“गुलशन में मेरे थी बहार” - दत्ता डावजेकर
.........शिशिर कृष्ण शर्मा
हिंदी सिनेमा और सिने-संगीत को समृद्ध बनाने में मराठीभाषी संगीतकारों और गायक-गायिकाओं के योगदान को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। दादासाहब फाल्के, जगताप बंधु, भालजी पेंढारकर, मास्टर विनायक, वसंतराव जोगलेकर, वी.शांताराम, पंडित गोबिंदराव टेंबे, वसंत देसाई, स्नेहल भाटकर, सी.रामचन्द्र, लता मंगेशकर, आशा भोंसले और सुरेश वाडकर जैसी हस्तियों की श्रृंखला में एक अनसुना सा नाम था संगीतकार ‘दत्ता डावजेकर’ का, जिन्होंने पूरे समर्पण के साथ फ़िल्म संगीत के क्षेत्र में अपना योगदान दिया और फिर ख़ामोशी के साथ सेवानिवृत्त हो गए।
देश के बंटवारे से हिंदी फ़िल्म संगीत भी प्रभावित हुआ था। नूरजहां और ग़ुलाम हैदर जैसे गुणी कलाकार भारत छोड़कर जा चुके थे। एस.डी.बर्मन, सी.रामचन्द्र, मुकेश और रफ़ी जैसे अपेक्षाकृत नए कलाकार तेज़ी से अपनी पहचान बना रहे थे।
उन्हीं दिनों शमशाद बेगम, जोहराबाई अंबालेवाली और अमीरबाई कर्नाटकी जैसी स्थापित गायिकाओं की गायन-परंपरा के विपरीत बेहद कोमल, पतली और मीठी आवाज़ वाली लता मंगेशकर का आगमन हुआ, जिन्होंने देखते ही देखते अपनी गायन-शैली से फ़िल्म संगीत के चेहरे को ही बदल डाला था। लता को बतौर पार्श्वगायिका दर्शकों के सामने लाने का श्रेय दत्ता डावजेकर को जाता है। साल 1947 में बनी फ़िल्म ‘आपकी सेवा में’ लता की बतौर पार्श्वगायिका पहली फ़िल्म थी जिसके संगीतकार थे दत्ता डावजेकर।
दत्ता डावजेकर का जन्म पुणे में हुआ था। उनके पिता बाबूराव डावजेकर सोहराब मोदी के भाई के.के.मोदी की नाटक कंपनी ‘आर्यसुबोधिनी’ में तबलावादक थे। पिता और उनके शिष्यों को देख-देखकर दता डावजेकर भी तबला बजाने लगे थे। मशहूर शास्त्रीय गायिका हीराबाई बड़ौदकर के भाई सुरेशभाई माने से उन्होंने गायन की शिक्षा ली और फिर गणपति उत्सव के दौरान गीत लिखकर उनकी धुनें बनाने लगे।
अभिनेत्री शांता आप्टे के ‘बैले ग्रुप’ के साथ बतौर प्यानो वादक वो देश भर में घूमे तो फ़ुरसत मिलते ही पंडित दत्तोपंत मंगल वेडेकर से जलतरंग बजाना भी सीख लिया। और फिर साल 1935 में दत्ता डावजेकर ने संगीतकार सुरेशभाई माने के सहायक के तौर पर पुणे की कंपनी ‘सरस्वती सिनेटोन’ में नौकरी कर ली।
ये ‘सरस्वती सिनेटोन’ के मालिक रामचन्द्र गोपाल तोरणे ही थे जिन्होंने 18 मई 1912 को मुंबई में प्रदर्शित हुई और भारत में बनी पहली फ़िल्म ‘पुंडलिक’ का निर्माण किया था। लेकिन ‘पहली भारतीय फ़िल्म’ का तमगा हासिल करने से ये फ़िल्म सिर्फ़ इसलिए चूक गयी थी क्योंकि एक तो ये एक मशहूर मराठी नाटक का फ़िल्मांकन थी, दूसरे इसका कैमरामैन ग़ैरभारतीय (ब्रिटिश) था और इसकी प्रोसेसिंग भी विदेश (लंदन) में हुई थी।
