Sunday, September 2, 2018

“Main Dhoondhta Hoon Jinko Raaton Ko Khayalon Mein” - Shiv Kumar

मैं ढूंढता हूं जिनको रातों को ख्यालों में- शिवकुमार  

                             ...........शिशिर कृष्ण शर्मा

हिन्दी सिनेमा में सुदेश कुमार, शैलेश कुमार, राकेश पांडे, विक्रम जैसे कई अभिनेता हुए जिन्होंने दर्शकों के बीच बहुत कम समय में अपनी अच्छी पहचान बनाई लेकिन फिर जल्द ही वो गुमनामी में खो गए| इन्हीं अभिनेताओं में शामिल थे शिवकुमार के नाम से मशहूर शिवकुमार पाठक जिन्होंने साल 1965 में बनी फ़िल्मपूनम की रातसे अपना करियर शुरू किया था और जिन्हें साल 1969 में बनी फ़िल्ममहुआने स्टार बना दिया था| क़रीब साढ़े तीन दशक के अपने करियर में शिवकुमार जी ने अभिनय के साथ-साथ फिल्मों के निर्माण और निर्देशन में भी हाथ आज़माया और सफलता हासिल की| लेकिन फिर अचानक ही वो भी गुमनामी के अंधेरों में खो गए|

साप्ताहिक सहारा समयके अपने कॉलमक्या भूलूं क्या याद करूंके लिए मैंने शिवकुमार जी को बहुत खोजा लेकिन तो सिनेमा से जुड़े लोगों और यूनियनों से कुछ पता चला और ही उनका नाम फ़िल्म डायरेक्ट्री में मिला| थकहार कर मैंने उनकी तलाश बंद कर दी| और फिर धीरे धीरे उनका नाम मेरे ज़हन से भी निकल गया| बरसों बाद अचानक ही मुझे एक फ़ेसबुक मित्र और ब्लॉगबीते हुए दिनके पाठक, दिल्ली निवासी श्री राजेश दुआ का सन्देश मिला कि सम्भव हो तो मैं समय निकालकर शिवकुमार जी का भी इंटरव्यू करूं जो अब फ़रीदाबाद में रहते हैं

ये सूचना वाकई काफ़ी उत्साहवर्धक थी लेकिन सिर्फ़ इंटरव्यू के लिए मुम्बई से फ़रीदाबाद जा पाना मेरे लिए संभव नहीं था| लेकिन क़रीब सालभर बाद विगत सितम्बर माह में किसी काम से दिल्ली जाने का कार्यक्रम बना तो अवसर का लाभ उठाते हुए मैं फ़रीदाबाद भी जा पहुंचा| और इस तरह शिवकुमार जी से बहुप्रतीक्षित मुलाक़ात और ब्लॉगबीते हुए दिनके लिए विस्तार से मेरी बातचीत आख़िर हो ही गयी|

मूलत: बैम्बीरपुर (अलीगढ़/उत्तरप्रदेश) के निवासी शिवकुमार पाठक जी के दादा कुंवर उमराव सिंह पाठक 40 गांवों के ज़मींदार थे| ब्राह्मण परिवार से होने के बावजूद शिवकुमार जी के दादा को ये विशुद्ध क्षत्रिय नाम अंग्रेजों ने सम्मानस्वरूप दिया था| शिवकुमार जी के पिता ओमप्रकाश पाठक चार भाईयों में सबसे बड़े थे| वो अपने एक भाई के साथ बैम्बीरपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बुलंदशहर केछोटी कसेर’ (कसेरखुर्द) गांव में रहकर ज़मीनों की देखभाल करते थे| उनके बाकी दो भाई पुश्तैनी गांव बैम्बीरपुर में ही रहते थे| शिवकुमार जी की मां भी जिला अलीगढ़ के एक ज़मींदार खानदान से थीं| शिवकुमार जी का जन्म 12 जनवरी 1942 को छोटी कसेर में हुआ था और पोते के जन्म की खुशी में उनकी दादी ने गांव के गरीबों में तीन-तीन बीघा ज़मीन बांटी थी| 3 भाई और 2 बहनों में शिवकुमार जी सबसे बड़े थे|

