Saturday, February 23, 2013

“Kyon Mujhe Itni Khushi De Di ke ghabrata hai dil” - Shashikala

क्यूं मुझे इतनी ख़ुशी दे दी कि घबराता है दिल”- शशिकला

                       ............शिशिर कृष्ण शर्मा

हिंदी सिनेमा की ग्लैमरस खलनायिकाओं का ज़िक़्र होते ही ज़हन उभरने वाला पहला नाम है, शशिकला का। 1960 के दशक के हिंदी सिनेमा में अपनी एक ख़ास जगह बनाने वाली ख़ूबसूरत और चुलबुलीबुरी औरतशशिकला को उस दौर के दर्शक आज भी भूले नहीं हैं। शशिकला सिर्फ़ एक उम्दा अभिनेत्री थीं बल्कि मौक़ा मिलने पर उन्होंने ख़ुद को एक बेहतरीन डांसर के तौर पर भी साबित किया। जल्द ही 80 साल की होने जा रही शशिकला मुंबई में ही रहती हैं और शारीरिक और मानसिक तौर पर पूरी तरह चुस्त-दुरूस्त हैं।   

जोगेश्वरी (पश्चिम) में लिंक रोड स्थित सेजल पार्क के वल्लभ अपार्टमेंट में शशिकला के फ़्लैट पर मेरी उनसे दो बार मुलाक़ात हुई थी। पहली बार मैंनेसाप्ताहिक सहारा समयके अपने कॉलमक्या भूलूं क्या याद करूंके लिए उनका इंटरव्यू किया था और दूसरी बार उन पर बनने वाली एक डॉक्यूमेंट्री के लिए उनसेऑन कैमराबातचीत की थी। उसके बाद भी कभी-कभार फ़ोन पर उनसे मेरी बातचीत होती रही लेकिन फिर समय के साथ हमारा संपर्क टूट गया। क़रीब 4 साल पहले जब मैंने एक बार फिर से उनसे संपर्क करने की कोशिश की तो उनका फ़ोनसेवा में नहींथा। और फिरसिने एंड टी.वी. आर्टिस्ट्स एसोसिएशन” (सिंटा) से पता चला था कि शशिकला अब उस जगह नहीं रहतीं।

शशिकला का जन्म 3 अगस्त 1933 को शोलापुर-महाराष्ट्र के एक परंपरावादी मराठीजवळकरपरिवार में हुआ था। उनके पिता कपड़े के कारोबारी थे और 3 भाई और 3 बहनों में वो माता-पिता की 5वी संतान थीं। शशिकला के मुताबिक़, “वक़्त बदला, पिताजी ने मेरे चाचा के बेटे को पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेजा, जिसकी वजह से ख़र्चे बेतहाशा बढ़ गए। उधर कारोबार में ज़बर्दस्त घाटा हो गया और हम सड़क पर गए। मैं सार्वजनिक गणेशोत्सव के कार्यक्रमों में हिस्सा लेती थी और एक अच्छी अभिनेत्री मानी जाती थी। इसलिए लोगों की सलाह पर हमारा परिवार मुंबई चला आया ताकि मैं फ़िल्मों में काम करके पैसा कमा सकूं

ये आज़ादी से कुछ साल पहले की बात है। शशिकला की उम्र उस वक़्त क़रीब 11 साल थी। उस दौर में सिनेमा में उर्दू का बोलबाला था। शशिकला के मुताबिक़ उर्दू तो बहुत दूर की बात, उनकी हिंदी भी साफ़ नहीं थी। और फिर उम्र भी ऐसी कि छोटों में बड़ों में। ऐसे में काम मिलना आसान नहीं था। उन दिनों नूरजहां फ़िल्मज़ीनतमें अपनी बेटी के रोल के लिए किसी नई लड़की की तलाश में थीं। शशिकला उनसे मिलीं, इंटरव्यू दिया लेकिन ज़ुबान की वजह से पास नहीं हो पाईं। फ़िल्म ज़ीनत के निर्माता-निर्देशक नूरजहां के शौहर सैयद शौक़त हुसैन रिज़वी थे। उन्होंने शशिकला को फ़िल्म की क़व्वालीआहें ना भरीं शिक़वे ना किएमें बैठाने का फ़ैसला किया, जिसमें शशिकला का साथ आगे चलकरश्यामाके नाम से मशहूर हुईं अभिनेत्री बेबी ख़ुर्शीद और एक अन्य लड़की शालिनी ने दिया था।

