Tuesday, March 31, 2020

“Hansta Hua Nooraani Chehra” – Jeevankala

हंसता हुआ नूरानी चेहरा” – जीवनकला

                     ..............शिशिर कृष्ण शर्मा

1950 और 60 के दशक के हिंदी सिनेमा को कर्णप्रिय गीत-संगीत और मनमोहक नृत्यों के लिए जाना जाता है| और जब भी बात होती है उस दशक की नृत्यांगनाओं की तो हेलन, कुमकुम, शीला वाज़, मधुमती, बेला बोस और हीरा सावंत जैसे नाम ज़हन में उभरते हैं| ऐसा ही एक नाम है जीवनकला का, जिन्होंने महज़ दस साल के करियर में एक से बढ़कर एक हिट गीतों पर नृत्य किया, कुछ फ़िल्मों में अभिनय भी किया और फिर शादी करके फ़िल्मों को अलविदा कह दिया

जीवनकला जी का नाम बहुत सुना हुआ सा था| इंटरनेट पर आई.एम.डी.बी. समेत कुछ साईटों पर उनके बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी भी मौजूद थी, हालांकि अब तक के रिकॉर्ड को देखते हुए ऐसी किसी भी साईट पर आंख बंद करके भरोसा नहीं किया जा सकता था| उधरबीते हुए दिनके पाठक भी अक्सर ईमेल और मैसेज के ज़रिये जीवनकला जी के बारे में सवाल करते रहते थे| ऐसे में स्वाभाविक तौर पर जीवनकला जी से मिलने औरबीते हुए दिनके लिए उनका इंटरव्यू करने की मेरी इच्छा ज़ोर पकड़ने लगी थी| लेकिन सवाल ये था कि उनसे संपर्क कैसे करूं? तो उनका नाम-पता फ़िल्म डायरेक्टरी में था और हीसिने एंड टी.वी. आर्टिस्ट एसोसिएशन’ (सिंटा) के रिकॉर्ड में| सिनेमा से जुड़े उस दौर के लोगों से पूछने का भी कोई लाभ नहीं हुआ| इसी ज़द्दोज़हद में समय गुज़रता चला गया| फिर एक रोज़बीते हुए दिनके लिए नृत्यांगना हीरा सावंत से मुलाक़ात हुई तो बातचीत के दौरान अचानक ही उन्होंने पूछा, ‘जीवनकला का इंटरव्यू किया?’ और फिर उन्हीं से मुझे जीवनकला जी के बेटे का मोबाइल नंबर भी मिल गया|

जीवनकला जी से मेरी मुलाक़ात दिसंबर 2018 के पहले हफ़्ते में वर्ली स्थित उनके घर पर हुई| और ये कहने में मुझे कोई संकोच नहीं कि जीवनकला जी जैसे बहुत कम कलाकार मुझे मिले जिन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के पूरी ईमानदारी से अपनी बात खुलकर कही, कुछ छिपाया और कुछ छिपाने का आग्रह किया| वरना इसी फ़िल्मी दुनिया में मेरा सामना ऐसे लोगों से भी हो चुका है जिनका इंटरव्यू प्रकाशित हुआ तो उन्होंने अपनी ही कही बातों को लेकरऐसा क्यों लिखा?...वैसा क्यों लिखा?’ जैसे सवालों की बौछार कर दी| ऐसे में तंग आकर मुझे ब्लॉग से उनका इंटरव्यू हटा देना पड़ा

जीवनकला जी को अभिनय और नृत्य विरासत में मिला था| उनके पिता दत्तू उर्फ़ दत्तात्रेय काम्बले पूना के और मां गंगूबाई कोल्हापुर की रहने वाली थीं| वो दोनों साइलेंट के ज़माने के कलाकार थे और पूना स्थित फ़िल्म कंपनीयूनाइटेड पिक्चर्स सिंडिकेटमें बतौर कलाकार नौकरी करते थे|  उन्होंने इस कंपनी कीधा चा मायानि  मर्डर ऑफ़ नारायणराव पेशवा(1926), ‘ताई तेलीन (1926), ‘पापाज़ वाइफ़(1927), ‘द्रौपदी वस्त्रहरणयानिरॉयल गैम्बलर(1928), ‘रक्त चा सूदयानिब्लड फॉर ब्लड(1929), ‘सीता स्वयंवर(1929), ‘खूनी ताज(1930), ‘बर्थ ऑफ़ शिवाजी(1931) जैसी कई हिट साइलेंट फिल्मों में काम किया था| इनमें से ज्यादातर फ़िल्मों का निर्देशन उस दौर के मशहूर फ़िल्मकार एन.डी.सरपोतदार द्वारा किया गया था| टॉकीज़ बननी शुरू हुईं तो वो दोनों मराठी फ़िल्मों में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए|

