“मौसम आया है रंगीन” – सुलोचना (कदम) चव्हाण
...........शिशिर कृष्ण शर्मा
1947 का साल भारत के ही नहीं बल्कि हिन्दी फिल्मोद्योग के लिए भी बेहद उथलपुथल भरा साबित हुआ| बंटवारे के बाद कई फ़िल्मी हस्तियां पाकिस्तान चली गयीं तो कई कलाकारों को पाकिस्तान छोड़कर भारत आना पड़ा| इस उथलपुथल ने नए कलाकारों के लिए भी उर्वर ज़मीन तैयार की और कलाकारों की इस नयी पीढी ने बहुत जल्द हिन्दी सिनेमा की शक्ल बदलकर रख दी| खासतौर से फ़िल्म संगीत पर तो बदलाव के इस असर को साफ़ देखा जा सकता है| रफ़ी, किशोर, तलत, लता, आशा, गीता आदि नयी पीढ़ी के गायक-गायिकाओं को भी सही मायनों में आज़ादी के बाद ही खुद को साबित करने के सही मौक़े मिले| इन्हीं गायक-गायिकाओं में शामिल थीं सुलोचना कदम जिन्होंने साल 1947
में बनी फ़िल्म ‘कृष्ण-सुदामा’ से पार्श्वगायन के क्षेत्र में कदम रखा था|
खुशकिस्मती से सुलोचना जी आज भी स्वस्थ और सकुशल, हमारे बीच हैं और दक्षिण मुम्बई के गिरगांव इलाके में रहती हैं। 30 दिसंबर 2014 की शाम अपने घर पर हुई मुलाक़ात के दौरान उन्होंने ‘बीते हुए दिन’ के साथ विस्तार से बातचीत की|
मूलत: रायगढ़ ज़िले के रहने वाले सुलोचना कदम के पिता दक्षिण मुम्बई के फ़ारस रोड इलाक़े के एक कारखाने में काम करते थे और मां गृहिणी थीं। दो भाई और दो बहनों में छोटी सुलोचना जी का जन्म 13 मार्च 1933 को गिरगांव-मुम्बई के फणसवाड़ी में हुआ था। सुलोचना जी कहती हैं, “मैंने मराठी माध्यम के स्कूल से चौथी तक पढ़ाई की। पढ़ने में ज़रा भी मन नहीं लगता था। तख़्ती लेकर स्कूल जाती थी और रोज़ मनाती थी कि स्कूल की बिल्डिंग गिर जाए। लेकिन गाने का मुझे बेहद शौक़ था। घर में ग्रामोफ़ोन था जिसपर रेकॉर्ड लगाकर, सुनसुनकर गाती थी। वो सभी मराठी रेकॉर्ड थे। संगीत की परम्परागत शिक्षा मैंने कभी नहीं ली, जो कुछ सीखा, सुनसुनकर सीखा”।
गणेशोत्सव के दौरान मराठीबहुल इलाकों में छोटे-छोटे बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे जिन्हें ‘मेला’ कहा जाता था। सुलोचना जी और उनकी बड़ी बहन शकुंतला के अलावा वत्सला देशमुख और विजया देशमुख नाम की दो बहनें भी इन कार्यक्रमों में अनिवार्य रूप से हिस्सा लेती थीं।
सुलोचना जी बताती हैं, “देशमुख बहनें पास ही के भुलेश्वर के इलाक़े में रहती थीं। उनके पिता मेरे बड़े भाई के परिचित थे। उन्होंने भाईसाहब से आग्रह किया कि उनकी बेटियों को कुछ भी नहीं आता, उन्हें सिखाएं। भाईसाहब के कहने पर वो दोनों ‘मेले’ की रिहर्सल्स में आने लगीं और जल्द ही ‘मेलों’ में हिस्सा लेने लगीं। बड़ी होकर वत्सला देशमुख मराठी फ़िल्मों की एक जानीमानी अभिनेत्री बनीं तो विजया देशमुख ने ‘दो आंखें बारह हाथ’, नवरंग’, ‘झनक झनक पायल बाजे’ और ‘सेहरा’ जैसी फ़िल्मों में संध्या के नाम से काम किया और फिर वी.शांताराम से शादी कर ली” (चित्र में) ।‘मेला’ के कार्यक्रम श्री दातार लिखते थे। उन्होंने फ़िल्म ‘बसंत’ में (बेबी) मधुबाला के गाए गीत ‘मेरे छोटे से मन में छोटी सी दुनिया रे’ का मराठी रूपांतरण किया था जिसके बोल थे, ‘किती वना तो फुललिया सुरेख कली का या’। ‘मेले’ में सुलोचना जी के गाए इस मराठी गीत को दर्शक बेहद पसन्द करते थे। सुलोचना जी बताती हैं, “एक रोज़ हमारे मेकअपमैन दांडेकर जी मुझे संगीतकार श्यामबाबू पाठक से मिलाने उनके माधवबाग स्थित निवास पर लेकर गए।