इसलिए ‘पहली भारतीय फ़िल्म’ का सम्मान हासिल हुआ दादासाहब फाल्के की फ़िल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ को जो ‘पुंडलिक’ से क़रीब एक साल बाद 3 मई 1913 को प्रदर्शित हुई थी। ‘सरस्वती सिनेटोन’ के बैनर की पहली टॉकी हिंदी और मराठी, दो भाषाओं में बनी ‘श्यामसुंदर’ थी जो साल 1932 में प्रदर्शित हुई थी। अभिनेता शाहू मोडक के करियर की ये पहली फ़िल्म थी। ‘आवारा शहज़ादा’ (1933), ‘भक्त प्रह्लाद’, ‘भेदी राजकुमार’ (दोनों 1934), ‘कृष्ण शिष्टई’ (1935), ‘राजा गोपीचंद’ (1938), ‘सच है’ (1939) और ‘आवाज़’ (1942) जैसी फ़िल्में ‘सरस्वती सिनेटोन’ के बैनर में ही बनी थीं। इसके अलावा इस बैनर में क़रीब एक दर्जन मराठी फ़िल्मों का भी निर्माण किया गया था।
कुछ समय बाद दत्ता डावजेकर ‘सरस्वती सिनेटोन’ से इस्तीफ़ा देकर ‘नवयुग स्टूडियो’ की मराठी फ़िल्म ‘सवंगड़ी’ में संगीतकार पंडित गोबिंदराव टेंबे’ के सहायक बन गए। उस दौरान दुर्गा खोटे और नसीम को गाना सिखाने के लिए वो अक्सर पुणे से मुंबई आते थे। किसी भी गीत की धुन को सुनते समय तेज़ी से उसकी स्वरलिपी को कागज़ पर उतारते जाना दत्ता डावजेकर की ख़ासियत थी जिससे सोहराब मोदी बेहद प्रभावित थे। फ़िल्म ‘सवंगड़ी’ के पूरा होते ही सोहराब मोदी ने दत्ता डावजेकर को ‘मिनर्वा मूवीटोन’ में बुलवा लिया, जहां उन्होंने काफ़ी समय तक म्यूज़िक डिपार्टमेंट संभाला। दत्ता दत्ता डावजेकर को बतौर स्वतंत्र संगीतकार पहली जो फ़िल्म मिली, वो थी ‘नवयुग स्टूडियो’ की ‘म्यूनिसपैलिटी’ जो साल 1941 में रिलीज़ हुई थी। साल 1942 में इसी बैनर में दत्ता की दूसरी फ़िल्म ‘सरकारी पाहुणे’ बनी और ये दोनों ही अपने समय की सफलतम फ़िल्में साबित हुईं।
साल 1942 में ‘नवयुग स्टूडियो’ से अलग होकर उसके भागीदारों में से एक मास्टर विनायक कोल्हापुर चले गए जहां उन्होंने ‘प्रफुल्ल पिक्चर्स’ की नींव रखी और उसके म्यूज़िक डिपार्टमेंट की ज़िम्मेदारी दत्ता डावजेकर को सौंप दी।
लता से दत्ता डावजेकर की मुलाक़ात ‘प्रफुल्ल पिक्चर्स’ में हुई थी। अंधेरी (पश्चिम) के चार बंगला-लोखंडवाला क्षेत्र स्थित उनके निवास पर हुई एक मुलाक़ात के दौरान दत्ता डावजेकर ने बताया था, “लता नौकरी की तलाश में थीं और मुझसे वो इसी सिलसिले में मिली थीं। उस समय उनकी उम्र क़रीब 14 बरस की रही होगी। उनके गायन और आवाज़ से प्रभावित होकर मैंने उन्हें 80 रूपए प्रतिमाह पर ‘प्रफुल्ल पिक्चर्स’ में रखवा दिया था। कुछ समय बाद मास्टर विनायक से पता चला कि लता स्वर्गीय दीनानाथ मंगेशकर की बेटी हैं, तो उनके प्रति झुकाव और भी बढ़ गया क्योंकि युवावस्था में ही चल बसे मास्टर दीनानाथ मंगेशकर संगीत के क्षेत्र का एक सम्मानित नाम थे।
बहुत कम उम्र में ही परिवार की तमाम ज़िम्मेदारियों का बोझ कंधों पर आ जाने के बावजूद लता बेहद ही मज़ाकिया और चंचल थीं। लोगों की नक़ल उतारकर हंसने हंसाने का उन्हें बेहद शौक़ था। चॉकलेट का लालच देकर मैं उनसे उनके पिता की बंदिशें सुनता था जो मेरे लिए किसी अनमोल ख़ज़ाने से कम नहीं थीं।“
दत्ता डावजेकर ने ‘प्रफुल्ल पिक्चर्स’ की 3 फ़िल्मों ‘माझा बाळ’, ‘चिमुकला संसार’ (दोनों 1943) और ‘गजाभाऊ’ (1944) में संगीत दिया। साल 1945 में ‘प्रफुल्ल पिक्चर्स’ कोल्हापुर से मुंबई स्थानांतरित हुई तो दत्ता डावजेकर भी मुंबई चले आए और ‘यंग इंडिया ग्रामोफ़ोन कंपनी’ में गायकों को संगीत सिखाने के अलावा रेकॉर्डिंग का भी काम देखने लगे। ‘चन्द्रमा पिक्चर्स’ (मुंबई) की वसंत जोगलेकर द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘आपकी सेवा में’ दत्ता डावजेकर की भी बतौर संगीतकार पहली हिंदी फ़िल्म थी।