जीवनकला जी का जन्म 29 जून 1944 को पूना के दिवाकरवाड़ा में हुआ था| वो बताती हैं, “उस ज़माने में मंगेशकर परिवार भी दिवाकरवाड़ा में, हमारी ही बिल्डिंग में रहता था और हमारे घनिष्ठ पारिवारिक रिश्ते थे| लता मेरी मां को मौसी कहती थीं| जब मेरा जन्म हुआ तो लता क़रीब 14 साल की थीं| मेरा ये नाम उन्होंने ही मेरी मां से ये कहते हुए रखा था कि मौसी ये आपके जीवन की कला है|”

माता-पिता की इकलौती संतान जीवनकला जी ने छठवीं तक की पढ़ाई पेशवाओं के स्कूलहुज़ूरबाग़से की| 6 साल की उम्र से उन्होंने बालासाहब गोखले गुरूजी से कत्थक सीखना शुरू किया था| वो बताती हैं, “दिवाकरवाड़ा में हम लोग लक्ष्मी रोड पर रहते थे| मैं घर पर कत्थक का रियाज़ करती थी तो घुंघरूओं की आवाज़ अक्सर सड़क से गुज़र रहे लोगों का ध्यान आकर्षत करती थी| एक रोज़ इन्हीं आवाज़ों को सुनकर मराठी फ़िल्मों के निर्माता-निर्देशक दत्ता धर्माधिकारी हमारे घर आए और मुझे फ़िल्मअखेर जम्लेकी एक बाल-भूमिका में लेने की इच्छा ज़ाहिर की| इस तरह 6 साल की उम्र में मैंने पहली बार कैमरे का सामना किया| उस फ़िल्म में मैंने हीरो की छोटी बहन का रोल और साथ ही नृत्य भी किया था| उन्हीं दिनों मराठी फ़िल्मतीन मुल:’ में मैंने फ़िल्म की नायिका रंजना की बेटी का रोल किया| पूना के सार्वजनिक गणपति के कार्यक्रमों में भी मैं बचपन से ही नृत्य करती थीहमारा ग्रुपजीवनकला एंड डांसिंग पार्टीके नाम से मशहूर था|”

जीवनकला जी के अनुसार लता फ़िल्मों में व्यस्त हुईं तो मंगेशकर परिवार को पूना छोड़कर मुम्बई आना पड़ा| उनका अपना एक ऑर्केस्ट्रा था जिसमें सभी भाई-बहन मिलकर गाते थे| संगीतकार लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल जो उस समय छोटे थे, उनके ऑर्केस्ट्रा में वाद्य बजाते थे| ऑर्केस्ट्रा के शोज़ पूरे महाराष्ट्र में होते थे| जीवनकला जी उन शोज़ में नृत्य करती थीं और इसके लिए पूना से अक्सर मुम्बई आती थीं|

गोखले गुरूजी की शागिर्दी में जीवनकला जी ने क़रीब 5 साल तक कत्थक सीखा| मशहूर अभिनेत्री जयश्री गडकर भी इन्हीं गोखले गुरूजी की शिष्या थीं| 1956 में जीवनकला जी का परिवार मुम्बई चला आया| वो बताती हैं, “मुम्बई में हम लोग दादर स्थित कोहिनूर सिनेमा के सामनेमुकुंद मेंशनबिल्डिंग में रहने लगे| मुझे दादर के प्लाज़ा सिनेमा के सामनेराममोहन नाईट स्कूलमें सातवीं में दाखिला दिला दिया गया| 1960 में इस स्कूल से मैंने ग्यारहवीं पास की|”

