“जब जब बहार आयी और फूल मुस्कुराए” - उषा तिमोथी
............शिशिर कृष्ण शर्मा
हिन्दी फ़िल्म संगीत में रुचि रखने वाले संगीतप्रेमियों के लिए गायिका उषा तिमोथी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। आम धारणा है कि मशहूर संगीतकार जोड़ी कल्याणजी आनन्दजी की खोज उषा तिमोथी ने 1965 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘हिमालय की गोद में’ के गीत ‘तू रात खड़ी थी छत पे’ से प्लेबैक के क्षेत्र में कदम रखा था। लेकिन ये बात पूरी तरह सच नहीं है। सच्चाई ये है कि ‘तू रात खड़ी थी छत पे’ से पहले वो तीन गीत गा चुकी थीं और ये उनका गाया चौथा गीत था| दरअसल उषा तिमोथी को गाने का पहला मौक़ा संगीतकार पं. शिवराम ने दिया था। वो फ़िल्म थी प्रोड्यूसर-डायरेक्टर आदर्श की साल 1962 में रिलीज़ हुई ‘दुर्गापूजा’ जिसमें उषा ने साठ पंक्तियों का संस्कृत श्लोक गाया था। उस वक्त उषा की उम्र महज़ 13 साल थी। उसके बाद साल 1964 में उन्होंने सरदार मलिक के संगीत में दो गीत गाये जिनमें से एक में उनका सिर्फ़ आलाप था और दूसरा उनका सोलो गीत था। कल्याणजी आनन्दजी के संगीत में रफ़ी के साथ डुएट ‘तू रात खड़ी थी छत पे’ दरअसल उनका पहला हिट गीत था जिसने उन्हें पहचान दी थी|
8 अक्तूबर 1949 को नागपुर के एक प्रतिष्ठित ईसाई परिवार में जन्मीं उषा तिमोथी के पिता सी.बी.आई. में नौकरी करते थे। साल 2010 में एवरशाइन नगर-मालाड (पश्चिम) स्थित उषा जी के निवास पर हुई मुलाक़ात के दौरान उन्होंने बताया था, “हमारे तिमोथी खानदान में हमेशा से संगीत का माहौल था और आज भी है। मेरे बड़े भाई मधुसूदन तिमोथी आल इण्डिया रेडियो के जाने माने वायलिनिस्ट और चचेरे भाई वसन्त तिमोथी मध्यप्रदेश की खैरागढ़ यूनिवर्सिटी में संगीत के शिक्षक थे। वसन्त भी मशहूर वायलिनिस्ट थे। ऐसे में बचपन से ही संगीत की ओर मेरा झुकाव भी स्वाभाविक ही था। मुहम्मद रफ़ी साहब और लता मंगेशकर के गीत मुझे शुरु से पसन्द थे जिन्हें मैं रेडियो पर सुनकर याद करती और गाती थी, हालांकि तब तक मैंने संगीत की विधिवत शिक्षा लेना शुरु नहीं किया था।“
उषा के लिए साल 1956-57 में नागपुर में हुई कल्याणजी आनन्दजी नाईट महत्वपूर्ण साबित हुई जिसके आयोजन की ज़िम्मेदारी उषा के बड़े भाई मधुसूदन पर थी। उस वक्त उषा की उम्र 7 साल की थी। इस प्रोग्राम में हिस्सा लेने के लिए मुम्बई से रफ़ी, मुकेश, मन्ना डे और हेमन्तकुमार नागपुर पहुंच चुके थे। लेकिन गायिका एक भी नहीं आ पायी थी। ऐसे में मधुसूदन ने उषा के नाम की सिफ़ारिश की लेकिन उनकी उम्र का पता चलने पर कल्याणजी आनन्दजी ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया। इसके बावजूद मधुसूदन और उनके दोस्तों ने हिम्मत नहीं हारी और इण्टरवल में उषा को मंच पर गाने के लिए खड़ा कर दिया। महज़ 7 साल की बच्ची का बिना आर्केस्ट्रा के गाया फ़िल्म ‘चोरी-चोरी’ का गीत ‘रसिक बलमा’ दर्शकों को इतना पसन्द आया कि उनकी फ़रमाईश पर उषा को लगातार एक के बाद एक कई गीत गाने पड़े। उधर कल्याणजी आनन्दजी उषा की मंझी हुई गायकी, सधे हुए स्वर और ग़ज़ब के आत्मविश्वास को देखकर ऐसे प्रभावित हुए कि उन्होंने उषा को अपने म्यूज़िकल ग्रुप में शामिल कर लिया। नतीजतन प्रोग्राम्स में हिस्सा लेने के लिए उषा का मुम्बई आना जाना शुरु हो गया।
उषा जी बताती हैं, “इन शोज़ की बदौलत मैं बहुत जल्द बेबी उषा तिमोथी के नाम से मशहूर हो गयी। साथ ही कल्याणजी आनन्दजी के अलावा रफ़ी साहब, मुकेश, सी.रामचन्द्र और मशहूर हवाईन गिटार वादक सरदार हजारा सिंह के म्यूज़िकल ग्रुप्स का भी स्थायी हिस्सा बन गयी। सी.रामचंद्र ने अपना सुपरहिट ग़ैरफ़िल्मी गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आंख में भर लो पानी’ सबसे पहले मुझ ही से, अहमदाबाद के एक शो में गवाया था|“
