“दिल को लाख सम्भाला जी” – शकीला
..........शिशिर कृष्ण शर्मा
हिन्दी
सिनेमा से
जुड़ी भूली-बिसरी
हस्तियों को
तलाशने, उनका
इंटरव्यू करने
और उनके
दुखदर्द, परेशानियों
और कुंठाओं
को क़रीब
से महसूस
करने जैसे
तमाम अनुभवों
ने मुझे
कहानी ‘राजा
सारंगा माझा
सारंगा’ लिखने
के लिए
प्रेरित किया
था| साल
2007 में साहित्यिक
त्रैमासिक ‘कथाबिम्ब’
में प्रकाशित
हुई ये
कहानी मेरे
एक अन्य
(साहित्यिक)
ब्लॉग ‘व्यंग्योपासना’
के इस
लिंक पर
भी उपलब्ध
है|
दरअसल
कहानी ‘राजा
सारंगा माझा
सारंगा’ का
नायक ‘शशांक’
मैं ही
हूं और
इस कहानी
की निम्नलिखित
पंक्तियों में
मैंने उस
दौर की
अपनी मन:स्थिति
और भावनाओं
ही का
वर्णन किया
है
-
“…और
फिर एक
रोज़ बेहद
भावुक होकर
उसने कहा,
‘बचपन से
माता-पिता
की ज़ुबान
से आपका
नाम सुनता
आया हूं।
आज भी
उनकी पीढ़ी
के लाखों
लोग ऐसे
हैं जो
जानना चाहते
हैं कि
अब आप
कहां हैं,
किस हाल
में हैं।
माता-पिता
को अकेला
छोड़कर इस
शहर में
आया हूं।
आपके बारे
में मेरा
लिखा पढ़कर
उन्हें बेहद
ख़ुशी होगी।...और
मैं हर
हाल में
उन्हें ख़ुश
देखना चाहता
हूं’।“
बचपन से ही मैं मां से उनकी जिन दो पसंदीदा अभिनेत्रियों का नाम सुनता आया था, वो थीं श्यामा और शशिकला| साप्ताहिक ‘सहारा समय’ के अपने कालम ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’ की शुरूआत मैंने इन्हीं दो अभिनेत्रियों के इंटरव्यू से की थी| ये दोनों ही इंटरव्यू इस ब्लॉग पर भी उपलब्ध हैं| दक्षिण मुम्बई के मशहूर नेपियन सी रोड स्थित श्यामा जी के घर पर उनके इंटरव्यू के दौरान अभिनेत्री शकीला से भी मुलाक़ात हुई जो अचानक ही श्यामा से मिलने आ पहुंची थीं| शकीला जी ने मुझे अपना फोन नंबर दिया, अपने घर पर आमंत्रित किया लेकिन इंटरव्यू के लिए विनम्रता से इनकार कर दिया| उनका कहना था कि उन्हें फ़िल्मी दुनिया से अलग हुए 40 साल हो चुके हैं, अब उन पुरानी बातों को क्या याद करना? मैं क़रीब 6 महीने तक उन्हें इंटरव्यू के लिए मनाने की हर मुमकिन कोशिश करता रहा लेकिन हर बार उनका जवाब ‘ना’ में ही होता| थकहार कर मैंने उन्हें फोन करना ही बंद कर दिया|
कुछ
सालों बाद
जब मुम्बई
स्थित ‘दादा
साहब फाल्के
एकेडमी’ के
पुरस्कार वितरण
समारोह में
शकीला जी
से मुलाक़ात
हुई तो
वो मुझे
पहचान ही
नहीं पायीं|
मैंने भी
इस बात
को ज़्यादा
गंभीरता से
नहीं लिया|
लेकिन बरसों
बाद अचानक
ही जैसे
करिश्मा सा
हुआ,
जब मुझे
बिन बुलाया
मेहमान बनकर
शकीला जी
के घर
जाने का
मौक़ा मिला
और बातों
