“हंसता
हुआ नूरानी
चेहरा”
– जीवनकला
..............शिशिर
कृष्ण शर्मा
1950 और
60 के
दशक के
हिंदी सिनेमा
को कर्णप्रिय
गीत-संगीत
और मनमोहक
नृत्यों के
लिए जाना
जाता है|
और जब
भी बात
होती है
उस दशक
की नृत्यांगनाओं
की तो
हेलन, कुमकुम,
शीला वाज़,
मधुमती, बेला
बोस और
हीरा सावंत
जैसे नाम
ज़हन में
उभरते हैं|
ऐसा ही
एक नाम
है जीवनकला
का, जिन्होंने
महज़ दस
साल के
करियर में
एक से
बढ़कर एक
हिट गीतों
पर नृत्य
किया, कुछ
फ़िल्मों में
अभिनय भी
किया और
फिर शादी
करके फ़िल्मों
को अलविदा
कह दिया|
जीवनकला
जी का
नाम बहुत
सुना हुआ
सा था|
इंटरनेट पर
आई.एम.डी.बी.
समेत कुछ
साईटों पर
उनके बारे
में थोड़ी-बहुत
जानकारी भी
मौजूद थी,
हालांकि अब
तक के
रिकॉर्ड को
देखते हुए
ऐसी किसी
भी साईट
पर आंख
बंद करके
भरोसा नहीं
किया जा
सकता था|
उधर
‘बीते हुए
दिन’
के पाठक
भी अक्सर
ईमेल और
मैसेज के
ज़रिये जीवनकला
जी के
बारे में
सवाल करते
रहते थे|
ऐसे में
स्वाभाविक तौर
पर जीवनकला
जी से
मिलने और
‘बीते हुए
दिन’
के लिए
उनका इंटरव्यू
करने की
मेरी इच्छा
ज़ोर पकड़ने
लगी थी|
लेकिन सवाल
ये था
कि उनसे
संपर्क कैसे
करूं? न
तो उनका
नाम-पता
फ़िल्म डायरेक्टरी
में था
और न
ही
‘सिने एंड
टी.वी.
आर्टिस्ट एसोसिएशन’
(सिंटा)
के रिकॉर्ड
में| सिनेमा
से जुड़े
उस दौर
के लोगों
से पूछने
का भी
कोई लाभ
नहीं हुआ|
इसी ज़द्दोज़हद
में समय
गुज़रता चला
गया| फिर
एक रोज़
‘बीते हुए
दिन’
के लिए
नृत्यांगना हीरा
सावंत से
मुलाक़ात हुई
तो बातचीत
के दौरान
अचानक ही
उन्होंने पूछा,
‘जीवनकला का
इंटरव्यू किया?’
और फिर
उन्हीं से
मुझे जीवनकला
जी के
बेटे का
मोबाइल नंबर
भी मिल
गया|
जीवनकला
जी से
मेरी मुलाक़ात
दिसंबर 2018
के पहले
हफ़्ते में
वर्ली स्थित
उनके घर
पर हुई|
और ये
कहने में
मुझे कोई
संकोच नहीं
कि जीवनकला
जी जैसे
बहुत कम
कलाकार मुझे
मिले जिन्होंने
बिना किसी
लाग-लपेट
के पूरी
ईमानदारी से
अपनी बात
खुलकर कही,
न कुछ
छिपाया और
न कुछ
छिपाने का
आग्रह किया|
वरना इसी
फ़िल्मी दुनिया
में मेरा
सामना ऐसे
लोगों से
भी हो
चुका है
जिनका इंटरव्यू
प्रकाशित हुआ
तो उन्होंने
अपनी ही
कही बातों
को लेकर
‘ऐसा क्यों
लिखा?...वैसा
क्यों लिखा?’
