“आन मिलो आन मिलो श्याम सांवरे”- दुलारी
......शिशिर कृष्ण शर्मा
हिंदी सिनेमा में मां का ज़िक़्र होते ही दुर्गा खोटे, ललिता पवार, लीला चिटनिस, निरूपा रॉय, कामिनी कौशल और सुलोचना जैसी अभिनेत्रियों के चेहरे ज़हन में घूमने लगते हैं। आज इन तमाम अभिनेत्रियों की छवि भले ही फ़िल्मी मां की हो लेकिन हिंदी सिनेमा के सुनहरी दौर के दर्शक इस बात से वाक़िफ़ हैं कि इन सभी ने अपने करियर की शुरूआत बतौर हिरोईन की थी और इनमें से कुछ का शुमार तो अपने दौर की कामयाब हिरोईनों में किया जाता था। इसी सूची में एक नाम है दुलारी का, जिन्हें आमतौर पर दर्शक एक सीधी-सादी और ग़रीब फ़िल्मी मां के तौर पर जानते हैं। लेकिन शायद ही वो इस बात से वाक़िफ़ हों कि दुलारी ने भी शुरूआती कुछ फ़िल्में बतौर हिरोईन और साईड हिरोईन की थीं और ‘आना मेरी जान मेरी जान संडे के संडे’ और ‘जवानी की रेल चली जाए’ जैसे ज़बर्दस्त हिट गीत भी दुलारी पर ही फ़िल्माए गए थे।
अभिनय ही नहीं बल्कि मुंबई को भी बरसों पहले अलविदा कह चुकीं दुलारी जी से मेरी मुलाक़ात उनकी बेहद क़रीबी दोस्त अभिनेत्री पूर्णिमा के पाली हिल स्थित घर पर हुई थी। ‘सहारा समय’ के अपने कॉलम ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’ के लिए मैं कई महिनों से दुलारी जी की तलाश में था लेकिन ‘सिने एंड टी.वी. आर्टिस्ट एसोसिएशन’ के रेकॉर्ड में दर्ज उनके सात बंगला (अंधेरी पश्चिम) के पते पर पहुंचने पर पता चला था कि वो काफ़ी पहले अपना फ़्लैट बेचकर मुंबई छोड़ चुकी हैं। बहुत कोशिशों के बाद मैं उनके परिवार के, दादर में रह रहे एक सदस्य तक पहुंच पाया था जिन्होंने बताया कि दुलारी जी बहुत जल्द मुंबई आने वाली हैं। उन्हीं की मदद से दुलारी जी से मेरी मुलाक़ात संभव हो पायी थी।
दुलारी जी के मुताबिक़ उनके पूर्वज पीढ़ियों पहले उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र से आकर नागपुर में बस गए थे जहां 18 अप्रैल 1928 को दुलारी जी का जन्म हुआ था। अपने माता-पिता की वो पहली संतान थीं और घर में उनसे छोटे दो भाई थे। यों तो दुलारी जी का नाम अम्बिका रखा गया लेकिन घर में उन्हें सब राजदुलारी कहकर पुकारते थे जो आगे चलकर सिर्फ़ ‘दुलारी’ रह गया। उनके पिता विट्ठलराव गौतम डाकतार विभाग में नौकरी करते थे लेकिन अभिनय का उन्हें इतना शौक़ था कि अभिनेत्री अरूणा ईरानी के नाना की नाटक कंपनी जब नागपुर आई तो नौकरी छोड़कर वो उस कंपनी के साथ मुंबई आ गए। ये 1930 के दशक के शुरू का वाक़या है।
कुछ सालों बाद विट्ठलराव गौतम ने अपने परिवार को भी मुंबई बुला लिया। दुलारी जी के मुताबिक़ साल 1939 में वो मुंबई आयीं तो उस वक़्त उनकी उम्र क़रीब 12 साल थी। उनकी शुरूआती पढ़ाई नागपुर में हुई थी और मुंबई आने के बाद भी उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। दुलारी जी के मुताबिक़, नाटकों से पिता की कोई ख़ास आमदनी न हो पाने की वजह से घर में आर्थिक तंगी बनी रहती थी। ऐसे में पिता का हाथ बंटाने के लिए वो भी अरूणा ईरानी के पिता की नाटक कंपनी ‘अल्फ़्रेड-खटाऊ’ में शामिल हो गयीं। फिर कुछ समय बाद वो दो अन्य कंपनियों ‘देसी नाटक समाज’ और ‘आर्यनैतिक’ के गुजराती नाटकों में हिस्सा लेने लगीं। यहां से उनके अभिनय जीवन की शुरूआत हुई।
