Wednesday, December 31, 2014

“Sansaar Hai Ik Nadiya” – (Sonik) Omi

संसार है इक नदिया” – (सोनिक) ओमी

                    ..............शिशिर कृष्ण शर्मा

1960 के दशक में हिन्दी फ़िल्मोद्योग में एक संगीतकार जोड़ी ने धमाकेदार एण्ट्री की थी। वो जोड़ी थीसोनिक-ओमीकी और फ़िल्म थी, साल 1966 में रिलीज़ हुईदिल ने फिर याद कियारावल फ़िल्म्सके बैनर में बनी इस फ़िल्म के निर्देशक सी.एल.रावल और मुख्य कलाकार, नूतन, धर्मेन्द्र और रहमान थे जी.एल.रावल के लिखे और सोनिक-ओमी द्वारा संगीतबद्ध किए इस फ़िल्म के दसों गीत आज 48 साल बाद भी उतने ही लोकप्रिय हैं। क़रीब ढाई दशक के अपने करियर के दौरान सोनिक-ओमी ने क़रीब सौ फ़िल्मों में संगीत दिया। और फिर साल 1993 में सोनिक के देहांत के बाद ये जोड़ी हिन्दी सिनेमा के इतिहास का हिस्सा हो गयी। इस जोड़ी के ओमी जी आज भी चुस्त-दुरूस्त हैं और अंधेरी पश्चिम के यारी रोड इलाक़े में अपने बेटेबहू के साथ रहते हैं।बीते हुए दिनके साथ बातचीत के दौरान ओमी जी ने अपनी निजी और व्यवसायिक ज़िंदगी के बारे में विस्तृत बातचीत की।

13 जनवरी 1939 को स्यालकोट (पाकिस्तान) में जन्मेओमप्रकाश सोनिकके पिता का ज़मीनें खरीदने-बेचने का कारोबार था और मां एक आम घरेलू महिला थीं। आठ भाई और दो बहनों में ओमप्रकाश तीसरे नम्बर पर थे। उन्होंने चौथी तक की पढ़ाई स्यालकोट में की थी। उन्हीं दिनों बंटवारा हुआ तो उनका परिवार पठानकोट, अमृतसर और यमुनानगर में रूकता-ठहरता आख़िर में दिल्ली आकर बस गया। ओमप्रकाश के सगे चाचामनोहरलाल सोनिकअभिनेता ओमप्रकाश के बड़े भाई बक्षी जंगबहादुर कीम्यूज़िकल डांस पार्टीमें बतौर गायक नौकरी करते थे और बंटवारे के समय कार्यक्रम के सिलसिले में देहरादून गए हुए थे। मनोहरलाल जब दो बरस के थे तो उनकी आंखें चली गयी थीं। लाहौर के ब्लाईंड स्कूल से ब्रेल में मैट्रिक करने के बाद उन्होंने संगीत में विशारद किया था। उन्होंने कुछ समय बतौर सहायक, पंडित अमरनाथ के साथ काम किया, और फिर उन्हेंम्यूज़िकल डांस पार्टीमें नौकरी मिल गयी थी।

ओमी जी बताते हैं, ‘हमारे दिल्ली पहुंचने के साथ ही चाचा मनोहरलाल भी देहरादून से दिल्ली गए, जहां उन्हेंमाणिकलालथिएटर ग्रुप में नौकरी मिल गयी। चाचा मुझसे क़रीब 17 साल बड़े थे। गाने का मुझे भी बहुत शौक़ था इसलिए मैं चाचा के काफ़ी क़रीब था। चूंकि वो आंखों से लाचार थे, इसलिए जब उन्होंने मुम्बई जाकर फ़िल्मों में क़िस्मत आजमाने का फ़ैसला किया तो उन्हें सहारा देने के लिए पिताजी ने मुझे भी उनके साथ भेज दिया। और इस तरह साल 1948 में हम दोनों मुम्बई चले आए।‘ 

