Wednesday, June 1, 2022

"Bhool Gaya Sab Kuchh Yaad Nahi Ab Kuchh" - Vikram

 "भूल गया सब कुछ याद नहीं अब कुछ" – विक्रम

                          ……..शिशिर कृष्ण शर्मा  


'शोले’, ‘धर्मात्मा', ‘दीवार', 'सन्यासी', ‘प्रतिज्ञा' और 'जय संतोषी मां'! साल 1975 में प्रदर्शित हुई इन ब्लॉकबस्टर फिल्मों के बीच बिल्कुल नए और अनजाने से कलाकारों वाली एक और फ़िल्म अपनी धमाकेदार मौजूदगी दर्ज कराने में कामयाब हुई थी| और वो थी ‘जूली', जिसने नवागंतुक हीरो विक्रम और साऊथ से आयी हिरोईन लक्ष्मी को हिन्दी सिनेमा के दर्शकों के बीच पहचान तो दी ही, महमूद की फ़िल्म 'कुंवारा बाप' से डेब्यू करने वाले संगीतकार राजेश रोशन को अपनी इस दूसरी ही फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी दिलाया था| 

फ़िल्म 'जूली' के हीरो विक्रम ने 'पूना फ़िल्म इंस्टिट्यूट' से अभिनय में प्रशिक्षण लेकर, साल 1973 की फ़िल्म 'प्यासी नदी' से फ़िल्मों में कदम रखा था| 'बीते हुए दिन' के लिए विक्रम जी से हमारी ये मुलाक़ात 8 फ़रवरी 2022 की शाम फ़िल्मसिटी रोड, गोरेगांव (पूर्व) की उनकी हाउसिंग सोसाइटी के कार्यालय में हुई थी| मूलतः हुबली-कर्नाटक के रहने वाले विक्रम जी का जन्म 31 मई 1947 को अपने ननिहाल गडग में हुआ था, जो हुबली से 60 किलोमीटर पूर्व में हैं| उनके पिता एक ट्रांसपोर्टर थे, उनकी एक बेकरी भी थी और साथ ही वो चीनी-मैदे का होलसेल का कारोबार भी करते थे| 8 भाई और 3 बहनों में विक्रम सबसे बड़े थे| उनकी मां एक आम गृहिणी थीं|

विक्रम का असली नाम मोईनुद्दीन मकानवाला है| उन्होंने हुबली के सेंट मेरी स्कूल से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद आगे की पढाई के लिए हुबली के ही पी.सी.जबीन कॉलेज में दाख़िला ले लिया था| वो कहते हैं, “कॉलेज के सेकण्ड यीअर में मैं स्टूडेंट यूनियन का जनरल सेक्रेटरी चुना गया| पढ़ाई-लिखाई में मेरी ज़्यादा दिलचस्पी थी नहीं| अचानक एक रोज़ मेरे मन में सवाल उठा, 'मैं साइंस क्यों पढ़ रहा हूं?’ और मैंने   कामत रेस्टोरेंट में अपने तमाम समर्थकों को बुलाया, उन्हें पार्टी दी और फिर घोषणा कर दी, कि मैं कॉलेज छोड़ रहा हूं|”

पढ़ाई बीच ही में छोड़ने के बाद विक्रम जी ने ऑटोमोबाइल का काम शुरू करने की योजना बनाई| लेकिन योजना आगे नहीं बढ़ पायी| फिर उन्होंने बंगलौर के एक संस्थान से 'बेकरी और कन्फेक्शनरी' से डिप्लोमा कोर्स किया| वो बताते हैं, “मुझे फ़िल्मी पत्रिका स्क्रीन पढ़ने का बहुत शौक़ था| उसमें छपने वाले 'हीरो चाहिए' टाइप विज्ञापनों में मैं बिला नागा फ़ीस और अपनी तस्वीरें भेजता था| इस काम के लिए मैंने एक हज़ार रूपये प्रतिमाह का बजट तय किया हुआ था, और अपनी तस्वीरों के बण्डल भी बनाकर रखे हुए थे| उन्हीं दिनों मुझे एक विज्ञापन ऐसा नज़र आया, जिसमें पैसे की मांग नहीं की गई थी| वो विज्ञापन 'पूना फ़िल्म इंस्टिट्यूट' का था|”

