‘लागी छूटे ना अब तो सनम’-चन्द्रशेखर
............शिशिर कृष्ण शर्मा
हिंदी सिनेमा के सुनहरी दौर, यानि कि 1960 के दशक तक की फ़िल्मों, और ख़ासतौर से ब्लैक एंड व्हाईट सिनेमा के चाहने वालों के लिए अभिनेता चन्द्रशेखर का नाम अनजाना नहीं है। करियर के शुरूआती 10-12 साल वो परदे पर छोटी-छोटी एक्स्ट्रानुमा भूमिकाओं में नज़र आए। फिर अचानक वक़्त बदला और वो हीरो बन गए। अगले करीब डेढ़ दशकों के दौरान उन्होंने बतौर हीरो क़रीब 35 फ़िल्मों में अभिनय किया और फिर चरित्र अभिनेता बन बैठे। आज भले ही आम दर्शक के ज़हन से उनका नाम क़रीब-क़रीब मिट चुका हो लेकिन 97 साल के हो चुके चन्द्रशेखर मुंबई में ही रहते हैं।
7 जुलाई 1923 को हैदराबाद में जन्मे और पले-बढ़े चन्द्रशेखर वैद्य के मुताबिक़ उनके पिता गौरीशंकर वैद्य हैदराबाद के एक जाने-माने आयुर्वैदिक चिकित्सक थे। तेलुगुभाषी होने के बावजूद चन्द्रशेखर जी की तमाम पढ़ाई-लिखाई उर्दू-फ़ारसी में हुई। चन्द्रशेखरजी कहते हैं, ‘मुझे पहलवानी का बहुत शौक़ था और अखाड़े में अक्सर मुक़ाबलेबाज़ के तौर पर मेरे साथ मेरे क़रीबी दोस्त और आगे चलकर बतौर संगीतकार मशहूर हुए ‘शंकर-जयकिशन’ की जोड़ी के शंकर जी होते थे। ये 1930 के दशक का वाकया है और उस वक़्त हम दोनों किशोरावस्था में थे।‘
उन्हीं दिनों निज़ाम के ख़िलाफ़ आर्यसमाज का आंदोलन शुरू हुआ तो हरेक मुहल्ले से किशोरों और युवाओं की धरपकड़ की जाने लगी। नतीजतन और लड़कों की तरह चन्द्रशेखर जी को भी हैदराबाद छोड़ना पड़ा और वो भागकर बंगलौर पहुंच गए। चन्द्रशेखर जी कहते हैं, ‘बंगलौर में मैंने फ़िल्मों में क़िस्मत आज़मानी चाही लेकिन मेरी तेलुगु इतनी ख़राब थी कि स्टूडियो वालों ने सलाह दी कि बेहतर होगा मैं मुंबई जाकर हिंदी फ़िल्मों में कोशिश करूं। और साल 1941 में मैं मुंबई चला आया। काम की तलाश शुरू हुई। एक रोज़ सड़क चलते एक साहब ने मुझसे पूछा, हीरो बनना है? मैंने ‘हां’ कहा तो उन्होंने साथ ले जाकर मुझे जूनियर आर्टिस्टों की, जिन्हें उन दिनों एक्स्ट्रा कहा जाता था, भीड़ में बैठा दिया। वो साहब फ़िल्मों में एक्स्ट्रा सप्लायर थे। शाम को पैकअप के बाद डेढ़ रूपया मिला और फिर तो ये सिलसिला ही शुरू हो गया। कुछ दिनों बाद ‘डीसेंट एक्स्ट्रा’ के तौर पर मेरी तरक्की हुई और मेरा मेहनताना बढ़कर आठ रूपए रोज़ हो गया।‘
उन दिनों निर्माता-निर्देशक डब्ल्यू.ज़ेड अहमद और उनकी पत्नी नीना के पुणे स्थित शालीमार स्टूडियो में अभिनेताओं की भरती हो रही थी। चन्द्रशेखर जी के मुताबिक़ शमशाद बेगम की, जिनके साथ वो किसी फ़िल्म में बतौर कोरस गायक एक गीत गा चुके थे,सिफ़ारिश पर उन्हें 60 रूपए महिने के वेतन पर शालीमार स्टूडियो में नौकरी पर रख लिया गया। ये साल 1945 का वाकया है। शालीमार स्टूडियो में उन्हें जोश मलीहाबादी, अख़्तर उल ईमान, कृष्णचंदर और पंडित भरत व्यास जैसे गुणी लोगों के साथ काम करने का मौक़ा मिला।