जैसे सवालों
की बौछार
कर दी|
ऐसे में
तंग आकर
मुझे ब्लॉग
से उनका
इंटरव्यू हटा
देना पड़ा|
जीवनकला
जी को
अभिनय और
नृत्य विरासत
में मिला
था| उनके
पिता दत्तू
उर्फ़ दत्तात्रेय
काम्बले पूना
के और
मां गंगूबाई
कोल्हापुर की
रहने वाली
थीं| वो
दोनों साइलेंट
के ज़माने
के कलाकार
थे और
पूना स्थित
फ़िल्म कंपनी
‘यूनाइटेड पिक्चर्स
सिंडिकेट’
में बतौर
कलाकार नौकरी
करते थे| उन्होंने
इस कंपनी
की
‘धा चा
मा’
यानि ‘मर्डर
ऑफ़ नारायणराव
पेशवा’
(1926), ‘ताई
तेलीन’ (1926),
‘पापाज़ वाइफ़’
(1927), ‘द्रौपदी
वस्त्रहरण’
यानि
‘रॉयल गैम्बलर’
(1928), ‘रक्त
चा सूद’
यानि
‘ब्लड फॉर
ब्लड’
(1929), ‘सीता
स्वयंवर’
(1929), ‘खूनी
ताज’
(1930), ‘बर्थ
ऑफ़ शिवाजी’
(1931) जैसी
कई हिट
साइलेंट फिल्मों
में काम
किया था|
इनमें से
ज्यादातर फ़िल्मों
का निर्देशन
उस दौर
के मशहूर
फ़िल्मकार एन.डी.सरपोतदार
द्वारा किया
गया था|
टॉकीज़ बननी
शुरू हुईं
तो वो
दोनों मराठी
फ़िल्मों में
अपनी पहचान
बनाने में
कामयाब हुए|
जीवनकला
जी का
जन्म 29
जून 1944
को पूना
के दिवाकरवाड़ा
में हुआ
था| वो
बताती हैं,
“उस ज़माने
में मंगेशकर
परिवार भी
दिवाकरवाड़ा में,
हमारी ही
बिल्डिंग में
रहता था
और हमारे
घनिष्ठ पारिवारिक
रिश्ते थे|
लता मेरी
मां को
मौसी कहती
थीं| जब
मेरा जन्म
हुआ तो
लता क़रीब
14 साल
की थीं|
मेरा ये
नाम उन्होंने
ही मेरी
मां से
ये कहते
हुए रखा
था कि
मौसी ये
आपके जीवन
की कला
है|”
माता-पिता की इकलौती संतान जीवनकला जी ने छठवीं तक की पढ़ाई पेशवाओं के स्कूल ‘हुज़ूरबाग़’ से की| 6 साल की उम्र से उन्होंने बालासाहब गोखले गुरूजी से कत्थक सीखना शुरू किया था| वो बताती हैं, “दिवाकरवाड़ा में हम लोग लक्ष्मी रोड पर रहते थे| मैं घर पर कत्थक का रियाज़ करती थी तो घुंघरूओं की आवाज़ अक्सर सड़क से गुज़र रहे लोगों का ध्यान आकर्षत करती थी| एक रोज़ इन्हीं आवाज़ों को सुनकर मराठी फ़िल्मों के निर्माता-निर्देशक दत्ता धर्माधिकारी हमारे घर आए और मुझे फ़िल्म ‘अखेर जम्ले’ की एक बाल-भूमिका में लेने की इच्छा ज़ाहिर की| इस तरह 6 साल की उम्र में मैंने पहली बार कैमरे का सामना किया| उस फ़िल्म में मैंने हीरो की छोटी बहन का रोल और साथ ही नृत्य भी किया था| उन्हीं दिनों मराठी फ़िल्म ‘तीन मुल:’ में मैंने फ़िल्म की नायिका रंजना की बेटी का रोल किया| पूना के सार्वजनिक गणपति के कार्यक्रमों में भी मैं बचपन से ही नृत्य करती थी| हमारा ग्रुप ‘जीवनकला एंड डांसिंग पार्टी’ के नाम से मशहूर था|”