विक्रम जी ने फ़ार्म भरकर भेजा और उन्हें इंटरव्यू का बुलावा भी आ गया| वो बताते हैं, “इंटरव्यू चेन्नई के शारदा स्टूडियो में था| लगभग 500 लड़के-लड़कियां लाइन में खड़े थे| मेरा नंबर आया तो सामने बड़े बड़े डायरेक्टर बैठे नज़र आए| मैंने उन्हें अभिनय करके दिखाया| आख़िर में रोशन तनेजा ने बाहर आकर रिज़ल्ट की घोषणा की| सिर्फ़ दो उम्मीदवार पास हुए थे, एक मैं, और एक लड़की जयलक्ष्मी| हमारा स्क्रीनटेस्ट हुआ| और फिर 15 दिनों बाद हमें कॉल आ गयी| घर का मुझे पूरा सहयोग था| साल 1970 से ‘72 के हमारे बैच में महेंद्र संधु, आशा सचदेव, रोमेश शर्मा और किशोर नमित कपूर जैसे कलाकार मेरे सहपाठी थे|” 

साल 1972 में पासआउट होते ही विक्रम ने मुम्बई आकर बांद्रा के मशहूर मरीना गेस्ट हाउस को अपना ठिकाना बना लिया| उन्हीं दिनों पी.आर.ओ.के ज़रिये उन्हें अपनी डेब्यू फ़िल्म 'प्यासी नदी' मिली| इस फ़िल्म में उनकी नायिका थीं वाणी गणपति| इस फ़िल्म से जुड़ी अपनी यादों को ताज़ा करते हुए विक्रम जी बताते हैं, “प्रोड्यूसर के प्रतिनिधि से मेरी मुलाक़ात कराई गयी| मुझे एडवांस पैसा दिया गया| मुहूर्त शॉट महबूब स्टूडियो में होने वाला था| मैं लगातार सुन रहा था कि मुहूर्त में साहब आएंगे| मन में उत्सुकता थी कि 'साहब कौन’? और जब साहब आए, तो देखा दिलीप कुमार| उनका आना मेरे लिए एक चैलेन्ज हो गया, कि मुझे उनके सामने ख़ुद को साबित करना है| और मुहूर्त शॉट में पूरा एक पेज का डायलॉग मैं बेरोकटोक बोल गया|” 

फ़िल्म 'प्यासी नदी' की शूटिंग बड़ौदा में होने वाली थी| विक्रम और वाणी गणपति को  प्राइवेट जेट से बड़ौदा ले जाया गया| शूट गायकवाड़ पैलेस में होना था| विक्रम कहते हैं, “हमारा ठहरने का इंतज़ाम भी पैलेस में ही था| मेरे लिए बहुत बड़ा बेडरूम, बड़ा सा बाथरूम, इतना आलीशान कि मुझे रातभर नींद ही नहीं आयी| अगली सुबह हेलन से मुलाक़ात हुई| वो महारानी के कमरे में ठहरी हुई थीं| मुझे देखकर वो बहुत ख़ुश हुईं| और उन्होंने जो कहा, वो मेरे लिए खून को कई गुना बढ़ाने वाला था| उन्होंने कहा था, 'इंडस्ट्री में बहुत स्मार्ट हीरो आया है|’ और फिर हमें मिलवाया गया, फ़िल्म के प्रोड्यूसर से| बेमिसाल शानोशौकत, ज़बरदस्त दबदबा| वो थे उस ज़माने के कुख्यात तस्कर सुकुर नारायण बकिया|”

‘प्यासी नदी' की शूटिंग के दौरान भी विक्रम का फ़िल्मी हस्तियों के पसंदीदा गेलॉर्ड रेस्टोरेंट में आना-जाना और लोगों से मिलना-जुलना, यानि स्ट्रगल जारी था| और इसी स्ट्रगल के चलते उन्हें फ़िल्म 'कॉलगर्ल' मिली| इस फ़िल्म के प्रोड्यूसर, अभिनेता मुकेश खन्ना के भाई वेद खन्ना थे| निर्देशन विजय कपूर का था जो मशहूर अभिनेता त्रिलोक कपूर के बेटे थे| फ़िल्म 'प्यासी नदी' साल 1973 और 'कॉलगर्ल' 1974 में रिलीज़ हुई थीं| 

