Wednesday, June 17, 2015

"Cricket Se Cinema Tak"- Mac Mohan

क्रिकेट से सिनेमा तक”- मैकमोहन

             ............शिशिर कृष्ण शर्मा

हिंदी सिनेमा के इतिहास की सफलतम फ़िल्मों में से एक ‘शोले’ ने हिंदी फ़िल्मों को अमजद ख़ान जैसा स्टार खलनायक तो दिया ही, लम्बे समय तक दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाने की जद्दोज़हद से जूझ रहे अभिनेता मैकमोहन को भी मशहूरी की बुलन्दियों पर ला खड़ा किया था। फ़िल्म की कहानी के हर अहम मोड़ पर गब्बर का अपने ख़ास साथी को पुकारना  - ‘अरे ओ साम्भा’  आज भी दर्शकों को उतना ही रोमांचित करता है। डकैत साम्भा के इस चरित्र को निभाया था अभिनेता मोहन माखिजानी यानि मैकमोहन ने, जिनसे ‘सिने एण्ड टी.वी.आर्टिस्ट एसोसिएशन – सिंटा’ की आमसभाओं में मेरी औपचारिक मुलाक़ातें होती रहती थीं। लेकिन उन्हें क़रीब से जानने का मौक़ा ‘साप्ताहिक सहारा समय’ के कॉलम ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’ के लिए किए गए इंटरव्यू के दौरान मिला। ये इंटरव्यू चार बंगला-अंधेरी स्थित उनके घर पर हुआ था।

मैकमोहन के अनुसार फ़िल्मों में उनका आना महज़ एक इत्तेफ़ाक़ था। वो एक बेहतरीन क्रिकेटर थे और मुम्बई आए भी इसीलिए थे कि क्रिकेट को करियर बना सकें। मूल रूप से कराची के रहने वाले मैकमोहन के पिता ब्रिटिश फ़ौज में कर्नल थे। मैकमोहन का जन्म 24 अप्रैल 1938 को कराची में हुआ था। साल 1940 में उनके पिता परिवार को साथ लेकर ट्रांसफर पर लखनऊ आ गए। मैकमोहन की पढ़ाई-लिखाई लखनऊ और मसूरी में हुई थी। मैकमोहन का कहना था, “मैं स्कूल और यूनिवर्सिटी की क्रिकेट टीम का कैप्टन था। फिर उत्तरप्रदेश की टीम से खेलने लगा। अचानक मां बीमार हुईं तो पिताजी ने इलाज की बेहतर सुविधाओं को देखते हुए अपना ट्रांसफ़र मुम्बई करा लिया। क्रिकेट में बेहतर भविष्य की तलाश में मैं भी साल 1952 में मुम्बई चला आया। 

Shaukat Azmi

मैंने यहां कॉलेज में दाखिला लिया और साथ ही पूरे जोशोख़रोश से क्रिकेट खेलने लगा। उन्हीं दिनों एक दोस्त के कहने पर मैंने ‘हिंदी परिषद’ नाम की संस्था के एक नाटक में शौक़िया तौर पर काम किया। उस नाटक में शौक़त आज़मी मेरी मां की भूमिका में थीं। वो नाटक बेहद कामयाब रहा।कुछ दिनों बाद शौक़त आज़मी ने मुझे ‘इप्टा’ के नाटक ‘इलैक्शन का टिकट’ में काम करने के लिए बुलाया। चूंकि मेरा पूरा ध्यान क्रिकेट की तरफ़ था इसलिए पहले तो मैं नानुकुर करता रहा लेकिन फिर तमाम दबावों के आगे झुककर मुझे उस नाटक में काम करना ही पड़ा। उस नाटक को भी दर्शकों ने काफ़ी पसन्द किया।“