जीवनकला जी के अनुसार लता फ़िल्मों में व्यस्त हुईं तो मंगेशकर परिवार को पूना छोड़कर मुम्बई आना पड़ा| उनका अपना एक ऑर्केस्ट्रा था जिसमें सभी भाई-बहन मिलकर गाते थे| संगीतकार लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल जो उस समय छोटे थे, उनके ऑर्केस्ट्रा में वाद्य बजाते थे| ऑर्केस्ट्रा के शोज़ पूरे महाराष्ट्र में होते थे| जीवनकला जी उन शोज़ में नृत्य करती थीं और इसके लिए पूना से अक्सर मुम्बई आती थीं|
गोखले गुरूजी की शागिर्दी में जीवनकला जी ने क़रीब 5 साल तक कत्थक सीखा| मशहूर अभिनेत्री जयश्री गडकर भी इन्हीं गोखले गुरूजी की शिष्या थीं| 1956 में जीवनकला जी का परिवार मुम्बई चला आया| वो बताती हैं, “मुम्बई में हम लोग दादर स्थित कोहिनूर सिनेमा के सामने ‘मुकुंद मेंशन’ बिल्डिंग में रहने लगे| मुझे दादर के प्लाज़ा सिनेमा के सामने ‘राममोहन नाईट स्कूल’ में सातवीं में दाखिला दिला दिया गया| 1960 में इस स्कूल से मैंने ग्यारहवीं पास की|”
जीवनकला
जी ने
हिन्दी फ़िल्मों
में, 1959
की सुपरहिट
फ़िल्म
‘गूंज उठी
शहनाई’
से कदम
रखा था|
वो बताती
हैं, “मैं
अपनी मां
के साथ
अंधेरी स्थित
‘प्रकाश स्टूडियो’
में प्रोड्यूसर-डायरेक्टर
विजय भट्ट
से मिलने
गयी| उन्हें
‘गूंज उठी
शहनाई’
के लिए
एक सोलो
डांसर के
ज़रुरत थी|
फ़िल्म के
संगीतकार वसंत
देसाई और
नृत्य निर्देशक
प्रेम धवन
की मौजूदगी
में मेरा
इंटरव्यू हुआ,
डांसिंग स्टेप्स
देखे गए|
उन दोनों
ने विजय
भट्ट से
मेरे नाम
की सिफ़ारिश
की और
मुझे इस
फ़िल्म के
सुपरहिट गीत
‘अंखियां भूल
गयी हैं
सोना, दिल
पे हुआ
है जादू
टोना’
पर नृत्य
करने का
मौक़ा मिला|”
1959 में
ही जीवनकला
जी ने
के.अमरनाथ
प्रोडक्शंस की
फ़िल्म
‘कल हमारा
है’
में एक
सोलो
‘ऐसे न
देखो रसिया
जिया जाए’
और सुपरहिट
डुएट
‘जाओ रसिया
हटो जाओ
रसिया’
पर नृत्य
किया| ‘जाओ
रसिया...’