चन्द्रशेखर जी कहते हैं, ‘पंडित भरत व्यास के निर्देशन में मैंने बतौर सहनायक फ़िल्म ‘रंगीला राजस्थान’ की, जिसके नायक भारतभूषण थे। उस फ़िल्म में मैं सहनिर्देशक भी था। शालीमार स्टूडियो की ही साल 1946 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘पृथ्वीराज संयुक्ता’ में भी मैंने अभिनय किया था। उस फ़िल्म की मुख्य भूमिकाएं पृथ्वीराज कपूर और नीना ने निभाई थीं। लेकिन तभी मुल्क़ का बंटवारा हुआ, डब्ल्यू.ज़ेड अहमद और नीना पाकिस्तान चले गए और शालीमार स्टूडियो बंद हो गया।
साल 1948 में गांधी की हत्या हुई तो महाराष्ट्र भर में ब्राह्मणों के ख़िलाफ़ दंगे भड़क उठे। ऐसे में चन्द्रशेखर जी को पुणे छोड़कर मुंबई आना पड़ा, जहां नए सिरे से काम की तलाश शुरू हुई। वी.शांताराम के राजकमल स्टूडियो में निर्देशक केशवराव दाते से मुलाक़ात हुई तो उनकी सिफ़ारिश पर चन्द्रशेखर जी को राजकमल में नौकरी मिल गयी। चन्द्रशेखर जी ने उस बैनर की फ़िल्मों ‘अपना देश’ (1949) और ‘दहेज’ (1950) में तो अभिनय किया ही, साथ में एडिटिंग भी सीखी। लेकिन कुछ समय बाद निजी वजहों से उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी।
चन्द्रशेखर जी अब फिर से काम की तलाश में थे। अभिनेता भारतभूषण के बड़े भाई निर्माता आर.चन्द्रा उन दिनों भगवान हाजेला के निर्देशन में फ़िल्म ‘बेबस’ बना रहे थे, जिसकी शूटिंग लखनऊ के आईडियल स्टूडियो में चल रही थी। अपने क़रीबी दोस्त भारतभूषण के कहने पर चन्द्रशेखर जी लखनऊ चले गए। फ़िल्म ‘बेबस’ में उन्होंने बतौर सहायक-निर्देशक तो काम किया ही, साथ में एक अहम भूमिका भी निभाई। भारतभूषण और पूर्णिमा की मुख्य भूमिकाओं वाली ये फ़िल्म साल 1950 में रिलीज़ हुई थी।
चन्द्रशेखर जी कहते हैं, ‘फ़िल्म ‘बेबस’ मेरे करियर के लिए बेहद अहम साबित हुई। इस फ़िल्म में मेरे काम को देखकर मुझे एक बार फिर से ‘राजकमल‘ से बुलावा आया और वी.शांताराम जी ने मुझे फ़िल्म ‘सुरंग’ में बतौर हीरो साईन कर लिया। कोल्हापुर में फ़िल्म की शूटिंग शुरू हुई। उल्हास खदान के मालिक और मैं मज़दूर नेता की भूमिका में था। एक रोज़ शांताराम जी ने मुझे पूरी यूनिट के सामने बुरी तरह से डांट दिया। वजह क्या थी, मैं समझ ही नहीं पाया। इस अपमान से मैं बेहद ग़ुस्से में था, लेकिन भारतभूषण जी के समझाने पर मुझे फ़िल्म छोड़ने का अपना फ़ैसला वापस लेना पड़ा। बाद में शांताराम जी ने बताया कि उन्होंने मुझे इसलिए डांटा था ताकि मुझे ग़ुस्सा आए और सीन की ज़रूरत के मुताबिक़ चेहरे पर ग़ुस्से के सही भाव मिल सकें।‘
सही मानों में ‘सुरंग’ (1953) ही वो फ़िल्म थी जिसने चन्द्रशेखर जी को पहचान दिलाई। इसके बाद ‘कवि’, ‘मस्ताना’ (दोनों 1954), ‘बारादरी’ (1955), ज़िंदगी के मेले’ (1956), ‘बाग़ी सिपाही’, ‘टैक्सी स्टैंड’ ( दोनों 1958), ‘काली टोपी लाल रूमाल’ (1959), ‘बरसात की रात’ (1960), ‘तेल मालिश बूट पॉलिश’ (1961), ‘बात एक रात की’ ‘किंगकांग’ (दोनों 1962) के अलावा दादा भगवान की ‘भला आदमी’, ‘सच्चे का बोलबाला’ (दोनों 1958) और ‘हम दीवाने’ (1965) और निर्माता सी.एम.त्रिवेदी की 16 फ़िल्मों में चन्द्रशेखर जी ने नायक और सह-नायक की भूमिकाएं निभाईं।