उषा ने 11 साल की उम्र से संगीत की विधिवत शिक्षा लेनी शुरु की। वो पं.लक्ष्मण प्रसाद जयपुरवाले से क्लासिकल गायन और निर्मला देवी से टप्पा और ठुमरी सीखने लगीं। पं.शिवराम से भी उन्होंने क्लासिकल गायन सीखना शुरु किया। यही वो वक्त था जब पं.शिवराम ने उन्हें फ़िल्म ‘दुर्गापूजा’ में संस्कृत श्लोक गाने का मौक़ा दिया था। उषा जी बताती हैं, “प्लेबैक के क्षेत्र में मेरे गुरु रफ़ी साहब थे जिन्होंने मुझे सांसों पर नियन्त्रण और गीत के भाव समझकर शब्दों पर अभिनय समेत प्लेबैक के तमाम गुण सिखाए। रफ़ी साहब का मानना था कि एक अच्छे गायक के लिए गायन में अभिनय करना बहुत ज़रूरी होता है। उनके साथ मेरा तालमेल बहुत अच्छी तरह बैठ चुका था। इसकी वजह ये थी कि रफ़ी साहब और मेरी रेंज तो एक थी ही हमारे सुर भी एक ही थे। उन्हें मेरा गायन बेहद पसन्द था और वो अक्सर संगीतकारों से मेरे नाम की सिफारिश किया करते थे।“
साल 1962 में भारत सरकार की ओर से दिल्ली में एक गायन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था| उषा जी बताती हैं, “वो प्रतियोगिता हरेक 10 साल बाद होती थी| उस साल 3 जजों के पैनल में उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली खां, उस्ताद अमीर खां और पं.ओंकारनाथ ठाकुर जैसे दिग्गज शामिल थे| उस प्रतियोगिता में मैंने भी हिस्सा लिया| प्रतियोगिता में हमें भजन, ग़ज़ल और ठुमरी गानी थी| मैं पूरी तैयारी के साथ गयी थी| मैंने भजन जयदेव जी की, ग़ज़ल पं.शिवराम जी की और भैरवी-ठुमरी निर्मला देवी जी की देखरेख में तैयार की थी| प्रतियोगिता बेहद कड़ी थी| उसमें देशभर से सैकड़ों प्रतियोगियों ने हिस्सा लिया था| मेरे ठुमरी गायन के दौरान जजों के लिए बने अघोषित नियमों के विपरीत बड़े ग़ुलाम अली साहब सर हिलाकर प्रतिक्रिया देने और मेरे गायन पर ताली बजाने से ख़ुद को रोक नहीं पाए| उस प्रतियोगिता में मैंने 98 प्रतिशत अंक लेकर पहला पुरस्कार जीता था| पुरस्कार में मुझे पांच तोला सोने की बनी विचित्रवीणा और चांदी का बना भारत का नक्शा मिलने वाला था जिसके नीचे लिखा था, ‘हिन्दुस्तान की सर्वश्रेष्ठ गायिका उषा तिमोथी!’ पुरस्कार राष्ट्रपति एस.राधाकृष्णन के हाथों दिया जाना था| लेकिन उसी दौरान मुझे जयदेव जी के संगीत निर्देशन में फ़िल्म ‘मुझे जीने दो’ का गीत ‘मांग में भर ले रंग सखी री...’ भी रिकॉर्ड करना था जिसकी वजह से मैं पुरस्कार लेने दिल्ली नहीं जा पायी| बाद में वो पुरस्कार मेरे घर पर भिजवाया गया| इसके साथ ही श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी मेरे लिए अलग से पांच हज़ार रूपये भिजवाए थे| उधर सब कुछ तय होने के बावजूद मुझे रिकॉर्डिंग की सूचना नहीं दी गयी और ‘मांग में भर ले रंग सखी री...’ भी मेरे हाथ से निकल गया, वजह क्या थी इसके बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता|”
‘हिमालय की गोद में’ अपने दौर की बहुत बड़ी म्यूज़िकल हिट फ़िल्म थी। उषा जी को इसका फ़ायदा भी मिला लेकिन उनके अनुसार ‘तू रात खड़ी थी छत पे’ विविध भारती पर काफी लम्बे समय तक रफ़ी-आशा के डुएट के रुप में बजता रहा। उषा जी द्वारा ध्यान दिलाए जाने के बाद विविध भारती ने इस ग़लती को सुधारा था। इस ग़लती की वजह शायद यही थी कि भले ही उषा लता से प्रभावित रही हों लेकिन उनकी आवाज़ और गायनशैली कुदरती तौर पर आशा के ज़्यादा क़रीब थी जिसकी वजह से ये मान लिया गया कि इस गीत में रफ़ी के साथ आशा की आवाज़ है।
