“देखो बिजली डोले बिन बादल के”- रानी
........शिशिर कृष्ण शर्मा
अचानक एक रोज़ मशहूर अभिनेता और सिंटा कार्यकारिणी के सदस्य, मित्र दीपक काज़िर जी के हवाले से पता चला कि रानी मीरा रोड पर किसी वृद्धाश्रम में रहती हैं| साथ ही दीपक जी ने वृद्धाश्रम का संचालन करने वाले एन.जी.ओ. का भी ज़िक्र किया, जिसका ऑफ़िस मेरे घर से महज़ दो किलोमीटर के फ़ासले पर था| एन.जी.ओ. की संचालिका से फ़ोन पर बात हुई तो उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि रानी जी उन्हीं के वृद्धाश्रम में रहती हैं| उन्होंने ये भी बताया कि उक्त वृद्धाश्रम पहले मीरा रोड में ही था, लेकिन अब उसे क़रीब 10 किलोमीटर दूर उत्तन में शिफ्ट कर दिया गया है| उन्होंने वादा किया कि मैं जब भी चाहूंगा, वो मुझे रानी जी से मिलवाएंगी| लेकिन कोविड की महामारी और लगातार लॉकडाउन की वजह से रानी जी से मिलने की योजना टलती चली गयी| अंतत: कोविड के प्रकोप के कम होने पर, क़रीब 8 महीनों बाद, 31 जनवरी 2021 को उनसे मिलने का अवसर आ ही गया, जिसके लिए वृद्धाश्रम की संचालिका श्रीमती ज़ाहिरा सैयद और उनके कार्यालय के प्रबंधक श्री सुहेल अहमद धन्यवाद के पात्र हैं| ज़ाहिरा जी ने बरसों से मीडिया से बचती आयीं रानी जी को साक्षात्कार के लिए मनाया तो सुहेल ख़ुद मुझे साथ लेकर वृद्धाश्रम गए, ताकि साक्षात्कार सुचारू रूप से संपन्न हो सके| हालांकि बातचीत के दौरान भी साक्षात्कार को लेकर रानी जी की अनिच्छा बारबार ज़ाहिर होती रही|
Yusuf Azad Qawwal & Rashida Khatoon |
रानी जी के जन्म की तारीख़ 27 जुलाई मानी जाती है, लेकिन उनके अनुसार उनका जन्म 11 जुलाई 1942 को कोलकाता में हुआ था| उनके पिता मोहम्मद गफूर खां कंधार के रहने वाले एक पठान थे तो मां नूरजहां रीवा रियासत मेंं, जबलपुर के एक मंदिर के पुजारी की बेटी थीं|
(ज़्यादा पूछने पर रानी जी ने अपनी मां के बारे में केवल इतना ही बताया कि वो मायके से पाण्डेय थीं| उनका असली नाम क्या था, उनकी अपने पति से मुलाक़ात और शादी किन हालात में हुई थी, इन तमाम मुद्दों पर रानी ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया|)
दो बहनों और एक भाई में रानी सबसे बड़ी थीं| उनसे छोटी एक बहन राशिदा ख़ातून और एक भाई, गोरा के नाम से मशहूर साजिद खान हैं| राशिदा की शादी मशहूर क़व्वाल यूसुफ़ आज़ाद से हुई| गोरा एक वायलिन वादक हैं, जो नौशाद और शंकर जयकिशन से लेकर लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और अनु मलिक तक सभी बड़े संगीतकारों की रिकॉर्डिंग में वायलिन बजा चुके हैं| सेवानिवृत्त होने के बाद अब वो अपना ज़्यादातर समय अमेरिका में अपने बच्चों के साथ बिताते हैं|
12 साल के अपने करियर के दौरान रानी ने ‘माया’, ‘फिर वोही दिल लाया हूं’, ‘मेरे महबूब’, ‘दूज का चांद’, ‘जानवर’, ‘फूल और पत्थर’, ‘दिल दिया दर्द लिया’, सुहागरात’, संघर्ष’ और लोफ़र’ जैसी क़रीब 40 फ़िल्मों में डांस किया| वो बताती हैं, “मेरी पसंदीदा डांसर हेलन थीं| मशहूर डांस डायरेक्टर मास्टर बद्रीप्रसाद जी ने साल 1964 की फ़िल्म ‘आया तूफ़ान’ के गीत ‘तोहार नाम लई के छोड़ा है ज़माना’ के लिए मुझे बुलाया तो मुझे यक़ीन ही नहीं हुआ कि उस गीत पर मुझे हेलन के साथ डांस करना है| इतनी बड़ी, मशहूर और अपनी पसंदीदा डांसर के साथ डांस करना मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था|”