उन दिनों पाठक जी की फ़िल्म ‘कृष्णसुदामा’ फ़्लोर पर थी। पाठक जी ने मुझे कुछ पंक्तियां गाकर सुनाईं और उन्हें दोहराने को कहा, जो मैंने किया। मेरा गायन पाठक जी को बेहद पसन्द आया। और इस तरह ‘कृष्णसुदामा’ से मेरे पार्श्वगायन के करियर की शुरूआत हुई”।सुलोचना जी की आवाज़ में रेकॉर्ड होने वाला पहला गीत था ‘मैं तो सो रही थी, बंसी काहे को बजाई’। इसके अलावा फ़िल्म ‘कृष्णसुदामा’ में उन्होंने एक और गीत गाया, ‘है नशे में चूर, प्याली हाथ में’। ये दोनों सोलोगीत थे। फ़िल्म ‘कृष्णसुदामा’ साल 1947 में रिलीज़ हुई थी। इसके बाद श्यामबाबू पाठक ने सुलोचना जी से साल 1947 में ही बनी अपनी अगली फ़िल्म ‘किस्मतवाली’ में दो गीत गवाए। सुलोचना जी के मुताबिक़, इन गीतों से पहचान बनी तो कई अन्य संगीतकार भी उन्हें गाने के लिए बुलाने लगे।
1940 के दशक के उन आख़िरी 4
सालों में सुलोचना जी ने नंदराम ओंकार जी, रशीद अत्रे, ज्ञानदत्त, अजित मर्चेंट, सी.रामचन्द्र, मुश्ताक़ हुसैन और चेतूमल, प्रेमनाथ, पी.रमाकांत, एम.ए.रऊफ़, एस.के.पाल, रामनाथ वाधवा, अविनाश व्यास, के.नारायण राव जैसे संगीतकारों के निर्देशन में ‘जंगल में मंगल’, ‘पारो’, ‘चन्दा की चान्दनी’, ‘दुखियारी’, ‘लाल दुपट्टा’, ‘नाव’, ‘रिफ़्यूजी’, ‘बचके रहना’, ‘बॉम्बे’, ‘सुनहरे दिन’, ‘अलख निरंजन’, ‘बाबूजी’, ‘बसेरा’, ‘भीष्म प्रतिज्ञा’, ‘दुश्मनी’, ‘हंसते रहना’, ‘हर हर महादेव’ और ‘हंसके जियो’ जैसी फ़िल्मों में क़रीब 50 गीत गाए। निर्माता-निर्देशक और अभिनेता हरिश्चन्द्र राव कदम की फ़िल्म ‘रिफ़्यूजी’ में उन्होंने हरिश्चन्द्र राव की बहन का रोल भी किया था। ये फ़िल्म साल 1948
में बनी थी।
उसी दौरान सुलोचना को ऑल इंडिया रेडियो पर भी गाने के मौक़े मिलने लगे तो वो नियमित रूप से जालन्धर, इन्दौर, जयपुर और कश्मीर स्टेशनों पर भी गाने लगीं। उधर नाटकों में अभिनय का सिलसिला भी शुरू हो चुका था। सुलोचना जी बताती हैं, “ईद के दिनों में बॉम्बे थिएटर हॉल में नाटक ‘लैला मजनूं’ का मंचन होने जा रहा था। ‘मेला’ के मेकअपमैन दाण्डेकर के जरिए मुझे मजनूं (क़ैस) के बचपन के रोल के लिए बुलाया गया। लोगों को मेरा अभिनय बेहद पसन्द आया। फिर मैंने सगीर भाई के निर्देशन में ‘चांदबीबी’ में अंजुमन की भूमिका की। इन नाटकों ने मेरी उर्दू में ज़बर्दस्त सुधार किया। उधर गुजराती नाटक ‘चालीस करोड़’ में भी मैंने नायिका की भूमिका की”।
सुलोचना जी के गाए गीतों-ग़ज़लों की कई प्राईवेट अलबमें भी जारी हुईं। साथ ही वो स्टेज शोज़ में भी हिस्सा लेने लगीं। वो कहती हैं, “मैंने जयपुर में हुए एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया जिसमें हरेक गायक-गायिका को एक भजन, एक गीत और एक ग़ज़ल गानी थी। जैसे ही मैं गाकर मंच से नीचे उतरी तो देखा सामने अख़्तरी बाई (बेगम अख़्तर) खड़ी थीं। उन्होंने आगे बढ़कर मुझे गले लगा लिया। बेहद ताज्जुब के साथ उन्होंने मुझसे पूछा, ‘बेटी तुमने उर्दू किससे सीखी’? और जब मैंने उन्हें बताया कि मैंने जो कुछ भी सीखा सुनसुनकर सीखा तो वो और भी ताज्जुब में पड़ गयीं”।
