“मुझको अपने गले लगा लो” – मुबारक बेगम
......शिशिर कृष्ण शर्मा
मुंबई के उपनगर जोगेश्वरी (पश्चिम) का बेहरामबाग़ इलाक़ा। घनी आबादी वाले इस इलाक़े में रहने वाले लोगों को शायद अहसास नहीं है कि उनके बीच गुज़रे ज़माने की वो मशहूर पार्श्वगायिका रहती हैं जिनके गाए गीत “मुझको अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही” और “कभी तनहाईयों में यूं हमारी याद आएगी” आज भी सुनने वालों के दिलों को छू जाते हैं। मुबारक बेगम किस हाल में हैं, इस बात को जानने की न तो किसी के पास फ़ुरसत है और न ही चाहत। सच्चाई ये है कि मुबारक बेगम ‘बेहराम बाग़’ की ‘सुल्तानाबाद चिराग़ सोसायटी’ की बिल्डिंग नंबर 22 के फ़्लैट नंबर 111 में तमाम आर्थिक तंगी और बीमारियों से जूझती हुई ज़िंदगी की शाम गुज़ार रही हैं। ख़ासतौर से उनके पैरों पर गठिया की बीमारी ने ऐसा बुरा असर डाला है कि अब उनका ज़्यादातर वक़्त घर की चारदीवारी में ही गुज़रता है।
मीडिया से जुड़े लोगों के प्रति मुबारक बेगम के मन में हमेशा से एक अविश्वास सा रहा है। उनका कहना है, “मेरे हालात को समझने की कोशिश किसी ने नहीं की। मैं कैसी जगह और किस हाल में रहती थी, इस बात को सबने उछाला और खुलकर मेरा मज़ाक़ उड़ाया। मेरी मजबूरियों और गरीबी का जिस तरह से बखान किया जाता था, उससे मैं बेहद कुंठित हो चली थी। इसीलिए क़रीब 8 साल पहले इस इलाक़े में रहने आई तो बहुत राहत मिली, हालांकि उस जगह को भुलाना भी आसान नहीं है जहां मैंने ज़िंदगी के 65 साल गुज़ारे थे”।
दरअसल “सहारा समय” के अपने कॉलम “क्या भूलूं क्या याद करूं” के लिए बहुत जद्दोज़हद के बाद मैं मुबारक बेगम का अधूरा सा पता-ठिकाना हासिल करने में कामयाब हो पाया था। बहुतों से पूछा, तब कहीं जाकर किसी ने बताया था कि वो शायद लैमिंगटन रोड पर रहती हैं। मुबारक बेगम की तलाश में मैं अक्टूबर 2003 के आख़िरी हफ़्ते में अपने कैमरामैन साथी संतोष राय के साथ मुंबई के सबसे पुराने और घने बसे व्यापारिक इलाक़ों में से एक लैमिंगटन रोड पर सौ-सवा सौ साल पुरानी जर्जर हो चुकी इमारतों के बीच से गुज़रती कांग्रेस हाऊस वाली गली में पहुंचा था। मुबारक बेगम के बारे में पूछने पर गली में मौजूद एक पान वाले ने निस्पृह भाव से एक खंडहरनुमा इमारत की तरफ़ इशारा किया था। हम उस इमारत के पिछवाड़े में खड़े थे।
“नूरमोहम्मद बेगमोहम्मद बिल्डिंग” नाम की उस इमारत में दाखिल होने के लिए हमें गंदगी से अटी पड़ी बेहद तंग एक अन्य गली से होकर गुज़रना पड़ा था। सीलन भरी अंधेरी सीढ़ियों से होकर हम इमारत की दूसरी मंज़िल पर पहुंचे थे जहां बामुश्किल 10 गुणा 8 फ़ुट के कमरे में मुबारक बेगम हमें मिली थीं। लेकिन लैमिंगटन रोड से मुबारक बेगम के उस आशियाने तक का महज़ 100 गज़ का वो फ़ासला तय करना आसान नहीं