Sunday, July 3, 2022

"Leke Pehla Pehla Pyar Bhar Ke Ankhon Me Khumar - Sheela Vaz

"लेके पहला पहला प्यार भर के आंखों में ख़ुमार" - शीला वाज़

                                                       …...शिशिर कृष्ण शर्मा 


शीला वाज़! 1950 के दशक की हिन्दी फ़िल्मों की जानीमानी नर्तकी, जिनका करियर भले ही महज़ 8 साल और बामुश्किल 40-45 फिल्मों तक सीमित रहा हो, लेकिन उनके मनमोहक नृत्य और मुस्कुराते चेहरे को उस दौर के दर्शक आज भी भूले नहीं हैं| शीला वाज़ ने साल 1954 में रिलीज़ हुई किशोर साहू की फ़िल्म 'मयूरपंख' के सुपरहिट गीत 'ठंडाना ठंडाना ठंडाना, मुश्किल है प्यार छुपाना' पर नृत्य से फ़िल्मों में कदम रखा था, और साल 1960 में शादी करके फिल्मों को अलविदा भी कह दिया था| क़रीब पांच दशकों की गुमनामी के बाद शीला वाज़ की यादें एक बार फिर से उनके प्रशंसकों के ज़हन में ताज़ा हो उठीं थीं, जब साल 2009 में इंटरनेट पर उनका एक इंटरव्यू प्रकाशित हुआ|

शीला वाज़ का जन्म 18 अक्टूबर 1934 को दादर- मुम्बई के एक कैथोलिक परिवार में हुआ था, जो मूल रूप से गोवा का रहने वाला था| शीला वाज़ को बचपन से ही नृत्य का शौक था, जो घर में किसी को भी पसंद नहीं था| उनके परिवार की नापन्दगी तब विरोध में बदल गयी थी, जब शीला वाज़ को फ़िल्म "मयूरपंख" में नृत्य का ऑफ़र मिला| हालांकि ये विरोध ज़्यादा टिक नहीं पाया और अंततः शीला वाज़ को "मयूरपंख" में काम करने की अनुमति मिल ही गयी|    

शीला वाज़ की अगली फ़िल्म केदार शर्मा की 'गुनाह’ थी जो 'मयूरपंख' से पहले, साल 1953 में रिलीज़ हुई थी, और इसीलिए 'गुनाह' को उनकी पहली फ़िल्म माना जाता है| 

शीला वाज़ को पहचान मिली, साल 1956 की फ़िल्म ‘सी.आई.डी.’ के गीत 'लेके पहला पहला प्यार’ और 'श्री 420’ के गीतों 'रमैया वस्तावैया' और 'दिल का हाल सुने दिल वाला' पर किये नृत्यों से|  आने वाले 4-5 सालों में उन्होंने 'दम है बाक़ी तो ग़म नहीं' ('घर नंबर 44’/ 1956), 'रात अंधेरी डर लागे मोहे छोड़ न जाना जी' ('दुर्गेश नंदिनी’/1956), 'झुकी झुकी प्यार की नज़र' ('जॉनी वॉकर'/1956), ‘छुपने वाले सामने आ' (‘तुमसा नहीं देखा'/1957), 'दिल तेरा दीवाना ओ मस्तानी बुलबुल' ('मिस्टर कार्टून एम.ए.’/1958), ‘देखो जी मेरा हाल, बदल गयी चाल...मोहे लागा सोलवां साल' (‘सोलवां साल'/1958), ‘निकला है गोरा गोरा चांद रे सजनवा' (गेस्ट हाउस'/1959), 'मेरी गल सुन कजरेवालिये' ('बंटवारा'/1961) और ‘घर आजा घिर आये बदरा सांवरिया' (‘छोटे नवाब'/1961) जैसे कई हिट गीतों पर नृत्य किया|  

साल 1960 में शीला वाज़ ने फ़िल्मों को अलविदा कह दिया था| और इसकी वजह थी, शादी करके उनका घर-गृहस्थी में व्यस्त हो जाना| उनकी 5-6 फ़िल्में  जैसे ‘मॉडर्न गर्ल', ‘रामू दादा', 'बंटवारा और 'छोटे नवाब' उनकी शादी के बाद प्रदर्शित हुई थीं| शीला वाज़ के पति रमेश लखनपाल एक फ़िल्म निर्देशक थे, जिन्होंने साल 1974 की फ़िल्म 'पॉकेटमार' और 1978 की ‘काला आदमी’ का निर्देशन किया था| शादी के बाद शीला वाज़ को नया नाम मिला था, 'श्रीमती रमा लखनपाल', जो आगे चलकर उनकी पहचान बना| और फिर जल्द ही वो एक बेटे और एक बेटी की मां भी बन गयीं|  