आज भी
अक्सर रेडियो
पर बजता
है| चित्रगुप्त
द्वारा संगीतबद्ध
और लता
और उषा
मंगेशकर के
गाये इस
डुएट में
जीवनकला जी
की सहनर्तकी
अपने दौर
की जानीमानी
अभिनेत्री शीला
कश्मीरी थीं|
(शीला
ने 1950
और 60
के दशक
में बनी
‘बग़दाद का
जादू’,
‘कठपुतली’,
‘लाजवंती’,
‘ब्लैक कैट’,
‘तीर और
तलवार’, ‘नयी
मां’,
‘अंगुलीमाल’,
‘किंगकांग’
और
‘शिकारी’
जैसी क़रीब
30 फ़िल्मों
में काम
करने के
बाद मुम्बई
के मशहूर
व्यवसायी
‘नडियाडवाला’
परिवार के
गफ्फ़ारभाई नडियाडवाला
से शादी
कर ली
थी| ‘आवारा
पागल दीवाना’,
‘फिर हेराफेरी’
और
‘वेलकम’
जैसी फ़िल्मों
के प्रोड्यूसर
फ़ीरोज़ नडियाडवाला
इन्हीं शीला
कश्मीरी उर्फ़
मुनीरा नडियाडवाला
के बेटे
हैं|)
जीवनकला
जी को
साल 1962
में बनी
सुपरहिट तमिल
फ़िल्म
‘कोंजुम सलंगई’
(मनमोहक पायल)
में भी
नृत्य करने
का मौक़ा
मिला था|
वो कहती
हैं, “अख़बार
में विज्ञापन
देखा कि
तमिल फ़िल्म
के लिये
क्लासिकल डांसर
चाहिए, तो
मैं मां
के साथ
दिए गए
पते पर
दादर के
रूपतारा स्टूडियो
पहुंची और
मुझे साईन
कर लिया
गया| उस
वक़्त मेरी
उम्र 18
साल थी|
मद्रास के
मशहूर प्रोड्यूसर-डायरेक्टर
एम.वी.रामन
की
‘कोंजुम सलंगई’
भरतनाट्यम पर
बनी पहली
फ़िल्म थी|
इस फिल्म
में मैंने
किसी गाने
पर नहीं
बल्कि सिर्फ़
तोड़ों पर
कत्थक किया
था और
इस फ़िल्म
को मैं
अपनी उपलब्धि
मानती हूं|”
साल 1961 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘किस्मत पलट के देख’ से जीवनकला जी ने अभिनय की शुरूआत की| इस फ़िल्म में वो सहनायिका थीं, नायक-नायिका अनूप कुमार और प्रीतिबाला थे| शुरूआत में इस फ़िल्म का नाम ‘ज़रा पलट के देख’ रखा गया था| उसी साल बनी ‘ज़िंदगी और ख़्वाब’ में उन्होंने आगा के साथ कॉमेडी की| 1964 में बनी फैंटेसी फ़िल्म ‘चार दरवेश’ में उनका बेहद अहम रोल था| 1965 की ‘हिमालय की गोद में’ वो माला सिन्हा की सहेली बनीं तो 1968 की ‘सरस्वतीचन्द्र’ में रमेशदेव के साथ मिलकर खलनायिका की भूमिका की|
साल 1965 में जीवनकला जी की मां गुजरीं| उस वक़्त जीवनकला जी की उम्र महज़ 21 साल थी| वो कहती हैं, “अभिनेत्री सुलोचना जी से हमारे पारिवारिक रिश्ते थे| मां के गुजरने के बाद एक रोज़ पिताजी ने सुलोचना जी से कहा, ‘दीदी मेरी एक ही लड़की है, मेरे बाद इसका क्या होगा? आप इसकी शादी करवा दो|’ सुलोचना जी ने तुरंत मराठी फ़िल्मों के पटकथा और संवाद लेखक राम केलकर का नाम सुझाया जिन्हें वो अपना बेटा मानती थीं| सुलोचना जी ने ही रिश्ते की बात आगे बढ़ाई और 1969 में हमारी शादी हो गयी|”
मुम्बई
के गिरगांव
इलाक़े में
जन्मे राम
केलकर के
पिता का
सी.एस.टी.
स्टेशन के
सामने
‘केलकर विश्रांति
गृह’
नाम का
रेस्टोरेंट था|
वो माता-पिता
के इकलौते
बेटे थे|
उनकी एक
बहन थी
जिसकी शादी
हो चुकी
थी| राम
केलकर चाहते
थे कि
जीवनकला जी
एक आदर्श
गृहिणी बनकर
घर संभालें|
पति की
इच्छा को
देखते हुए
जीवनकला जी
ने शादी
के बाद
फ़िल्मों को
अलविदा कह
दिया| ‘सरस्वतीचंद्र’
उनकी आख़िरी
फिल्म थी|
(सुलोचना
जी की
अपनी एक
ही बेटी
कंचन हैं|
कंचन के
पति डॉ.