उषा तिमोथी के अनुसार बहुत छोटी उम्र में करियर की शुरुआत होने की वजह से वो अपने गाए गीतों का रेकार्ड रखने की गम्भीरता को नहीं समझ पायीं। इसके बावजूद उनका अंदाज़ा है कि वो अब तक हिन्दी, भोजपुरी, मराठी, पंजाबी और मलयाली समेत विभिन्न भाषाओं में चार हजार से ज़्यादा गीत तो गा ही चुकी होंगी। हिन्दी में उनके गाए कई गीत अपने दौर में बेहद मशहूर हुए। इनमें ‘नटखट परे हट छोड़ छोड़’ (महारानी पद्मिनी/1964), ‘तक़दीर ने क्या अंगड़ाई ली’ (सुनहरे कदम/1966), ‘लंदन पेरिस घूम के देखे’ (परिवार/1967), ‘जब जब बहार आयी’ (तक़दीर/1967), ‘ढोल बजा ढोल ढोल जानिया’ (विश्वास/1969), ‘होठों पे इंकार थोड़ा थोड़ा’ (रात के अंधेरे में/1969), ‘ऐ सपनों के राजा’ (नतीजा/1969) ‘जो मामा मेरा आ जाएगा’ (हीर रांझा/1970), ‘मैं हूं सामने तू मेरे सामने’ (कांच और हीरा/1972), ‘हो बैरी सैंया की नजरिया’ (उलझन/1975), ‘काली काली ज़ुल्फ़ों में कस लूंगी राजा’ (फ़रिश्ता या क़ातिल/1977), ‘होनोलूलू से आयी हूं मैं’ (ख़ंजर/1979), ‘इजाज़त है, इरशाद...मेरी जान तुमसे मोहब्बत है’ (मेरा सलाम/1980) और ‘जा पोरी जा’ (रहमदिल जल्लाद/1985) जैसे कई गीत शामिल हैं।
साल 1973 की फ़िल्म ‘कहानी क़िस्मत की’ में किशोर कुमार के गाये सुपरहिट गीत ‘अरे रफ़्ता रफ़्ता देखो आंख मेरी लड़ी है...’ से सम्बंधित एक बेहद ही दिलचस्प वाकये का ज़िक्र करते हुए उषा जी बताती हैं, “एक रोज़ मैं ताड़देव के ए.सी.मार्केट में शॉपिंग के लिए गयी| वहां बाहर ही आनंदजी भाई खड़े थे| कहने लगे, ‘अच्छा हुआ तुम मिल गयीं, चलो ज़रा कल्याणजी भाई से भी मिल लो|’ मुझे साथ लेकर वो ए.सी.मार्केट की ऊपरी मंज़िल पर स्थित फ़िल्म सेंटर के स्टूडियो में पहुंचे तो वहां मौजूद किशोर कुमार मुझे देखते ही कहने लगे, ‘आ गयी आ गयी, मेरी रेखा आ गयी’| दरअसल उस गाने में तीन-चार जगह रेखा को डायलॉग बोलने थे लेकिन वो रिकॉर्डिंग पर नहीं पहुंची थीं| ऐसे में कल्याणजी भाई और प्रोड्यूसर अर्जुन हिंगोरानी ने मुझसे आग्रह कि वो डायलॉग मैं बोल दूं| लेकिन मैंने ये कहते हुए इनकार कर दिया कि मैं सिंगर हूं, डायलॉग नहीं बोल पाऊंगी| उधर रिकॉर्डिंग स्टूडियो का टाइम ख़त्म होने वाला था, गाने की शूटिंग की भी तमाम तैयारियां हो चुकी थीं| अर्जुन हिंगोरानी बहुत परेशान थे| ऐसे में मुझे उनकी बात मानकर रिकॉर्डिंग करनी ही पड़ी|
अर्जुन हिंगोरानी ने ये कहते हुए कि तुमने मुझे लाखों के नुकसान से बचा लिया, ख़ुश होकर उसी वक़्त मुझे नक़द पांच हज़ार रूपये दिए| लेकिन मैं गाने के क्रेडिट्स में अपना नाम देने के लिए तैयार नहीं हुई| गाना मार्केट में आया और सुपरहिट हुआ| क्रेडिट्स में किशोर कुमार के साथ रेखा का नाम दिया गया| लेकिन रफ़ी साहब उस गाने में मेरी आवाज़ को पहचान गए| उन्होंने मुझसे कहा, ‘तुम्हें अपना नाम देना चाहिए था, नाम से ही कलाकार की पहचान बनती है’| ये सुनकर मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ| ये गाना आज भी रेखा के ही नाम से बजता है|”