‘बॉम्बे टॉकीज़’ की मशहूर फ़िल्म ‘झूला’ (1941) दुलारी जी की पहली फ़िल्म थी जिसमें वो आश्रम में रहने वाली लड़की की महज़ एक सीन की एक छोटी से भूमिका में नज़र आयी थीं। उन्हीं दिनों उन्हें सेठ यूसुफ़ फ़ज़लभाई के ‘नेशनल स्टूडियो’ में 100 रूपए महिने के वेतन पर नौकरी मिल गयी।
दुलारी जी ने इस बैनर की फ़िल्मों ‘रोटी’, ‘अपना पराया’ और ‘जवानी’ (सभी 1942) में छोटी छोटी भूमिकाएं कीं। दुलारी जी के मुताबिक़, ‘फ़िल्म ‘जवानी’ में मैं फ़िल्म की हिरोईन हुस्नबानो की सहेली बनी थी, जिनके साथ मुझे एक गीत पर डांस करना था। लेकिन डांस करना मुझे आता ही नहीं था। ये एक ऐसी कमी थी जिसने आख़िर तक मेरा पीछा नहीं छोड़ा’।
‘नेशनल स्टूडियो’ को सोहराब मोदी की कंपनी ‘मिनर्वा मूवीटोन’ ने ख़रीदा तो उन्होंने दुलारी जी को 7 साल के लिए नौकरी पर रखना चाहा। लेकिन कांट्रेक्ट की कुछ शर्तें मंज़ूर न होने की वजह से दुलारी जी ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। ‘बॉम्बे टॉकीज़’ की फ़िल्म ‘हमारी बात’ में उन्होंने हीरो जयराज की छोटी बहन की भूमिका की तो ‘अमर पिक्चर्स’ की ‘आदाब अर्ज़’ में वो बतौर सहनायिका नज़र आयीं जिसमें उनके हीरो गायक मुकेश थे। ये दोनों ही फ़िल्में साल 1943 में बनी थीं।
‘घर’, ‘कुलकलंक’ (दोनों 1945), ‘अहिंसा’, ‘ब्लैक मार्केट’, ‘नमक’, ‘पति सेवा’, ‘रंगीन कहानी’ (सभी 1947) जैसी फ़िल्मों में दुलारी जी ने छोटी-बड़ी भूमिकाएं कीं लेकिन ये तमाम फ़िल्में कोई ख़ास करिश्मा नहीं दिखा पायीं। उस दौरान कुछ गुजराती फ़िल्में भी उन्होंने कीं।
दुलारी जी को सही मायनों में पहचान मिली साल 1947 में बनी ‘फ़िल्मिस्तान’ की हिट फ़िल्म ‘शहनाई’ से। इस फ़िल्म में उन्होंने हिरोईन ‘रेहाना’ की बड़ी बहन की भूमिका की थी और इसमें उनके नायक अभिनेता महमूद के पिता मुमताज़ अली थे। हिंदी सिनेमा में पाश्चात्य संगीत का इस्तेमाल भी पहली बार फ़िल्म ‘शहनाई’ में ही किया गया था।
दुलारी जी के मुताबिक़, ‘सी.रामचन्द्र द्वारा संगीतबद्ध फ़िल्म ‘शहनाई’ के, ‘आना मेरी जान मेरी जान संडे के संडे’ और ‘जवानी की रेल चली जाए’ जैसे ज़बर्दस्त हिट गीतों पर डांस करना मेरे लिए इतना तकलीफ़देह साबित हुआ कि मुझे कसम खानी पड़ी कि मैं अब कभी भी डांस वाली भूमिकाएं नहीं करूंगी।‘ ‘गुणसुंदरी’, ‘मिट्टी के खिलौने’, ‘नाव’ (सभी 1948), ‘ननद भौजाई’, ‘शायर’ (दोनों 1949), ‘अपनी छाया’, ‘मन का मीत’ (दोनों 1950), ‘अलबेला’ (1951), ‘अंजाम’, ‘भूलेभटके’, ‘वीर अर्जुन’ (सभी 1952) जैसी फ़िल्में करने के बाद दुलारी जी साल 1953
में बनी फ़िल्म ‘पापी’ में एक अहम भूमिका में नज़र आयीं। ‘रणजीत मूवीटोन’ के बैनर में बनी ‘पापी’ राजकपूर की दोहरी भूमिका वाली अकेली फ़िल्म थी। इस फ़िल्म की दो हिरोईनों में से एक नरगिस थीं तो दूसरी दुलारी। साल 1953 में ही रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘जीवन ज्योति’ में भी दुलारी जी के अभिनय को काफ़ी पसंद किया गया था।
दुलारी जी का कहना था, ‘मेरी उम्र शादी के लायक हो चुकी थी, लेकिन हमारे कान्यकुब्ज ब्राह्मण समाज में दहेज की ज़बर्दस्त मांग थी और घर के माली हालात अभी भी कोई बहुत अच्छे नहीं थे। ऐसे में मेरे माता-पिता को मेरे लिए अपने समाज से बाहर का रिश्ता स्वीकारना पड़ा। मराठा (मराठी क्षत्रिय) ख़ानदान के मेरे पति जगन्नाथ भीखाजी जगताप फ़िल्मोद्योग के जाने-माने साऊंड रेकॉर्डिस्ट थे। साल 1951 में शादी होने के बाद क़रीब 10 दस सालों तक मैंने बहुत कम काम किया। उस दौरान ‘देवदास’ (1955), ‘ज़िंदगी के मेले’ (1956), ‘एक गांव की कहानी’, ‘जॉनी वॉकर’, ‘पेईंग गेस्ट’ (तीनों 1957), ‘कवि कालीदास’, ‘संतान’ (1959) जैसी मेरी सिर्फ़ 13-14 फ़िल्में ही रिलीज़ हुईं। और फिर साल 1961 में बनी गुजराती फ़िल्म ‘चुंडड़ी अणे चोखा’ से मैंने अपने करियर की दूसरी पारी शुरू की’।