था। उस दौरान खिड़की-दरवाज़ों पर मौजूद लिपे-पुते चेहरों और अधनंगे जिस्मों की भीड़ के भद्दे इशारों और गली में घूमते दलालों की “माल चाहिए?” की फुसफुसाहट ने हमारी निगाहों को कई कई बार शर्मसार किया। पुलिस की छापेमारी और गरम गोश्त की मण्डियों से होने वाली शरीफ़ज़ादों की धरपकड़ के पढ़े-सुने क़िस्से-कहानियों को याद कर-करके हम पसीने-पसीने होते रहे। वाकई, उस इलाक़े को मुंबई का सबसे बदनाम इलाक़ा यों ही नहीं माना जाता।
मुबारक बेगम के दादा-परदादा मूलरूप से राजस्थान के नवलगढ़ के रहने वाले थे तो उनकी मां झुंझनू की थीं। मुबारक बेगम बताती हैं, “मैं ननिहाल में पैदा हुई थी। तारीख़ तो पता नहीं लेकिन 75-80 बरस तो हो ही गए होंगे। पढ़लिख इसलिए नहीं पायी कि उस जमाने में मां-बाप डरते थे कि पढ़ी-लिखी लड़की कहीं ख़तो-क़िताबत करके घर से भाग न जाए। मेरे दादा की अहमदाबाद में चाय की दुकान थी इसलिए मेरे अब्बा भी परिवार को साथ लेकर अहमदाबाद चले आए और फलों की ठेली लगाने लगे। मैंने होश वहीं संभाला। अब्बा को तबला बजाने का ऐसा शौक़ था कि उस्ताद थिरकवां खां साहब ने उन्हें अपना शागिर्द क़ुबूल कर लिया था। कुछ समय बाद अब्बा हमें साथ लेकर मुंबई चले आए। ये 1940 के दशक के शुरूआत का वाक़या है।
मुबारक बेगम को पिता से संगीत के संस्कारों का मिलना स्वाभाविक ही था। वो बहुत शौक़ से सुरैया और नूरजहां के गीत गाती थीं, जिसे देखते हुए पिता ने उन्हें किराना घराने के उस्ताद रियाज़ुद्दीन ख़ां और उस्ताद समद ख़ां साहब की शागिर्दी में गायन की तालीम दिलानी शुरू कर दी थी। इसके साथ ही मुबारक बेगम को ऑल इंडिया रेडियो पर भी गाने के मौक़े मिलने लगे थे। मुबारक बेगम बताती हैं, “एक रोज़ उस ज़माने के मशहूर संगीतकार रफ़ीक़ ग़ज़नवी ने मुझे रेडियो पर गाते सुना तो अपनी किसी फ़िल्म में गाने के लिए बुलाया। गीतकार थे आगाजान कश्मीरी। लेकिन स्टूडियो में लोगों की भारी भीड़ देखकर मैं घबरा गयी और गा नहीं पायी। ऐसा ही कुछ राम दरियानी की फ़िल्म “भाई-बहन” (1950) के दौरान हुआ जिसके संगीतकार श्यामसुंदर थे।
इन असफलताओं से घबराकर एकबारगी तो मैंने फ़िल्मों में न गाने का फ़ैसला कर लिया था। लेकिन फिर धीरे-धीरे हिम्मत जुटाई, भरपूर मेहनत की और पूरे जोशोख़रोश के साथ संघर्ष में जुट गयी। मेहनत रंग लाई और मैंने याक़ूब की फ़िल्म “आईए” के लिए अपना पहला पार्श्वगीत “मोहे आने लगी अंगड़ाई” रेकॉर्ड कराया। याक़ूब और सुलोचना चटर्जी की मुख्य भूमिकाओं वाली और 1949 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म के संगीतकार थे शौक़त हैदरी देहलवी जो आगे चलकर नाशाद के नाम से मशहूर हुए थे। गीतकार थे नख़्शब।