मुम्बई में मनोहरलाल सोनिक की पहचान के सिर्फ़ दो ही लोग थे, जिनमें एक थे पंडित अमरनाथ के संगीतकार बेटे हरबंस और दूसरी गायिका शांति शर्मा, जिन्होंने लाहौर में मनोहरलाल सोनिक से गायन की शिक्षा ली थी। 40 के दशक के आख़िर में शांति शर्मा ने रईस, धूमधाम, शौक़ीन, वीर घटोत्कच और  आहुति जैसी कुछ फ़िल्मों में गीत गाए थे और फिर वो मुम्बई छोड़कर दिल्ली जा बसी थीं।

(यदि किसी पाठक के पास गायिका शांति शर्मा के विषय में किसी भी प्रकार की जानकारी हो तो कृपयाबीते हुए दिन' को अवश्य सूचित करें, धन्यवाद !)

मुम्बई पहुंचकर मनोहरलाल और ओमी जी शांति शर्मा से उनके खार (पूर्व) स्थित निवासस्थान पर जाकर मिले और उसी दिन शांति शर्मा के साथ उन्हें रेकॉर्डिंग पर जाने का मौक़ा मिला। ओमीजी बताते हैं, ‘मेरी उम्र उस वक़्त महज़ नौ बरस की थी इसलिए ये तो मुझे याद नहीं है कि वो फ़िल्म या गीत कौन सा था लेकिन वो एक युगलगीत था और चूंकि रेकॉर्डिंग पर पुरूष गायक नहीं पहुंच पाया था इसलिए संगीतकार हरबंस ने वो गीत शांति शर्मा और चाचा की आवाज़ों में रेकॉर्ड कर लिया था।ये एक अच्छी शुरूआत थी जिसके बाद मनोहरलाल ने मास्टर सोनिक के नाम से हुस्नलाल भगतराम और गुलशन सूफ़ी जैसे संगीतकारों के लिए कई गीत गाए। साल 1955 में बनी फ़िल्मघमंडमें गुलशन सूफ़ी के संगीत में उनका गाया सोलो गीतसुबह का भूला शाम को गर लौट के घर जाएउस दौर में बेहद मशहूर हुआ था।

मुम्बई में ओमी जी के एक मामा सरदार मानसिंह राणा भी रहते थे जो आज़ाद हिंद फ़ौज से अपने जुड़ाव की वजह से कॉमरेड कहलाते थे। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के निधन के बाद वो मुम्बई चले आए थे, जहां उन्होंने कॉमरेड प्रताप राणा के नाम से निर्माता हल्दिया के साथ मिलकर फ़िल्मपरवानाबनाई थी। साल 1947 में रिलीज़ हुई फ़िल्म परवाना के.एल.सहगल की आख़िरी फ़िल्म थी। उसके बाद कॉमरेड प्रताप राणा ने अकेले ही फ़िल्मविद्या(1948) औरजीत(1949) बनाईं। जीत उनकी पहली पत्नी का नाम था जिनके गुज़र जाने के बाद उन्होंने निर्देशक मोहन सिंहा की बेटी विद्या के साथ दूसरा विवाह किया था। लेकिन साल 1947 में प्रसव के दौरान विद्या का भी देहांत हो गया था। कॉमरेड प्रताप राणा ने अपनी फ़िल्मों के नाम श्रद्धांजलि स्वरूप अपनी दोनों स्वर्गवासी पत्नियों के नामों पर रखे थे। विद्या की नवजात बच्ची को उसके नाना मोहन सिंहा पाला-पोसा और उसका नाम भी अपनी स्वर्गवासी बेटी के नाम पर ही रखा। ओमी जी के मामा की उस बेटी को आज हम अभिनेत्री विद्या सिंहा के तौर पर जानते हैं, और ओमी जी के मामा की बेटी होने के नाते वो इनकी ममेरी बहन हैं।