(शशिकला के कथन के विपरीत वरिष्ठ फ़िल्म इतिहासकार श्री अरूण देशमुख के अनुसार इस क़व्वाली में परदे पर शशिकला, श्यामा, रेहाना, ज़ेबुन्निसा, यास्मीन और साथ में ख़ुद गायिकाएं ज़ोहराबाई और कल्याणीबाई मौजूद थीं| इनमें शालिनी नाम की कोई भी लड़की शामिल नहीं थी|)   


शशिकला के मुताबिक़, “उन दिनों स्क्रीन टेस्ट इसी तरह लिया जाता था। शौक़त साहब ने वादा किया था कि हम तीनों में से जो भी लड़की उस टेस्ट में सबसे अच्छा काम करेगी उसे 20 रूपए इनाम मिलेगा, और वो इनाम मैंने जीता। उन 20 रूपयों में हम सभी भाई-बहनों के लिए नए कपड़े ख़रीदे गए, 2 साड़ियां मेरे लिए आयीं और बहुत लंबे अरसे बाद घर में दीवाली मनाई गयी। शौक़त साहब ने 3 साल का कांट्रेक्ट किया जिसमें पहली शर्त उर्दू सीखने की थी।

ज़ुबान की वजह से फ़िल्मज़ीनतमें नूरजहां की बेटी का रोल मिल पाने का दुख था इसलिए मैंने क़सम खाई कि अब मैं अपनी मातृभाषामराठीनहीं बोलूंगी। इसीलिए आज मेरी ज़ुबान इतनी साफ़ है और हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी और गुजराती पर मेरी बराबर की पकड़ है  

(शशिकला जी के मुताबिक़ उन्होंने कैमरे का सामना पहली बार फ़िल्मज़ीनतमें किया था। लेकिन उनका नामज़ीनतसे एक साल पहले प्रदर्शित हुई, “प्रभात स्टूडियो-पुणेकी फ़िल्मचांद(1944) के क्रेडिट्स में भी नज़र आता है, जबकि इंटरव्यू के दौरान उन्होंने फ़िल्मचांदका कोई भी ज़िक़्र नहीं लिया था। शशिकला जी इन दिनों भारत में नहीं हैं अत: इस विषय में उनसे बातचीत कर पाना संभव नहीं हो पाया।)  

फ़िल्म ज़ीनत साल 1945 में प्रदर्शित हुई थी। सैयद शौक़त हुसैन रिज़वी की अगली फ़िल्मजुगनू(1947) में शशिकला हीरो दिलीप कुमार की बहन की भूमिका में नज़र आयीं। शशिकला के मुताबिक़ फ़िल्मजुगनूमें उनके काम से सैयद शौक़त हुसैन रिज़वी इतने ख़ुश हुए कि उन्होंने अपनी अगली फ़िल्म में शशिकला को हिरोईन बनाने का फ़ैसला कर लिया। लेकिन तभी मुल्क़ का बंटवारा हुआ और शौक़त और नूरजहां पाकिस्तान चले गए। नतीजतन शशिकला के लिए संघर्ष का दौर फिर से लौट आया।ऑल इंडिया पिक्चर्सकी डोली (1947) औरपगड़ी(1948) और अमेय चक्रवर्ती कीगर्ल्स स्कूल(1949) जैसी की कुछ फ़िल्मों में छोटी-छोटी भूमिकाएं करने के बाद शशिकलारणजीत मूवीटोनकी फ़िल्मनज़ारे(1949) में पहली बार हिरोईन बनीं। इस फ़िल्म में उनके हीरो आगा थे।    