लता मंगेशकर का बतौर पार्श्वगायिका सबसे पहले रेकॉर्ड कराया गया गीत इसी फ़िल्म का था, ‘पा लागूं करजोरी रे श्याम न खेलो मोसे होरी’। ये एक ठुमरी थी जो रोहिणी भाटे पर फ़िल्मायी गयी थी। फ़िल्म ‘आपकी सेवा में’ में लता के दो और सोलोगीत थे, ‘एक नए रंग में दूजे उमंग में’ और ‘अब कौन सुनेगा मेरे मन की बात’। बाक़ी 5 गीत थे ‘देश में संकट आया है’ (रफ़ी, साजन), ‘मेरी आंखों के तारे’ (रफ़ी), ‘गुलशन में मेरे थी बहार’ (साजन), ‘फुलबगिया लहराए’ (मोहनतारा तलपडे) और ‘’मैं तेरी तू मेरा’ (रफ़ी, मोहनतारा)। ये सभी गीत मशहूर अभिनेता महिपाल ने लिखे थे, जो एक बेहतरीन कवि भी थे।
‘आपकी सेवा में’ के अलावा दत्ता डावजेकर ने 4 और हिंदी फ़िल्मों में संगीत दिया। ये फ़िल्में थीं, ‘मंगल पिक्चर्स’ की ‘अदालत’ (1948) और ‘जीत किसकी’ (1952), ‘पी.एन.फ़िल्म्स’ की ‘गोलकुण्डा का क़ैदी’ (1954) और ‘सी.एफ़.एस.इंडिया’ की ‘बाल शिवाजी’ (1982)। फ़िल्म ‘गोलकुंडा का क़ैदी’ के निर्माता-निर्देशक अभिनेता प्रेमनाथ थे। उनके छोटे भाई अभिनेता राजिंदरनाथ ने इसी फ़िल्म से अपने अभिनय करियर की शुरूआत की थी। जगन्नाथ और कुंदनलाल इस फ़िल्म में दत्ता डावजेकर के सह-संगीतकार थे। सुधा मल्होत्रा, रफ़ी, मधुबाला ज़वेरी, गीतादत्त, प्रेमनाथ और शमशाद बेगम के गाए इस फ़िल्म के 8 गीतों में से शमशाद बेगम का गाया ‘धड़ धम चक लग रही जंगल में’ ख़ासतौर से उस ज़माने में काफ़ी लोकप्रिय हुआ था।
दत्ता डावजेकर का ठिकाना अभी तक पुणे में ही था लेकिन लता मंगेशकर के कहने पर साल 1952 में वो स्थायी रूप से मुंबई चले आए और संगीतकार सी.रामचन्द्र के साथ बतौर मुख्य सहायक काम करने लगे। लेकिन मराठी फ़िल्मों, नाटकों और डॉक्यूमेंटरी फ़िल्मों में उनका स्वतंत्र रूप से संगीत देना बदस्तूर जारी रहा। उनका कहना था, “एक मराठी बाल नाटक में मैंने एक गीत लिखा था और संगीतबद्ध भी किया था ‘इना मीना मोना बस’। मेरे उसी गीत पर सी.रामचन्द्र की फ़िल्म ‘आशा’ (1957) का हिट गीत ‘इना मीना डीका’ बना था।“
दत्ता डावजेकर ने कुल 5 हिंदी, 51 मराठी और क़रीब 500 डॉक्यूमेंटरी फ़िल्मों में संगीत देकर एक हज़ार से भी ज़्यादा गीतों की धुनें बनाईं। पार्श्वगायिका अनुराधा पोडवाल को ब्रेक देने का श्रेय भी दत्ता डावजेकर को ही जाता है।अनुराधा पोडवाल का दत्ता डावजेकर के संगीत में गाया पहला पार्श्वगीत, मराठी फ़िल्म ‘यशोदा’ (1974) का ‘घुमला हृदयी निनाद हा’ आज भी उतना ही लोकप्रिय है।
दत्ता डावजेकर ने साल 1962 से लगातार 5
सालों तक महाराष्ट्र सरकार का ‘सर्वश्रेष्ठ संगीतकार’ का पुरस्कार जीता तो उन्हें महाराष्ट्र सरकार के ही ‘लता मंगेशकर पुरस्कार’ और ‘सुर सिंगार पुरस्कार’ जैसे कई सम्मान भी हासिल हुए। लेकिन उन्हें मिला सबसे बड़ा सम्मान है, ‘मिथक बन चुकीं लता मंगेशकर को हिंदी फ़िल्म संगीत से परिचित कराना’, जिसके लिए हिंदी फ़िल्मोद्योग को उनका आभारी होना चाहिए।
