Thursday, March 10, 2022

"Dekho Bijli Dole Bin Badal Ke" - Rani

 “देखो बिजली डोले बिन बादल के”- रानी  

                           ........शिशिर कृष्ण शर्मा 

क़रीब तीन साल पहले ग्वालियर के एक पाठक मित्र श्री आनंद पाराशर ने पूछा, रानी का कुछ पता है, वो कहां हैं आजकल? मेरे मन में सवाल उठा, ‘कौन रानी?’ दरअसल ये नाम मेरे लिए बिल्कुल अनसुना था| लेकिन जब उन्होंने तीन चार हिट गीत गिनाए जिन पर रानी ने नृत्य किया था, तो रानी का चेहरा मेरी आंखों के सामने कौंध गया| और तब मुझे पता चला था कि ‘जादू डाले है मचल मचल किसकी नज़र किसकी अदा’ (माया), ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूं’ और ‘लागी नाहीं छूटे रामा चाहे जिया जाए’ (सौतेला भाई), ‘बैरी बिछुआ बड़ा दुःख दे हो राम, शोर करे झन झन झन’ (गंगा की लहरें), मांगी हैं दुआएं हमने सनम’ (शिकारी), ‘आंखों आंखों में किसी से बात हुई’ (जानवर) ‘हाए हाए रसिया तू बड़ा बेदर्दी’ (दिल दिया दर्द लिया), ‘गंगा मईया में जब तक ये पानी रहे’ (सुहागरात) और ‘देखो बिजली डोले बिन बादल के’ (फिर वोही दिन लाया हूं) जैसे सुपरहिट गीतों पर नृत्य करती उस बेहद ख़ूबसूरत डांसर का नाम रानी था| मैं रानी की तलाश में जुट गया| लेकिन न तो ‘सिने एंड टी.वी. आर्टिस्ट एसोसिएशन’ (सिंटा) के रिकॉर्ड में उनका नाम मिला, न ही उनके दौर के लोगों में से कोई उनका अतापता बता पाया|  

अचानक एक रोज़ मशहूर अभिनेता और सिंटा कार्यकारिणी के सदस्य, मित्र दीपक काज़िर जी के हवाले से पता चला कि रानी मीरा रोड पर किसी वृद्धाश्रम में रहती हैं| साथ ही दीपक जी ने वृद्धाश्रम का संचालन करने वाले एन.जी.ओ. का भी ज़िक्र किया, जिसका ऑफ़िस मेरे घर से महज़ दो किलोमीटर के फ़ासले पर था| एन.जी.ओ. की संचालिका से फ़ोन पर बात हुई तो उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि रानी जी उन्हीं के वृद्धाश्रम में रहती हैं| उन्होंने ये भी बताया कि उक्त वृद्धाश्रम पहले मीरा रोड में ही था, लेकिन अब उसे क़रीब 10 किलोमीटर दूर उत्तन में शिफ्ट कर दिया गया है| उन्होंने वादा किया कि मैं जब भी चाहूंगा, वो मुझे रानी जी से मिलवाएंगी| लेकिन कोविड की महामारी और लगातार लॉकडाउन की वजह से रानी जी से मिलने की योजना टलती चली गयी| अंतत: कोविड के प्रकोप के कम होने पर, क़रीब 8 महीनों बाद, 31 जनवरी 2021 को उनसे मिलने का अवसर आ ही गया, जिसके लिए वृद्धाश्रम की संचालिका श्रीमती ज़ाहिरा सैयद और उनके कार्यालय के प्रबंधक श्री सुहेल अहमद धन्यवाद के पात्र हैं| ज़ाहिरा जी ने बरसों से मीडिया से बचती आयीं रानी जी को साक्षात्कार के लिए मनाया तो सुहेल ख़ुद मुझे साथ लेकर वृद्धाश्रम गए, ताकि साक्षात्कार सुचारू रूप से संपन्न हो सके| हालांकि बातचीत के दौरान भी साक्षात्कार को लेकर रानी जी की अनिच्छा बारबार ज़ाहिर होती रही|        

Yusuf Azad Qawwal & Rashida Khatoon

रानी जी के जन्म की तारीख़ 27 जुलाई मानी जाती है, लेकिन उनके अनुसार उनका जन्म 11 जुलाई 1942 को कोलकाता में हुआ था| उनके पिता मोहम्मद गफूर खां कंधार के रहने वाले एक पठान थे तो मां नूरजहां रीवा रियासत मेंं, जबलपुर के एक मंदिर के पुजारी की बेटी थीं|  