‘इप्टा’ के नाटक में मैकमोहन का काम देखकर ‘फ़िल्मालय एक्टिंग स्कूल’ के कोच पी.डी.शेनॉय ने उन्हें अपने स्कूल में दाख़िले का निमंत्रण दिया, जिसे मैकमोहन ने स्वीकार कर लिया। 3 साल के एक्टिंग कोर्स के बाद उन्हें जो पहली फ़िल्म मिली, वो थी चेतन आनंद की ‘हक़ीक़त’। मैकमोहन के अनुसार फ़िल्म ‘हक़ीक़त’ के क्रेडिट्स में ग़लती से उनका नाम मोहन माखिजानी की जगह बृजमोहन लिख दिया गया था। उधर उनके दोस्त उन्हें ‘माखिजानी’ का शॉर्टकट ‘मैकी’ कहकर बुलाते थे। इसी ‘मैकी’ का इस्तेमाल करते हुए फ़िल्मफ़ेयर के तत्कालीन सम्पादक एल.पी.राव ने फ़िल्म ‘हक़ीक़त’ की समीक्षा में उन्हें नया नाम दिया था, ‘मैकमोहन’। आगे चलकर यही नाम उनकी पहचान बना।

फ़िल्म ‘हक़ीक़त’ में मैकमोहन के काम को काफ़ी पसन्द किया गया। लेकिन लम्बे समय तक उन्हें कोई और फ़िल्म नहीं मिली। उधर क्रिकेट भी उनसे छूट चुका था। नतीजतन फ़िल्म ‘आख़िरी ख़त’ में वो चेतन आनन्द के साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम करने लगे। लेकिन अभिनय का उनका रियाज़ बदस्तूर जारी रहा। 

मैकमोहन कहते थे, “मैं रोज़ाना अपने घर की छत पर जाकर अलग अलग चरित्रों की प्रैक्टिस किया करता था, ज़ोर ज़ोर से डायलॉग बोलता था और चीखता-चिल्लाता था। मेरी इस चीख-चिल्लाहट से पड़ोस में रहने वाले निर्देशक रघुनाथ झालानी इतने तंग आ गए थे कि फ़िल्म ‘आया सावन झूम के’ में पागल की भूमिका में उन्हें मैं ही याद आया।“ 

मैकमोहन के अनुसार, फ़िल्म ‘आया सावन झूम के” की उस भूमिका के लिए दाढ़ी बढ़ाने की बात आई तो उनके फ़ौजी पिता ने इजाज़त देने से साफ़ इंकार कर दिया। बहुत मिन्नतों के बाद कहीं जाकर वो माने। इसके बाद मैकमोहन को फ़िल्म ‘अनहोनी’ मिली जिसमें वो खलनायक थे। इस फ़िल्म के निर्देशक मैकमोहन के सगे बहनोई और अभिनेत्री रवीना टण्डन के पिता रवि टण्डन थे। (मैकमोहन रवीना टण्डन के सगे मामा थे।) मैकमोहन के शब्दों में, “ये दोनों फ़िल्में कामयाब रहीं और मेरे अभिनय की गाड़ी चल पड़ी। उधर ‘आया सावन झूम के’ के दौरान चेहरे पर दाढ़ी जो चिपकी, वो हमेशा के लिए चिपकी ही रह गयी।” 

Ravi Tondon & Ravina Tondon


फ़िल्म ‘शोले’ में गब्बरसिंह की भूमिका पहले डैनी करने वाले थे। लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में चल रही, फ़ीरोज़ ख़ान की फ़िल्म ‘धर्मात्मा’ की शूटिंग में व्यस्त होने की वजह से वो फ़िल्म ‘शोले’ की शूटिंग के लिए समय पर भारत वापस नहीं पहुंच पाए। ऐसे में मजबूरन उनकी जगह बिल्कुल नए अभिनेता अमजद ख़ान को लेना पड़ा था। मैकमोहन गब्बरसिंह के ख़ास साथी साम्भा की भूमिका में थे। 

मैकमोहन बताते थे, “फ़िल्म बनकर तैयार हुई और मुझे पता चला कि मेरी भूमिका पर बेरहमी से कैंची चली है तो मुझे बहुत बुरा लगा। मैं न तो फ़िल्म के प्रीमियर पर गया और न ही पार्टी में। मैंने ख़ुद को इस फिल्म से अलग कर लिया। लेकिन अचानक ही सार्वजनिक जगहों पर मुझे देखकर लोगों की भीड़ जमा होने लगी तो लम्बे समय तक मैं इसकी वजह ही नहीं समझ पाया। एक रोज़ कोलाबा की आर्मी कैटीन के बाहर मुझे भीड़ से घिरा देख पिताजी भी कुछ समझ नहीं पाए तो उन्होंने भीड़ को भगाने के लिए अपनी लाईसेंसी रिवॉल्वर निकाल ली थी। रिलीज़ के क़रीब 6 महिनों बाद मैं पहली बार ये फ़िल्म देखने गया तो दर्शकों को सिनेमाहॉल में मेरी मौजूदगी का पता चल गया। उनके हंगामे से बचने के लिए मैनेजर के आग्रह पर मुझे क्लाईमेक्स देखे बिना ही शोरशराबे के बीच हॉल से निकल जाना पड़ा।“

