“है दुनिया उसी की ज़माना उसी का” - बीर सखूजा
........शिशिर कृष्ण शर्मा
हिन्दी सिनेमा में कई कलाकार ऐसे हुए, जिन्होंने बहुत कम समय और गिनी चुनी कुछेक ही फ़िल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, अच्छी ख़ासी पहचान बनाई, और फिर गुमनामी में खो गए| आज उनके बारे में उनकी फ़िल्मों के अलावा और कोई जानकारी न तो पत्र-पत्रिकाओं में मिलती है, और न ही इन्टरनेट पर या कहीं और, कि वो कहां के थे, कहां चले गए, और अब कहां, किस हाल में होंगे! दुर्भाग्य से सिनेमा से जुड़े उनके समकालीन वो लोग भी अब जीवित नहीं हैं, जिनसे उन भुलाए जा चुके कलाकारों के बारे में थोड़ा बहुत तो पता चल ही सकता था| बालम, बिमला, विजया चौधरी, परवीन चौधरी...ऐसे कलाकारों की सूची बहुत लम्बी है| ऐसे ही एक अभिनेता थे, बीर सखूजा, जिन्होंने महज़ एक दशक के अपने करियर में कुल 16 फ़िल्मों में काम किया और फिर दुर्भाग्य से सिनेमा ही नहीं, दुनिया को भी अलविदा कह गए|
गूगल सर्च में सखूजा क्लिनिक मिला, क्लिनिक का लैंडलाइन नंबर मिला, क्लिनिक के स्टाफ़ ने डॉ.नवीन सखूजा का मोबाइल नंबर दिया| डॉ.नवीन सखूजा के ज़रिये मैं डॉ.रमेश सखूजा के बेटे यानी बीर सखूजा के भतीजे संजय सखूजा तक पहुंचा, और संजय जी ने बेहद गर्मजोशी के साथ मुझे बीर सखूजा जी के बारे में विस्तार से तमाम जानकारी उपलब्ध कराई|
बीर सखूजा का जन्म साल 1924 में सरगोधा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है| उनके पिता बृजलाल सखूजा रूड़की इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल-मेकैनिकल इंजीनियरिंग में पासआऊट थे| बंटवारे के बाद वो पंजाब पी.डब्ल्यू.डी. में चीफ़ इन्जिनियर रहे| उड़ीसा का हीराकुड बांध भी उन्हीं की देखरेख में बना था| बीर सखूजा की मां एक आम गृहिणी थीं| तीन बड़ी बहनों और दो भाईयों में बीर सबसे छोटे थे| उनकी मां उनके जन्म के समय ही गुज़र गयी थीं| ऐसे में बीर का पालनपोषण कराची में रहने वाले उनके चाचा डॉ.एच.एल.सखूजा और उनकी पत्नी ने किया| उधर बीर के पिता ने पत्नी के गुज़रने के बाद दूसरी शादी की, जिससे 5 बेटों और 4 बेटियों का जन्म हुआ|
बंटवारे के बाद सखूजा परिवार दिल्ली चला आया था| उधर बीर सखूजा फ़ौज में चले गए थे| अंग्रेजों के ज़माने की भारतीय फ़ौज में वो भारतीय मूल के गिनेचुने कमीशंड ऑफिसर्स में से थे और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान मेजर के पद तक पहुंच गए थे| बर्मा के मोर्चे पर एक रोज़ सामने से आते गाय-भैंस के झुण्ड को रास्ता देने के लिए उन्होंने अपनी जीप को रिवर्स किया तो जीप सड़क से फिसलकर खाई में गिर गयी| इस दुर्घटना में पैर में फ्रेक्चर हो जाने की वजह से बीर को हैदराबाद के मिलिट्री अस्पताल में दाख़िल कराया गया, जहां उनके पैर में स्टील रॉड डाली गयी|
