एक।
अरब सागर
के किनारे
स्थित बहुमंज़िली
इमारत के
सबसे ऊपरी
फ़्लोर का
विशाल टैरेस
फ़्लैट। श्री
सलीम शाह
और उनकी
पत्नी ने
अमेरिका में
रहने वाली
श्री शाह
की दोनों
छोटी बहनों
से मेरा
परिचय कराया।
वो भी
‘बीते
हुए दिन’
की पाठिकाएं
और प्रशंसिकाएं
थीं। उन
दोनों की
गर्मजोशी ने
मुझे इस
बात का
ज़रा भी
अहसास नहीं
होने दिया
कि मैं
उनसे पहली
बार मिल
रहा हूं।
जल्द ही
अज़रा जी
भी हमारी
बातचीत में
शामिल हो
गयीं। और
फिर इंटरव्यू
के लिए
भी वो
बिना नानुकुर
के तैयार
हो गयीं।
रिटारमेंट के
बाद के
इन साढ़े
चार दशकों
में हुए
अज़रा जी
के
(सम्भवत:)
इस इकलौते
इंटरव्यू का
पूरा श्रेय
मैं श्री
सलीम शाह
को देना
चाहूंगा जो
पहले से
ही ‘बीते
हुए दिन’
के पक्ष
में बहुत
अच्छा माहौल
तैयार कर
चुके थे।
साथ ही
अज़रा जी
का भी
उनके सहयोगपूर्ण
रवैये के
लिए शुक्रिया
अदा करना
चाहूंगा।
दिल्ली के रहने वाले शेख इमामुद्दीन और उनकी पत्नी मुनव्वरजहां के सात बच्चों में से दो बेटियां रोशनजहां उर्फ़ रानी और उनसे छोटी इशरतजहां 1930 और 40 के दशक की फ़ैंटेसी फ़िल्मों की स्टार अभिनेत्रियां थीं। रोशनजहां का स्क्रीननेम ‘सरोजिनी’ था। साल 1934 में प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘दीवानी’ से फ़िल्मों में कदम रखने वाली सरोजिनी ने क़रीब 12 साल के करियर में ‘भारत की बेटी’, सुंदरी’, ‘मधु बंसरी’, ‘संसार नैया’, ‘सन ऑफ़ अलादीन’, ‘दीपक महल’, ‘हातिमताई की बेटी’, ‘जादुई कंगन’, ‘संस्कार’, ‘जादुई बंधन’, ‘ताजमहल’, ‘फ़रमान’, ‘नया ज़माना’, ‘श्रीकृष्णार्जुन युद्ध’ और ‘सर्कस किंग’ जैसी फ़िल्मों में काम किया। उसी दौरान उन्होंने फैंटेसी फ़िल्मों के लिए मशहूर निर्माता-निर्देशक नानूभाई वक़ील के साथ गुप्तविवाह भी कर लिया था। अज़रा इन्हीं सरोजिनी और नानूभाई वकील (चित्रों में) की बेटी हैं।
उधर
‘इंदुरानी’
के नाम
से साल
1937 की
फ़िल्म ‘इंसाफ़’
से करियर
शुरू करने
वाली इशरतजहां
ने अगले
12 सालों
में ‘बुलडॉग’,
‘मेरी भूल’,
‘मि.एक्स’,
‘सुनहरा बाल’,
‘भेदी कुमार’,
‘चश्मावाली’, ‘मिडनाईट
मेल’, ‘स्वास्तिक’,
‘हातिमताई की
बेटी’, ‘जादुई
कंगन’, ‘थीफ़
ऑफ़ तातार’,
‘अलादीन लैला’,
‘बुलबुले बग़दाद’,
‘ताजमहल’ और
‘ज़ेवर’
जैसी कई
फ़िल्में कीं।
इंदुरानी का
विवाह निर्माता-निर्देशक
रमणीकलाल शाह
से हुआ
था। श्री
सलीम शाह
इन्हीं इंदुरानी
के बेटे
हैं।
अज़रा
जी बताती
हैं, “मेरा
जन्म सितम्बर
महिने की
21 तारीख
को मुम्बई
में हुआ
था। छठवीं
तक की
पढ़ाई मैंने
सांताक्रुज़ के
सेंट टेरेसा
कॉन्वेन्ट हाईस्कूल
से की
और फिर
साल 1950
में मैं
अपनी नानी
के पास
दिल्ली चली
गयी। क़रीब
5 साल
दिल्ली में
रहकर मैंने
पहाड़ी भोजला-चितलीक़बर-जामा
मस्जिद के
सेंट फ़्रांसिस
स्कूल से
स्कूली पढ़ाई
पूरी की
और फिर
साल 1954-55
में वापस
मुम्बई लौट
आयी।“
अज़रा
जी का
फ़िल्मों में
आना महज़
एक इत्तेफ़ाक़
था। वो
बताती हैं,
“मैं जोगेश्वरी
के इस्माईल
यूसुफ़ कॉलेज
में बी.ए.
