Friday, August 31, 2012

“Aye Chaand Bata Mujhko Kya Isee Ka Naam Hai Pyar” – Begumpara

चांद बता मुझको क्या इसी का नाम है प्यार बेगमपारा

                                          ........शिशिर कृष्ण शर्मा

हिंदी सिनेमा के इतिहास में वनमाला, मेहताब, कौशल्या, स्नेहप्रभा प्रधान, लीला देसाई, पारो, मुनव्वर सुल्ताना, निरूपा राय, कामिनी कौशल, बीना राय और स्मृति बिस्वास जैसी कई अभिनेत्रियां हुईं जिन्होंने मौक़ा मिलते ही बेमिसाल अदाकारी से दर्शकों का दिल तो ज़रूर जीता, लेकिन अफ़सोस कि उनके करियर का ग्राफ़ उन ऊंचाईयों पर नहीं पहुंच पाया जिसकी वो हक़दार थीं। इन्हीं अभिनेत्रियों में शामिल थीं बेगमपारा जिन्होंने 15 साल के अपने करियर के दौरान महज़ 28 फ़िल्मों में काम किया। फिर अचानक ही उन्होंने तमाम चमक-दमक और शोहरत को भुलाकर शादी की और घर-गृहस्थी में व्यस्त हो गयीं। लेकिन अपने वक़्त की किसी भी अन्य अभिनेत्री के मुक़ाबले उनका नाम हमेशा ही आम लोगों की ज़ुबान पर बना रहा और तेज़-तर्रार, बिंदास और आधुनिक नायिका की छवि ने दर्शकों के बीच उन्हें आकर्षण का केंद्र बनाए रखा। 

साल 1951 में अमेरिका की मशहूर पत्रिकालाईफ़में छपी तस्वीरों ने उनकी लोकप्रियता को देश की सीमाओं से बाहर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया। 1950 से 1953 तक चले कोरिया के युद्ध में लड़ रहे अमेरिकी सैनिक तो उनके ऐसे दीवाने हुए कि उनकी वो तस्वीरें हरेक फ़ौजी बैरक की दीवार पर टंगी नज़र आने लगीं। नतीजतन उन्हें पहली भारतीय पिनअप गर्ल कहलाने का रूतबा हासिल हुआ। क़रीब 5 दशकों गुमनामी भरी ज़िंदगी जीने के बाद 30 अप्रैल 2005 को बेगमपारा जुहू स्कीम के भाईदास हॉल में एक बार फिर से लोगों के बीच आयीं। अवसर था, दादासाहब फाल्के की 136वीं जयंती पर आयोजित समारोह जिसमें मुंबई की जानी-मानीदादासाहब फाल्के एकेडमीद्वारा सिनेमा में योगदान के लिए उन्हेंलाईफ़टाईम अचीवमेण्ट अवॉर्डसे सम्मानित किया था। दो साल बाद वो साल 2007 में बनी संजय लीला भंसाली की फ़िल्मसांवरियामें नज़र आयीं लेकिन ये उनके करियर की आख़िरी फ़िल्म साबित हुई।    

बेगमपारा ने अभिनय-करियर की शुरूआत साल 1944 में बनी फ़िल्मचांदसे की थी। पुणे कीप्रभात पिक्चर्सके बैनर में बनी इस फ़िल्म को इसलिए भी जाना जाता है कि भारतीय सिनेमा की पहली संगीतकार जोड़ीहुस्नलाल भगतरामकी भी ये पहली फ़िल्म थी। डी.डी.कश्यप द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म में बेगमपारा के नायक थे प्रेम अदीब और इस फ़िल्म में मशहूर कथक नृत्यांगना सितारा देवी ने भी एक अहम किरदार निभाया था। दादासाहब फाल्के एकेडमी अवॉर्ड समारोह से एक दिन पहले, 29 अप्रैल 2005 की शाम अंधेरी (पश्चिम) के यारी रोड स्थित उनके घर पर हमारी मुलाक़ात हुई थी। हंसना-हंसाना, बात-बात पर ठहाके लगाना उनकी शख़्सियत का एक अटूट हिस्सा था। 