कुछ हफ़्तों बाद जब हालत थोड़ी बेहतर हुई तो बीर सखूजा को अस्पताल के गलियारे में चलने की प्रैक्टिस कराई जाने लगी| एक रोज़ प्रैक्टिस के दौरान वो चिकने फ़र्श पर फिसलकर गिर पड़े, और उनके पैर की वोही हड्डी फिर से टूट गयी| दोबारा सर्जरी हुई, प्लास्टर चढ़ाया गया| और जब प्लास्टर कटा तो पैर एक-डेढ़ इंच छोटा हो गया था| यही वजह थी कि बीर सखूजा फ़िल्म के परदे पर भी लंगड़ाकर चलते नज़र आते थे|
बीर सखूजा मेडिकली अनफ़िट घोषित हुए तो अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें फ़ौज से छुट्टी दे दी| ऐसे में वो नागपुर चले आए, जहां उन्होंने कुछ ट्रक खरीदे, और ट्रांसपोर्ट का कारोबार शुरू कर दिया| बीर सखूजा की सबसे बड़ी बहन शकुन्तला भी नागपुर में ही रहती थीं, जहां उनके पति प्रोफेसर विष्णुदत्त खुराना एक कॉलेज में पढ़ाते थे|
बीर सखूजा बहुत अच्छा गाते थे| साथ ही हाथ की रेखाएं पढ़ने में भी उन्हें महारत हासिल थी| उनके जीजा प्रोफेसर विष्णुदत्त खुराना मशहूर निर्माता-निर्देशक केदार शर्मा के क़रीबी दोस्त थे| खुराना जी ने बीर का परिचय केदार शर्मा से कराया| और साल 1953 में बीर अपना कारोबार समेटकर, फ़िल्मों में काम करने की तमन्ना लिए नागपुर से मुम्बई चले आए|
केदार शर्मा की साल 1953 में प्रदर्शित हुई फिल्म 'गुनाह' से उन्होंने फिल्मों में कदम रखा| इसके अलावा उनकी एंट्री गुरूदत्त के कैंप में भी हो गयी| गुरूदत्त के बैनर 'गुरूदत्त फ़िल्म्स' की पहली फ़िल्म साल 1954 की 'आरपार', 1955 की 'मिस्टर एंड मिसेज़ 55’ और साल 1956 की 'सी.आई.डी.’ में उन्होंने बेहद अहम और खलनायक क़िस्म के किरदार किये|
क़रीब 11 साल के अपने करियर में बीर सखूजा ने कुल 16 फ़िल्मों में अभिनय किया, जिनमें 15 हिंदी और 1 पंजाबी फ़िल्म थी| वो फ़िल्में थीं -
1953 - 'गुनाह'
1954 - 'आरपार'
1955 -‘मिस्टर एंड मिसेज़ 55’ और 'शिकार'
1956 - 'सी.आई.डी.’
1958 - ‘काला पानी' और ‘सोलहवां साल'
1960 - ‘एक फूल चार कांटे' और ‘मासूम'
1961 - ‘काला समुन्दर’
1962 - ‘प्रोफ़ेसर’
1963 - ‘जब से तुम्हें देखा है’ और ‘शिकारी’ '
1964 - चांदी की दीवार’, 'कश्मीर की कली' और 'गीत बहारां दे' (पंजाबी)
फ़िल्म ‘कश्मीर की कली' में फ़ौजी कर्नल के छोटे से किरदार में बीर सखूजा ने अपनी ऐसी छाप छोड़ी कि दर्शक आज तक उन्हें भुला नहीं पाए हैं| लेकिन ‘कश्मीर की कली' उनके करियर की आख़िरी फ़िल्म साबित हुई|
दरअसल बीर सखूजा ने अपनी हस्तरेखाएं देखकर भविष्यवाणी की थी कि उनकी ज़िंदगी सिर्फ़ 40 साल की है| और इसीलिये शादी के तमाम प्रस्तावों को वो ये कहकर ठुकरा देते थे कि मैं किसी लड़की की ज़िंदगी ख़राब नहीं करना चाहता| साथ ही वो ये भी कहते थे कि अगर वो 40 की उम्र पार कर गए, तो फिर वो शादी कर लेंगे| बीर के छोटे जीजा यानी उनकी तीनों बहनों में तीसरी बहन प्रीतम के पति देसराज सोबती दिल्ली में रेलवे बोर्ड में महत्वपूर्ण पद पर थे, और बीर की ही तरह ख़ुद भी उच्चकोटि के हस्तरेखाशास्त्री थे| अपनी गणना के आधार पर वो भी बीर के भविष्यकथन से सहमत थे|