मैकमोहन ने ‘शोले’ के अलावा ‘हंसते ज़ख़्म’, ‘ज़ंजीर’, ‘रफ़ूचक्कर’, ‘हेराफेरी’, ‘ख़ूनपसीना’, ‘शान’, ‘काला पत्थर’, ‘कर्ज़’, ‘डॉन’, ‘सवाल’, ‘सत्ते पे सत्ता’ जैसी क़रीब 200 फ़िल्मों में अभिनय किया। इनमें उनकी भांजी रवीना टण्डन द्वारा निर्मित फ़िल्म ‘स्टम्प्ड’ भी शामिल है। साल 2009 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘लक बाय चांस’ मैकमोहन की आख़िरी फ़िल्म थी।  छोटे परदे पर भी वो ‘संसार’, ‘औरत तेरी यही कहानी’, ‘बेताल’, ‘कृष्ण अर्जुन’, ‘खोज’, ‘कमाण्डर’ और ‘श्श्श्श...कोई है’ जैसे कई धारावाहिकों में नज़र आए। 

मैकमोहन के परिवार में डॉक्टर पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा हैं। इस इंटरव्यू के बाद भी ‘सिंटा’ की आमसभाओं में हमारी दो-तीन मुलाक़ातें हुईं। और फिर अचानक एक रोज़ पता चला कि मैकमोहन नहीं रहे। 10 मई 2010 को महज़ 72 साल की उम्र में मुम्बई में उनका निधन हो गया।


We are thankful to

Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters & pictures.

Ms. Aksher Apoorva for the English translation of the write up.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.


Mac Mohan On YT Channel BHD


Cricket  Se Cinema Tak-  Mac Mohan  

             ............Shishir Krishna Sharma

One of the most successful films from the annals of Hindi cinema is, undoubtedly, ‘Sholay’ which gave Hindi cinema a star villain in Amjad Khan and also brought the long struggling actor Mac Mohan, who had been striving to make a name for himself, untold fame and success. At every important twist in the film, Gabbar’s catchphrase to his main man - Arre O Sambha – electrifies audiences even today. Dacoit Sambha was portrayed by actor Mohan Makhijani a.k.a. Mac Mohan, who I had happened upon formally at a couple of general body meetings of Cine & T.V. Artistes AssociationCINTAA. But I got to know him personally during an interview for my Sahara Samay Weeklys’ columnKya Bhooloon Kya Yaad Karoon. This interview took place at his adobe in 4 Bungalows Andheri (West). 

According to Mac Mohan, his foray into films was a mere coincidence. He was a very good Cricketer and had come to Mumbai in the hopes of making a career in cricketing. Originally from Karachi, Mac Mohan’s father was a Colonel in the British Army. Mac Mohan was born on 24 April 1938 in Karachi.  In 1940 his father was transferred and he along with his family shifted to Lucknow. Mac Mohan’s education ensued in Lucknow and Mussoorie.

Mac Mohan says, “I was the captain of my school and university’s Cricket team. I then started playing in Uttar Pradesh’s team. Suddenly my mother fell ill and my father, keeping in mind the better medical facilities, took a transfer to Mumbai. Looking for a better future in cricket, I too came to Mumbai in 1952. I enrolled in a collage and started feverishly playing Cricket. On my friend’s insistence at the time, as a leisure activity, I acted in a stage play with an organization called Hindi Parishad. Shauqat Azmi was portraying my mother in the play. The play turned out to be very successful. After a few days, Shauqat Azmi called me to perform in IPTAs’ play Election Ka Ticket’.  Because at the time my focus was Cricket, I initially refused to work in the play but eventually I gave in to all the pressure and agreed to be a part of the stage play. That play was well received by the audiences as well.” 