1950 के दशक में मुबारक बेगम ने हंसराज बहल के संगीत में फ़िल्म “फूलों के हार” के सभी गीतों के अलावा “मेरा भोला बलम” (कुंदन/संगीत - ग़ुलाम मोहम्मद), “देवता तुम हो मेरा सहारा” (दायरा/जमाल सेन), “महलों में रहने वाले” (शबाब/नौशाद), “चल चल मुसाफ़िर” (मां के आंसू/सरदार मलिक), “आज घरवाले घर नहीं” (औलाद/सरदार मलिक), “जल जल के मरूं” (शीशा/ग़ुलाम मोहम्मद), “वो न आएंगे पलटकर” (देवदास/सचिनदेव बर्मन), “हम हाले दिल सुनाएंगे” (मधुमति/सलिल चौधरी) और “क्या ख़बर थी यूं तमन्ना” (रिश्ता/के.दत्ता) जैसे कई सोलो और डुएट गीत गाए। लेकिन निर्माता-निर्देशक और गीतकार केदार शर्मा की, स्नेहल भाटकर द्वारा संगीतबद्ध फ़िल्म “हमारी याद आएगी” (1961) के शीर्षक गीत “कभी तनहाईयों में यूं हमारी याद आएगी” ने तो मुबारक बेगम को मशहूरी की बुलंदियों पर ला खड़ा किया।
{केदार शर्मा अपनी आत्मकथा ‘द वन एंड ओनली केदार शर्मा’ में लिखते हैं कि इस गीत को लता गाने वाली थीं। वो दो बार गीत की रेकॉर्डिंग पर पहुंचीं लेकिन दोनों बार रेकॉर्डिंग कैंसिल करके वापस लौट गयीं। और वो इसलिए क्योंकि दोनों बार उनके ड्राईवर ने केदार शर्मा से कहा, ‘टेक तब होगा जब आप मुझे 140 रूपए देंगे’| केदार शर्मा ने पूछा ‘किस बात के पैसे?’ तो जवाब मिला, ‘सब प्रोड्यूसर देते हैं’।
केदार शर्मा बेहद आत्मसम्मानी व्यक्ति थे| उन्होंने ड्राईवर से कहा, ‘बाक़ी प्रोड्यूसर क्या करते हैं, उससे मुझे कोई मतलब नहीं, मुझसे मेरी बात करो| लता के साथ जो शर्तें तय हुईं, मेरी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ उन्हें पूरा करने की है और वो मैं करूंगा| 140 रूपए जैसी कोई बात उन्होंने मुझसे नहीं कही|’ इस पर ड्राईवर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, ‘ठीक है, कोशिश करके देख लीजिए’। और लता ने दूसरी बार भी रिकॉर्डिंग कैंसिल कर दी| लता के इस ग़ैरपेशेवर रवैये को केदार शर्मा बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने उसी वक़्त मुबारक बेगम को बुलाकर ये गीत रेकॉर्ड करा लिया। इसमें दोराय नहीं है कि अगर इस गीत को लता गातीं तो ये उनके बेहद ख़ूबसूरत गीतों में से एक होता। लेकिन तब इसे शायद वो अनूठापन न मिल पाता जो मुबारक बेगम की गायकी और आवाज़ ने दिया।}
मुबारक बेगम के मुताबिक़, “गाना रेकॉर्ड होने के बाद केदार शर्मा जी ने मुझे एक चवन्नी दी। मेरी समझ में नहीं आया ये वो किसलिए दे रहे हैं। मुझे झिझकता देख स्नेहल भाटकर ने कहा, इसके लिए मना मत करो, ये शर्मा जी का आशीर्वाद है। ये वो तब देते हैं जब किसी के काम से बहुत ख़ुश होते हैं। वाकई शर्मा जी का दिया वो आशीर्वाद मेरे लिए बेहद शुभ साबित हुआ। “कभी तनहाईयों में यूं हमारी याद आएगी” को ऐसी ज़बर्दस्त कामयाबी मिली कि मेरे लिए रास्ते थोड़े आसान हो गए।“