दिनांक 15.11.1917 को पुणे में जन्मे, और ‘डीडी’ के नाम से मशहूर संगीतकार दत्ता डावजेकर का देहांत 90 साल की उम्र में दिनांक 19.09.2007 को मुंबई में हुआ।
We
are thankful to –
Mr.
D.B. Samant, Mr. Harish Raghuvanshi, Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’& Mr.
Biren Kothari for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M. Ausaja for providing pictures & posters.
Mr.
Sanjeev Tanwar for providing some rare pictures.
Ms.
Aksher Apoorva for the English translation of the write up.
Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
Datta Dawjekar on YT Channel BHD
“Gulshan Me Mere Thi Bahaar” - Datta Dawjekar
.........Shishir Krishna Sharma
No one can ignore the contribution of
Marathi speaking artistes towards the enrichment of Hindi Cinema and music.
Among stalwarts like Dadasahab Phalke, Jagtap Brothers, Bhalji Pendharkar,
Master Vinayak, Vasant Rao Joglekar, V.Shantaram, Pandit Gobind Rao Tembe, Vasant
Desai, Snehal Bhatkar, C.Ramchandra, Lata Mangeshkar and Asha Bhonsle, there is
an almost unheard name that of Music Director ‘Datta Dawjekar’, who, with
complete dedication, contributed to film Music and then with changing times
chose to lead a retired life.
Partition had also left an everlasting
impression on Hindi Film Music. Gifted artistes like Noorjehan and Ghulam Hyder
had migrated to Pakistan. Newcomers like S.D.Burman, C.Ramchandra, Mukesh and
Rafi were fast gaining recognition. At the same time there came a young singer
with a very thin, soft and sweet voice whose style of singing was very
different from that of well-established singers like Shamshad Begum, Zohrabai
Ambalewali and Amirbai Karnatki from that era. And in no time did this new singer
named Lata Mangeshkar dominated the film world and completely changed the face
of the film music scenario. The credit to introduce Lata to playback singing
goes to the composer Datta Dawjekar. Lata’s debut film as a playback singer was
a 1947 release ‘Aapki Sewa Me’ whose music director was Datta Dawjekar.
Datta Dawjekar was born in Pune. His
father Babu Rao Dawjekar was a Tabla player with the theatre company
‘Aryasubodhini’ which was owned by Sohrab Modi’s brother K.K.Modi. Just by
watching his father and his students playing, Datta Dawjekar too started playing
Tabla. He learnt classical singing from Suresh Bhai Mane, the brother of
well-known classical singer Hira Bai Barodkar and eventually started writing
and composing songs for Ganpati celebrations.
