“मेरी
वीणा तुम
बिन रोए”
– अमीता
..............शिशिर
कृष्ण शर्मा
फ़िल्मिस्तान की साल 1957 में बनी हिट फ़िल्म ‘तुमसा नहीं देखा’ से न सिर्फ़ शम्मी कपूर को डांसिंग हीरो की नयी इमेज मिली, बल्कि अभी तक महत्वहीन और अपेक्षाकृत गंभीर भूमिकाओं में नज़र आने वाली अमीता को भी ‘तुमसा नहीं देखा’ ने ही स्टार बनाया था। 22 साल के अपने करियर के दौरान अमीता ने क़रीब 50 फ़िल्मों में अभिनय किया और फिर ख़ामोशी से फ़िल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया। बरसों बाद अमीता एक बार फिर से सार्वजनिक तौर पर लोगों के बीच आयीं जब 20 नवम्बर 2005 को ‘सिने एण्ड टी.वी. आर्टिस्ट एसोसिएशन’ (सिंटा) की वार्षिक आमसभा में उन्हें ‘लाईफ़टाईम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। सिंटा की इसी आमसभा में मशहूर अभिनेत्री बीना राय भी कई दशकों बाद पहली बार बाहरी लोगों के बीच आयी थीं। इन दोनों ही अभिनेत्रियों से मेरी मुलाक़ात इसी आमसभा में ही हुई थी। मैंने अमीता जी से इंटरव्यू का समय लिया और कुछ ही दिनों बाद तय समय के अनुसार मैं उनके घर पर था।
अमीता
ने अपने
करियर की
शुरूआत निर्माता-निर्देशक
लेखराज भाखड़ी
की फ़िल्म
‘ठोकर’
से की
थी,
जो साल
1953 में
प्रदर्शित हुई
थी। अभिनय
उन्हें विरासत
में मिला
था। मूलत:
लाहौर की
रहने वाली
उनकी मां
पाकिस्तान के
मशहूर अभिनेता
असलम परवेज़
की बहन
थीं। वो
कोलकाता में
अपने दौर
के मशहूर
रंगकर्मी माणिकलाल
डांगी की
कारिंथियन नाटक
कम्पनी में
काम करती
थीं और
शकुंतला देवी
के नाम
से जानी
जाती थीं।
अमीता का
जन्म 11
अप्रैल 1940
को कोलकाता
में हुआ
था। वो
सिर्फ़ डेढ़
साल की
थीं जब
उनके पिता
चौधरी रियाज़
अहमद गुज़र
गए थे,
जिसके बाद
मां उन्हें
साथ लेकर
मुम्बई चली
आयीं। अमीता
की पढ़ाई-लिखाई
बोर्डिंग स्कूल
में हुई।
अमीता बताती हैं, “मधुबाला मेरी पसन्दीदा अभिनेत्री थीं, जिनकी फ़िल्में देख-देखकर मैं उनके किरदारों की नक़ल करती थी। ऐसी ही एक फ़िल्म थी ‘बादल’ जिसमें मधुबाला की तलवारबाज़ी ने मुझे बेहद प्रभावित किया था। ये फ़िल्म साल 1951 में बनी थी। उस वक़्त मेरी उम्र क़रीब 11 साल थी। एक रोज़ मैं घर के बाहर तलवारबाज़ी का खेल खेल रही थी कि वहां से गुज़र रहे लेखराज भाखड़ी की नज़र मुझ पर पड़ी। उन्होंने पहली ही नज़र में मुझे फ़िल्म ‘ठोकर’ की सहनायिका की भूमिका के लिए पसन्द कर लिया। फ़िल्म ‘ठोकर’ के नायक-नायिका शम्मी कपूर और श्यामा और संगीतकार सरदार मलिक थे”। साल 1953 में ही बनी ‘श्री चैतन्य महाप्रभु’ अमीता की बतौर नायिका पहली फ़िल्म थी। ‘प्रकाश पिक्चर्स’ की, विजय भट्ट द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म के नायक भारतभूषण थे (चित्र में)।
अमीता कहती हैं, “मेरा असली नाम क़मर सुल्ताना है, मां प्यार से मुझे इन्दिरा कहकर पुकारती थीं, मेरी सहेलियां मुझे इंदु कहती हैं, जबकि फ़िल्म ‘ठोकर’ में मुझे जयजयवंती के नाम से प्रस्तुत किया गया था। फ़िल्म ‘श्री चैतन्य महाप्रभु’ के लिए विजय भट्ट ने अख़बारों में विज्ञापन के ज़रिए आम दर्शकों से पूछा था कि नायिका को क्या नाम दिया जाए तो मुझे ये नाम अमीता मिला”।
(अमीता
जी के
अनुसार साल
1953 में
प्रदर्शित हुई
‘ठोकर’
उनकी पहली
फ़िल्म थी।
लेकिन वरिष्ठ
फ़िल्म इतिहासकार
श्री हरीश
रघुवंशी द्वारा
उपलब्ध कराई
गयी अमीता
की फ़िल्मोग्राफ़ी
और श्री
हरमन्दिर सिंह
‘हमराज़’