शिवकुमार जी बताते हैं, ‘छठवीं तक की मेरी पढ़ाई गढ़ी (घर) में ही प्राईवेट टीचरों की देखरेख में हुई| आगे की पढ़ाई के लिए मुझे मेरी मौसी के पास भेज दिया गया जो हरियाणा के पलवल में रहती थीं| मैंने पलवल के हिन्दू हाईस्कूल से 10वीं और सनातन धर्म कॉलेज से 12वीं पास की| राजस्थान के तत्कालीन वित्तमंत्री हरिभाऊ उपाध्याय पिताजी के दोस्त थे, सो उनके बुलावे पर उसी दौरान पिताजी ने जयपुर जाकर सरकारी ठेकेदारी का काम शुरू कर दिया था| चूंकि उन्हें काम के सिलसिले में इंजिनियरों की ज़रुरत पड़ती थी इसलिए 12वीं के बाद उन्होंने मुझे जोधपुर इंजिनियर कॉलेज में दाखिला दिला दिया, जहां मैं हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करने लगा|’

शिवकुमार जी के तौरतरीकों और पहनावे में एक ख़ास किस्म की नफ़ासत थी, जिसकी वजह से कॉलेज के उनके तमाम दोस्त उन्हें हीरो कहकर बुलाते थे| कॉलेज के ही दिनों में फ़िल्मी अखबारस्क्रीनमें निर्माता-निर्देशक किशोर साहू नेनए चेहरों की तलाशका विज्ञापन दिया तो शिवकुमार जी के दोस्तों ने उनपर दबाव डालकर उनका भी फॉर्म भरवा दिया| शिवकुमार जी कहते हैं, ‘चूंकि मैं फ़िल्मी दुनिया में संघर्ष के कई किस्से सुन चुका था और संघर्ष कर पाना मेरी आदतों में नहीं था, इसलिए पहले तो मैंने फॉर्म भरने से साफ़ इनकार कर दिया| लेकिन आखिर में मुझे दोस्तों के दबाव के आगे झुकना ही पड़ा| वो सब मुझे परदे पर देखने के लिए इतने बेताब थे कि मुझे छः फुटा साबित करने के लिए उन्होंने फॉर्म में मेरी असल लम्बाई 5’11” की जगह 6’1” लिख दिया| जल्द ही मुझे स्क्रीनटेस्ट का बुलावा भी गया| चूंकि फॉर्म में मैंने जयपुर का पता लिखा था इसलिए बुलावे का पत्र सीधा मेरे पिताजी के पास पहुंचा| तमाम आशंकाओं के विपरीत पिताजी ने मेरा उत्साहवर्धन करते हुए अपने सेक्रेटरी जयकुमार को भी मेरे साथ मुम्बई भेज दिया| ये अक्तूबर 1963 का वाकया है|’

किशोर साहू का बंगला चेम्बूर के सेन्ट्रल एवेन्यू पार्क में था| शिवकुमार जी और जयकुमार मुम्बई सेन्ट्रल पर ट्रेन से उतरकर सीधे चेम्बूर पहुंच गए| बंगले के बाहर बहुत सारे लड़के-लड़कियां मौजूद थे जिन्हें 3-3 4-4 के ग्रुप में लॉन में बैठाया जा रहा था| शिवकुमार जी भी उस भीड़ में शामिल हो गए| अन्दर ज्यूरी में किशोर साहू, उनके भाई विजय साहू, उनके बहनोई और प्रोडक्शन मैनेजर उल्फ़त चोपड़ा और दो असिस्टेंट शामिल थे| अपना नंबर आने पर शिवकुमार जी अन्दर गए तो उन्हें देखते ही किशोर साहू ने कहा, ‘तुम 6’1” के तो नहीं दिखते? फॉर्म में गलत क्यों लिखा?’ शिवकुमार जी ने बिना किसी लाग-लपेट के जवाब दिया, ‘ये मैंने नहीं मेरे दोस्तों ने लिखा है और उन्होंने ही मुझे ज़बरदस्ती यहां भेजा है| मैं इसलिए गया कि इसी बहाने मुम्बई घूम लूंगा और ये भी देख लूंगा कि इंटरव्यू कैसे होता है|’ 