उस मुलाक़ात के दौरान बेगमपारा ने बताया था, ‘जालंधर के मूल निवासी मेरे अब्बा मियां एहसान-उल-हक़ न्यायाधीश थे और अविभाजित भारत की विभिन्न रियासतों में उनकी नियुक्ति होती रहती थी। नौकरी के आख़िरी दिनों में वो राजस्थान में मुख्य न्यायाधीश के पद पर थे। मेरा जन्म साल 25 दिसम्बर 1926 को झेलम में हुआ था। हर 4-5 साल में होने वाले अब्बा के ट्रांसफ़र की वजह से मेरी पढ़ाई में रूकावट आए इसलिए थोड़ी बड़ी हुई तो मुझे अलीगढ़ में हॉस्टल में दाख़िला दिला दिया गया था, जहां रहकर मैंने अपनी बारहवीं तक की पढ़ाई पूरी की थी।

बेगमपारा के मुताबिक़ उनके घर का माहौल बेहद खुला हुआ था। यही वजह थी कि कोलकाता में बाटा कंपनी में नौकरी कर रहे उनके भाई के, बांग्ला फ़िल्मों की अभिनेत्री प्रोतिमा दासगुप्ता के साथ प्रेमविवाह को लेकर घर में किसी भी तरह का विरोध नहीं हुआ। विवाह के बाद उनके भाई-भाभी मुंबई चले आए जहां प्रोतिमा दासगुप्ता ने कारदार की फ़िल्मनमस्ते(1943) में नायिका की भूमिका की। बेगमपारा भाई-भाभी के पास छुट्टियां बिताने आयीं तो उनका भी फ़िल्मी हलक़ों में मिलना-जुलना शुरू हो गया। यही वो वक़्त था जबप्रभात पिक्चर्समें पार्टनर बाबूराव पै ने बेगमपारा के सामने फ़िल्मचांदमें नायिका की भूमिका का प्रस्ताव रखा था।

अगले 15 सालों बेगमपारा नेचांद(1944) समेतछमिया(1945),शालीमार’, ‘सोहनी महिवाल(दोनों 1946),ज़ंजीर’, ‘मेहंदी’, ‘नीलकमल’, दुनिया एक सराय (सभी 1947),झरना’, ‘शहनाज़’, ‘सुहागरात’, ‘सुहागी(सभी 1948),दादा(1949),मेहरबानी’, ‘पगले(दोनों 1950), ‘उस्ताद पेड्रो(1951),नजरिया(1952),दारा’, ‘लैला मजनूं’, ‘नया घर(सभी 1953),जलवा’, ‘लुटेरा’, ‘सौ का नोट’, ‘शहज़ादा’, ‘सितारा(सभी 1955),कर भला’, ‘क़िस्मत का खेल(दोनों 1956) औरआदमी(1957) जैसी कुल 28 फ़िल्मों में नायिका समेत अहम भूमिकाएं निभाईं।

फ़िल्मछमिया’, ‘झरनाऔरपगलेका निर्माण और निर्देशन बेगमपारा की भाभी प्रोतिमा दासगुप्ता ने किया था और बेगमपारा इन तीनों ही फ़िल्मों की सह-निर्मात्री थीं। निर्माता-निर्देशक केदार शर्मा की फ़िल्मनीलकमलसे संगीतकार स्नेहल भाटकर ने बतौर स्वतंत्र संगीतकार और राजकपूर और मधुबाला ने बतौर नायक-नायिका अपना करियर शुरू किया था तोशहनाज़की संगीतकार उस दौर की मशहूर गायिका अमीरबाई कर्नाटकी थीं।