ही बातों
में उनका
इंटरव्यू भी
हो गया|
शकीला
जी बताती
हैं, “मेरे
पूर्वज अफ़गानिस्तान
और ईरान
के शाही
खानदान से
ताल्लुक रखते
थे| मेरा
जन्म 1 जनवरी 1936 को मध्यपूर्व
में हुआ
था| राजगद्दी
पर कब्ज़े
के खानदानी
झगड़ों में
मेरे दादा-दादी
और मां
मारे गए
थे| मैं
तीन बहनों
में सबसे
बड़ी थी
और हम
तीनों बच्चियों
को साथ
लेकर मेरे
पिता और
बुआ जान
बचाकर मुम्बई
भाग आए
थे| उस
वक़्त मैं
क़रीब 4 साल की
थी |”
शकीला
जी के
मुताबिक उनके
पिता भी
बहुत जल्द
गुज़र गए
थे| शकीला
जी की
बुआ फ़िरोज़ा
बेगम का
रिश्ता शहज़ाद
नाम के
जिस युवक
से हुआ
था वो
भी नवाब
खानदान के
थे| लेकिन
शादी होने
से पहले
ही लन्दन
में क्रिकेट
खेलते समय
उनका निधन
हो गया
था| ऐसे
में बुआ
ने ज़िंदगीभर
अविवाहित रहने
का फ़ैसला
कर लिया|
तीनों अनाथ
भतीजियों का
पालन पोषण
बुआ ने
ही किया|
तीनों बहनों
की पढ़ाई-लिखाई
घर पर
ही हुई|
(चित्र
: पिता की
गोद में
शकीला)
शकीला
जी बताती
हैं, “बुआ
को फिल्में
देखने का
बहुत शौक़
था| वो
मुझे साथ
लेकर फ़िल्म
देखने जाती
थीं| ऐसे
में मेरा
रूझान भी
फ़िल्मों की
ओर होने
लगा| कारदार
और महबूब
के साथ
हमारे पारिवारिक
सम्बन्ध थे|
ईद पर
हमारा मिलना-जुलना
और एक-दूसरे
के घर
आना-जाना
होता ही
था| कारदार
ने ही
मुझे फ़िल्म
‘दास्तान’
में एक
13-14 साल की
लड़की का
रोल करने
को कहा
था और
इस तरह
साल 1950 में प्रदर्शित
हुई फिल्म
‘दास्तान’
से मेरे
अभिनय करियर
की शुरूआत
हुई थी| मुझे इसी
फिल्म में
मेरे असली
नाम 'बादशाहजहां'
की जगह
ये फ़िल्मी
नाम 'शकीला'
मिला था|”
‘दास्तान’
(चित्र
में)
के बाद
शकीला जी
ने ‘गुमास्ता’
(1951),
‘खूबसूरत’, ‘राजरानी
दमयंती’, ‘सलोनी’,
सिंदबाद द
सेलर’ (सभी
1952)
और ‘आगोश’,
‘अरमान’, ‘झांसी की
रानी’ (सभी
1953)
में बतौर
बालकलाकार अभिनय
किया| सोहराब
मोदी की
फिल्म ‘झांसी
की रानी’
में शकीला
जी ने
रानी लक्ष्मीबाई
(अभिनेत्री मेहताब)
के बचपन
की भूमिका
की थी|
साल 1953 में प्रदर्शित
हुई फिल्म
‘मदमस्त’
में वो
पहली बार
नायिका बनीं|
इस फिल्म
में उनके
नायक एन.ए.अंसारी
थे| फिल्म
‘मदमस्त’
को पार्श्वगायक
महेंद्र कपूर
की पहली
फिल्म के
तौर पर
भी जाना
जाता है|
उन्होंने अपने
करियर का
पहला गीत
‘किसी
के ज़ुल्म
की तस्वीर
है मज़दूर
की बस्ती’
इसी फिल्म
में, गायिका
धन इन्दौरवाला
के साथ
गाया था|
साल 1953 में शकीला
जी की
बतौर नायिका
दो और
फिल्में ‘राजमहल’
और ‘शहंशाह’
प्रदर्शित हुईं|
शकीला
जी को
पहचान मिली,
साल 1954 में प्रदर्शित
