“मैं जान गयी तुझे सैयां हट छोड़ दे मोरी बैयां” – कम्मो
..............शिशिर कृष्ण शर्मा
‘न्यू एम्पायर’! देहरादून के केंद्र घंटाघर से महज़ 300 मीटर की दूरी पर, शहर की मुख्य सड़क राजपुर रोड पर स्थित दशकों पुराना सिनेमाहॉल, जिसके साथ किशोरावस्था की मेरी बेशुमार यादें जुड़ी हुई हैं| दरअसल ‘न्यू एम्पायर’ की इमारत में हॉल के पीछे बने कमरों में मेरा स्कूल का सहपाठी मित्र राकेश मोहन बडोला रहता था| राकेश के पिता सिनेमा हॉल के मैनेजर थे और ये कमरे ख़ासतौर से मैनेजर की रिहाईश के लिए ही बनाए गए थे| 70 और 80 के दशक में स्कूल-कॉलेज के दिनों में हम मित्रों का जमावड़ा कमोबेश हर रोज़ राकेश के घर पर लगता था| ये वो दौर था जब पुरानी और ख़ासतौर से ब्लैक एंड व्हाईट फ़िल्में नए प्रिंट के साथ बार बार रिलीज़ हुआ करती थीं और हर शहर-क़स्बे में ऐसी तमाम फ़िल्मों के लिए कम से कम एक सिनेमाहॉल रिज़र्व होता था| देहरादून में ये ताज ‘न्यू एम्पायर’ के सर पर था|
राकेश के ज़रिये मुझे ‘न्यू एम्पायर’ में बेशुमार पुरानी फ़िल्में देखने का मौक़ा मिला| और ये भी एक वजह थी कि मेरे मन में उस पुराने दौर की फ़िल्मों, गीतों और कलाकारों के प्रति आकर्षण और उत्सुकताओं ने जन्म लिया| ‘न्यू एम्पायर’ में देखी दशकों पुरानी फ़िल्मों में से एक थी साल 1958 में प्रदर्शित हुई ‘हावड़ा ब्रिज’ जिसके गीतों ने मुझ पर जादू सा कर दिया था| हफ़्ते-दो हफ़्ते, जब तक ये फ़िल्म ‘न्यू एम्पायर’ में लगी रही, मैं सिर्फ़ इसके गीत देखने के लिए लगभग रोज़ ही वहां जाता रहा| फ़िल्म के तमाम जाने-पहचाने कलाकारों के बीच एक अनजाना सा चेहरा ऐसा था जिसने मुझे अपनी ओर बेतरह आकर्षित किया था| और वो थीं अभिनेता सुन्दर की जोड़ीदार अभिनेत्री, जिनका नाम बरसों तक मेरे लिए एक सवाल बना रहा| फ़िल्म ‘हावड़ा ब्रिज’ का सुपरहिट गीत ‘मैं जान गयी तुझे सैयां हट छोड़ दे मोरी बैयां’ इसी जोड़ी पर फ़िल्माया गया था|
बरस दर बरस बीतते गए| और एक रोज़ मैं मुम्बई महानगर की भीड़ का हिस्सा हो गया| इस महानगर ने मुझे एक फ़िल्म इतिहासकार, लेखक और ब्लॉगर के तौर पर पहचान दी| देश के सुप्रसिद्ध फ़िल्म इतिहासकारों से मेरा संपर्क हुआ| एक रोज़ मुझे दिल्ली स्थित व्यवसायी, सिनेमा और संगीत प्रेमी और उत्कृष्ट गायक श्री अजय साहू के घर पर आयोजित सिनेमाप्रेमियों के सम्मेलन में शामिल होने का अवसर मिला| वहां मेरी मुलाक़ात कानपुर के वयोवृद्ध सिनेमाप्रेमी नंदकिशोर जी से हुई जिनका हिंदी फ़िल्मों के तमाम भूलेबिसरे-रिटायर्ड कलाकारों से मिलना-जुलना होता रहता था| उन्होंने पूछा, ‘कम्मो का इंटरव्यू किया?’ ‘कम्मो कौन?’ मैंने सवाल किया| और उस रोज़ मुझे उस सवाल का जवाब मिल ही गया जो क़रीब 35 साल पहले फ़िल्म ‘हावड़ा ब्रिज’ देखकर मेरे मन में उठा था| नंदकिशोर जी ने मुझे कम्मो का फ़ोन नंबर भी दे दिया| ये मई 2014 का वाकया है|
मुम्बई लौटकर मैंने कम्मो जी को फ़ोन करके अपना परिचय दिया और इंटरव्यू करने की इच्छा जताई| और उन्होंने बिना नानुकुर किये मुझे मिलने का समय दे दिया| कम्मो जी से मेरी मुलाक़ात 3 जून 2014 की शाम बांद्रा के पाली हिल रोड स्थित उनके घर पर हुई थी|
कम्मो जी का पूरा नाम कमरजहां है लेकिन घर में सब उन्हें कम्मो कहकर बुलाते थे| उनका जन्म 28 नवम्बर 1938 को उनके पैतृक शहर सहारनपुर में हुआ था| वो बताती हैं, “मेरे वालिद फ़ौज में थे और हर दो-चार साल में उनका तबादला होता रहता था| लेकिन मेरे होश संभालने से पहले ही वो रिटायर हो चुके थे| परिवार में अब्बा-अम्मी के अलावा हम 4 बहनें और 2 भाई थे| मैं 1 भाई और 2 बहनों के बाद चौथे नंबर पर थी| मैं ज़्यादा नहीं पढ़ पायी क्योंकि उस ज़माने में लड़कियों को पढ़ाना-लिखाना अच्छा नहीं माना जाता था | साल 1949 में अब्बा हम सबको साथ लेकर सहारनपुर से मुम्बई चले आए, जहां हम माहिम में रहने लगे|”
