“कहां ले चले हो बता दो मुसाफ़िर” - बीना राय
-----शिशिर कृष्ण शर्मा
पचास का दशक गवाह है श्यामा, नन्दा, वैजयन्तीमाला, नूतन, आशा पारेख, माला सिन्हा, मीना कुमारी, वहीदा रहमान और अमिता जैसी प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों के उदय का, जिन्होंने इस दशक में बतौर नायिका करियर की शुरुआत की और अपनी प्रतिभा और सौन्दर्य के बल पर आगे चलकर लाखों दर्शकों को अपना दीवाना बनाया। इन्हीं अभिनेत्रियों में शामिल थीं, निर्माता-निर्देशक किशोर साहू की फिल्म ‘काली घटा’ (1951) से फिल्मोद्योग में कदम रखने वाली खूबसूरत बीना राय। 18 बरस के अपने करियर में बीना राय ने सिर्फ़ अट्ठाईस फिल्मों में काम किया और फिर वक़्त के बदलते रुख को भांपकर शालीनता के साथ फिल्मोद्योग से किनारा कर लिया। और फिर चार दशकों से भी ज़्यादा समय तक उन्होंने मीडिया और अपने प्रशंसकों की नजरों से खुद को छिपाये रखा।
साप्ताहिक ‘सहारा समय’ के अपने कॉलम ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’ के लिए मैं बीना राय जी का इंटरव्यू करना चाहता था। उधर अभिनेता चन्द्रशेखर जी और बीना जी की ही बिल्डिंग में रहने वाली अभिनेत्री ज़ाहिदा समेत हिंदी सिनेमा से जुड़े कई वरिष्ठ लोगों से हुई बातचीत में मुझे पता चल चुका था कि बीना जी अब बाहरी लोगों और ख़ासतौर से मीडिया से मिलना पसंद नहीं करतीं। इसके बावजूद मैंने कोशिशें जारी रखीं। बीना जी से मेरी दो बार फ़ोन पर बात भी हुई। वो दोनों बार फ़ोन पर आईं, उन्होंने बेहद सम्मान के साथ बात की, लेकिन दोनों ही बार इंटरव्यू के लिए विनम्रता से इंकार कर दिया। ऐसे में मेरा मायूस होना स्वाभाविक ही था। लेकिन कुछ ही महिनों बाद अचानक हालात बदल गए।
सितम्बर 2005 में सहारा वन चैनल पर बीना राय के बेटे प्रेमकिशन की कम्पनी सिनेविस्टाज़ के धारावाहिक ‘कोहिनूर’ का प्रसारण शुरू हुआ था। प्रेमकिशन जी को हम राजश्री प्रोडक्शंस की हिट फ़िल्म ‘दुल्हन वोही जो पिया मन भाए’ के हीरो के रूप में जानते हैं। ‘कोहिनूर’ में मैं म्यूज़ियम क्यूरेटर रंजन श्रीवास्तव नाम का एक बेहद अहम किरदार कर रहा था। इस सिलसिले में प्रेमकिशन जी (चित्र में) से मेरा परिचय हुआ और फिर सिनेविस्टाज़ के कांजुरमार्ग स्थित स्टूडियो में ‘कोहिनूर’ की शूटिंग के दौरान अक्सर हमारी मुलाक़ातें भी होने लगीं। आगे चलकर सिनेविस्टाज़ के साथ एक बार फिर से मेरा रिश्ता जुड़ा जब 2008-2009 में मुझे कलर्स चैनल पर प्रसारित सिनेविस्टाज़ के धारावाहिक ‘जाने क्या बात हुई’ के डायलॉग लिखने का मौक़ा मिला।
Kohinoor Promo
‘कोहिनूर’ की शूटिंग के दौरान मैंने एक रोज़ प्रेमकिशन जी के सामने बीना जी के इंटरव्यू को लेकर अपनी इच्छा ज़ाहिर की तो वो तुरंत ही मेरी मदद के लिए तैयार हो गए। इंटरव्यू में पूछे जाने वाले तमाम सवालों के जवाब और जानकारियां उन्होंने ख़ुद ही मुझे दे दीं। साथ ही बीना जी की सभी फ़िल्मों के नाम और तस्वीरें भी उपलब्ध कराते हुए मेरे काम को और भी आसान कर दिया। अब इंतज़ार था तो बीना जी से मुलाक़ात का, ताकि आलेख पर प्रामाणिकता की मुहर लग सके। लेकिन वो मौक़ा अचानक ही, बिना किसी कोशिश के ख़ुद-ब-ख़ुद आ गया।