हुई सुपरहिट
फिल्म ‘आरपार’
से| इस
फिल्म के
निर्माता-निर्देशक
और नायक
गुरूदत्त थे|
‘आरपार’ गुरूदत्त
की बतौर
निर्माता पहली
फ़िल्म थी|
संगीतकार ओ.पी.नैयर
को भी
इसी फ़िल्म
से पहली
सफलता मिली
थी| इससे
पहले उनकी
तीनों फ़िल्में
‘आसमान’,
‘छमा छमा
छम’ (दोनों
1952)
और ‘बाज़’
(1953)
फ्लॉप हो
गयी थीं|
फ़िल्म ‘आरपार’
में शकीला
जी के
अलावा एक
और नायिका
श्यामा भी
थीं|
शकीला जी बताती हैं, “होमी वाडिया के बैनर ‘बसंत पिक्चर्स’ की धार्मिक और फैंटेसी फिल्मों ‘वीर घटोत्कच’, ‘श्री गणेश माहिमा’, ‘लक्ष्मी नारायण’, ‘हनुमान पाताल विजय’ और ‘अलादीन और जादुई चिराग़’ जैसी फिल्मों की अभिनेत्री मीनाकुमारी ‘बैजू बावरा’ (1952) की कामयाबी के बाद सामाजिक फ़िल्मों में व्यस्त हो गयी थीं| होमी वाडिया की अगली फैंटेसी फ़िल्म के लिए उनके पास समय ही नहीं था | उधर फ़िल्मों से जुड़े लोग मुझे बहुत पहले ही ‘अरबी चेहरा’ का ख़िताब दे चुके थे|
होमी
वाडिया ने
उस फिल्म
में मीना
की जगह
मुझे लेना
चाहा तो
उन्हें टालने
के लिए
बुआ ने
मेहनताने के
तौर पर
10 हज़ार रूपए
मांगे जो
उस ज़माने
के हिसाब
से बहुत
बड़ी रकम
थी| लेकिन
होमी वाडिया
बिना किसी
नानुकुर के
उतना पैसा
देने को
तैयार हो
गए| ऐसे
में मुझे
उनकी फ़िल्म
‘अलीबाबा
40 चोर’ करनी
ही पड़ी|
इस फिल्म
में मेरे
हीरो महिपाल
थे| साल
1954 में बनी
ये फ़िल्म
इतनी कामयाब
हुई कि
मुझे फैंटेसी
और कॉस्ट्यूम
फिल्मों के
ही ऑफ़र
आने लगे|
शकीला जी ने अगले 10 सालों में ‘गुलबहार’, ‘लालपरी’, ‘लैला’, ‘नूरमहल’, ‘रत्नमंजरी’, ‘शाही चोर’, ‘हातिमताई’, ‘खुल जा सिमसिम’, ‘अलादीन लैला’, ‘माया नगरी’, ‘नागा पद्मिनी’, ‘परिस्तान’, ‘सिमसिम मरजीना’, ‘डॉक्टर ज़ेड’, ‘अब्दुल्ला’ और ‘बगदाद की रातें’ जैसी कई फ़िल्मों में महिपाल, जयराज, दलजीत और अजीत जैसे नायकों के साथ काम किया| महिपाल के साथ उनकी जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया| इस दौरान उन्होंने देव आनंद के साथ ‘सी.आई.डी.’ (1956), सुनील दत्त के साथ ‘पोस्ट बाक्स 999’ (1958),
राज कपूर के साथ ‘श्रीमान सत्यवादी’ (1960), मनोज कुमार के साथ ‘रेशमी रूमाल’ (1961) और शम्मी कपूर के साथ ‘चायना टाऊन’ (1962) जैसी फ़िल्में भी कीं लेकिन उनकी पहचान फैंटेसी फिल्मों की नायिका वाली ही बनी रही| वरिष्ठ फ़िल्म इतिहासकार और ‘बीते हुए दिन’ के अभिन्न अंग, सूरत निवासी श्री हरीश राघुवंशी के अनुसार शकीला जी ने 14 साल के अपने करियर में कुल 72 फिल्मों में अभिनय किया| उनकी आख़िरी फिल्म ‘उस्तादों के उस्ताद’ थी जो साल 1963 में प्रदर्शित हुई थी|शकीला