1960 के दशक में मुबारक बेगम ने “मुझको अपने गले लगा लो” (हमराही/शंकर जयकिशन), “नींद उड़ जाए तेरी चैन से सोने वाले” (जुआरी/कल्याणजी आनंदजी), “शमा गुल करके न जा” (अरब का सितारा/सादात), “निगाहों से दिल में चले आईएगा” (हमीरहठ/सन्मुख बाबू), “हमें दम दई के सौतन घर जाना” (ये दिल किसको दूं/इक़बाल क़ुरैशी), “बेमुरव्वत बेवफ़ा बेगाना ये दिल” (सुशीला/सी.अर्जुन), “मेरे आंसुओं पे न मुस्कुरा” (मोरे मन मितवा/दत्ताराम), “आंखों आंखों में हर इक रात” (मार्वेल मैन/रॉबिन बनर्जी), “इतने क़रीब आके भी” (शगुन/ख़ैयाम), “ऐ दिल बता हम कहां आ गए” (ख़ूनी ख़ज़ाना/एस.किशन) और “वादा हमसे किया” (सरस्वतीचन्द्र/कल्याणजी आनंदजी) जैसे कई मशहूर गीत गाए।
मुबारक बेगम कहती हैं, “जैसे जैसे मेरा नाम होता गया, मेरे ख़िलाफ़ साज़िशें रची जाने लगीं। “परदेसियों से ना अंखियां मिलाना” (जब जब फूल खिले) और “अगर मुझे न मिले तुम” (काजल) जैसे मेरी आवाज़ में रेकॉर्ड किए गए गीत बाज़ार में आए तो उनमें से मेरी आवाज़ नदारद थी। एक रोज़ रेडियो पर मेरा इंटरव्यू आ रहा था कि फ़ोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ़ एक मशहूर पार्श्वगायिका थीं जो बोलीं, पहचाना हमें? अगर हमें तुमसे प्यार न होता तो तुम्हें कभी का इंडस्ट्री से आऊट करवा देते। शायद उस वक़्त वो भी मेरा इंटरव्यू सुन रही थीं। मैं ये बात आज तक नहीं समझ पायी कि ये उनका प्यार था या धमकी, जो 1970 का दशक शुरू होते होते मुझे वाकई इंडस्ट्री से बाहर हो जाना पड़ा। और अगर कभी-कभार गाने का मौक़ा मिला भी तो उनमें से मेरा एक भी गीत बाज़ार में नहीं आया”।
(फ़िल्म “जब जब फूल खिले” के निर्देशक सूरज प्रकाश ने एक मुलाक़ात के दौरान इस बात की पुष्टि की थी कि गीत “परदेसियों से ना अंखियां मिलाना” मूलत: मुबारक बेगम की आवाज़ में ही रेकॉर्ड किया गया था। लेकिन उस गीत को लता की आवाज़ में डब कराए जाने के पीछे किसी भी तरह के दबाव या राजनीति की बात से उन्होंने साफ़ इंकार किया। सूरज प्रकाश के मुताबिक मुबारक बेगम की जगह लता को लाए जाने की वजह मनचाहा नतीजा न मिल पाना थी।)
मुबारक बेगम ने अपने आख़िरी दो गीत फ़िल्म “रामू तो दीवाना है” के लिए साल 1980 में रेकॉर्ड किए थे। चन्द्रू के संगीत में उनके गाए वो गीत थे, “आओ तुझे मैं प्यार करूं” और “सांवरिया तेरी याद में”। अब पिछले तीन दशकों से भी ज़्यादा समय से मुबारक बेगम बिना किसी काम के बैठी बदहाली की ज़िंदगी जी रही हैं। उनके परिवार में बेटा-बहू, एक बेटी और बेटे की 4 बेटियां हैं। बेटा छोटा-मोटा काम करके घर के ख़र्चे उठाता है। क़रीब 46-47 साल की उनकी बेटी शफ़ाक़ बानो पार्किंसन की बीमारी से पीड़ित है। स्वर्गीय सुनील दत्त के लिए मुबारक बेगम के मन में बेहद सम्मान है, जिनकी कोशिशों से उन्हें सरकारी कोटे से जोगेश्वरी का ये फ़्लैट मिला। अपने पति के विषय में मुबारक बेगम कोई भी बात नहीं करना चाहतीं। क़रीब 3 साल पहले एक निजी न्यूज़ चैनल के लिए ख़ुद पर बनने वाली डॉक्यूमेंटरी के शूट के दौरान पति के विषय में पूछने पर उन्होंने “ऑन कैमरा” कहा था, “पता नहीं कौन थे, अब तो नाम भी याद नहीं है”।