साल 1951 में बनी फ़िल्म ‘ढोलक’ के गीतों की ज़बर्दस्त कामयाबी ने सुलोचना जी को एक नयी पहचान दी। श्यामसुन्दर के संगीत निर्देशन में उन्होंने फ़िल्म ‘ढोलक’ में दो सोलो और दो युगलगीत गाए थे। सतीश बत्रा के साथ उनका गाया युगलगीत ‘मौसम आया है रंगीन बजी है कहीं सुरीली बीन’ और सोलो ‘चोरी चोरी आग सी दिल में लगा के चल दिए’ उन ज़माने में बहुत पसन्द किए गए थे।
1950 के दशक में सुलोचना जी ने ‘ईश्वरभक्ति’, ‘एक्टर’, ‘काले बादल’, ‘दामाद’, ‘फ़ॉर लेडीज़ ओनली’ (तितली), ‘मुखड़ा’, ‘सागर’, ‘ज़माने की हवा’, ‘ममता’, ‘आग का दरिया’, ‘फ़रमाईश’ और ‘भाग्यवान’ जैसी फ़िल्मों में सोनिक, श्यामसुंदर, अज़ीज़ हिंदी, वसंत देसाई, चित्रगुप्त, अविनाश व्यास, प्रेमनाथ, विनोद, एस.एन.त्रिपाठी, एस.के.पाल, नीनू मजूमदार, गुलशन सूफी, माधवलाल मास्टर, हुस्नलाल भगतराम और जमाल सेन जैसे संगीतकारों के निर्देशन में क़रीब 75 गीत गाए।
सुलोचना जी बताती हैं, “साल 1952 में मैंने आचार्य अत्रे की मराठी फ़िल्म ‘हीच माझी लक्ष्मी’ में लावणी गाई थी, जिसके संगीतकार वसंत देसाई थे। निर्माता-निर्देशक, कैमरामैन और फ़िल्म सम्पादक श्यामराव चव्हाण उन दिनों तमाशा पर फिल्म ‘कलगी तुरा’ बना रहे थे। श्यामराव चव्हाण निर्माता-निर्देशक भालजी पेंढारकर के बेहद क़रीबी थे और उन्होंने भालजी पेंढारकर के साथ कई फ़िल्में की थीं। मेरी लावणी सुनकर श्यामराव चव्हाण ने मुझे ‘कलगी तुरा’ में गाने के लिए बुलाया, जिसके संगीतकार दत्ता कोरगांवकर थे। और फिर हालात ऐसे बने कि साल 1953
में इन्हीं श्यामराव चव्हाण के साथ मेरी शादी हो गयी। शादी के बाद मैंने अपना पूरा ध्यान घर-गृहस्थी में लगा दिया। क़रीब तीन साल तक मैं गायन से अलग रही”।
क़रीब तीन साल बाद सुलोचना जी ने एक बार फिर से पार्श्वगायन शुरू किया। और जल्द ही वो पूरे महाराष्ट्र में एक उत्कृष्ट लावणी गायिका के तौर पर पहचानी जाने लगीं। पार्श्वगायन के इस दूसरे दौर में सुलोचना जी ने वसंत पवांर, राम कदम, बाल पलसुले, विट्ठल शिंदे, श्रीनिवास खले, नंदू होनप और विलास जोगलेकर जैसे अग्रणी मराठी संगीतकारों के निर्देशन में कई फ़िल्मों में लावणी गाई। साल 1966-67
में उन्हें महाराष्ट्र सरकार की ओर से ‘लावणी साम्राज्ञी’ के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्होंने साल 2011
में महाराष्ट्र शासन का ‘लता मंगेशकर पुरस्कार’ और 2013
में भारत के राष्ट्रपति के हाथों ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ समेत कई अन्य पुरस्कार भी प्राप्त किए।
सुलोचना जी के मुताबिक़ साल 1968 में बनी मराठी फ़िल्म ‘अंगई’ उनकी आख़िरी फ़िल्म थी, जिसमें उन्होंने राम कदम के संगीत निर्देशन में लावणी गायी थी। फ़िल्मों से अलग होने के बाद सुलोचना जी लावणी के चैरिटी शोज़ में व्यस्त हो गयीं। उन्होंने पूरे महाराष्ट्र में चैरिटी शोज़ के ज़रिए उन्होंने स्कूलों, मंदिरों, अस्पतालों, अनाथ आश्रमों, श्मशान भूमि और ग़रीबों की मदद आदि के लिए पैसा जुटाया। यही वजह है कि महाराष्ट्र के कोने-कोने में आज भी उनका नाम बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है।
सुलोचना जी के पति का निधन 2007 में हुआ। उनके बड़े बेटे जय मराठी रंगमंच के जाने-माने परकशनिस्ट थे। जय का निधन 2008