जी बताती
हैं, “साल
1966 में मेरी
शादी हुई|
मेरे शौहर
अफ़ग़ानिस्तान के
रहने वाले
थे और
भारत में
अफ़ग़ानिस्तान के
‘कांसुलेट
जनरल’ थे|
शादी के
बाद मैं
शौहर के
साथ जर्मनी
चली गयी|
क़रीब 25 साल मैंने
जर्मनी और
अमेरिका में
बिताए| बीचबीच
में मैं
भारत आती-जाती
रहती थी,
जहां मेरा
घर था,
मेरी बहनें
रहती थीं|
फिर निजी
वजहों से
एक रोज़
मैं हमेशा
के लिए
भारत वापस
लौट आयी|”
तीनों
बहनों में
शकीला जी
से छोटी
नूर
(चित्र में)
भी अभिनेत्री
थीं| ‘अनमोल
घड़ी’ (1946)
और ‘दर्द’
(1947)
जैसी फ़िल्मों
में बतौर
बालकलाकार काम
करने के
बाद वो
‘दो
बीघा ज़मीन’,
‘अलिफ़ लैला’
(दोनों
1953),
‘नौकरी’ और
‘आरपार’
(दोनों
1954)
जैसी फ़िल्मों
में अहम
भूमिकाओं में
नज़र आयीं|
साल 1955 में हास्य
कलाकार जानीवाकर
से शादी
करने के
बाद उन्होंने
फ़िल्मों को
अलविदा कह
दिया था|
शकीला जी
की सबसे
छोटी बहन
ग़ज़ाला
(नसरीन)
एक गृहिणी
हैं| नूर
और नसरीन
भी मुम्बई
में ही
रहती हैं|
शकीला जी
को फिल्मों
से अलग
हुए 50 साल से
भी ज़्यादा
हो चुके
हैं| लेकिन
बीते दौर
की अभिनेत्रियों
जबीन, श्यामा,
अज़रा, वहीदा
रहमान और
(स्वर्गीय)
नंदा से
उनकी दोस्ती
हमेशा बनी
रही|
बीते
1 जनवरी को
जीवन के
80 साल पूरे
कर चुकीं
शकीला जी
की याददाश्त
पर उम्र
का असर
दिखने लगा
है| मेरे
लिए उनका
ये इंटरव्यू
किसी करिश्मे
से कम
नहीं था|
इस इंटरव्यू
का पूरा
श्रेय मैं
अभिनेत्री अज़रा
जी और
उनके मौसेरे
भाई श्री
सलीम शाह
को देना
चाहूंगा| दरअसल
अज़रा जी
और श्री
सलीम शाह
ही मुझे
शकीला जी
के घर
लेकर गए
थे और
उन्हीं के
कहने पर
शकीला जी
इंटरव्यू के
लिए तैयार
भी हुई
थीं| हमारे
साथ श्री
सलीम शाह
की पत्नी
भी थीं|
ब्लॉग ‘बीते
हुए दिन’
के पाठक
और प्रशंसक
श्री सलीम
शाह और
उनकी पत्नी
अमेरिकी नागरिक
हैं जो
उन दिनों
भारत आए
हुए थे|
दरअसल
यही वो
करिश्मा था
जिसका ज़िक्र
मैंने इस
ब्लॉग में
प्रकाशित अज़रा
जी के
इंटरव्यू के
अंत में
किया था
–
http://beetehuedin.blogspot.in/search/label/actress%20%3A%20Azra
शकीला
का निधन
20
सितम्बर 2017
को 81
साल की
उम्र में
मुम्बई में
हुआ|
We
are thankful to –
Ms.
Azra, Mr. Salim Shah, Mr. Rajni Kumar Pandya, Mr. Harish Raghuvanshi
& Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable
suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Mr.