कम्मो जी के अनुसार उनके घर में फ़िल्में देखना तो दूर, फ़िल्मों की बातें तक करने की मनाही थी| लेकिन फ़िल्मों के प्रति उनके मन में आकर्षण ज़रूर था| वो बताती हैं, “हमारे पड़ोस में एक कैमरामैन रहते थे| उनकी पत्नी को हम सब भाभीजान कहते थे| एक रोज़ मैं भाभीजान के साथ शूटिंग देखने गयी| उन्होंने वहां मुझे उस ज़माने के मशहूर डांस डायरेक्टर मास्टर बद्रीप्रसाद जी से मिलवाया| भाभीजान की सिफारिश पर मास्टर जी ने मुझे अपने ग्रुप में शामिल कर लिया| उस वक़्त मेरी उम्र 12-13 बरस की रही होगी|”
शुरुआत में कम्मो जी ने एक-दो फ़िल्मों में बतौर ग्रुप डांसर काम किया| लेकिन उनकी मेहनत और काम से प्रभावित होकर मास्टर बद्रीप्रसाद ने जल्द ही उन्हें फ़िल्म ‘सिंदबाद द सेलर’ में सोलो डांस का मौक़ा दे दिया| ‘दीपक पिक्चर्स’ के बैनर में बनी ये फ़िल्म 1952 में प्रदर्शित हुई थी| इस फ़िल्म के प्रोड्यूसर बलवंत भट्ट, निर्देशक नानाभाई भट्ट और संगीतकार चित्रगुप्त थे| फ़िल्म की मुख्य भूमिकाओं में रंजन, नसीमबानो, निरूपा रॉय और प्राण थे| कम्मो जी पर फ़िल्माया गया वो गीत था - ‘जिस रोज़ से हमने तेरा दीदार किया’|
कम्मो जी बताती हैं, “मैंने विधिवत रूप से डांस नहीं सीखा था| रिकॉर्ड बजा-बजाकर नाचती थी, सो ऐसे ही सीख लिया| ‘सिंदबाद द सेलर’ के बाद डांस के साथ-साथ अभिनय के भी ऑफ़र आने लगे और मैं काम करती चली गयी| 20 साल के अपने करियर में मैंने ‘राजा हरिश्चंद्र’, ‘लैला मजनूं’, ‘बिराज बहू’, ‘देवदास’, ‘राजहठ’, ‘अपराधी कौन’, ‘हावड़ा ब्रिज’, ‘बसंत’, ‘शमां’, ‘दिल तेरा दीवाना’, ‘दाल में काला’, ‘पूजा के फूल’, ‘लुटेरा’, ‘बेदाग़, ‘शंकर खान’, ‘लव एंड मर्डर’, ‘हीर रांझा’ और ‘बॉम्बे टू गोवा’ जैसी क़रीब 60 फ़िल्मों में काम किया|”
कम्मो जी को एक अभिनेत्री के तौर पर बिमल रॉय की फ़िल्म ‘बिराज बहू’ से पहचान मिली| साल 1954 में प्रदर्शित हुई इस फ़िल्म में उन्होंने कामिनी कौशल की ननद (अभिभट्टाचार्य की बहन) का रोल किया था| ‘देवदास’ (1955) में वो सुचित्रा सेन की तो ‘फागुन’ और ‘राजहठ’ में मधुबाला की सहेली के रोल में नज़र आयीं| ‘राजहठ’ का सुपरहिट गीत ‘अंतर मंतर जंतर मैंने पा लिया है नाग’ मधुबाला और कम्मो पर फ़िल्माया गया था| ‘अपराधी कौन’ (1957) में उन्होंने अभिनेता कुमुद त्रिपाठी के साथ मिलकर कॉमेडी तो की ही, इस जोड़ी पर फ़िल्म का हिट गीत ‘हम प्यार के दो मतवाले’ भी फ़िल्माया गया| फ़िल्म ‘बसंत’ (1960) में कम्मो जॉनी वॉकर की जोड़ीदार के रूप में दिखीं तो ‘शमां’ (1961) में ‘इंसाफ़ तेरा देखा ऐ साक़ी-ए-मयखाना’ गीत पर मुजरा करती नज़र आयीं|
बातचीत के दौरान मैंने कम्मो जी से तस्वीरें खिंचाने का आग्रह किया तो उन्होंने बताया कि 15 दिन पहले ही उनके शौहर का इंतकाल हुआ है और इद्दत की अवधि के ख़त्म होने तक वो धार्मिक नियमों और रिवाजों के मुताबिक़ तस्वीर नहीं खिंचा पाएंगी| ये सुनते ही मेरे मुंह से निकल पड़ा, “बालम साहब गुज़र गए क्या?” इस पर उन्होंने अनजान बनते हुए कहा, “बालम? कौन बालम? मैं तो किसी बालम को नहीं जानती|” और मैं सकपका गया| मुझे तुरंत बात बदलनी पड़ी| मैंने पूछा आपकी आख़िरी फ़िल्म कौन सी थी? ‘बॉम्बे टू गोवा’ - कम्मो जी ने जवाब दिया|