जीवनकला जी ने हिन्दी फ़िल्मों में, 1959 की सुपरहिट फ़िल्मगूंज उठी शहनाईसे कदम रखा था| वो बताती हैं, “मैं अपनी मां के साथ अंधेरी स्थितप्रकाश स्टूडियोमें प्रोड्यूसर-डायरेक्टर विजय भट्ट से मिलने गयी| उन्हेंगूंज उठी शहनाईके लिए एक सोलो डांसर के ज़रुरत थी| फ़िल्म के संगीतकार वसंत देसाई और नृत्य निर्देशक प्रेम धवन की मौजूदगी में मेरा इंटरव्यू हुआ, डांसिंग स्टेप्स देखे गए| उन दोनों ने विजय भट्ट से मेरे नाम की सिफ़ारिश की और मुझे इस फ़िल्म के सुपरहिट गीतअंखियां भूल गयी हैं सोना, दिल पे हुआ है जादू टोनापर नृत्य करने का मौक़ा मिला|”

1959 में ही जीवनकला जी ने के.अमरनाथ प्रोडक्शंस की फ़िल्मकल हमारा हैमें एक सोलोऐसे देखो रसिया जिया जाएऔर सुपरहिट डुएटजाओ रसिया हटो जाओ रसियापर नृत्य किया| ‘जाओ रसिया...’ आज भी अक्सर रेडियो पर बजता है| चित्रगुप्त द्वारा संगीतबद्ध और लता और उषा मंगेशकर के गाये इस डुएट में जीवनकला जी की सहनर्तकी अपने दौर की जानीमानी अभिनेत्री शीला कश्मीरी थीं|

(शीला ने 1950 और 60 के दशक में बनीबग़दाद का जादू, ‘कठपुतली, ‘लाजवंती, ‘ब्लैक कैट, ‘तीर और तलवार,  नयी मां, ‘अंगुलीमाल, ‘किंगकांगऔरशिकारीजैसी क़रीब 30 फ़िल्मों में काम करने के बाद मुम्बई के मशहूर व्यवसायीनडियाडवालापरिवार के गफ्फ़ारभाई नडियाडवाला से शादी कर ली थी| ‘आवारा पागल दीवाना, ‘फिर हेराफेरीऔरवेलकमजैसी फ़िल्मों के प्रोड्यूसर फ़ीरोज़ नडियाडवाला इन्हीं शीला कश्मीरी उर्फ़ मुनीरा नडियाडवाला के बेटे हैं|)

जीवनकला जी को साल 1962 में बनी सुपरहिट तमिल फ़िल्मकोंजुम सलंगई’ (मनमोहक पायल) में भी नृत्य करने का मौक़ा मिला था| वो कहती हैं, “अख़बार में विज्ञापन देखा कि तमिल फ़िल्म के लिये क्लासिकल डांसर चाहिए, तो मैं मां के साथ दिए गए पते पर दादर के रूपतारा स्टूडियो पहुंची और मुझे साईन कर लिया गया| उस वक़्त मेरी उम्र 18 साल थी| मद्रास के मशहूर प्रोड्यूसर-डायरेक्टर एम.वी.रामन कीकोंजुम सलंगईभरतनाट्यम पर बनी पहली फ़िल्म थी| इस फिल्म में मैंने किसी गाने पर नहीं बल्कि सिर्फ़ तोड़ों पर कत्थक किया था और इस फ़िल्म को मैं अपनी उपलब्धि मानती हूं|”

साल 1961 में रिलीज़ हुई फिल्मकिस्मत पलट के देखसे जीवनकला जी ने अभिनय की शुरूआत की| इस फ़िल्म में वो सहनायिका थीं, नायक-नायिका अनूप कुमार और प्रीतिबाला थे| शुरूआत में इस फ़िल्म का नामज़रा पलट के देखरखा गया था| उसी साल बनीज़िंदगी और ख़्वाबमें उन्होंने आगा के साथ कॉमेडी की| 1964 में बनी फैंटेसी फ़िल्मचार दरवेशमें उनका बेहद अहम रोल था| 1965 कीहिमालय की गोद मेंवो माला सिन्हा की सहेली बनीं तो 1968 कीसरस्वतीचन्द्रमें रमेशदेव के साथ मिलकर खलनायिका की भूमिका की|

