“धन्नो की आंखों में, प्यार का सुरमा”- राममोहन
.......शिशिर कृष्ण शर्मा
हिंदी सिनेमा में संकठाप्रसाद, हरि शिवदासानी, कृष्णकांत, केशव राणा, कृष्ण धवन, राजन हक्सर और ब्रह्म भारद्वाज जैसे कई चरित्र अभिनेता हुए, जो दशकों तक लगातार परदे पर नज़र आते रहे और जिन्होंने अपनी पहचान भी बनाई लेकिन वो उन बुलंदियों तक नहीं पहुंच पाए जिनके वो हक़दार थे। इन्हीं अभिनेताओं में से एक हैं राममोहन जिन्हें हिंदी सिनेमा में कदम रखे छह दशकों से भी ज़्यादा का समय गुज़र चुका है। 84 साल के राममोहन आज भी शारीरिक और मानसिक तौर पर पूरी तरह से स्वस्थ हैं लेकिन वो कहते हैं, “पुरानी बातों को याद करना अब उतना आसान नहीं रहा। भूलने बहुत लगा हूं मैं”।
राममोहन जी से फ़ोन पर मेरा संपर्क हमेशा से बना हुआ था। लेकिन “बीते हुए दिन” के लिए हमारी ख़ास मुलाक़ात हाल ही में जुहू की नॉर्थ बॉम्बे सोसायटी स्थित उनके फ़्लैट पर हुई। उस दौरान ने राममोहन ने जितना हो सका, बीते दिनों को याद करते हुए बेलाग बातचीत की। 2 नवंबर
1929 को अंबाला कैंट में जन्मे राममोहन के पिता डॉक्टर साधुराम शर्मा मूल रूप से जगाधरी के रहने वाले थे और अंबाला में अपना चिकित्सालय चलाते थे। राममोहन की माताजी श्रीमती योगमाया शर्मा गृहिणी थीं। राममोहन उनकी इकलौती संतान थे, हालांकि पिता की पहली शादी से भी राममोहन का एक बड़ा भाई और एक बड़ी बहन थे।
राममोहन बताते हैं, “अंबाला के आर्या स्कूल से मैट्रिक करने के बाद उसी स्कूल से जुड़े जी.एम.एन.कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा देते ही मैं मुंबई चला आया था। ये साल 1949 के मार्च-अप्रैल का वाकया है। फ़िल्में देखने का मुझे बेहद शौक़ था और मुंबई अपनी तरफ़ खींचती थी।
लेकिन अंबाला छोड़ने की सबसे बड़ी वजह थी इश्क़ में नाकामी और टूटा हुआ दिल, जिसकी वजह से मैं एक पल के लिए भी अंबाला में रहने को तैयार नहीं था। स्टेशन पहुंचा तो प्लेटफ़ॉर्म पर फ़्रण्टियर मेल खड़ी नज़र आयी, सो उसी पर सवार हो गया। बड़ौदा पहुंचते पहुंचते बिना टिकट पकड़े जाने का डर इस क़दर हावी हुआ कि ट्रेन के रूकते ही उतरा और जब तक टिकट लेकर वापस आता, ट्रेन छूट चुकी थी। बड़ौदा से मुंबई सेंट्रल तक का सफर मैंने अगली ट्रेन से तय किया”।
राममोहन के एक परिचित और अंबाला के ही रहने वाले महेश उप्पल मुंबई सेंट्रल के पास ही मौजूद “फेमस आर्ट स्टूडियो” में चित्रकार की नौकरी करते थे और रहते भी स्टूडियो में ही थे। राममोहन ने क़रीब 2 महिने महेश उप्पल के साथ रहकर गुज़ारे। राममोहन के मुताबिक़ वो उस दौरान रोज़ाना आसपास के इलाक़ों दादर और महालक्ष्मी में मौजूद “रंजीत मूवीटोन” और “फ़ेमस स्टूडियो” जैसे फ़िल्म स्टूडियोज़ के चक्कर काटते थे। कभीकभार उन स्टूडियोज़ में घुसने के लिए दरबान को रिश्वत भी देनी पड़ती थी। 2 महिने बाद उन्हें महेश उप्पल का स्टूडियो छोड़ना पड़ा तो वो रहने के लिए विले पारले चले आए।
राममोहन के मुताबिक़ एक रोज़ किसी ने उन्हें जगदीश सेठी से मिलने की सलाह दी। जगदीश सेठी उस ज़माने के जानेमाने अभिनेता और निर्माता-निर्देशक थे। एक रोज़ राममोहन जगदीश सेठी के पैडर रोड स्थित घर पर जाकर उनसे मिले। जगदीश सेठी राममोहन से बेहद प्रभावित हुए और बकौल राममोहन, “मैंने उनका ऐसा पल्ला पकड़ा कि उस रोज़ के बाद मैं उनके साथ-साथ नज़र आने लगा। कई फ़िल्मों में बेहद छोटी-छोटी भूमिकाओं से मेरे अभिनय जीवन की शुरूआत हुई। जगदीश सेठी द्वारा निर्देशित फ़िल्म “इंसान” में पहली बार मुझे एक अच्छी भूमिका मिली।“