20 नवम्बर 2005 को सिने एण्ड टी.वी.आर्टिस्ट्स एसोसिएशन सिंटा) की 47वीं सालाना आमसभा में बीना राय जी को मंच पर मौजूद देखकर सुखद आश्चर्य हुआ। कई दशकों बाद वो पहली बार सार्वजनिक तौर पर लोगों के बीच आयी थीं। साथ में उनके छोटे बेटे मोंटी भी थे। मौक़ा पाते ही मैं बीना जी से मिला और उन्हें अपना परिचय दिया। वो मुझे धारावाहिक ‘कोहिनूर’ में देख चुकी थीं इसलिए उन्होंने मुझे तुरंत पहचान लिया। आमसभा में शामिल तमाम सिंटा-सदस्य उनसे मिलने को बेताब थे। भीड़भाड़ के बीच महज़ पांच-सात मिनट की औपचारिक बातचीत ही उनपर तैयार किए गए मेरे आलेख पर प्रामाणिकता की मुहर लगाने के लिए काफ़ी थी। ये आलेख 12 जनवरी 2006 के दैनिक जागरण में छपा था।
13 जुलाई 1932 को लखनऊ में जन्मीं बीना राय के पिता रेलवे में अधिकारी थे। उनके घर में सभी को फ़िल्में देखने का शौक था। बीना जी की पसन्दीदा हिरोईन ख़ुर्शीद थीं। साल 1950 में उस ज़माने के मशहूर निर्माता-निर्देशक और अभिनेता किशोर साहू फिल्म ‘काली घटा’ के लिये नयी अभिनेत्रियों की तलाश में थे। इस सिलसिले में उन्होंने सभी बड़े अख़बारों में विज्ञापन छपवा कर नयी प्रतिभाओं को आमन्त्रित किया था। बीना जी उस वक़्त 12वीं में पढ़ रही थीं। प्रेमकिशन जी के मुताबिक़ बीना जी अपने भाई के साथ मुम्बई आकर किशोर साहू से मिलीं, ऑडिशन हुआ और उन्हें फिल्म ‘काली घटा’ की मुख्य भूमिका के लिये चुन लिया गया। ये फ़िल्म साल 1951 में प्रदर्शित हुई थी। किशोर साहू ने ही उन्हें उनके असली नाम कृष्णा सरीन के स्थान पर फ़िल्मी नाम ‘बीना राय’ दिया था।
फिल्म ‘काली घटा’ की दो अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाओं के लिये जो दो और अभिनेत्रियां चुनी गयीं, वो थीं आशा माथुर और इन्दिरा पांचाल। आशा माथुर ने आगे चलकर निर्माता-निर्देशक मोहन सहगल से विवाह किया तो इन्दिरा पांचाल प्रख्यात उद्योगपति महिन्द्रा परिवार की बहू बनीं। फिल्म ‘काली घटा’ के बाद फिल्मिस्तान स्टूडियो की फिल्म ‘अनारकली’ (1953) ने कामयाबी के नये रेकॉर्ड बनाये। इस फ़िल्म में बीना राय के हीरो प्रदीपकुमार थे। निर्माता भगवानदास वर्मा की फिल्म ‘औरत’ (1953) प्रेमनाथ के साथ बीना राय की पहली फिल्म थी। आगे चलकर इस जोड़ी ने कई और फ़िल्मों में काम किया। फिल्म ‘औरत’ की शूटिंग के दौरान दोनों में प्यार हुआ और फिल्म के प्रदर्शित होने से पहले ही साल 1952 में दोनों ने शादी भी कर ली।
