Saturday, July 14, 2012

“Shaame Gham Ki Qasam Aaj Ghamgeen Hain hum" – Ranjit Studio

शामे ग़म की क़सम आज ग़मगीं हैं हमरणजीत स्टूडियो

                     .............शिशिर कृष्ण शर्मा

साल 1931 में आलमआरासे टॉकी फ़िल्मों का दौर शुरू होने के साथ ही लाहौर, कोलकाता, पुणे और कोल्हापुर बहुत तेज़ी से फ़िल्म निर्माण का केन्द्र बनकर उभरने लगे थे। उस दौर की प्रभात पिक्चर्स’ (पुणे), ‘जयाप्रभाऔर प्रफुल्ल पिक्चर्स’ (कोल्हापुर), ‘न्यू थिएटर्सऔर माडन थिएटर्स’ (कोलकाता) पंचोली आर्ट्स’ (लाहौर) और बॉम्बे टॉकीज़और वाडिया मूवीटोन’ (मुंबई) जैसी अग्रणी कंपनियों के बीच एक चमकता हुआ नाम था मुंबई के रणजीत स्टूडियो का, जिसके बारे में कहा जाता था कि आकाश से कहीं ज़्यादा सितारे रणजीत में हैं इसकी वजह यही थी कि एक जमाने में रणजीत स्टूडियोमें सात सौ से भी ज़्यादा कलाकार और तकनीशियन नौकरी कर रहे थे। यहां तक कि उस जमाने में सरकार ने रणजीत स्टूडियोके अंदर ही राशन की दुकान भी खुलवा दी थी। जहां रणजीत फ़िल्म कंपनीकी फ़िल्मों से ही माधुरी, सुलोचना (रूबी मायर्स), बिलिमोरिया भाईयों, ईश्वरलाल, चार्ली, दीक्षित, घोरी, ख़ुर्शीद और मोतीलाल जैसे सितारों, उस्ताद झंडे ख़ां, ज्ञानदत्त, बुलो सी.रानी, आदि संगीतकारों और जयंत देसाई, नानूभाई वकील, चतुर्भुज दोषी, मणिलाल व्यास, दीनानाथ मधोक और नंदलाल जसवंतलाल जैसे निर्देशकों ने अपनी पहचान बनाई, वहीं दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान कोलकाता छोड़कर मुंबई आए केदार शर्मा, लीला देसाई, कुंदनलाल सहगल, ख़ुर्शीद, बिपिन गुप्ता और खेमचंद प्रकाश जैसे दिग्गजों को रणजीत स्टूडियोमें ही पनाह मिली थी। यही नहीं, इससे पहले त्रिलोक कपूर, पृथ्वीराज कपूर और कल्याणीबाई जैसे कलाकार भी कोलकाता से रणजीत स्टूडियोके बुलावे पर ही मुंबई आए थे।

रणजीत स्टूडियो की स्थापना मूल रूप से जामनगर (गुजरात) के रहने वाले सरदार चंदूलाल शाह ने साल 1929 में की थी। कुछ साल पहले हुई मुलाक़ात के दौरान चंदूलाल शाह के बेटे नवीन शाह ने बताया था कि उनके पिता 1920 के दशक की शुरूआत में कपास के बिज़नेस के सिलसिले में मुंबई आकर बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में नौकरी करने लगे थे। फ़िल्मों में उनका आना महज़ इत्तेफ़ाक़ से हुआ था, जब उन्हें लक्ष्मी फ़िल्म कंपनीकी साल 1925 में बनी फ़िल्म विमलाडायरेक्ट करने का मौक़ा मिला था। उस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे राजा सैण्डो और पुतली। साल 1925 में ही चंदूलाल शाह ने लक्ष्मी फ़िल्म कंपनी’ की फ़िल्म पांच दादाडायरेक्ट की। इस फ़िल्म की मुख्य भूमिकाएं भी राजा सैण्डो और पुतली ने ही निभाई थीं। साल 1926 में इसी कंपनी की फ़िल्म माधव काम कुंडलाडायरेक्ट करने के बाद चंदूलाल शाह को कोहेनूर फ़िल्म कंपनीकी फ़िल्म टाईपिस्ट गर्लडायरेक्ट करने का मौक़ा मिला। ये फ़िल्म उन्होंने जी.एस.देवारे के साथ मिलकर डायरेक्ट की थी। साल 1926 की बहुत बड़ी हिट साबित हुई इस फ़िल्म टाईपिस्ट गर्लकी मुख्य भूमिकाओं में सुलोचना (रूबी मायर्स), राजा सैंडो और आर.एन.वैद्य के अलावा गौहरजान मामाजीवाला भी शामिल थीं जो सौराष्ट्र के एक बोहरी मुस्लिम परिवार से थीं।