फ़र्स्ट ईयर
में पढ़
रही थी।
एक रोज़
मैं सांताक्रुज़
के आर्यसमाज
मंदिर में
किसी शादी
में गयी
जहां महबूब
ख़ान की
पत्नी सरदार
अख़्तर भी
आयी हुई
थीं। वो
मेरी मौसी
इंदुरानी की
सहेली थीं।
मुझे देखकर
वो मौसी
से कहने
लगीं, तुम्हारी
भांजी तो
बहुत सुंदर
है, और
फिर बात
आयी-गयी
हो गयी।
लेकिन तीन
चार दिन
बाद सरदार
अख़्तर ने
मेरे घर
पर फ़ोन
किया। मैं
उस वक़्त
कॉलेज गयी
हुई थी।
उसी शाम
मुझे परिवार
के साथ
अजमेर जाना
था जहां
मेरे पिता
अपनी किसी
फिल्म की
शूटिंग कर
रहे थे।
उस फ़िल्म
की हिरोईन
चित्रा थीं।
सरदार अख़्तर
ने मेरे
लिए संदेश
छोड़ा कि
कॉलेज से
लौटते ही
मैं फ़ौरन
महबूब स्टूडियो
पहुंच जाऊं।“
अज़रा
जी महबूब
स्टूडियो पहुंचीं
तो वहां
फ़िल्म ‘मदर
इंडिया’ की
शूटिंग चल
रही थी।
फ़िल्म में
बिरजू
(सुनील दत्त)
की प्रेमिका
‘चंद्रा’
की भूमिका
में जिस
लड़की को
लिया गया
था वो
लखनऊ में
थी और
बीमार पड़
जाने की
वजह से
मुम्बई नहीं
आ पायी
थी। ऐसे
में सरदार
अख़्तर को
अज़रा जी
का ख़्याल
आया और
इस तरह
वो बिना
किसी योजना
के ही
अभिनेत्री बन
गयीं। अज़रा
जी कहती
हैं, “मैंने
कभी लिपिस्टिक
तक नहीं
लगाई थी
और यहां
मुझे फिल्म
के लिए
सजना-संवरना
पड़ रहा
था। मुझे
उलझन में
पड़ा देख
मेरी चोटी
भी नरगिस
ने बनाई।
‘मदर
इंडिया’ की
शूटिंग मैंने
साल 1956
में शुरू
की थी
और ये
फ़िल्म 1957
में रिलीज़
हुई।
साल 1958 में अज़रा जी की फ़िल्म ‘टैक्सी 555’ प्रदर्शित हुई। प्रदीप कुमार और शकीला की मुख्य भूमिकाओं वाली इस फ़िल्म में वो सहनायिका थीं। साल 1959 में बनी फिल्म ‘घर घर की बात’ में वो नायिका बनीं। इस फ़िल्म का निर्माण उनके मौसा और श्री सलीम शाह के पिता रमणीकलाल शाह ने किया लेकिन ये दोनों ही फ़िल्में कुछ ख़ास नहीं चल पायीं। साल 1960 में अज़रा जी की दो फ़िल्में प्रदर्शित हुईं, जिनमें से एक थी ‘फ़िल्मिस्तान’ के बैनर में बनी ‘बाबर’ और दूसरी, दो साल पहले ‘फ़िल्मिस्तान’ से अलग हुए शशधर मुकर्जी के बैनर ‘फ़िल्मालय’ की ‘लव इन शिमला’। ‘फिल्मालय’ के बैनर में इससे पहले ‘दिल देके देखो’ (1959) और ‘हम हिंदुस्तानी’ (1960) बन चुकी थीं।
फ़िल्म ‘लव इन शिमला’ जॉय मुकर्जी और साधना की बतौर नायक-नायिका पहली फ़िल्म थी। इस फ़िल्म में अज़रा जी सहनायिका की भूमिका में थीं। अपने दौर की सुपरहिट फ़िल्म ‘लव इन शिमला’ ने अज़रा जी को दर्शकों के बीच अच्छी पहचान दी। लेकिन उनका करियर महज़ 15 साल का रहा। उन 15 सालों में अज़रा जी ने ‘जंगली’, ‘गंगा जमुना’, ‘गंगा की लहरें’, ‘इशारा’, ‘बहारों के सपने’, ‘बंदिश’, ‘वापस’, ‘राजा साहब’, ‘महल’, ‘माय लव’ और ‘इल्ज़ाम’ जैसी क़रीब दो दर्जन फ़िल्मों में मुख्यत: सहनायिका और चरित्र भूमिकाएं कीं और फिर शादी करके फ़िल्मों से अलग हो गयीं।
‘गंगा जमुना’ में वो सहनायक नासिर ख़ान की प्रेमिका की भूमिका में थीं। फ़िल्म ‘शाने ख़ुदा’ (1971) और ‘पॉकेटमार’ (1974) उनकी शादी के बाद प्रदर्शित हुईं। फ़िल्म ‘शाने ख़ुदा’ का निर्देशन उनके पिता नानूभाई वक़ील ने किया था।