(स्वर्गीय)
काशीनाथ घाणेकर
एक डेंटल
सर्जन और
मराठी नाटकों
के स्टार
अभिनेता थे|
उन्होंने कुछ
मराठी फ़िल्मों
के अलावा
हिन्दी फिल्म
‘दादी मां’
(1966) और
‘अभिलाषा’
(1968) में
भी प्रमुख
भूमिकाएं की
थीं| ‘दादी
मां’
का सुपरहिट
गीत
‘जाता हूं
मैं मुझे
अब ना
बुलाना...’
काशीनाथ पर
ही फ़िल्माया
गया था|
उनका निधन
1986 में
56 साल
की उम्र
में हुआ|)
जीवनकला
जी बताती
हैं, “राम
केलकर जी
के लिए
शादी बहुत
शुभ साबित
हुई| शादी
के बाद
उन्हें हिन्दी
फ़िल्मों में
बतौर पटकथा
लेखक ब्रेक
मिला, फ़िल्म
थी निर्माता-निर्देशक
सोहनलाल कंवर
की
‘बेईमान’
जो 1972
में रिलीज़
हुई थी|
ये फ़िल्म
सुपरहिट हुई,
राम केलकर
जी का
नाम हुआ
और वो
हिन्दी फ़िल्मों
में व्यस्त
होते चले
गए| ‘पिया
का घर’
(1972), ‘आप
की कसम’
(1974), ‘सन्यासी’
(1975), ‘कालीचरण’
(1976) ‘विश्वनाथ’
(1978), ‘आशा’
(1980), ‘हीरो’
(1983), ‘आग
ही आग’
(1987), ‘रामलखन’
(1989), ‘खलनायक’
(1993) और
‘श्याम घनश्याम
(1998) जैसी
हिट फ़िल्में
उन्होंने ही
लिखी थीं|
सोहनलाल कंवर
और सुभाष
घई के
वो पसंदीदा
लेखक थे|
उनका निधन
73 साल
की उम्र
में साल
2002 में
हुआ|”
जीवनकला
जी अपने
बेटों योगेश
और हेमंत
और बेटी
मनीषा के
साथ वर्ली
के एनी
बेसेंट रोड
पर रहती
हैं| हेमंत
फ़िल्म एडिटर,
राईटर और
डायरेक्टर हैं
जो सुभाष
घई की
कई फ़िल्मों
में उनके
असिस्टेंट रहे| साल
2008 में
उन्होंने मराठी
फ़िल्म
‘भोला शंकर’
बनाई थी|
बेटी मनीषा
अभिनेत्री हैं
जो कई
मराठी फ़िल्मों
के अलावा ‘लाटरी’
(2008) और
‘बन्दूक’
(2013) और
जनवरी 2019
में रिलीज़
हुई
‘झोल’
जैसी हिन्दी
फ़िल्में भी
कर चुकी
हैं|
जीवनकला जी कहती हैं, “फिल्मों को मैंने 50 साल पहले अलविदा कह दिया था| उसके बाद मैं घर-गृहस्थी में व्यस्त हो गयी| लेकिन मैंने नृत्य से रिश्ता कभी नहीं तोड़ा| आज भी मैं अपनी डांस क्लासेज़ में व्यस्त रहती हूं जहां बहुत से छात्र कत्थक और लोकनृत्य सीखने आते हैं| इनमें कई विदेशी छात्र भी शामिल हैं| नृत्य मुझे आज भी असीम संतोष और ऊर्जा प्रदान करता है|”
We are thankful to –
Mr.
Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Ms.
Aksher Apoorva, Mr. Gajendra Khanna & Ms. Maitri Manthan for the English
translation of the write ups.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video
editing.