टाईपिस्ट गर्ल’  के बाद चंदूलाल शाह ने गौहर को मुख्य भूमिका में लेकर कोहिनूर फ़िल्म कंपनीकी एजुकेटेड वाईफ़’, ‘गुणसुंदरी’, ‘सती माद्री’, ‘सुमारी ऑफ़ सिन्ध(चारों 1927), ‘जगदीश फ़िल्म कंपनीकी गृहलक्ष्मी’, ‘विश्वमोहिनी(दोनों 1928) और चन्द्रमुखी(1929) जैसी कुछ फ़िल्में डायरेक्ट कीं और फिर गौहर के साथ मिलकर साल 1929 में उन्होंने दादर (पूर्व) में रणजीत स्टूडियोकी नींव रखी। नवीन शाह के मुताबिक़ चंदूलाल शाह ने स्टूडियो का नाम जामनगर के महाराजा और मशहूर क्रिकेटर रणजीत सिंह के सम्मान में रखा था| स्टूडियो की स्थापना महाराजा रणजीत सिंह द्वारा दी गयी आर्थिक मदद से की गयी थी।

1929 से 1931 के तीन सालों में रणजीत फ़िल्म कंपनीके बैनर में भिखारन’, ‘फ़ेयरी ऑफ़ सिंहलद्वीप’, ‘पति-पत्नी’, ‘राजपूतानी(सभी 1929), ‘बिलवेड रोग’, ‘देशदीपक’, ‘डिवाईन डावरी’, ‘जवांमर्द’, ‘लव एंगल’, ‘माय डार्लिंग’, ‘नूरेवतन’, ‘आऊटलॉ ऑफ़ सोरठ’, ‘रानकदेवी’, ‘रसीली राधा’, ‘शेखचिल्ली’, ‘ टाईग्रेस’, ‘वाईल्ड फ़्लॉवर(सभी 1930), ‘बॉम्बे मिस्टीरियस’, ‘बगल्स ऑफ़ वॉर’, ‘डेज़र्ट डेमसेल’, ‘ड्रम्स ऑफ़ लव’, ‘हूरे रोशन’, ‘लव बर्ड्स’, ‘ग्वालन’, ‘घूंघटवाली’, ‘बांके सांवरिया’, ‘’नूरे आलम’, ‘विजयलक्ष्मी’, ‘विलासी आत्मा’, ‘बगदाद की बुलबुलऔर क़ातिल कटारी(सभी 1931) जैसी 31 साईलेंट फ़िल्मों का निर्माण किया गया। इन हिट फ़िल्मों में साईलेंट फ़िल्मों के उस दौर के गौहर, पुतली, सुल्ताना, शांताकुमारी, माधुरी, ज़ुबैदा, राजा सैंडो, बिलिमोरिया भाई, ईनामदार, बाबूराव और ईश्वरलाल जैसे कलाकारों ने काम किया था। चंदूलाल शाह, नानूभाई वकील, जयंत देसाई, नंदलाल जसवंतलाल और नागेन्द्र मजूमदार रणजीत फ़िल्म कंपनी के बैनर में बनी इन फिल्मों के निर्देशक हुआ करते थे। चूंकि साईलेंट फ़िल्मों को देश के अलग अलग हिस्सों में वहां बोली जाने वाली भाषा के मुताबिक नए नामों के साथ प्रदर्शित किया जाता था इसलिए इनका ठीक-ठीक रेकॉर्ड रख पाना बेहद ही मुश्किलों भरा काम है।

टॉकी फ़िल्मों का ज़माना आया तो रणजीत फ़िल्म कंपनी का नाम बदलकर रणजीत मूवीटोनकर दिया गया। इस बैनर की पहली टॉकी फ़िल्म थी देवी देवयानी(1931), जिसकी मुख्य भूमिकाएं गौहरजान मामाजीवाला, डी.बिलिमोरिया, केकी अडजानिया, मास्टर भगवानदास और मिस कमला ने निभाई थीं। इस फ़िल्म के निर्देशक चंदूलाल शाह और संगीतकार उस्ताद झंडे ख़ां थे। उस्ताद झंडे ख़ां ने साल 1931 से साल 1933 के बीच बनी रणजीत मूवीटोनकी सभी 13 टॉकी फ़िल्मों देवी देवयानी(1931), ‘भूतिया महल’, ‘चार चक्रम’, ‘दो बदमाश’, ‘राधारानी’, ‘शैलबाला’, ‘सतीसावित्री(सभी 1932), ‘भोला शिकार’, ‘भूलभुलैया’, ‘कृष्णसुदामा’, ‘मिस 1933’, ‘परदेसी प्रीतमऔर विश्वमोहिनी(सभी 1933) में संगीत दिया था। आगे चलकर इन्हीं उस्ताद झंडे ख़ां के सहायक के तौर पर संगीतकार नौशाद ने फिल्मों में कदम रखा था।