जीवनकला जी ने अभिनय के अलावा क़रीब 70 फिल्मों में इतने ही गीतों पर नृत्य किया| इनमें 1963 की फ़िल्मपारसमणिके सुपरहिट गीतहंसता हुआ नूरानी चेहराके अलावादिल का फ़साना कोई जाना(उमरक़ैद/1962), ‘बड़ा क़ातिल है मेरा यार’ (चाइना टाउन/1962), ‘बांके पिया कहो हां दगाबाज़ हो’ (बर्मा रोड/1962), ‘चांदी का बदन सोने की नज़र’ (ताज महल/1963), ‘उठेगी तुम्हारी नज़र धीरे धीरे’ (एक राज़/1963), ‘तू रात खड़ी थी छत पे’ (हिमालय की गोद में/1965),  ‘प्रीत बसी है मेरी नस नस में’ (नीला आकाश/1965), ‘हे नैनवा फेर फेर के चलो’ (पिकनिक/1966), ‘ख़ुदा हुज़ूर को मेरी भी ज़िंदगी दे दे’ (सावन की घटा/1966) औरकिसी का अगर दिल तुमको लूटना हो’ (थीफ़ ऑफ़ बग़दाद/1968) जैसे हिट गीत शामिल हैं|

साल 1965 में जीवनकला जी की मां गुजरीं| उस वक़्त जीवनकला जी की उम्र महज़ 21 साल थी| वो कहती हैं, “अभिनेत्री सुलोचना जी से हमारे पारिवारिक रिश्ते थे| मां के गुजरने के बाद एक रोज़ पिताजी ने सुलोचना जी से कहा, ‘दीदी मेरी एक ही लड़की है, मेरे बाद इसका क्या होगा? आप इसकी शादी करवा दो|’ सुलोचना जी ने तुरंत मराठी फ़िल्मों के पटकथा और संवाद लेखक राम केलकर का नाम सुझाया जिन्हें वो अपना बेटा मानती थीं| सुलोचना जी ने ही रिश्ते की बात आगे बढ़ाई और 1969 में हमारी शादी हो गयी|”

मुम्बई के गिरगांव इलाक़े में जन्मे राम केलकर के पिता का सी.एस.टी. स्टेशन के सामनेकेलकर विश्रांति गृहनाम का रेस्टोरेंट था| वो माता-पिता के इकलौते बेटे थे| उनकी एक बहन थी जिसकी शादी हो चुकी थी| राम केलकर चाहते थे कि जीवनकला जी एक आदर्श गृहिणी बनकर घर संभालें| पति की इच्छा को देखते हुए जीवनकला जी ने शादी के बाद फ़िल्मों को अलविदा कह दिया| ‘सरस्वतीचंद्रउनकी आख़िरी फिल्म थी

(सुलोचना जी की अपनी एक ही बेटी कंचन हैं| कंचन के पति डॉ. (स्वर्गीय) काशीनाथ घाणेकर एक डेंटल सर्जन और मराठी नाटकों के स्टार अभिनेता थे| उन्होंने कुछ मराठी फ़िल्मों के अलावा हिन्दी फिल्मदादी मां(1966) औरअभिलाषा(1968) में भी प्रमुख भूमिकाएं की थीं| ‘दादी मांका सुपरहिट गीतजाता हूं मैं मुझे अब ना बुलाना...’ काशीनाथ पर ही फ़िल्माया गया था| उनका निधन 1986 में 56 साल की उम्र में हुआ|)

जीवनकला जी बताती हैं, “राम केलकर जी के लिए शादी बहुत शुभ साबित हुई| शादी के बाद उन्हें हिन्दी फ़िल्मों में बतौर पटकथा लेखक ब्रेक मिला, फ़िल्म थी निर्माता-निर्देशक सोहनलाल कंवर कीबेईमानजो 1972 में रिलीज़ हुई थी| ये फ़िल्म सुपरहिट हुई, राम केलकर जी का नाम हुआ और वो हिन्दी फ़िल्मों में व्यस्त होते चले गए| ‘पिया का घर(1972), ‘आप की कसम(1974), ‘सन्यासी(1975), ‘कालीचरण(1976)विश्वनाथ(1978), ‘आशा(1980), ‘हीरो(1983), ‘आग ही आग(1987), ‘रामलखन(1989), ‘खलनायक(1993) औरश्याम घनश्याम (1998) जैसी हिट फ़िल्में उन्होंने ही लिखी थीं| सोहनलाल कंवर और सुभाष घई के वो पसंदीदा लेखक थे| उनका निधन 73 साल की उम्र में साल 2002 में हुआ|”

