‘झनक झनक तोरी बाजे पायलिया’ - मधुमती
........शिशिर कृष्ण शर्मा
पचास के दशक के अंत में कुक्कू, हेलन और बेला बोस जैसी डांसर्स की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए ह्यूटौक्सी रिपोर्टर नाम की एक नई डांसर ने हिन्दी सिनेमा कदम रखा था। फ़िल्म थी 1958 में बनी ‘हरिश्चन्द्र’ जिसके प्रोड्यूसर रामूभाई देसाई और डायरेक्टर धीरुभाई देसाई थे। साहू मोदक और सुलोचना की मुख्य भूमिकाओं वाली इस पौराणिक फ़िल्म में संगीत सुशान्त बनर्जी का था। ह्यूटौक्सी ने इस फ़िल्म के गीत ‘आजा राजा आजा अब आ भी जा’ पर डांस किया था। आने वाले समय में करीब पचास फ़िल्मों में बतौर डांसर काम करने के बाद ह्यूटौक्सी रिपोर्टर ने जब फ़िल्मों में एक्टिंग की शुरुआत की तो उन्हें नया नाम मिला, मधुमती । करीब बीस साल के करियर के दौरान उन्होंने बेशुमार हिन्दी, मराठी, गुजराती, पंजाबी और बांग्ला फ़िल्मों में बतौर डांसर, हिरोईन और कैरेक्टर आर्टिस्ट काम किया और फिर कैमरे को अलविदा कह दिया। कल 30 मई 2020 को 79 वर्ष की होने जा रहीं मधुमती जी पिछले चालीस सालों से ए.बी.नायर रोड (जुहू) स्थित अपने घर ही में डांस और एक्टिंग स्कूल चला रही हैं|
साल
2010 में
मुझे
‘राजस्थान पत्रिका’
के लिए
मधुमती जी
का इंटरव्यू
करने का
मौक़ा मिला
था| उस
साल उन्हें
लखनऊ में
हुए समारोह
में तेरहवें
‘लच्छू महाराज
अवार्ड’
से सम्मानित
किया गया
था| उनके
घर पर
हुई उस
मुलाक़ात में
उन्होंने अपनी
निजी और
व्यावसायिक ज़िंदगी
के बारे
में खुलकर
बातचीत की
थी| उसके
बाद भी
कभीकभार फ़ोन
पर हमारी
बातचीत होती
रही| हाल
ही में
मैं उनसे
एक बार
फिर से
मिला| उद्देश्य
था, ‘बीते
हुए दिन’ में प्रकाशित
होने जा
रहे उनके
इंटरव्यू के
लिए अपडेट्स
लेना| आज
उनका वोही
इंटरव्यू आपके
सामने है
-
30 मई
1941 को
ठाणे के
एक रईस
पारसी परिवार
में छह
भाई बहनों
के बीच
जन्मीं मधुमती
के
पिता ख़ान
साहब दारा
बहरामजी रिपोर्टर
जज थे
तो बड़े
भाई पीलू
रिपोर्टर अपने
समय के
जाने माने
क्रिकेट अम्पायर।
ठाणे के
मशहूर स्कूल
सेण्ट जॉन
द बैप्टिस्ट
कॉन्वेंट में
पढ़ाई के
दौरान मधुमती
ने 7
साल की
उम्र से
स्कूल में
ही लखनऊ
घराने के
गुरु दुलारी
श्रीवास्तव से
कत्थक सीखना
शुरु किया
था। मधुमती
जी बताती
हैं, “मेरे
पिता मेरे
डांस सीखने
के ख़िलाफ़
थे लेकिन
गुरुजी के
मनाने पर
अनमने ढंग
से उन्होंने
मुझे इसकी
इजाज़त दे
दी थी।
स्कूली पढ़ाई
के दौरान
ही मैंने
मणिपुरी और
कथाकली डांस
सीखा। साथ
ही गुरु
आर.के.शेट्टी
और गुरु
चन्द्रशेखर पिल्लै
से भरतनाट्यम
की शिक्षा
भी ली| स्कूली पढ़ाई
पूरी करने
के बाद
मैंने ठाणे
में अपनी
डांस एकेडमी
खोल ली।
उस वक्त
मेरी उम्र
महज़ 15
साल थी।“
अपने
स्टेज शोज़
के ज़रिए
मधुमती बहुत
जल्द एक
बेहतरीन डांसर
के तौर