अपने सिंगिंग करियर के दौरान उषा जी ने कल्याणजी आनन्दजी के अलावा बुलो सी.रानी, रोशन, हंसराज बहल, ओ.पी.नैयर, एस.एन.त्रिपाठी, एस.मोहिन्दर, सरदार मलिक, उषा खन्ना, सोनिक ओमी, बाबुल, लाला सत्तार, जगदीश खन्ना जैसे कई संगीतकारों के निर्देशन में रफ़ी साहब, मुकेश, किशोर, शमशाद बेगम, आशा भोंसले, सुमन कल्याणपुर, हेमलता, कृष्णा कल्लै आदि गायक-गायिकाओं के साथ कई गीत गाए। शमशाद बेगम के बारे में उषा का कहना है कि उनका स्वभाव बहुत ही अपनापन लिए था और मुझे वो अपने बच्चे की तरह मानती थीं। मैंने उनके साथ ‘मुजरिम कौन ख़ूनी कौन’ (1965) की क़व्वाली ‘’निगाहें क्या वो जो देखें ये जलवे डर डर के’ और ‘नतीजा’ (1969) का ‘अय्या सपनों के राजा मिलने आजा’ गाये थे| शमशाद जी की आवाज़ में जो खनक और खुलापन था वैसा मैंने किसी और की आवाज़ में नहीं देखा। रफ़ी साहब जहां एक धीर-गम्भीर और सीधे-सादे स्वभाव के इंसान थे वहीं किशोर कुमार बेहद शरारती और मस्तमौला, जो एक सेकण्ड के लिए भी चुप नहीं बैठ सकते थे।
Sardar Malik |
किशोर कुमार को याद करते हुए उषा जी बताती हैं, “एक बार मैं अशोक कुमार, किशोर कुमार, अनूप कुमार और अमित कुमार के साथ प्रोग्राम के सिलसिले में इंदौर पहुंची। अचानक किशोर ने क्रिश्चियन कॉलेज के सामने गाड़ी रुकवाई, जिससे वो पढ़कर निकले थे। किशोर कुमार चीखते-चिल्लाते, उछलते-कूदते कॉलेज में घुसे, बिना रुके पूरे कॉलेज का चक्कर लगाया, उसी तरह दौड़ते हुए वापस आकर गाड़ी में सवार हुए और ड्राईवर से कहकर गाड़ी दौड़ा ली। लेकिन उनकी इस हरक़त से कॉलेज में जो हड़कम्प मचा और उन्हें पहचानकर छात्रों की जो भीड़ उनके पीछे दौड़ी, वो दृश्य याद करके आज भी मेरी हंसी छूट पड़ती है।“
सरदार मलिक के बारे में उषा जी कहती हैं, “वो बेहद गुणी फनकार थे लेकिन अपनी शराफ़त की वजह से इण्डस्ट्री की चालबाज़ियों को नहीं समझ पाए। इसके बावजूद जितना भी काम उन्होंने किया, उसका स्तर हमेशा बनाए रखा। मैंने उनके संगीत में 1964 में बनी फ़िल्म ‘रूपसुंदरी’ के सुबीर सेन के गाए गीत ‘ऐसा लगता है तुम इस जीवन में नहीं मिलोगी’ में सिर्फ़ आलाप दिया था। इससे खुश होकर सरदार मलिक ने 1964 की ही फ़िल्म ‘महारानी पद्मिनी’ का सोलो गीत ‘नटखट परे हट छोड़’ मुझसे गवाया था। उधर एक बार एस.मोहिन्दर साहब ने अपनी एक पंजाबी फ़िल्म में गाने के लिए मुझे बुलाया। उस वक्त मैं बामुश्किल तेरह बरस की रही होऊंगी। प्रोड्यूसर मुझे देखते ही घबरा गए कि ये तो बच्ची है, कैसे गा पाएगी? किसी बड़ी सिंगर को बुलाओ।
S. Mohinder |
एस.मोहिन्दर साहब के लाख समझाने के बावजूद प्रोड्यूसर अपनी ज़िद पर अड़े रहे। आख़िर में एस.मोहिन्दर साहब की सलाह पर मैंने अगले दिन किसी से मांग कर साड़ी पहनी और स्टूडियो में पहुंची तो प्रोड्यूसर मुझे पहचान नहीं पाए। मेरा गाना सुनकर वो बहुत खुश हुए और इस तरह मुझे उस फ़िल्म के सभी गीत गाने का मौक़ा मिला। उस वक्त वहां मौजूद अभिनेत्री मनोरमा ने कहा था, आर्ट उम्र देखकर नहीं आती।“
उस दौर के अपने सहकर्मियों को याद करते हुए उषा जी कहती हैं, “सोनिक-ओमी के ओमीजी बहुत अच्छा गाते थे। वो पहले रोशन जी के असिस्टेण्ट थे और मैं अक्सर उन्हें रिहर्सल में गाते हुए देखती थी। मैं आज तक नहीं समझ पायी हूं कि ओमीजी ने फ़िल्मों में गाने की कोशिश क्यों नहीं की जबकि वो एक बहुत अच्छे प्लेबैक सिंगर साबित हो सकते थे। उधर रोशन साहब ने भी गायकी को निखारने में मेरी बहुत मदद की थी। उन्होंने मुझे सिखाया था कि कैसे धीरे-धीरे, ठहराव के साथ पूरे सुर लगाकर गाना चाहिए। मुझे उनकी फ़िल्म ‘दादी मां’ में गाने का मौक़ा मिला था। मदनमोहन जी ने मुझे फ़िल्म ‘हीर-रांझा’ में गाने का मौक़ा दिया था। लेकिन उनसे मेरी पहली मुलाकात ख़ासे ड्रामाई अंदाज़ में हुई थी। दरअसल एक बार मैं सरदार हजारा सिंह के ऑर्केस्ट्रा में किसी शादी के फ़ंक्शन में मदनमोहन की फ़िल्म ‘अदालत’ का गीत ‘यूं हसरतों के दाग़ मुहब्बत में धो लिए’ गा रही थी कि तभी भीड़ में से एक सज्जन उठकर आए और कहने लगे, ऐसे खुशी के मौके पर ये रोने-धोने वाला गाना क्यों? इस बात पर मैं उनसे झगड़ पड़ी कि आपको पता है ये कितने महान संगीतकार का गाना है? ये मदनमोहन जी का गाना है। पता चला वो साहब मदनमोहन ही थे। खुश होकर उन्होंने मुझे सौ रुपए इनाम में दिए।