On seeing Mac Mohan’s work in the IPTAstage play, P.D.Shenoy, a coach from the Filmalaya Acting School offered him admission in his school which Mac Mohan accepted. After the 3 year acting course, the first film he bagged was Chetan Anand’sHaqeeqat. According to Mac Mohan, during the credits of Haqeeqat, his name was mistakenly written as Brij Mohan instead of Mohan Makhijani. His friends would call him Macky, a shortcut version of Makhijani. Using Macky, the then editor of Filmfare, L.P.Rao, during his review of the film Haqeeqat bestowed Mohan Makhijani with a new name Mac Mohan’. As time went, this name became his identity.

Mac Mohan’s work in film ‘Haqeeqat was well received. In 1964 in ‘Filmalaya’s’ film ‘Aao Pyar Karein’ he was seen shaking a leg in the famous song ‘ye jhuki jhuki jhuki nigahein teri’. But then for a long time he didn’t do any more films. On the other hand, cricket had become the past for him. As a result, he started working as an assistant director with Chetan Anand in Akhiri Khat. But he kept polishing his acting skills religiously. Mac Mohan says, “I would go to my terrace and practice different characters every day, I would say dialogues out loudly and would scream and shout. My neighbor, director Raghunath Jhalani, had become so fed up of my screaming and shouting that when he had to cast for a mad man for Aaya Sawan Jhoom Ke, he thought of no one else but me.”

According to Mac Mohan when he had to grow a beard for his character in the film Aaya Sawan Jhoom Ke’, his Colonel Father flatly refused to give his consent for the same. After a lot of begging and pleading, his father finally gave in. After this, Mac Mohan bagged another film, Anhoni, where he played a villain. This film’s director was Mac Mohan’s brother in law (his sister’s husband) and actress Raveena Tondon’s father Ravi Tondon. (Mac Mohan was Raveena Tondon’s maternal uncle). In Mac Mohan’s words, “both these films were successful, and my acting career took off. Whereas, the beard that I grew for Aaya Sawan Jhoom Ke, stayed stuck to my face forever.”

In the film ‘Sholey’, the role of ‘Gabbar Singh’ was to be originally played by Danny. But he was busy shooting for Feroze Khan’s film Dharmatma in Afghanistan and couldn’t make it back to India in time for Film ‘Sholey’s’ shooting. In such circumstances, newbie actor Amjad Khan was forced to take his place. Mac Mohan played Gabbar Singh’s ‘side kick’.

Mac Mohan says, “The film was ready, and I realized that my role had been mercilessly cut down, I felt very bad. I didn’t go for the films premier neither did I go for the after party. I distanced myself from the film. But then suddenly I realized that a mob would gather whenever I would go to public places and for a long time, I just couldn’t understand why. One day my father saw me surrounded by a mob outside Colaba’s Army Canteen, he was confounded, and so to disperse the mob he actually had to wave his licensed revolver at the crowd. After 6 months of its release, when I finally went to see the film for the first time, the audience in the cinema hall became aware of my presence there. To save myself from the pandemonium of the audience, on the managers’ request, I had to exit the cinema hall without seeing the climax of the movie.”

Other than ‘Sholay’, Mac Mohan acted in 200 films likeHanste Zakhm’, ‘Zanjeer’, ‘Rafoo Chakkar’, ‘Hera Pheri’, ‘Khoon Paseena’, ‘Shaan’, ‘Kala Patthar’, ‘Karz’, ‘Don’, ‘Sawaal’, ‘Satte Pe Satta. Film ‘Stumped’ produced by his niece Raveena Tondon is also amongst them. Released in 2009, film ‘Luck By Chance’ was Mac Mohan’s last film. He was also seen on the small screen in serials like Sansaar’, ‘Aurat Teri Yehi Kahani’, ‘Betaal’, ‘Krishna Arjun’, ‘Khoj’, ‘Commanderand ‘Shhhh…Koi Hai’.

Mac Mohan’s family comprises of a doctor wife, two daughters and one son. After the interview, we met a few times again at CINTAAs’ General body meetings. Then one day, out of the blue, we got to know that Mac Mohan is no more. On 10 May 2010, in Mumbai, at the age of 72, he passed away.

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