उधर निर्माता हल्दिया नेपरवानाके बाद अकेले ही फ़िल्मईश्वरभक्ति(1951) औरममता(1952) बनाईं। इन दोनों ही फ़िल्मों के संगीत की ज़िम्मेदारी उन्होंने मनोहरलाल सोनिक को दी।ईश्वरभक्तिमें मनोहरलाल ने हल्दिया के मैनेजर गिरधर के साथ जोड़ी बनाकरसोनिक-गिरधरके नाम से संगीत दिया था। फ़िल्मममताका संगीत उन्होंने अकेलेसोनिकके नाम से तैयार किया था, हालांकि उस फ़िल्म के कुल आठ गीतों में से एक गीत की धुन हंसराज बहल ने बनाई थी। लेकिन तोईश्वरभक्तिचली और हीममताकोई छाप छोड़ पायी। उधर संगीतकार बन जाने पर सोनिक को बतौर गायक काम मिलना भी करीब क़रीब बंद ही हो गया जिसकी वजह से संघर्ष का दौर फिर से शुरू हो गया। ओमी जी बताते हैं, ‘चाचा ने उस मुश्क़िल वक़्त का इस्तेमाल वी.बलसारा से फ़िल्म संगीत की बारीकियां सीखने में किया, हॉरमोनियम बजाने में महारत हासिल की, और बहुत जल्द वो बतौर हॉरमोनियम वादक बेहद व्यस्त हो गए।
ऐसी ही एक रेकॉर्डिंग के दौरान संगीतकार मदनमोहन ने उनसे अरेंजर का काम लिया तो इस नयी भूमिका में भी वो खरे साबित हुए। दरअसल उस फ़िल्म के लिए मदनमोहन को भारतीयता की छाप लिए हुए गीत-संगीत बनाना था जबकि उनके अरेंजरचिक चॉकलेटजो अफ़्रीकी मूल के एक ट्रम्पेट वादक थे, सिर्फ़ पाश्चात्य संगीत के जानकार थे।‘     

मदनमोहन के बाद मनोहरलाल सोनिक संगीतकार रोशन के अरेंजर बने। इसके अलावा उन्होंने उषा खन्ना की पहली फ़िल्मदिल देके देखोमें भी बतौर अरेंजर काम किया। रोशन की फ़िल्मबाबरमें उन्होंने बतौर कोरस-गायक गीत भी गाए। उधर रफ़ी के गाए फ़िल्मबाबरके मशहूर गीततुम एक बार मोहब्बत का इम्तहान तो लोकी रेकॉर्डिंग के दौरान संगीतकार रोशन के असिस्टेंटमारियानहीं पहुंच पाए तो रोशन ने ओमी जी की मदद ली जो हमेशा ही अपने नेत्रहीन चाचा का सहारा बनकर उनके साथ मौजूद होते थे। उस रेकॉर्डिंग के दौरान ओमी जी की मेहनत और लगन को देखकर रोशन इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ओमी जी को भी स्थायी तौर पर अपना असिस्टेंट बना लिया। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में मुम्बई के पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया, रोशन के उन्हीं असिस्टेण्टमारियाके बेटे हैं।

ओमी जी बताते हैं, ‘हम लोग लगातार रोशन साहब के साथ काम करते रहे और उस दौरान मैंने चाचा के अलावा रोशन साहब से भी संगीत की तमाम बारीकियां सीखीं। रोशन की, साल 1963 में बनी राज कपूर और नूतन अभिनीत फ़िल्मदिल ही तो हैमें पहली बार मेरे नाम को चाचा के साथ जोड़कर हमें बतौर अरेंजरसोनिक-ओमीके नाम से पेश किया गया था। इस नाम को देखकर उस फ़िल्म के निर्माता जी.एल.रावल के मुंह से बेसाख़्ता निकल पड़ा था कि ये नाम तो किसी संगीतकार जोड़ी का सा लगता है, और बहुत जल्द उन्हीं ने हमें फ़िल्मदिल ने फिर याद कियाके संगीत की ज़िम्मेदारी देकर अपनी कही बात को सच भी साबित कर दिखाया।‘ 

