Tuesday, March 19, 2019

“Gudiya Humse Roothi Rahogi" – Baby Farida (Farida Dadi)

गुड़िया हमसे रूठी रहोगी, न हंसोगी” - बेबी फ़रीदा (फ़रीदा दादी)

     .......शिशिर कृष्ण शर्मा


बेबी फ़रीदा! साठ के दशक के बाल-कलाकारों में एक बड़ा नाम, जिन्होंने दस साल के करियर में क़रीब साठ फिल्मों में अभिनय करने के बाद तमाम सिनेमाई चमक दमक से ख़ुद को अलग कर लिया था। वजह थी डॉक्टर बनने का जुनून, जिसके लिये उन्होंने राजकपूर की ‘बॉबी’ और राजश्री की ‘उपहार’ जैसी फिल्मों की मुख्य भूमिकाएं तक ठुकरा दी थीं। कुछ वजहों से फ़रीदा का डॉक्टर बनने का सपना तो पूरा नहीं हो पाया लेकिन बकौल उनके, शादी करके एक बहू, पत्नी और मां के रुप में जिंदगी को उन्होंने भरपूर जिया। और फिर दशकों बाद जब तमाम पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त हुईं तो एक बार फिर से अभिनय के मैदान में उतर पड़ीं| 

फ़रीदा जी से मेरी मुलाक़ात मढ आयलैंड में कलर्स के शो ‘उतरन’ के सेट पर हुई थी, जिसमें वो अंजुम नानी का किरदार कर रही थीं| मेरे ज़हन में ‘संगम’ और ‘दोस्ती’ समेत तमाम फ़िल्मों की उनकी बचपन की इमेज इतनी गहराई तक जड़ें जमाए बैठी थी, कि इंटरव्यू करते वक़्त उनके वर्त्तमान के साथ ख़ुद को जोड़ पाना मेरे लिए बहुत मुश्किल साबित हो रहा था| उनका ये इंटरव्यू मैंने दैनिक ‘राजस्थान पत्रिका’ के लिए किया था| 

फ़रीदा जी का जन्म 8 जून 1952 को मुम्बई के एक रूढ़ीवादी मुस्लिम परिवार में हुआ था| उनके माता-पिता भी मुम्बई में ही जन्मे और पले-बढ़े थे, लेकिन मूलरूप से वो दोनों उत्तरप्रदेश के थे| मां का परिवार लखनऊ से था और पिता का प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) से| 3 भाई और 3 बहनों में फ़रीदा जी तीसरे नंबर पर थीं| फ़रीदा जी बताती हैं, “फिल्मों से हमारे परिवार का दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं था| न ही किसी फिल्म वाले से हमारा कोई परिचय था। फ़िल्मों में काम करने का कभी मन में ख्याल तक नहीं आया था| लेकिन अचानक हालात ऐसे बने कि बिना किसी ख़ास कोशिश के ही फ़िल्मों में मेरी एंट्री हुई, और फिर मैं बतौर बालकलाकार व्यस्त होती चली गयी| दरअसल हम सब बच्चे रोज़ शाम को अंधेरी (पश्चिम) के लल्लूभाई पार्क में खेलने जाते थे। वहां पास ही में उस ज़माने के मशहूर अभिनेता प्रेम अदीब रहते थे| वो रोज़ाना मुझे पार्क में खेलता देखते थे| एक रोज़ वो आकर मेरी मां से मिले और कहने लगे कि ‘फ़िल्मालय’ में बाल-कलाकारों की ज़रुरत है, मां मुझे वहां लेकर जाएं। हम वहां पहुंचे तो ‘फ़िल्मालय’ के मालिक शशधर मुकर्जी से मुलाकात हुई| उन्होंने अगले ही दिन मुझे शूटिंग पर बुला लिया।“

शशधर मुकर्जी ने ‘फिल्मिस्तान’ से अलग होकर साल 1958 में अंधेरी (पश्चिम) के अम्बोली इलाक़े में ‘फ़िल्मालय’  की बुनियाद रखी थी| फ़रीदा जी के अनुसार उन दिनों फ़िल्मालय के बैनर की पहली फिल्म ‘चैरिटी मास्टर’  बन रही थी| उस फिल्म की मुख्य भूमिकाओं में दिलीप कुमार और शांता आप्टे थे, और फ़रीदा जी को उसमें शांता आप्टे की बेटी की भूमिका के लिए चुना गया था। लेकिन कुछ वजहों से फिल्म ‘चैरिटी मास्टर’ बन नहीं पायी। उन्हीं दिनों फ़रीदा जी को गुरुदत्त की फिल्म ‘कागज़ के फूल’ के बालगीत ‘एक दो तीन चार और पांच...उनमें थे झगड़े सौ...’ में काम करने का मौका मिला| 