अगले क़रीब 35 सालों में दुलारी जी ‘जब प्यार किसी से होता है’, ‘मुझे जीने दो’ ‘अपने हुए पराए’ ‘आए दिन बहार के’, ‘अनुपमा’, ‘तीसरी क़सम’, ‘पड़ोसन’, ‘आराधना’, ‘आया सावन झूम के’, ‘चिराग़’, ‘इंतक़ाम’, ‘आन मिलो सजना’, ‘हीर रांझा’, ‘जॉनी मेरा नाम’, ‘कारवां’, ‘लाल पत्थर’, ‘बेईमान’, ‘सीता और गीता’, ‘राजा रानी’, ‘अमीर ग़रीब’, ‘हाथ की सफ़ाई’, ‘दीवार’, ‘दो जासूस’, ‘आहुती’, ‘गंगा की सौगंध’, ‘बीवी ओ बीवी’, ‘नसीब’, ‘रॉकी’, ‘प्रेम रोग’, ‘अगर तुम न होते’ और धर्माधिकारी जैसी क़रीब 135 फ़िल्मों में छोटी-बड़ी चरित्र भूमिकाओं में नज़र आयीं। और फिर एक रोज़ उन्होंने ख़ामोशी से फ़िल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया।
दुलारी जी का कहना था, ‘बढ़ती उम्र के साथ बिगड़ती सेहत का असर मेरे काम पर भी पड़ने लगा था। साल 1989 में बनी फ़िल्म ‘सूर्या’ के एक सीन में मुझे 200 जूनियर आर्टिस्टों की भीड़ के साथ दौड़ना था। निर्देशक इस्माईल श्रॉफ़ के एक्शन कहते ही मैंने दौड़ना शुरू किया। लेकिन गठिया की बीमारी की वजह से मैं कुछ ही दूर जाकर गिर पड़ी। जूनियर आर्टिस्टों की भीड़ मेरे पीछे दौड़ी चली आ रही थी। अभिनेता सलीम ग़ौस ने, जो मेरे बेटे की भूमिका में थे, बहुत मुश्किल से मुझे कुचले जाने से बचाया, और इस प्रयास में उन्हें भी हल्की चोटें आयीं। ऐसे में मैंने रिटायरमेंट ले लेना ही बेहतर समझा। फिर कई साल बाद निर्देशक गुड्डू धनोवा के आग्रह पर उनकी फ़िल्म ‘ज़िद्दी’ में एक भूमिका की। इस तरह साल 1997 में रिलीज़ हुई ‘ज़िद्दी’ मेरी आख़िरी फ़िल्म साबित हुई।
दुलारी जी के पति का निधन साल 1972
में हुआ। उनकी इकलौती बेटी की शादी हो चुकी थी। अभिनय से सन्यास लेने के बाद कुछ समय तो वो मुंबई में अकेली रहीं और फिर साल 2002
में अपनी बेटी के पास इंदौर चली गयीं। उनके ससुरालपक्ष के कई क़रीबी रिश्तेदार और उनकी सबसे अच्छी सहेली अभिनेत्री पूर्णिमा मुंबई में रहते हैं इसलिए उनका अक्सर मुंबई आना-जाना होता रहता था। लेकिन हाल ही में पता चला है कि क़रीब 65 साल के करियर में 171 हिंदी, 35
गुजराती, 3 मराठी और 1 राजस्थानी फ़िल्म के अलावा श्री अधिकारी ब्रदर्स के धारावाहिक ‘वक़्त की रफ़्तार’ में अभिनय कर चुकीं 85 साल की दुलारी पिछले काफ़ी समय से अल्ज़ाईमर की बीमारी की गिरफ़्त में हैं और पुणे शहर के एक वृद्धाश्रम में रह रही हैं।
दुलारी का निधन 18 जनवरी 2013 को 85 साल की आयु में पुणे में हुआ|
We
are thankful to –
Mr.
Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable
suggestion, guidance, and support.
Mr. S.M.M.Ausaja
for providing movies’ posters.
Ms.
Akhsher Apoorva for the English translation of the write up.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
Actress Dulari On YT Channel BHD
“Aan Milo Aan Milo Shyam Sanware”- Dulari
........Shishir Krishna Sharma