मदन जी बहुत ही शरीफ़ और मीठे स्वभाव के इंसान थे। लेकिन काम को लेकर वो बेहद प्रोफेशनल और समय के पाबंद थे। एक बार उन्होंने मुझे सुबह नौ बजे अपने घर पर बुलाया। मैं साढ़े आठ बजे ही पहुंच गयी। लेकिन उन्होंने ये कहकर मुझे वापस भेज दिया कि नौ का मतलब नौ। और जब मैंने ठीक नौ बजे उनकी कॉलबेल बजाई तो उन्होंने बहुत सम्मान के साथ मेरा स्वागत किया। एक बार मदनजी मुझे ग्राण्ट रोड स्टेशन के प्लेटफ़ार्म पर बैठे दिखे। तब वो पैडर रोड पर शांति बिल्डिंग में रहते थे। मैंने उनसे पूछा कि आप यहां क्या कर रहे हैं? जवाब मिला, ‘अक्सर यहां आता हूं, खामोशी से लोगों की भीड़ को देखता रहता हूं।' पता नहीं ये उनका कैसा शगल था। खुद को भीड़ के बीच अकेला पाकर शायद उन्हें सुकून मिलता था।“
उषा जी की शादी साल 1972 में मूलत: यवतमाल के रहने वाले श्री मधुसूदन चांदेकर से हुई जो सेल्स टैक्स विभाग में अधिकारी पद पर थे और डिप्टी कमिश्नर के पद से रिटायर हुए थे| उषा जी के इंटरव्यू के दौरान श्री चांदेकर भी घर पर मौजूद थे और उनसे भी मेरी मुलाक़ात हुई थी|
उषा जी की बेटी अमिता चांदेकर टी.वी.धारावाहिकों की जानीमानी अभिनेत्री थीं| संयोग से 2003-2004 में दूरदर्शन पर प्रसारित, बालाजी टेलीफ़िल्म्स के सुपरहिट सस्पेंस थ्रिलर शो ‘क़यामत’ में अमीता ने नायिका ‘अनामिका’ का और मैंने उनके पिता का रोल किया था| लेकिन तब मुझे नहीं पता था कि अमीता उषा जी की बेटी हैं| अब वो शादी के बाद अमेरिका में रहती हैं और 2 साल की बेटी की मां हैं| उनके पति रीतेश तिवारी सॉफ्टवेयर इंजिनियर हैं|
चूंकि उषा को प्रोफेशनली रफ़ी साहब के ज्यादा क़रीब माना जाता था इसलिए रफ़ी साहब के गुज़रने के बाद इण्डस्ट्री में अफवाह फैल गयी कि उषा ने गाना बन्द कर दिया है। नतीजतन उनके पास काम आना अचानक बन्द हो गया। लेकिन उन्होंने खुद को देश-विदेश में होने वाले स्टेज शोज में व्यस्त रखा। उषा जी मानती हैं कि उन्हें जितना मिला, वो उससे कहीं ज़्यादा की हक़दार थीं। पूरा हक़ नहीं मिल पाने की वजहों पर वो जाना नहीं चाहतीं लेकिन इतना ज़रूर कहती हैं कि उनके द्वारा रेकॉर्ड किए गए कई गीत जब बाज़ार में आए तो उन गीतों में से उनकी आवाज़ नदारद थी। ‘जा रे जा ओ हरजाई’ (कालीचरण), ‘ये वादा रहा साजना’ (प्रोफ़ेसर प्यारेलाल), ‘मैंने पी है जनाब’ (राजमहल) और ‘तेरे बिन बिन तेरे’ (प्रतिमा और पायल) जैसे हिट गीत ऐसे ही गीतों में शामिल हैं जिन्हें मूलत: उषा तिमोथी की आवाज़ में रेकॉर्ड किया गया था।
उषा जी के पति श्री मधुसूदन चांदेकर का साल 2013 में निधन हो गया था| उषा जी के परिवार में अब उनका बेटा, बहू और चार साल का पोता हैं| बेटा अभिजित बिज़नेसमैन और बहू जसलीन सभरवाल चांदेकर ड्रेस डिज़ाईनर हैं|
उषा जी की व्यस्तताएं आज भी बरक़रार हैं| उनके स्टेज शोज़ तो अक्सर होते ही रहते हैं, साथ ही वो देश-विदेश में रहने वाले अपने शिष्यों को इन्टरनेट और वीडियो के माध्यम से संगीत की शिक्षा देने में भी व्यस्त रहती हैं|
We
are thankful to –
Mr.
Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Mr. Gajendra Khanna for the English
translation of the write up
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video
editing.