Dr.Ramesh Sakhuja |
डॉ.रमेश सखूजा के बेटे संजय सखूजा उस वक़्त बहुत छोटे थे, इसलिए उनको अपने चाचा की धुंधली सी ही याद है| और इसीलिये उन्होंने ये तमाम जानकारी बीर साहब के भांजे श्री कैलाश डावर की मदद से उपलब्ध कराईं, जो बीर साहब के निधन के समय तक युवावस्था में कदम रख चुके थे और जिनके ज़हन में मामा की तमाम यादें आज भी ताज़ा हैं| कैलाश जी बीर साहब की दूसरे नंबर की बहन सुशीला जी के बेटे हैं|
श्रीमती सुशीला डावर विज्ञान-अनुसंधानकर्ता होने के साथ साथ एक बेहतरीन कलाकार और संगीतज्ञ भी थीं| उनके पति डॉ.एच.आर.डावर लगातार सात सालों तक इन्डियन मेडिकल एसोसिएशन (आई.एम.ए) के मानद कोषाध्यक्ष रहे| कैलाश जी कहते हैं, “मैं आई.आई.टी. खड़गपुर में इलैक्ट्रिकल इंजिनियरिंग पढ़ रहा था और मेरा कोर्स पूरा होने वाला था| बीर मामा बेसब्री से मेरे फाइनल रिज़ल्ट का इंतज़ार कर रहे थे| जैसे ही मेरा रिज़ल्ट आया, मैंने मामा को टेलीग्राम के ज़रिये ये ख़ुशख़बरी भेजी| बदकिस्मती से उसी रोज़ हमें उनके निधन का टेलीग्राम भी मिला|”
Shri Kailash Dawar |
श्री कैलाश डावर ने बिड़ला, एस्कोर्ट्स, टी.वी.एस. जैसी कई बड़ी कंपनियों के साथ काम करने के बाद अपना कारोबार शुरू किया, और अब पिछले 20 सालों से दिल्ली में रहकर सेवानिवृत्त जीवन जी रहे हैं|
बीर सखूजा के भतीजे, चार्टर्ड अकाउंटेंट संजय सखूजा नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी ‘एम्बिट फिनवेस्ट' के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन हैं| संजय जी मुम्बई में रहते हैं| उनके पिता यानी बीर साहब के बड़े भाई डॉ.रमेश सखूजा का निधन 3 अप्रैल 2005 को 83 साल की उम्र में हुआ था|
नयी दिल्ली के पहाड़गंज स्थित सखूजा क्लिनिक के डॉ.नवीन सखूजा एक नेत्रचिकित्सक हैं| वो बीर सखूजा के चाचा डॉ.एच.एल.सखूजा के पौत्र हैं, जिन्होंने बीर सखूजा को पालपोसकर बड़ा किया था| डॉ.नवीन सुखेजा गोल्फ़ कोर्स – दिल्ली में अपने दादा के बनवाए पुश्तैनी मकान में रहते हैं|
अभिनेता (स्वर्गीय) बीर सखूजा जी के सम्बन्ध में तमाम जानकारी और दुर्लभ पारिवारिक तस्वीरें उपलब्ध कराने के लिए 'बीते हुए दिन' श्री कैलाश डावर, श्री संजय सखूजा और डॉ.नवीन सखूजा का आभार व्यक्त करता है|
बीर सखूजा जी के परिजनों तक हमें पहुंचाने के लिए श्री अनिल आहूजा विशेष रूप से धन्यवाद के पात्र हैं|
Thanks to -
Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance, and support.
Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Mr. Gajendra Khanna for English translation of the write up.
Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
Special Thanks to Shri Anil Ahuja, Shri Kailash Dawar, Shri Sanjay Sakhuja & Dr.Navin Sakhuja for their kind support.
Bir Sakhuja on YT Channel BHD
ENGLISH VERSION FOLLOWS...
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