दिल ने फिर याद कियाअपने दौर की बहुत बड़ी म्यूज़िकल हिट साबित हुई। लेकिन उसके बाद दो साल तकसोनिक-ओमीकी इस जोड़ी को अच्छे ऑफ़र के इंतज़ार में ख़ाली बैठे रहना पड़ा। उस दौरान छोटी-छोटी फ़िल्मों के ऑफ़र्स तो उन्हें मिलते रहे लेकिन ऐसे तमाम ऑफ़र्स को वो ठुकराते चले गए। उधर संगीतकार बन जाने की वजह से असिस्टेण्ट और अरेंजर का काम मिलना भी बंद हो गया था। ओमी जी बताते हैं, ‘इतनी बड़ी हिट देने के बावजूद संघर्ष का दौर एक बार फिर से शुरू हो चुका था। हम आख़िर कब तक साईनिंग अमाऊंट पर निर्भर रह सकते थे। नतीजतन एक वक़्त ऐसा आया जब हमें जो भी काम मिला उसे मंज़ूर करना ही पड़ा। साल 1968 में रिलीज़ हुई हमारी दूसरी फ़िल्मआबरूका संगीत भी बेहद लोकप्रिय हुआ था।

कामयाबी का कुछ ऐसा ही रेकॉर्ड साल 1969 में रिलीज़ हुईमहुआऔर 1970 कीसावन भादोंके संगीत ने भी बनाया था। लेकिन फ़ाकाकशी के दौरान साईन की हुई छोटी-छोटी फ़िल्मों की रिलीज़ ने हमारे करियर पर बुरा असर डाला और हमें बी ग्रेड की फ़िल्मों का संगीतकार माना जाने लगा। हालांकि उस दौरान भी जब कभी हमें मौक़ा मिला, हमने फिर से अपने शुरूआती स्तर पर पहुंचने में कोई कसर नहीं छोड़ी, चाहे वो फ़िल्मधर्माहो यारफ़्तारयाउमर क़ैद यहां तक कि गाहे-बगाहे निर्माता-निर्देशक-अभिनेता जोगिंदर कीबिंदिया और बंदूक’, ‘दो चट्टानेंऔरफ़ौजीजैसी फ़िल्मों के गीत भी हिट होते रहे। लेकिन फ़्रीलांसिंग की अपनी मजबूरियां हैं जिनकी वजह से हमारे करियर का ग्राफ़ नीचे क्या आया कि फिर वो ऊपर चढ़ ही नहीं पाया।

फ़िल्ममहुआके एक गीत में ओमी जी ने आशा भोंसले का साथ देकर अपने गायन के शौक़ को फिर से ज़िंदा किया था। लेकिन इस शौक़ को उन्होंने गंभीरता से कभी नहीं लिया।एक खिलाड़ी बावन पत्ते’ ‘मेहमिल’ ‘धर्मा’, ‘शाही लुटेरा’, ‘यारी ज़िंदाबाद’, ‘वीरू उस्ताद’, अपना खून’, ‘भक्ति में शक्ति’, ‘रामकसम’, ‘तीन इक्के’, ज़ुल्म की पुकार’, ‘बदला और बलिदान’, ज्वाला डाकू’, ‘खून की टक्कर’, ‘रामकली’, सीतापुर की गीता’, ‘तेरा करम मेरा धरमऔर देश के दुश्मनजैसी तीस फ़िल्मों में ओमी जी ने चालीस के क़रीब गीत गाए इसके बावजूद उनकी पहचान संगीतकार की ही बनी रही। मीनाकुमारी की मौत के कुछ समय बाद एच.एम.वी. कम्पनी ने ओमी जी की आवाज़ में मीनाकुमारी की लिखी हुई दो ग़ज़लों का प्राईवेट अलबम भी बाज़ार में उतारा था।