हमारी बातचीत आगे बढ़ी| फ़िल्मों से अलग होने की वजह बताते हुए उन्होंने कहा, “मेरी शादी हुई तो मैं उन दिनों फ़िल्म ‘हीर रांझा’ और ‘बॉम्बे टू गोवा’ की शूटिंग कर रही थीं| मेरे शौहर का फ़िल्मों से कोई रिश्ता नहीं था| उन्हें मेरा फ़िल्मों में काम करना भी पसंद नहीं था| नतीजतन मैंने शादी के बाद अपना बचाखुचा काम पूरा किया और फिर फ़िल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया| ‘हीर रांझा’ 1970 में और ‘बॉम्बे टू गोवा’ 1972 में रिलीज़ हुई| और इस तरह ‘बॉम्बे टू गोवा’ मेरे करियर की आख़िरी फ़िल्म साबित हुई| इस फ़िल्म में मैंने मुकरी की पत्नी का रोल किया था, वो दक्षिण भारतीय पति-पत्नी जो बस के यात्रियों में शामिल हैं|” परिवार के बारे में पूछने पर कम्मो जी ने बताया कि उनकी तीन बेटियां हैं, दो बड़ी बेटियों की शादी हो चुकी है और वो दोनों मुम्बई में ही रहती हैं और तीसरी बेटी इंटीरियर डिज़ाईनर है जो अभी अविवाहित है| कम्मो जी की तीसरी बेटी इंटरव्यू के दौरान घर पर ही मौजूद थी और उस रोज़ उनसे भी मेरी मुलाक़ात हुई थी| कम्मो जी की तस्वीर को लेकर तय हुआ कि इद्दत की अवधि के ख़त्म होने के बाद मैं उनकी तस्वीर खींचने के लिए दोबारा आऊंगा|
(कम्मो जी के करियर को लेकर की गयी रिसर्च और उनकी कही बातों को क्रॉसचेक करने पर पता चला कि उनकी आख़िरी प्रदर्शित फ़िल्म ‘बॉम्बे टू गोवा’ नहीं बल्कि साल 1977 में आयी ‘धूपछांव’ थी| इस फ़िल्म में कम्मो जी ने मेहमान कलाकार के तौर पर एक मुजरे वाली का रोल करने के अलावा ‘नज़रें चुरा के बैठो दामन बचा के बैठो’ गीत पर डांस भी किया था| इस फ़िल्म के लीड रोल्स में संजीव कुमार, हेमा मालिनी और योगिता बाली थे और संगीत शंकर जयकिशन का था|)
क़रीब तीन महीने बाद मैंने कम्मो जी को फ़ोन करके मिलने का समय मांगा| लेकिन अब उनका रवैया पूरी तरह से बदल चुका था| उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि मैं उनका इंटरव्यू प्रकाशित न करूं| मैंने वजह पूछने की कोशिश की लेकिन वो बारबार इंटरव्यू प्रकाशित न करने का आग्रह करती रहीं| आख़िर में मुझे उनकी बात माननी ही पड़ी| उनके इस आग्रह की वजह शायद बालम ही थे| हो सकता है उन्हें लगा हो कि चूंकि मैं बालम से उनके रिश्ते के बारे में जानता हूं इसलिए इंटरव्यू में इस बात का ज़िक्र ज़रूर करूंगा| और शायद वो चाहती ही नहीं थीं कि उनका नाम बालम के साथ जोड़ा जाए| इस बात की पुष्टि भी आगे चलकर हो ही गयी|
दरअसल साल 2014 में अपॉइंटमेंट मिलते ही मैं कम्मो जी के बारे में इंटरव्यू के लिए ज़रूरी जानकारियां हासिल करने में जुट गया था| इसी सिलसिले में वयोवृद्ध अभिनेता चंद्रशेखर जी से बात हुई तो उन्होंने बताया था कि कम्मो अभिनेता बालम की पत्नी थीं| लेकिन कम्मो जी के दोटूक जवाब ने मुझे असमंजस में डाल दिया था| मेरे पूछने पर उन्होंने अपने दिवंगत शौहर का नाम भी इस हिदायत के साथ बताया था कि वो बेहद प्राइवेट क़िस्म के गैरफ़िल्मी इंसान थे इसलिए मैं उनके नाम को सार्वजनिक न करूं|
साल दर साल गुज़रते गए| इस दौरान कुछ अन्य सूत्रों से भी इस बात की पुष्टि हो गयी कि बालम ही उनके पति थे लेकिन अब वो बालम को पहचानने से साफ़ इनकार कर देती हैं| उधर बीते मार्च (2019) में अचानक ही एक रोज़ फ़ेसबुक पर किसी का पोस्ट किया फ़िल्म ‘हावड़ा ब्रिज’ का अपना पसंदीदा गीत ‘मैं जान गयी तुझे सैयां...’ देखा तो मैं ख़ुद को रोक नहीं पाया| मैंने उसी वक़्त कम्मो जी को फ़ोन किया लेकिन उन्होंने एक बार फिर से इंटरव्यू के प्रकाशन की इजाज़त देने से इनकार कर दिया| मैंने बिना बालम का ज़िक्र किये उन्हें बहुत समझाया कि मैं फिल्मोद्योग के भीतर का ही व्यक्ति हूं, ‘सिंटा’ (सिने एंड टी.वी.आर्टिस्ट एसोसिएशन) और ‘फ़िल्म राईटर्स एसोसिएशन’ (एफ़.डब्ल्यू.