शिवकुमार जी कहते हैं, ‘मेरी इस साफ़गोई पर किशोर साहू बेहद खुश हुए| और फिर ये पता चलते ही कि मैं अलीगढ़ का रहने वाला हूं, उन्होंने कहा कि अलीगढ़ तो उर्दू ज़ुबान और उर्दू अदब की धरती है, कोई शेर सुनाओ| मैंने सुनाया जो उन्हें बेहद पसंद आया| फिर उन्होंने कहा, कोई डायलाग बोलकर सुनाओ| मैंने फ़िल्मदेवदासका, दिलीप कुमार का डायलाग बोलकर सुना दिया| वो भी उन्हें बेहद पसंद आया| अगले दिन चेम्बूर केआशा स्टूडियोमें मेरा स्क्रीनटेस्ट लिया गया| और फिर तीसरे दिन किशोर साहू ने मुझे अपने बंगले पर बुलाकर दो फिल्मोंपूनम की रातऔरहरे कांच की चूड़ियांके लिए साईन कर लिया|’

साल 1965 में प्रदर्शित हुई फिल्मपूनम की राततो ख़ास नहीं चली लेकिनहरे कांच की चूड़ियांसिल्वर जुबली हिट हुई| इस फिल्म ने शिवकुमार जी को एक पहचान दी| और फिर साल 1969 में बनी म्यूजिकल हिट फिल्ममहुआने शिवकुमार जी को बतौर हीरो स्थापित कर दिया| शिवकुमार जी कहते हैं, ‘फिल्ममहुआकी कामयाबी का मुझे फ़ायदा तो मिला लेकिन अचानक ही बतौर हीरो साईन की हुईअरमानों की दुनिया’ (नायिका मुमताज़) औरदौलत का नशा’ (रेहाना सुल्तान) जैसी मेरी फ़िल्में एक एक करके बंद होती चली गयीं| ‘दोस्त और दुश्मन’ (1971 / हिना कौसर) जैसी फ़िल्म अगर प्रदर्शित हुई भी तो बॉक्स ऑफिस पर कोई करिश्मा नहीं दिखा पायी| अधूरी रह गयीसांझ की बेला’ (नूतन) बहुत सालों में बनकर साल 1980 में प्रदर्शित हुई तो उसमें मेरी जगह जॉय मुकर्जी ले चुके थे| इन तमाम बातों का मेरे करियर पर बहुत बुरा असर पड़ा|’

बतौर हीरो डगमगाते करियर की वजह से शिवकुमार जी को मजबूरन सह-भूमिकाएं स्वीकार करनी पड़ीं| ‘मेहमिल(1972), ‘मजबूर(1974),हवस(1974),हिमालय से ऊंचा(1975),नहले पे दहला(1976),महा बदमाश(1977),डाकू और जवान(1978) औररॉकी(1981) जैसी फिल्मों में वो सह और चरित्र भूमिकाओं में नज़र आए| शिवकुमार जी बताते हैं, ‘प्रेमनाथ जी और सुनील दत्त साहब ने मुझे हमेशा ही बहुत स्नेह दिया| प्रेमनाथ जी मेरे लिए पिता समान थे तो सुनील दत्त बड़े भाई समान| सुनील दत्त साहब से मेरी पहली मुलाक़ात साल 1968 में हुई थी जब हम दोनों एक ही उड़ान सेयू.पी.जर्नलिस्ट एसोसिएशनके सम्मान-समारोह में भाग लेने के लिए लखनऊ जा रहे थे| उस समारोह में मुझे फिल्महरे कांच की चूड़ियांके लिएसर्वश्रेष्ठ सहकलाकारके और सुनील दत्त साहब को फिल्ममिलनके लिएसर्वश्रेष्ठ अभिनेताके पुरस्कार से सम्मानित किया गया था| हमारी वो मुलाक़ात क़रीबी दोस्ती में बदल गयी| उधर प्रेमनाथ जी से मेरी दोस्ती फिल्ममहुआकी शूटिंग के दौरान हुई थी|’