द्वारा संकलित
‘हिंदी
फ़िल्म गीतकोष’
: खण्ड-3
के अनुसार
वो साल
1952 में
प्रदर्शित हुईं
दो फ़िल्मों
‘क़ाफ़िला’
और ‘अनमोल
सहारा’
में भी
नज़र आयी
थीं। चूंकि
इन दोनों
ही फ़िल्मों
में उन्होंने
अमीता के
नाम से
काम किया
इसलिए ऐसा
प्रतीत होता
है कि
ये फ़िल्में
उन्होंने ‘श्री
चैतन्य महाप्रभु’
के बाद
साईन की
होंगी,
जबकि ये
प्रदर्शित सबसे
पहले हुईं।)
फ़िल्म
‘श्री
चैतन्य महाप्रभु’
के न
चल पाने
का अमीता
के करियर
पर भी
बुरा असर
पड़ा। उन्हें
मजबूरन ‘अमर
कीर्तन’,
‘बादल और
बिजली’,
‘बाग़ी सरदार’
और ‘इन्द्रसभा’
जैसी बी-सी
ग्रेड फ़िल्मों
में छोटी-मोटी
भूमिकाएं करनी
पड़ीं। लेकिन
सायरा बानो
की मां
और अपने
ज़माने की
सुपरस्टार नसीम
बानो के
ज़रिए फ़िल्मिस्तान
फ़िल्म कम्पनी
के मुखिया
शशधर मुकर्जी
से हुई
मुलाक़ात अमीता
के लिए
बेहद अहम
साबित हुई।
अमीता बताती
हैं,
“फ़िल्मिस्तान की
‘आब-ए-हयात’,
मुनीमजी (दोनों
1955) और
‘हम
सब चोर
हैं’
(1956) जैसी
फ़िल्मों में
सह-भूमिकाएं
करने के
बाद ‘अभिमान’
में मैं
नायिका बनी
जिसके नायक
शेखर थे।
ये फ़िल्म
साल 1957
में प्रदर्शित
हुई थी।
उसी साल
फ़िल्म ‘ज़माना’
में मैंने
कमलजीत की
नायिका की
भूमिका की
और फिर
साल 1957
में ही
प्रदर्शित फ़िल्म
‘तुमसा
नहीं देखा’
की ज़बर्दस्त
कामयाबी ने
मुझे स्टार
बना दिया”।
अमीता
को अपनी
पसंदीदा अभिनेत्री
मधुबाला के
साथ काम
करने का
मौक़ा निर्माता-निर्देशक
अस्पी ईरानी
की फ़िल्म
‘शीरीं
फ़रहाद’
में मिला
था। ये
फ़िल्म साल
1956 में
बनी थी
और अमीता
आज भी
इसे अपने
जीवन की
सबसे बड़ी
उपलब्धि मानती
हैं। उधर
साल 1957
उनके करियर
के लिए
बेहद अहम
साबित हुआ
क्योंकि उस
साल ‘तुमसा
नहीं देखा’
के बाद
अमेय चक्रवर्ती
द्वारा निर्मित
और निर्देशित
उनकी फ़िल्म
‘देख
कबीरा रोया’
भी बेहद
कामयाब रही।
‘तलाश’,
‘संस्कार’,
‘राज सिंहासन’
और ‘आंगन’
जैसी कुछ
फ़िल्मों में
नायिका की
भूमिका करने
के बाद
फ़िल्म ‘गूंज
उठी शहनाई’
(1959) की
ज़बर्दस्त कामयाबी
ने उनके
करियर को
नयी ऊंचाईयों
पर पहुंचाया।
लेकिन ये
कामयाबी ज़्यादा
दिनों तक
नहीं रह
पायी।
अमीता
कहती हैं,
“नायिकाओं की
नयी पीढ़ी
फ़िल्मों में
कदम रख
रही थी।
प्रतिस्पर्धा में
टिके रहना
मुश्किल होता
जा रहा
था। ऐसे
में ‘सावन’,
‘छोटे नवाब’,
‘राजनन्दिनी’,
‘पिया मिलन
की आस’,
‘प्यार की
दास्तान’,
‘प्यासे पंछी’
और ‘हम
सब उस्ताद
हैं’
जैसी कुछ
फ़िल्में बतौर
नायिका करने
के बाद
मुझे चरित्र
भूमिकाओं का
रूख़ कर
लेना पड़ा।
मैंने ‘राखी’,
‘मेरे महबूब’,
‘रिश्तेनाते’,
‘आसरा’
और ‘अराऊण्ड
द वर्ल्ड’
जैसी कुछ
फ़िल्में बतौर
चरित्र अभिनेत्री
कीं और
फिर साल
1968 में
प्रदर्शित हुई
‘हसीना
मान जाएगी’
के बाद
फ़िल्मी दुनिया
को अलविदा
कह दिया”।
(अमीता
जी के
अनुसार उनकी
आख़िरी फ़िल्म
‘हसीना
मान जाएगी’
थी। लेकिन
इस फ़िल्म
के बाद
भी वो
तीन फ़िल्मों
‘कभी
धूप कभी
छांव’
(1971), ‘मेरा
शिकार’
(1973) और
‘किसान
और भगवान’
(1974) में
नज़र आयीं।
अत:
‘किसान
और भगवान’
को उनकी
आख़िरी प्रदर्शित
फ़िल्म कहा
जाएगा।)
अमीता
जी से
मेरी ये
बातचीत अंधेरी
(पश्चिम)
के सात
बंगला क्षेत्र
स्थित उनके
फ़्लैट में
हुई थी।
उस मुलाक़ात
के दौरान
उनकी मां
शकुंतला देवी
(चित्र में)
और बेटी
सबीहा भी
मौजूद थीं।
सबीहा ने
1980 और
90 के
दशक में
‘अनोखा
रिश्ता’,
‘बाप नम्बरी
बेटा दस
नम्बरी’,
‘जय विक्रांत’,
‘खिलाड़ी’
और ‘ज़ालिम’