रणजीत मूवीटोनमें फिल्म निर्माण की रफ़्तार का पता इसी बात से चलता है कि यहां एक साल में औसतन 6 फ़िल्में बनती थीं। गुणसुंदरी’, ‘सितमगर’, ‘तूफ़ानमेल’, ‘वीर बभ्रुवाहन’, ‘बैरिस्टर वाईफ़’, ‘कॉलेज गर्ल’, ‘देशदासी’, ‘नूरेवतन’, ‘रात की रानी’, ‘ज्वालामुखी’, ‘लहरी लाला’, ‘राजरमणी’, ‘दिलफरोश’, ‘परदेसी पांखी’, ‘शमा परवाना’, ‘तूफ़ानी टोली’, ‘बाज़ीगर’, ‘गोरख आया’, ‘पृथ्वीपुत्र’, ‘सेक्रेट्री’, ‘अधूरी कहानी’, ‘ठोकर’, ‘आज का हिंदुस्तान’, ‘दिवाली’, ‘होली’, ‘पागलऔर अछूतजैसी  साल 1934 से 40 के बीच बनी फ़िल्मों को मिलाकर 1930 के दशक में रणजीत मूवीटोनके बैनर में कुल 61 हिंदी फ़िल्में बनीं। 1939 में बनी संत तुलसीदासहिंदी के अलावा मराठी भाषा में भी बनी थी। साल 1938 में इस बैनर की एक तमिल फ़िल्म सीताअपहरणमभी प्रदर्शित हुई थी, हालांकि किसी अन्य स्रोत से इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है। उधर 1940 में प्रदर्शित हुई अछूतगौहरजान की बतौर अभिनेत्री आख़िरी फ़िल्म थी जिसके बाद अभिनय से सन्यास लेकर वो पूरी तरह से रणजीत मूवीटोनके प्रबन्धन में व्यस्त हो गयी थीं। चंदूलाल शाह ने भी फ़िल्म अछूतके बाद 14 सालों तक ख़ुद को निर्देशन से अलग कर लिया था।

उधर कोलकाता के न्यू थिएटर्ससे करियर शुरू करने वाले संगीतकार खेमचन्द प्रकाश मुंबई आए तो सुप्रीम पिक्चर्सकी दो फ़िल्मों में संगीत देने के बाद साल 1940 में वो रणजीत मूवीटोनसे जुड़ गए। साल 1940 से साल 1945 के बीच उन्होंने इस बैनर की कुल 20 फ़िल्मों, ‘आज का हिंदुस्तान’, ‘होली’, ‘दिवाली’, ‘पागल(सभी 1940), ‘परदेसी’, ‘शादी’, ‘उम्मीद(सभी 1941), ‘चांदनी’, ‘दुखसुख’, ‘फ़रियाद’, ‘इकरार’, ‘मेहमान(सभी 1942), ‘गौरी’, ‘तानसेन’, ‘विषकन्या(सभी 1943), ‘भवंरा’, ‘मुमताज महल’, ‘शंहशाह बाबर(सभी 1944), ‘धन्ना भगतऔर प्रभु का घर (सभी 1945) में संगीत दिया। संगीतकार ज्ञानदत्त ने रणजीत मूवीटोन’  की ही फ़िल्म तूफ़ानी टोली(1937) से करियर शुरू किया था, जिसके बाद उन्होंने इस बैनर की 24 और फ़िल्मों में संगीत दिया।  इनमें 1937 से 1940 के बीच बनी 15 फ़िल्मों के अलावा 1940 के दशक में बनी बेटी’, ‘ढिंढोरा’, ‘ससुराल(सभी 1941), ‘अरमान’, ‘भक्त सूरदास’, ‘धीरज(सभी 1942), ‘अंधेरा’, बंसरी’, ‘नर्सऔर शंकर पार्वती(सभी 1943) भी शामिल हैं।

उधर अमर पिक्चर्सकी साल 1943 में बनी और ज्ञानदत्त द्वारा संगीतबद्ध फ़िल्म पैग़ाममें दो गीतों की धुन बनाने वाले बुलो सी.रानी ने भी रणजीत मूवीटोनकी ही फ़िल्म पगली दुनिया(1943) से बतौर स्वतंत्र संगीतकार करियर शुरू किया था। पगली दुनिया’  सहित उन्होंने इस बैनर की कारवां(1944), ‘चांद चकोरी’, ‘मूर्तिऔर खेमचन्द प्रकाश के साथ मिलकर प्रभु का घर(सभी 1945), ‘धरती’, ‘राजपूतानी(दोनों 1946), ‘बेला’, ‘कौन हमारा’, ‘पिया घर आजा’, ‘वो ज़मानाऔर हंसराज बहल के साथ मिलकर लाखों में एक(सभी 1947), ‘बिछड़े बलम’, ‘जय हनुमानऔर हंसराज बहल के साथ मिलकर मिट्टी के खिलौने(सभी 1948), ‘भूलभुलैया’, ‘ग़रीबी’, ‘नज़ारे(सभी 1949), ‘जोगन(1950) और औरत तेरी यही कहानी(1954) जैसी कुल 20 फ़िल्मों में संगीत दिया।     