फ़िल्मनज़ारेके बाद शशिकला बतौर हिरोईन केदार शर्मा की फ़िल्मठेस(1949) में भारतभूषण के साथ औरकुलदीप पिक्चर्सकी फ़िल्मजलतरंगमें रहमान के साथ नजर आयीं। निर्देशक सतीश निगम की फ़िल्मराजरानी(1950) में उन्होंने मीना शोरी की बेटी की भूमिका की तोआरज़ू(1950) में एक बार फिर से उन्हें दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौक़ा मिला। और फिरअजीब लड़की(1952),तीन बत्ती चार रास्ता”, “जीवन ज्योति”, “चाचा चौधरी” (सभी 1953) और  “शर्त(1954) जैसी कुछ फ़िल्में करने के बाद उन्होंने शादी कर ली। शशिकला के मुताबिक़ उनके पति ओम सहगल कुंदनलाल सहगल के परिवार से थे और उनका घी का अच्छा-ख़ासा कारोबार था। शादी के बाद पति को फ़िल्म बनाने का शौक़ चढ़ा। शशिकला के शब्दों में, “मैं हिरोईन, किशोर कुमार हीरो और मोहन सहगल निर्देशक थे। संगीत शंकर जयकिशन का था। 6 सालों में बनी ये फ़िल्मकरोड़पति(1961) हमें कंगाल कर गयी

फ़िल्मकरोड़पतिके निर्माण के दौरान ओम सहगल कर्ज़ में डूबते चले गए थे। नतीजतन पैसा कमाने के लिए शशिकला को जैसी भी फ़िल्में मिलीं, करनी पड़ीं। उस दौरान उन्होंने स्टंट फ़िल्में कीं, साईड और निगेटिव रोल किए,कर भला”, “भागमभाग”, “अरब का सौदागर”, “नौ दो ग्यारह”, “लालबत्ती”, “कैप्टेन किशोर”, “12 क्लॉक”, “मैडम एक्स वाय ज़ेड”, “सिंगापुर”, “कानून” “सुजाताआदि उनकी उसी दौर की फ़िल्में हैं। शशिकला के मुताबिक़, “संघर्ष था कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। बतौर हिरोईन मैं स्थापित हो नहीं पाई थी इसलिए कुंठाएं बढ़ती जा रही थीं। और तभी ताराचंद बड़जात्या जी का बुलावा आया जो बतौर निर्माता अपनी पहली फ़िल्म शुरू करने जा रहे थे।”   

ताराचंद बड़जात्या के बैनरराजश्री पिक्चर्सकी वो फ़िल्म थी आरती, जो साल 1962 में प्रदर्शित हुई थी। इस फ़िल्म में शशिकला को प्रदीप कुमार की भाभी की भूमिका दी गयी। शशिकला के मुताबिक, “वो भूमिका निगेटिव थी और मैं इतनी कुंठित हो चुकी थी मैंने क़सम खा ली कि इसके बाद मैं अभिनय छोड़ दूंगी। लेकिन फ़िल्म के निर्देशकफणी मजूमदारका कहना था कि इसके बाद तुम्हें फ़ुरसत ही नहीं मिलेगी। और हुआ भी यही। फ़िल्मआरतीके लिए मुझेफ़िल्मफ़ेयर अवार्डऔरबंगाल जर्नलिस्ट अवार्डसहित कई इनाम हासिल हुए और मैं स्टार बन गयी। ये जगह पाने में मुझे अट्ठारह साल लगे थे।

1960 के दशक में शशिकला नेहरियाली और रास्ता”, “गुमराह”, “हमराही”, “फूल और पत्थर”, “दादी मां”, “हिमालय की गोद में”, “अनुपमा”, “छोटी सी मुलाक़ात”, “नीलकमल”, “पैसा या प्यारजैसी कई फ़िल्मों में बेहतरीन निगेटिव भूमिकाएं कीं। फ़िल्मगुमराहके लिए उन्होंने एक बार फिर से फ़िल्मफ़ेयर अवार्डऔर गुजराती फ़िल्मसत्यवान सावित्रीके लिए गुजरात सरकार का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार हासिल किया। शशिकला का कहना है, “व्यस्तताओं ने इतना थका डाला था कि मैंने कुछ समय के लिए काम बंद कर दिया। लेकिन एक बार फिर से इंडस्ट्री से बुलावा आया। इस नए दौर में मुझेदुल्हन वोही जो पिया मन भाए”, “सरगमऔरख़ूबसूरतजैसी कुछ अच्छी फ़िल्में करने को मिलीं लेकिन तब तक माहौल पूरी तरह से बदल चुका था। 