शिवकुमार जी अपने अभिनय करियर से संतुष्ट नहीं थे| ऐसे में सुनील दत्त ने उन्हें निर्माता बनने के लिए प्रेरित किया| साल 1979 में बनीअहिंसाशिवकुमार जी द्वारा निर्मित पहली फिल्म थी| शिवकुमार जी बताते हैं, ‘मेरे बैनर का नामअश्विन आर्ट्सथा, जिसके तहत बनीअहिंसाएक मल्टीस्टारर फिल्म थी| इस फिल्म में सुनीलदत्त, रेखा, प्रेमनाथ, रणजीत, असरानी, कामिनी कौशल, निरूपा रॉय, जयराज, त्रिलोक कपूर जैसे उस दौर के बड़े कलाकार काम कर रहे थे| इस फिल्म के निर्देशक चांद थे और संगीत कल्याणजी आनंदजी का था| लोगों के लिए इस फिल्म का बनना बेहद ताज्जुब की बात थी| वो अक्सर कहते थे, ये नया लड़का है, इतनी बड़ी फिल्म कैसे बना पाएगा? लेकिन फिल्म बनी, दर्शकों को पसंद आयी और उसने सिल्वर जुबली मनाई|’

अहिंसाके बाद शिवकुमार जी ने फिल्मआस्तिकका निर्माण शुरू किया| सुनील दत्त, मौसमी चटर्जी, मिथुन चक्रवर्ती और रति अग्निहोत्री की मुख्य भूमिकाओं वाली इस फिल्म का निर्देशन खुद शिवकुमार जी कर रहे थे| लेकिन कुछ ख़ास वजहों से ये फिल्म महज़ 6 रील बनने के बाद बंद हो गयी

शिवकुमार जी कहते हैं, ‘अलीगढ़ के लोग अक्सर मुझसे कहते थे कि अपनी भाषा में भी तो कुछ बनाओ, सो मैंने साल 1982 में फिल्मबृजभूमिका निर्माण और निर्देशन किया| बृजभाषा में बनी ये पहली फिल्म थी| इस फिल्म की मुख्य भूमिकाओं में राजा बुन्देला, अलका नूपुर, अरूणा ईरानी, अरूण गोविल और टॉम ऑल्टर थे और इसमें मैंने भी एक अहम भूमिका निभाई थी| संगीत रवीन्द्र जैन का था| महज़ एक महिने में बनकर तैयार हुई इस फिल्म ने गोल्डन जुबली मनाई थी|’

बृजभूमिके बाद शिवकुमार जी ने बृजभाषा में दो और सफल फ़िल्मेंलल्लूराम(1985) औरमाटी बलिदान की(1986) बनाईं| फ़िल्मलल्लूरामकी केन्द्रीय भूमिका में वो खुद थे| साल 2000 में उन्होंने हिन्दी और बृजभाषा के मिलेजुले प्रयोग के साथ फिल्मकृष्णा तेरे देश मेंका निर्माण और निर्देशन किया| ये फिल्म निर्माण के दो साल बाद साल 2002 में प्रदर्शित हुई थी|

शिवकुमार जी मुम्बई के जुहू इलाके में स्थित नार्थबॉम्बे सोसायटी में रहते थे| वो कहते हैं, ‘एक बार मैं किसी काम से अमेरिका गया| उन दिनों मुझे लगातार खांसी-ज़ुकाम के साथसाथ घुटनों में दर्द रहने लगा था| अमेरिका में मैंने जांच कराई तो डॉक्टर ने बताया कि मुझे समुद्री हवा से एलर्जी है और इस वजह से मुझे गठिया भी हो गया है| भारत लौटकर मैं शत्रुघ्न सिन्हा से मिला जो उन दिनों केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री थे| हमने फिल्ममेहमिलमें साथ काम किया था और तब से हमारी अच्छी दोस्ती थी| शत्रुघ्न की मदद से दिल्ली केएम्समें मेरे दोनों घुटनों के जोड़ बदल दिए गए|’