1940 के दशक में रणजीत मूवीटोनके बैनर में कुल 50 फ़िल्मों का निर्माण किया गया। कोलकाता से आए लेखक-निर्देशक केदार शर्मा ने मुंबई में रणजीत मूवीटोनकी फ़िल्म अरमान(1942) से करियर शुरू किया तो गायक-अभिनेता के.एल.सहगल ने भक्त सूरदास(1942) से। सहगल अभिनीत मशहूर फ़िल्में तानसेन(1943) और भवंरा(1944) भी रणजीत मूवीटोन’  के ही बैनर में बनी थीं। चंदूलाल शाह के भांजे और निकट सहयोगी रहे निर्माता-निर्देशक रतिभाई पुणातर के बेटे जयराज बताते हैं कि ये वो समय था जब रणजीत मूवीटोनकी हरेक फ़िल्म जुबली हिट हो रही थी। शेयर बाज़ार में सट्टा लगाने और घुड़दौड़ के शौक़ीन चंदूलाल शाह जहां भी हाथ डालते उन्हें कामयाबी ही हाथ लगती थी। यहां तक कि हरेक दौड़ में अव्वल रहने वाले उनके दोनों घोड़े बालमऔर चकोरीभी उस ज़माने में मशहूरी की बुलंदियों पर थे। हर तरफ़ से मिल रही कामयाबी ने चंदूलाल शाह के आत्मविश्वास को इतना बढ़ा दिया था कि जोख़िम उठाने में उन्हें मज़ा आने लगा था।

1940 के दशक के मध्य में रणजीत स्टूडियोके पतन की शुरूआत तब हुई जब कपास के सट्टे में चंदूलाल शाह एक ही दिन में 1 करोड़ 25 लाख की रक़म हार गए। जयराज के मुताबिक़ ये घटना साल 1944 में घटी थी। हालात सम्भालने की कोशिश में साल 1950 में रणजीत स्टूडियोकी तमाम संपत्ति के अलावा ऑपेरा हाऊस के पास मौजूद गौहरजान के मालिकाना हक़ वाली बहुमंज़िला रिहायशी इमारत को भी एशियन इंश्योरेंस कंपनी (अब भारतीय जीवन बीमा निगम) के पास गिरवी रख देना पड़ा, जिन्हें आख़िर तक नहीं छुड़ाया जा सका। इसके बावजूद बेदर्दी’ ‘हमलोग(दोनों 1951), ‘बहादुर’, फ़ुटपाथ’, ‘पापी(तीनों 1953), ‘औरत तेरी यही कहानी’, ‘धोबी डॉक्टर(दोनों 1954), ‘ज़मीन के तारे(1960) जैसी फ़िल्में तो रणजीत मूवीटोनके बैनर में बनीं ही, चंदूलाल शाह ने भी 14 सालों बाद फ़िल्म पापीसे एक बार फिर से निर्देशन में हाथ आज़माने की कोशिश की। पापीराजकपूर के करियर की वो अकेली फ़िल्म थी जिसमें उन्होंने डबल रोल किया था। लेकिन तमाम कोशिशें व्यर्थ गयीं और अकेली मत जईयो(1963) ‘रणजीत मूवीटोनकी आख़िरी फ़िल्म साबित हुई।

जयराज के मुताबिक साल 1965 में राजकपूर और वैजयंतीमाला को लेकर फ़िल्म बहुरूपियाका निर्माण शुरू किया गया था। शंकर जयकिशन द्वारा संगीतबद्ध इस फ़िल्म का एक गीत फ़िल्माया भी जा चुका था लेकिन ये फ़िल्म अधूरी रह गयी। चंदूलाल शाह, जिन्हें मशहूर फ़िल्म पत्रकार बाबूराव पटेल ने सरदारकी उपाधि से नवाज़ा था, साल 1975 में गुज़रे और गौहरजान मामाजीवाला का देहांत साल 1984 में हुआ।

जयराज बताते हैं, ‘रणजीत मूवीटोनके बैनर में फ़िल्म निर्माण के बंद हो जाने के बाद रणजीत स्टूडियोकी बागडोर यूनाईटेड टेक्नीशियंसने संभाल ली और स्टूडियो के फ़्लोर्स को बाहरी निर्माताओं को किराए पर शूटिंग के लिए दिया जाने लगा। यूनाईटेड टेक्नीशियंस’ ‘रणजीत मूवीटोनमें काम करने वाले 7 तकनीशियनों का समूह था, जिसमें वसंतराव बुआ’, ‘शाहभाई’, मोहनभाई’, ‘हसमुखभाई मिस्त्री’, ‘वहाबभाई’, कपूर साहबऔर माधवरावशामिल थे। लेकिन साल 1984 में इंश्योरेंस कंपनी ने गिरवी रखी गयी पूरी सम्पत्ति को नीलाम कर दिया।