शीला वाज़ का बेटा अमेरिका की एक एयरलाइन्स में पायलट हैं और बेटी अपने पति और बच्चों के साथ टोरंटो (कनाडा) में रहती हैं| मैं कई सालों से शीला वाज़ से मिलने और उनका इंटरव्यू करने की कोशिश में था, लेकिन उनके बारे में सिर्फ़ इतनी ही जानकारी मिलती रही, कि वो जुहू में कहीं रहती हैं| उनका फ़ोन नंबर या घर का पता मुझे कोई नहीं बता पाया| और मेरी तलाश को तब ब्रेक लग गया, जब मैंने इंटरनेट पर कहीं पढ़ा और यूट्यूब पर किसी विडियो में भी देखा कि उनका निधन 4 दिसंबर 2014 को ही हो गया था| लेकिन ये सूचना सिरे से ग़लत निकली|  


दरअसल आज से चार दिन पहले यानि 30 जून 2022 को मुझे दिल्ली के एक फ़िल्मप्रेमी मित्र संदीप पाहवा जी का मैसेज मिला, कि कल, अर्थात 29 जून 2022 को, शीला वाज़ का निधन हो गया है| ज़ाहिर है मेरे लिए ये सूचना इसलिए भी किसी झटके से कम नहीं थी क्योंकि इंटरनेट और यूट्यूब पर दी गयी सूचना के आधार पर मैं शीला वाज़ को कभी का मृत मान चुका था| बहरहाल अपने स्तर पर छानबीन शुरू की तो संदीप पाहवा जी द्वारा दी गयी सूचना सही निकली|   

उक्त छानबीन के दौरान गुज़रे दौर के सुप्रसिद्ध अभिनेता (स्वर्गीय) जानकीदास जी के बेटे श्री बब्बू मेहरा और पूर्वपरिचित-वयोवृद्ध फ़िल्म और टी.वी. निर्देशक श्री रमेश गुप्ता जी से संपर्क हुआ, तो शीला वाज़ से सम्बंधित जानकारियों की छूटी हुई कड़ियां भी जुड़ती चली गयीं| शीला वाज़ जुहू की मशहूर नॉर्थ बॉम्बे सोसायटी में रहती थीं| श्री बब्बू मेहरा भी जुहू में ही रहते हैं और लखनपाल परिवार से परिचित हैं| मुम्बई में श्री मेहरा का अपना एक स्टूडियो है, जिसमें फ़िल्मों और टी.वी. शोज़ के पोस्टप्रोडक्शन का काम होता है| 

वरिष्ठ फ़िल्म निर्देशक श्री रमेश गुप्ता जी पूना फ़िल्म इंस्टिट्यूट के दूसरे, और साल 1962 से 1965 के बैच के पासआउट हैं| उन्हें साल 1978 की चर्चित फ़िल्म 'त्यागपत्र' और साल 1986 की 'मंगलदादा' के अलावा, 'गुल गुलशन गुलफ़ाम', ‘जूनून', ‘यूल लव स्टोरीज़', 'कर्ज़' और 'परम्परा' जैसे भारी भरकम और सुपरहिट टी.वी. धारावाहिकों के निर्देशन के लिए जाना जाता है| शीला वाज़ के पति (स्वर्गीय) श्री रमेश लखनपाल श्री रमेश गुप्ता के मित्र थे| श्री बब्बू मेहरा और श्री रमेश गुप्ता जी से हमें लखनपाल परिवार से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलीं जिसके लिए 'बीते हुए दिन' श्री मेहरा और श्री गुप्ता का आभार व्यक्त करता है|  

दिनांक 18 अक्टूबर 1934 को जन्मी और 29 जून 2022 को इस दुनिया को अलविदा कह गयीं शीला वाज़ अर्थात श्रीमती रमा लखनपाल ने 88 साल की अपनी ज़िंदगी के केवल 8 साल फ़िल्मों को दिए| लेकिन ज़िंदगी के इस छोटे से हिस्से में फ़िल्म के परदे पर जादुई नृत्यों का उनका योगदान हिन्दी सिनेमा के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो चुका है|

(विशेष सूचना :- इस आलेख में ‘बीते हुए दिन' के प्रमुख नियम अर्थात 'सम्बंधित कलाकार अथवा उनके किसी निकट परिजन से की गयी व्यक्तिगत बातचीत' का पालन कुछ ख़ास वजहों से नहीं हो पाया, जिसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं| और इसी वजह से न तो शीला वाज़ के बेटे-बेटी का नाम, बिना उनकी अनुमति के, सार्वजनिक करना हमें उचित लगा,  और न ही आलेख में दिए गए तथ्यों की पुष्टि कर पाने में हम समर्थ हैं| आशा है सम्मानित पाठकगण हमारी मजबूरी को समझेंगे, धन्यवाद|) 

Mr. Harish Raghuvanshi Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance, and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Mr. Gajendra Khanna for English translation of the write up.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.

Sheela Vaz on YT Channel 'Beete Hue Din'



ENGLISH VERSION FOLLOWS... 


1 comment:

  1. Sir kedar Sharma ke bete Ashok sika interview

    ReplyDelete