(ज़्यादा पूछने पर रानी जी ने अपनी मां के बारे में केवल इतना ही बताया कि वो मायके से पाण्डेय थीं| उनका असली नाम क्या था, उनकी अपने पति से मुलाक़ात और शादी किन हालात में हुई थी, इन तमाम मुद्दों पर रानी ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया|)  

दो बहनों और एक भाई में रानी सबसे बड़ी थीं| उनसे छोटी एक बहन राशिदा ख़ातून और एक भाई, गोरा के नाम से मशहूर साजिद खान हैं| राशिदा की शादी मशहूर क़व्वाल यूसुफ़ आज़ाद से हुई| गोरा एक वायलिन वादक हैं, जो नौशाद और शंकर जयकिशन से लेकर लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और अनु मलिक तक सभी बड़े संगीतकारों की रिकॉर्डिंग में वायलिन बजा चुके हैं| सेवानिवृत्त होने के बाद अब वो अपना ज़्यादातर समय अमेरिका में अपने बच्चों के साथ बिताते हैं|    

रानी जी बताती हैं, “मेरे पिता का कोलकाता के मछुआ मार्केट में ड्रायफ्रूट्स का कारोबार था| मैं जन्म से पहले ही मातापिता की एक दोस्त दम्पत्ति को गोद दे दी गयी थी| उन्होंने ही मुझे पाला| बंटवारे के बाद  मोहसिन खां और अमीना ख़ातून नामक वो दम्पत्ति हम दोनों बहनों को साथ लेकर लाहौर चली गयी थी| अमीना ख़ातून की बड़ी बहन लाहौर में रहती थीं| उनके दोनों बेटों से हम दोनों बहनों की मंगनी कर दी गयी| लेकिन कुछ समय बाद वो पतिपत्नी हमें लेकर वापस कोलकाता लौट आए| और इसके साथ ही हमारी मंगनी भी टूट गयी|”  

कोलकाता आने के बाद मोहम्मद मोहसिन खां ने रानी को रामनारायण मिश्र और श्रीकृष्ण महाराज जैसे दिग्गज कत्थक गुरुओं की शागिर्दी में भेज दिया, जो शम्भु महाराज के शिष्य थे| रानी स्कूल तो कभी नहीं गयीं, लेकिन कत्थक में बहुत जल्द पारंगत हो गयीं| उन्हीं दिनों रानी की सगी मां ने बेटे गोरा को जन्म दिया था| रानी बताती हैं, “मोहम्मद मोहसिन खां ने पैसा कमाने के मक़सद से जल्द ही मुझे स्टेज पर उतार दिया| मेरे शोज़ हिट होने लगे| मुझे मेरा असली नाम ज़रीना ख़ातून पसंद नहीं था, इसलिए बचपन में ही मैंने ख़ुद को रानी खान कहना शुरू कर दिया था| कोलकाता में बरसात के मौसम के जाने के बाद हर साल एक ‘डांस और म्यूज़िक कांफ्रेंस’ का आयोजन किया जाता था| उसमें मैं बेबी रानी के नाम से हिस्सा लेती थी| और फिर 13 साल की उम्र से मैंने बांग्ला फ़िल्मों में भी काम करना शुरू कर दिया| ‘कोंशो’ (कंस), ‘बृंदाबोन लीला’, ‘रातेर अन्धकार’, ‘ओजाना ताहिनी’, ‘तैलंग स्वामी’ जैसी बांग्ला फ़िल्मों ने मुझे बतौर डांसर ख़ासी पहचान दी| दिसंबर 1959 में मुझे पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा ‘नृत्य शिरोमणि’ के खिताब से नवाज़ा गया था| उन दिनों पश्चिम बंगाल की राज्यपाल पद्मजा नायडू थीं और ये पुरस्कार मुझे तत्कालीन राष्ट्रपति गवर्नर हाउस में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के हाथों मिला था|  और फिर साल 1960 में मोहम्मद मोहसिन खां मुझे साथ लेकर मुम्बई चले आए|” 

Smt. Zahira Sayyad
रानी के अनुसार तब तक मोहम्मद मोहसिन खां और अमीना ख़ातून का तलाक़ हो चुका था| अमीना रानी की छोटी बहन को अपने साथ लेकर अलग हो गईं| उधर मोहसिन खां रानी को साथ लेकर मुम्बई आए तो रानी की सगी मां नूरजहां और छोटा भाई भी उनके साथ थे| रानी कहती हैं, “मेरी सगी मां आया की हैसियत से हमारे साथ आयी थी|”  