(मुबारक बेगम को क़रीब से जानने वाले लोगों का कहना है कि उनके पति का नाम जगन्नाथ शर्मा था जो एक फ़िल्म निर्माता थे। जगन्नाथ शर्मा ने साल 1950 में देवआनंद और नरगिस को लेकर फ़िल्म “बिरहा की रात” का निर्माण किया था।)
मुबारक बेगम कहती हैं, “आज भी कभी-कभार लोग स्टेज शो के लिए बुला लेते हैं हालांकि बीमारी की वजह से क़रीब क़रीब बेकार हो चले पैर अब मुझे घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं देते। साल 2008 में हैदराबाद में आयोजित कार्यक्रम को मैं कभी नहीं भुला पाऊंगी। उस कार्यक्रम के दौरान सबसे अगली कतार में बीते ज़माने की मशहूर अभिनेत्री जमुना बैठी थीं। जब मैंने “मुझको अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही” गाया तो वो बेहद भावुक हो उठीं और मेरे साथ-साथ गुनगुनाने लगीं, क्योंकि परदे पर ये गीत उन्हीं पर फ़िल्माया गया था”।
कुछ साल पहले फ़िल्म्स डिवीज़न ने मुबारक बेगम पर एक डॉक्यूमेंट्री का निर्माण किया था जिसे गोवा फ़िल्म समारोह में प्रदर्शित किया गया था। संगीतप्रेमियों के बीच मुबारक बेगम का नाम आज भी बेहद सम्मान से लिया जाता है और आज भी उनके गाए गीतों को लोग बेहद चाव से सुनते हैं। लेकिन बरसों पहले “शमा-सुषमा” पत्रिका में छपे किसी पाठक के पत्र की ये पंक्ति फ़िल्मी दुनिया में मुबारक बेगम के हालात को बख़ूबी बयां करती नज़र आती है – “मुबारक उड़ने भी न पायी थीं कि उनके पंख काट दिए गए”।
We are thankful to –
Mr.
Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Ms.
Aksher Apoorva for the English
translation of the write ups.
Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.
"Mujhko Apne Gale Laga Lo"- Mubarak Begum
………. Shishir Krishna Sharma
Residents of Mumbai's satellite town Jogeshwari (West)'s Behrambagh area are probably unaware that the famous yesteryear singer whose songs “Mujhko Apne Gale Laga Lo Aye Mere Humraahi” and “Kabhi Tanhaaiyon Mein Yun Hamaari Yaad Aayegi” tug our heartstrings till today, lives amidst them. But perhaps, they don't have the leisure of inclination to know the state in which she is living in today. The truth is that she resides in Behrambagh's “Sultanabad Chirag Society”s Building Number 22, Flat No C-111 in a state of penury and neglect. Arthritis has affected her legs so much that most of her time is spent indoors.