जीवनकला जी अपने बेटों योगेश और हेमंत और बेटी मनीषा के साथ वर्ली के एनी बेसेंट रोड पर रहती हैं| हेमंत फ़िल्म एडिटर, राईटर और डायरेक्टर हैं जो सुभाष घई की कई फ़िल्मों में उनके असिस्टेंट रहेसाल 2008 में उन्होंने मराठी फ़िल्मभोला शंकरबनाई थी| बेटी मनीषा अभिनेत्री हैं जो कई मराठी फ़िल्मों के अलावा  ‘लाटरी(2008) औरबन्दूक(2013) और जनवरी 2019 में रिलीज़ हुईझोलजैसी हिन्दी फ़िल्में भी कर चुकी हैं|

जीवनकला जी कहती हैं, “फिल्मों को मैंने 50 साल पहले अलविदा कह दिया था| उसके बाद मैं घर-गृहस्थी में व्यस्त हो गयी| लेकिन मैंने नृत्य से रिश्ता कभी नहीं तोड़ा| आज भी मैं अपनी डांस क्लासेज़ में व्यस्त रहती हूं जहां बहुत से छात्र कत्थक और लोकनृत्य सीखने आते हैं| इनमें कई विदेशी छात्र भी शामिल हैं| नृत्य मुझे आज भी असीम संतोष और ऊर्जा प्रदान करता है|”

We are thankful to

Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Ms. Aksher Apoorva, Mr. Gajendra Khanna & Ms. Maitri Manthan for the English translation of the write ups.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing



Hansta Hua Nooraani Chehra” – Jeevankala

                       ..............Shishir Krishna Sharma

Hindi cinema of the 1950s and 1960s is known for its melodious music and mesmerising dances. When one talks of the dancers of the period, the names of dancers like Helen, Kumkum, Sheela Vaz, Madhumati, Bela Bose and Heera Sawant come to mind. Another such name is that of Jeevankala who over nearly a decade danced to multiple hit songs, acted in a few films and bid adieu to films after her marriage.

Jeevankala ji’s name was familiar to me. On the internet, many sites like IMDB had some information on her, though as per my experience, one cannot blindly believe their information. Meanwhile, the readers of Beete Hue Din used to often inquire about her via e-mails and messages. In view of that, I became naturally inclined towards meeting her and interviewing her for Beete Hue Din. But the only hitch was, how to contact her? Her name or address was not mentioned in the film directory, nor was it in the records of ‘Cine & TV Artist Association’ (CINTAA). Inquiries with other film folk of the period also didn’t yield any results. A lot of time passed in the process. Then one day when I was interviewing dancer Heera Sawant, she suddenly asked me, “Did you interview Jeevankala?”. She then gave me Jeevankala ji’s son’s mobile number.

I met Jeevankala ji during the first week of December 2018 at her home in Worli. I must mention here that there are very few artists like Jeevankala ji who not only openly discussed everything with full honesty without hiding anything but also didn’t ask me to hide anything. This is in sharp contrast to some other personalities who after publishing of their interviews, bombarded me with questions like, ‘Why did you write this’, ‘Why did you write like that’ etc. I was forced to take down their interviews as a result after getting fed up.  

Jeevankala ji had inherited acting and dance as her heritage. Her father Dattu alias Dattatreya Kamble belonged to Pune while her mother Gangubai belonged to Kolhapur. Both were artists of the Silent Era and worked at the Pune based film company called ‘United Pictures Syndicate’. They worked in the company’s many hit movies like ‘Dhaa Chaa Maa’ alias ‘Murder of Narayanrao Peshwa’ (1926), ‘Tai Teleen’ (1926), ‘Papa’s Wife’ (1927), ‘Draupadi Vastraharan’ alias ‘Royal Gambler’ (1928), ‘Rakt Cha Sood’ alias ‘Blood for Blood’ (1929), ‘Seeta Swayamvar’ (1929), ‘Khooni Taaj’ (1930) and ‘Birth of Shivaji’ (1931).  Most of these films were directed by the ace filmmaker of the time, N D Sarpotdar. Once talkies films started, they both made a name for themselves in Marathi films as well.

Jeevankala ji was born on 29th June 1944 at Pune’s Diwakarwada. She tells us, At that time the Mangeshkar family also stayed in our building in Diwakarwada and we had good familial relations. Lata used to call my mother Mausi (Aunt). When I was born, Lata was nearly 14 years old. It was she, who named me telling my mother, Mausi she is your Jeevankala (Life’s Art).