चन्द्रशेखर जी कहते हैं, ‘फ़िल्म ‘भला आदमी’ के गीत ‘हमसे करेगा जो मुक़ाबला, मार खाना पड़ेगा...’ पर कुश्ती जीते दो पहलवानों के साथ मुझे भी डांस करना था। डांस मुझे आता नहीं था इसलिए दादा भगवान को मजबूरन मुझे एक पहलवान के कंधे पर बैठाकर ये गीत शूट करना पड़ा। अपनी इस कमज़ोरी पर मुझे बेहद शर्म आयी। लेकिन मैंने इसे एक चुनौती के तौर पर लेते हुए डांस सीखना शुरू किया और जल्द ही अच्छे डांसरों में गिना जाने लगा। बतौर निर्माता-निर्देशक मैंने दो फ़िल्में ‘चा चा चा’ (1964) और ‘स्ट्रीट सिंगर’ (1966) बनाईं और इन दोनों ही फ़िल्मों में मैं डांसिंग हीरो था।‘
‘भवदीप पिक्चर्स’ के बैनर में चन्द्रशेखर जी की बनाई दोनों ही फ़िल्में कामयाब रहीं। इक़बाल क़ुरैशी द्वारा संगीतबद्ध फ़िल्म ‘चा चा चा’ में चन्द्रशेखर जी की हिरोईन हेलन थीं तो ‘स्ट्रीट सिंगर’ में सरिता। ‘स्ट्रीट सिंगर’ का संगीत चन्द्रशेखर जी के दोस्त और शंकर-जयकिशन की जोड़ी के शंकर जी ने तैयार किया था, लेकिन व्यावसायिक कारणों से उन्हें क्रेडिट्स में अपने असली नाम के बजाय एक अलग नाम ‘सूरज’ देना पड़ा था।
चन्द्रशेखर जी कहते हैं, ‘क़रीब 35 फ़िल्में बतौर हीरो करने के बाद फ़िल्म ‘कटी पतंग’ (1970) से मैं चरित्र अभिनेता बन गया। ‘महबूबा’(1976), ‘अजनबी’ (1974), ‘साजन बिना सुहागन’ (1978), ‘नमक हलाल’ (1982), ‘कुली’ (1983), ‘शराबी’ (1984), ‘आज की आवाज़’ (1984), ‘आवाम’ (1987) जैसी कई फ़िल्में इस दौर में कीं। इसके अलावा ‘रामायण’, ‘रंज़िश’, ‘कमांडर’ जैसे कुछ टेलिविज़न सीरियल भी किए। और फिर बढ़ती उम्र के साथ अभिनय को अलविदा कह दिया।
अभिनय से दूर होने के बाद भी चन्द्रशेखर जी फ़िल्मों से संबंधित लोगों के हित में काम करने वाली ‘सिने फ़ेडरेशन’, ‘इम्पा’, ‘इंडियन फ़िल्म डायरेक्टर्स एसोसिएशन’, ‘सिने एंड टी.वी.आर्टिस्ट एसोसिएशन’, ‘फ़िल्म राईटर्स एसोसिएशन’, ‘सुर सिंगार संसद’ जैसी कई संस्थाओं से लंबे समय तक जुड़े रहे। और फिर वो पूरी तरह से सेवानिवृत्त हो गए। कुछ साल पहले पत्नी के गुज़रने के बाद से चन्द्रशेखर जी अंधेरी (पश्चिम) के वी.पी.रोड स्थित अपने बंगले ‘भवदीप’ में अकेले रहते हैं। उनका बेटा और बेटी भी उनके घर के आसपास ही रहते हैं और अपने पिता की तमाम ज़रूरतों का ख़्याल रखते हैं।
चंद्रशेखर जी का दोहता (बेटी का बेटा) शक्ति अरोड़ा भी अभिनेता हैं और टी.वी.सीरियल्स का एक जानामाना नाम हैं|
चंद्रशेखर जी का निधन 16 जून 2021 को 98 साल की उम्र में, मुम्बई में हुआ|
We
are thankful to –
Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Ms.
Aksher Apoorva, Mr. Gajendra Khanna for the English
translation of the write ups.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video
editing.