Usha Timothy ji on YT Channel BHD
"Jab Jab Bahaar Aayi Aur Phool Muskuraye"– Usha Timothy
............Shishir
Krishna Sharma
The name of singer Usha Timothy needs no introduction for Hindi film
music enthusiasts. It is commonly believed that famous composer duo
Kalyanji-Anandji’s find, Usha Timothy had entered the field of playback singing
with the 1965 release, ‘Himalay Ki God Mein’’s song ‘Tu Raat Khadi Thi Chhat
Pe’ but this is not true. The truth is that before this song, she had already
sung three songs, and this was her fourth song. In fact, Usha Timothy had been
first given a chance by composer Pandit Shivram. The film was Producer-Director
Adarsh’s 1962 release, ‘Durga Pooja’ in which Usha had sung a Sanskrit Shloka
of sixty lines. Usha was merely 13 years old at that time. After that in the
year 1964, Sardar Malik gave her two songs to sing, one of which had her giving
only the Alaap and the other was a solo by her. Her duet with Rafi sahib,
composed by Kalayanji Anandji, ‘Tu Raat Khadi Thi Chhat Pe’ was actually her
first hit song which brought her recognition.
Usha Timothy was born on 8th October 1949, in a
reputed Christian family of Nagpur. Her father used to work for the C.B.I.
During the year 2010, when I met with Usha ji at her residence at Evershine
Nagar-Malad (West), she had told me, “Our Timothy family has always had a
musical environment. My elder
brother Madhusudan Timothy was a well-known violinist of All India Radio and my
paternal cousin, Vasant Timothy was a music teacher at Madhya Pradesh’s
Khairagarh University. Vasant was also a famous violinist. In such a condition,
it was but natural for me to be inclined towards music. From the beginning, I
was fond of listening to songs of Mohammed Rafi sahib and Lata Mangeshkar on radio,
which I would memorise and sing, though, I had not yet started my formal education
in music. “
For Usha, the Kalyanji-Anandji Night organized in 1956-57 in Nagpur
proved to be extremely valuable. The responsibility for its arrangement was on
her brother Madhusudan. Usha was around 7 years old at that time. Rafi, Mukesh
and Hemant Kumar had already reached there from Mumbai to participate in the program
but none of the female singers could reach for it. In this situation,
Madhusudan recommended the name of his sister but Kalyanji Anandji declined on
knowing her young age. Despite this, Madhusudan and his friends did not lose
heart and made her stand on the stage during the Interval. The audience loved
the rendition of film ‘Chori Chori’’s song ‘Rasik Balma’ by this 7-year-old,
without orchestra, so
much that on popular request she had to sing many songs one after the other. On the other hand, Kalyanji Anandji were so
impressed by her singing, straight clear notes, and great self-confidence, that
they included Usha in their musical group. As a result, Usha started visiting
Mumbai regularly to participate in programs.
Usha ji recalls,
“Thanks to these shows, I soon became
famous as Baby Usha Timothy. I became a permanent fixture in Rafi sahib,
Mukesh, C Ramchandra and famous Hawaiian Guitarist Sardar Hazara Singh’s
musical groups as well. C
Ramchandra had got his superhit song, ‘Aye Mere Watan Ke Logon Zara Aankh Mein
Bhar Lo Paani’ sung first from me in a show in Ahmedabad.
“
Usha ji started undergoing formal training in music from the age of 11
years. She started learning classical vocal from Pandit Lakshman Prasad
Jaipurwale and Tappa and Thumri from Nirmala Devi. She also started learning
classical vocal from Pt Shivram. It was around this time that Pt Shivram had
given her the opportunity to sing the Shloka in film ‘Durga Pooja’. Usha ji
says, “Rafi
sahib was my Guru in playback singing who taught me control my breath,
understand the words and incorporating acting elements into the singing. Rafi sahib believed that Its important for a good
singer to incorporate acting in their singing. I had developed a good
understanding with him. This was perhaps due to our range as well as surs being
so similar. He used to love my singing and would often recommend my name to composers.“
In 1962, in Delhi a singing competition was being organized by the
Indian government. Usha ji recalls, “This competition used to be done once in every ten years. Its three-judge panel comprised of veterans like
Ustad Bade Ghulam Ali Khan, Ustad Amir Khan, and Pandit Omkarnath Thakur. I
also participated in this competition. We were to sing Bhajan, Ghazal and
Thumri as part of it. I had gone there with full preparation. I had prepared my
bhajan with Jaidev ji, Ghazal with Pt Shivram ji and Bhairavi Thumri with
Nirmala Devi ji. The competition was very tough. Many participants from all
over India had participated. During my thumri renditions, in contrast to unsaid
rules, Bade Ghulam Ali Sahib could not help himself from nodding his head and
clapping for my rendition. I won the first prize in this competition with 98
marks. I was to receive a five tola gold’s Vichitraveena and a silver map of
India under which it would be written, ‘Hindustan Ki Sarvshreshtha Gaayika Usha
Timothy’. The award was to be given by the President S Radhakrishnan himself.
However, I was to record the song, ‘Maang Mein Bhar Le Rang Sakhi Re’ under
Jaidev ji’s composition for the film, ‘Mujhe Jeene Do’ due to which I couldn’t
go to Delhi to collect the prize. The prize was later sent to my house. Along
with it, Mrs Indira Gandhi had also separately sent me Rs five thousand. On the
other hand, here, despite everything getting fixed, I was not intimated about
the recording and I lost the song due to unknown reasons.”
‘Himalaya Ki God Mein’
was a big musical hit of its time. Usha ji did get benefited from it but as per her,
the song, ‘Tu Raat Khadi Thi Chhat Pe’ kept getting played as a Rafi-Asha duet
on Vividh Bharti. After being pointed out, only, Vividh Bharti rectified the
fault. The possible reason for it was perhaps that though Usha had been
impressed by Lata, her voice and natural singing style was similar to that of
Asha due to which it was thought that the song had been sung by Asha with Rafi.