विक्रम बताते हैं, “फ़िल्म 'कॉलगर्ल' हिट हुई और मेरे सामने प्रोड्यूसरों की लाइन लग गयी| और मैंने भी बिना सोचे-समझे 24-25 फ़िल्में साईन कर लीं| ‘दो चट्टानें, 'तूफ़ान' 'संकोच', ‘रंगाखुश' और 'जब अन्धेरा होता है' उसी दौर की फ़िल्में थीं| एक रोज़ 'संकोच' के डायरेक्टर अनिल गंगुली ने मुझे साउथ के प्रोड्यूसर बी.नागीरेड्डी से मिलने के लिए भेजा, जो ताज होटल में ठहरे हुए थे| मैं उनसे मिलने पहुंचा तो देखा, एक तरफ़ बी.नागीरेड्डी और उनके साथ दूसरी तरफ़ डायरेक्टर सेतुमाधवन बैठे थे| नागीरेड्डी ने मुझे अपने सामने रखी कुर्सी पर बैठने को कहा| और मेरे बैठते ही दोटूक  शब्दों में बोले, फ़िल्म का टाइटल है 'जूली', हीरो का रोल है और फ़ीस है, ‘50 थाउजेंड’| और मेरा गला सूख गया| 'इतना पैसा?’ मुझे यक़ीन ही नहीं हुआ| मेरी आवाज़ गले में ही अटक गयी| उन्हें लगा, 50 हज़ार सुनकर शायद मैं ख़ुश नहीं हूं| बोले ‘75 थाउजेंड’? और मेरा गला पूरी तरह बंद हो गया| आख़िर में वो बोले, ‘वन लैक'| इससे ज़्यादा एक भी पैसा नहीं|...मेरी ख़ामोशी कमाल कर गयी थी|”

'जूली' की शूटिंग लिए विक्रम जी चेन्नई के विजयवाहिनी स्टूडियो पहुंचे| उनके अनुसार, सेट पर पहुंचते ही उन्हें कैमरे के सामने खड़ा कर दिया गया| न कोई ब्रीफ़िंग, न रिहर्सल, सीधे शूट| बस इतना पता चला कि कोई गाना करना है| विक्रम जी ने कहा, एक बार गाना तो सुना दो| लेकिन सेतुमाधवन ने कह दिया, सीधे शूट करेंगे| शूट शुरू हुआ| विक्रम जी के शब्दों में, "एक तरफ़ मुझे अनसुने शब्दों से जूझना था, तो दूसरी तरफ़ लक्ष्मी के अक्खड़पन के साथ भी तालमेल बैठाना था, कहां वो साउथ की सुपरस्टार और कहां मैं हिन्दी सिनेमा का एक नया नया हीरो| बहरहाल पहला ही शॉट ओके हुआ, तो मेरी जान में जान आयी| वो गीत था, फ़िल्म का टाइटल सॉन्ग - 'भूल गया सब कुछ याद नहीं अब कुछ'| ‘जूली' रिलीज़ हुई, और साल 1975 की सफलतम फ़िल्मों में गिनी गयी| 

निर्माता-निर्देशक देवेन्द्र गोयल की साल 1977 की फ़िल्म 'आदमी सड़क का' के लिए विक्रम जी का कहना था, "पहले इस फ़िल्म का नाम 'आनंद भवन' रखा गया था| जब इसके लिए शत्रुघ्न सिन्हा को कास्ट किया गया तो उन्हें ये नाम कुछ जमा नहीं| कहने लगे, 'सवाल उठेगा, शत्रु आनंद भवन में क्या कर रहा है? इसलिए इसका टाईटल बदलो|’ तब फ़िल्म का नाम बदलकर 'आदमी सड़क का' रखा गया था|”

विक्रम जी ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में हाथ आज़माते हुए साल 1982 में फ़िल्म 'सितम' बनाई| इस फ़िल्म के लेखक-निर्देशक थे, अरूणा-विकास| मेनलीड में थे, ख़ुद विक्रम, नसीरुद्दीन शाह और स्मिता पाटिल| गीत गुलज़ार के और संगीत जगजीत सिंह का था| बतौर निर्माता अपनी इस पहली और आख़िरी फिल्म को विक्रम जी खैराती फ़िल्म कहते हैं, क्योंकि उनके अनुसार इस फ़िल्म में सभी लोगों ने बिना पैसे के, महज़ यारी-दोस्ती में ही काम किया था| 

