“ऋतु आए ऋतु जाए सखी री” - निम्मी
............शिशिर कृष्ण शर्मा
साल 1949
में बनी राजकपूर की फिल्म ‘बरसात’ से संगीतकार जोड़ी ‘शंकर जयकिशन’ और उत्कृष्ट गीतकारों ‘शैलेन्द्र’ और ‘हसरत जयपुरी’ के साथ ही एक बेमिसाल अभिनेत्री ने भी हिंदी सिनेमा में कदम रखा था, जिसका नाम आज भी दर्शकों के ज़हन में ताज़ा है। और वो नाम है ‘निम्मी’ का। ये अलग बात है कि ‘बरसात’ की ज़बर्दस्त कामयाबी ने जहां शंकर जयकिशन, शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी को ‘आर.के.’ की टीम का अटूट हिस्सा बना डाला वहीं निम्मी के लिए ये इस बैनर की पहली और आख़िरी फ़िल्म साबित हुई। इसके बावजूद बेपनाह ख़ूबसूरती और सहज अभिनय के दम पर निम्मी बहुत जल्द अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब रहीं।
18 फ़रवरी 1933 को जन्मीं निम्मी के अब्बा मेरठ के रहने वाले थे। एक मुलाक़ात के दौरान निम्मी ने बताया था कि उनके दादा एक रईस सरकारी ठेकेदार थे जिनके गुज़रने के बाद निम्मी के अब्बा कारोबार को ठीक से संभाल नहीं पाए और धीरे धीरे सब कुछ लुटा बैठे। निम्मी कहती हैं, ‘मेरी मां आगरा से
24 मील (40 किलोमीटर) दूर फ़तेहाबाद क़स्बे की रहने वाली थीं और मेरा जन्म अपने ननिहाल में हुआ था। कारोबार डूबने के बाद अब्बा को रोज़ी-रोटी की तलाश में परिवार को साथ लेकर मजबूरन कोलकाता जाना पड़ा जहां पड़ोस में रहने वाले ए.आर.कारदार से हमारे पारिवारिक रिश्ते बन गए। हमारे हालात पर तरस खाकर ए.आर.कारदार ने अब्बा को जज का एक छोटा सा रोल दिया लेकिन कैमरा और लाईटें देखकर अब्बा घबराकर भाग खड़े हुए’।
उस ज़माने में प्लेबैक का चलन नहीं था और अभिनेताओं को कैमरे के सामने ख़ुद ही गाना पड़ता था। निम्मी के मुताबिक़ अपनी पत्नी के दबाव पर कारदार ने उसी फ़िल्म में निम्मी की मां वहीदन को जोगन के रोल में एक गीत गाने का मौक़ा दिया जो उनकी ज़िंदगी का अहम मोड़ साबित हुआ। उस फ़िल्म को देखकर ‘रणजीत मूवीटोन’ के मालिक सरदार चंदूलाल शाह ने 500 रूपए महिने के वेतन पर वहीदन को मुंबई बुलवा लिया।
वहीदन ने ‘रणजीत मूवीटोन’ की फ़िल्मों ‘पृथ्वीपुत्र’, ‘प्रोफ़ेसर वूमन एम.एस.सी.’, ‘रिक्शावाला’, ‘सेक्रेट्री’ (सभी 1938), ‘ठोकर’ (1939) और ‘सागर फ़िल्म कंपनी’ की महबूब द्वारा निर्देशित ‘अलीबाबा’ (1940) जैसी फ़िल्मों में काम किया। लेकिन अचानक तबीयत बिगड़ जाने की वजह से उन्हें वापस अपने मायके फ़तेहाबाद जाना पड़ा जहां कुछ ही दिनों बाद उनका निधन हो गया। उस वक़्त निम्मी की उम्र महज़ 7
साल थी।
निम्मी कहती हैं, ‘मेरे नाना ज़मींदार थे और मां के गुज़रने के बाद मैं ननिहाल में ही रहने लगी थी। उस वक़्त तक मेरी मौसी सितारा भी ज्योति के नाम से फ़िल्मों में कदम रख चुकी थीं। ज्योति ने ‘सागर मूवीटोन’ की ‘कॉमरेड्स’, ‘एक ही रास्ता’ (दोनों 1939), ‘नेशनल स्टूडियोज़’ की ‘संस्कार’ और महबूब निर्देशित ‘औरत’, (दोनों 1940) और विजय भट्ट की ‘दर्शन’ (1941) जैसी फ़िल्मों में काम किया था। उनकी शादी गायक-अभिनेता जी.एम.दुर्रानी से हुई थी’।