साल 1952 में बनी फ़िल्म “इंसान” की मुख्य भूमिकाओं में पृथ्वीराज कपूर, रागिनी और कमल कपूर थे। राममोहन भी इस फ़िल्म में एक छोटी सी भूमिका निभा रहे थे। राममोहन के मुताबिक, “इस फ़िल्म के एक सीन में कमल कपूर को घुड़सवारी करनी थी, लेकिन घुड़सवारी उन्हें आती नहीं थी। उन्होंने मुझे अपनी परेशानी बताई और फिर जगदीश सेठी से स्क्रिप्ट में बदलाव करके घुड़सवारी मुझसे कराने का आग्रह किया। ये काम हालांकि मेरे लिए भी आसान नहीं था इसके बावजूद मैंने इसे चुनौती समझकर स्वीकार कर लिया। और थोड़ी बहुत कोशिशों के बाद मैं कामयाब भी हुआ। मेरे काम से जगदीश सेठी इतने ख़ुश हुए कि उन्होंने न सिर्फ़ फ़िल्म “इंसान” में मेरी भूमिका बढ़ाई बल्कि वादा किया कि भविष्य में वो मुझे और भी बेहतर भूमिकाएं देंगे”।
जगदीश सेठी ने अपना वादा निभाते हुए साल 1952 में ही बनी फ़िल्म “जग्गू” में राममोहन को सहनायक की भूमिका दी। इस फ़िल्म की मुख्य भूमिकाओं में कमल कपूर और श्यामा थे। राममोहन कहते हैं, “फिल्म “जग्गू” की कामयाबी ने मेरे लिए रास्ते आसान कर दिए।
अगले कुछ सालों में मैंने “श्री चैतन्य महाप्रभु” (1953), “पेंशनर” (1954), “होटल”, “लाल-ए-यमन” (दोनों 1956), “देवर भाभी”, “मिस 58”, “नाईट क्लब”, “राजसिंहासन” (सभी 1958), “भगवान और शैतान”, “चाचा ज़िंदाबाद”, “दो बहनें”, “टीपू सुल्तान” (सभी 1959), “अंगुलिमाल”, “बहादुर लुटेरा”, “चोरों की बारात”, “काला आदमी” और “मिस्टर सुपरमैन की वापसी” (सभी 1960) जैसी फ़िल्मों में अहम भूमिकाएं निभायीं।“
बतौर नायक या सहनायक तो राममोहन ज़्यादा मौक़े नहीं मिला पाए लेकिन बहुत जल्द वो खलनायक और आगे चलकर चरित्र अभिनेता के तौर पर पहचाने जाने लगे। 60 सालों के अपने करियर के दौरान राममोहन ने “हरियाली और रास्ता”, “मेरे हुज़ूर”, “तक़दीर”, “शोर”, “किताब”, “जियो तो ऐसे जियो”, “अंगूर”, “सावन को आने दो”, “शान”, “नदिया के पार”, “बंटवारा”, “ग़ुलामी”, “रंगीला” और “कोयला” सहित क़रीब 240 फ़िल्मों और “मिर्ज़ा ग़ालिब”, “तारा”, “शतरंज”, “संसार”, “बहादुर शाह ज़फ़र”, “ये दिल्ली है” और “महाभारत” जैसे 15 टेलिविज़न धारावाहिकों में अभिनय किया। इसके साथ ही 4 साल “सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन” के उपाध्यक्ष और 6 साल महासचिव पद पर रहने के अलावा वो सिनेमा से जुड़े लोगों के हित में कार्यरत विभिन्न एसोसिएशनों में भी सक्रिय रहे।
तीन बेटों और एक बेटी के पिता राममोहन पारिवारिक ज़िम्मेदारियों से पूरी तरह से निवृत्त होने के बाद अब पिछले कुछ समय से सेवानिवृत्ति का जीवन जी रहे हैं। उनकी विवाहिता बेटी दिल्ली में रहती है और उनकी पत्नी, बड़ा और छोटा बेटा मुंबई में और मंझला बेटा अमेरिका में हैं। दोनों बड़े बेटों का अपना व्यवसाय है और छोटा बेटा एयर इंडिया में पायलट है। ये पूछे जाने पर कि आपके बेटी-बेटों में से कोई भी सिनेमा के क्षेत्र में क्यों नहीं गया, राममोहन हंसते हुए कहते हैं, “इस दुनिया की उठापटक को इतना क़रीब से देख लेने के बाद इसके प्रति आकर्षण आख़िर रह ही कहां जाता है”?
राम मोहन का निधन 86 साल की उम्र में 6 दिसंबर 2015 को मुम्बई में हुआ|