“Hansta Hua Nooraani Chehra” – Jeevankala
..............Shishir Krishna Sharma
Hindi cinema of the 1950s and 1960s is
known for its melodious music and mesmerising dances. When one talks of the
dancers of the period, the names of dancers like Helen, Kumkum, Sheela Vaz,
Madhumati, Bela Bose and Heera Sawant come to mind. Another such name is that
of Jeevankala who over nearly a decade danced to multiple hit songs, acted in a
few films and bid adieu to films after her marriage.
Jeevankala ji’s name was familiar to
me. On the internet, many sites like IMDB had some information on her, though
as per my experience, one cannot blindly believe their information. Meanwhile,
the readers of Beete Hue Din used to often inquire about her via e-mails and
messages. In view of that, I became naturally inclined towards meeting her and
interviewing her for Beete Hue Din. But the only hitch was, how to contact her?
Her name or address was not mentioned in the film directory, nor was it in the
records of ‘Cine & TV Artist Association’ (CINTAA). Inquiries with other
film folk of the period also didn’t yield any results. A lot of time passed in
the process. Then one day when I was interviewing dancer Heera Sawant, she
suddenly asked me, “Did you interview Jeevankala?”. She then gave me Jeevankala
ji’s son’s mobile number.
I met Jeevankala ji during the first
week of December 2018 at her home in Worli. I must mention here that there are
very few artists like Jeevankala ji who not only openly discussed everything
with full honesty without hiding anything but also didn’t ask me to hide
anything. This is in sharp contrast to some other personalities who after
publishing of their interviews, bombarded me with questions like, ‘Why did you
write this’, ‘Why did you write like that’ etc. I was forced to take down their
interviews as a result after getting fed up.
Jeevankala ji had inherited acting and
dance as her heritage. Her father Dattu alias Dattatreya Kamble belonged to
Pune while her mother Gangubai belonged to Kolhapur. Both were artists of the
Silent Era and worked at the Pune based film company called ‘United Pictures
Syndicate’. They worked in the company’s many hit movies like ‘Dhaa Chaa Maa’
alias ‘Murder of Narayanrao Peshwa’ (1926), ‘Tai Teleen’ (1926), ‘Papa’s Wife’
(1927), ‘Draupadi Vastraharan’ alias ‘Royal Gambler’ (1928), ‘Rakt Cha Sood’
alias ‘Blood for Blood’ (1929), ‘Seeta Swayamvar’ (1929), ‘Khooni Taaj’ (1930)
and ‘Birth of Shivaji’ (1931). Most of these films were directed by the ace filmmaker of
the time, N D Sarpotdar. Once talkies films started, they both made a name for
themselves in Marathi films as well.
Jeevankala ji was born on 29th
June 1944 at Pune’s Diwakarwada. She tells us,
“At that time the Mangeshkar family also
stayed in our building in Diwakarwada and we had good familial relations. Lata
used to call my mother Mausi (Aunt). When I was born, Lata was nearly 14 years
old. It was she, who named me telling my mother, Mausi she is your Jeevankala
(Life’s Art).”
The only child of her parents,
Jeevankala ji studied till class 6 in the peshwas’ school ‘Huzoorbagh’. From
the age of 6 years, she started learning Kathak from Balasaheb Gokhle Guruji.
She tells us, “We stayed at Diwakarwada’s Laxmi Road. When I used to practice
Kathak at home, the sound of my Ghungroos attracted the passersby. One day
those sounds brought Marathi film producer-director Datta Dharmadhikari to our
house and offered me a child artist role in his film ‘Akher Jamle’. As a result,
I faced the camera for the first time at the age of six. In the film I played
the role of the hero’s younger sister and danced as well. I also played the
role of heroine Ranjana’s daughter in the Marathi film, ‘Teen Mulah’ I used to
dance in Pune’s open Ganpati programmes as well. Our group was famous by the
name ‘Jeevankala and Dancing Party.”
According to Jeevankala ji, once Lata
became busy with film work, the Mangeshkar family had to leave Pune and settle
in Mumbai. They had their own orchestra in which all the siblings used to sing.