जैसी फ़िल्मों
में काम
किया था।
लेकिन जल्द
ही उन्होंने
फ़िल्मी दुनिया
को अलविदा
कहा और
एक बेहतरीन
ज्वैलरी डिज़ाईनर
के तौर
पर अपनी
पहचान बना
ली।
अमीता
जी आज
भी उसी
फ़्लैट में
रहती हैं।
उनके क़रीबी
सूत्रों के
अनुसार शकुंतला
देवी का
निधन हो
चुका है
और सबीहा
खाड़ी के
किसी देश
की एयरलाईन
में नौकरी
करती हैं।
अपडेट लेने
के लिए
मैं एक
बार फिर
से अमीता
जी से
सम्पर्क करना
चाहता था।
लेकिन ये
पता चलने
के बाद
कि अब
वो मीडिया
से बात
करने में
कतराती हैं,
मैंने उनसे
सम्पर्क करना
उचित नहीं
समझा।
आने वाले 11 अप्रैल को अमीता जी 75 साल की होने जा रही हैं।
Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters & pictures.
Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
Ameeta ji on YT Channel BHD
“Meri Veena Tum Bin Roye” – Ameeta
..........Shishir Krishna Sharma
Filmistan’s 1957 release hit film
‘Tumsa Nahin Dekha’ not only gave a new ‘The Dancing Hero’ image to Shammi
Kapoor, but also made Ameeta a star, who was seen in comparatively serious and
not so important roles before the release of ‘Tumsa Nahin Dekha’. In a career spanning 22 years Ameeta acted in
50 films and then gracefully bid adieu to the film world. Years later, Ameeta
once again came out in public when she was honoured with the Lifetime
Achievement Award by the ‘Cine & TV Artistes Association’ (CINTAA) on 20
November 2005. Another star who was seen socializing with people on a public
platform viz. the same CINTAA annual general meeting after decades was Beena
Rai. I had chance to meet both these actresses in the same AGM. I requested
Ameeta ji for an appointment and few days later I was at her home at the right
time that was fixed for the interview.
Ameeta started her career with producer-director
Lekhraj Bhakhri’s ‘Thokar’ which released in the year 1953. She got this acting
talent from her mother who was originally from Lahore and was the sister of
Pakistan’s well-known actor Aslam Parvez. She worked with Corinthian Theatre
Company of Kolkata which was owned by the famous theatre director-actor
Maniklal Dangi and was known with the name Shakuntala Devi. Ameeta was born on
11 April 1940 in Kolkata. She was one and half years old when her father
Choudhary Riaz Ahmed died. Later Shakuntala Devi shifted to Mumbai along with
her daughter. Ameeta did her schooling at a boarding school.
Ameeta says, “Madhubala was my favorite
actress. I liked watching her movies and then copying her characters. I was
very impressed with her sword fight in one such film ‘Baadal’ which released in
the year 1951. I was 11 years old at that time. One day I was playing sword
fight outside my home when producer-director Lekharaj Bhakhri saw me. He liked
me so much that he instantly signed me for the character of the side heroine
for his under-production film ‘Thokar’. The main lead pair in ‘Thokar’ was
Shammi Kapoor and Shyama and the composer was Sardar Malik”.