The second a mother is mentioned in Hindi cinema one immediately thinks of actresses like Durga Khote, Lalita Pawar, Leela Chitnis, Nirupa Roy, Kamini Kaushal and Sulochna. Maybe today the image of these actresses is that of an onscreen mother but patrons of the golden years of Hindi cinema are well aware that all of these actresses had started their career as heroines and some of these actresses were even counted among the top most heroines of their era. This list includes one more name, Dulari, who audiences generally identify as the simple and downtrodden reel mother. But they are hardly aware of the fact that initially Dulari had also played a heroine and side heroine in a couple of films and chartbusters like ‘aana meri jaan meri jaan Sunday ke Sunday’ and ‘jawaani ki rail chali jaaye re’ had infact been filmed on Dulari herself.
Having said goodbye many years back to not only acting but also to Mumbai, I met Dulari ji at her close friend actress Poornima’s Pali Hill residence. I had been searching for Dulari ji for the past few months for my ‘Sahara Samay’ column ‘kya bhooloon kya yaada karoon’ but when I went to her Seven Bunglows (Andheri-west) address registered in ‘Cine & T.V.Artistes Association’s’ records I was told that she had sold her flat long time back and had left Mumbai. After many efforts I tracked down one of her family members staying in Dadar who informed me that Dulari ji is expected to visit Mumbai very soon. And just because of him, I was finally able to meet Dulari ji.
According to Dulari ji, her ancestors had migrated from Uttar Pradesh’s Awadh area to Nagpur where Dulari ji was born on 18th April 1928. She was the first child of her parents and had two younger brothers. Although Dulari ji’s real name was Ambika she was often called ‘Rajdulari’ by her loved ones of which, later, only ‘Dulari’ remained. Her father Vitthal Rao Gautam used to work in the Post & Telegraph Department but he was so fond of acting that when Aruna Irani’s maternal grandfather’s theatrical company came to Nagpur, he left his job and went to Mumbai with the theater company. This incident took place in early 1930’s.
After a few years Vitthal Rao Gautam called his entire family to Mumbai. According to Dulari ji when she came to Mumbai in the year 1939, she was around 12 years old. Her initial education was done in Nagpur and when she came to Mumbai, she continued her education. According to Dulari ji her father couldn’t earn much from theater and hence there was always an economic crisis at home. In such circumstances to lend a helping hand to her father she also enrolled herself in Aruna Irani’s father’s theatrical company ‘Alfred-Khatau’. Shortly thereafter she also participated in Gujarati plays of two other companies named ‘Desi Natak Samaj’ and ‘Aryanaitik’. This was the beginning of her acting career.