में हुआ। उनके छोटे बेटे विजय चव्हाण मशहूर ढोलकी वादक हैं और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, बप्पी लाहिड़ी, वनराज भाटिया, अन्नू मलिक, आनंद मिलिंद, लुई बैंक्स जैसे संगीतकारों के साथ काम कर चुके हैं। ‘बड़ा दुख दीना’ (रामलखन), ‘एक दो तीन’ (तेजाब), ‘मैं तेरा तोता’ (पाप की दुनिया) जैसे हिट गीतों के अलावा वो रवीन्द्र जैन के साथ फ़िल्म ‘हिना’ के गीतों में भी ढोलकी बजा चुके हैं। साथ ही पिछले 20 सालों से मशहूर तबला वादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन के साथ दुनियाभर में होने वाले उनके स्टेज कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेते आ रहे हैं।
सुलोचना (कदम) चव्हाण जी बेटे विजय, बहू और पोते अजय के साथ फणसवाड़ी (गिरगांव) में रहती हैं और आने वाले मार्च के महिने में 82 वर्ष की होने जा रही हैं।
We
are thankful to –
Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters & pictures.
Ms.
Aksher Apoorva for the English
translation of the write ups.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video
editing.
Sulochana (Kadam) Chavan On YT Channel BHD
“Mausam Aaya Hai Rangeen”– Sulochna (Kadam) Chavhan
...........Shishir Krishna Sharma
The year 1947 proved to be one of immense
transformation not only for India but also for the film industry. After the
partition many film personalities left for Pakistan and many left Pakistan to
come to India. This Erraticism created a fertile land for new talent and this
surge of talent changed the face of cinema as we knew it then. And this change
could be particularly seen within the music aspect of movies. Not only Rafi,
Kishore, Talat, Lata, Asha, Geeta, but also the new generation of singers truly
got a chance to prove their mettle only after Independence. In 1947 itself, one of these singers was
Sulochna Kadam who forayed into the arena of playback with her film
‘Krishna-Sudama’
Fortunately, Sulochnaji is hale and
hearty and very much among us and resides in South Mumbai’s Girgaon area.
During an evening meet at her residence on 30th December 2014, she spoke at length with “Beete Hue
Din”.
Originally from Raigadh district,
Sulochna Kadam’s father worked at a factory in South Mumbai’s Faras Road and
her mother was a home maker. The
youngest of 2 brothers and 2 sisters, Sulochnaji was born in
Girgaon-Mumbai’s Fanaswadi on 13th March 1933.
Sulochnaji
says, “I studied till the fourth grade in a Marathi medium school. I was least
interested in studies. I used to go to the school with a slate in hand and I
would pray every day that the school building collapses. However, I was very
fond of singing. There was a Gramophone at home on which I would listen to
records repeatedly and would sing those songs along with it. All those were
Marathi records. I never received traditional training in music, whatever I
learned was by repeated listening.”