She has always had a feeling of aversion towards people of the media world. She says that,” no one has ever tried to understand my condition. Everybody made fun of and exploited my position. The manner in which my poverty and helplessness were portrayed left a bad taste in my mouth. This is the reason why I entered this area 8 years ago with a sense of relief although it is difficult for me to forget the place where I spent 65 years of my life”.
Actually for my “Sahara Samay” column “Kya Bhooloon Kya Yaad Karoon” after a lot of effort i was able to acquire just a partial address of Mubarak Begum. After asking many a people someone finally told me that she could be residing at Lamington Road. In search of Mubarak Begum, during the last week of October 2003, along with my cameraman Santosh Rai i went to one of Mumbai’s oldest and densest business area Viz. Lamington Road’s Congress House Street which passes through crumbling buildings that are almost 100 – 125 years old. When I asked a paan vendor on the street about Mubarak Begum, he very matter of factly pointed towards a depilating building. We were standing at the back side of the building.
To reach the building called “Noor Mohammad Baig Mohammad Building” we had to cross a filthy crisscrossing street. On crossing the moisture dampened staircase, we finally reached the second floor where we finally found Mubarak Begum in a room that was hardly 10 X 8 feet big. But it was not at all easy to cover the merely 100 meters distance from Lamington Road to Mubarak Begum’s residence. And during that few minutes visuals of made up faces, sleazy gestures of uncovered bodies and whispers of dealers asking us if we needed anything, made us hang our heads in embarrassment. We kept getting stressed and frightened thinking of stories we have heard of police raids and of stories of crackdown of the so called elite class or the white collar people. Really, this area is not the most defamed area of Mumbai for no reason.
Mubarak Begum's forefathers belonged to Rajasthan’s Nawalgarh while her mother was from Jhunjhunu. Mubarak Begum recalls, “I was born in my maternal home. Though I don’t know the exact date, approximately 75-80 years must have passed. I couldn't get educated since my conservative parents were afraid that an educated girl would run away from home. My Grandfather had a tea shop in Ahmedabad. So, my father with his family moved there and started operating a fruit cart. My first memories are of the same place. My father played the Tabla as a hobby so well that Ustad Thirakwa Khan Saheb accepted him as his disciple. Sometime in early 1940s my father took all of us to Mumbai”.
It was but natural that Mubarak Begum received the tenets of music from her father. Seeing the enthusiasm with which she sang songs of Suraiyya and Noorjehan, her father made her a pupil of Kirana Gharana's Ustad Riazuddin Khan and Ustad Samad Khan Sahab. Mubarak Begum started getting opportunities to sing on All India Radio thanks to this. She recalls, “One day, Rafiq Ghaznavi, the famous composer heard me sing on the radio and he called me to sing for a film. The lyricist was Agha Jan Kashmiri, but I froze on seeing the crowd at the studio and could not sing. A similar incident repeated itself for Ram Daryani's “Bhai Bahan” (1950) whose composer was Shaym Sundar. In view of these failings, for a time, I had made up my mind to not sing for films. But gradually I overcame my fears and made efforts to overcome those days of struggle. My efforts bore fruit and I gave my first playbck for Yakub's “Aaiye” with the song “Mohe Aane Lagi Angdaai”. This Yakub and Sulochana Chatterjee Starrer was released in 1947 and its composer was Shaukat Hyderi Dehlvi who became famous as Nashad in the years to come. The song was penned by Nakhshab”.