Dulari ji’s first film was ‘Bombay Talkies’s’ famous movie ‘Jhoola’ (1941) where she was seen playing a small one scene role of a girl staying in a hermitage. She had been employed by Seth Yusuf Fazalbhoy’s ‘National Studio’ at a salary of 100 rupees per month. Dulari ji did small roles under this banner’s movies ‘Roti’, ‘Apna Paraya’, and ‘Jawani’ (all 1942). According to Dulari ji, “In the movie Jawani, I was playing the heroine Husn Bano’s friend with whom I had to dance in a particular song. But I didn’t know how to dance! This was one thing that never left my side till the end.”
When Sohrab Modi’s company ‘Minerva Movietone’ bought ‘National Studio’ they wanted to retain Dulari ji for the next 7 years. But as some conditions of the contract were not acceptable to Dulari ji she had to reject that offer. While she was seen playing hero Jairaj’s younger sister in ‘Bombay Talkies’s’ film ‘Hamari Baat’ she was also seen as a the second lead in ‘Amar Pictures’s film ‘Adaab Arz’ where her leading man was singer the famous singer Mukesh. Both the films were made in 1943.
Dulari ji did many small roles in films like ‘Ghar’, ‘Kulkalank’ (both 1945), ‘Ahinsa’, ‘Black Market’, ‘Namak’, ‘Pati Sewa’, ‘Rangeen Kahani’ (all 1947) but these films did not create any magic at the box office. She also did some Gujarati films at this time. Dulari ji got her real due with ‘Filmistan’s’ 1947 film ‘Shehnai’. She had played Rehana’s elder sister in the movie and her leading man was Mehmood’s father Mumtaz Ali. This movie ‘Shehnai’ is also known to have used western music in Hindi cinema for the first time.
According to Dulari ji, ‘Dancing on C.Ramchandra’s music to songs like ‘aana meri jaan meri jaan Sunday ke Sunday’ and ‘jawaani ki rail chali jaaye re’was quite a task for me and I vowed to never do a dance based role ever again.’ After doing films like ‘Gunsundari’, ‘Mitti Ke Khilone’, ‘Naav’ (all 1948), ‘Nanad Bhaujai’, ‘Shayar’ (both 1949), ‘Apni Chhaya’, ‘Man Ka Meet’ (both 1950), ‘Albela’ (1951), ‘Anjaam’, ‘Bhoole Bhatke’, ‘Veer Arjun’ (all 1952), Dulari ji was seen in an important role in the movie ‘Paapi’ which was made in 1953. Made under the banner of ‘Ranjeet Movietone’, ‘Paapi’ was Raj Kapoor’s only movie where he was seen in a double role. Of the film’s two heroines one was Nargis and the other was Dulari ji. Dulari ji’s performance in the 1953 release ‘Jeewan Jyoti’was also much appreciated.
Dulari ji says, “I was of marriageable age but in our Kanyakubj Brahman society there was a high demand of dowry and the financial situation at home was still not very good. Hence in these circumstances my parents had to accept a proposal which was outside our society. My husband Jagannath Bhikhaji Jagtap was from a Maratha (Marathi Kshatriya) family and was a known sound recordist in the film world. After my marriage in 1951, I did very little work for the next 10 years. During that time only 13-14 films of mine were released like ‘Devdas’ (1955), ‘Zindagi Ke Mele’ (1956), ‘Ek Gaon Ki Kahani’, ‘Johny Walker’, ‘Paying Guest’ (all 1957), ‘Kavi Kalidas’, ‘Santaan’ (1959). And then with the 1961’s Gujarat film ‘Chundari Ane Chokha’ I started my career’s second innings.
For the next 35 years, Dulari ji was seen playing many big and small roles in almost 135 films like ‘Jab Pyar Kisi Se Hota Hai’, ‘Mujhe Jeene Do’, ‘Apne Hue Paraye’, ‘Aap Aaye bahaar Aai’, ‘Aaye Din Bahaar Ke’, Anupama’, ‘Teesri Kasam’, ‘Padosan’, ‘Aradhna’, ‘Aaya Sawan Jhoom Ke’, ‘Chiraagh’, ‘Inteqaam’, ‘Aan Milo Sajna’, ‘Heer Ranjha’, ‘Johny Mera Naam’, ‘Caravan’, ‘Laal Patthar’, ‘Beimaan’, ‘Seeta Aur Geeta’, ‘Raja Rani’, ‘Ameer Gareeb’, ‘Haath Ki Safai’, ‘Deewar’, ‘Do Jasoos’, ‘Aahuti’, ‘Ganga Ki Saugandh’, ‘Biwi O Biwi’, ‘Naseeb’, ‘Prem Rog’, ‘Agar Tum Na Hote and ‘Dharmadhikari’. And then one day she quietly retired from the world of movies.