According to Usha timothy due to start singing at a young age, she
could not keep a track of her number of recording in a serious manner.
According to her estimate, she would have sung more than four thousand songs in
various languages including Hindi, Bhojpuri, Marathi, Punjabi and Malayalam.
Many of her songs in Hindi films proved to be quite popular at the time of
their release. They include ‘Natkhat Pare Hat Chhod Chhod’
(Maharani Padmini
/1964), ‘Taqdeer
Ne Kya Angdai Li’ (Sunehare Kadam /1966), ‘London Paris Ghoom Ke Dekhe’
(Parivaar/1967), ‘Jab
Jab Bahaar Aayi’
(Taqdeer/1967), ‘Dhol Baja Dhol Dhol Jaaniya’
(Vishwaas/1969), ‘Hothon Pe Inkaar Thoda Thoda’
(Raat Ke Andhere Mein
/1969), ‘Aye Sapnon Ke Raja’
(Nateeja/1969), ‘Jo Mama Mera Aa Jaayega’
(Heer Ranjha
/1970), ‘Main Hoon Saamne Tu Mere Saamne’
(Kaanch Aur Heera
/1972), ‘Ho Bairi Saiyaan Ki Nazariya’
(Uljhan/1975), ‘Kaali Kaali Zulfon Mein Kas Loongi Raja’
(Farishta Ya Qaatil
/1977), ‘Honolulu Se Aayi Hoon Main’
(Khanjar/1979), ‘Ijaazat Hai, Irshaad … Meri Jaan Tumse
Mohabbat Hai’ (Mera Salaam /1980) and ‘Jaa Pori Jaa’ (Rehamdil Jallad
/1985).
Usha ji shares an interesting incident. It relates to the 1973 release,
‘Kahani Kismat Ki’’s superhit song ‘Arre Rafta Rafta Dekho Aankh Meri Ladi Hai’
which was rendered by Kishore Kumar. She remembers, “One day, I went to Tardeo’s A C Market
for shopping. Anandji Bhai was standing outside it. After seeing me, he said,
‘It’s good I met you. Come and meet Kalyanji Bhai also’. When he took me to the Film Center’s studio on top
floor of A C Market, Kishore Kumar on seeing me said, ‘Aa Gayi Aa Gayi, Meri
Rekha Aa Gayi’. In fact Rekha was supposed to say some dialogues in 3-4 places
in the song but she had not been able to make it for the recording. In this
situation, Kalyanji Bhai and producer Arjun Hingorani requested me to speak
those dialogues. I expressed my hesitation, saying, I was a singer and it would
be another ball game to recite dialogues. The time of the recording studio was
coming to an end and all preparations for the song’s picturisation had been
completed. Arjun Hingorani was under lots of pressure, understanding which, I
had to do the recording. Arjun Hingorani became very happy and said, you have
saved me from loss of lakhs. He happily gave me a cash amount of five thousand rupees,
but I did not agree to take credits for the song. The song came to the market
and proved to be a big hit. The credits were given as Rekha with Kishore Kumar.
However, Rafi sahib recognized my voice in the song. He told me,
‘You should have put your name. An
artist’s recognition comes from the name only.’ I realized my mistake after hearing
this. Till this day, the song is played with credit to Rekha.”
During her singing career, in addition to Kalyanji Anandji, Usha sang
for composers Bulo C Rani, Roshan, Hansraj Behl, O P Nayyar, S N Tripathi, S
Mohinder, Sardar Malik, Usha Khanna, Sonik Omi, Babul, Lala Sattar and Jagdish
Khanna among others with her co-singers including Rafi sahib, Mukesh, Kishore,
Shamshad Begum, Asha Bhosle, Suman Kalyanpur, Hemlata and Krishna Kalle.
Remembering Shamshad Begum, she says “Shamshad ji had a very affectionate
nature and treated me like her own child. With her, I sang, ‘Mujrim Kaun Khooni
Kaun’ (1965)’s Qawwali, ‘Nigaahen Kya Wo Jo Dekhen Yeh Jalwe
Darr Darr Ke’ and ‘Nateeja’ (1969)’s
‘Ayya Sapnon Ke Raja Milne Aaja’.
Shamshad ji’s voice had a khanak and openness which I have not seen in anyone
else’s voice. While Rafi sahib was
a serious and simple mannered gentleman, Kishore Kumar was a very naughty and
carefree personality who could not sit in one place for long.”