The only child of her parents, Jeevankala ji studied till class 6 in the peshwas’ school ‘Huzoorbagh’. From the age of 6 years, she started learning Kathak from Balasaheb Gokhle Guruji. She tells us, “We stayed at Diwakarwada’s Laxmi Road. When I used to practice Kathak at home, the sound of my Ghungroos attracted the passersby. One day those sounds brought Marathi film producer-director Datta Dharmadhikari to our house and offered me a child artist role in his film ‘Akher Jamle’. As a result, I faced the camera for the first time at the age of six. In the film I played the role of the hero’s younger sister and danced as well. I also played the role of heroine Ranjana’s daughter in the Marathi film, ‘Teen Mulah’ I used to dance in Pune’s open Ganpati programmes as well. Our group was famous by the name ‘Jeevankala and Dancing Party.”

According to Jeevankala ji, once Lata became busy with film work, the Mangeshkar family had to leave Pune and settle in Mumbai. They had their own orchestra in which all the siblings used to sing. Composers Laxmikant and Pyarelal who were quite young at that time played instruments in that orchestra. The orchestra used to have shows all over Maharashtra. Jeevankala ji used to dance in those shows and would often visit Mumbai from Pune for participating in them.        

Jeevankala ji learnt dance under the tutelage of Gokhle Guruji for nearly five years. Famous Actress Jaishree Gadkar was also his pupil. In 1956, Jeevankala ji’s family also shifted to Mumbai. She tells us,In Mumbai, we stayed in the ‘Mukund Mansion’ building which was opposite Dadar’s Kohinoor Cinema. I took admission in class 7 in the ‘Rammohan Night School’ which was opposite Dadar’s Plaza Cinema. I completed my 11th in 1960.

Jeevankala ji made her debut in Hindi films in 1959’s blockbuster ‘Goonj Uthi Shehnai’. She recalls,I went to Andheri’s ‘Prakash Studio’ to meet Producer-Director Vijay Bhatt with my mother. They needed a solo dancer for ‘Goonj Uthi Shehnai’. I was interviewed in the presence of the film’s composer Vasant Desai and choreographer Prem Dhawan who also saw my dancing steps. They both recommended my name to Vijay Bhatt and thus, I got an opportunity to dance in the film’s superhit song ‘Ankhiyaan Bhool Gayi Hain Sona, Dil Pe Hua Hai Jaadoo Tona’.”

In 1959, she danced in K.Amarnath production’s movie ‘Kal Hamara Hai’’s solo ‘Aise Na Dekho Rasiya Jiya Jaaye’ and superhit duet ‘Jaao Rasiya Hato Jaao Rasiya’. ‘Jaao Rasiya…’ is still often heard on Radio. It was a Chitragupt’s composition sung by Lata and Usha Mangeshkar with her co-dancer being the well known actress of the time, Sheela Kashmiri.

(Sheela acted in nearly 30 movies in the 1950s and 60s like ‘Baghdad Ka Jaadoo’, ‘Kathputli’, ‘Lajwanti’, ‘Black Cat’, ‘Teer Aur Talwaar’, ‘Nai Maa’, ‘Angulimaal’, ‘King Kong’ and ‘Shikari’. After that she got married to Mumbai’s famous industrial family Nadiadwala’s Gaffarbhai Nadiadwala. Producer Feroz Nadiadwala who is known for movies like ‘Awara Pagal Deewana’, ‘Phir Hera Pheri’ and ‘Welcome’ is the son of the same Sheela Kashmiri alias Muneera Nadiadwala.)

Jeevankala ji also got an opportunity to dance in the 1962 superhit Tamil film, ‘Konjum Salangai’ (Mesmerising Anklet). She remembers,We saw an ad in the newspaper that they needed a classical dancer for a Tamil film. I went to meet them with my mother at the address given which was for Dadar’s Rooptara studio and they signed me. I was 18 years old at that time. ‘Konjum Salangai’ was the first movie on Bharatnatyam made by Madras’s famous Producer-Director M V Raman. In this movie I danced to classical music pieces (‘Todey’) and not any songs which I consider an achievement for me.

Jeevankala ji started acting with the 1961 release, ‘Kismat Palat Ke Dekh’. She was the second lead for the movie whose lead roles were played by Anup Kumar and Preetibala. The movie had initially been titled ‘Zara Palat Ke Dekh’. The same year She did comedy with Agha for ‘Zindagi Aur Khwab’. She had an important role in the fantasy movie ‘Chaar Darvesh’ (1964). She played Mala Sinha’s friend in ‘Himalay Ki God Mein’ (1965) while playing the vamp’s role with Ramesh Dev in ‘Saraswati Chandra’ (1968).