आज दादर (पूर्व) के दादा साहब फाल्के मार्ग पर स्थित रणजीत स्टूडियोका मालिकाना हक़ मुम्बई के एक नामी बिल्डर एन.एल.,मेहता के हाथों में है। गुज़रे ज़माने की भुला दी गयी फ़िल्मों के निगेटिव्ज़ और प्रिंट्स को तलाशने के व्यवसाय में जुटे जयराज पुणातर और निर्माता एन.सी.सिप्पी के ऑफ़िसों को अपवाद मान लिया जाए तो सिनेमा से रणजीत स्टूडियोका रिश्ता पूरी तरह से टूट चुका है। अब इसमें दर्जनों ग़ैर-फ़िल्मी कंपनियों के दफ़्तर और कपड़ा फ़ैक्ट्रियां मौजूद हैं।

साल 1929 से 1963 के दौरान रणजीत मूवीटोनके बैनर में कुल 31 साईलेंट, 1 तमिल, 1 मराठी और 120 हिंदी फ़िल्मों का निर्माण किया गया। जयराज के मुताबिक़ आज रणजीत मूवीटोनके बैनर में बनी सिर्फ़ 7 फ़िल्में तानसेन’, जोगन’, ‘हम लोग’, ‘पापी’, ‘फ़ुटपाथ’, ‘ज़मीन के तारेऔर अकेली मत जईयोही उपलब्ध हैं बाक़ी सभी फ़िल्मों के निगेटिव आग में जलकर ख़त्म हो चुके हैं। यही वजह है कि अपने दौर की उन तमाम फ़िल्मों के नाम आज अनसुने से लगते हैं।

रणजीत मूवीटोनभले ही इतिहास का हिस्सा बन चुका हो लेकिन स्टूडियो के प्रवेशद्वार पर लिखा इसका नाम और अंदर की एक दीवार पर नष्ट होने की कगार पर पहुंच चुका इसका प्रतीक चिह्न (हाथ में भाला लिए घुड़सवार) आज भी इसके गौरवशाली दिनों की याद दिलाते हैं। ये अलग बात है कि दीवार पर बना प्रतीक चिह्न भी अब एक संगीत विद्यालय और एक ग़ैर फ़िल्मी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी के बोर्ड के पीछे छिपकर आंखों से ओझल हो चुका है। उधर कुछ समय पहले तक जयराज के ऑफ़िस के दरवाज़े पर टंका हुआ पीतल का प्रतीक चिह्नभी उखड़कर अब उनकी आलमारी में बंद हो चुका है। ये वोही ऑफ़िस है जिसमें किसी ज़माने में सरदार चंदूलाल शाह और रतिभाई पुणातर बैठते थे। सरदार चंदूलाल शाह के बेटे नवीन शाह तो रणजीतके नाम से पूरी तरह से विमुख हो चुके हैं लेकिन रतिभाई पुणातर के बेटे जयराज आज भी इस नाम से जुड़ी तमाम सुनहरी यादों को समेटने की कोशिशों में जुटे हुए हैं।


We are thankful to

Mr. D.B. Samant, Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.

Mr. Jairaj Punatar for providing movies’ booklets & pictures.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.

Ranjit Movietone on YT Channel BHD 


Shaame Gham Ki Qasam Aaj Ghamgeen Hain hum"Ranjit Studio

                                 ……………Shishir Krishna Sharma

With the outset of talkie films with Alamarain the year 1931, Lahore, Kolkata, Pune and Kolhapur emerged fast as the centers of film production.  Among leading companies of that time like Pune’sPrabhat Film Company’, Kolhapur’sJayaprabha Studio’ and Prafull Pictures’, Kolkata’sNew TheatresandMadan Theatres, Lahore’sPancholi Artsand Mumbai’sBombay Talkiesand ‘Wadia Movietone’, Mumbai’sRanjit had a shining name for it was said that ‘there are more stars in Ranjit than the sky’. The reason was that ‘Ranjit Studio’, at that time had more than 700 artistes and technicians on its payroll, a huge number which eventually forced the government to open a ration shop inside Ranjit Studio. ‘Ranjit Film Company’ not only gave star status and huge fan following to actors like Madhuri, Sulochna (Ruby Myers), Billimoria brothers, Ishwarlal, Charlie, Dixit, Ghori, Khurshid and Motilal, composers like Ustad Jhande Khan, Gyan Dutt, Bulo C.Rani and directors like Jayant Desai, Nanubhai Vakil, Chaturbhuj Doshi, Manilal Vyas, Dinanath Madhok and Nandlal Jaswantlal but also gave refuge to the stalwarts like Kedar Sharma, Leela desai, Kundanlal Sehgal,  Khurshid, Bipin Gupta and Khemchand Prakash, after they shifted base to Mumbai from  Kolkata during the Second world war. Even artistes like Trilok Kapoor, Prithviraj Kapoor and Kalyani Bai had also long back shifted from Kolkata to Mumbai on call from ‘Ranjit Studio’ only.