‘सिंटा’ की आमसभा में हुई मुलाक़ात के दौरान बीना जी की बातों में बरसों तक खुद में सिमटे रहने से जन्मी झिझक को साफ़तौर पर महसूस किया जा सकता था। उन्होंने कहा था, “मैं एक परम्परागत भारतीय परिवार से आयी थी। माता-पिता के दिये संस्कार मेरे अंदर गहरायी तक जड़ें जमाये हुए थे। यही वजह थी कि एक सफल अभिनेत्री के रुप में स्थापित हो जाने के बावजूद मैंने फिल्मी चकाचौंध और ग्लैमर को खुद पर हावी नहीं होने दिया। विवादों से भी मैं हमेशा दूर रही। गृहस्थ जीवन की अहमियत को अच्छी तरह समझती थी इसीलिये प्रेमनाथजी के, शादी के प्रस्ताव को स्वीकारने में ज़रा भी देर नहीं की”।
बीना राय ने शादी के बाद भी फिल्मों में काम करना भी जारी रखा। शादीशुदा अभिनेत्री के करियर को लेकर उस ज़माने में भी तमाम तरह की आशंकायें जतायी जाती थीं। लेकिन बीना राय के मामले में सभी आशंकायें झूठी साबित हुईं क्योंकि सही मायनों में उनके करियर ने गति शादी के बाद ही पकड़ी। ‘गौहर’, ‘शोले’, ‘मीनार’, ‘इन्सानियत’, ‘मदभरे नैन’, ‘मैरीन ड्राईव’, ‘सरदार’, ‘चन्द्रकांता’, ‘हमारा वतन’, ‘दुर्गेशनन्दिनी’, ‘बंदी’, ‘हिल स्टेशन’, ‘मेरा सलाम’, ‘तलाश’, ‘घूंघट’, ‘वल्लाह क्या बात है’, ‘ताजमहल’ और ‘दादी मां’ जैसी कुल अट्ठाईस फिल्मों में उन्होंने अशोक कुमार, दिलीप कुमार, देव आनन्द, भारतभूषण, किशोर कुमार, प्रदीप कुमार और शम्मी कपूर जैसे अपने समय के सभी जाने माने नायकों के साथ अभिनय किया। फिल्म ‘घूंघट’ (1960) के लिये उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार हासिल किया था।
शादी के बाद बीना राय ने पति के साथ मिलकर ‘पी.एन.फ़िल्म्स’ के बैनर में ‘शगूफा’ (1953), ‘गोलकुण्डा का क़ैदी’ (1954) और ‘समुन्दर’ (1957) जैसी फिल्मों का निर्माण किया। साथ ही पति-पत्नी की इस जोड़ी ने इन फिल्मों में अभिनय भी किया। घर-गृहस्थी सम्भालने के साथ साथ बीना जी के अभिनय करते रहने के पीछे की एक बड़ी वजह शायद आर्थिक मजबूरियां भी थीं। इसीलिये फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ (1966) से प्रेमनाथ का लड़खड़ाता करियर सम्हला तो पति के स्टार बनते ही उन्होंने अभिनय को अलविदा कह दिया।
साल 1968 में बनी ‘अपना घर अपनी कहानी’ बीना राय की अन्तिम प्रदर्शित फिल्म थी जिसके बाद फिल्मोद्योग से नाता तोडकर वो पूरी तरह घर-गृहस्थी में रम गयीं। शुरू में इस फ़िल्म का नाम ‘प्यास’ रखा गया था। इस फिल्म का संगीत भी ‘प्यास’ के नाम से ही रिलीज़ किया गया था। लेकिन प्रदर्शन के समय इसे ‘प्यास’ से बदलकर ‘अपना घर अपनी कहानी’ कर दिया गया था।
सिंटा की आमसभा के दौरान हुई संक्षिप्त बातचीत में उन्होंने कहा था, “मैं हमेशा खुद को समय के अनुसार ढालती आयी। कभी ज्यादा महत्वाकांक्षाएं नहीं पालीं और जो कुछ मिला उसे स्वीकार करती चली गयी। आज बेटों-बहुओं, पोते-पोतियों के साथ सुखशांति के साथ जीवन बिता रही हूं और अब तो परदादी भी बन चुकी हूं। मीडिया और अपने चाहने वालों की नज़रों से आज तक खुद को सिर्फ़ इसलिये बचाती आयी क्योंकि बीते वक़्त को याद करने और दोहराते रहने का कोई अर्थ नहीं है। जो सुकून एक आम इंसान बनकर रहने में है वो कहीं और मिल ही नहीं सकता।”
We are thankful to –
Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Ms.
