“समझ गया...मैं समझ गया” - देवकिशन
........ शिशिर कृष्ण शर्मा
रहस्य-रोमांच से भरी ऐसी सभी फ़िल्मों में अमूमन एक किरदार दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खासतौर से आकृष्ट करता है, और वो है भुतहा हवेली, महल या क़िले में अकेला रहने वाला, रहस्यों में लिपटा हुआ चौकीदार, जैसे ‘बीस साल बाद’ का लक्ष्मण...रहस्यमय अंदाज़ में ‘समझ गया...मैं समझ गया’ कहता हुआ| लक्ष्मण का ये किरदार निभाया था देवकिशन जी ने, जो एक उत्कृष्ट लेखक भी थे और जिन्होंने फ़िल्म ‘बीस साल बाद’ के संवाद भी लिखे थे|
एक फ़ैन होने के नाते देवकिशन जी के बारे में जानने, उनसे मिलने और उनका इंटरव्यू करने की मेरी बहुत इच्छा थी, हालांकि उनकी उम्र को देखते हुए मन में कहीं न कहीं शंका भी थी कि पता नहीं वो अब होंगे भी, या नहीं| लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद उनके या उनके परिवार के बारे में किसी भी तरह की कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पा रही थी| अलबत्ता कभी कभार अपुष्ट सूचनाएं ज़रूर मिल जाती थीं जैसे, ‘वो शायद राजस्थानी थे’ या ‘वो यू.पी. के रहने वाले थे और उनका सरनेम शर्मा था’ इत्यादि| लेकिन संयोग से अचानक ही एक रोज़ मुझे उनके बेटे का फ़ोन नंबर मिल गया| उनसे बात हुई, और फिर जल्द ही मुलाक़ात और पिता के बारे में पुत्र से, विस्तार से बातचीत भी हो ही गयी|
देवकिशन जी का जन्म 3 जनवरी 1922 को सरगोधा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है| उनके पिता दीवान बहादुरचंद आहूजा थानेदार थे| पिता ने तीन शादियां की थीं| पहली शादी से दो बेटियां थीं| दूसरी शादी से देवकिशन जी का जन्म हुआ| देवकिशन जी बहुत छोटे थे जब उनकी मां गुज़र गयीं| ऐसे में पिता को पत्नी की बहन यानि देवकिशन जी की मौसी से तीसरी शादी कर लेनी पड़ी| इस शादी से देवकिशन जी के तीन भाई और तीन बहनों का जन्म हुआ|
देवकिशन जी के ननिहाल के ज़्यादातर लोग जूतों के कारोबार में थे| उनकी एक मौसी की शादी लखनऊ की मशहूर ‘अल्फ़ा शू कंपनी’ वाले परिवार में हुई थी, तो दूसरी मौसी के ससुराल वाले दिल्ली की जानीमानी ‘बालूजा शू कंपनी’ के मालिक थे| सरगोधा से बी.ए. तक की पढ़ाई करने के बाद देवकिशन जी अपना कारोबार शुरू करने के उद्देश्य से लखनऊ चले आये| मौसी के परिवार की मदद से देवकिशन जी ने कानपुर में जूतों का कारोबार शुरू किया, लेकिन दुकान चल नहीं पायी| उन्हीं दिनों देश का बंटवारा हुआ तो समूचा आहूजा परिवार सरगोधा से दिल्ली चला आया, जहां उन्हें ‘बालूजा शू कंपनी’ वाले रिश्तेदारों के यहां पनाह मिल गयी| तब तक देवकिशन जी भी कानपुर की दुकान बंद करके दिल्ली आ चुके थे|
देवकिशन जी ने कनाटप्लेस में जूतों का कारोबार शुरू किया, जिसमें उनके दो छोटे भाई भी उनकी मदद करने लगे| लेकिन देवकिशन जी का मन इस काम में नहीं लगा| उनकी दिलचस्पी लेखन और कला में कहीं ज़्यादा थी| इसलिए कारोबार अपने भाईयों को सौंपकर वो रेडियो के लिए लिखने लगे| और फिर उन्हें ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी भी मिल गई| 1950 के दशक के शुरूआती सालों में उनका लिखा रेडियो धारावाहिक ‘वहमी’ बहुत लोकप्रिय हुआ था| लेखन के साथ साथ उन्होंने कई रेडियो नाटकों में हिस्सा भी लिया|
देवकिशन जी अपने साले की शादी में मुंबई आये तो वर्मा बंधुओं में सबसे छोटे, संतराम वर्मा से उनकी दोस्ती हो गई| और इसके साथ ही उनके भीतर का लेखक भी मुंबई में किस्मत आज़माने के लिए छटपटाने लगा| ऐसे में संतराम वर्मा ने उन्हें सहारा दिया और साल 1953 में देवकिशन जी हमेशा के लिए मुंबई चले आये| संतराम वर्मा ने दादर के श्रीसाउन्ड स्टूडियो में स्थित अपना हिस्सा देवकिशन जी को रहने के लिए दे दिया| और फिर साल 1955 में देवकिशन जी ने पत्नी-बच्चों को भी दिल्ली से मुंबई बुलवा लिया| रोज़मर्रा की ज़रूरतों की तरफ़ से वो निश्चिंत थे, क्योंकि दिल्ली की दुकान से उन्हें हर महीने पर्याप्त पैसा मिल जाता था|