अज़रा
जी बताती
हैं, “जनवरी
1971 में
मुम्बई के
एक मशहूर
कारोबारी परिवार
में मेरी
शादी हुई।
मेरे ससुरालपक्ष
का न
तो फ़िल्मों
से कोई
रिश्ता था
और न
ही वो
रिश्ता रखना
चाहते थे।
ऐसे में
मैंने भी
फ़िल्मों से
अलग होने
में देर
नहीं की।
देवआनंद ने,
जिनके साथ
मैं फिल्म
‘महल’
में काम
कर चुकी
थी, मुझे
अपनी किसी
फ़िल्म में
लेना चाहा
लेकिन मैंने
उन्हें भी
विनम्रता से
इंकार कर
दिया। शादी
के बाद
मैंने सिर्फ़
अपना बचा
हुआ काम
निपटाया और
फिर फ़िल्मी
दुनिया को
हमेशा के
लिए अलविदा
कह दिया।“
अज़रा
जी आज
फ़रहाना के
नाम से
जानी जाती
हैं। उनकी
छोटी बहन
रेहाना अमेरिका
में रहती
हैं। रेहाना
इंडियन एयरलाईंस
में नौकरी
करती थीं।
शादी के
बाद वो
अमेरिका चली
गयीं और
यू.एस.एयरफ़ोर्स
में 25
साल नौकरी
करके रिटायर
हुईं। अज़रा
जी के पिता नानूभाई वकील का निधन 19 दिसम्बर 1980
को हुआ और उनकी
मां सरोजिनी
साल 1993
में गुज़रीं।
अज़रा जी
की मौसी
इंदुरानी अपने
बेटे सलीम
शाह के
साथ अमेरिका
में रहती
थीं। उनका
निधन साल
2011 में
हुआ। श्री
सलीम शाह के पिता रमणीक लाल शाह जुलाई 1973 में ही गुज़र चुके थे।
अज़रा जी से हुई मुलाक़ात और इंटरव्यू ब्लॉग ‘बीते हुए दिन’ के लिए किसी करिश्मे से कम नहीं था और इस करिश्मे का ज़रिया बने थे श्री सलीम शाह। लेकिन अभी एक और करिश्मा होना बाक़ी था जिसका श्रेय जाता है अज़रा जी को। और वो करिश्मा ये था :-
https://beetehuedin.blogspot.com/search/label/actress%20%3A%20Shakila
Mr. Salim Shah, Mr. Arun Kumar Deshmukh, Mr. Harish Raghuvanshi
& Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for
their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Mr. Gajendra Khanna for the English
translation of the write ups.
“Ye Sama Ye Khushi Kuchh Bolo Ji Bolo Ji” – Azra
..........Shishir Krishna Sharma
Though Ranjit Movietone, the biggest film company of the 1930’s & 40’s and Ranjit Studio of Dadar (East) wound up decades back but the room once occupied by Sardar Chandulal Shah’s nephew and close aide Ratibhai Punatar is still intact over 70 years later. Sardar Chandulal Shah, Gauhar and Ratibhai Punatar died long back yet Ratibhai’s room is still in the possession of his son Jayrajbhai Punatar.
Jayrajbhai is an entrepreneur who specializes in finding and retrieving the negatives and prints of long-lost movies. One day, sitting in the same room, I was busy talking with Jairajbhai when he suddenly started talking about the movies of famed producer-director Nanubhai vakil of the bygone era. That day I came to know that the actress Azra who is known for her movies like ‘Mother India’ and ‘Love in Simla’ is Nanubhai Vakil’s daughter and she still resides in Mumbai though her name had vanished from my memory long back.