पर पहचानी
जाने लगीं।
डायरेक्टर धीरुभाई
देसाई ने
ऐसे ही
एक स्टेज
शो में
उनके डांस
से प्रभावित
होकर उन्हें
फ़िल्म ‘हरिश्चन्द्र’ में डांस
का ऑफर
दिया था।
मधुमती के
मुताबिक पहले
तो पिता
ने उन्हें
फ़िल्मों में
काम करने
की इजाज़त
देने से
साफ इंकार
कर दिया| लेकिन धीरुभाई
के समझाने
पर वो
बहुत मुश्किल
से राज़ी
हो ही
गए। ये
फ़िल्म साल
1958 में
रिलीज़ हुई
थी| आगे
चलकर मधुमती
ने ‘झनक
झनक तोरी
बाजे पायलिया’
(मेरे हुजूर),
‘तेरे
नैना तलाश
करें जिसे’
(तलाश),
‘आंखों
आंखों में
किसी से
बात हुई’
(जानवर),
‘लेदे
सैयां ओढ़नी
पंजाबी’
(पवित्र पापी),
‘टाईटल सांग’ (नाईट
इन लंदन),
‘किसी
पर जान
देते हैं’
(झुक गया
आसमान),
‘जंगल में
मोर नाचा
किसने देखा’
(शतरंज),
‘मांगी
हैं दुआएं
हमने सनम’(शिकारी),
‘सुनो
ज़िंदगी गाती
है’
(पगला कहीं
का),
‘इश्क़
दौलत से
ख़रीदा नहीं
जाता’
(जब याद
किसी की
आती है),
हुज़ूरेवाला जो
हो इजाज़त
(ये
रात फिर
न आएगी),
‘मैं
कयामत हूं’
(सुहागरात)
और ‘चम्पावती
तू आजा’
(अन्नदाता)
जैसे सैकड़ों
गीतों पर
डांस किया।
मधुमती कहती
हैं, ‘मेरी
शक्ल-सूरत
हेलेन से
इतनी ज्यादा
मिलती थी
कि ख़ासतौर
से वेस्टर्न
डांसेज में
तो दर्शक
मुझे पहचान
ही नहीं
पाते थे|
कई लोग
आज भी
उन डांसेज
को हेलेन
का ही
समझते हैं।‘
60 के
दशक की
शुरुआत में
मधुमती ने
मशहूर डांसर
मनोहर दीपक
के साथ
मिलकर ‘मधुमती-मनोहर
दीपक कल्चरल
ट्रूप’
बनाया। इससे
पहले मनोहर
दीपक सितारा
देवी के
ग्रुप से
जुड़े हुए
थे| मधुमती
ने 35
सदस्यों के
अपने इस
ग्रुप के
साथ उस
दौर में
दुनिया के
कई देशों
में स्टेज
शोज़ किए।
मधुमती जी
बताती हैं,
‘उन्हीं
दिनों अचानक
मनोहर दीपक
की पत्नी
गुजरीं तो
डांस ग्रुप
के साथ-साथ
मुझे उनके
चार छोटे-छोटे
बच्चों की
देखभाल भी
करनी पड़ी।
चारों बच्चे
मेरे साथ
इतना हिलमिल
गए थे
कि साल
1965 में
मुझे अपनी
क़रीबी मित्र
एक्ट्रेस नर्गिस
के कहने
पर मनोहर
से शादी
कर लेनी
पड़ी।‘
मनोहर दीपक का असली नाम मनोहर सिंह काम्बोज था| वो पटियाला के एक किसान परिवार से थे| उन्हें डांस का और ख़ासतौर से भांगड़ा का बहुत शौक़ था| मधुमती बताती हैं, “तीन भाईयों में सबसे छोटे मनोहर ने एक डांस ग्रुप बनाया था जिसमें उनके सगे और चचेरे भाई, दोस्त और रिश्तेदार लड़के शामिल थे| वो सब मिलकर खेतों में प्रैक्टिस किया करते थे|
जल्द
ही उनका
ग्रुप इतना
मशहूर हो
गया कि
राजकपूर ने
फ़िल्म ‘जागते
रहो’
के सुपरहिट
भांगड़ा गीत
‘तेकी मैं
झूठ बोलिया,
कोई ना
भाई कोई
ना’
पर डांस
करने के
लिए मनोहर
को ख़ासतौर
से मुम्बई
बुलाया था|
इसके बाद
मनोहर और
उनके ग्रुप
ने बी.आर.चोपड़ा
की फ़िल्म
‘नया दौर’
के गीत
‘ये देश
है वीर
जवानों का’
पर डांस
किया था| फ़िल्म ‘नया
दौर’
और उसके
गीत-संगीत
की ज़बरदस्त
कामयाबी के