यों तो साल 1989 में रिलीज़ हुईदेश के दुश्मन’ ‘सोनिक-ओमीद्वारा संगीतबद्ध की गयी आख़िरी फ़िल्म थी, लेकिन पहले से बनती रही उनकी कुछ छोटी-छोटी फ़िल्में बाद तक भी रिलीज़ होती रहीं। साल 1998 में रिलीज़ हुई फ़िल्महिंद की बेटीको उनकी आख़िरी रिलीज़ कहा जा सकता है।

क़रीब चार साल पहले यूनिवर्सल कम्पनी नेअनहर्ड मॅलोडीज़के नाम से एक ऑडियो सी.डी. रिलीज़ की थी, जिसमें सोनिक-ओमी के 14 बेहद कर्णप्रिय ऐसे गीतों को शामिल किया गया है जो किसी वजह से अभी तक बाज़ार में नहीं पाए थे।   

फ़िल्मनया दौरके गीतये देश है वीर जवानों कामें रफ़ी के सहगायक एस.बलबीर ओमीजी के बेहद क़रीबी दोस्तों में से थे। बलबीर नेआज क्यों हमसे परदा है’ (साधना), ‘भेज छना छन’ (अब दिल्ली दूर नहीं), ‘चाहे ये मानो चाहे वो मानो’ (धर्मपुत्र), ‘ये माना मेरी जां, मोहब्बत सज़ा है’ (हंसते ज़ख़्म), ‘जी चाहता है चूम लूं’ (बरसात की रात), ‘जो मामा जाएगा’ (हीर रांझा) जैसे कई हिट गीत गाए थे। सत्तर के दशक की शुरूआत तक तो उनके इक्का-दुक्का गीत बाज़ार में आते रहे लेकिन फिर अचानक ही बलबीर का नाम सुनाई देना बंद हो गया। अनमोल फ़नकार के साथ बातचीत के दौरान एस.बलबीर की ग़ुमशुदगी की वजह पर से परदा हटाते हुए ओमी जी ने बताया कि बलबीर की शादी नहीं हुई थी, और वो अंधेरी (पश्चिम) के यारी रोड-वर्सोवा की कोली बस्ती में एक कोली महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहते थे। सन 1970 के आसपास पंजाब के उनके गांव में उन्हें क़त्ल कर दिया गया था। उस वक़्त उनकी उम्र क़रीब 40 साल थी। 

 

मनोहरलाल सोनिक का जन्म 24 नवम्बर 1923 को गुजरांवाला में हुआ था। 9 जुलाई 1993 को उनका देहांत हुआ जिसके बाद ये जोड़ी हिन्दी सिनेमा के इतिहास का हिस्सा बनकर रह गयी। अब पिछले कई बरसों से ओमी जीइंडियन परफ़ॉर्मिंग राईट्स सोसायटी’ (आई.पी.आर.एस.) के निदेशक पद पर कार्यरत हैं। आई.पी.आर.एस. वो संस्था है जो गीत की रॉयल्टी को लेकर  गीतकारों, संगीतकारों, निर्माताओं और म्यूज़िक कंपनियों के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए इन सभी के हित में काम करती है।

एक बेटे और एक बेटी के पिता ओमी जी यानि कि ओमप्रकाश सोनिक अपने बेटे सोम सोनिक, बहू और दो पोतों निखिल और करण के साथ रहते हैं। उनकी बेटी का विवाह हो चुका है और वो मुम्बई के ही पवई इलाक़े में अपने होटल व्यवसायी पति के साथ रहती हैं। ओमी जी कहते हैं, ये तो फ़िल्मी दुनिया का दस्तूर ही है कि जो ऊपर चढ़ा, उसे एक रोज़ नीचे भी गिरना ही होता है। जिसने फ़िल्मी दुनिया की इस सच्चाई को समझ लिया, उसे हालात से समझौता करने में कभी भी परेशानी नहीं होती। ख़ुशकिस्मती से मैं भी ऐसे ही लोगों में से हूं।

ओमी जी का निधन 7 जुलाई 2016 को 77 साल की उम्र में मुम्बई में हुआ|


We are thankful to

Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Ms. Aksher Apoorva, Mr. Gajendra Khanna & Ms. Maitri Manthan for the English translation of the write ups.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.


