“पास
बैठो तबीयत
बहल जाएगी”
- जगदीप
............शिशिर
कृष्ण शर्मा
साल
1975 में
आई फ़िल्म
‘शोले’
की ज़बर्दस्त
कामयाबी ने
फ़िल्म के
छोटे से
छोटे किरदार
और उन
किरदारों को
निभाने वाले
तमाम कलाकारों
को मशहूरी
की बुलंदियों
पर पहुंचा
दिया था।
इन्हीं कलाकारों
में शामिल
थे ‘सूरमा
भोपाली’
यानि अभिनेता
जगदीप जिन्होंने
बतौर एक
एक्स्ट्रा,
फ़िल्मों में
कदम रखा
था और
जो एक
सफल बालकलाकार
और फिर
हीरो के
तौर पर
कई फ़िल्में
करने के
बावजूद इन
25 सालों
में अपनी
कोई ख़ास
पहचान नहीं
बना पाए
थे। लेकिन
फ़िल्म ‘शोले’
की कामयाबी
ने उन्हें
रातोंरात स्टार
बना दिया
था।
जगदीप से मेरी पहली मुलाक़ात साल 1999 में प्रसारित हुए दूरदर्शन धारावाहिक ‘ट्रक धिना धिन’ के सेट पर हुई थी जिसका निर्माण (स्व.) प्रमोद महाजन के बेटे राहुल महाजन ने किया था। इस शो के निर्देशक फ़िल्म ‘स्वदेस’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त, विज्ञापन और फ़िल्मजगत के मशहूर सिनेमैटोग्राफर महेश आनेय थे। वरिष्ठ लेखक-निर्देशक प्रयागराज जी और ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के लेखक आर.डी.तैलंग के लिखे इस काऊण्टडाऊन शो ‘ट्रक धिना धिन’ के कार्यकारी निर्माता मशहूर पोस्टर संग्राहक एस.एम.एम.औसजा थे जो आज जानी-मानी नीलामी कम्पनी ‘ओसियान’ के उपाध्यक्ष
और ब्लॉग ‘बीते हुए दिन’ के अभिन्न अंग हैं। इस धारावाहिक में जगदीप और उनके बेटे जावेद जाफ़री मामा-भांजे की ट्रक ड्राईवर जोड़ी के रूप में नज़र आए थे और ये अपने दौर का सबसे ज़्यादा टी.आर.पी. वाला शो था। इस एपिसोडिक शो के विभिन्न एपिसोड्स में मुझे कई अहम किरदार निभाने को मिले थे।मुम्बई
आए मुझे
ज़्यादा समय
नहीं हुआ
था। दिलोदिमाग़
पर फ़िल्मों
और टी.वी.
का ग्लैमर
हावी था।
फ़िल्म ‘शोले’
के सूरमा
भोपाली को
साक्षात अपने
सामने खड़ा
देखा तो
छोटे शहर
से आए
किसी भी
शख़्स की
तरह मेरे
भी छक्के
छूट गए।
लेकिन उनके
दोस्ताना व्यवहार
ने जल्द
ही सहज
होने में
मेरी बहुत
मदद की
और उनके
साथ काम
करने का
अनुभव भी
बेहद सुखद
और अविस्मरणीय
रहा। ‘ट्रक
धिना धिन’
के बन्द
होने के
बाद भी
उनसे कभी-कभार
मुलाक़ात होती
रही। और
जब साप्ताहिक
‘सहारा
समय’
से मेरे
लेखन की
शुरूआत हुई
तो एक
रोज़ मैं
जगदीप जी
के बान्द्रा
(पश्चिम)
स्थित घर
पर एक
नए किरदार
में मौजूद
था। मेरे
कॉलम ‘क्या