(रानी जी बाहरी लोगों, और ख़ासतौर से मीडिया के सामने नहीं आना चाहतीं| ‘बीते हुए दिन’ के लिए ये साक्षात्कार भी उन्हें वृद्धाश्रम की संचालिका श्रीमती ज़ाहिरा सैयद के आग्रहपूर्ण दबाव की वजह से देना पड़ा था| और शायद ये उनका अनमनापन ही था, कि साक्षात्कार के दौरान पूछे गए बहुत से ज़रुरी सवालों को वो टाल गयीं| उन सवालों के जवाब पाने के लिए मुझे रानी को व्यक्तिगत रूप से जानने वाले कुछ और लोगों की मदद लेनी पड़ी| और तब जो कुछ पता चला, उसका निचोड़ ये था, कि रानी को गोद लेने वाले मां-बाप की कोई औलाद नहीं थी| रानी के सगे मां-बाप के उस दंपत्ति के साथ बेहद गहरे रिश्ते थे| रानी के जन्म से पहले ही उनके सगे मां-बाप ने वादा किया था कि वो अपनी पहली औलाद उस मित्र दंपत्ति को गोद दे देंगे| 

Shri Sohail Ahmed
उन्होंने अपना वादा निभाया| लेकिन ‘गोद देना’ महज़ एक औपचारिकता थी, असल में तो तीनों ही बच्चों को उन दोनों दंपत्तियों ने मिलजुलकर पाला था| आगे चलकर हालात ऐसे बने कि उन पति-पत्नी के ही नहीं, बल्कि रानी के असली मां-बाप के बीच भी अलगाव हो गया| और इसीलिये बच्चों का बंटवारा तो हुआ ही, रानी की सगी मां को उन्हें गोद लेने वाले पिता के साथ बतौर आया मुम्बई आना पड़ा, ताकि रानी की देखभाल हो सके, और खुद उन्हें और उनके बेटे को भी सहारा मिल सके| हालांकि ‘बीते हुए दिन’ इन जानकारियों की पुष्टि नहीं करता|) 

मार्च 1960 में मुंबई के बिड़ला मातोश्री सभागार में रानी जी का पहला स्टेज शो हुआ| ये शो बेहद हिट रहा, रानी के चर्चे हुए और जल्द ही वो ‘रानी डांसर कलकत्ते वाली’ के नाम से मशहूर हो गयीं| उसी साल प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘नयी मां’ के एक गीत पर डांस करके रानी जी ने हिन्दी  फिल्मों में कदम रखा था|  

12 साल के अपने करियर के दौरान रानी ने ‘माया’, ‘फिर वोही दिल लाया हूं’, ‘मेरे महबूब’, ‘दूज का चांद’, ‘जानवर’, ‘फूल और पत्थर’, ‘दिल दिया दर्द लिया’, सुहागरात’, संघर्ष’ और लोफ़र’ जैसी क़रीब 40 फ़िल्मों में डांस किया| वो बताती हैं, “मेरी पसंदीदा डांसर हेलन थीं| मशहूर डांस डायरेक्टर मास्टर बद्रीप्रसाद जी ने साल 1964 की फ़िल्म ‘आया तूफ़ान’ के गीत ‘तोहार नाम लई के छोड़ा है ज़माना’ के लिए मुझे बुलाया तो मुझे यक़ीन ही नहीं हुआ कि उस गीत पर मुझे हेलन के साथ डांस करना है| इतनी बड़ी, मशहूर और अपनी पसंदीदा डांसर के साथ डांस करना मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था|” 

फ़िल्मों के साथ साथ रानी जी स्टेज शोज़ भी करती रहीं| मोहम्मद रफ़ी शो के लिए उन्होंने अदन (यमन), नैरोबी (कीनिया), दारेस्सलाम (तंजानिया) और युगांडा का दौरा किया| उस ट्रूप में उनके साथ संगीतकार हुस्नलाल-भगतराम और गायिका मधुबाला ज़वेरी भी शामिल थे| 

एक प्रशिक्षित डांसर होने के साथ साथ रानी जी अपने दौर की कई हिरोईनों से कहीं ज़्यादा सुंदर भी थीं| और इसीलिए उन्हेंं मुख्य भूमिकाओं के लिए प्रस्ताव भी मिलने लगे थे| उधर मोहसिन खां भी रानी को हिरोईन  के रूप में देखना चाहते थे| लेकिन रानी इसके लिए ज़रा भी तैयार नहीं थीं| उनका कहना था, “मैं एक डांसर हूं और डांस ही मेरी ज़िंदगी है| अभिनय में मेरी ज़रा भी दिलचस्पी नहीं है|” हालांकि अपवादस्वरूप उन्होंने ‘बादशाह’, ‘दिल दिया दर्द लिया’ और ‘जिम्बो फाइंडस अ सन’ जैसी 3-4 फ़िल्मों में अभिनय भी किया|  