In the 1950s, apart from singing all songs of Hansraj Behl's Phoolon Ke Haar, she sang many solos and duets like Mera Bhola Balam (Kundan /composer: Ghulam Mohammad), Devta Tum Mera Sahara (Daaera/Jamal Sen), Mehlon Mein Rehne Waale (Shabaab/Naushad), Chala Chal Musafir (Maa Ke Aansoo/Sardar Malik), Aaj Gharwaale Ghar Nahin (Aulad/Sardar Malik), Jal Jal Ke Maroon (Sheesha/Ghulam Mohammad), Wo Na Ayenge Palatkar (Devdas/S.D.Burman), Hum Haal-e-dil Sunaayenge (Madhumati/Salil Chaudhary) and Kya Khabar Thi Yun Tamanna (Rishta/K Dutta). But it was the Snehal Bhatkar composed title song “Kabhi Tanhaaiyon Mein Yun Hamaari Yaad Aayegi” of Kedar Sharma’s film “Hamaari Yaad Aayegi” (1961), which brought her overnight glory.
{Kedar Sharma, in his autobiography titled ‘One & only Kedar Sharma’ writes that initially this song was supposed to be recorded with Lata. She even reached for the recording twice, but both the times cancelled it and left. And the reason was her driver’s demand for a sum of Rs.140/-. When Kedar Sharma asked ‘for what?’, driver replied, ‘all producers pay to me’. Kedar Sharma was an immensely self-respecting person. He flatly refused to pay as he had already agreed upon all Lata’s terms & conditions and she har never asked about her driver’s fee. When Lata cancelled the recording again, Kedar Sharma couldn’t take this unprofessional attitude of Lata’s and immediately called for Mubarak Begum and recorded the song with her. There is no two ways about the fact that if Lata had sung this song it would have been one of her best songs. But the song would not have gotten the novelty that Mubarak Begum’s voice lend to it.}
According to Mubarak Begum, “after recording the song Kedar Sharma gave me a 25 paise coin. I didn’t understand why he was giving me that coin. Noticing my hesitation Snehal Bhatkar said, don’t refuse this, this is Sharmna ji’s blessings. He gives this when he is very happy with someone’s work. And really Sharmaji’s blessing given in the form of the coin proved to be very holy for me. “Kabhi Tanhaaiyon Mein Yun Hamaari Yaad Aayegi” got such fame that the way to success became much easier for me.
In the 1960s she sang many popular songs like Mujhko Apne Gale Laga Lo (Humrahi/Shankar Jaikishan), Neend Ud Jaaye Teri Chain Se Sone Waale (Juaari/Kalyanji Anandji), Shama Gul Karke Na Ja (Arab Ka Sitara/Sadat), Nigahon Se Dil Mein Chale Aaiyega (Hamir Hath/Shanmukh Babu), Humen Dam Dai Ke Sautan Ghar Jaana (Yeh Dil Kisko Doon/Iqbal Qureshi), Bemuravvat Bewafa (Sushila/C Arjun), Mere Aansuon Pe Na Muskura (More Man Mitwa/Dattaram), Ankhon Ankhon Mein Har Raat Guzar Jaati Hai (Marvel Man/Robin Banerjee), Itne Kareeb Aake Bhi Kya (Shagun/Khaiyyam), Ae Dil bata Hum Kahaan Aa Gaye (Khooni Khazana/S Kishan) and Wada Humse Kiye (Saraswati Chandra/ Kalyanji Anandji).
According to Mubarak Begum, “As I became more popular, conspiracies against me also began to gain steam. As a result, songs like “Pardesiyon Se Na Ankhiyaan Milaana” (Jab Jab Phool Khile) and “Agar Mujhe Na Mile Tum” (Kajal) which had been originally recorded by me, entered the market without my voice. One day when an interview of mine was being broadcast on the radio, my phone rang. On the other side was a famous playback singer who said, 'Remember us? If we didn't love you, you would have been out of this industry long back.' Perhaps, she had been listening to my interview at that time. I have still not understood, if that was love or a veiled threat because I had to go out of the industry by the beginning of the 1970s. Although I got the chance to sing few songs, now and then, not a single one of them reached the market.”