Gajendra Khanna for the English translation of the write ups.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
Shakila on YT Channel BHD
“Dil Ko Laakh Sambhala Ji” – Shakila
.........Shishir
Krishna Sharma
My efforts in finding forgotten artists
of Hindi cinema, interviewing them and finally getting a firsthand exposure to
their pains, problems and frustrations
inspired me to write the story ‘Raja Saranga Majha Saranga’. It was published
in 2007 in the quarterly literary magazine ‘Kathabimb’ and is also available at
the following link on another (literary) blog of mine named Vyangopasana:-
In reality, I myself am the hero
“Shashank” of the story and I have written the following lines in the story to
describe my state of mind and feelings at that time:-
“…And then one day in an emotion filled
voice he said, ‘I have heard your name from my parents since childhood. Even
today there are lakhs of people of their generation who want to know where are
you and how are you? I came to this city leaving my parents behind. They will
be thrilled to read about you and I want to see them happy at all times. “
Since childhood, I used to listen to my
mother talk about her two favorite actresses, namely, Shyama and Shashikala. That’s
why I started my Weekly Sahara Samay’s column ‘Kya Bhooloon Kya
Yaad karoon’ with the
interviews of both these actresses. Both these interviews are available on this
blog. It was when I had visited Shyama ji’s house on the famous Napian Sea Road
of South Bombay, that I met actress Shakila who was visiting Shyama ji. Shakila
ji gave me her number, invited me to her house but politely declined my request
to interview her also. Her contention was that forty years had passed since She
parted ways with the film world and It was futile remembering those old times. I kept contacting
her for nearly six months in an attempt to convince her to give the interview
but her answer remained the same. Finally, I also stopped pestering her for an
interview. Some years later when I met her again
at the ‘Dada Saheb Phalke
Academy Award’ presentation
ceremony, she did not remember me. I also did not take this seriously. However,
as fate desired, many years later, I got an opportunity to go to her house as
an unexpected guest and during our conversation took her interview also!
Shakila ji remembers, “My ancestors belonged to the royal families of
Afghanistan and Iran. I was born on 1 January 1936 in the Middle East. My paternal grandparents
and mother were killed during family feuds over the throne. I was the eldest
among three sisters. Taking us children along, my father and my aunt (father’s sister)
came to Mumbai to save their lives. I was around 4 years old at that time.”
According to Shakila ji, her father
also passed away soon after. Her aunt Feroza Begum had got engaged to a prince
named Shehzaad but he too passed away while playing a cricket match in London
even before the marriage could take place. As a result, her aunt decided to
remain unmarried thereafter. It was She who brought up the three girls and who
educated them at home itself.
Shakila ji recalls, “My aunt was very fond of watching films. I used to
accompany her for the film shows and got inclined towards films too. We were
family friends with Kardar and Mehboob. We used to meet on Eid and were regular
visitors to each other’s houses. It was Kardar who offered me the role of a 13-14-year-old
girl in the movie Dastaan. This movie was released in 1950 and marked my film
debut. It was for this movie that I adopted the stage name of Shakila instead
of my given name of Badshah Jehan.
After ‘Dastaan’, Shakila ji
played children’s characters for the ‘Gumasta’ (1951), ‘Khoobsoorat’, ‘Rajrani Damyanti’, ‘Saloni’, ‘Sindbad the Sailor’ (all 1952) and ‘Aagosh’, ‘Armaan’, ‘Jhansi Ki Rani’ (all 1953). In Sohrab Modi’s ‘Jhansi Ki Rani’, Shakila ji
played the role of a young Rani Lakshmibai (whose elder role was played by
actress Mehtab). The movie Madmast (1953) marked her debut as a lead actress
where she was cast opposite actor N.A. Ansari. This movie is also known as the
first movie for which Mahendra Kapoor sang for. He had sung his career’s first song
‘kisi ke zulm ki tasweer hai mazdoor ki basti’ with singer Dhan Indorewala. Shakila ji did lead roles that year in two
more releases ‘Rajmahal’ and ‘Shehenshah’ also.
Shakila gained recognition with 1954’s superhit movie ‘Aar Paar’. Its hero was the film’s
producer-director Guru Dutt. It was his first film as a producer. O P Nayyar
also tasted success first with this movie. His previous three movies ‘Aasmaan’, ‘Chham Chhama Chham’ (both 1952) and ‘Baaz’ (1953) had all flopped miserably. Along with Shakila ji, the film ‘Aar Paar’ had another heroine, Shyama also.