Composers Laxmikant and Pyarelal who were quite young at that time played
instruments in that orchestra. The orchestra used to have shows all over
Maharashtra. Jeevankala ji used to dance in those shows and would often visit
Mumbai from Pune for participating in them.
Jeevankala ji learnt dance under the
tutelage of Gokhle Guruji for nearly five years. Famous Actress Jaishree Gadkar
was also his pupil. In 1956, Jeevankala ji’s family also shifted to Mumbai. She
tells us, “In Mumbai, we stayed in the ‘Mukund
Mansion’ building which was opposite Dadar’s Kohinoor Cinema. I took admission
in class 7 in the ‘Rammohan Night School’ which was opposite Dadar’s Plaza
Cinema. I completed my 11th in 1960.”
Jeevankala ji made her debut in Hindi
films in 1959’s blockbuster ‘Goonj Uthi Shehnai’. She recalls,
“I went to
Andheri’s ‘Prakash Studio’ to meet Producer-Director Vijay Bhatt with my
mother. They needed a solo dancer for ‘Goonj Uthi Shehnai’. I was interviewed
in the presence of the film’s composer Vasant Desai and choreographer Prem
Dhawan who also saw my dancing steps. They both recommended my name to Vijay
Bhatt and thus, I got an opportunity to dance in the film’s superhit song
‘Ankhiyaan Bhool Gayi Hain Sona, Dil Pe Hua Hai Jaadoo Tona’.”
In 1959, she danced in K.Amarnath
production’s movie ‘Kal Hamara Hai’’s solo ‘Aise Na Dekho Rasiya Jiya Jaaye’
and superhit duet ‘Jaao Rasiya Hato Jaao Rasiya’. ‘Jaao Rasiya…’ is still often
heard on Radio. It was a Chitragupt’s composition sung by Lata and Usha
Mangeshkar with her co-dancer being the well known actress of the time, Sheela Kashmiri.
(Sheela acted in nearly 30 movies in the
1950s and 60s like ‘Baghdad Ka Jaadoo’, ‘Kathputli’, ‘Lajwanti’, ‘Black Cat’,
‘Teer Aur Talwaar’, ‘Nai Maa’, ‘Angulimaal’, ‘King Kong’ and ‘Shikari’. After
that she got married to Mumbai’s famous industrial family Nadiadwala’s
Gaffarbhai Nadiadwala. Producer Feroz Nadiadwala who is known for movies like
‘Awara Pagal Deewana’, ‘Phir Hera Pheri’ and ‘Welcome’ is the son of the same
Sheela Kashmiri alias Muneera Nadiadwala.)
Jeevankala ji also got an opportunity
to dance in the 1962 superhit Tamil film, ‘Konjum Salangai’ (Mesmerising
Anklet). She remembers, “We saw an ad in the newspaper that they
needed a classical dancer for a Tamil film. I went to meet them with my mother
at the address given which was for Dadar’s Rooptara studio and they signed me.
I was 18 years old at that time. ‘Konjum Salangai’ was the first movie on
Bharatnatyam made by Madras’s famous Producer-Director M V Raman. In this movie
I danced to classical music pieces (‘Todey’) and not any songs
which I consider an achievement for me.”
Jeevankala ji started acting with
the 1961 release, ‘Kismat Palat Ke Dekh’. She was the second lead for the movie
whose lead roles were played by Anup Kumar and Preetibala. The movie had
initially been titled ‘Zara Palat Ke Dekh’. The same year She did comedy with
Agha for ‘Zindagi Aur Khwab’. She had an important role in the fantasy movie
‘Chaar Darvesh’ (1964). She played Mala Sinha’s friend in ‘Himalay Ki God Mein’
(1965) while playing the vamp’s role with Ramesh Dev in ‘Saraswati Chandra’
(1968).