भूलूं क्या
याद करूं’
में प्रकाशित
उनके इंटरव्यू
को पाठकों
ने बेहद
पसन्द किया
था।
29
मार्च 1939
को मध्यप्रदेश
के दतिया
में जन्मे
जगदीप के
पिता दतिया
रियासत के
जाने-माने
बैरिस्टर थे।
जगदीप का
असली नाम
सैयद इश्तियाक़
अहमद जाफ़री
है,
लेकिन घर
में प्यार
से उन्हें
मुन्ना कहकर
बुलाया जाता
था। जगदीप
महज़ 8
साल के
थे जब
उनके पिता
गुज़रे और
कुछ ही
दिनों बाद
देश का
बंटवारा भी
हो गया।
जगदीप कहते
हैं,
“बंटवारे की
वजह से
हमारा पूरा
परिवार तितर-बितर
हो गया
था। कुछ
लोग पाकिस्तान
चले गए
तो मां
मुझे साथ
लेकर दतिया
से मुम्बई
आ गयीं
जहां मेरा
बड़ा भाई
रहता था।
लेकिन भाई
ने हमें
पनाह देने
से साफ़
इंकार कर
दिया। मजबूरन
मां को
मुझे साथ
लेकर जे.जे.अस्पताल
के सामने
फ़ुटपाथ पर
डेरा डालना
पड़ा।“
मां
चाहती थीं
कि जगदीप
सिर्फ़ पढ़ाई
की तरफ़
ध्यान दें।
पेट पालने
के लिए
उन्होंने लोगों
के घरों
में पानी
भरा,
यतीमखाने में
खाना पकाया,
लेकिन जगदीप
मां का
हाथ बंटाना
चाहते थे।
वो कहते
हैं,
“मां की
हालत देखकर
मुझे बहुत
दुख होता
था और
इसीलिए मैं
उनका सहारा
बनना चाहता
था। मां
की इच्छा
के विरूद्ध
मैंने पढ़ाई
छोड़ दी।
पैसा कमाने
के लिए
मैंने टिन
के कारखाने
में मज़दूरी
की,
पतंगें बनाईं,
फ़ुटपाथ पर
कंघी और
साबुन बेचा।
तभी एक
रोज़ फ़िल्मों
का एक
एक्स्ट्रा सप्लायर
तीन रूपया
मेहनताने का
लालच देकर
फ़ुटपाथ के
हम सभी
बच्चों को
बी.आर.चोपड़ा
की फ़िल्म
‘अफ़साना’
की शूटिंग
पर लेकर
गया। हमें
फ़िल्म के
एक सीन
में नाटक
देख रही
भीड़ में
बैठा दिया
गया।“
उस
सीन में
मंच पर
बेबी तबस्सुम
और मास्टर
रतन कुमार
के अलावा
दरबान बना
एक बच्चा
मौजूद था
जो ठीक
से डायलॉग
नहीं बोल
पा रहा
था। यश
चोपड़ा उस
फ़िल्म में
असिस्टेंट डायरेक्टर
थे। उनके
कहने पर
वो डायलॉग
जगदीप ने
बोला जो
सबको बेहद
पसन्द आया।
लोगों में
‘मास्टर
मुन्ना’
की चर्चा
हुई और
उसी रोज़
उन्हें तीन–चार
और फ़िल्मों
में काम
मिल गया।
जगदीप बताते
हैं,
“मैं डायलॉग
बोलने के
लिए इसलिए
तैयार हुआ
क्योंकि मुझे
पता चला
था,
इसके तीन
की जगह
छह रूपए
मिलेंगे। फ़िल्म
‘अफ़साना’
साल 1951
में रिलीज़
हुई थी
जिसके बाद
मैंने ‘आराम’,
‘काले बादल’,
‘भोला शंकर’,
‘मुरलीवाला’
(सभी 1951),
‘आसमान’
(1952) और
‘आरपार’
(1954) जैसी
क़रीब बीस
फ़िल्मों में
बतौर बालकलाकार
छोटी-छोटी
भूमिकाएं कीं।“
फ़िल्म