(तमाम कोशिशों के बावजूद इस बात की पुष्टि नहीं हो पायी कि कोलकाता में ए.आर.कारदार की वो कौन सी फ़िल्म थी जिसमें वहीदन ने पहली बार अभिनय किया था। उधर मशहूर कथक-डांसर सितारा देवी के मुताबिक़ वहीदन आगरा की मशहूर गाने वाली थीं और अजमेर शरीफ़ में, ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर होने वाले सालाना उर्स में उनका गाना सुनकर महबूब ने उन्हें मुंबई बुलाया था। सितारा देवी के मुताबिक़ वहीदन की छोटी बहन सितारा को नया नाम ‘ज्योति’ सितारा देवी ने ही दिया था।)
निम्मी के मुताबिक़ देश आज़ाद हुआ तो दंगे-फ़साद से बचने के लिए उन्हें अपने मौसी-मौसा के पास मुंबई आना पड़ा। उस वक़्त उनकी उम्र क़रीब 15 साल थी। वहीदन और ज्योति की वजह से महबूब निम्मी को भी पहले से जानते थे| एक रोज़ उन्होंने निम्मी को ताड़देव के ‘सेंट्रल स्टूडियोज’ में चल रही अपनी फ़िल्म ‘अंदाज़’ की शूटिंग देखने के लिए बुलाया। फ़िल्म ‘अंदाज़’ के दो नायकों में से एक राजकपूर उन दिनों बतौर निर्माता-निर्देशक फ़िल्म ‘बरसात’ बना रहे थे।
राजकपूर ने ‘अंदाज़’ के सेट पर मौजूद निम्मी को देखा तो उन्हें फ़िल्म ‘बरसात’ का एक अहम रोल ऑफर कर दिया। इस तरह निम्मी के फ़िल्मी सफ़र की शुरूआत हुई। फ़िल्म ‘बरसात’ में निम्मी के हीरो प्रेमनाथ थे और इस फ़िल्म के मशहूर गीत ‘जिया बेक़रार है’, ‘बरसात में हमसे मिले तुम सजन’ और ‘पतली कमर है, तिरछी नज़र है’ निम्मी पर फ़िल्माए गए थे। निम्मी को, जिनका असली नाम ‘नवाब बानो’ है, राजकपूर ने ही फ़िल्म ‘बरसात’ में ये फ़िल्मी नाम ‘निम्मी’ दिया था।
क़रीब 17 सालों के करियर के दौरान निम्मी ने कुल 46 फ़िल्मों में काम किया। फ़िल्म ‘बरसात’ (1949) के बाद उन्हें ‘आर.के.’ की किसी और फ़िल्म में काम करने का तो मौक़ा नहीं मिला लेकिन ‘दुर्गा पिक्चर्स’ की फ़िल्म ‘बावरा’ (1950) में ज़रूर वो राजकपूर की नायिका के तौर पर नज़र आयीं। ‘जलते दीप’, ‘राजमुकुट’, ‘वफ़ा’ (सभी 1950), ‘बड़ी बहू’, ‘बेदर्दी’, ‘बुज़दिल’, ‘सज़ा’, ‘सब्ज़बाग़’ (1951) जैसी फिल्मों के बाद दूसरी बड़ी कामयाबी उन्हें फ़िल्म ‘दीदार’ (1951) में मिली। इस फ़िल्म में उन्हें पहली बार दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौक़ा मिला था।
दिलीप कुमार के साथ निम्मी ने कुल 5
फ़िल्में ‘दीदार’ (1951), ‘आन’ (1952), ‘दाग़’ (1952), ‘अमर’ (1954) और ‘उड़नखटोला’ (1955) कीं। इनमें ‘अमर’ के अलावा बाक़ी सभी फ़िल्में बेहद कामयाब रहीं, हालांकि ‘अमर’ ने भी समालोचकों की ख़ूब तारीफ़ें बटोरीं। ‘सज़ा’ (1951) और ‘आंधियां’ (1952) में निम्मी के हीरो देव आनंद थे तो शेखर के साथ उन्होंने 5 फ़िल्मों, ‘बड़ी बहू’, ‘सब्ज़बाग़’ (दोनों 1951), ‘हमदर्द’ (1953), ‘शिकार’ (1955) और ‘छोटे बाबू’ (1957) में काम किया।
फ़िल्म ‘बेदर्दी’ (1951) में निम्मी ने रोशन के संगीत में एक गीत ‘ननदिया जाने दे न, मोरी जनम जनम की प्रीत री’ भी गाया था। उधर ‘आन’ (1952) भारत में बनी पहली टेक्नीकलर फ़िल्म थी, और अभिनेत्री नादिरा की भी ये पहली फ़िल्म थी। निम्मी के मुताबिक़ फ़िल्म ‘आन’ में निभाया मंगला नाम का उनका चरित्र इतना मशहूर हुआ था कि इस फ़िल्म के तमिल और अंग्रेज़ी संस्करण कई जगहों पर ‘मंगला’ नाम से रिलीज़ किए गए थे।