साथ ही
मनोहर दीपक
फिल्मों और
स्टेज शोज़
में व्यस्त
होते चले
गए|’
मधुमती
ने अपने
एक्टिंग करियर
की शुरुआत
रणजीत मूवीटोन
की फ़िल्म
‘ज़मीन के
तारे’
से की
थी। 1960
में रिलीज़ हुई
इस फ़िल्म
के डायरेक्टर
सरदार चंदूलाल
शाह थे।
मधुमती जी
के पिता
नहीं चाहते
थे कि
उनकी बेटी
परदे पर
प्रेमदृश्यों में
नज़र आए।
फ़िल्म
‘ज़मीन के
तारे’
में मधुमती
को उन्होंने
एक्टिंग की
इजाज़त सिर्फ़
इसलिए दी
थी कि
इस फ़िल्म में
मधुमती के
अपोज़िट कोई
हीरो नहीं
था। इस
फ़िल्म में
मधुमती ने
डेज़ी ईरानी
की मां
का रोल
किया था|
इसी फ़िल्म
में उन्होंने
अपने पिता
की सलाह
पर अपना
नाम ह्यूटौक्सी
रिपोर्टर से
बदलकर मधुमती
रखा था।
इसके बाद
उन्होंने सत्येन
बोस की
फ़िल्म
‘हम भी
इंसान हैं’
साईन की।
इस फ़िल्म में
भी उनके
अपोज़िट कोई
हीरो नहीं
था। ये
फ़िल्म
‘ज़मीन के
तारे’
से पहले,
साल 1959
में रिलीज़ हुई
थी। इन
दोनों ही
फ़िल्मों में
मधुमती पर
एक भी
गीत नहीं
फ़िल्माया गया
था।
मधुमती जी हमेशा से समाजसेवा में भी कला के ज़रिये अपना योगदान देती आयीं। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान वो नेफ़ा बॉर्डर पर जाकर भारतीय जवानों का मनोबल बढ़ाने वाली पहली महिला कलाकार थीं। उस ट्रिप में उनके साथ राजकपूर, मनोहर दीपक, मुकेश, आगा और अनवर हुसैन भी शामिल थे। फिर उन्होंने सुनील दत्त, मनोहर दीपक, शम्मी आण्टी, अनवर हुसैन, तलत महमूद और प्रेम धवन के साथ मिलकर अजंता आर्ट्स बनाया जिसके मुखिया के तौर पर सुनील दत्त को चुना गया था। 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान मधुमती ने अजंता आर्ट्स ट्रूप के साथ लद्दाख जाकर जवानों के लिए कई स्टेज शोज़ किए थे। 1971 के भारत पाक युद्ध के दौरान वो बांग्लादेश जाकर भारतीय जवानों से मिली थीं जिसके लिए उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया गया था।
मधुमती जी कहती हैं, ‘मैंने मनोहर दीपक जी के चारों बच्चों को सगी मां बनकर पाला और बड़ा किया| दोनों बेटियों की शादी की, बड़ी बेटी कपूरथला में रहती है और छोटी बंगलौर में| उनसे छोटे दो बेटे थे, बड़ा बेटा अपने परिवार के साथ ऑस्ट्रेलिया में रहता है| लेकिन छोटा बेटा अपनी मां की तरह दिल की बीमारी से पीड़ित था| साल 2006 में अचानक ही वो गुज़र गया| मनोहर उस झटके से नहीं उबर पाए और एक महीने बाद 31 अक्टूबर 2006 को उनका भी देहांत हो गया| पति के गुज़रने के बाद मैंने खुद को पूरी तरह से अपनी एकेडमी के प्रति समर्पित कर दिया है। मेरे पास आज भी बहुत से बच्चे सीखने आते हैं| डांस के प्रति उनकी लगन हर बार मुझे भी एक नए जोश से भर देती है। अब तो बस यही तमन्ना है कि आखिरी सांस तक ऐसे ही इण्डस्ट्री में आने वाले नए बच्चों को सिखाती रहूं।‘
We are thankful to –
Mr.
Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Mr. Gajendra Khanna for the English
translation of the write up.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video
editing.
Madhumati ji on YT Channel 'Beete Hue Din'
“Jhanak
Jhanak Tori Baaje Payaliya” - Madhumati
........Shishir Krishna Sharma
Towards the end of the Fifties, in the tradition of dancers
like Cukoo, Helen and Bela Bose, a new dancer named Hutoxy Reporter entered the
Hindi Cinema. The film the 1958 release, ‘Harishchandra’ whose producer was
Ramubhai Desai and Director was Dhirubhai Desai. The composer for this Sahu
Modak and Sulochana starrer mythological film was Sushant Banerjee. Hutoxy had
danced to the film’s song ‘Aaja Raja Aaja Ab Aa Bhi Ja’. After working as a
dancer in nearly 50 films, she started acting in films with a new name,
Madhumati. During her nearly two-decade long career, she acted in various
Hindi, Marathi, Gujarati, Punjabi and Bengali movies as a dancer, heroine and
character artiste before bidding adieu to the camera. Madhumati ji who turned
79 years old on 30th May 2020, has been running a dance and acting
school at her home on A B Nair Road, Juhu for the last forty years.
I had got the opportunity for interviewing her in 2010 for
the ‘Rajasthan Patrika’. That year, she had been awarded the 13th
‘Lachhu Maharaj Award’ at a ceremony in Lucknow. During this conversation at
her home, she had discussed her personal and professional life in detail with
me. We used to occasionally talk on the phone after that. Recently, I met her
once again to take updates on her interview for ‘Beete Hue Din’. Today, this
interview is presented to you here: -
Madhumati ji was born on 30th May 1941 in a rich
Parsi family in Thane and had six brothers. While her father Khan Saheb Dara
Behramji reporter was a Judge, her elder brother Piloo Reporter was a well-known
cricket umpire of his time. While attending Thane’s famous School St John The
Baptist Convent, Madhumati had started learning Kathak at the school itself
under the tutelage of Lucknow style Guru Dulari Shrivastava at the age of just
7 years. Madhumati ji recalls, “My father was against my learning dance but
thanks to Guru ji’s intervention, he reluctantly gave me permission to learn
it. During my school studies I learnt Manipuri and Kathakali. Alongside, I also
learnt Bharatnatyam from Gurus R K Shetty and Chandrashekhar Pillai. After
completing my school education, I opened my own dance academy in Thane. I was
merely 15 years old at that time.“
Through her stage shows, Madhumati soon made a name for
herself as an excellent dancer. Director Dhirubhai Desai was impressed with her
dancing skills during one such stage show and gave her the offer to dance for
his film ‘Harishchandra’. According to Madhumati, her father was initially
totally against her working for films but after lots of efforts by Dhirubhai, he
with a lot of difficulty agreed for it. The film released in the year 1958. She
went on to dance to multiple songs including ‘Jhanak Jhanak Tori Baaje Payaliya’
(Mere Huzoor), ‘Tere Naina Talaash Karen Jise’
(Talaash), ‘Aankhon Aankhon Mein Kisi Se Baat Hui’
(Janwar), ‘Le De Saiyaan Odhni Punjabi’
(Pavitra Paapi), ‘Title Song’ (Night In London), ‘Kisi Par Jaan Dete Hain’
(Jhuk Gaya Aasmaan), ‘Jungle Mein Mor Nacha Kisne Dekha’ (Shatranj), ‘Maangi
Hain Duaayen Humne Sanam’ (Shikari), ‘Suno Zindagi Gaati Hai’
(Pagla Kahin Ka), ‘Ishq Daulat Se Khareeda Nahin Jaata’
(Jab Yaad Kisi Ki Aati), Huzoorewala Jo Ho Ijaazat
(Ye Raat Phir Na Aayegi), ‘Main Qayamat Hoon’
(Suhagraat)
and
‘Champawati Tu Aaja’
(Annadaata). Madhumati says, ‘My face resembled
Helen so much that particularly in western dances, the viewers could not
recognize me. Many people even today think that those dances are by Helen! ‘
In the early 1960s, Madhumati formed the ‘Madhumati-Manohar
Deepak cultural troup’ with famous dancer Manohar Deepak. Earlier Manohar
Deepak had been associated with Sitara Devi’s group. Madumati and her group
comprising of 35 members gave stage shows in many countries around the world.