‘आरपार’
का शीर्षक
गीत ‘कभी
आर कभी
पार लागा
तीरे नज़र’
मूल रूप
से जगदीप
पर फ़िल्माया
गया था।
लेकिन सेंसर
बोर्ड को
इस गीत
का एक
नाबालिग लड़के
पर फ़िल्माया
जाना अश्लील
महसूस हुआ
इसलिए इसे
फ़िल्म से
हटाने का
आदेश दे
दिया गया।
उधर फ़िल्म
रिलीज़ पर
थी इसलिए
इस गीत
को कुमकुम
पर रीशूट
किया गया,
हालांकि जगदीप
के भी
कुछ शॉट्स
इस गीत
में रखे
गए थे।
जगदीप
को पहला
बड़ा ब्रेक
‘रणजीत
मूवीटोन’
की फ़िल्म
‘धोबी
डॉक्टर’
(1954) में
मिला था
जिसमें उन्होंने
फ़िल्म के
हीरो किशोर
कुमार के बचपन
का रोल
किया था।
इस फ़िल्म
में उन्होंने
ख़ुद ही
अपना नाम
मास्टर मुन्ना
से बदलकर
जगदीप रख
लिया था।
जगदीप बताते
हैं,
“फ़िल्म ‘धोबी
डॉक्टर’
का वो
रोल छोटी-छोटी
बातों पर
रो पड़ने
वाले एक
बेहद ही
भावुक क़िस्म
के बच्चे
का था।
फ़िल्म के
रशेज़ देखकर
बिमल रॉय
ने मुझे
फ़िल्म ‘दो
बीघा ज़मीन’
में एक
हास्य भूमिका
दी। उन्होंने
कहा था,
‘जो कलाकार
लोगों को
अच्छा रूला
सकता है
वो अच्छा
हंसा भी
सकता है।‘
उनकी कही
बात सच
साबित हुई।
फ़िल्म ‘दो
बीघा ज़मीन’
में ‘लल्लू
उस्ताद’
का मेरा
चरित्र इतना
मशहूर हुआ
कि मेरे
प्रशंसक रूसी
बच्चों ने
ख़्वाजा अहमद
अब्बास के
हाथों ख़ासतौर
से मेरे
लिए एक
लाल स्कार्फ़
उपहार में
भेजा था।“
साल
1953 में
बनी ‘दो
बीघा ज़मीन’
वो पहली
हिंदी फ़िल्म
थी जिसका
प्रीमियर अंग्रेज़ी
फ़िल्मों के
लिए मशहूर
मुम्बई के
‘मैट्रो
सिनेमा हॉल’
में हुआ
था। जगदीप
बताते हैं,
“प्रीमियर वाले
दिन रेडियो
सीलोन के
लिए जो
युवक इस
फ़िल्म से
जुड़े कलाकारों
और तकनीशियनों
के इंटरव्यू
ले रहा
था उसने
मुझसे वादा
किया था
कि वो
जल्द ही
मेरा इंटरव्यू
भी लेगा।
लेकिन वो
दिन कभी
नहीं आया।
एक रोज़
रमेश सहगल
ने अपनी
नयी फ़िल्म
के हीरो
की भाषा
सुधरवाने के
लिए मुझे
बुलाया तो
मैंने देखा
सामने वोही
रेडियो सीलोन
वाला युवक
बैठा था।
फ़िल्म थी
साल 1955
में बनी
‘रेलवे
प्लेटफ़ार्म’
और वो
हीरो थे
सुनील दत्त।“
साल
1957 में
आयोजित ‘बाल
फ़िल्म समारोह’
के अंतिम
दौर के
लिए चुनी
गयीं 3
फ़िल्में थीं
‘मुन्ना’
(1954),
‘अब दिल्ली
दूर नहीं’
और ‘हम
पंछी एक
डाल के’
(दोनों 1957)।
जगदीप ने
इन तीनों
ही फ़िल्मों
में अहम
भूमिकाएं निभायी
थीं। इस
प्रतियोगिता में
‘सर्वश्रेष्ठ
बाल-फ़िल्म’
का पुरस्कार
‘हम
पंछी एक
डाल के’
ने जीता
था। तत्कालीन
प्रधानमंत्री पं.