Omi ji On BHD 



Sansaar Hai Ik Nadiya” – (Sonik) Omi

                    ..............Shishir Krishna Sharma

In the 1960’s decade a new composer duo entered with a bang in the world of Hindi cinema. This composer duo was Sonik-Omi and the film was the 1966 release Dil Ne Phir Yaad Kiya which was made under the banner of Rawal Films. This film was directed by C.L.Rawal along with the stars like Nutan, Dharmendra and Rehman in the main lead.  Written by G.L.Rawal and composed by Sonik-Omi, all 10 songs of this film are still just as popular even after 48 years from its release. Within a career span of almost 2 ½ decades, Sonik-Omi composed music for almost 100 films. And then after Sonik’s demise in 1993, the duo became a part of Hindi cinema’s history. Omi Ji of this set of two is still very much hale and hearty and resides in Andheri West’s Yari Road with his son and daughter in law. During his interview with Beete Hue Din, Omi Ji was kind enough to speak in detail about his personal and professional life.

Born on 13th January 1939 in Sialkot (Pakistan), Om Prakash Soniks father dealt in buying and selling land whereas his mother was a regular housewife. Om Prakash was the third of 8 brothers and sisters. He studied till the 4th grade in Sialkot. And as the partition happened, his family travelled haltingly through Pathankot, Amritsar, Yamuna Nagar and finally to Delhi. Om Prakash’s Chacha (father’s younger brother) Manohar Lal Sonik, used to work as a singer in actor Om Prakash’s elder brother, Bakshi Jang Bahadur’sMusical Dance Partyand due to his work schedule, he was in Dehradoon during the partition. Manohar Lal had lost his eye sight when he was merely 2 years old. After passing his Matric in Braille from Lahore’s Blind School he did his ‘Visharad’ in music. For some time he assisted Pandit Amarnath after which he landed a job in Musical Dance Party. Omi Ji tells us, as soon as we reached Delhi, Chacha Manohar Lal also came from Dehradoon to Delhi where he got a job in the Manik Lal Theatre Group. Chacha was approximately 17 years older to me. I was very fond of music as well and so naturally I was quite close to him. Once Chacha decided to go to Mumbai and try his luck in films, my father decided to send me with him as a support since he was visually handicapped. And so in the year 1948 we both came to Mumbai.’

Manohar Lal Sonik knew only 2 people in Mumbai, one of whom was Pandit Amarnath’s composer son Harbans and the other was singer Shanti Sharma who had learnt music from Manohar Lal Sonik in Lahore. Towards the end of the 1940’s Shanti Sharma had sung for a few films like ‘Raees’, ‘Dhoomdhaam’, ‘Shaukeen’, ‘Veer Ghatotkach’ and ‘Ahuti’ and then she left Mumbai for Delhi.

(In case any reader has any kind of information about singer Shanti Sharma, we request you to kindly get in touch with Beete Hue Din'. Thank you!)

On reaching Mumbai, Manohar Lal and Omi Ji went to meet Shanti Sharma at her residence in  Khar (East) and fatefully got a chance to go to a recording with her on the same day. Omi Ji tells us, ‘since I was merely 9 years old, I won’t be able to tell you which song it was or for which film it was, but I do remember that it was a duet as the male singer didn’t turn up and hence composer Harbans decided to record the song with Shanti Sharma and Chacha. This was a truly good start as hereafter Manohar Lal sang many songs for composers like Husnlal Bhagatram and Gulshan Sufi under the pseudo name ‘Master Sonik’. His solo songsubah ka bhoola sham ko gar laut ke ghar aa jaaye from the 1955 filmGhamandcomposed by  Gulshan Sufi was rather popular at that time’.