When I expressed my desire to interview Azra ji, Jayrajbhai gave me her mobile number but also mentioned that Azra ji was living a peaceful retired life after she bid adieu to the filmdom and whatever efforts I put, she wasn’t likely to give any interview. When Azra ji’s close friend and well-known actress-dancer of the 1960’s and 70’s Bela Bose ji also expressed the same view, I lost all my hopes.
One fine day I received an e-mail from Mr. Salim Shah of U.S. a couple of months back. He wrote that he was an avid reader and admirer of ‘Beete Hue Din’, would be reaching India for a couple of days in the first week of December (2015) and would love to meet with me during the said trip to India. His self-introduction in the mail was quite impressive and encouraging. He wrote that he was the son of star actress of 1930’s & 40’s Indurani and producer-director Ramniklal Shah who was the owner of Mohan Studio and would be staying with his cousin (his maternal aunt’s daughter) Azra as always.
It was a pleasure to meet with Shri Salim Shah and his wife (of French origin) Smt. Francoise Shah at well-known film historian & writer Shri Arun Kumar Deshmukh’s home at Seven Bungalows, Andheri (West) in the afternoon of 6th December 2015. After spending initial 22 years of his life in Mumbai Shri Salim Shah shifted to U.S. in 1960. He shared his memories of the film world of those 22 years with us during our meeting and also gave us lots of rare information on film personalities of that time including his mother and maternal aunt (Mausi). While parting, he invited us to Azra ji’s place where he was staying. But he didn’t promise me any fulfilment of my desire to interview Azra ji. Probably he was aware that it wouldn’t be easy to persuade Azra ji for the same.
Two days later he called me and once again invited me to Azra ji’s home. Two days later, on the afternoon of 10th of December, at the agreed time I was at the doorsteps of Azra ji’s home.
It is in one of West Mumbai’s poshest areas. It was a huge terrace flat on the topmost floor of a Highrise on the shore of the Arabian Sea. Shri Salim Shah and his wife introduced me to his two younger sisters who also reside in the U.S. They too were avid readers and admirers of ‘Beete Hue Din’. Their warm welcoming nature didn’t make me feel that I was meeting with them for the first time. Azra ji also joined us soon and then readily agreed for the interview. I would like to give credit for this, possibly only interview of Azra ji’s in the 4-1/2 decades of her retirement solely to Shri Salim Shah who had already made a very positive atmosphere in favour of ‘Beete Hue Din’. Simultaneously, I would also thank Azra ji for her cooperative stance.
Delhi’s Sheikh Imamuddin and his wife Munavvar Jehan’s two daughters Roshan Jehan alias Rani and younger one Ishrat Jehan among 7 of their children had established themselves as the star actresses of fantasy films of the 1930s and 40s. Roshan Jehan’s screen name was Sarojini and she debuted in 1934 with the film ‘Deewani’. Over a career of 12 years, Sarojini acted in movies like ‘Bharat Ki Beti’, ‘Sundari’, ‘Madhu Bansari’, ‘Sansaar Nayya’, ‘Son Of Alladin’, ‘Deepak Mahal’, ‘Hatimtai Ki Beti’, ‘Jadui Kangan’, ‘Sanskar’, ‘Jadui Bandhan’, ‘Taj Mahal’, ‘Farmaan’, ‘Naya Zamana’, ‘Shri Krishnarjun Yuddh’ and ‘Circus king’. Meanwhile, she also secretly married famed producer-director Nanubhai Vakil known for the production of fantasy movies. Azra is the daughter of the same Sarojini and Nanubhai Vakil.
On the other hand, Ishrat Jehan, who debuted with the 1937 release ‘Insaaf’ with the screen name of ‘Indurani’, acted in movies like ‘Bulldog’, ‘Meri Bhool’, ‘Mr.X’, ‘Sunehra Baal’, ‘Bhedi Kumar’, ‘Chashmawaali ‘, ‘Midnight Mail’, ‘Swastik’, ‘Hatitai Ki Beti’, ‘Jadui Kangan’, ‘Thief Of Tatar’, ‘Alladin Laila’, ‘Bulbul-E-Baghdad’, ‘Tajmahal’ and ‘Zevar’ etc. in next 12 years. She married producer-director Ramniklal Shah. Shri Salim Shah is the son of the same Indurani.
Azra ji says, “I was born on 21st September in Mumbai. After passing my 6th standard from St. Teresa Convent High School, Santacruz I shifted to Delhi to live with my maternal grandmother in 1950. During my five year stay in Delhi, I completed my schooling from St. Francis School of Pahadi Bhojla – Chitlikabar – Jama Masjid area and then returned to Mumbai in 1954-55.”