जवाहरलाल नेहरू
जगदीप के
अभिनय से
इतने प्रभावित
थे कि
समारोह के
दौरान उन्होंने
ख़ुश होकर
अपने हाथ
का रूल
जगदीप को
भेंट किया
था। जगदीप
के अनुसार
उन्होंने आज
भी वो
रूल बेहद
एहतियात के
साथ सम्भालकर
रखा हुआ
है।
‘हम पंछी एक डाल के’ के बाद जगदीप को मद्रास की कम्पनी ‘ए.वी.एम.’ में स्थायी नौकरी पर रख लिया गया। कांट्रेक्ट के मुताबिक़ जगदीप अब ए.वी.एम. से बाहर की फ़िल्में नहीं कर सकते थे। साल 1957 में बनी इस बैनर की ‘भाभी’ में जगदीप पहली बार हीरो बने। अभिनेत्री नन्दा इस फ़िल्म में उनकी हिरोईन थीं। फ़िल्म ‘भाभी’ अपने दौर की बेहद कामयाब फिल्मों में से थी। ए.वी.एम. की ही फ़िल्म ‘बरखा’ (1959) में भी नन्दा और जगदीप की जोड़ी को बेहद पसंद किया गया। जगदीप के मुताबिक़ रंगीन फ़िल्मों का दौर शुरू हुआ तो उन्हें सुबोध मुकर्जी ने फ़िल्म ‘जंगली’ के हीरो के तौर पर लेना चाहा। लेकिन ‘ए.वी.एम.’ ने इजाज़त देने से साफ़ इंकार कर दिया। यही उन ‘बी.आर.’ की ‘धर्मपुत्र’ के वक़्त हुआ जिनकी फ़िल्म ‘अफ़साना’ से जगदीप ने अपना करियर शुरू किया था।
जगदीप
कहते हैं,
“बिमल रॉय
की फ़िल्म
‘प्रेमपत्र’
में भी
मेरे साथ
यही हुआ
तो ‘ए.वी.एम.’
की सहमति
के बावजूद
मैंने कुण्ठित
होकर ‘ए.वी.एम.’
के प्रिय
लेखक राजेन्द्र
कृष्ण के
निर्माता भाई
हरगोविन्द जी
की फ़िल्म
‘शादी’
में काम
करने से
साफ़ इंकार
कर दिया।
बाद में
यह रोल
मनोज कुमार
ने किया।
मेरे इंकार
से नाराज़
होकर ‘ए.वी.एम.’
ने मेरे
साथ हुआ
कांट्रेक्ट तोड़
दिया। उसके
बाद मैंने
‘बैंड
मास्टर’,
‘राजा’
(दोनों 1963),
‘पुनर्मिलन’
(1964),
‘नूरमहल’
(1965
/ चित्र में)
जैसी कुछेक
फ़िल्में बतौर
हीरो कीं
लेकिन इनमें
से कोई
भी फ़िल्म
चल नहीं
पायी।“
हीरो के तौर पर नाकाम रहने के बाद जगदीप ने कुछ समय के लिए ब्रेक ले लेना बेहतर समझा। साल 1968 में बनी फ़िल्म ‘ब्रह्मचारी’ में उन्हें एक बार फिर से हास्य भूमिका करने का मौक़ा मिला। उसके बाद वो ‘जीने की राह’, ‘खिलौना’, ‘जिगरी दोस्त’, ‘अपना देश’, ‘एजेंट विनोद’, ‘सुरक्षा’, ‘तराना’ से लेकर ‘सनम तेरी कसम’, ‘अंदाज़ अपना अपना’, ‘वो सात दिन’, ‘लज्जा’ और ‘अजब प्रेम की ग़ज़ब कहानी’ तक साढ़े तीन सौ से भी ज़्यादा फ़िल्मों में बतौर हास्य कलाकार नज़र आए। फ़िल्म ‘शोले’ की ज़बर्दस्त कामयाबी से उत्साहित होकर उन्होंने बतौर निर्माता-निर्देशक फ़िल्म ‘सूरमा भोपाली’ बनाई जो साल 1988 में प्रदर्शित हुई थी। साल 2012 में प्रदर्शित हुई ‘गली गली में चोर है’ जगदीप की अभी तक की आख़िरी प्रदर्शित फ़िल्म है।
जगदीप के दोनों बेटे जावेद और नवेद जाफ़री फ़िल्मों और टी.वी. कार्यक्रमों से जुड़े हुए हैं। जगदीप कहते हैं, “जीवन सुक़ून से गुज़र रहा है और चाहता हूं, ऐसे ही गुज़रता रहे।“
जैसा कि पता चला था, जगदीप जी पिछले क़रीब 2 सालों से बीमार चल रहे थे| फ़रवरी 2019 में ‘सिने एंड टी.वी.आर्टिस्ट्स एसोसिएशन-सिंटा’ के ‘एक्टफेस्ट’ समारोह में सम्मानित किये गए वरिष्ठ कलाकारों में उनका नाम भी शामिल था| लेकिन बीमारी के कारण वो उक्त समारोह में उपस्थित नहीं हो पाए थे| इसके कुछ महीनों बाद मैंने अभिनेत्री कम्मो के पति ‘बालम’ के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए उनसे संपर्क करना चाहा तो पता चला वो गंभीर रूप से बीमार हैं|