Aksher Apoorva, Mr. Gajendra Khanna & Ms. Maitri Manthan for the English
translation of the write ups.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video
editing.
Beena Rai on YT Channel BHD
Bee
“Kahan Le Chale Ho Bata Do Musafir” - Beena Rai
-----Shishir Krishna Sharma
The 50’s decade is witness to the rise of talented actresses like Shyama, Nanda, Vyjayantimala, Nutan, Asha Parekh, Mala Sinha, Meena Kumari, Waheeda Rehman and Ameeta who started their career as heroine in this decade and went on to mesmerize scores of fans with their talent and beauty. One of these actresses to foray into filmdom was the beautiful Beena Rai who was launched with producer-director Kishore Sahu’s film ‘Kaali Ghata’ (1951). A career spanning 18 years, Beena Rai worked in merely 28 films and then sensing the turning tides of time she gracefully sidelined herself from the glamour of the film industry. And then for more than 4 decades she kept herself hidden from the media and her fans.
I wanted to interview Beena Rai for my column ‘Kya Bhooloon Kya Yaad karoon’ for the Weekly ‘Sahara Samay’. In the meantime I had gotten to know through actor Chandarshekharji and actress Zahida, who lives in the same building as Beenaji and through many other prominent personalities of Hindi cinema that Beenaji doesn’t like to meet outsiders specially anyone from the media. But I didn’t give up. I even spoke to her twice over the phone. She came on the phone both times and spoke to me very courteously; however, both the times she politely declined my interview request. It was natural for me to be disappointed. And then after a few months things suddenly changed.
Around September 2005, Beena Rai’s son Premkishan’s company Cinevistaa started telecasting its T.V. serial ‘Kohinoor’ on Sahara One channel. We know Premkishanji as the hero of Rajshri Production’s hit film ‘Dulhan Wohi Jo Piya Man Bhaaye’. In the serial ‘Kohinoor’ I had played a very important role as the museum curator Ranjan Shrivastava. Premkishanji and I went on to become acquaintances and thereon we would meet often at Cinevistaa’s Kanjurmarg studio during the shoot of ‘Kohinoor’. Thereafter in 2008 – 2009 I associated with Cinevistaa once again when I got the opportunity to write the dialogues for their T.V. serial ‘Jaane Kya Baat Hui’ which was telecasted on Colors Channel.
One day during the shoot of ‘Kohinoor’ I expressed my desire of interviewing Beenaji to Premkishanji and he readily agreed to help me. He himself gave me all the information and answers to the questions that one asks during an interview. He also made my work very easy by providing the list of Beenaji’s films and her photographs. Now it was just a matter of simply waiting to meet Beenaji so that the write-up gets its stamp of authenticity. And one day out of the blue I got that opportunity.
I was pleasantly surprised to see Beenaji sitting on stage at the 47th Annual General Body Meeting of Cine & T.V. Artistes Association (CINTAA) on 20th November 2005. After many decades Beenaji was seen socializing with people on a public platform. Accompanying her was her younger son Monty. As soon as I got the opportunity, I went to meet Beenaji and introduced myself. She immediately recognized me as she had already seen me in the T.V.serial ‘Kohinoor’. All the CINTAA members present in the general body meeting were impatient to meet with her. Despite people’s eagerness to meet her, I managed to have 5 to 7 minutes of formal conversation which was enough to give the write-up a stamp of authenticity. That write-up was published on 12th January 2006 in Dainik Jagran.
Born on 13th July 1932 in Lucknow, Beena Rai’s father was an officer in railways. Everyone in their household was fond of watching films. Beenaji’s favorite heroine was Khursheed. In the year 1950, the times famous producer-director and actor Kishore Sahu was looking for a fresh face for his film ‘Kaali Ghata’. So he gave an ad in the newspapers inviting fresh talent. Beenaji used to study in the 12th standard at that time. According to Premkishanji, beenaji came to Mumbai with her brother and met Kishore Sahu, she auditioned and was chosen for the main role for the film ‘Kaali Ghata’. This film was released in the year 1951. And it was Kishore Sahu who changed her real name Krishna Sareen to her screen name ‘Been Rai’.