फ़िल्मों के साथ साथ रानी जी स्टेज शोज़ भी करती रहीं| मोहम्मद रफ़ी शो के लिए उन्होंने अदन (यमन), नैरोबी (कीनिया), दारेस्सलाम (तंजानिया) और युगांडा का दौरा किया| उस ट्रूप में उनके साथ संगीतकार हुस्नलाल-भगतराम और गायिका मधुबाला ज़वेरी भी शामिल थे|
एक प्रशिक्षित डांसर होने के साथ साथ रानी जी अपने दौर की कई हिरोईनों से कहीं ज़्यादा सुंदर भी थीं| और इसीलिए उन्हेंं मुख्य भूमिकाओं के लिए प्रस्ताव भी मिलने लगे थे| उधर मोहसिन खां भी रानी को हिरोईन के रूप में देखना चाहते थे| लेकिन रानी इसके लिए ज़रा भी तैयार नहीं थीं| उनका कहना था, “मैं एक डांसर हूं और डांस ही मेरी ज़िंदगी है| अभिनय में मेरी ज़रा भी दिलचस्पी नहीं है|” हालांकि अपवादस्वरूप उन्होंने ‘बादशाह’, ‘दिल दिया दर्द लिया’ और ‘जिम्बो फाइंडस अ सन’ जैसी 3-4 फ़िल्मों में अभिनय भी किया|
‘बीते हुए दिन’ के साथ बातचीत में रानी जी ने कहा था, “मुझे लगने लगा था, मैं पैसा कमाने की मशीन बनकर रह गयी हूं, जहां मेरी इच्छा-अनिच्छा कोई मायने नहीं रखती| राजकमल स्टूडियो में फ़िल्म ‘कोबरागर्ल‘ की शूटिंग के दौरान मैंने संध्या को देखा था| उधर लता को भी देख चुकी थी| उनका अकेलापन देख के फ़िल्मों की तरफ़ से मेरा मन हटने लगा था| आखिर 1972 के बाद मैंने काम करना पूरी तरह बंद कर दिया था| मेरी आखिरी फ़िल्म ‘पत्थर और पायल’ साल 1974 में रिलीज़ हुई थी, जिसमें मैंने गीत ‘तोहे लेने आयी मैं आयी सांवरिया..आ पिया आजा’ पर डांस किया था|”
कुछ समय फ़िल्मों से दूर रहने के बाद रानी जी ने मास्टर बद्रीप्रसाद को असिस्ट करना शुरू किया| और फिर वो गोपीकिशन की असिस्टेंट बन गयीं| गोपीकिशन ने रानी को फ़िल्म उमरावजान में एक गीत स्वतंत्र रूप से डायरेक्ट करने को दिया| और वो गीत था, ‘दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए’| लेकिन जल्द ही हालात बदल गए|
कलाकारों और तकनीशियनों की नयी पीढ़ी मैदान में कूद पड़ी थी| नयी सोच ने सिनेमा को बदल डाला था| उधर दर्शकों की पीढ़ियां और रूचि भी बदल गई थी| और फिर गोपीकिशन भी नहीं रहे| ऐसे में रानी एक बार फिर से बेसहारा हो गयीं| उनके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था| मां-बाप गुज़र चुके थे| भाई-बहन अपने परिवारों में व्यस्त थे| रानी जी के शिष्य कमल मास्टर उन्हें ढाई हज़ार रूपए महीने की आर्थिक मदद देते रहे| पूरी तरह अकेली पड़ चुकी रानी जुहू, अंधेरी, विरार, मालाड, मुंब्रा, मालवाणी जैसे इलाक़ों में किराए के मकानों में ज़िंदगी गुज़ारती रहीं| फिर उनकी मुंहबोली बेटी कुक्कू हिना उनकी मदद के लिए आगे आयीं| उन्होंने रानी जी को मालाड के अपने घर में शरण दी| लेकिन अचानक एक रोज़ हिना गुज़र गयीं| और रानी जी एक बार फिर से बेसहारा हो गयीं|
Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance, and support.
Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Mr. Gajendra Khanna for the English translation of the write up.
Remarkable work. Respects
ReplyDeleteबेहद दुखद दास्तान बड़ी मशहूर और बेहद खूबसूरत डांसर रानी की । शिशिर कृष्ण शर्मा जी आपने खोजबीन करके उनके जीवन के बारे में जानकारी इकट्ठा करके हम तक पहुंचायी उसके हम आभारी हैं ।
ReplyDeleteशिव शंकर गहलौत
मयूर विहार, नयी दिल्ली
9810391898
2-7-2022