He toured the entire country as a Piano player for the well-known
actress Shanta Apte’s Ballet Group and whenever he would get time, he learnt to
play the Jaltarang from Pandit Dattopant mangal Vedekar. In the year 1935 Datta
Dawjekar joined the Music Director Suresh Bhai Mane as his assistant at Pune
based film company ‘Saraswati Cinetone’.
Ramchandra Gopal Torne, who was the
owner of ‘Saraswati Cinetone’, is also known as the producer-director of the
first film made in India titled ‘Pundalik’ which was released on 18th May 1912
in Mumbai. But ‘Pundalik’ did not attain the title of being the ‘First Indian
Film’ because this was a recording of a popular Marathi play and also because its
cameraman was a Britisher and hence the film was processed out of country i.e.
in London. Thus, the honor of the ‘First Indian Film’ is given to Dadasahab
Phalke’s film ‘Raja Harishchandra’ which was released a year later than
‘Pundalik’ on 3rd May 1913. The first talkie film made under the banner of
‘Saraswati Cinetone’ was a Hindi-Marathi bilingual ‘Shyam Sunder’ which was made
in the year 1932. This was also the debut film of actor Shahu Modak’s as well.
Apart from a dozen of Marathi films, Hindi films like ‘Awara Shehzada’ (1933),
‘Bhakt Prahlad’, ‘Bhedi Rajkumar’ (both 1934), ‘Krishna Shishtai’ (1935), ‘Raja
Gopichand’ (1938), ‘Sach hai’ (1939) and ‘Awaaz’ (1942) were also made under
the banner of ‘Saraswati Cinetone’.
After some time Datta Dawjekar resigned
from ‘Saraswati Cinetone’ and joined Music Director Pandit Gobind Rao Tembe as
his assistant for ‘Navyug Studio’s underproduction Marathi film ‘Savangadi’.
Meanwhile he used to often come to Mumbai from Pune to give singing lessons to
Durga Khote and Naseem. Datta Dawjekar was also very quick in writing down
notations of any song and this quality had Sohrab Modi quite impressed. After
the completion of the film ‘Savangadi’, Sohrab Modi offered a job to Datta Dawjekar
at his production company ‘Minerva Movietone’ which was to look after its music
department and Datta Dawjekar spent a few years there as well. The first film
Datta Dawjekar got as an independent Music Director was ‘Navyug Studio’s
‘Municipality’ which was released in the year 1941. In the year 1942 Datta’s second film ‘Sarkari
Pahune’ was made under the same banner and both these films proved to be big
hits. In the year 1942, Master Vinayak, one of the partners of ‘Navyug Studio’
left this company and shifted to Kolhapur where he founded ‘Prafull
Pictures’. Datta Dawjekar was once again
made the in charge of ‘Prafull Pictures’s music department.
It was at ‘Prafull Pictures’that Lata
met Datta Dawjekar. During a meeting at his residence at Four Bunglows-Lokhandwala
area of Andheri (West) a few years back Datta Dawjekar said, “Lata met me there
because she was searching for a job. She was around 14 years old at that time.
I liked her voice and singing and helped her get a job at ‘Prafull Pictures’ at
a monthly salary of Rs.80. And then
later when Master Vinayak informed me that Lata was the daughter of late
vocalist Dinanath Mangeshkar my inclination towards her grew because Master
Dinanath Mangeshkar who had died very young was a very respectable name among musicians
at that time. Lata was very young when she was forced to shoulder the
responsibilities of a big family, but still she was very witty and spirited. Her favorite prank was to mimic the people
around thus making everybody laugh in the process. I used to bribe her with chocolates to make
her sing her father’s compositions which were no less than a precious treasure
for me.”
Datta Dawjekar composed music for 3
films for ‘Prafull Pictures’ viz. ‘Majha Baal’, ‘Chimukla Sansar’ (both 1943) and
‘Gajabhau’ (1944). In the year 1945 ‘Prafull Pictures’ shifted from Kolhapur to
Mumbai, and Datta Dawjekar also came down to Mumbai where he got a job with
‘Young India Gramophone Company’ to give lessons to singers apart from just
looking after the recording work. ‘Chandrama Pictures’ (Mumbai)’s Vasant
Joglekar directed film ‘Aapki Sewa Me’ was Datta Dawjekar’s first Hindi film as
a Music Director. Lata Mangeshkar’s debut song as playback singer ‘paa lagoon
kar jori re shyaam mose na khelo hori’ was from the same film. It was a Thumri
which was posturized on actress Rohini Bhate. There were 2 more solos of Lata’s in the film ‘Aapki Sewa Me’ viz. ‘ek
naye rang me dooje umang me’ and ‘ab kaun sunega mere mann ki baat’. The
remaining 5 songs were ‘desh me sankat aaya hai’ (Rafi, Sajan), ‘meri ankhon ke
taare’ (Rafi), ‘Gulshan Me Mere Thi bahaar’ (Sajan), ‘phulbagiya lehraaye’
(Mohantara Talpade) and ‘mai teri tu mera’ (Rafi, Mohantara). All these songs
were penned by renowned actor Mahipal who was also a very good poet.