Shakila ji remembers that after the success of Baiju Bawra, actress Meena
Kumari who was the star of Homi Wadia’s Basant Pictures religious and fantasy
movies like ‘Veer Ghtotkach’, ‘Shri Ganesh Mahima’, ‘Lakshmi Narayan’, ‘Hanuman Pataal Vijay’ and ‘Alladin Aur Jadui Chiragh’, had become
busy with social movies. She could not give dates for Homi Wadia’s next fantasy
film. At the same time, Shakila had already been christened as ‘Arbi Chehra’ (Arabian Beauty) in the film
fraternity. When Homi Wadia tried to approach her for this movie, in order to
avoid the offer, her aunt quoted the then astronomical sum of ten thousand rupees.
However, Homi Wadia agreed to that as a remuneration without any deliberation. Under
these circumstances, Shakila was forced to sign up for “Alibaba Chalees Chor”
in which she was cast opposite hero Mahipal. This 1954 release became so
popular that she started getting offers only for Fantasy and Costume Dramas.
During the next ten years, Shakila ji acted in many movies like ‘Gulbahar’, ‘Lalpari’, ‘Laila’, ‘Noormahal’, ‘Ratnmanjari’, ‘Shahi Chor’, ‘Hatimtai’, ‘Khul Ja Simsim’, ‘Alladin Laila’, ‘Maya Nagri’, ‘Naag Padmini’, ‘Paristan’, ‘Simsim Marjina’, ‘Doctor Z’, ‘Abdullah’ and ‘Baghdad Ki Ratein’ opposite heroes like Mahipal, Jairaj, Daljeet and Ajeet. The audiences
really appreciated her pairing with Mahipal. During this time, she also acted with
Dev Anand in ‘CID’ (1956), with Sunil Dutt in ‘Post Box 999’ (1958), with Raj Kapoor in ‘Shriman Satyawadi’ (1960), with Manoj Kumar in ‘Reshmi Rumal’ (1961) and with Shammi Kapoor in ‘China Town’ (1962). In spite of
these movies, her public image remained that of a Fantasy Movie Heroine.
Veteran film historian and a pillar of “Beete Hue Din”, the Surat based Shri
Harish Raghuvanshi estimates that during her 14-year long career Shakila acted
in 72 movies. Her last release was in 1963 in the form of ‘Ustaadon Ke Ustaad’.
Shakila ji tells us, “I got married in 1966. My husband was from
Afghanistan and was its Consulate General in India. After marriage, Shakila ji
went to Germany. She spent nearly 25 years in USA and Germany. She used to
occasionally visit Mumbai where she had a house and where her sisters used to
stay. Due to personal reasons, one day she had to return to India for good.”
Her younger sister Noor was also an actress. After acting as a child
artiste in movies like ‘Anmol Ghadi’ (1946) and ‘Dard’ (1947), she had played important characters in movies like ‘Do Beegha Zameen’, ‘Alif Laila’ (both 1953), ‘Naukri’ and ‘Aar Paar’ (both 1954). She bid adieu to films in 1955 after she got married to the popular
comedian Johnny Walker. Shakila ji’s youngest sister Ghazala (Nasreen) is a housewife. Both Noor
and Nasreen stay in Mumbai. Though, it has been over 50 years since she parted
ways with the film industry, she remained good friends with actresses of the
period like Jabeen, Shyama, Azra, Waheeda Rehman and the late Nanda
The effect of old Age is clearly
visible on the memory of Shakila ji who completed the age of 80 years this
January 1st. It was nothing short of a miracle for me to have been
able to complete this interview. The full credit for this interview goes to
Actress Azra ji and her maternal cousin Shri Salim Shah who is a regular reader
and admirer of ‘Beete Hue Din’. It was both who took me to Shakila ji’s home
and they were instrumental in convincing Shakila ji to give this interview. We
had been accompanied by the wife of Shri Salim Shah too. The Shah couple are
citizens of USA and were visiting India at the time.
It was this miracle which I had
mentioned at the end of the interview of Azra ji which was published on this
blog some time back :-
http://beetehuedin.blogspot.in/search/label/actress%20%3A%20Azra
Shakila died in Mumbai on 20 September
2017 at the age of 81.