Omi Ji had a maternal uncle Sardar Man Singh Rana in mumbai who due to his alliance with Azad Hind Fauj was called Comrade. After the demise of Netaji Subhash Chandra Bose, he had settled in Mumbai where under the name of Comrade Pratap Rana he produced the film Parwana along with producer Haldia. Released in 1947, film Parwana’ was K.L.Sehgal’s last film. Thereafter Comrade Pratap Rana producer filmsVidya’ (1948) andJeet’ (1949) on his own. Jeet was his first wife’s name and after she passed away he married director Mohan Sinha’s daughter Vidya. But unfortunately in 1947 Vidya too passed away during childbirth. Comrade Pratap Rana kept the names of his films after his two deceased wives as homage to them. A grandfather now, Mohan Sinha raised his daughter vidya’s newborn daughter and even named her after his late daughter. Today we know that daughter, Omi Ji’s maternal uncle’s daughter, as Vidya Sinha who would also be his maternal cousin.

On the other hand producer Haldia also produced two films Ishwar Bhakti’ (1951) andMamta’ (1952) after Parwana. He entrusted the music of both the films to Manohar Lal Sonik. During the film Ishwar Bhakti, Manohar Lal joined hands with Haldia’s manager Girdhar and furnished the films music under the duo of Sonik-Girdhar. While he was credited with composing filmMamtas’ music on his own, of the films 8 songs at least 1 had been composed by Hansraj Behl. But neither of the films could leave any impression on the box office. At the same time since Sonik had become a composer, now he started receiving less and less work as a singer and consequentially his struggle to survive started once again. Omi Ji tells us, ‘Chacha utilized that difficult period of his life to learn the nuances of film music from V.Balsara and thus mastered the ‘Harmonium’ and very soon he started getting bookings as a Harmonium player. During one such recording, composer Madan Mohan used him as an arranger and Sonik proved himself in this new arena as well. Actually Madan Mohan had to compose songs and music with an Indian feel to it and his arrangerChic Chocolatewho was an African origin Trumpet player was well versed only in western music.’

 

After Madan Mohan, Manohar Lal Sonik became an arranger for composer Roshan. Other than this, he also worked as an arranger for Usha Khanna’s debut filmDil Deke Dekho. He sang songs as a chorus singer for Roshan’s filmBaabar. During the recording of Rafi’s song tum ek baar mohabbat ka imtehaan to lo from the film Baabar, composer Roshan’s assistantMariadidn’t turn up and so Roshan took Omi Ji’s help as Omi Ji was ever present with his visually challanged Chacha as his support. During this recording session Roshan was so impressed by Omi Ji’s hard work and diligence that he decided to hire Omi Ji as his permanent assistant. It’s worth mentioning that Mumbai’s present Police Commissioner Rakesh Maria, is the same Maria’sson who was the then assistant to Roshan.  

Omi Ji tells us, ‘we kept working continuously with Roshan Sahib and during that time I learnt all the nuances of music from both my Chacha and Roshan Sahib. For the very first time, in Roshan’s 1963 filmDil Hi To Hai starring Raj Kapoor and Nutan, my name was attached with Chacha as an arranger and we were recognized as the duo arrangerSonik-Omi. On seeing our name the film’s producer G.L. Rawal has spontaneously said that the name sounds like a composer duo and soon he proved his words to be a prophecy when he gave us the musical responsibility for the film Dil Ne Phir Yaad Kiya.