Jeevankala ji in addition to acting
danced to nearly 70 songs in as many films. These include Parasmani (1963)’s
superhit songs like ‘Hansta Hua Noorani Chehra’, ‘Dil Ka Fasana Koi Na Jaana’
(Umar Qaid /1962), ‘Bada Kaatil Hai Mera Yaar’ (China Town/1962), ‘Baanke Piya
Kaho Haan Dagabaaz Ho’ (Burma Town/1962), ‘Chaandi Ka Badan Sone Ki Nazar’ (Taj
Mahal/1963), ‘Uthegi Tumhari Nazar Dheere Dheere’ (Ek Raaz/1963), ‘Tu Raat
Khadi Thi Chhat Pe’ (Himalay Ki God Mein/1965), ‘Preet Basi Hai Meri Nas Nas
Mein’ (Neela Akash/1965), ‘Hey Nainwa Na Pher Pher Ke Chalo’ (Picnic/1966),
‘Khuda Huzoor Ko Meri Bhi Zindagi De De’ (Sawan Ki Ghata/1966) and ‘Kisi Ka
Agar Dil Tumko Lootna Ho’ (Thief of Baghdad/1968).
Jeevankala ji’s mother passed away
in 1965 when she was merely 21 years old. She recalls, “We had family terms with actress Sulochana. After my
mother passed away, my father told Sulochna ji, ‘Didi, I have just one
daughter. Who will take care of her after me. Please arrange for her marriage’.
She immediately suggested the name of Marathi screenplay and dialogue writer
Ram Kelkar whom she considered like her son. She took the proposal forward and
we got married in 1969.”
Ram Kelkar was born in Mumbai’s
Girgam area. His father ran the restaurant ‘Kelkar Vishranti Griha’ opposite
the CST station. He was the only son of his parents while his only sister was
already married. Ram Kelkar wanted that Jeevankala ji should take care of the
home like an ideal homemaker. In view of his wishes, Jeevankala ji stopped
acting in films after her marriage. Her last movie was ‘Saraswati Chandra’.
(Sulochana ji
had only one daughter named Kanchan. Kanchan’s husband, the Late Dr Kashinath
Ghanekar was a dental Surgeon as well as the star actor of Marathi plays. In
addition to Marathi films he had also played important roles in Hindi films
‘Dadi Maa’ (1966) and ‘Abhilasha’(1968). Dadi Maa’s superhit song ‘Jaata Hoon
Main Mujhe Ab Na Bhulana’ is picturized on Kashinath only. He passed away in
1986 at the age of 56).
Jeevankala ji tells us, “Marriage proved very lucky for Ram Kelkar ji. Soon
after the marriage he got a break in Hindi films as a screenplay writer with
producer-director Sohanlal Kanwar’s ‘Beimaan’ which released in 1972. The film
proved to be a superhit which brought him fame and he became very busy with
Hindi films. Subsequently he wrote many hit films including ‘Piya Ka Ghar’
(1972), ‘Aap Ki Kasan’ (1974), ‘Sanyasi’ (1975), ‘Kalicharan’ (1976),
‘Vishwanath’ (1978), ‘Asha’ (1980), ‘Hero’ (1983), ‘Aag Hi Aag’ (1987), ‘Ram
Lakhan’ (1989), ‘Khalnayak’ (1993) and ‘Shyam Ghanshyam’ (1998). He was the
preferred writer of both Sohanlal Kanwar and Subhash Ghai. He passed away in
2002 at the age of 73.”
Jeevankala ji stays with her sons
Yogesh and Hemant and Daughter Manisha in Worli’s Anne Besant Road. Hemant is a
film editor, writer and director who has assisted Subhash Ghai in many films.
He made the Marathi film ‘Bhola Shankar’ in 2008. Daughter Manisha is active as
an actress in Marathi films and has acted in Hindi films as well including
Lottery (2008), ‘Bandook’ (2013) and the January 2019 release ‘Jhol’.
Jeevankala ji summarized her current life like this, “I had bid adieu to films nearly 50 years back. After that I got busy with my household duties but did not leave my dancing. I still conduct dance classes where pupils learn Kathak and Folk Dance. Many foreign students also attend my classes. Dance still gives me boundless energy and satisfaction.”