Jeevankala ji in addition to acting danced to nearly 70 songs in as many films. These include Parasmani (1963)’s superhit songs like ‘Hansta Hua Noorani Chehra’, ‘Dil Ka Fasana Koi Na Jaana’ (Umar Qaid /1962), ‘Bada Kaatil Hai Mera Yaar’ (China Town/1962), ‘Baanke Piya Kaho Haan Dagabaaz Ho’ (Burma Town/1962), ‘Chaandi Ka Badan Sone Ki Nazar’ (Taj Mahal/1963), ‘Uthegi Tumhari Nazar Dheere Dheere’ (Ek Raaz/1963), ‘Tu Raat Khadi Thi Chhat Pe’ (Himalay Ki God Mein/1965), ‘Preet Basi Hai Meri Nas Nas Mein’ (Neela Akash/1965), ‘Hey Nainwa Na Pher Pher Ke Chalo’ (Picnic/1966), ‘Khuda Huzoor Ko Meri Bhi Zindagi De De’ (Sawan Ki Ghata/1966) and ‘Kisi Ka Agar Dil Tumko Lootna Ho’ (Thief of Baghdad/1968).

Jeevankala ji’s mother passed away in 1965 when she was merely 21 years old. She recalls,We had family terms with actress Sulochana. After my mother passed away, my father told Sulochna ji, ‘Didi, I have just one daughter. Who will take care of her after me. Please arrange for her marriage’. She immediately suggested the name of Marathi screenplay and dialogue writer Ram Kelkar whom she considered like her son. She took the proposal forward and we got married in 1969.”  

Ram Kelkar was born in Mumbai’s Girgam area. His father ran the restaurant ‘Kelkar Vishranti Griha’ opposite the CST station. He was the only son of his parents while his only sister was already married. Ram Kelkar wanted that Jeevankala ji should take care of the home like an ideal homemaker. In view of his wishes, Jeevankala ji stopped acting in films after her marriage. Her last movie was ‘Saraswati Chandra’.

(Sulochana ji had only one daughter named Kanchan. Kanchan’s husband, the Late Dr Kashinath Ghanekar was a dental Surgeon as well as the star actor of Marathi plays. In addition to Marathi films he had also played important roles in Hindi films ‘Dadi Maa’ (1966) and ‘Abhilasha’(1968). Dadi Maa’s superhit song ‘Jaata Hoon Main Mujhe Ab Na Bhulana’ is picturized on Kashinath only. He passed away in 1986 at the age of 56).

Jeevankala ji tells us,Marriage proved very lucky for Ram Kelkar ji. Soon after the marriage he got a break in Hindi films as a screenplay writer with producer-director Sohanlal Kanwar’s ‘Beimaan’ which released in 1972. The film proved to be a superhit which brought him fame and he became very busy with Hindi films. Subsequently he wrote many hit films including ‘Piya Ka Ghar’ (1972), ‘Aap Ki Kasan’ (1974), ‘Sanyasi’ (1975), ‘Kalicharan’ (1976), ‘Vishwanath’ (1978), ‘Asha’ (1980), ‘Hero’ (1983), ‘Aag Hi Aag’ (1987), ‘Ram Lakhan’ (1989), ‘Khalnayak’ (1993) and ‘Shyam Ghanshyam’ (1998). He was the preferred writer of both Sohanlal Kanwar and Subhash Ghai. He passed away in 2002 at the age of 73.

Jeevankala ji stays with her sons Yogesh and Hemant and Daughter Manisha in Worli’s Anne Besant Road. Hemant is a film editor, writer and director who has assisted Subhash Ghai in many films. He made the Marathi film ‘Bhola Shankar’ in 2008. Daughter Manisha is active as an actress in Marathi films and has acted in Hindi films as well including Lottery (2008), ‘Bandook’ (2013) and the January 2019 release ‘Jhol’.

Jeevankala ji summarized her current life like this,I had bid adieu to films nearly 50 years back. After that I got busy with my household duties but did not leave my dancing. I still conduct dance classes where pupils learn Kathak and Folk Dance. Many foreign students also attend my classes. Dance still gives me boundless energy and satisfaction.”