Dulari ji says, “With increasing age, my failing health had started affecting my work. In one of the scenes of the 1989 film ‘Surya’ I had to run with a crowd of 200 junior artists. As soon as director Ismail Shroff said ‘action’, I started to run. But because I had arthritis I fell after running only a short distance. The crowd of junior artists were still running behind me. Actor Salim Gaus, who was playing my son in the film, saved me from being crushed under the crowd of the junior artists and in his efforts, he sustained some minor injuries as well. And hence I thought it wise to take retirement. And then after many years on director Guddu Dhanoa’s request I essayed a role in his film ‘Ziddi’. And in this way film ‘Ziddi’ released in 1997 proved to be my last film.
Dulari ji’s husband died in the year 1972. Her only daughter is married. After retiring from acting she stayed in Mumbai for some time and then in 2002 she went to stay with her daughter in Indore. She used to visit Mumbai quite frequently as some of her husband’s close relatives and her friend actress Poornima stay in Mumbai. But we came to know recently that after a career spanning 65 years where in she did 171 hindi, 35 Gujarati, 3 Marathi and 1 Rajasthani film and also acted in a ‘Shri Adhikari Brothers’ serial called ‘Waqt Ki Raftaar’, the 85 years old Dulari ji has been suffering from Alzheimer for the past few years and is staying in an old age home in some city in Maharashtra.
Dulari died on 18 January 2013 in
Pune at the age of 85.
Thanx Shishir for knowledgable write up on Dulariji. She has a very innocence looking face. I have watched many films of her. God bless her with health and peace of mind.
ReplyDeletePashambay Baloch
Karachi Pakistan
Shishir Uncle,
ReplyDeleteYour article is simply fabulous and amazing. You are doing an excellent work remembering all these actress. Loved your article very much. Thank you so much for sharing.
awdh. nagpur, mumbai how cultures move and cretivety evolves .nice matter thankx
ReplyDeleteshri shishirji aapka bahut bahut shukriya ko aap in bhoole huye hastiyonke bareme hume jankari dete hai.........god bless you
ReplyDeleteSharma ji,
ReplyDeleteThanks a ton for bringing Dulari ji to Limelight.She is one capable artist who always missed the focus on her and others shone.
Thanks for giving her the dues.
You are doing a wonderful job in making available info on comparatively those artists about whom info was difficult to access.
-Arunkumar Deshmukh
Shisir Ji can you try to get more details of film Adaab arz with Legendary Singer Mukesh-1943 and Paapi with R.K.-1953.
ReplyDeleteA nice article and good effort!!
'adab arz' (1943) was produced under the banner of 'amar pictures' which was owned by 'sagar movietone' n 'national studio's owner chiman bhai desai...
ReplyDeletehttp://beetehuedin.blogspot.in/search/label/actress%20%3A%20Nalini%20Jaywant
gyan dutt was the composer n chiman bhai's son virendra desai was the director of 'adab arz' who nalini jaywant later married. nalini, karan dewan, mukesh, dulari kamla chatterji, pratima devi etc acted in this movie...
there were total 12 songs penned by pt.indra, kailashji matwala n rammurti in this movie. singers were nalini, karan, amirbai, bulo c.rani, noorjehan etc. (none by mukesh).
........................................
'paapi' (1953) was produced n directed by sardar chandulal shah under his banner 'ranjit movietone'...this is the only film with raj kapoor in double role...s.mohinder was the composer n hasrat, surjit sethi, r.m.a.khan, rajinder krishna, bootaram sharma'ashq', sarshar sailani were the lyricists...there were total 8 songs in this film...
http://beetehuedin.blogspot.in/search/label/studio-banner%20%3A%20Ranjit%20Studio
Compliments to you Shishir ji for this information on one of the gifted character actresses Dulari ji .
ReplyDelete