दलसुख पंचोली की फ़िल्मलुटेरा’, दादा भगवान कीकर भलाऔर कुमार आनंद की फ़िल्मआदमीमें बेगमपारा के नायक उस ज़माने के स्टार अभिनेता और दिलीप कुमार के छोटे भाई नासिर ख़ान थे, जिनसे साल 1958 में बेगमपारा ने विवाह कर लिया। बेगमपारा के मुताबिक़, ‘विवाह के बाद भी फ़िल्मों के इक्का-दुक्का प्रस्ताव आए लेकिन मैंने घर सम्भालना ही बेहतर समझा।आदमीमेरी आख़िरी फ़िल्म थी जिसके बाद मैंने अभिनय से सन्यास ले लिया।

साल 1974 में नासिर ख़ान के निर्देशन में बेगमपारा ने संजय ख़ान, सायरा बानो और डैनी को लेकर फ़िल्मज़िदका निर्माण शुरू किया। फ़िल्म 6 रील बन चुकी थी जिसके अगले शेड्यूल की लोकेशन देखने के लिए नासिर ख़ान और बेगमपारा डलहौज़ी गए हुए थे। वापसी में अमृतसर के एक होटल में दिल का दौरा पड़ने से नासिर ख़ान का देहांत हो गया। बेगमपारा के मुताबिक़, ‘बच्चे छोटे थे। मेरे पास जितना पैसा था वो सब मैं फिल्म में लगा चुकी थी जो अधूरी रह गयी। वो दौर मेरी ज़िंदगी का सबसे बुरा दौर था। भाई-बहन समेत कई नज़दीकी रिश्तेदार पाकिस्तान में थे, जिनके बुलावे पर मैं बच्चों को साथ लेकर पाकिस्तान चली गयी। लेकिन वहां के संकुचित और रूढ़िवादी माहौल में ख़ुद को ढाल पाना मेरे लिए मुमक़िन नहीं था इसलिए कुछ समय बाद मैं वापस भारत चली आयी।

बड़ी बहन ज़रीना समेत बेगमपारा के कई क़रीबी रिश्तेदार भारत में थे। ज़रीना की बेटी रूख़साना सुल्ताना का विवाह अंग्रेज़ी के मशहूर लेखक ख़ुशवंत सिंह के छोटे भाई शिवेन्द्र सिंह से हुआ। ये वोही रूख़साना सुल्ताना हैं जो आपातकाल के दौरान संजय गांधी के साथ अपनी नज़दीकियों की वजह से चर्चा में आयी थीं। अभिनेत्री अमृता सिंह इन्हीं रूख़साना सुल्ताना की बेटी हैं। उधर बेगमपारा की बेटी आज एक सफल व्यवसायी हैं। बेगमपारा के बड़े बेटे नादिरख़ान का कम उम्र में ही देहांत हो गया था और छोटे बेटे अयूब ख़ान टेलीविज़न के एक जाने-माने अभिनेता हैं।

क़रीब 50 सालों तक कैमरे से दूर रहने के बाद बेगमपारा साल 2007 में एक बार फिर से संजय लीला भंसाली की फ़िल्मसांवरियामें दादी की भूमिका में नज़र आयीं। लेकिन ये उनकी आख़िरी फ़िल्म साबित हुई।

बेगमपारा का देहांत 10 दिसंबर 2008 को 82 साल की उम्र में मुंबई में हुआ।  


We are thankful to –

Mr. Harish Raghuvanshi, Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ & Mr. Biren Kothari for their valuable suggestion, guidance, and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Ms. Akhsher Apoorva for editing the English translation of the write up.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.