जगदीप
जी का
निधन दिनांक 8 जुलाई
2020 को
81 साल
की उम्र
में मुम्बई
में हुआ|
We
are thankful to –
Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Ms.
Aksher Apoorva, Mr. Gajendra Khanna & Ms. Maitri Manthan for the English
translation of the write ups.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video
editing.
Jagdeep on YT Channel BHD
“Paas Baitho Tabeeyat Behel Jayegi” - Jagdeep
............Shishir Krishna Sharma
The Grand success of 1975 release ‘Sholey’
made
famous not only the smallest characters of the film
but also
the actors portraying them. Among them was ‘Soorma Bhopli’
i.e. actor
Jagdeep
who
entered filmdom as an extra, eventually turned a successful
child
artist and despite playing hero
in a
couple of films, he failed to get a proper
recognition in all these 25 years. But ‘Sholey’s success made him a star overnight.
I first met with Jagdeep
on the
sets of Doordarshan serial ‘Truck Dhina Dhin’
which was
telecast in the year 1999. This show was produced by (Late)
Mr. Pramod
Mahajan’s son Rahul Mahajan and its director was the renowned cinematographer
of the Ad
& Film world Mahesh Aney, who later won
National Award for the film
‘Swades’. This show was written by the famous writer-director
Prayag
Raj and the ‘Kaun Banega Karorpati’
famed
R.D.Telang.
Executive producer of this countdown show
was the renowned
poster collector S.M.M.Ausaja who is now the vice president of the
well-known auction company ‘Osian’ and is also an
integral part of the blog
‘Beete Hue
Din’. Jagdeep and his son
Javed
Jaffery
played
uncle and nephew duo truck drivers in ‘Truck Dhina Dhin’
which was the top show with maximum
It wasn’t very long that I had shifted
base to Mumbai and was still very overwhelmed with the glamour of films and TV.
Like an ordinary person who comes from smaller cities and towns I was taken
aback to see ‘Sholey’s Soorma Bhopli
standing
right in front of me. But soon I regained my composure, all thanks to his
friendly behaviour, my experience working with him proved to be very pleasant
and unforgettable. Even after the show ‘Truck Dhina Dhin’
ended, I
kept on meeting with him occasionally. And when I started writing for the
weekly
‘Sahara Samay’, one day I met with Jagdeep
ji
in an
entirely new role at his home at Bandra (West). His interview, published in my column
‘kya
bhooloon kya yaad karoon’ was well appreciated by the readers.
Jagdeep
was born
in Datia - Madhya Pradesh
on 19
March
1939.