ए.) का स्थायी सदस्य हूं, इस ब्लॉग में सिर्फ़ वोही लिखा जाता है जिसकी आप लोग इजाज़त देते हैं, गॉसिप्स के लिए इस ब्लॉग में कोई जगह नहीं है, मुझे अगर बेईमानी करनी होती तो 5 सालों तक किस बात का इंतज़ार करता इत्यादि| लेकिन वो ज़िद पर अड़ गयीं| पिछली बार उनका स्वर आग्रहपूर्ण था लेकिन इस बार वो बेहद रूखाई से एक ही शब्द दोहराती रहीं, नहीं!...नहीं! ज़ाहिर है उनका ये रवैया बेहद अपमानजनक था| और मैंने उसी वक़्त फ़ैसला कर लिया कि जब आपके मन में न तो फ़िल्मोद्योग से जुड़े लोगों और एसोसिएशनों के लिए कोई सम्मान है और न ही मेरी ईमानदारी के प्रति, तो मैं किस बात का लिहाज़ करूं? अब तो आपकी ताज़ा तस्वीर के बिना ही सही, ये इंटरव्यू हर हाल में प्रकाशित होगा|
मेरे सामने अब एक नयी समस्या आ खड़ी हुई कि जो नाम इस तमाम जद्दोज़हद की जड़ में था, उन बालम के विषय में मुझे ज़्यादा जानकारी नहीं थी| मैं सिर्फ़ इतना जानता था कि बालम पर ‘बरसात की रात’ की ‘ना तो कारवां की तलाश है ’ और ‘आज़ाद’ की ‘मरना भी मोहब्बत में किसी काम न आया’ जैसी कई क़व्वालियां फ़िल्माई गयी थीं| लेकिन इस इंटरव्यू / आलेख की विश्वसनीयता के लिए उनके बारे में विस्तृत जानकारी का दिया जाना बेहद ज़रूरी था| समस्या ये भी थी कि बालम के समकालीन जिन वरिष्ठ कलाकारों से मैं उनके विषय में जानकारी हासिल कर सकता था, उनमें बी.एम.व्यास और राममोहन जी अब जीवित नहीं थे| उम्र की वजह से चंद्रशेखर जी की याददाश्त और स्वास्थ्य पहले जैसे नहीं रहे थे| जगदीप से थोड़ी-बहुत उम्मीद थी तो पता चला उनकी भी हालत कमोबेश चंद्रशेखर जी जैसी ही है| जवाहर कौल जी को लगातार फ़ोन करता रहा लेकिन कोई उत्तर ही नहीं मिला| ऐसे में एक रोज़ उनसे मिलने उनके घर पर पहुंचा तो पता चला वो अस्पताल में भर्ती हैं और 3-4 दिनों में वापस लौट आएंगे| लेकिन हफ़्तेभर के भीतर ही उनके निधन की सूचना मिली| उधर ‘सिंटा’ के रिकॉर्ड में बालम का नाम ही नहीं मिला, वो शायद ‘सिंटा’ के सदस्य ही नहीं थे|
उसी दौरान एक सूचना ये भी मिली थी कि बालम पाकिस्तान चले गए थे| ऐसे में पाकिस्तान के अपने एक सम्मानित पाठक से मदद मांगी लेकिन बहुत कोशिशों के बावजूद वो भी कुछ पता नहीं लगा पाए| फिर एक रोज़ वरिष्ठ अभिनेता रज़ा मुराद जी से बात हुई तो उन्होंने दो महत्वपूर्ण सुराग़ दिए| पहला ये, कि बालम के बेटे का नाम अकबर बालम था, वो एक निर्देशक और सिनेमैटोग्राफर थे और उनका कुछ ही समय पहले निधन हुआ है| अकबर बालम ने साल 1981 की फ़िल्म ‘ख़्वाजा की दीवानी’ डायरेक्ट की थी| इसके अलावा डायरेक्टर कल्पतरू (असली नाम के.परवेज़) की 1980-90 के दशक की ‘पराया घर’, ‘घर हो तो ऐसा’, ‘नसीबवाला’, ‘बड़ी बहन’, ‘घर की इज्ज़त’ जैसी फ़िल्मों के सिनेमैटोग्राफर भी अकबर बालम ही थे| दूसरा ये, कि बालम के बारे में सबसे ज़्यादा और सही जानकारी अभिनेता प्रेम सागर दे सकते हैं| 95 वर्षीय प्रेम सागर जी (असली नाम सैयद अशफ़ाक़ बुखारी) से उनके कल्याण स्थित घर पर मेरी मुलाक़ात हुई और उन्होंने भी कई अहम जानकारियां दीं| इस बीच 50 के दशक की एक मशहूर अभिनेत्री से कम्मो जी की निजी ज़िंदगी के बारे में भी कुछ बातें पता चलीं| इस तरह विभिन्न स्रोतों से टुकड़ों टुकड़ों में हासिल हुई जानकारियों का जो निचोड़ निकलकर सामने आया वो कुछ इस तरह है –
मूलत: उत्तर प्रदेश के रहने वाले अभिनेता बालम ने 1940 के दशक में मशहूर प्रोडूसर-डायरेक्टर एम.सादिक़ के ऑफ़िस ब्वाय के तौर पर करियर शुरू किया था| साथ ही वो एम.सादिक़ की फिल्मों में प्रोडक्शन असिस्टेंट का काम भी करते थे| 1950 में उन्होंने अभिनय शुरू किया| इस साल प्रदर्शित हुई देव आनन्द और रेहाना की फ़िल्म ‘दिलरुबा’ में वो डांसर कुक्कू के जोड़ीदार के तौर पर एक अहम भूमिका में नज़र आये| फ़िल्म ‘दिलरुबा’ का सुपरहिट गीत ‘चिरैया उड़ी जाए रे...’ कुक्कू और बालम की जोड़ी पर ही फ़िल्माया गया था| बालम ने 1950 और 60 के दशक में ‘मेहंदी’, ‘कल्पना’, ‘चौदहवीं का चांद’, ‘धर्मपुत्र’, ‘ऑपेरा हाउस’, ‘ताज महल’, ‘पालकी’, ‘बूंद जो बन गयी मोती’ और ‘बहू बेगम ’ जैसी क़रीब 20 फिल्मों में अभिनय किया| एम.सादिक़ के निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘बहू बेगम ’ में उन्होंने मामा की खलभूमिका तो की ही थी, इस फिल्म के प्रोडक्शन कंट्रोलर भी वोही थे| ये फ़िल्म 1967 में प्रदर्शित हुई थी| लेकिन बालम के बारे में 1967 के बाद की किसी भी तरह की कोई जानकारी नहीं मिल पायी|
जहां तक सवाल है बालम से कम्मो जी के रिश्ते का, तो जैसा कि पता चला, कम्मो बालम की दूसरी पत्नी थीं और बालम से इनकी एक बेटी है| निर्देशक और सिनेमैटोग्राफर अकबर अभिनेता बालम की पहली पत्नी से थे| बालम से अलगाव होने के बाद कम्मो ने बांद्रा के फ़र्नीचर व्यवसायी और ‘ईनामदार फ़र्नीचर’ के मालिक बिलाल रहमान से शादी की थी| बिलाल पहले से शादीशुदा थे और कम्मो उनकी दूसरी पत्नी थीं| बिलाल रहमान के इंतक़ाल की वजह से ही इंटरव्यू के दौरान वो इद्दत में थीं| कम्मो की दोनों छोटी बेटियां बिलाल रहमान से हैं|
इन तमाम जानकारियों के बावजूद बालम से सम्बंधित 3 अहम सवाल अनुत्तरित रह गए थे| पहला, उनका असली अथवा पूरा नाम क्या था? दूसरा, वो उत्तर प्रदेश में किस शहर के रहने वाले थे? तीसरा, 1967 के बाद की उनकी ज़िंदगी कैसी कटी और वो कब तक जीवित रहे? इन सवालों के जवाब अब सिर्फ़ (स्वर्गीय) अकबर बालम का परिवार ही दे सकता था| लेकिन अकबर बालम का नामपता न तो डायरेक्टर्स एसोसिएशन के रिकॉर्ड में था और न ही सिनेमैटोग्राफर्स एसोसिएशन के| शायद वो इन दोनों ही एसोसिएशनों के सदस्य नहीं थे| ऐसे में उम्मीद की सिर्फ़ एक ही किरण बची थी, और वो थीं स्वर्गीय निर्देशक कल्पतरू की पत्नी| उनका फ़ोन नंबर तो नहीं मिल पाया लेकिन घर का पता ज़रूर मिल गया| ऐसे में मुझे ख़ुद सान्ताक्रुज़ स्थित उनके घर पर जाना पड़ा| लेकिन अकबर बालम के घर-परिवार के बारे में उन्हें भी कुछ पता नहीं था| उनका कहना था कि उनके शौहर (कल्पतरू) घर में न तो कभी फ़िल्मों की बातें करते थे और न ही अपने फ़िल्मी रिश्तों की| वो अपनी फ़िल्मी और घरेलू ज़िंदगियों को बिलकुल अलग रखते थे|
बहरहाल अब ये इंटरव्यू आपके सामने है| लेकिन मेरी कोशिश जारी है और तब तक जारी रहेगी जब तक बालम से सम्बंधित उन 3 सवालों के जवाब नहीं मिल जाते|
(विशेष : उपरोक्त तमाम जानकारियां कम्मो और बालम से परिचित लोगों से हुई बातचीत पर आधारित हैं| जबकि ‘बीते हुए दिन’ में शामिल इंटरव्यू / आलेख सम्बंधित कलाकार अथवा उनके निकट परिजनों से हुई व्यक्तिगत बातचीत पर आधारित होते हैं जो कि यहां नहीं हो पाया| इसलिए हमारे लिए इन जानकारियों की पुष्टि कर पाना संभव नहीं है| हमें खेद है कि ‘बीते हुए दिन’ के लिए ख़ुद के बनाए नियमों के साथ हमें मजबूरन समझौता करना पड़ा है और इसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं|)
(बालम से कम्मो के रिश्ते के सुबूत के तौर पर अमेरिका स्थित ‘प्रोफ़ेसर तूफ़ानी पब्लिशर्स’ के संस्थापक और हिन्दी सिनेमा और सिनेसंगीत प्रेमी प्राध्यापक सुरजीत सिंह जी द्वारा भेजी गयी कम्मो की, किसी पत्रिका में छपी एक पुरानी तस्वीर संलग्न है जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा है कि कम्मो बालम की पत्नी हैं| इस सहयोग के लिए हम प्राध्यापक सुरजीत सिंह जी के आभारी हैं|)
कम्मो का निधन 27 जुलाई 2021 को 83 साल की उम्र में मुम्बई में हुआ|
We are thankful to –
Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Mr. Gajendra Khanna for the English translation of the write ups.
Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
Kammo on YT Channel BHD
..............Shishir Krishna Sharma
‘New Empire’! A mere 300 metres away from Dehradun’s center,
Clock Tower on the town’s main road named Rajpur Road was a decades old cinema
hall with which many memories of my youth are closely interlinked. In fact, my
school classmate Rakesh Mohan Badola used to stay in the rooms situated behind
the hall in its buildings. Rakesh’s father was the manager of the hall and
these rooms were specifically made to cater towards the residence of the
manager. During the 70s and 80s, all of us friends used to gather at Rakesh’s
house almost daily. During that period old and especially black and white
movies used to get re-released in new prints and in every major town and city
there used to be a cinema hall dedicated for their exhibition. This mandate in
Dehradun was on ‘New Empire’.
Through Rakesh I got the opportunity to watch many old
movies at ‘New Empire’. As a result of this my attraction and curiosity towards
the old era’s films, songs and artists had started developing. One of the
decades old movies I viewed at ‘New Empire’ was the 1958 release ‘Howrah
Bridge’ whose songs mesmerized me. For the one to two weeks that the movie was
being exhibited at ‘New Empire’, I would go to see the movie almost daily just
to see the picturization of its songs. Among the many known actors in the movie
was an unfamiliar face which attracted me a lot. This actress was cast opposite
actor Sunder whose name remained a mystery to me for years thereafter. Film
‘Howrah Bridge’s superhit song ‘Main Jaan Gayi Tujhe Saiyaan Hat Chhod De Mori
Baiyaan’ was picturized on this duo.
Many years passed and I one day became a part of Mumbai
metro’s bustling crowd. This metro gave me recognition as a film historian,
writer and blogger. It also brought me in contact with famous film historians
from all over India. One day I was participating in one such gathering of
cinema lovers in Delhi’s businessman, cine and music lover and exemplary singer
Shri Ajay Sahu’s house. I met veteran cinema lover Nand Kishore ji of Kanpur
who used to often meet forgotten and retired artists of the cinema world. He
enquired, “Have you interviewed Kammo?”. I enquired, “Kammo, who?” and that day
I got the answer of my nearly 35-year-old question which had arisen in my mind
while watching ‘Howrah Bridge’. Nand Kishore ji gave me Kammo ji’s phone number
also. This incident occurred in May 2014.
On returning to Mumbai, I called up Kammo ji, introduced
myself and requested for an interview to which she readily agreed giving me an
appointment immediately. I met Kammo ji on the 3rd of June 2014 at her house
situated in Bandra’s Pali Hill Road.
Kammo ji’s full name is Kamarjehan but everyone used to call
her Kammo at home. She was born on 28th November 1938 at her paternal hometown
of Saharanpur. She told us, “My father was in the army who used to get
transferred every two-three years, but he had already retired by the time I
became aware of life around me. My family included my parents, four sisters and
two brothers. I was the fourth one after one brother and two sisters. I could
not study much as in those days it was not considered good to educate girls. In
the year 1949, my Abba brought all of us to Mumbai from Saharanpur where we
started residing in Mahim.”
According to Kammo ji in her house even talking about films
was not considered good leave alone watching them. However, she did have an
attraction towards films in her mind. She recalls, “A cameraman resided in our
neighbourhood and we used to call his wife Bhabhi Jaan. One day I went to see a
shooting with her. She introduced me to famous dance director of the era,
Master Badriprasad ji. On her recommendation, Master ji included me in his
group. I must have been 12-13 years old at that time.”
Initially Kammo ji worked in one or two films as a group
dancer. However, Master Badriprasad who was impressed with her hard work and
dedication gave her the opportunity as a solo dancer in the film ‘Sindbad the
Sailor’. This movie made under the banner of ‘Deepak Pictures’ was released in
1952. Its producer was Balwant Bhatt, Director Nanabhai Bhatt and the composer
was Chitragupt. Film’s main leads were Ranjan, Naseem Bano, Nirupa Roy and
Pran. The song picturized on Kammo ji was ‘Jis Roz Se Humne Tera Deedaar Kiya’.
Kammo ji says, “I never formally learnt to dance. I used to
dance while playing records and this is the way I learnt. After ‘Sindbad the
Sailor’ I started getting acting offers and I kept working. During my nearly
two decade long career I worked in nearly 60 films including ‘Raja
Harishchandra’, ‘Laila Majnu’, ‘Biraj Bahu’, ‘Devdas’, ‘Rajhath’, ‘Apradhi
Kaun’, ‘Howrah Bridge’, ‘Basant’, ‘Shama’, ‘Dil Tera Deewana’, ‘Daal Mein
Kaala’, ‘Pooja Ke Phool’, ‘Lutera’, ‘Bedaag’, ‘Shankar Khan’, ‘Love and
Murder’, ‘Heer Ranjha’ and ‘Bombay To Goa’.”