शिवकुमार जी की शादी साल 1987 में हुई| उनकी पत्नी श्रीमती सुमन पाठक हाथरस के एक सम्मानित परिवार से हैं| शिवकुमार जी के परिवार में पत्नी के अलावा दो जुड़वां बेटे राम और लखन भी हैं| शिवकुमार जी बताते हैं, ‘मेरे दोनों बेटे उत्तर भारत में ही रहकर पढ़ाई कर रहे थे| उधर डॉक्टर ने मुझे समुद्री हवा से दूर रहने की सलाह दी थी इसलिए मैंने फरीदाबाद में मकान खरीदा और साल 2007 में मुम्बई छोड़कर हमलोग फरीदाबाद गए|’

शिवकुमार जी को फरीदाबाद में रहते हुए 10 साल हो चुके हैं| इन दिनों वो भीषण शारीरिक और आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे हैं और उनका ज़्यादातर समय घर की चारदीवारी में ही कटता है|

शिवकुमार जी का उनके पैतृक शहर अलीगढ़ के 'जीवन अस्पताल' में दिनांक 2 सितम्बर 2018 की सुबह 1.30 बजे निधन हो गया|

We are thankful to

Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Ms. Aksher Apoorva, Mr. Gajendra Khanna & Ms. Maitri Manthan for the English translation of the write ups.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing


Actor-Producer Shiv Kumar on 'Beete Hue Din' YT Channel 



Main Dhoondhta Hoon Jinko Raaton Ko Khayalon Mein

                                                                 - Shiv Kumar

                                     …………Shishir Krishna Sharma

Hindi cinema has had many actors like Sudesh Kumar, Shailesh Kumar, Rakesh Pandey and Vikram who gained good recognition among the audience in a short time but were lost to oblivion soon after. In the list of such actors, is the name of Shiv Kumar Pathak, known to cinema goers as Shiv Kumar. He made his debut with the movie ‘Poonam Ki Raat’ in 1965 and became a star with the release of the movie Mahua in 1969. During his nearly three-and-a-half-decade long career, Shiv Kumar ji has worked as a producer as well as director in addition to gaining success as an actor. Then, suddenly, there was no trace of him.

I tried to search him a lot for my column ‘Kya Bhooloon Kya Yaad Karoon’ for the weekly Sahara Samay. However, I couldn’t get any contact through the people of the cinema world or cine unions. His name was also missing from the Film Directory. At last, I gave up my search for him. Years later, suddenly, my Facebook friend and regular reader of my blog ‘Beete Hue Din’, Delhi resident Shri Rajesh Dua, suggested that if possible, I should interview Shiv Kumar ji who now resides in Faridabad. The news was quite encouraging but it was difficult for me to go from Mumbai to Faridabad just to interview him. Nearly a year later, when I had to go to Delhi in September for some work, I took time out to meet him at Faridabad. It was thus, I was able to finally meet him for ‘Beete Hue Din’ and have a long discussion on his career with him.

Originally, He blonged to Bembirpur (Aligarh/Uttar Pradesh). His grandfather Kunwar Umrao Singh Pathak was the Zamindar (landlord) of forty villages there. Though, he belonged to a Brahmin family, his grandfather had been given this predominantly Kshatriya name as a title by the Britishers. Shiv Kumar’s father Shri Om Prakash Pathak was the eldest among four brothers. He along with one of his brothers used to take care of the lands situated six kilometers away from Bembirpur, in Bulandshahar’s ‘Chhoti Kaser’ (Kaserkhurd) village. The remaining two brothers used to stay in the ancestral village of Bembirpur. Shiv Kumar ji’s mother also belonged to a Zamindar family of Aligarh. Shiv Kumar ji was born on 12th January 1942 at Chhoti Kasar and on his birth his grandmother had given the poor of the village three bighas each of land. He was the eldest of his siblings i.e. three brothers and two sisters.