His father was a well-known barrister of
the Datia
State. Jagdeep’s
real name is Syed Ishtiaq
Ahmed
Jaffery
but he
was fondly called Munna. Jagdeep was hardly
8 when his
father died and a few days later the partition of the country took place. Jagdeep
says,
“After the
partition the whole family got scattered. Some of the members migrated to
Pakistan
whereas
my mother, taking me along, shifted from
Datia
to
Mumbai
where my
elder brother resided. But my brother flatly refused the shelter to us. Constrainedly,
we started living on footpath opposite J.J.Hospital.”
Jagdeep’s mother wanted him to focus on
his studies. To run the household she worked as a water-woman in neighbouring
homes and as a cook in the orphanage but Jagdeep
wanted to
be a support to her. He says, “I felt very bad for my mother and
wanted to anyhow support her. I left my studies against her wish, I worked as a
labour in a tin-factory, tried my hand in kite-making, sold combs and soaps on
footpath.
One day an extra supplier in the films, promising to pay Rs.3/-
each, took all of us footpath dweller children along to the shoot of B.R.Chopra’s
film ‘Afsana’. We were made sit in the crowd
watching a stage play in the scene of the film
being
pictured.“
Apart from Baby Tabassum
and
Master
Rattan
Kumar, another child artiste was also present on the stage playing the doorman in
the scene. Despite repeated attempts, he wasn’t able to deliver his dialogue
properly. Yash Chopra was an assistant director
in that
film. He asked Jagdeep to speak doorman’s dialogue which he did and was liked
and appreciated by everyone present on the sets. People were so impressed with
‘Master
Munna’
that he
got roles in 3-4 more movies the same day. Jagdeep
says,
“I readied
myself to speak the dialogue only because I was told that instead of 3/-, I
would be paid Rs.6/- for this. Film ‘Afsana’
released
in the year 1951 after which I did small roles in around
20 movies viz. ‘Araam’,
‘Kaale
Baadal’, ‘Bhola Shankar’, ‘Murliwala’
(all 1951),
‘Aasmaan’
(1952) and
‘Aar Paar’
(1954) as
a child artist.“
Film ‘Aar Paar’s title song
‘kabhi aar
kabhi paar laga teere nazar’ was originally pictured on
Jagdeep
only. But the censor board felt the picturisation on a minor boy to be obscene
and ordered to remove the song from the movie. Since the release date was
nearing, the song was reshot on Kumkum in urgency, though a couple of Jagdeep’s
shots were also retained in the song.
Jagdeep
got his
first big break in ‘Ranjit Movietone’s ‘Dhobi Doctor’
(1954) in
which he played the younger Kishore Kumar, who was the hero
of the
film. In this very film he changed his screen name from
‘Master
Munna’
to
‘Jagdeep’. Jagdeep
says,
“My
character in ‘Dhobi Doctor’ was that of a very emotional child who starts
crying even on very little issues. After watching the rushes of this
film, Bimal
Roy signed me for a comedy role for the
film
‘Do Beegha
Zameen’. He said, ‘The actor who can make people cry, can make them
laugh as well.’ And this turned out to be true. My character ‘Lallu Ustad’ in the film
‘Do Beegha
Zameen’ became so famous that my little fans in Russia especially
sent a red scarf as a gift to me through Khwaja
Ahmed
Abbas.”
Released in the year 1953, ‘Do Beegha Zameen’
was the
first Hindi film
to be premiered
at Mumbai’s ‘Metro cinema hall’ which was otherwise known for the
release of English movies only. Jagdeep
says,
“At the
premier, a young man who was interviewing the artistes and technicians
associated
with the movie for Radio Ceylon promised that he would interview me too
soon. But the day never came. One day when Ramesh Sehgal
called me
to teach the nuances of language to the hero
of his
next film, I found the same young man from the Radio Ceylon in front of me.