Ameeta’s debut movie as heroine was
again a 1953 release ‘Shri Chaitanya Mahaprabhu’ which was produced by ‘Prakash
Pictures’ and directed by Vijay Bhatt. Ameeta’s hero in this movie was Bharat
Bhushan. Ameeta says, “My real name is Qamar Sultana, my mother fondly called
me Indira, my friends call me Indu whereas in ‘Thokar’ I was introduced with the
screen name ‘Jayjaywanti’. The screen name ‘Ameeta’ was given to me after Vijay
Bhatt published an advertisement in newspapers and asked readers to suggest a
name for the heroine for his upcoming movie ‘Shri Chaitanya Mahaprabhu’.
(According to Ameeta ji, her debut
movie as an actress was 1953 release ‘Thokar’. But as per her filmography
provided by well-known film historian Shri Harish Raghuwanshi ji (of Surat) and
the ‘Hindi Film Geet Kosh’ : part-2 compiled by Shri Harmandir Singh ‘Hamraz’ ji
(of Kanpur), she had already acted in 2 films ‘Kaafila’ and ‘Anmol Sahara’ in
the year 1952 i.e. even before the release of ‘Thokar’. Since her name in the
credits of these films appears as Ameeta, it seems that she signed these movies
after signing ‘Shri Chaitanya Mahaprabhu’ but they released first.)
The failure of ‘Shri Chaitanya
Mahaprabhu’ adversely affected Ameeta career. Constrainedly she had to accept
some B and C graders like ‘Amar Kirtan’, ‘Badal Aur Bijli’, ‘Baaghi Sardar’ and
‘Indrasabha’. But her career took a positive turn after Saira Bano’s mother and
a star of her times Naseem Bano introduced her to Filmistan Film Company’s head
Shashadhar Mukherjee. Ameeta says, “After playing side roles in Filmistan’s
‘Aab-E-Hayat’, ‘Munim ji’ (both 1955) and ‘Hum Sab Chor Hain’ (1956), I was
chosen for the lead role opposite Shekhar in ‘Abhimaan’. This was a 1957 release. Then I did ‘Zamana’
opposite Kamaljeet and then in the same year i.e. 1957, ‘Tumsa Nahin Dekha’s
record success made me a star”.
Ameeta got a chance to act with her
favorite actress Mashubala in producer-director Aspi Irani’s movie ‘Shirin
Farhad’. This was made in the year 1956 and Ameeta always considers it the
biggest achievement of her life. On the other hand, the year 1957 proved to be
the most important year of her career as besides ‘Tumsa Nahin Dekha’,
producer-director Amey Chakravorty’s ‘Dekh Kabira Roya’ also became a big hit.
After playing the main lead in movies like ‘Talaash’, ‘Sanskar’, ‘Raj Sinhasan’
and ‘Aangan’, she witnessed another great success in ‘Goonj Uthi Shehnai’
(1959) which took her career to the new heights. But this success didn’t last
very long.
Ameeta says, “That was the time when a
new generation of actresses was entering the film world. To stay in the
competition had become very hard. In such circumstances I had no other option
than to turn to character roles after playing main lead in the movies ‘Saawan’,
‘Chhote Nawab’, ‘Raj Nandini’, ‘Piya Milan Ki Aas’, ‘Pyar Ki Dastaan’, ‘Pyaase
Panchhi’ and ‘HumSab Ustaad Hain’. I did a couple of films like ‘Rakhi’, ‘Mere
Mehboob’, ‘Rishte Naate’, ‘Aasra’ and ‘Around the World’ as a character artist
and after ‘Haseena Maan Jayegi’, a 1968 release, I bid adieu to the film
world”.
(According to Ameeta ji her last film
was ‘Haseena Maan Jayegi’. But as per her filmography she was again seen in 3
movies ‘Kabhi Dhoop Kabhi Chhaon’ (1971), ‘Mera Shikaar’ (1973) and ‘Kisan Aur
Bhagwan’ (1974). Therefore ‘Kisan Aur Bhagwan’ should be treated as her last
release film.)
Ameeta ji’s interview took place at her
flat at the Seven Bungalows area at Andheri (West). Her mother Shakuntala Devi
and daughter Sabeeha were present during our conversation. Sabeeha also acted
in a couple of movies viz. ‘Anokha Rishta’, ‘Baap Numbari Beta Dus Numbari’, ‘Jay
Vikrant’, ‘Khiladi’ and ‘Zaalim’ in the 1980’s and 90’s. But soon she bid adieu
to the films and made a respectable place for herself in the field of jewellery
designing.
Ameeta ji still resides at the same
place. According to the sources close to her, Shakuntala Devi passed away a
couple of years back and Sabeeha is serving with an airline in some Gulf
country. I wanted to contact Ameeta ji once again to get the updates but after
I came to know that she avoids talking to media now, I decided not to bother
her.
Ameeta ji is going to complete 75 on coming 11 April.