During the Ganesh Festival, cultural
programs would be held for small children in Marathi dominated areas which were
called “Mela”. Other than Sulochnaji and her elder sister Shakuntala, two other
sisters viz Vatsala Deshmukh and Vijaya Deshmukh would participate in these
programs without fail. Sulochnaji tells us, “The Deshmukh sisters lived nearby
in the Bhuleshwar area. Their father was acquainted with my elder brother. He
urged Bhaisahab to mentor his daughters. On bhaisahab’s mandate they started
coming to rehearsals of ‘Mela’ and shortly thereafter started participating in
it. After they grew up, Vatsala Deshmukh became a known actress in Marathi
films and Vijaya Deshmukh did films like ‘Do Ankhein Barah Haath’, ‘Navrang’,
‘Jhanak Jhanak Payal Baaje’ and ‘Sehra’ under the alias of Sandhya and then
went on to marry V.Shantaram.”
The programs of ‘Mela’used to be
written by Shri Datar. He had written
the Marathi version of the song ‘mere chhote se mann me chhoti si duniya re’
which was sung by (Baby) Madhubala in the film ‘Basant’ and its lyrics were
‘kiti vana to phulaliya surekh kali ka ya’.
The audiences used to love this Marathi song sung by Sulochnaji in
‘Mela’. Sulochnaji says, “one day our makeup man Dandekarji took me to meet
composer Shyambabu Pathak at his residence in Madhavbaug. At that time Pathakji’s film ‘Krishna-sudama’
was on floor. Pathakji sung a few lines for me and asked me to repeat them,
which I did. Pathakji liked my singing a lot. And thus, my playback career
started with the film ‘Krishna-Sudama’.”
The first song to be recorded in
Sulochnaji’s voice was ‘mai to so rahi thi bansi kaahe ko bajaai’. She also
sang another song in the film Krishna-Sudama’ which was ‘hai nashe me choor
pyali haath me’. Both of these were solo songs. The film ‘Krishna-Sudama’
released in the year 1947. After this, Shyambabu Pathak made
Sulochnaji sing two more songs in his film ‘Kismetwaali’ which was also made in
1947.
According
to Sulochnaji as she received recognition through these songs, many other
composers started approaching her for singing.
In the last 4 years of the 1940 decade, Sulochnaji sang almost 50 songs under the direction of composers
like Nandram Omkar ji, Rashid Atre, Gyandutt, Ajit Merchant, C.Ramchandra,
Mushtaq Hussain & Chaitumal, Premnath, P.Ramakant, M.A.Rauf, S.K.Pal,
Ramnath Wadhwa, Avinash Vyas, K. Narayan Rao for many films viz ‘Jungle Me Mangal’,
‘Paro’, ‘Chanda Ki Chandni’, ‘Dukhiyari’, ‘Laal Dupatta’, ‘Nao’, ‘Refugee’,
‘Bachke Rehna’, ‘Bombay’, ‘Sunehre Din’, ‘Alakh Niranjan’, ‘Babuji’, ‘Basera’,
‘Bheeshm Pratiggya’, ‘Dushmani’, ‘Hanste Rehna’, ‘Har Har Mahadev’ and ‘Hanske
Jiyo’. She also portrayed the role of Harishchandra Rao’s sister in
Producer-Director & actor Harishchandra Rao Kadam’s film ‘Refugee’. This
film was made in the year 1948.
Simultaneously Sulochnaji also got
opportunities to sing for All India Radio and so she regularly started singing
for Jalandhar, Indore, Jaipur and Kashmir stations. On the other hand, she had
also started acting in plays. Sulochnaji tells us, “around the time of Eid, the
play ‘Laila Majnu’ was to be performed at Bombay Theater Hall. Through
Dandekarji, makeup man of ‘Mela’; I was called to depict the childhood of Majnu
(Qais). People liked my performance a lot. Then, I played Anjuman in ‘Chand
Bibi’ under the direction of Sageer Bhai. These plays were instrumental in
greatly improving my Urdu. I also played the lead role in the Gujarati play ‘40 Karod’.”
Many private albums of Sulochnaji’s
Geet-Ghazals were also released. She also started performing in stage shows.
She says, “I took part in a program held in Jaipur where each singer had to
sing 1
bhajan, 1 song and 1 ghazal. As soon as I got down from the stage, I saw
that Akhtari Bai (Beghum Akhtar) was standing right in front of me. She reached
out to me in an embrace. With wonder she asked me, ‘beti, where did you learn
Urdu from?’, and when I disclosed that whatever I had leant was only by
listening, she was completely taken aback.”