The other two actresses selected for other important characters for the film ‘Kaali Ghata’ were Asha Mathur and Indira Panchal. Asha Mathur later on married producer-director Mohan Sehgal and Indira Panchal married into the illustrious industrialist Mahindra family. After the film ‘Kaali Ghata’, Filmistan studio’s film ‘Anarkali’ (1953) broke previous success records. In this film Beena Rai’s male lead was Pradeep Kumar. Producer Bhagwan Dass Verma’s film ‘Aurat’ (1953) was Beena Rai’s first film with Premnath. Later on this screen duo did many films together. During Film ‘Aurat’s’ shooting they fell in love and they married each other before the release of the film in the year 1952.
During the meeting with Beena Rai at ‘CINTAA’s’ General Body Meeting one could clearly feel her qualms, a byproduct of having stayed within the confines of herself. She had said, “I belong from a traditional Indian family. The sanskars installed by my parents have been deeply rooted in me. And this was the reason why in spite of being a successful actress I didn’t let the charm and glamour of this industry affect me. I have always stayed away from controversies. I completely understood the importance of a family life, hence I didn’t hesitate even a bit to accept Premnathji’s marriage proposal.”
Beena Rai continued to work in films even after her marriage. Even at that time people would have reservations about how successful a married actress’s career would be. But Beena Rai proved everyone’s doubts to be wrong as her career took flight in the true sense only after her marriage. She worked with well know actors of her era viz. Ashok Kumar, Dilip Kumar, Dev Anand, Bharat Bhushan, Kishore Kumar, Pradeep Kumar and Shammi Kapoor in a total of 28 films like ‘Gauhar’, ‘Sholey’, ‘Meenar’, ‘Insaniyat’, ‘Madbhare Nain’, ‘Marine Drive’, ‘Sardar’, ‘Chandrakanta’, ‘Hamara Watan’, ‘Durgesh Nandini’, ‘Bandi’, ‘Hill Station’, ‘Mera Salaam’, ‘Talaash’, ‘Ghoonghat’, ‘Wallah Kya Baat Hai’, ‘Tajmahal’ and ‘Dadi Maa’. She was awarded a filmfare for the best actress for the 1960 film ‘Ghoonghat’.
After her marriage she produced films like ‘Shagoofa’ (1953), ‘Golkunda Ka Qaidi’ (1954) and ‘Samundar’ (1957) along with her husband under the banner of ‘P.N.Films’. The husband – wife duo also acted alongside each other in these films. Maybe financial constrains were a very important reason why Beenaji continued her acting career while fulfilling her household responsibilities. That’s why as soon as Premnathji’s career stabilized with the film ‘Teesri Manzil’ (1966), Beenaji immediately bid goodbye to films.
Made in 1968, the film ‘Apna Ghar Apni Kahani’ was Beena Rai’s last release after which she cut off all ties with the film industry and devoted herself completely to her family life. This film was initially named ‘Pyaas’. The music of the film was also released by the name of ‘Pyaas’. But during the screen release of the film, the title ‘Pyaas’ was changed to ‘Apna Ghar Apni Kahani’.
Beena Rai’s son and Cinevistaas companies’ owner Premkishan, who is a big name in the television industry today, tells us, “After retirement, mummy abstained from meeting anyone from the media or any of her fans along with any person unknown to her. But after papa’s demise (Premnath), she imprisoned herself completely within the confines of her home”. Beena Rai spent the last few years of her life with her younger son Monty, an actor, and his family in South Mumbai’s Malabar hill’s famous Anita building. She passed away on 6th December 2009 in Mumbai.
During my brief conversation with her at CINTAA’s General Body Meeting she had said, “I always molded myself according to changing times. I was never very ambitious and readily accepted whatever life offered me. Today I spend a peaceful life along with my son and daughter in law & with my grandsons & daughters and now I have even become a great grandmother. I relentlessly kept myself hidden from my fans and media only because I find no point in reminiscing about the past and re-living days that are long gone. The peace one finds in living a simple life can’t be found anywhere else.”
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