Kammo ji made a name for herself as an actress with Bimal
Roy’s movie ‘Biraj Bahu’. In this 1954 release, she had played the role of
Kamini Kaushal’s sister-in-law (sister of Abhi Bhattacharya). In ‘Devdas’
(1955) she was seen as Suchitra Sen’s friend and in ‘Phagun’ and ‘Rajhath’ as Madhubala’s
friend. Rajhath’s superhit song ‘Antar Mantar Jantar Maine Paa Liya Hai Naag’
was picturized on Madhubala and Kammo. In ‘Apradhi Kaun’ (1957), she not only
did comedy with actor Kumud Tripathi but its hit song ‘Hum Pyaar Ke Do
Matwaale’ was also picturized on the duo. In ‘Basant’ (1960) she was seen as
Johnny Walker’s partner while in Shama (1961) she was seen performing mujra to
‘Insaaf Tera Dekha Ae Saaqi-e-Maikhana’.
When I requested Kammo ji for a picture she declined saying
that her husband had expired just 15 days back and as per religious rules and
practices she would not get any photographs clicked till the period of Iddat
had not expired. On hearing this, I exclaimed, “Has Balam sahib passed away.”
She replied innocently, “Balam? Who, Balam? I don’t know any Balam.” I was
taken aback and changed track immediately. I asked her, which was your last
movie? She replied, ‘Bombay to Goa’.
Our conversation continued further. On my enquiring about
the reasons of her moving away from films, she said, “At the time I got married
I was shooting for the movies ‘Heer Ranjha’ and ‘Bombay to Goa’. My husband was
not linked to films in any way. He did not like my working in films as well. In
view of his sentiments, I completed my remaining film work and bid adieu to the
film world. ‘Heer Ranjha’ released in 1970 while ‘Bombay to Goa’ released in
1972. Thus ‘Bombay to Goa’ proved to be the last film of my career. I played
Mukri’s wife as south Indian couple onboard the bus.” On enquiring about her
family, she said that she had three daughters, two of whom are married and
settled in Mumbai while the third one who is an interior designer is still
unmarried. Kammo ji’s third daughter was present in the house during this
interview and I met her also. It was agreed with Kammo ji that I would return
after completion of the Iddat period to photograph her.
(During process of research and cross-checking of her
statements, I found out that her last released movie wasn’t ‘Bombay to Goa’ but
1977’s ‘Dhoop Chhaon’. In this film, as a guest appearance she played a
Mujrewali and also danced to the song ‘Nazren Chura Ke Baitho Daman Bacha Ke
Baitho’. The lead actors in the movie were Sanjeev Kumar, Hema Malini and
Yogita Bali and its music was composed by Shankar Jaikishan.)
Nearly 2-3 months later when I requested her for an
appointment on the phone, her approach had totally changed. She requested that
I do not publish the interview. When I asked her for the reasons behind the
request, she kept insistently requesting not to publish the interview. I had to
finally agree for the same. The reason for this request was probably Balam
only. Perhaps she felt that since I was aware of her relations with Balam, I
will mention it in the interview and probably she didn’t want her name to be
associated with Balam. Verification of this fact also happened in due course.
In fact soon after getting her appointment in 2014, I had
started collecting important information about her before the interview. In
this context, I talked to veteran actor Chandrashekhar ji who told me that
Kammo was the wife of actor Balam. However, Kammo ji’s statements had put me in
dilemma. On my enquiry, she had taken the name of her late husband with the
caution that due to him being a private and not a film related person, his name
should not be made public.
Some more years passed away. During these some other sources
also verified that Balam was her husband but now she was point blank refusing
to recognize him. In past March when I saw my favorite song ‘Main Jaan Gayi
Tujhe Saiyaan’ from ‘Howrah Bridge’ in a Facebook post I could not stop myself.
I immediately called Kammo ji and again requested permission to publish her
interview which was again declined. Without mentioning Balam, I tried to
explain to her that I am a member of the film industry, a permanent member of
‘CINTAA’ (Cine and TV Artist Association) and ‘Film Writers Association’ (FWA).
I write only what artists permit me on the blog. The blog has no space for
gossip and if I had been a dishonest person, I would not have waited for five
years to publish the interview. However, she refused to budge from her
position. The previous time she had spoken with a requesting demeanor but this
time she was dryly repeating the same word, No! No! Obviously, I found her
attitude disrespectful. And it was at that moment that I decided that if you do
not have respect towards people linked with the film industry and its
associations, you do not have faith in my honesty then what courtesy is due
from my side? I will publish the interview now even without your latest pictures.
However, now I was stuck with a new problem. The name of
Balam, who was behind all this struggle, I did not have much detail about him.
I only knew that many filmy qawwalis like ‘Barsaat Ki Raat’’s ‘Na To Karwan Ki
Talash Hai’ and ‘Azaad’’s ‘Marna Bhi Mohabbat Mein Kisi Kaam Na Aaya’ had been
picturized on Balam. However, for maintaining the interview/writeup’s
credibility it was necessary to find detailed information about him. Another
issue was that the senior artists like B M Vyas and Ram Mohan ji who could have
shared information on him were no longer alive. Due to age and health related
issues Chandra Shekhar ji’s memory and health are no longer like before. I had
some hopes from Jagdeep ji but then I found that his condition is also like Chandrashekhar
ji. I continuously kept calling Jawahar Kaul ji but there was no response. In
this situation, when I went to his house to meet him, I came to know that he is
admitted in the hospital and would return 3-4 days later. Then sadly within a
week I heard the news of his demise. On the other hand, I also failed to find Balam’s name in
the ‘CINTAA’ records probably because he had not taken its membership.