Shiv Kumar ji recalls, ‘My education till sixth happened at home only by private tutors. For further education, I was sent to my maternal aunt’s house who used to stay in Palwal, Haryana. I completed my 10th from Palwal’s Hindu High School and my 12th from Sanatan Dharm College there. The then Finance Minister of Rajasthan Haribhau Upadhyay was a friend of my father’s. On his invitation my father shifted to Jaipur and started taking government contracts as a profession. Since he needed engineers for his work, after I completed 12th he got me admitted to the Jodhpur Engineering college and I started pursuing my studies there (I used to stay in the college hostel at that time).’

There was an elegance in the way Shiv Kumar ji conducted himself and dressed due to which all his friends used to address him as a “Hero”. In those days, Producer-Director Kishore Sahu had taken out an ad ‘Naye Chehron Ki Talaash’ (Search for new faces) in the film magazine ‘Screen’. Shiv Kumar ji’s friends pressurized him to fill the application form for the same. Shiv Kumar ji remembers, ‘I had heard a lot of stories about the struggle in the film world and I was not inclined towards doing the same. However, to placate my friends I was forced to fill the form. In their enthusiasm and to show me as an over six foot tall actor, my friends entered my height as 6’1” whereas my actual height was 5’11”. I soon got an invite for a screen test. Since, the address on the form was my Jaipur address, the invite reached my father directly. Contrary to my expectations, my father enthusiastically sent me to Bombay with his secretary Jai Kumar. This incident happened in October 1963.’  

Kishore Sahu had a bungalow in Chembur’s Central Avenue Park. Shiv Kumar ji and Jai Kumar headed towards it as soon as their train reached Bombay Central. There was a huge number of boys and girls present there who were being seated in groups of 3s and 4s in the lawn outside the bungalow. Shiv Kumar ji also joined the same crowd.  The jury inside comprised of Kishore Sahu, His brother Vijay Sahu, His brother-in-law and production Manager Ulfat Chopra and two assistants. When Shiv Kumar ji’s turn came, Kishore Sahu asked him, ‘You don’t look 6’1” tall. Why did you give wrong information in the form?’. Without hesitation, Shiv Kumar ji replied, ‘The form is filled by my friends and they have sent me here forcefully. I also thought of this as an opportunity to sight-see in Bombay and to see what an interview is like?’.

Shiv Kumar ji says, ‘Kishore Sahu ji was quite impressed by my straight forward nature. When he came to know, I am from Aligarh, he said, Aligarh is the abode of Urdu Language and culture. Tell me a couplet (Sher). He liked my recitation of the couplet. Then he asked me to tell a dialogue. I told him a dialogue from the movie Devdas originally recited by Dilip Kumar which was also liked by him. The next day, my screen test was taken in Chembur’s ‘Asha Studio’ and the following day Kishore Sahu called me to his bungalow where I was signed for two movies ‘Poonam Ki Raat’ and ‘Hare Kaanch Ki Choodiyaan’.

‘Poonam Ki Raat’ which released in 1965 was not very successful but ‘Hare Kaanch Ki Choodiyaan’ proved to be a Silver Jubilee Hit. This film gave an identity to Shiv Kumar ji. Then the musical hit film ‘Mahua’, which released in 1969, solidified his position as a leading man. Shiv Kumar ji says, ‘The success of movie Mahua did benefit me but the films I signed as Hero, ‘Armaanon Ki Duniya’ (opposite actress Mumtaz) and ‘Daulat Ka Nasha’ (opposite actress Rehana Sultan) got shelved one after the other. My films like ‘Dost Aur Dushman’ (1971) starring opposite Hina Kausar which did release were not very successful on the box office. My incomplete movie Saanjh Ki Bela (opposite Nutan) did get revived and released in 1980 but by then I had been replaced by Joy Mukherjee in it. All these things had a negative effect on my career.’