देवकिशन जी ने कुछ पंजाबी फ़िल्मों के अलावा ‘औरत’, ‘लाडला’ और ‘बंदिश’ जैसी हिन्दी फ़िल्मों में छोटी छोटी भूमिकाओं से अपना करियर शुरू किया| लेकिन लेखन में उनका मन कहीं ज़्यादा रमता था| उन्हीं दिनों श्रीसाउन्ड स्टूडियो में एक नयी फ़िल्म कंपनी ‘मूवीस्टार्स प्रोडक्शन्स’ का ऑफिस खुला| इस कंपनी के मालिक थे, उस दौर के जाने माने अभिनेता शेखर, जो बतौर हीरो ‘आंखें’, ‘आस’, ‘हमदर्द’, ‘नयाघर’, ‘आंसू’ और ‘चांदनी चौक’ जैसी क़रीब डेढ़ दर्जन फ़िल्में करने के बाद अब फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में हाथ आज़माना चाहते थे|
देवकिशन जी शेखर से मिले और उन्हें अपनी लिखी एक कहानी सुनाई जो शेखर को बेहद पसंद आयी| शेखर ने उस कहानी पर फ़िल्म ‘छोटे बाबू’ बनाई, जो साल 1957 में रिलीज़ हुई थी| देवकिशन जी इस फ़िल्म के प्रोडक्शन कंट्रोलर भी थे| उन्होंने शेखर द्वारा निर्मित अगली दो फिल्में, साल 1958 की ‘आखिरी दांव’ और 1959 की ‘बैंक मैनेजर’ भी लिखीं| फ़िल्म ‘आखिरी दांव’ का प्रोडक्शन संभालने के साथ ही इस फ़िल्म में देवकिशन जी ने एक भूमिका भी की थी| फ़िल्म ‘बैंक मैनेजर’ की उन्होंने कहानी और संवाद लिखे थे| निर्देशक महेश कौल की, साल 1961 की फ़िल्म ‘सौतेला भाई’ के भी वो पटकथा और संवाद लेखक थे|
साल 1962 की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म ‘बीस साल बाद’ ने देवकिशन जी को एक अभिनेता के तौर पर खासी पहचान दी| और एक लेखक के तौर पर भी| आगे चलकर देवकिशन जी ने ‘बिन बादल बरसात’ (1963), ‘फ़रार’ (1965), 'महाचोर’ (1976) और ‘बंद दरवाज़ा’ (1990) जैसी फ़िल्मों का लेखन किया| साथ ही वो अभिनय भी करते रहे| ‘बिन बादल बरसात’ में वो खलनायक थे| ‘आनंद’ (1971) और ‘चुपके चुपके’ (1975) में भी उनके अभिनय को बहुत पसंद किया गया था| उन्होंने 30 से ज़्यादा फ़िल्मों में अभिनय किया था| इसके अलावा उन्होंने निर्देशन में भी हाथ आज़माया था, और वो फ़िल्म थी साल 1973 में प्रदर्शित हुई ’वोही रात वोही आवाज़’| ये एक हॉरर फ़िल्म थी, जिसकी मुख्य भूमिकाओं में राधा सलूजा, समित भंज, सोनिया साहनी और सुजीत कुमार थे|
देवकिशन जी के बड़े बेटे श्री अनिल आहूजा एक निर्देशक हैं, जिन्होंने साल 1965 की फ़िल्म ‘फ़रार’ से एक अप्रेंटिस के तौर पर करियर शुरू किया था| उसके बाद उन्होंने असित सेन को फ़िल्म ‘अनोखी रात’, ‘खामोशी’, ‘मां और ममता’, ‘शराफ़त’, ‘बैराग’ और ‘वकील बाबू‘ में और रवि टंडन को ‘झूठा कहीं का’ से लेकर ‘एक मैं और एक तू’ तक लगभग 10 फ़िल्मों में असिस्ट किया| अनिल जी द्वारा निर्देशित दूरदर्शन धारावाहिक ‘काला जल‘, ‘सरसों के फूल’ और ‘लहू के फूल’ अपने दौर में बेहद लोकप्रिय हुए थे|
देवकिशन जी के छोटे बेटे श्री दीपक आहूजा चंडीगढ़ में रहते हैं, और वो एक व्यवसायी हैं| देवकिशन जी की बेटी सुनीता जी का विवाह लखनऊ के एक संभ्रांत गुलाटी परिवार में हुआ| उनके पति डॉ.नरेंद्र गुलाटी लखनऊ के एक जानेमाने चिकित्सक हैं|
देवकिशन जी जीवन के अंतिम सालों में पुट्टपार्थी के श्री सत्य साईंबाबा के परम भक्त हो गए थे| उनका लेखन पूरी तरह से अपने आराध्य के प्रति भक्तिभाव पर केंद्रित हो गया था| उन दिनों उनके छोटे बेटे श्री दीपक आहूजा मुंबई में, मीरा रोड पर रहते थे, और देवकिशन जी भी दीपक जी के साथ रहते थे|
देवकिशन जी का निधन 82 साल की उम्र में, 5 नवंबर 2003 की रात सोते समय नींद में ही, दीपक जी के घर पर हुआ|
We are thankful to –
Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance, and support.
Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Mr. Gajendra Khanna for the English translation of the write up.
Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
Actor-Writer Devkishan On YouTube Channel BHD
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