Ranjit Studio was founded in the year 1929 by Sardar Chandulal Shah who was originally from Jamnagar (Gujrat). Few years back in a meeting, Chandulal Shah’s son Navin Shah said that his father came to Mumbai in early 1920’s for cotton trading and started working in Bombay Stock Exchange. His entry into films happened just by chance when he was offered the direction of Laxmi Film Companys’ filmVimla(1925). The main lead of this film was Raja Sando and Putli. In the same year i.e. 1925, Chandulal Shah directed ‘Laxmi Film Company’s’ another filmPaanch Dada which also had Raja Sando and Putli in the main lead. After directing Madhav Kaam Kundalaof the same banner in 1926, Chandulal Shah got chance to co-directKohinoor Film Company’s filmTypist Girl in association with G.S. Deware. The biggest hit of the year 1926, Typist Girl in main lead had Sulochna (Ruby Myers), Raja Sando and R.N. Vaidya along with Gauharjaan Mamajiwala who hailed from a Bohri Muslim family from Saurashtra. After ‘Typist Girl’, Chandulal Shah directedKohinoor Film CompanysEducated Wife’, ‘Gun Sundari’, ‘Sati Madri’, ‘Sumari of Sindh’ (all 1927) andJagdish Film Companys Grih Laxmi’, ‘Vishwa Mohini’ (both 1928) andChandramukhi’ (1929) which all had Gauhar in the main lead. In the year 1929, in partnership with Gauhar, he founded Ranjit Studioat Dadar (East).  As per Navin Shah, Chandulal Shah gave this name to the Studio as tribute to the then Maharaja of Jamnagar and renowned Cricketer Ranjit Singh who had also monetarily helped him to set up the Studio.

In 3 years from 1929 to 1931, a total of 31 silent films were produced under the banner of Ranjit Film Company. These films were, Bhikharan’, ‘Fairy of Sinhaldweep’, ‘Pati-Patni’, ‘Rajputani’ (all 1929), ‘Beloved Rogue’, ‘Desh Deepak’, ‘Divine Dowry’, ‘Jawan Mard’, ‘Love Angle’, ‘My Darling’, ‘Noor-e-Watan’, ‘Outlaw Of Sorath’, ‘Ranak Devi’, ‘Rasili Radha’, ‘Sheikhchilli’, ‘The Tigress’, ‘Wild Flower’ (all 1930), ‘Bombay The Mysterious’, ‘Bugles of War’, ‘Desert Demsel’, ‘Drums of Love’, ‘Hoor-e-Roshan’, ‘Love Birds’, ‘Gwalan’, ‘Ghoonghatwali’, ‘Banke Sanwaria’, ‘Noor-e-Alam’, ‘Vijay Laxmi’, ‘Vilasi Atma’, ‘Baghdad ki Bulbuland Qaatil Katari’ (all 1931). All the artistes i.e. Gauhar, Putli, Sultana, Shanta Kumari, Madhuri, Zubaida, Raja Sando, Billimoria Brothers, Inamdar, Babu Rao and Ishwarlal who acted in these films were known faces of the silent era of Indian Cinema. These films made under the banner of Ranjit Film Company were directed by Chandulal Shah, Nanubhai Vakil, Jayant Desai, Nandlal Jaswantlal and Nagendra Majumdar. Since there was a trend to release silent films with different titles in different parts of the country in accordance with the particular language spoken in that particular part, it is now very difficult to keep a proper record of all the silent films made in that era.

With the outset of talkie films, Ranjit Film Company’s name was changed toRanjit Movietone. First talkie film made under the banner of ‘Ranjit Movietone’ wasDevi Devyani’ (1931), with Gauharjaan Mamajiwala, D. Billimoria, Keki Adjania, Master Bhagwandass and Miss Kamla in main lead. This film was directed by Chandulal Shah and the composer was Ustad Jhande Khan who composed music for all initial 13 talkie films made between 1931 to 1933 under the banner of ‘Ranjit Movietone’. These films were, Devi Devyani’ (1931), ‘Bhootia mahal’, ‘Char Chakram’, ‘Do Badmash’, ‘Radha Rani’, ‘Shailbala’, ‘Sati Savitri’ (all 1932), ‘Bhola Shikar’, ‘Bhool Bhulaiya’, ‘Krishna Sudama’, ‘Miss 1933’, ‘Pardesi PreetamandVishwa Mohini’ (all 1933). This was the same Ustad Jhande Khan whom composer Naushad started his career as assistant with in late 1930’s.