भारतभूषण के साथ निम्मी की तीनों फ़िल्में ‘बसंत बहार’
(1956), ‘सोहनी महिवाल’ (1958) और ‘अंगुलीमाल’ (1960) भी बेहद पसंद की गयीं। 1950
के दशक में उनका करियर अपनी बुलंदियों पर रहा। 1960 के दशक में उन्होंने ‘शमा’ (1961), ‘मेरे महबूब’ (1963),
‘दाल में काला’ और ‘पूजा के फूल’ (दोनों 1964) जैसी फ़िल्मों में नायिका, सहनायिका और चरित्र भूमिकाएं कीं और फिर बदलते वक़्त के रूख़ को भांपकर साल 1965 में बनी फ़िल्म ‘आकाशदीप’ के बाद ‘आन’, अंदाज़’, ‘अमर’, ‘मदर इंडिया’ जैसी फ़िल्मों के संवाद लेखक और ‘प्राण जाए पर वचन न जाए’ के निर्देशक अलीरज़ा के साथ शादी करके अभिनय से सन्यास ले लिया।
1960 के दशक की शुरूआत में निर्माता-निर्देशक के.आसिफ़ ने गुरूदत्त और निम्मी को लेकर लैला-मजनूं की कहानी पर फ़िल्म ‘लव एंड गॉड’ का निर्माण शुरू किया था जो साल 1964 में गुरूदत्त के गुज़रने की वजह से अटक गयी थी। कुछ समय बाद गुरूदत्त की जगह संजीवकुमार को लेकर के.आसिफ़ ने दोबारा शूटिंग शुरू की।
लेकिन साल 1971 में अचानक ही के.आसिफ़ के गुज़र जाने से फ़िल्म ‘लव एंड गॉड’ अधूरी रह गयी थी। निर्माता-निर्देशक के.सी.बोकाड़िया की कोशिशों से ये फ़िल्म क़रीब 15 सालों बाद 1986 में रिलीज़ हुई थी, और ये निम्मी की आख़िरी फ़िल्म साबित हुई।
निम्मी जो पहले वर्ली में रहती थीं, कुछ साल पहले जुहूतारा रोड पर शिफ़्ट हो चुकी थीं। अलीरज़ा साल 2007 में गुज़रे| सिनेमा से निम्मी का रिश्ता भले ही टूट चुका हो लेकिन हिंदी सिनेमा से जुड़े सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से वो आज भी पीछे नहीं रहतीं।
निम्मी का निधन 25 मार्च 2020 को 87 साल की उम्र में मुम्बई में हुआ|
We are thankful to –
Mr.
Harish Raghuvanshi, Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ & Mr. Biren Kothari for
their valuable suggestion, guidance, and support.
Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Ms.
Akhsher Apoorva for editing the English translation of the write up.
Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
“Ritu Aaye Ritu Jaaye Sakhi Ri” - Nimmi
…...Shishir
Krishna Sharma
With Raj Kapoor’s film
‘Barsaat’ made in 1949 an actress extraordinaire along with music composer duo ‘Shankar Jaikishan’
and prominent
songwriters ‘Shailendra’ and ‘Hasrat jaipuri’
were introduced in Hindi cinema. That actresses name is still fresh in the mind
of the audience and that name is ‘Nimmi’. That’s another thing that while
after ‘Barsaat’s’
huge success Shankar
Jaikishan, Shailendra and Hasrat jaipuri became an integral part of R.K.’s team, It proved to be Nimmi’s first and last
film with this banner. But despite this, because of her appealing beauty and
effortless acting, Nimmi was soon enough able to create an identity for
herself.