During this period, I had also heard an information that
Balam had gone to Pakistan. When I tried to take help of one of my respected
Pakistani readers, despite his concerted efforts, no information about Balam
could be found out. Then one day I talked to veteran actor Raza Murad ji who
gave me two important clues. One that Balam’s son’s name was Akbar Balam who
was a director and cinematographer who had passed away some time ago. Akbar
Balam had directed the 1981 release, ‘Khwaja Ki Diwani’. In addition, Akbar
Balam had been the cinematographer of Director Kalptaru (real name K Parvez)’s
movies of 1980-90 like ‘Paraya Ghar’, ‘Ghar Ho To Aisa’, ‘Naseebwala’, ‘Badi
Behen’, ‘Ghar Ki Izzat’ etc. Secondly, he said that actor Prem Sagar can give
maximum and most authentic information about him. I met the 95-year-old Prem
Sagar ji (real name Sayyad Ashfaq Bukhari) at his home and he shared a lot of
important information with me. Around the same time a famous actress of the
1950s also shared some information about the personal life of Kammo ji. The
summary of all the information I got from assorted sources is as follows: –
Actor Balam who basically belonged to Uttar Pradesh had
started his career in the 1940s as the office boy of famous producer-director M
Sadiq. Alongside he used to work as the production assistant for M Sadiq’s
films. He started acting in 1950. He was seen that year in an important role as
dancer Cukoo’s partner in the Dev Anand-Rehana starrer ‘Dilruba’. Film
‘Dilruba’’s super hit song ‘Chiraiyya Udi Jaaye Re’ was picturized on the duo
of Cukoo and Balam. During 1950s and 60s, Balam acted in nearly twenty films
including ‘Mehendi’, ‘Kalpana’, ‘Chaudhavin Ka Chand’, ‘Dharmputra’, ‘Opera
House’, ‘Taj Mahal’, ‘Palki’, ‘Boond Jo Ban Gayi Moti’ and ‘Bahu Begum’. For
the M Sadiq directorial ‘Bahu Begum’, he had not only done the negative
character of Mama but he was also the film’s Production Controller. This film
was released in 1967 and I could not find any ‘post – 1967’ information about
Balam.
As far as the relationship between Balam and Kammo ji is
concerned, I came to know that Kammo was Balam’s second wife and both have a
daughter together. Director-cinematographer Akbar was the son of Balam from his
first wife. After separation from Balam, Kammo ji got married to Bandra’s
furniture businessman and owner of ‘Inamdaar Furniture’ Bilal Rehman. Bilal was
already married and Kammo was his second wife. It was due to Bilal Rehman’s
death that Kammo ji was observing the Iddat period during the interview. Both
the younger daughters of Kammo ji are with Bilal Rehman.
Despite all these informations, three important questions
remain unanswered. First, what was Balam’s real or full name? Second, which
place/city in Uttar Pradesh did he belong to? Third, after 1967, how was his
life and till when was he alive? The answers to these questions could be given
by the family of the late Akbar Balam. However, Akbar Balam’s name and address
were not to be found in the records of Directors association and
Cinematographers association. Perhaps he was not a member of both these
associations. In such a situation, my only hope was left in late director
Kalptaru’s wife. I could not find her phone number, but I was able to find her
house address. I myself went to her Santacruz based house. Unfortunately, she
did not know anything about the address or family of Akbar Balam. She said that
her husband (Kalptaru) did not talk about films or his relations in the
industry at home. He used to keep his family and working life in films
separate.
Meanwhile, this interview is now in front of you. However,
my efforts continue and shall continue till I am able to find the answer to
these three questions related to Balam.
(Special Note: The above information is based on
conversations with acquaintances of Kammo and Balam whereas ‘Beete Hue Din’’s
interviews/write-ups are always based on the interviews of the related artists
and/or their family members. Unfortunately, the same could not happen with this
article in totality. Hence some of the information could not be independently
verified. We express regret that we had to make some compromises with ‘Beete
Hue Din’’s policies and humbly apologise for the same.)
(Owner of U.S. based ‘Professor Toofani Publishers’ and a Hindi cinema & music lover Professor Surjit Singh ji has recently sent us an old picture of Kammo that clearly mentions that she was Balam’s wife. We are thankful to Professor Surjit Singh ji for his support.)
Kammo died in Mumbai on 27 July 2021, aged 83.
Bahut hi badhiya jaankari. Dhanywaad
ReplyDeleteआपके जज्बे हिम्मत मेहनत और कड़ी लगन के लिए सौ सौ बार सलाम. हॉलीवुड में फिल्म इतिहासकारों को उचित सम्मान दिया जाता है यही कारण है कि जब हम विकिपीडिया में उनके बारे में सर्च करते हैं तो ढेरों जानकारियां मिलती हैं भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में बहुत ही शानदार फिल्म कलाकार और चरित्र अभिनेता गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं. बहुत सी फिल्मों में मैंने देखा है कि एक मजा हुआ कलाकार सिर्फ 2 मिनट के लिए पूरे 3 घंटे की फिल्म में आता है लेकिन वह आपके दिलो-दिमाग को झकझोर जाता है. एक बार फिर आपको नमन. ------ सूर्यकांत मंडल दत्त ओझा
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