Azra ji’s joining the film industry happened by chance. She recalls, “I was studying in B.A. first year at Jogeshwari’s Ismail Yusuf College. One day I went to attend a marriage function at Aryasamaj Mandir, Santacruz where Mehboob Khan’s wife Sardar Akhtar was also present. She was a very close friend of my maternal aunt (mausi) Indurani. When she saw me, she told my mausi, “Your niece is very beautiful” and the matter ended there only. But three-four days later Sardar Akhtar made a phone call at my home. I had gone to my college at that time and the same evening we, the family had to leave for Ajmer to join my father who was shooting there for one of his films. Heroine of that film was Chitra. Sardar Akhtar left a message for me in which she had asked me to reach Mehboob Studio as soon as I reach home from my college.”
When Azra ji reached Bandra (west)’s Mehboob Studio, She found that the shooting of ‘Mother India’ was going on there. The girl who had been signed for the role of ‘Chandra’- the ladylove of Birju (Sunil Dutt) was in Lucknow had suddenly taken ill and couldn’t reach Mumbai for the shoot. That’s how Sardar Akhtar called Azra ji to take up the part, who, without any planning, became an actress. Azra ji says, “I had never even applied lipstick and here I had to apply full makeup for a movie! When Nargis saw my dilemma, she helped me to tie my hair in a braid. I started shooting for ‘Mother India’ in the year 1956 and this film released in 1957.”
Azra ji’s next ‘Taxi 555’ released in 1958. She played the second lead in this movie which had Pradeep Kumar and Shakila as the main leads. Her debut movie as the main heroine was the 1959 release ‘Ghar Ghar Ki Baat’ which was produced by her uncle (Mausa) and Shri Salim Shah’s father Ramniklal Shah. But both these movies failed to impress the audiences. Azra ji had 2 releases in the year 1960. One of them was ‘Babar’ which was made under the banner of ‘Filmistan’ and the other was ‘Love in Simla’, produced under the banner of ‘Filmalaya’. ‘Filmalaya’ was founded by Sasadhar Mukerjee after he parted ways from ‘Filmistan’ two years back. He had already made two movies made under this banner, namely, ‘Dil De Ke Dekho’ (1959) and ‘Hum Hindustani’ (1960).
‘Love in Simla’ was the debut movie of Joy Mukerjee and Sadhna both in main lead. Azra ji played the second heroine in this movie. A super hit movie of its time, ‘Love in Simla’ helped Azra ji gain the attention of the audience. However, her career lasted just 15 years. She, for he most part, acted in second heroine and character roles in around two dozen movies viz. ‘Junglee’, ‘Ganga Jamuna’, ‘Ganga Ki Lehrein’, ‘Ishara’, ‘Baharon Ke Sapne’, ‘Bandish’, ‘Wapas’, ‘Raja Saheb’, ‘Mahal’, ‘My Love’ and ‘Ilzam’ and finally bid adieu to Filmdom after she got married. In ‘Ganga Jamuna’, she was the second lead opposite Nasir Khan. Movies ‘Shaan-e-Khuda’ (1971) and ‘Pocketmar’ (1974) released after her marriage. ‘Shaan-e-Khuda’ was directed by her father Nanubhai Vakil.
Azra ji says, “In January 1971 I got married into one of Mumbai’s well known business families. No one at my in-laws’ home had any relation with the film world nor did they want to keep any such relation. For this reason, I also preferred to cut off all my ties with the film world. Dev Anand, with whom I had worked in ‘Mahal’ had also offered me a role in one of his films but I had to politely decline his offer also. Post marriage I completed my remaining work and then bid adieu to the film world forever.”
Azra ji is known as ‘Farhana’ today. Her younger sister Rehana is a U.S. citizen. Rehana worked with Indian Airlines. After marriage, she shifted to America where she served the U.S. Airforce for 25 years and is retired now. Azra ji’s father Nanubhai Vakil died on 29th December 1980 and her mother Sarojini died in the year 1993. Azra ji’s aunt Indurani lived with her son Salim Shah in America where she died in the year 2011. Salim Shah’s father Ramniklal Shah had passed away much earlier in July 1973.
The meeting with Azra ji and her interview were no less than a miracle for blog
‘Beete Hue Din’ and this miracle happened only because of Shri Salim Shah. However,
there was yet another miracle to happen and the credit for this miracle goes to
Azra ji. And this was that miracle:
– https://beetehuedin.blogspot.com/search/label/actress%20%3A%20Shakila