फ़रीदा जी बताती हैं, “पहली नज़र में तो गुरुदत्त ने मुझे ये कहकर वापस लौटा दिया था, कि गीत की मांग के मुताबिक मैं ग़रीब घर की नहीं लगती। लेकिन फिर उन्होंने अपना इरादा बदल दिया| इस गीत में मेरे साथ बेबी नाज़ भी थीं| नाज़ के पिता के ज़रिये मैं बिमल रॉय तक पहुंचीं, जिन्होंने मुझे फिल्म ‘सुजाता’ की एक महत्वपूर्ण भूमिका के लिये चुन लिया।“ 

‘कागज़ के फूल’ और ‘सुजाता’ दोनों ही फिल्में साल 1959 में रिलीज़ हुई थीं, लेकिन चूंकि ‘सुजाता’ पहले रिलीज़ हुई इसलिये इसे बेबी फ़रीदा की पहली फिल्म माना जाता है। ‘सुजाता’  की सफलता का फ़रीदा जी को बहुत लाभ मिला और उन्हें लगातार फिल्में मिलने लगीं। इनमें महबूब की ‘सन ऑफ़ इण्डिया’, राजकपूर की ‘संगम’, एल.वी.प्रसाद की ‘बेटी बेटे’ और राजश्री की ‘दोस्ती’ के अलावा ‘कल्पना’, ‘उसने कहा था’, ‘छाया’, ‘काबुलीवाला’, ‘मनमौजी’, ‘जानवर’, ‘जब जब फूल खिले’, ‘राम और श्याम’ और ‘रात और दिन’ जैसी हिट फिल्में भी शामिल थीं। 1962 के भारत-चीन युद्घ की पृष्ठभूमि पर बनी बालचित्र समिति की फिल्म ‘दिल्ली की कहानी’ के लिये फ़रीदा जी को डॉ.राजेन्द्र प्रसाद के हाथों राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था जिसे वो अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मानती हैं। फिल्म ‘बेटी बेटे’ के लिये उन्होंने रुसी सरकार का, और ‘जब जब फूल खिले’ के लिये आन्ध्रप्रदेश सरकार का पुरस्कार हासिल किया। ‘राम और श्याम’, ‘तीन बहुरानियां’  और ‘ब्रह्मचारी’  उनके बचपन के दौर की अंतिम प्रदर्शित फिल्में थीं। 

फ़रीदा जी बताती हैं, “डॉक्टरी का पेशा मुझे शुरु से ही अपनी ओर आकर्षित करता था| इसलिये एक समय ऐसा आया जब मैंने सब कुछ भुलाकर अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया। उन दिनों सर पर बस एक ही धुन सवार थी, कि मुझे डॉक्टर बनना है। यही वजह है कि मैंने राजकपूर की फिल्म ‘बॉबी’ और ‘राजश्री प्रोडक्शन्स’ की फिल्म ‘उपहार’ की मुख्य भूमिकाएं ठुकराने में देर नहीं की। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद डॉक्टर बनने का मेरा सपना पूरा नहीं हो पाया।“

उस दौर में फ़रीदा जी की बहन बेबी गुड्डी और भाई मास्टर शाहिद और मास्टर जाविद भी हिन्दी फिल्मों में बतौर बाल-कलाकार अपनी खासी पहचान बना चुके थे। मास्टर शाहिद ने फिल्म ‘लव इन टोकियो’ और बेबी गुड्डी ने फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ समेत कई फिल्मों में महत्वपूर्ण भूमिकायें निभायी थीं| बेबी फ़रीदा, मास्टर शाहिद और बेबी गुड्डी,  इन तीनों भाई-बहन ने फिल्म ‘ब्रह्मचारी’ में एक साथ काम किया था। उधर ने मास्टर जाविद ने ‘सट्टा बाज़ार’, ‘मुझे जीने दो’ और ‘वक़्त’ जैसी फ़िल्मों से अपनी पहचान बनायी| बेबी गुड्डी, जिनका असली नाम फ़ौजिया है अब भोपाल में रहती हैं| मास्टर शाहिद चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और वो सऊदी अरब में रहते हैं| मास्टर जाविद इंटीरियर डिज़ाईनर थे जो अब जीवित नहीं हैं| साल 2006 में उनका निधन हो गया था|   