That movie was, 1955 release ‘Railway Platform’
and that hero
was Sunil
Dutt.“
In the ‘Children Film
Festival’
held in
1957,
3 movies viz. ‘Munna’
(1954), ‘Ab
Dilli Door Nahin’ and
‘Hum
Panchhi Ek Daal Ke’ (both
1957)
were selected for the final round of the competition. Jagdeep
had acted
in all 3 movies. The ‘Best Children Film’
award
in the
competition
went to ‘Hum Panchhi Ek Daal Ke’. That time Prime Minister
Pt.
Jawaharlal Nehru was so impressed with Jagdeep’s acting
talent that during the festival
he gifted
him with the rule which he was holding in his hand. According to Jagdeep, he
has still kept the rule with him very carefully.
After ‘Hum Panchhi Ek Daal Ke’s success
Jagdeep got a
permanent
job with Madras based renowned film company ‘A.V.M.’. As per the contract, Jagdeep
wasn’t
allowed to work in the movies produced by any outside banner now. The 1957
release
of the A.V.M. banner
‘Bhabhi’
was Jagdeep’s
debut movie as hero. Actress Nanda
was his
heroine in this film. ‘Bhabhi’
was one
of the most successful movies of its time. Nanda and
Jagdeep’s
pair was repeated in A.V.M.’s 1959 release ‘Barkha’
too and
they were again liked by the audiences. According to Jagdeep, with the advent
of colour cinema he was offered lead role of the film
‘Junglee’ by Subodh Mukerjee
but
‘A.V.M.’
didn’t
allow him sign the outside banner’s movie. The same happened when ‘B.R.’s offered him the lead role in ‘Dharmputra’, coincidentally B.R.’s ‘Afsana’
was Jagdeep’s
debut movie.
Jagdeep
says,
“When
A.V.M. again refused to allow me to sign Bimal Roy’s ‘Prem Patra’ I got so frustrated that despite ‘A.V.M.’s recommendation I rejected film
‘Shaadi’ which was produced by ‘A.V.M.’s favourite
writer Rajinder Krishna’s brother
Hargobind ji. Eventually this role was played by Manoj Kumar. My refusal to
sign ‘Shaadi’ made ‘A.V.M.’ so angry that they immediately cancelled
their contract with me. Afterwards I did a couple of
movies viz. ‘Band
Master’,
‘Raja’
(both
1963), ‘Punarmilan’
(1964), ‘Noor
Mahal’ (1965) as hero
but none
of these could make an impression of it on the box office.“
After his failure as hero Jagdeep
felt to
better take a little break from acting. Then he started afresh as a comedian with
1968 release film ‘Brahmachari’. After that he did comedy roles in
more than 350 movies from ‘Jeene Ki Raah’,
‘Khilona’,
‘Jigri
Dost’, ‘Apna Desh’, ‘Agent Vinod’,
‘Suraksha’,
‘Tarana’
to
‘Sanam
Teri Kasam’, ‘Andaz Apna Apna’,
‘Who Saat
Din’, ‘Lajja’ and
‘Ajab Prem
Ki Ghazab Kahani’. Elated by the success of his
character in ‘Sholey’, he also made a film
‘Soorma
Bhopli’ as producer-director
in the
year 1988. Film ‘Gali Gali Me Chor Hai’ (2012) is
Jagdeep’s
last release for the present.
Both of Jagdeep’s sons Javed
and
Naved
Jaffery
are
associated with the films and T.V. shows. Jagdeep
says,
“The life
is passing in peace and I want it pass the same way.“
As I came to know,
Jagdeep ji wasn’t keeping well for last 2 years. He was among those senior
artistes who were to be felicitated in ‘Cine & TV Artistes
Association-CINTAA’s ActFest held in February 2019. But due to his illness, he
could not manage to attend the ActFest. Meanwhile when I tried to contact him a
couple of months later to gather some information about actress Kammo’s actor
husband ‘Balam’, I came to know that Jagdeep ji was seriously ill.
Jagdeep ji died on 8 July 2020 in Mumbai, at the age of 81.
bahut nayee jaankaari mili.
ReplyDeleteDhanyawaad
Ek baar phir se padhaa. Bahut aham jaankaari hai isme.
ReplyDelete👌👌👌🤲🤲🤲🤲
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