Madhumati ji recalls, ‘Around that time, when Manohar Deepak’s wife suddenly died,
along with managing the dance group, the responsibility of his four small
children also fell on me. All the four children had become so attached to me
that in the year 1965, on the advice of my close friend Actress Nargis, I got
married to Manohar. ‘
Manohar Deepak’s real name was Manohar Singh Kamboj. He
belonged to a farmer’s family from Patiala. He was very fond of dancing
especially Bhangra. Madhumati ji says, “The youngest among three brothers,
Manohar had made his own dance group which comprised of his brothers, paternal
cousins, friends and other male relatives. They all used to practice in the
fields. Soon this group became so famous that Raj Kapoor specially invited him
to dance to film Jaagte Raho’s superhit Bhangra song, ‘Te Ki Main Jhooth
Boliya, Koi Na Bhai Koi Na’. After that Manohar and his troupe had also danced
to B R Chopra’s film Naya Daur’s song ‘Ye Desh Hai Veer Jawanon Ka’. After the
runaway success of film ‘Naya Daur’ and its songs, Manohar Deepak became really
busy with films and stage shows.’
Madhumati began her acting career with Ranjeet Movietone’s
movie ‘Zameen Ke Taare’. The director of this 1960 release was Sardar Chandulal
Shah. Madhumati ji’s father did not want his daughter to be visible on screen
in romantic scenes. He agreed for her to act in the film, ‘Zameen Ke Taare’
only because there was no hero cast opposite her. In this film, Madhumati ji
had played the role of Daisy Irani’s mother. With this film, on the advice of
her father, She changed her name from Hutoxy Reporter to Madhumati. After this,
she signed Satyen Bose’s film ‘Hum Bhi Insaan Hain’. In this film also, there was no hero
opposite her. This film had released in 1959 before ‘Zameen Ke Taare’. No song
had been picturized on her in both these films.
Madhumati ji always kept doing social service as well
through her art. During the Indo-China war in 1962, She was the first female
artist to go to the NEFA border to boost the morale of the soldiers there.
During this trip, Raj Kapoor, Manohar Deepak, Mukesh, Agha and Anwar Hussain
had also accompanied her. After that, she had along with Sunil Dutt, Manohar
Deepak, Shammi Aunty, Anwar Hussain, Talat Mahmood and Prem Dhawan, laid the
foundation of Ajanta Arts which was headed by Sunil Dutt. During the 1965
Indo-Pak war, Madhumati ji had gone with the Ajanta Arts troup to Ladakh and
done many stage shows for the Army Jawaans. During the 1971, Indo-Pak war, she had gone and met the
troops in Bangladesh for which She had also been commended by the President of
India himself.
Madhumati acted opposite Chandrashekhar as the heroine in
the film ‘Chale Hain Sasuraal’ (1966). In film ‘Talaash’ (1966), She was seen
in the role of classical dancer Rupali. In film ‘Charas’ (1976), She was soon
in the negative role of Amjad Khan’s lover Laila while in ‘Amar Akbar Anthony’
(1966), She was seen as the courtesan Bijli Bai. She remembers,
‘In the film ‘Charas’, two songs ‘Main
Ek Shareef Ladki Badnaam Ho Gayi’ and ‘Ye Dhuaan Meharbaan Charas Ka Nahin
Hai’ in which Aruna Irani had participated with me. After that, I had actually
called a press conference and declared my retirement from films. But then, one
day, Madanmohan Desai, invited me for his film ‘Amar Akbar Anthony’. I cited
the press conference and tried to decline the offer. He then, started saying,
that it was just a guest appearance and It can be shot at night. I had to
finally agree to his proposal. Thus, ‘Amar Akbar Anthony’ proved to be my last
Hindi release. After that, I did have a Marathi release, ‘Sawali Premachi’
along with Sunil Gavaskar which had been produced by me. Now, since the last
forty years, I have been running my academy, ‘My Vision’ where I have been
teaching the art of dance and acting to many new artists trying to enter the
film industry. Many of my students like Akshay Kumar, Govinda, Tabu, Chunkey
Pandey and Amrita Singh have made a name for themselves in films.