The tremendous musical success of film
‘Dholak’, made in the year 1951, gave Sulochnaji a new level of
recognition. She has sung 2 solos and 2 duets for the film ‘Dholak’ under the
music direction of Shyam Sundar. Her
duet sung along with Satish Batra, ‘mausam aaya hai rangeen, baji hai kahin
sureeli been’ and her solo, ‘chori chori aag si dil me laga ke chal diye’ were
much liked at that time.
During the 1950 decade, Sulochnaji sang almost 75 songs for films like ‘Ishwar Bhakti’,
‘Actor’, ‘Kaale Baadal’, ‘Damaad’, ‘For Ladies Only’ (Titli), ‘Mukhda’,
‘Saagar’, ‘Zamaane Ki Hawa’, ‘Mamta’, ‘Aaag Ka Dariya’, ‘Farmaish’ and
‘Bhagyawaan’ and songs for these films were sung under the direction of
composers like Sonik, Shyam Sundar, Aziz Hindi, Vasant Desai, Chitragupt,
Avinash Vyas, Premnath, Vinod, A.N.Tripathi, S.K.Pal, Ninu Majumdar, Gulshan
Sufi, Madhavlal Master, Husnlal Bhagatram and Jamal Sen.
Sulochnaji tells us, “In 1952 I sang a Lavni (Marathi folk) for
composer Vasant Desai for Acharya Atre’s Marathi film ‘Heech Majhi Laxmi’.
Producer-Director, Cameraman and Film Editor Shyamrao Chavhan was making a film
on Tamasha titled ‘Kalgi Tura’. Shyamrao Chavhan was very close to
Producer-Director Bhalji Pendharkar and had done many films with him. In fact
Shyamrao Chavhan was the one to cast Raj Kapoor for Bhalji Pendharkar’s film
‘Valmiki’ (1946). After hearing my Lavni, Shyamrao
Chavhan called me to sing for ‘Kalgi Tura’ whose composer was Datta Korgaonkar.
And then, in 1953 I married Shyamrao Chavhan. After
marriage I focused entirely on my household and was cut off from singing for
almost 3 years.”
After these 3 years passed, Sulochnaji started
playback once again. And very soon she became recognized as the topmost Lavni
singer in the entire Maharashtra. In this second phase of her playback career,
Sulochnaji sang Lavni for films under the direction of some of the best-known
Marathi composers like Vasant Panwar, Ram Kadam, Bal Palsule, Vitthal Shinde,
Shriniwas Khale, Nandu Honap and Vilas Joglekar. She was bestowed with the
‘Lavni Samragyi’ award by Maharashtra Government in 1966-67.
Other
awards which she received include Maharashtra government’s ‘Lata Mangeshkar Award
– 2011’ and ‘Sangeet Natak Academy Award’ by the President of India’ in the
year 2013.
According to Sulochnaji, the Marathi
film ‘Angai’ made in 1968 was her last film wherein she sang a Lavni under the
music direction of Ram Kadam. After moving away from films, Sulochna
ji busied herself with charity shows of Lavni. Through charity shows conducted
all over Maharashtra she collected money to help create various schools,
temples, hospitals, orphanages, cremation grounds and to help the downtrodden. Therefore,
her name is taken with the utmost respect through every corner of Maharashtra
even today.
Sulochnaji’s husband passed away in 2007.
Her elder
son, Jay, was a well-known percussionist of the Marathi stage. Jay passed away
in 2008. Her younger son, Vijay Chavhan, is a famous dholki player
and has worked with composers like Laxmikant-Pyarelal, Bappi Lahiri, Vanraj
Bhatia, Anu Malik, Anand Milind and Louis Banks. Along with hit songs like
‘Bada dukh deena’ (Ramlakhan), ‘ek do teen’ (Tejaab), ‘mai tera tota’ (Paap Ki
Duniya) he has also played Dholki with Ravindra Jain for songs of film ‘Henna’.
For the last 20 years he has also been accompanying
the famous tabla player Ustad Zakir Hussain all over the world for his
concerts.
Sulochna (Kadam) Chavhan ji stays at
Girgaon-Fanaswadi with her son Vijay, his wife and their son Ajay and will soon
be touching the golden age of 82 years this March.
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