We
are thankful to –
Mr.
Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable
suggestion, guidance, and support.
Mr. S.M.M.Ausaja
for providing movies’ posters.
Ms.
Maitri Manthan for editing the English translation of the write up.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
Ram Mohan on YT Channel BHD
.........Shishir Krishna Sharma
There have been many character artistes like Sankata Prasad, Hari Shivdasani, Krishna
Kant, Keshav Rana, Krishna Dhawan, Rajan Haksar and Brahm Bharadwaj in Hindi
Cinema who appeared on the screen for decades and gained recognition but could
not reach the heights of popularity they truly deserved. One such artist is Ram Mohan, who has given more than 6 decades of his life to Hindi Cinema. Still physically and mentally fit, 84 years old Ram
Mohan says, “It’s not that easy now to recollect old
memories. I often forget things.”
I have been in regular touch with Ram Mohan through telephone. But recently we met at his flat at Juhu’s North Bombay Society especially for “Beete Hue Din”. During this meeting, he tried his level best to recollect the times gone by and spoke in detail about his personal and professional life. Ram Mohan was born on 2nd November 1929 in Ambala Cantt. His father Doctor Sadhu Ram Sharma hailed from Jagadhri and had his own hospital in Ambala. Ram Mohan’s mother Mrs. Yogmaya Sharma was a housewife and Ram Mohan was her only child though he had an elder sister and a brother from his father’s first marriage.
Ram Mohan says, “I matriculated from Ambala’s Arya School and soon after completing my BA from G.M.N. College, which was the higher section of the Arya School only, I came down to Mumbai in March or April 1949. Films were a passion and Mumbai fascinated me. But the main reason behind my running away from Ambala was a failed relationship and broken heart. I did not want to stay in Ambala anymore. As soon as I reached the railway station, I boarded the Frontier Mail which was about to leave the platform. I was so afraid by the thought of being caught without-ticket that I got down at Baroda to buy one. But by the time I returned with the ticket, the train had already left. I boarded the next train and reached Mumbai”.
One of Ram Mohan’s acquaintances named Mahesh Uppal from Ambala was serving as a painter with “Famous Art Studio” near Mumbai Central and resided in the studio itself. Ram Mohan stayed with him at the studio for 2 months. Every day he would go to the film studios like “Ranjit Movietone” and “Famous Studio”, situated in the nearby areas of Dadar and Mahalaxmi. Sometimes he even had to bribe the watchmen to let him enter the studio gates. After 2 months, Ram Mohan was asked to leave the studio, so he had to come to live in Vile Parle.