फ़रीदा जी बताती हैं, “साल 1971 में मेरा विवाह हुआ, तो मैं पूरी तरह से अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों में व्यस्त हो गयी| दिलीप साहब और सायरा बानो से पारिवारिक सम्बन्ध थे, इसलिये जब सायरा जी ने ‘इस दुनिया के सितारे’ और ‘ज़रा देखो तो इनका कमाल’ जैसे टेलीविज़न कार्यक्रम बनाये, तो मैं उनके साथ कैमरे के पीछे रहकर काम करती रही। और जब बेटी और बेटे की शादी होने के बाद ज़िम्मेदारियों से मुक्त हुई, तो समय बिताने के लिये एक बार फिर से कैमरे के सामने आ खड़ी हुई। साल 2003 में ‘सिनेविस्टा’ कंपनी के धारावाहिक ‘संजीवनी’ से मैंने अभिनय के दूसरे दौर की शुरुआत की और देखते ही देखते कब व्यस्त हो गयी, पता ही नहीं चला। छोटे परदे पर ‘किसे अपना कहें’, ‘साथिया’, ‘क्राईम पेट्रोल’, ‘यही तो है वो’, ‘कभी तो नज़र मिलाओ’, ‘बाली उमर को सलाम’ से लेकर ‘इच्छाधारी नागिन’ और ‘तंत्र’ जैसे धारावाहिकों और ‘ढोल’, ‘सांवरिया’, थ्री इडियट्स’, ‘रहस्य’ और ‘जलेबी’ जैसी फ़िल्मों में काम कर चुकी हूं और अभी भी कर रही हूं|” 

फ़रीदा जी के पति गुजराती हैं और पेशे से बिल्डर हैं| उनकी बेटी अपने पति और दो बच्चों के साथ कुवैत में रहती है| बेटे की शादी फ़ौजिया (बेबी गुड्डी) की बेटी से हुई है और बेटे-बहू की तीन बेटियां हैं| फ़रीदा जी का कहना है, “वक्त के साथ साथ जो कुछ मिलता गया, मैं उसे क़ुबूल करती चली गयी। यही वजह है कि जो नहीं मिल पाया, उसका मुझे कोई अफ़सोस नहीं है। ख़ुशी इस बात की है कि अभिनय के इस दूसरे दौर में भी अच्छा काम और सम्मान मिल रहा है। बस इससे ज़्यादा और चाहिये भी क्या?”

We are thankful to –

Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Mr. Gajendra Khanna for the English translation of the write ups.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing. 


Farida Dadi on YT Channel BHD


Gudiya Humse Roothi Rahogi, Na Hansogi – Baby Farida (Farida Dadi)

                                .......Shishir Krishna Sharma

Baby Farida! A big name among child artists of the sixties, she did nearly 60 movies during her decade long career and then bid adieu to the limelight of Hindi Cinema. The reason was her earnest wish to become a doctor because of which she turned down lead roles in movies like Raj Kapoor’s ‘Bobby’ and Rajshri’s ‘Uphar’. Due to some reasons, though she could not achieve her dream of becoming a doctor, but she enjoyed her life in the roles of a daughter-in-law, wife and mother after marriage. Decades later, when she became free from family responsibilities, she made a comeback to the field of acting.

I met Farida ji on the sets of the Colours’ Show ‘Uttaran’ in Madh Island where she was playing the role of Anjum Nani. Her childhood image was so engraved in my mind that it was difficult for me to reconcile that image with her present image. I did this interview of hers for the daily ‘Rajasthan Patrika’.

Farida ji was born on 8th June 1952 in a traditional Muslim family in Mumbai. Though her parents were also born and brought up in Mumbai, they originally belonged to Uttar Pradesh. Her mother’s family was from Lucknow while her father’s was from Prayagraj (then Allahabad). Farida ji was the third among three brothers and three sisters. She told me, Our family did not have any connection with films nor were we familiar with any film personalities. I had never even thought of appearing in films, but circumstances so emerged that without any special efforts I made an entry into films and became busy as a child artist. Actually, us children used to play every evening in Andheri (West)’s Lallubhai Park. Famous actor Prem Adib ji who stayed near the park, used to see me play in the park every day. One day he met my mother and requested her to take me to ‘Filmalaya’ as they were looking for child artists. After reaching there, we met the owner of ‘Filmalaya’, Shashdhar Mukherjee who called me for shooting the following day.