To support his dwindling career, Shiv Kumar ji was forced to accept second lead and character roles. He was seen doing supporting and character roles in movies like Mehmil (1972), Majboor (1974), Hawas (1974), ‘Himalay Se Ooncha’ (1975), ‘Nehle Pe Dehla’ (1976), ‘Maha Badmash’ (1977), ‘Daaku Aur Jawan’ (1978) and Rocky (1981).  Shiv Kumar ji reminisces ‘I had special affection for Prem Nath ji and Sunil Dutt Sahab. While Premnath ji was like a father figure to me, Sunil Dutt was like my elder brother. I had met Sunil Dutt Sahab in 1968 when we were both travelling in the same aeroplane to Lucknow to participate in a prize ceremony being conducted by the ‘UP Journalists Association’. I had received the ‘Best Supporting Actor’ award for my role in Hare Kaanch Ki Choodiyaan while Sunil Dutt Sahab had got the ‘Best Actor’ award for his role in the movie Milan. This chance meeting led to a deep friendship between us. On the other hand, I had become acquainted with Premnath ji during the shooting of Mahua.’

Shiv Kumar ji was not happy with the way his acting career was shaping up. At that time, Sunil Dutt suggested that He should take up the mantle of a producer. Shiv Kumar ji tells us, ‘The name of my banner was ‘Ashwin Arts’ and the first movie I made under it was a multistarrer called Ahinsa in 1979. The movie had stalwarts like Sunil Dutt, Rekha, Premnath, Ranjeet, Asrani, Kamini Kaushal, Nirupa Roy, Jairaj and Trilok Kapoor as part of its cast. Its director was Chaand and its music was given by the duo Kalyanji-Anandji. People were apprehensive of how a first time producer like me would be able to complete a movie with such a big heavy-weight cast. Not only was I able to complete it, It was appreciated a lot by the audience and It celebrated a Silver Jubilee when it released.

After ‘Ahinsa’, Shiv Kumar ji started his next production called ‘Aastik’. Shiv Kumar ji had decided to take the mantle of the director for this movie which starred Sunil Dutt, Moushmi Chatterjee, Mithun Chakravarthi and Rati Agnihotri. Due to some reason, the movie had to be shelved after completion of shooting of just six reels. He says, ‘People from Aligarh used to ask me to make something in our own local language, therefore in 1982, I produced and directed ‘Brijbhoomi’. It was the first movie to be made in Brijbhasha. The cast comprised of Raja Bundela, Alka Nupur, Aruna Irani, Arun Govil and Tom Alter. Shiv Kumar ji himself had also played an important role in the movie. Its music was composed by Ravindra Jain. This movie which had been made in a mere one month, proved to be a Golden Jubilee Hit.

After ‘Brijbhoomi’ Shiv Kumar ji made two more successful films in Brijbhasha, namely, ‘Lallooram’ (1985) and ‘Maati Balidaan Ki’ (1985). He himself had essayed the titular role in the movie ‘Lallooram’. In the year 2000, he made a Hindi-Brijbhasha experimental movie ‘Krishna Tere Desh Mein’ which he had produced and Directed. This movie took two years to complete and was finally released in 2002.

Shiv Kumar ji used to stay in the North Bombay Society of Juhu, Mumbai at that time. He says, ‘Once I had to go to America for some work. I used to suffer a lot from cold and pain in my knee joints. After analysis there, Doctors told me that I am allergic to marine air and I have developed arthritis as a result. After returning to India, I met Shatrughan Sinha who was then the Central Health Minister. We had worked together in the film ‘Mehmil’ and had been good friends since then. With his help, I underwent knee replacement surgery on both my knees at AIIMS, New Delhi.’  

Shiv Kumar ji had got married in the year 1987. His wife Mrs Suman Pathak is from a reputed family of Hathras. They are the proud parents of twin sons Ram and Lakhan. Shiv Kumar ji says, ‘Both my sons were studying in North India only. Since the Doctors had recommended that I stay away from marine air, I bought a house in Faridabad and came to stay here from Mumbai in the year 2007.’

It has been ten years since Shiv Kumar ji has been residing at Faridabad. He has been struggling with physical and financial difficulties for some time due to which most of his time is spent within the confines of the four walls of his house. 

Shiv Kumar ji passed away on 2 September 2018 at 1.30 A.M. at his native city Aligarh’s Jeevan Hospital.