According to Ram Mohan, one day somebody suggested him that he should meet the then well-known actor-director Jagdish Sethi. Ram Mohan met Jagdish Sethi at his Pedder Road residence and happened to really impress him. According to Ram Mohan, “I joined him and almost became his shadow. I started playing very small characters in his films. I got my first significant role in Jagdish Sethi directed ‘Insaan’”.
Prithviraj Kapoor, Ragini and Kamal Kapoor played leading roles in “Insaan” made in 1952 while Ram Mohan was playing a very small role. Ram Mohan says, “Kamal Kapoor had to ride a horse in one of the scenes, but he had no idea about horse riding. He was very worried and spoke to me about his dilemma. Then he requested Jagdish Sethi to change the script and instead make me ride the horse. Though this job wasn’t easy for me too, I accepted the challenge and eventually I succeeded. Jagdish Sethi was so happy with my work that he not only enhanced my role in the film “Insaan” but also promised to cast me in better roles in all his forthcoming films”.
Jagdish Sethi fulfilled his promise and gave Ram Mohan the role of the side-hero in “Jaggu” made in the same year, 1952. The lead pair in this film was Kamal Kapoor and Shyama. Ram Mohan says, “Jaggu’s success made it easier for me. In the next few years I played important characters in the films like “Shri Chaitanya Mahaprabhu” (1953), “Pensioner” (1954), “Hotel”, “Laal-e-Yaman” (both 1956), “Devar Bhabhi”, “Miss 58”, “Night Club”, “Raj Singhasan”, (all 1958), “Bhagwan Aur Shaitan”, “Chacha Zindabad”, “Do Behnein”, “Tipu Sultan” (all 1959), “Angulimal”, “Bahadur Lutera”, “Choron Ki Baraat”, “Kaala Aadmi” and “Mr. Superman Ki Waapsi” (all 1960).
Ram Mohan did not get much opportunity to play the hero or side-hero but soon he was recognized as a villain and a character artist. During a career spanning 60 years Ram Mohan acted in approx. 240 films including “Hariyali Aur Rasta”, “Mere Huzoor”, “Taqdeer”, “Shor”, “Kitaab”, “Shaan”, “Jiyo To Aise Jiyo”, “Angoor”, “Sawan Ko Aane Do”, “Nadiya Ke Paar”, “Batwara”, “Ghulaami”, “Rangeela” and “Koyla” and 15 T.V.serials like “Mirza Ghalib”, “Tara”, “Shatranj”, “Sansaar”, “Bahadur Shah Zafar”, “Ye Dilli Hai” and “Mahabharat”. Besides, he was also the Vice President of the “Cine & TV Artiste’s Association” (CINTAA) for 4 years and the General Secretary for 6 years. He was actively associated with various associations working for the wellbeing of the people associated with the film industry.
Father of 3 sons and one daughter, Ram Mohan is now living a retired life with his wife, having fulfilled all his duties towards his family. His eldest and second sons, have their own business and are settled in Mumbai and USA respectively while the youngest one is a Pilot with the Air India and lives in Mumbai. Ram Mohan’s daughter is married and based in Delhi. On being asked about why none of his children showed any interest into joining the glamour world, Ram Mohan laughingly says, “After closely witnessing the volatility of this world, where is the question of fascination?”
Ram Mohan ji died in Mumbai on 6 December 2015 at the age of 86.
Please cover up Dr.Shree Ram Lagoo also.
ReplyDeletethanks.
Sundar lekh.
ReplyDeleteThat's my grandfather. Great article.
ReplyDeleteI am greatful to your effort. I watch nadiya ke paar then i want to know more about mr. Ram mohan. Thank you once again.
ReplyDeletegreat effort ... but he is no more now .. there are many such artists like bob christo etc
ReplyDeleteNice reading, I saw many of his films.
ReplyDeleteHe died on 6th December, 2015.
May his soul rest in peace
बहुत ही अच्छे अभिनेता थे नदिया के पार में ग़ज़ब का अभिनय। आपका आलेख बहुत ही सुंदर तथा जानकारीपूर्ण।
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