Born on 18th February 1933, Nimmi’s father used to reside in Meerut. During one of our meetings Nimmi told me that her grandfather used to be a very rich government contractor after whose death Nimmi’s father couldn’t handle the business too well and eventually lost everything. Nimmi says, “My mother’s maternal hometown was 24 miles (40 kilometers) away from Agra and I was born at my maternal grandmother’s house. After the business had taken a bad hit my father was in search of employment and had to move the entire family to Kolkata where we became very close to A.R.Kardar who used to reside in our neighborhood. Taking pity on our conditions, A.R.Kardar gave my father a small role of a judge but as soon as he saw the camera and lights my father got scared and ran away.”
In that era playback hadn’t become a trend yet and actors had to sing their own songs in front of the camera. According to Nimmi, on his wife’s insistence, A.R.Kardar gave Nimmi’s mother Wahidan the role of a jogan and a chance to sing a song which proved to be a turning point in their lives. After seeing that film the owner of ‘Ranjit Movietone’, Sardar Chandulal Shah, called Wahidan to Mumbai on a salary of 500 rupees per month.
Wahidan worked in films like ‘Ranjit Movietone’s’ ‘Prithvi Putra’, ‘Professor Woman M.Sc.’, ‘Richshawwala’, ‘Secretary’ (all 1938), ‘Thokar’ (1939) and ‘Sagar Film Company’s’ ‘Alibaba’ (1940) which was directed by Mehboob. But due to sudden health troubles she had to go back to her maternal hometown Fatehabad where in just a matter of days she died. Nimmi was 7 years old at that time.
Nimmi says, “My maternal grandfather was a landlord and after my mother’s death I was raised at my grandparents’ house. By that time my aunt Sitara had also stepped in the film world and was known as Jyoti. Jyoti had worked in films like ‘Sagar Movietone’s’ ‘Comrades’, ‘Ek Hi Rasta’ (both 1939), ‘National Studios’s’ ‘Sanskaar’ and ‘Aurat,’ which was directed by Mehboob, (both 1940) and Vijay Bhatt’s ‘Darshan’ (1941). She was married to singer-actor G.M.Durrani.”
(Despite our best efforts, we couldn’t verify the name of the A.R.Kardar film which was made in Kolkata where Wadihan had faced the camera for the first time. On the otherhand as per the famous Kathak dancer Sitara Devi, Wahidan was a famous singer in Agra and Mehboob had heard her singing at Ajmer Sharif’s Khwaja Moinuddin Chishti’s Dargah’s yearly Urs and had called her to Mumbai. According to Sitara Devi she herself had given the name Jyoti to Wahidan’s younger sister Sitara)
As per Nimmi, after the country gained its independence she had to go to her aunt and uncles place in Mumbai in fear of the ensuing riots. She was around 15 years old at that time. Mehboob knew Nimmi from before because of Wahidan and Jyoti and hence one day he called her to see the shoot of his film ‘Andaz’ at Tardeo’s ‘Central Studios’. Of the two male leads of the film ‘Andaz’, Raj Kapoor was producing and directing the film ‘Barsaat’.
Raj Kapoor saw Nimmi on the sets of ‘Andaz’ and offered her a important role in his film ‘Barsaat’. And so began Nimmi’s film career. Prem Nath was paired opposite Nimmi in ‘Barsaat’ and the famous songs ‘jiya beqaraar hai’, ‘Barsaat me hum se mile tum sajan’ and ‘patli kamar hai tirchhi nazar hai’ were shot on Nimmi. Raj kapoor had given Nimmi, whose real name is ‘Nawab Bano’, her screen name ‘Nimmi’ in the film ‘Barsaat’.
In a career spanning almost 17 years, Nimmi worked in a total of 46 movies. After ‘Barsaat’ (1949), she didn’t get a chance to work in any of ‘R.K.’s’ films again but she was paired opposite him in ‘Durga Pictures’s’ ‘Baawra’ (1950). After films like ‘Jalte Deep’, ‘Raj Mukut’, ‘Wafa’ (all 1950), ‘Badi Bahu’, ‘Bedardi’, ‘Buzdil’, ‘Saza’, ‘Sabzbaag’ (1951) her next big success was the film ‘Deedar’ (1951). She got the chance to work with Dilip Kumar for the first time in this film.
Nimmi did a total of 5 films with Dilip Kumar, viz. ‘Deedar’ (1951), ‘Aan’ (1952), ‘Daag’ (1952), ‘Amar’ (1954) and ‘Uran Khatola’ (1955). Except ‘Amar’ all these films were very successful, although, ‘Amar’ did gain a lot of critical acclaim. Where Dev Anand was paired opposite Nimmi in ‘Saza’ (1951) and ‘Andhiyaan’ (1952), she did 5 films - ‘Badi Bahu’, ‘Sabzbaag’ (both 1951), ‘Humdard’ (1953), ‘Shikaar’ (1955) and ‘Chhote Babu’ (1957) opposite Shekhar.