(During a meeting with director Suraj Prakash of the film “Jab Jab Phool Khile” he clearified that the song “Pardesiyon Se Na Ankhiyaan Milaana” was indeed originally recorded in the voice of Mubarak Begum. But he refuted any claim that there was any politics or pressure to eventually dub it in Lata’s voice. According to Suraj Prakash, the decicison to replace Mubarak Begum with lata was mutual as the desired result hadn’t been met.)
Mubarak Begum recorded her last two songs for the film “Ramu To Deewana hai” in the year 1980. Her last songs sung under the direction of Chandru were “Aao Tujhe Mai Pyar Karoon” and “Sanwariya Teri Yaad Me”. For more than the last 3 decades Mubarak Begum has been sitting at home living a haphazard life. Her family consists of a son – daughter-in-law, a daughter and 4 daughters of her son. Her son makes a little money doing small odd jobs. Her 46-47 year old daughter Shafaaq Bano is affected with Parkinson’s. Mubarak Begum has a lot of respect for (Late) Sunil Dutt because of whose efforts she got a small house in Jogeshwari through government quota. Mubarak Begum doesn’t want to make any comments on the subject of her husband. Almost 3 years back when she was shooting for a documentary being made on her, Mubarak Begum commented on camera “what do I say? I don’t even remember what his name was”.
(People who know Mubarak Begum closely say that her husband was one Jagannath Sharma who was a film producer. In 1950 Jagannath Sharma had made a film with Dev Anand and Nargis called “Biraha Ki Raat”)
Mubarak Begum says, “Even today I am sometimes called by people for stage shows but my fast deteriorating feet don't allow me to go out of my home much. I can never forget when I sang for a program in Hyderabad in July 2008 because all through the program famous yesteryear actress Jamuna was sitting in the front row. When I started singing, Mujhko Apne Gale Laga Lo O Mere Humrahi, She became emotional and started lip syncing to it because it was her on which it had been picturised.”
Some years back, Films Division had made a documentary on her which was premiered in the Goa Film Festival. Her name is taken with deep respect among music lovers even today and they enjoy the songs sung by her till today. But many years back a line from a letter by a reader published in the magazine “Shama-Sushma” beautifully depicts the state of Mubarak Begum in the film industry – “Mubarak couldn’t even take flight that her wings were clipped.”
Mubarak Begum’s daughter Shafaaq Bano died in October 2015. Her death came as such a deep shock to Mubarak Begum that she fell ill and never recovered. And she died on 16 July 2016.
अदभुद संयोग है कि मुबारक आपा ने हैदराबाद के जिस कार्यक्रम के बारे में जिक्र किया है उस कार्यक्रम को मैने पहली लाईन में जमुना जी के साथ बैठकर सुना है।
ReplyDeleteमुबारकजी के बारे में सुना था कि वे जमाने की ठोकरें खा-खाकर बेहद चिड़चिड़ी सी हो गई हैं, लेकिन कार्यक्रम के दौरान और उसके बाद मेरे साथ हुई बातचीत के दौरान कहीं भी मुझे वे चिड़चिड़ी नहीं लगी। बल्कि वे तो उस उम्र और उस हालत में भी खुशमिज़ाज लगी।
यह हैदराबाद उस कार्यक्रम की कड़ी है जिसमें मुबारक आपा ने हमें अपनी गायिकी खुश कर दिया था।
एक मुबारक शाम
एक और सुन्दर लेख, बहुत बहुत धन्यवाद।
Very interesting account of Mubarak Begum with a perspective of true history. Congrates!
ReplyDeleteI had the opportunity to meet her at her Beherampada residence in April/May/June-2013 along with Bhagu Mordani of Mordani Interiors and Venkitachalam Venkat. We had raised some money to be given to her. It was a very shattering experience to hear from her own mouth about the treatment meted out to her by the greats in the playback singing field
ReplyDeleteMUBARAK BEGUM KO KABHI BHUL NAHI PAYENGE
ReplyDeleteइन महान कलाकारों की बेशकीमती जानकारी देने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यावाद ।
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