Apart from ‘Aapki Sewa Me’, Datta
Dawjekar composed music for 4 more Hindi films. These were, ‘Mangal Pictures’
‘Adaalat’ (1948) & ‘Jeet Kiski’ (1952), ‘P.N.Films’ ‘Golconda Ka Qaidi’
OR ‘The Prisoner Of Golconda’ (1954) and ‘C.F.S.India’s ‘Baal Shivaji’ (1982).
The film ‘Golconda Ka Qaidi’ was produced and directed by actor Prem Nath. This was his younger brother and actor
Rajinder Nath’s debut film as well. Jagannath and Kundanlal were Datta
Dawjekar’s Co-Music Directors in the film. Among a total of 8 songs which were
sung by Sudha Malhotra, Rafi, Madhubala Zaveri, Geeta Dutt, Prem Nath and
Shamshad Begum, ‘dhad dam chak lag rahi jungle me’ (Shamshad Begum) was a big
hit.
Datta Dawjekar was based in Pune till
that time but in the year 1952, on Lata’s persuasion, he permanently shifted
base to Mumbai and joined Music Director C.Ramchandra as his chief assistant.
He worked with him for 10 years but simultaneously also kept on composing for
Marathi films, plays and documentaries as an independent music director.
According to Datta Dawjekar, “I wrote and composed a song ‘ina mina mona bass’
for a Marathi children play which eventually turned into the hit song ‘ina mina
dika’ from C.Ramchandra’s film ‘Asha’ which released in the year 1957”.
Datta Dawjekar composed more than 1000
songs in a total of 5 Hindi, 51 Marathi and around 500 Documentary films.
Playback singer Anuradha Podwal was also introduced by Datta Dawjekar whose
debut song ‘ghumla hridayi ninad ha’ in the Marathi film ‘Yashoda’ (1974) was
again a big hit. Datta Dawjekar won Maharashtra Government’s ‘Best Music
Director’ award for 5 consecutive years since 1962. He also won Maharashtra
Government’s ‘Lata Mangeshkar Puraskar’ and ‘Sur Singar Puraskar’. But his
greatest honor remains in ‘introducing the legend, Lata Mangeshkar, to Hindi
Film Music’ for which the Hindi film industry will always be grateful to him.
Fondly called ‘DD’, Music Director
Datta Dawjekar was born on 15.11.1917 in Pune and passed away in Mumbai on
19.09.2007 at the age of 90 years.
bahut achha lekh hai,
ReplyDeleteis prakar ke lekh kam hi milte hain
dhanyawad
Muveen
09971748099
shukriya janaab !!! :)
ReplyDeleteHello, I'm so happy with your blog site about old songs, Good luck to you and your well performed job.
ReplyDeleteRegards,
the best golden voice of mukesh
मैं आपकी इन सब जानकारियों से अचंभित हूं हिंदी फिल्म जगत से जुड़ा यह अमूल्य खजाना हमारी धरोहर है कृपया आपके समस्त लेखों को संभाल कर रखिए आने वाली पीढ़ियों के लिए यह रिसर्च का विषय है कृपया उस महान कलाकार नेमो ( लखनऊ )के बारे में भी कुछ बताइए जिसने राज कपूर की फिल्म जागते रहो तथा श्री 420 में अविस्मरणीय भूमिका निभाई थी यद्यपि इन दोनों फिल्मों में हीरो राज कपूर थे लेकिन नेमो का अभिनय कमाल का था और वह किसी भी सूरत में राज कपूर से कम प्रतिभाशाली नहीं दिखे. सादर ------ SKM Ojha
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