Actress Begampara on YT Channel BHD

Aye Chaand Bata Mujhko Kya Isee Ka Naam Hai Pyar” – Begumpara

                                                          ..........Shishir Krishna Sharma

The history of Hindi Cinema boasts of many talented actresses like Vanmala, Mehtab, Kaushalya, Snehaprabha Pradhan,  Leela Desai, Paro, Munawwar Sultana, Kamini Kaushal, Bina Rai and Smriti Biswas who won the hearts of millions with their beauty and talent at every opportunity, yet, their career trajectories could not take them to the heights of success they deserved.  Among these was Begumpara who acted in 27 films during a career span of 15 years and then suddenly left behind all the glamour-glitters, name and fame and she married and completely devoted herself to her household. But when compared with all her contemporary actresses, Begumpara’s name always remained afresh in the memories of the common people and the image of a fast paced, vivacious and modern actress always made her the center of attraction. 

Her sensational pictures which were published in 1951 in America’s renowned ‘Life’ magazine took her fame to the far side of the boundaries of the country and made her internationally famous. The American soldiers engaged in the Korean war during 1950 to 1953 became so enamored with Begumpara that her ‘Life’ magazine pictures immediately found a place on the walls of the soldier’s barracks thus awarding her the status of ‘India’s First Pin Up Girl’. After spending 5 decades in anonymousness, Begumpara once again made a public appearance at Juhu Scheme’s Bhaidas Hall on 30th April 2005 and the occasion was the ‘Dadasaheb Phalke’s 136th jubilee year function’ organized by Mumbai’s well known organization ‘Dadasaheb Phalke Academy’ where she was honored with the ‘Life Time Achievement Award’ for her valuable services to Hindi Cinema. 2 years later she was seen on screen in Sanjay Leela Bhansali’s film ‘Saawariya’ which proved to be the last film of her acting career. 

Begumpara started her acting career with the 1944 release ‘Chaand’ which was produced under the banner of Pune based ‘Prabhat Pictures’. ‘Chaand’ is also known as the debut movie of the ‘first music director duo’ of the whole Indian Cinema ‘Husnlal Bhagatram’. This movie was directed by D.D.Kashyap where Begumpara’s hero was Prem Adeeb. Renowned Kathak dancer Sitara Devi also played as important role in this film. The day before the ‘Dadasaheb Phalke Academy Award function’ i.e. on 29th April 2005 I met Begumpara at her residence at Yari Road (Andher-West). I was much impressed with her jovial nature, her constant cracking of jokes, her laughter, all which were  an unceasing part of her pleasing personality. Begumpara said, ‘my father ‘Miyan Ehsaan-Ul-Haq’ who was originally from Jalandhar was a Judge who used to get posted in various princely states of the undivided India. He retired from the post of Chief Justice from Rajasthan. I was born on 25th December 1926 in Jhelam. I was admitted to a hostel in Aligarh so that I could continue my studies without any obstructions due to my father being posted elsewhere every 4-5 years and there I completed my schooling till class 12th’.

According to Begumpara it was a very open and modern environment at her home. This was the reason that when her brother, who worked with ‘Bata Company’ at Kolkata, expressed his desire to marry the Bangla actress Protima Dasgupta, there was not a single voice of opposition at home. The newlywed couple shifted to Mumbai immediately after marriage where Protima Dasgupta played the main lead in Kardar’s film ‘Namaste’ (1943). When Begumpara came to Mumbai to spend her school vacation with her brother and sister in law, she also came in contact with a few people from film fraternity. That’s when she was offered the main role in ‘Chaand’ by Baburao Pai who was one of the partners of ‘Prabhat Pictures’.

During the next 15 years, including Chaand (1944), Begumpara played different characters including the main lead in total 27 movies viz. ‘Chhamia’ (1945), ‘Shalimar’, ‘Sohni Mahiwal’ (both 1946), ‘Zanjeer’, ‘Mehndi’, ‘Neelkamal’, ‘Duniya Ek Saraay’ (all 1947), ‘Jharna’, ‘Shehnaz’, ‘Suhaagraat’, ‘Suhaagi’ (all 1948), ‘Dada’, (1949), ‘Meharbani’, ‘Pagle’ (both 1950), ‘Ustad Padro’ (1951), ‘Nazariya’ (1952), ‘Dara’, ‘Laila Majnu’, ‘Naya Ghar’ (all 1953), ‘Jalwa’, ‘Lutera’, ‘Sau ka Note’, ‘Shehzada’, ‘Sitara’ (all 1955), ‘Kar Bhala’, ‘Qismat ka Khel’ (both 1956) and ‘Aadmi’ (1957).