Madhumati’s husband Manohar Deepak had also produced three
Punjabi films, ‘Khedan De Din Chaar’, ‘Geet Baharan De’ and ‘Dharti Veeran Di’
as well as two Hindi films, ‘Sangdil’ (1967) and ‘Jai Jwala’ (1972). ‘Jai
Jwala’ had initially been named, ‘Pooja Aur Payal’.
Towards the end of 1960s, Manohar Deepak had started a big
budget film ‘Paani’ which was directed by Manmohan Desai starring stalwarts
like Meena Kumari, Biswajit and K N Singh. Composers Shankar-Jaikishan had
recorded two songs as well for the film. Of these was a Begum Akhtar sung
thumri, ‘Sharaab-e-Naabh Ko Do Aatishaan Bana Ke Pila’ which would
have marked the dance performance of Sitara Devi over ten years after ‘Mother
India’. The second song was a lori sung by Asha Bhosle, ‘Tu Sone Na Dena Use
Tere Andar Jo Insaan Hai’. Unfortunately, though 12 reels of the movie had been
recorded, it remained incomplete because It’s climax which was to be picturized
on Meena Kumari, could not be shot due to her sad demise.
In the film, ‘Paani’, Madhumati’s younger
sister, Vaishali had been cast opposite Biswajeet. Her sister had worked in a
few films, including ‘Boond Jo Ban Gayi Moti’ (1967), ‘Teen Bahuranian’
(1968), ‘Raaton Ka
Raja’ (1970) and ‘Chowkidar’ (1974). Vaishali’s real name is Rukhsana
Reporter and she now runs her own Dance and Acting Academy in Thane.
Madhumati ji says, ‘I brought up Manohar Deepak ji’s four children as my own. Both daughters are married. The elder one stays in Kapurthala while the younger one in Bangalore. Both sons were younger to them. The elder one stays with his family in Australia. Unfortunately, the younger son was suffering from a heart ailment like his mother due to which he suddenly died in 2006. Manohar ji could not recover from the shock and sadly passed away a month later on 31st October 2006. After his demise, I have dedicated myself totally to my academy. Today also many children come to learn dance from me. Their dedication towards dance continues to invigorate me till today. Now, my only aim is to continue to teach children coming into the film industry till my last breath.‘
शिशिर जी आपका लेख बेहद उम्दा व उच्च कोटि का है। पुराने दिग्गज कलाकारों के ये अफसाने पढ़ने में काफी आनंद आता है। उस समय के कलाकारों की बात ही कुछ ओर थी। वो कहानियां-किस्से अब के कलाकारों के नहीं लगते। आप काफी शोध और मेहनत करते हैं। इसी तरह के वृतांत आप लेकर आते रहिए। ऊपर हिंदी में पढ़ने में एक बात जो महसूस की वो है कि हिंदी के फांट आपस में टकराते हुए से लग रहे हैं। यानि ऊपर की मात्रा नीचे के शब्दों को छू रही है। इसलिए पढ़ने में थोड़ी दिक्कत महसूस हो रही है। क्या इस फांट या फार्मेट को सुधारा जा सकता है??
ReplyDeleteशैलेन्द्र जी, मेरे मोबाइल में तो ऐसी कोई गड़बड़ी नहीं दिखाई दी। कभी कभी नेट स्लो होने के कारण ऐसी समस्या दिखाई देती है या हो सकता है
ReplyDeleteआपकी शोध और लगन साफ परिलक्षित होती है। मधुमती जी से उनकी फ़िल्म पानी के बारे में जो जानकारी मिली वह शंकर जयकिशन के फैंस के लिए बहुत ही कीमती हैं।
ReplyDeleteमहान कलाकार मधुमति जी के इस व्यक्तिगत आदर्श रूप से तो हम अपरिचित ही थे. शिशिर जी आपको साधुवाद.
ReplyDeleteCongratulations Maa. Ma is an emotional moment of inspiration for all of you, which appears to ignite a ray of passion and hope in everyone. Mother, I consider you a ray of hope because the key to your success is lauded all over the world.
ReplyDeleteBut as per the 'Records' in Google & other concerned 'sites' , She (Madhumati) is nowhere in 1963 movie 'Kabli Khan'.
ReplyDelete