‘Laagi Chhoote Na Ab To Sanam’ - Chandrashekhar
............Shishir Krishna Sharma
For the admirers of the golden era of Hindi cinema, namely films made till the 1960’s decade, and especially of the black and white cinema, the name of the actor Chandrashekhar is not unfamiliar. At the beginning of his career for the first 10-12 years he was seen onscreen in various small extra roles. And then suddenly his stars changed, and he became a hero. For the next one and a half decades he did almost 35 films as the main lead and then went on to become a character artist. Though today his name may have faded from the memories of the audience, the 97 year old Chandrashekhar still resides in Mumbai.
Born on 7th July 1923 in Hyderabad and raise there, according to Chandrashekhar Vaidya his father Gaurishankar Vaidya was a well-known Ayurvedic doctor in Hyderabad. Despite Telgu being his mother tongue Chandrashekhar ji’s entire education was done in Urdu-Farsi. Chandrashekhar ji says, “I was very fond of wrestling and most of the time my opponent in the arena would be my close friend who went on to become famous as music composer duo ‘Shankar-jaikishan’s’ Shankar ji. This anecdote is of the 1930’s and we were both teenagers at that time.”
In those days due to the Arya Samaj’s revolution against the Nizam a crackdown against the adolescents and the youth of the time had begun. Consequentially like all other youths Chandrashekhar ji had to leave Hyderabad and thus he ran away to Bangalore. Chandrashekhar ji says, “In Bangalore I wanted to try my luck at films but my Telgu was so bad that the studio people advised me that I would be better to go to Mumbai and to try my luck in Hindi films. And in the year 1941 I came to Mumbai. Thus, my search for work started. One day while walking on the street a gentleman asked me, ‘Do you want to be a hero?’ I answered ‘yes’ and he took me with him and placed me in the crowd with the junior artists who were called extras at that time. That gentleman used to supply extras (junior artists) in movies. In the evening after pack up I got 1 rupee and 50 paise and then this process kept going on. After some days I was promoted to what we called a ‘decent extra’ and my salary increased to 8 rupees per day.”
At this time actors were being employed at producer-director W.Z.Ahmed and his wife Nina’s Shalimar Studio situated in Pune. According to Chandrashekhar ji at Shamshad Begum’s insistence, with whom he had sung a song as a chorus singer, he was employed at Shalimar Studio at a monthly salary of 600 rupees. This incident took place in the year 1945. At Shalimar Studio’s he got the opportunity to work with many talented people like Josh Malihabadi, Akhtar Ul Iman, Krishan Chander and Pt. Bharat Vyas.
Chandrashekhar ji says, ‘under Pt. Bharat Vyas’s direction I did the film ‘Rangila rajasthan’ as a side hero, whose main lead was Bharat Bhushan. I was also the assistant director for the film. I also acted in Shalimar Studio’s film ‘Prithviraj Sanyukta’ which was released in the year 1946. The main leads of the film were Prithviraj Kapoor and Nina. But at that time due to partition of the country, W.Z.Ahmed and Nina migrated to Pakistan and Shalimar Studio was shut down.
With Gandhi’s assassination in 1948, riots were sparked against the Brahmins in Maharashtra. Hence Chandrashekhar ji was forced to leave Pune for Mumbai where once again he had to start afresh. He met director Keshav Rao Date at V.Shantaram’s Rajkamal Studio and on his recommendation Chandrashekhar ji got a job at Rajkamal. Chandrashekhar ji not only worked in two films of the banner ‘Apna Desh’ (1949) and ‘Dahej’ (1950), he also learned editing there. But due to some personal issues, he soon left that job.
Once again Chandrashekhar ji was in search of work. Producer R.Chandra, elder brother of actor Bharat Bhushan, was making the film ‘Bebus’ under the direction of Bhagwan Hajela and its shooting was taking place at Lucknow’s Ideal Studio. On his close friend Bharat Bhushan’s insistence Chandrashekhar ji went to Lucknow. He not only worked as an assistant director in film ‘Bebus’ he also essayed an important role in the movie. Featuring Bharat Bhushan and Poornima in the main roles the film was released in the year 1950.
Chandrashekhar ji says, “Film ‘Bebus’ proved to be very important for my career. After seeing my work in this movie I once again received a call from ‘Rajkamal’ and eventually V.Shantaram signed me as the lead for his film ‘Surang’. Shooting of the film commenced in Kolhapur. Ulhas was playing the role of a mine owner and I was playing the role of a labor union leader. One day Shantaram shouted at me very badly in front of the whole unit. I couldn’t understand why he had done so. I had felt very insulted and was very angry, but after being counseled by Bharat Bhushan ji I had to retract my decision to leave the film. Later on Shataram ji explained to me that he had shouted at me so that I would get angry and as per the scene’s requirement I would have the right expressions of anger on my face.”