‘Chhamia’, ‘Jharna’ and ‘Pagle’ were produced and directed by her sister in law Protima Dasgupta. Begumpara was the co-producer of all 3 films. Producer-director Kedar Sharma’s ‘Neelkamal’ was Snehal Bhatkar’s debut movie as an independent composer whereas Raj Kapoor and Madhubala also started their respective careers as Hero and Heroine with the same movie. Music for the movie ‘Shehnaz’ was composed by the then well-known playback singer Amir Bai Karnatki. 

Begumpara’s hero in Dalsukh M.Pancholi’s ‘Lutera’, Dada Bhagwan’s ‘Kar Bhala’ and Kumar Anand’s ‘Aadmi’ was the then star actor and Dilip Kumar’s younger brother Nasir Khan who she married in the year 1958. Begampara said, ‘I got few good offers even after my marriage but I preferred to look after the household. Thus ‘Aadmi’ proved to be my last film.’

In the year 1974 Begumpara initiated the production of a film titled ‘Zid’ with Sanjay Khan, Saira Bano and Danny in the main roles. Nasir Khan was the director of the film. After filming 6 reels Begumpara and Nasir Khan went to Dalhousie for a location hunt for the next schedule. On the way back, Nasir Khan suffered a massive heart attack during their stay at a hotel in Amritsar and passed away. Begumpara said, ‘the kids were young, I had already spent all my money on the film and that was the worst period of my life. Some of my close relatives including my sister and brother were in Pakistan so, on their persuasion, I shifted to Pakistan. But I found it impossible to adjust with the narrow and conservative society in Pakistan thus I soon returned to India’.

Many of Begumpara’s close relatives including her elder sister Zarina were still in India. Zarina’s daughter Rukhsana Sultana was married to renowned writer Khushwant Singh’s younger brother Shivendra Singh. This was the same Rukhsana Sultana who came into limelight during the emergency due to her closeness with Sanjay Gandhi. She is the mother of actress Amrita Singh. Begumpara’s daughter is a successful entrepreneur today. Her elder son Nadir Khan died very young and younger son Ayub Khan is a well known T.V. actor. 

After keeping herself away from the camera for 50 years, Begumpara once again shone on the silver screen in the role of grandmother in Sanjay Leela Bhansali’s ‘Saanwaria’ which released in 2007.  But this proved to be her last film.

Begumpara died at the age of 82 in Mumbai on 10th December 2008.

6 comments:

  1. शुक्रिया इस लेख के लिए और 'बीते हुए दिन' टीम को शुभकामनाएं इस प्रयास को शुरू करने और आगे भी जारी रखने के लिए !

    ReplyDelete
  2. धन्यवाद अरूणजी और विकास !!! आप सभी का सतत सहयोग इसी प्रकार से अपेक्षित है !!!
    आभार !!!

    ReplyDelete
  3. aaj phir se vapas aaya dost shshir ji ke pass
    agle kisee ank main lena chahenge

    ReplyDelete
  4. She also acted in "Duniya ek Sarai" of Ranjit films in 1947 opposite Gajanan Jagirdar and Meena Kumari

    ReplyDelete
  5. @suhail kazim : shukriya janaab...have to include not only begum para's 'duniya ek sarai' but also 'bachelor husband' (1950) in the write-up on vanmala and 7 silent films in 'ranjit studio'...but the job is very tough and needs too much time as the complete page is to be made/arranged afresh thus the delay...still, it's a must n shall try to do it soon, thnx !!!

    ReplyDelete