The pace of the film production in Ranjit Movietoneis proven by the fact that an average of 6 films per year were being made under this banner. Including the films Gun Sundari’, ‘Sitamgar’, ‘Toofan Mail’, ‘Veer Babhruvahan’, ‘Barrister Wife’, ‘College Girl’, ‘Deshdasi’, ‘Noor-e-Watan’, ‘Raat ki Rani’, ‘Jwalamukhi’, ‘Lehri Lala’, ‘Raj Ramni’, ‘Dilfarosh’, ‘Pardesi Pakhi’, ‘Shama Parwana’, ‘Toofani Toli’, ‘Baazigar’, ‘Gorakh Aaya’, ‘Prithvi Putra’, ‘Secretary’, ‘Adhoori Kahani’, ‘Thokar’, ‘Aaj Ka Hindustan’, ‘Diwali’, ‘Holi’, ‘PagalandAchhootmade between 1934 to 1940, total 61 films were produced by Ranjit Movietone in the decade of 1930’s. ‘Sant Tulsidas’, a 1939 release was a bilingual which was made in Marathi language as well. There is a reference of a Tamil language film ‘Seetha-Apaharanam’ made under this banner in 1938, but there is no other source found to crosscheck and confirm this fact. Year 1940 release ‘Achhoot’ was Gauharjaan’s last film as an actress after which she got completely busy with looking after the management of the banner and the studio. Chndulal Shah also refrained himself from directing any new movie for the next 14 years.   

When composer Khemchand Prakash who started career in New TheatresKolkata, shifted base to Mumbai in late 1930’s, he, after composing music for 2 films of Supreme Pictures, got associated with Ranjit Movietonein 1940. During 1940 to 1945 he composed music for total 20 films of this banner vizAaj Ka Hindustan’, ‘Holi’, ‘Diwali’, ‘Pagal’ (all 1940), ‘Pardesi’, ‘Shadi’, ‘Ummeed’ (all 1941), ‘Chandni’, ‘Dukh Sukh’, ‘Fariyaad’, ‘Iqraar’, ‘Mehmaan’ (all 1942), ‘Gauri’, ‘Tansen’, ‘Vish Kanya’ (all 1943), ‘Bhanwra’, ‘Mumtaj Mahal’, ‘Shahenshah Babar’ (all 1944), ‘Dhanna Bhagatand Prabhu Ka Ghar’ (all 1945). Composer Gyan Dutt also started career with ‘Ranjit Movietone’ with his debut movie Toofani Toli’ (1937). Later on he composed music for 24 more films of this banner including 15 films made between 1937 to 1940 along withBeti’, ‘Dhindhora’, ‘Sasural’ (all 1941), ‘Armaan’, ‘Bhakt Surdass’, ‘Dheeraj’ (all 1942), ‘Andhera’, ‘Bansari’, ‘Nurseand Shankar Parvati’ (all 1943) 

Composer Bulo C. Rani also started career as independent composer with Ranjit Movietones Pagli Duniya’ (1943). He had earlier composed 2 songs for Amar Pictures’ 1943 release Paigham whose main composer was  Gyan Dutt, Including ‘Pagli Duniya’, he composed music for total 20  films of this banner vizCaravan’ (1944), ‘Chand Chakori’, ‘Moorti and with Khemchand Prakash - Prabhu ka Ghar (all 1945), ‘Dharti’, ‘Rajputani’ (both 1946), ‘Bela’, ‘Kaun Hamara’, ‘Piya Ghar Aaja’, ‘Wo Zamanaand with Hansraj Bahal - Lakhon me Ek’ (all 1947), ‘Bichhde Balam’, ‘Jay Hanumanand with Hansraj Bahal - Mitti ke Khilone’ (all 1948),Bhool Bhulaiya’, ‘Gharibi’, ‘Nazaare’ (all 1949), ‘Jogan’ (1950) andAurat Teri Yahi Kahani ’ (1954).      

In the 1940’s, a total of 50 films were made under the banner of Ranjit Movietone. Writer-Director Kedar Sharma who had shifted from Kolkata, started his career in Mumbai with Ranjit Movietones Arman’ (1942). Same way Singer-Actor Kundan Lal Sehgal’s first movie in Mumbai was Bhakt Surdass’ (1942) of the same banner. Sehgal’s well appreciated moviesTansen’ (1943) andBhanwra’ (1944) were also produced by ‘Ranjit Movietone’. Chandulal Shah’s nephew i.e. his sister’s son and close aide Producer-Director Ratibhai Punatar’s son Jairaj says that those were the golden days of ‘Ranjit Movietone’. Every second film of this banner was a runaway hit. Chandulal Shah, who was fond of speculations in the share market and was equally passionate about Horse Racing, was successful in whichever trade he ventured into. Even his favorite horsesBalamand Chakoriwere definite winners in all races. His success in every field had taken his self-confidence to such heights that he had started enjoying taking big risks.  