Shashdhar Mukherjee, after separating from ‘Filmistan’ had laid the foundation of ‘Filmalaya’ in Andheri(West)’s Amboli Area in the year 1958.  According to Farida ji, in those days, the shooting for the studio’s first movie ‘Charity Master’ was underway. The lead roles were being played by Dilip Kumar and Shanta Apte with Farida ji being selected for the role of the daughter of Shanta Apte’s character. Due to some reasons, the movie ‘Charity Master’ got shelved. Around the same time, Farida ji got the opportunity to appear in the children’s song ‘Ek Do Teen Chaar Aur Paanch … Unmen The Jhagde Sau’ in Guru Dutt’s movie ‘Kagaz Ke Phool’.

Farida ji tells us,Initially Guru Dutt sent me back as according to him as per the song’s demand I did not look like a child belonging to a poor family. Later, he changed his mind. Baby Naaz was also accompanying me in that song. Through Naaz’s father, I reached Bimal Roy who gave me an important role in his movie ‘Sujata’

‘Kagaz Ke Phool’ and ‘Sujata’ both released in 1959 but since ‘Sujata’ released first It is considered as the debut film of Baby Farida. The success of ‘Sujata’ helped further the career of Farida ji and she started getting work in many movies continuously. They included Mehboob’s ‘Son of India’, Raj Kapoor’s ‘Sangam’, L V Prasad’s ‘Beti Bete’, Rajshri’s ‘Dosti’ and many other hits like ‘Kalpana’, ‘Usne Kaha Tha’, ‘Chhaya’,  ‘Kabuliwala’, ‘Manmauji’, ‘Janwar’, ‘Jab Jab Phool Khile’, ‘Ram Aur Shyam’ and ‘Raat Aur Din’. The Children’s Film Society movie ‘Dilli Ki Kahani’ also fetched her the President’s Prize from Dr Rajendra Prasad which Farida ji considers as the highlight achievement of her career. She received awards for ‘Beti Bete’ from the Russian Government and from the Andhra Pradesh Government for ‘Jab Jab Phool Khile’. ‘Ram Aur Shyam’, ‘Teen Bahuraniyan’ and ‘Brahmchaari’ proved to be her last released movies from her child artist phase.

Farida ji recalls, ‘The doctor’s profession had attracted me from the beginning and I slowly started focusing on my studies. I was so keen on becoming a doctor that I didn’t think twice before refusing lead roles in Raj Kapoor’s film ‘Bobby’ and ‘Rajshri Production’’s movie ‘Uphar’. However, unfortunately, despite all my efforts I could not achieve my dream of becoming a doctor’.

During this phase, her sister Baby Guddi and brothers Master Shahid and Master Javid had also made a name for themselves as child artists in Hindi films. Master Shahid had played important roles in many movies like ‘Love in Tokyo’ while Baby Guddi had acted in important roles in movies like ‘Hare Rama Hare Krishna’. In fact, Baby Farida, Master Shahid and Baby Guddi had even worked together for the movie ‘Brahmchari’. At the same time, Master Javid became popular for his roles in movies like ‘Satta Bazaar’,

‘Mujhe Jeene Do’ and ‘Waqt’. Baby Guddi, whose real name is Fauzia is now settled in Bhopal. Master Shahid is a chartered account who stays in Saudi Arabia. Late Master Javid who was an interior designer sadly passed away in the year 2006.   

Farida ji told me,I got married in the year 1971 and became totally busy with family responsibilities. Since I had family terms with Dilip Sahab and Saira Bano, when Saira ji made television serials like ‘Is Duniya Ke Sitaare’ and ‘Zara Dekho To Inka Kamaal’, I helped them by working behind the camera. I became a bit free after my son and daughter got married and to spend my time I once again stood before the camera. I began the second inning of my acting career in the year 2003 with ‘Cinevista’ company’s program ‘Sanjeevani’ following which without my realizing I got totally busy with acting assignments again. On the TV screen I appeared in serials like ‘Kise Apna Kahen’, ‘Saathiya’, ‘Crime patrol’, ‘Yahi To Hai Who’, ‘Kabhi To Nazar Milaao’, ‘Baali Umar Ko Salaam’, to ‘Ichhhadhaari Naagin’ and ‘Tantra’. I have also worked in movies like ‘Dhol’, ‘Sanwariya’, ‘Three Idiots’, ‘Rahasya’ and ‘Jalebi’. I continue to work on such assignments.

Farida ji’s husband is a Gujarati and a builder by profession. Her daughter stays in Kuwait with her husband and two children. Her son is married to Fauzia (Baby Guddi)’s daughter and they have three daughters together. Farida ji summarizes, “With time, whatever came my way, I kept accepting it. Due to this, I do not have any regrets regarding what I did not achieve. I am just happing that during the second inning of my acting career also I am getting good work and respect. Who needs anything more than that?