Remembering Kishore Kumar, Usha ji recalls,
“Once, I had gone with Ashok Kumar,
Kishore Kumar, Anoop Kumar and Amit Kumar for a program to Indore. Suddenly, when the car was opposite the Christian
college, where he had studied, Kishore asked for the car to be stopped. He ran
in circles around the college while screaming and jumping without stopping and
came running back into the car asking for the driver to leave fast. This
activity of his had created a sensation in the college and the students after
recognizing him, had started running behind him in a crowd. I still start
laughing uncontrollably when I remember that incident. “
Remembering Sardar Malik, she says, “He was a very talented composer but due
to his gentlemanly nature, He could not understand the industry’s crafty ways. Despite this, whatever work he did, he always
maintained its standard. I had only sung the alaap for his song ‘Aisa Lagta Hai
Tum Is Jeevan Mein Nahin Milogi’ sung by Subir Sen in the 1964 film
‘Roopsundari’. He was so happy with it that he gave me Maharani Padmini’s solo
‘Natkhat Pare Hat Chhod’. Then, S Mohinder sahib had invited me to sing for a
Punjabi film of his. I was hardly 13 years old at that time. Seeing me, the
producer said, ‘She’s just a child. How can she sing this song? Call some big
singer’. The producer remained insistent even after S Mohinder sahib’s
intervention. Finally, on S Mohinder sahib’s advice, the next day, I borrowed
someone’s saree and when I reached draped in it to the studio, the producer
could not recognize me. He was very happy after hearing my singing and that’s
how I got the opportunity to sing all the songs of that movie. Actress
Manorama, who was present at the recording, said that Art does not come on
seeing the age.“
Remembering her other colleagues, she remembers,
“Omi ji of the Sonik-Omi duo was a very
good singer. He had earlier been Roshan ji’s assistant and I remember him
singing for rehearsals often. I
have still not understood why Omi ji did not try to sing in films as he could
have proven to be a good playback singer. Roshan sahib had also helped me a lot
to improve my singing. He had taught me how to sing slowly, with ‘thehraav’
while singing with full surs. I had got the opportunity to sing for his film ‘Dadi
Maa’. Madan Mohan ji had given me the opportunity to sing for him in the film
‘Heer-Ranjha’. However, our first meeting had taken place in a very dramatic
manner. Once, as part of Sardar Hazara Singh’s orchestra, in a marriage
function, I was singing Madan Mohan’s film ‘Adalat’’s song, ‘Yun Hasraton Ke
Daag Mohabbat Mein Dho Liye’ when from the crowd a gentleman stood up and told
me, ‘Why are you singing such a sad song on a happy occasion?’ I started
fighting with him, saying, ‘Do you know it’s a song of which great composer?
It’s Madanmohan’s song!’. Then, I came to know, the gentleman was Madanmohan
himself. He was very happy with my singing and gave me Rs 100 as a reward! He
was a real gentleman with a very good nature. However, as far as the work was
concerned, He was very professional and very particular about timings. Once he
called me to his home one morning at Nine O’clock. I reached there at half past
eight itself. However, he sent me back saying, ‘Nine means Nine!’ When I rang the
call bell at nine, he very respectfully welcomed me. Once, I found him sitting
on Grant Road station’s platform while he used to stay in Pedder Road’s Shanti
building at that time. I inquired, ‘What are you doing here?’. He replied, ‘I often come here to observe the crowd
silently’. Don’t know what kind
of peace he got finding himself alone in that crowd.“
Usha ji got married in the year 1972 to Shri Madhusudan Chandekar who
originally belonged to Yavatmal. He was an officer in the Sales Tax Department
and had retired from the post of Deputy Commissioner. When, I interviewed Usha
ji, her husband Chandekar ji was also at home and I met him too. Usha ji’s daughter
Amita Chandekar was a well-known actress in TV serials. Incidentally, in
2003-2004, she had played the role of the heroine ‘Anamika’ in Doordarshan’s
Balaji Telefilms’ thriller show, ‘Qayamat’ and I had played the role of her
father but at that time, I did not know that she was Usha ji’s daughter! Now she
has settled in America after marriage and is the mother of a two year old
daughter. Her husband Ritesh Tiwari is a Software Engineer.
Since she was considered quite close
professionally to Rafi Sahib, after his demise, a rumour spread in the
industry, that Usha had stopped singing. As a result, she suddenly stopped
getting work. However, she kept herself busy in stage shows at home and abroad.
Usha ji says, she got much less than what she deserved. She does not delve much
into the reasons for her not getting her due, but she does say that many songs recorded
by her did not feature her voice on the records when they reached the market.
Some of these songs originally recorded by her include hit songs like
‘Jaa Re Jaa O Harjaaee’
(Kalicharan), ‘Ye Waada Raha Saajna’
(Professor Pyarelal), ‘Maine Pee Hai Janaab’
(Rajmahal)
and
‘Tere Bin Bin Tere’
(Pratima Aur Payal).
Usha ji’s husband Shri Madhusudan Chandekar died in the year 2013. Usha
ji’s family now includes her son, daughter-in-law, and a four-year-old
grandson. Her son Abhijeet is a businessman and her daughter-in-law Jasleen
Sabharwal Chandekar is a dress designer. Usha ji maintains her busy schedule
now also. She continues to do stage shows as well continues teaching her pupils
over the internet and videos all over the world.
Usha ji’s playback career’s last released songs were for composer
Reet’s 2015 film ‘Laakhon Hain Yahaan Dilwaale’ where she sang three duets with
singer Vishal Kothari (all were cover versions of popular songs Yalla Yalla,
Laagi Chhoote Na and Aajkal Tere Mere Pyar Ke Charche).
Bahut bahut bahut hi sundar lagaa.... pahle se blog ka kalewar bhi khula khula hai... Usha Timothy ji bahut hi milansaar hain. Awaz abhi bhi unki sundar hai.... unke baare mein vistrit jaankaari dene ke liye Dhanyawaad. Agle lekh ki to prateeksha waise bhi rahi hai hamein.
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