‘बीते हुए दिन’ के साथ बातचीत में रानी जी ने कहा था, “मुझे लगने लगा था, मैं पैसा कमाने की मशीन बनकर रह गयी हूं, जहां मेरी इच्छा-अनिच्छा कोई मायने नहीं रखती| राजकमल स्टूडियो में फ़िल्म ‘कोबरागर्ल‘ की शूटिंग के दौरान मैंने संध्या को देखा था| उधर लता को भी देख चुकी थी| उनका अकेलापन देख के फ़िल्मों की तरफ़ से मेरा मन हटने लगा था| आखिर 1972 के बाद मैंने काम करना पूरी तरह बंद कर दिया था| मेरी आखिरी फ़िल्म ‘पत्थर और पायल’ साल 1974 में रिलीज़ हुई थी, जिसमें मैंने गीत ‘तोहे लेने आयी मैं आयी सांवरिया..आ पिया आजा’ पर डांस किया था|” 

कुछ समय फ़िल्मों से दूर रहने के बाद रानी जी ने मास्टर बद्रीप्रसाद को असिस्ट करना शुरू किया| और फिर वो गोपीकिशन की असिस्टेंट बन गयीं| गोपीकिशन ने रानी को फ़िल्म उमरावजान में एक गीत स्वतंत्र रूप से डायरेक्ट करने को दिया| और वो गीत था, ‘दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए’| लेकिन जल्द ही हालात बदल गए|  

कलाकारों और तकनीशियनों की नयी पीढ़ी मैदान में कूद पड़ी थी| नयी सोच ने सिनेमा को बदल डाला था| उधर दर्शकों की पीढ़ियां और रूचि भी बदल गई थी| और फिर गोपीकिशन भी नहीं रहे| ऐसे में रानी एक बार फिर से बेसहारा हो गयीं| उनके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था| मां-बाप गुज़र चुके थे| भाई-बहन अपने परिवारों में व्यस्त थे| रानी जी के शिष्य कमल मास्टर उन्हें ढाई हज़ार रूपए महीने की आर्थिक मदद देते रहे| पूरी तरह अकेली पड़ चुकी रानी जुहू, अंधेरी, विरार, मालाड, मुंब्रा, मालवाणी जैसे इलाक़ों में किराए के मकानों में ज़िंदगी गुज़ारती रहीं| फिर उनकी मुंहबोली बेटी कुक्कू हिना उनकी मदद के लिए आगे आयीं| उन्होंने रानी जी को मालाड के अपने घर में शरण दी| लेकिन अचानक एक रोज़ हिना गुज़र गयीं| और रानी जी एक बार फिर से बेसहारा हो गयीं|  

बचपन से रानी जिन हालात से गुज़रती आयी हैं, उन्हें लेकर उनके मन में कड़वाहट साफ़ नज़र आती है| मां-बाप का प्यार और भाई-बहन का साथ उन्हें मिला नहीं, और गोद लेने वाले मां-बाप ने उन्हें पैसा कमाने की मशीन बनाकर रख दिया| और इसीलिए रानी जी अपनों से दूर होती चली गयीं| अब वो पिछले क़रीब दो सालों से मीरारोड-मुंबई की सम्मानित समाजसेविका श्रीमती ज़ाहिरा सैयद की संस्था ‘कायनात वेलफ़ेयर ट्रस्ट‘ द्वारा संचालित और भायंदर पश्चिम के उत्तन इलाक़े में स्थित वृद्धाश्रम में रह रही हैं| और इस निःस्वार्थ सेवा के लिए वो श्रीमती ज़ाहिरा सैयद का आभार व्यक्त करना नहीं भूलतीं| 

We are thankful to –

Mr. Harish Raghuvanshi &  Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance, and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Mr. Gajendra Khanna for the English translation of the write up.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.  
  


Dancer Rani On YouTube Channel BHD




ENGLISH VERSION FOLLOWS... 


2 comments:

  1. बेहद दुखद दास्तान बड़ी मशहूर और बेहद खूबसूरत डांसर रानी की । शिशिर कृष्ण शर्मा जी आपने खोजबीन करके उनके जीवन के बारे में जानकारी इकट्ठा करके हम तक पहुंचायी उसके हम आभारी हैं ।
    शिव शंकर गहलौत
    मयूर विहार, नयी दिल्ली
    9810391898
    2-7-2022

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