निर्माता-निर्देशक राजकुमार कोहली की साल 1979 की फ़िल्म 'जानी दुश्मन' में विक्रम गेस्ट-अपीयरेंस में थे| राजकुमार कोहली ने निर्माता अनिल सूरी की साल 1984 की  मल्टीस्टारर फ़िल्म 'राजतिलक' में विक्रम को एक बार फिर से रिपीट किया, हालांकि उन्हें ये फ़िल्म दिलाने में अभिनेता राजकुमार का भी ख़ासा योगदान था| उस मज़ेदार घटना को याद करते हुए विक्रम कहते हैं, “राजकुमार साहब ने मुझसे कहा, 'कोहली से जाकर मिलो, वरना वो कहीं उस रोल के किये 'फ़लां-फ़लां' को न उठा लाए| और फ़ीस पूछेगा, तो 4 लाख मांगना|’ मैं राजकुमार कोहली से मिला, रोल ओके हुआ, कोहली जी ने पैसा पूछा, तो मैंने 4 लाख कह दिया| कोहली जी ने 2 लाख कहा तो मैंने बिना नानुकुर मान लिया| लेकिन उनसे इतना ज़रूर कहा, 'अगर राजकुमार साहब पूछें तो उन्हें बताना कि आप मुझे 4 लाख दे रहे हैं|’ दो दिग्गजों के बीच पिसने से बचने का और रास्ता ही क्या था मेरे पास?”

('फ़लां-फ़लां कौन थे?’ - पूछने पर विक्रम जी ने नाम बताने से इनकार कर दिया, जो उन कलाकार के सम्मान को बनाए रखने के लिए ज़रूरी भी था| लेकिन विक्रम जी की बातों से इस बात का आभास ज़रूर होता था कि राजकुमार उस ज़माने की लो-बजट और साफ़-सुथरी पारिवारिक फ़िल्मों के स्टार के विषय में कह रहे होंगे| दरअसल फिल्म 'राजतिलक' में उन अभिनेता के कई सीन राजकुमार के साथ होने थे, और अपनी पसंद-नापसंद को लेकर राजकुमार की बेबाक़ी जगज़ाहिर थी| विक्रम जी राजकुमार साहब की इसी चुटीली-चटपटी बेबाक़ी को हाईलाईट करना चाहते थे|)

विक्रम जी की शादी साल 1985 में हुई| उनकी पत्नी फ़रियाल मसूरी की रहने वाली हैं और मेरठ में भी उनका घर है| विक्रम जी बताते हैं, “मैं 1857 की क्रांति पर बन रही एक फ़िल्म की शूटिंग के लिए मेरठ में था| वहां हमें जिस कोठी में ठहराया गया था, वो वाद्ययंत्रों के निर्माण के लिए मशहूर, 135 साल पुरानी 'नादिर अली एंड कंपनी' के मालिक की थी| 

फ़रियाल उन्हीं की बेटी हैं और वो भी उन दिनों मसूरी से मेरठ आयी हुई थीं| मैं उन्हें अक्सर आते-जाते देखता था| वो मुझे पहली ही नज़र में भा गयी थीं| मैंने उनके भाई से दोस्ती की, उनकी मां के साथ बेहद सम्मान से पेश आया, और जब लगा कि इम्प्रेशन पूरी तरह जम चुका है, तो उनकी सहेली से सिफ़ारिश की| पैग़ाम का जवाब भी जल्द ही आ गया| मैं शराब-सिगरेट से दूर था, हम दोनों ही संभ्रांत मुस्लिम परिवारों से थे, इसलिए कहीं किसी तरह का सवाल ही नहीं उठा| हफ़्तेभर में सगाई और महीनेभर में शादी, यानी 'चट मंगनी पट ब्याह' संपन्न हुआ|" 

क़रीब 35 साल के करियर में विक्रम ने 40 से ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया| उनकी अभी तक की आख़िरी फ़िल्म साल 2008 की 'तुलसी' है, जिसकी मेनलीड में इरफ़ान खान और मनीषा कोईराला थे| व्यापार की बारीक़ियों से विक्रम जी बचपन से ही परिचित थे, इसलिए अभिनय के साथ साथ वो विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में भी हाथ आज़माते रहे| आज वो चाईनीज़ रेस्टोरेंट, ऑटोमोबाइल, प्रॉपर्टी डीलिंग से जुड़े व्यवसायों में व्यस्त हैं, तो एक इंटरनेशनल इवेंट कंपनी के अलावा विदेशी पर्यटकों के लिए 'बॉलीवुड टूर्स' जैसी कंपनी का संचालन भी करते हैं| 

विक्रम जी के परिवार में पत्नी और एक बेटा-बहू हैं| बेटा कॉर्पोरेट सेक्टर में, एक अमेरिकी कंपनी के साथ जुड़ा हुआ है और बहू डॉक्टर हैं| कुल मिलाकर एक 'छोटा परिवार, सुखी परिवार’! 


Mr. Harish Raghuvanshi Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance, and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Mr. Gajendra Khanna for editing the English translation of the write up.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.


Vikram Makandar on YT Channel 'Beete Hue Din'



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