Dil Ne Phir Yaad Kiyaproved to be a big musical hit of its time. But after that the duo Sonik-Omi had to stay put at home in wait of a good offer for almost 2 years. During this phase they did receive offers of small budget films but they kept refusing all such offers. And since they had become a composer they stopped receiving work as an assistant and arranger. Omi Ji tells us, “Even after giving such a big hit, our struggling days had started all over again. Till when we could sustain on signing amounts. And hence the day came when we had to accept whatever work that came our way. The music of our 2nd film, 1968’s Aabroo, had become very popular as well. Such precedence of success was set by our 1969 releaseMahua and our 1970 releaseSawan Bhadon. But the small films we signed during our struggle left a bad impact on our career and we started being known as B-grade film composers. Although whenever we had a chance we did try to maintain our standard despite the grade of the films, be it Dharmaor RaftaarorUmar Qaid. To the extent that the music of occasional producer-director-actor Joginder’s films like Bindia aur Bandook’, ‘Do ChattaneinandFaujialso went on to become hits. But freelancing has its own set of problems because of which once our career graph came down it could never climb up again.

Omi Ji had even revived his passion for singing with filmMahuawhere he sang alongside Asha Bhonsle. But he never took this passion of his seriously. Omi Ji sang almost 40 songs in 30 films like Ek Khiladi Bawan Patte’ ‘Mehmil’ ‘Dharma’, ‘Shahi Lutera’, ‘Yari Zindabad’, ‘Veeru Ustad’, ‘Apna Khoon’, ‘Bhakti Me Shakti’, ‘Ram Kasam’, ‘Teen Ikke’, ‘Zulm Ki Pukaar’, ‘Badla Aur Balidan’, ‘Jwala Daku’, ‘Khoon Ki Takkar’’, ‘Ramkali’, Sitapur Ki Geeta’, ‘Tera Karam Mera Dharamand ‘Desh Ke Dushmanbut even then his identity remained primarily of a composer. After Meena Kumari passed away, HMV Company had produced a private album of 2 ghazals written by Meena Kumari herself and sung in the voice of Omi Ji.

Though the 1989 release Desh Ke Dushman was the last film composed by Sonik-Omi but some smaller ongoing projects were completed later, some of these smaller films were released later on as well. FilmHind Ki Betireleased in 1998 was officially their last film release.

Almost 4 years ago Universal Company had released an audio CD album called Unheard Melodieswhich was a collection of Sonik-Omi’s 14 previously unreleased melodious songs

Rafi’s co-singer S.Balbir from the filmNaya Daur’ssongye desh hai veer jawaano kawas Omi ji very close friend. Balbir has sung many hit songs like aaj kyon humse parda hai’ (Sadhna), ‘bhej chhana chhan’ (Ab Dilli Door Nahin), ‘chahe ye maano chahe wo maano’ (Dharampurta), ‘ye maana meri jaan mohabbat saza hai’ (Hanste Zakhm), ‘jee chaahta hai choom loon’ (Barsaat Ki Raat), ‘jo mama mera aa jayega’ (Heer Ranjha). Till the beginning of the 70’s decade one would still hear a couple of songs once in a while sung by Balbir and then suddenly his name vanished from the music scene. While talking with ‘Beete Hue Din’, Omi Ji shed light on Balbir’s sudden disappearance and said that Balbir was not married and he was in a live in relationship with a Koli woman and lived with her at the Koli Basti on Yari Road-Versova in Andheri (West). He was murdered during the beginning of the 1970’s decade around his village in Punjab. He was just 40 years old at that time.

Manohar Lal Sonik was born on 24th November 1923 at Gujarawala. He passed away on 9th July 1993 after which this composer duo became a part of cinematic history. For the last few years Omi Ji has been presiding as the Director of Indian Performing Rights Society’ (IPRS). IPRS is the body that is working towards trying to standardize policies in regard to royalty between the lyricists, composers, producers and music companies.

Father of a son and a daughter, Omi Ji or Om Prakash Sonik lives with his son Som Sonik, his daughter in law and two grandsons Nikhil and Karan. His daughter is married and lives in Mumbai’s Powai area with her hotelier husband. Omi Ji says that, “this is the glamour industry’s nature that the one who rises has to fall down one day. The one who does understand this law of the film industry doesn’t face problems in compromising with changing times. Luckily I am one of those people.”

Omi ji died on 7 July 2016 in Mumbai at the age of 77.