In reality ‘Surang’ (1953) was the film that gave Chandrashekhar ji his identity. After this he did movies like ‘Kavi’, ‘Mastana’ (both 1954), ‘Baradari’ (1955), ‘Zindagi Ke Mele’ (1956), ‘Baagi Sipahi’, ‘Taxi Stand’ (both 1958), ‘Kaali Topi Laal Roomal’ (1959), ‘Barsaat Ki Raat’ (1960), ‘Tel Malish Boot Polish’ (1961), ‘Baat Ek Raat Ki’, ‘King Kong’ (both 1962) other than Dada Bhagwan’s ‘Bhala Aadmi’, ‘Sachche Ka Bolbala’ (both 1958) and ‘Hum Deewane’ (1965) and 16 of producer C.M.Trivedi’s films where he played the hero and side hero.
Chandrashekhar ji says, “In film ‘Bhala Aadmi’s’ song ‘hamse karega jo muqaabla maar khana padega…’ I had to dance with two wrestlers after they win a competition. I didn’t know how to dance that’s why Dada Bhagwan had no choice but to place me on a wrestlers shoulder and shoot the entire song. I felt very ashamed at my drawback. But I took this weakness as an opportunity and started learning dance and soon enough my name was being counted among the good dancers. As a producer-director I made two films ‘Cha Cha Cha’ (1964) and ‘Street Singer’ (1966) and in both the films I was a dancing hero.”
Both these films made by Chandrashekhar ji under the banner of ‘Bhav Deep Pictures’ were successful. Chandrashekhar ji’s heroine in the film ‘Cha Cha Cha’ which was musically composed by Iqbal Qureshi was Helen and in the film ‘Street Singer’ his heroine was Sarita. Film ‘Street Singer’s music was given by Chandrashekhar ji’s friend and the duo Shankar-jaikishan’s Shankarji, but, due to professional reasons instead of giving his real name in the credits he had to use a different alias viz, ‘Sooraj’.
Chandrashekhar ji says, “After doing almost 35 films as a hero with the film ‘Kati Patang’(1970) I became a character artist. I did many films like ‘Mehbooba’(1976), ‘Ajnabi’ (1974), ‘Saajan Bina Suhagan’ (1978), ‘Namak Halaal’ (1982), ‘Coolie’ (1983), ‘Sharabi’ (1984), ‘Aaj Ki Awaaz’ (1984), ‘Awaam’ (1987) during this time. Other than these movies I did a few T.V. serials like ‘Ramayan’, ‘Ranzish’ and ‘Commander’. And then with my increasing years I finally bid farewell to acting.”
Even after leaving acting Chandrashekhar ji was associated with many associations like ‘Cine Federation’, ‘IMPPA’, ‘Indian Film Director’s Association’, ‘CINTAA’, ‘Film Writer’s Association’, ‘Sur Singaar Sansad’ which worked in favor of people attached with the film industry. And then finally he took complete retirement. His wife passed away a few years back and since them he lives alone in his bungalow ‘Bhav Deep’ situated at Andheri (West)’s V.P.Road. His son and daughter stay close by and take good care of their father’s every need.
Chandrashekhar ji’s grandson (daughter’s son) Shakti Arora is also an actor and is a known face of TV shows.
Chandrashekhar ji died in Mumbai on 16 June 2021 at the age of 98.
Very informative writing. Chander Shekerji services to old, forgotten and needy actors and extras are commendable and will be remembered forever. He is a true and dynamic leader. However I have noted that there is no hint of his career in television. Can anyone forget his role and acting in Ramanad Sagar's RAMAYAN.
ReplyDeleteI pray for his long and healthful life.
Pashambay Baloch
Karachi Sindh
Very interesting information, Shishir ji, as usual!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteCHANDRASHEKHARJI IS HANDSOME LOOKING ARTIST AND VERY WELL DANCER. HE HAS PERFORM VERY WELL IN BAAT EK RAAT KI
ReplyDeleteVINOD DAVE
I salute respected Chandrashekar Ji because the song " laagi choote na " is my all time favourite song. What a brilliant melodious song. Superb! Invoking memories of by gone days that were so simple and sweet. Although he is older than my parents this song is like a blast from the past! Perhaps a song remembered from my days I my mother's womb!
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