Nimmi had also sung a song ‘nanadiya jaane de na, mori janam janam ki preet ri’ composed by Roshan in film ‘Bedardi’ (1951). Where as ‘Aan’ (1952) was india’s first Technicolor Movie and was actress Nadira’s first film. According to Nimmi her character in film ‘Aan’ called Mangala had become so famous that the films Tamil and English versions were released as ‘Mangala’ in many places.
Nimmi’s films ‘Basant Bahaar’ (1956), ‘Sohni Mahiwal’ (1958) and ‘Angulimal’ (1960) with Bharat Bhushan were much liked as well. Her career was at its peak in the 1950’s decade. During the 1960’s decade she worked as the main lead, co-star and character artist in movies like ‘Shama’ (1961), ‘Mere Mehboob’ (1963), ‘Daal Me Kaala’ and ‘Pooja Ke Phool’ (both 1964) and then sensing the changing tides of time after the 1965 film ‘Akshdeep’ she married Ali Raza who was the dialogue writer for films like ‘Aan’, ‘Andaaz’, ‘Amar’, ‘Mother India’ and was the writer director of ‘Pran Jaaye Par Vachan Na Jaaye’ and retired from her filmi career.
During the beginning of the 1960 decade, producer-director K.Asif had started making a film with Guru Dutt and Nimmi called ‘Love and God’ based on the story of Laila Majnu, but had to stop its shooting due to the demise of Guru Dutt in 1964. After some time K.Asif casted Sanjeev Kumar in place of Guru Dutt and started the shooting of the movie once again. But due to the sudden demise of K.Asif in 1971, the film ‘Love and God’ remained incomplete. After the efforts of producer-director K.C.Bokadia the film was released 15 years later in 1986 and subsequently this proved to be Nimmi’s last film.
Nimmi used to live in Worli but had shifted to Juhu Tara Road a few years back. Ali Raza’s died in 2007. Nimmi might have broken her ties with the cinematic world but, even today, she enthusiastically participates in several functions associated to Hindi cinema.
Nimmi died in Mumbai on 25 March 2020 at the age of 87.
For the first time I got so much information on Nimmi! Thanks for this biography!
ReplyDeleteउत्कृष्ट आर्टिकल, बहुत सी नयी जानकारी मिली , खास कर के उनके निजी जीवन के बारे में .
ReplyDeleteएक बात, वह अकेली क्यूं रहती हैं ,क्यां उनके परिवार में और कोई नहीं है ?
धन्यवाद जनाब Pat an Jelly और नरेश जी...!!!
ReplyDelete@नरेश जी : कृपया ध्यान दें, मैंने '...अकेली रहती हैं' नहीं लिखा, बल्कि मैंने लिखा है - '2007 में अलीरज़ा साहब गुज़रने के बाद से वो अब बिल्कुल अकेली हैं।'...और इसकी वजह (ख़ासतौर से) महिलाओं के लिए 'नि:संतान' शब्द का प्रयोग करने की मेरी झिझक है। जहां तक प्रश्न है 'अकेलेपन' का, तो निम्मी जी अकेली नहीं रहतीं, बल्कि उनके साथ उनकी भतीजी और शायद भतीजा वगैरा भी रहते हैं। अपने घर पर मौजूद जिन महिला से निम्मी जी ने मुझे अपनी भतीजी के तौर पर मिलवाया था वो नौशाद साहब की बरसी पर, उनके घर पर भी निम्मी जी के साथ मुझे मिली थीं। नौशाद साहब पर आलेख में दी गयी उस अवसर की तस्वीर में उन्हें देखा जा सकता है -
http://beetehuedin.blogspot.in/search/label/composer%20%3A%20Naushad
निम्मीजी उन गिनी चुनी अभिनेत्रियों में से है जिन्होने अपनी खूबसुरत आँखों से भी अभिनय किया, याद कीजिए भाई -भाई का गीत "शराबी जा" की शुरुआत में जब वे आलाप गाती हैं और फिर कदर जाने ना। हमदर्द का ऋतु आये ऋतु जाए सखी री..
ReplyDeleteहमेशा की तरह बहुत ही बढ़िया लेख और जानकारी।