In mid 1940’s, Ranjit Studiosuddenly saw its downfall when Chandulal Shah lost huge sum of Rupees 1 crores 25 lacs in a single day, in speculations in cotton trading.  According to Jairaj this mishap took place in the year 1944. Since all the efforts to control the deteriorating circumstances failed and there remained no other option, all the real estate of ‘Ranjit Studios as well as Gauharjaan owned multistoried building situated near Opera House was mortgaged in the year 1950 to Asian Insurance Company (now Life Insurance Corporation Of India). And this property could never be got released. Still production of films under the banner of Ranjit MovietonelikeBedardi’ ‘Hum Log’ (both 1951), ‘Bahadur’, ‘Footpath’, ‘Paapi’ (all 1953), ‘Aurat Teri Yehi Kahani’, ‘Dhobi Doctor’ (both 1954), ‘Zameen Ke Taare’ (1960) was continued. Chandulal Shah also tried his hand into direction once again after 14 years with the film Paapiwhich was Raj Kapoor’s career’s only film with his double role in it. But all the efforts turned futile and Akeli Mat Jaiyo’ (1963) proved to be the last film of Ranjit Movietone.  

According to Jairaj, in the year 1965 another Raj Kapoor and Vyjayantimala starrer filmBahurupiyawas started. One song of this film composed by Shankar Jaikishan had also been posturized but this film got shelved. Chandulal Shah, who was given the title of Sardarby renowned film journalist Baburao Patel died in the year 1975 and Gauharjaan Mamajiwala died in 1984.

Jairaj says that after the film production in ‘Ranjit Movietoneceased, United Technicians, a group of 7 technicians who were employed with the Studio for many years, took control of Ranjit Studio. This group, comprising of Vasant Rao Bua’, ‘Shah Bhai’, ‘Mohan Bhai’, ‘Hasmukh Bhai Mistry’, ‘Wahab Bhai’, Kapoor SahabandMadhav Rao started letting studio floors to outside producers for shootings to meet out day to day studio expenses. And finally in the year 1984 the whole mortgaged property was brought to the hammer by the Insurance Company.  

Today, ownership of Ranjit Studiowhich is situated on Dada Sahab Phalke Marg of central Mumbai’s Dadar (East) is with Mumbai’s well known builder Mr.N.L. Mehta. If leave apart as exception the offices of producer N.C. Sippy’s and Mr.Jairaj Punatar who is in the business of retrieving negatives and prints of bygone era’s long forgotten films, Ranjit Studios connection with Cinema is completely severed now. Today, dozens of offices of Non-Film Companies and textile factories are operating from here.  

During the years 1929 to 1963, total 31 silent, 1 Tamil, 1 Marathi and 120 Hindi films were made under the banners of  ‘Ranjit Film Company’ and ‘Ranjit Movietone’.  According to Jairaj out of these 153, only 7 films viz Tansen’, ‘Jogan’, ‘Hum Log’, ‘Paapi’, ‘Footpath’, ‘Zameen ke TaareandAkeli Mat Jaiyoare available today as negatives of all rest of the films have long back destroyed in a fire. This is the reason why the names of all these films seem as unheard of.

Though ‘Ranjit Movietone’ has become a part of the history, yet it’s name on the main entrance of Studio and the almost destroyed Logo, ‘the Horse rider holding a dagger in one hand’, embossed on one of the walls inside, are enough to remind us of the glorious era of ‘Ranjit’ though the logo has now vanished behind the signboards of a music school and a non-film distribution Company.  Even a small Logo made of brass which was fixed on the wooden door of Jairaj’s office until few months back has come out and is now lying in his office almirah. This is the same office where at one time Sardar Chandulal Shah and Ratibhai Punatar used to sit. Though, Sardar Chandulal Shah’s son Navin Shah doesn’t want to talk about Ranjit today, Ratibhai Punatar’s son Jairaj is still trying hard to gather up all the golden memories associated with this great name. 

6 comments:

  1. This must be one of the most haunting stories in bollywood. A man of such great name and wealth got decimateed to a very low level and no one even knows much about him. Very sad and frightening actually.

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  2. it is certainly reduced to nothing from the height of great institution. my grand father Manibhai Vyas (Manilal Vyas ) worked as a movie director for years.

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  3. To the best of your knowledge Chandulal Shah lost a fortune in one transaction not in cotton but silver speculation. Shah honoured all his commitments many of them were just oral .

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  4. Please read to the best of OUR knowledge.

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  5. Where can I find the movie Bhakta Surdas - 1942 ? Please guide me. My grandfather, now 90 years of age has lived during this time and this is the only movie he hasn't seen. Is there any was I can get this movie? Thank you.

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