दो बेटियों की मां शशिकला के मुताबिक, पति से काफ़ी पहले उनका अलगाव हो चुका था। आम लोगों के बर्ताव मेंबुरी औरतकी अपनी इमेज की वजह से झलकता असर भी उन्हें बेहद खलने लगा था। उधर इंडस्ट्री के बदले हुए माहौल में ख़ुद को ढाल पाना उनके लिए मुश्किल हो चला था। मानसिक दबाव और निराशाएं इतनी बढ़ गयी थीं कि वो विपश्यना के लिए इगतपुरी आश्रम जाने लगीं। उनका झुकाव आध्यात्म की ओर होने लगा। शशिकला का कहना है, “साल 1988 में बनी फ़िल्मघर घर की कहानीके दौरान घटी कुछ घटनाओं ने मुझे ऐसी चोट पहुंचाई कि मैंने फ़िल्मों से अलग हो जाना ही बेहतर समझा। मैंने मुंबई छोड़ दिया और शांति की तलाश में जगह जगह भटकने लगी। चारधाम यात्रा की, ऋषिकेश के आश्रमों में गयी। लेकिन सिर्फ़ द्वारकापुरी और गणेशपुरी के रमन महर्षि आश्रम में जाकर मुझे थोड़ी-बहुत शांति मिली वरना बाक़ी सभी जगहों पर धर्म को एक धंधे के रूप में ही पाया।

शशिकला की छोटी बेटी शैलजा उन दिनों कोलकाता में रहती थीं। एक रोज़ बेटी के एक पारिवारिक मित्र के ज़रिए शशिकला मदर टेरेसा के आश्रम तक जा पहुंचीं। शशिकला का कहना है, “एक तो अभिनेत्री, ऊपर सेबुरी औरतकी इमेज। पहले तो सभी ने मुझे शक़ की नजर से देखा। कई-कई इंटरव्यू हुए। शिशु भवन और फिर पुणे के आश्रम में मानसिक रोगियों, बीमार बुज़ुर्गों, स्पास्टिक बच्चों और कुष्ठ रोगियों की सेवा में रखकर कुछ दिन मेरा इम्तहान लिया गया। मरीज़ों की गंदगी साफ़ करना, उन्हें नहलाना, उनकी मरहम-पट्टी करना, इस काम में मुझे इतनी शांति मिली कि मैं भूल ही गयी कि मैं कौन हूं। मैं इम्तहान में पास हो गई। और फिर तीन महिने बाद कोलकाता में मदर से जब पहली बार मुलाक़ात हुई तो उनसे लिपटकर देर तक रोती रही। मदर के स्पर्श ने मुझे एक नयी ऊर्जा दी। अब फिर से वोही दिनचर्या शुरू हुई। शिशु भवन, मुंबई और गोवा के आश्रम, सूरत और आसनसोल के कुष्ठाश्रम, निर्मल हृदय-कालीघाट में मरणासन्न रोगियों की सेवा, लाशें तक उठाईं। उस दौरान मदर के कई चमत्कार देखे। मैं वहां पूरी तरह से रम चुकी थी|” 

साल 1993 में शशिकला घर वापस लौटीं तो पता चला उनकी बड़ी बेटी को कैंसर है। बेटी के बच्चे छोटे थे। दो साल बाद बेटी गुज़र गयी। शशिकला कहती हैं, “मदर ने हालात से लड़ने की ताक़त दी। सीरियलजुनूनऔरआहके ज़रिए मैंने फिर से अभिनय की शुरूआत की।सोनपरीऔरकिसे अपना कहेंजैसे सीरियलों के अलावा फ़िल्मों में भी मैं काफ़ी व्यस्त हो गयी शशिकला के मुताबिक़ पति के साथ उनके सम्बंध एक बार फिर से काफ़ी हद तक सामान्य हो चले थे, जो नैनीताल में बस चुके थे।

शशिकला अब दक्षिण मुंबई के कोलाबा में अपनी छोटी बेटी शैलजा के साथ रहती हैं जो कोलकाता से मुंबई शिफ़्ट हो चुकी हैं। हाल ही में शैलजा से बातचीत हुई तो पता चला शशिकला इन दिनों विदेश में हैं। हिंदी सिनेमा की सबसे ग्लैमरस और ख़ूबसूरतबुरी औरतशशिकला जवळकर सहगल आने वाले 3 अगस्त को 80 साल की होने जा रहीं हैं।

हाल ही में मिली (अपुष्ट) जानकारी के अनुसार 87 वर्षीया शशिकला अब अपनी दोहती/नातिन (बेटी की बेटी) के साथ पुणे में रहती हैं|

शशिकला का निधन 4 अप्रैल 2021 को 88 साल की उम्र में मुम्बई में हुआ|


We are thankful to

Mr. Arun Kumar Deshmukh for providing the picture and information about qawwali ‘aahein na bhari shikwe na kiye’.

Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Ms. Aksher Apoorva for the English translation of the write ups.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.


Shashikala on YT Channel BHD

Kyon Mujhe Itni Khushi De Di ke ghabrata hai dil” - Shashikala

                                                    ……Shishir Krishna Sharma

The first name to come to mind when one talks of Hindi cinemas glamorous vamps is that of Shashikala. The audience still hasn’t forgotten the 1960’s beautiful and chirpy “Bad Woman” Shashikala who carved a special niche for herself in Hindi cinema. Shashikala was not just a brilliant actress but when given the opportunity she also proved herself as an exceptional dancer. Soon to touch 80, Shashikala resides in Mumbai and is still of robust physical and mental health.

I met Shashikala twice at her flat in Vallabh apartment in Sejal Park situated on the link road in Jogeshwari west. I had met her for the first time for an interview for my Sahara Samay-Weekly’s column “Kya Bhooloon Kya Yaad Karoon” and then met her again while interviewing her “on camera” for a documentary that was being made on her. Even after that we would speak occasionally but then with passing time, we lost touch. 4 years ago, when I tried to get back in touch with her, her phone was apparently “not in service”. And then I came to know through the “Cine & T.V. Artistes Association (CINTAA)” that Shashikala does not stay there anymore.

Shashikala was born on 3rd August 1933 at Sholapur-Maharashtra in a traditional MarathiJavalkar family. Her father was a textile merchant and amongst 3 brothers and 3 sisters, she was her parent’s 5th child. According to Shashikala, “times changed, my father sent his younger brothers’ son to England for his further studies because of which our financial expenditure increased. At the sometime the business took an extreme hit and we lost everything. I used to participate in the public “Ganeshotsav” cultural programs and was considered a good actress.  Hence on people’s advice my family came to Mumbai so that I could work in films and earn money.”

This occurred a few years before independence. Shashikala was approximately 11 years at that time. During that era Urdu was a trend in cinema. According to Shashikala, Urdu was a big thing as her Hindi pronunciations were also not on the mark.  And then her age was such that she wouldn’t fit among the adults nor the children. In such circumstances it wasn’t easy to get work. At that time Noorjehan was looking for a fresh face to play her daughter in her film Zeenat. Shashikala met her, gave her interview but because of her bad pronunciations she couldn’t clear the interview. Film Zeenat’s director producer was Noorjehan’s husband Sayyad Shauqat Hussain Rizvi.  He decided to let Shashikala sit in for the films qawwaliaahein na bhareen shikwe na kiyewhere she was accompanied by Baby Khursheed who went on to be famous as “Shyama” and another girl called Shalini.

(Contrary to Shashikala ji’s statement, a very senior film historian Shri Arun Kumar Deshmukh says that the said qawwali was picturized on Shashikala, Shyama, Rehana, Zebunnisa and the singers Zohrabai and Kalyani bai. No girl with the name Shalini was there on the screen in this qawwali.)     

According to Shashikala, “in those days screen tests were taken in this way.  Shauqat Saheb had promised that among the 3 of us whoever would perform the best would receive Rs.20 from him as a reward and eventually, I won that reward. With those 20 rupees new clothes were brought for all the brother sisters, I was given 2 sarees and after a long time Diwali was celebrated at home. Shauqat Saheb signed me for a 3-year contract where the first condition was that I would learn Urdu. Because of my speech I lost out on the role of Noorjehan’s daughter in the film “Zeenat” and that made me so upset that I vowed never to speak my mother tongue ‘Marathi’ again. That’s why today I have complete command over languages like Hindi, Urdu, English and Gujrati.

(According to Shashikala ji, she faced the camera for the first time for the film “Zeenat”. But her name was seen in the credits for Prabhat Studio-Pune’sfilmChaand(1944) as well that had released a year before “Zeenat”, though during the interview she didn’t make any mention of the film “Chaand”. Shashikalaji is not in India these days hence it’s not been possible to get any clarification on this issue by her.)

Film Zeenat was released in the year 1945.  In Sayyad Shauqat Hussain Rizvi’s next film Jugnu(1947) Shashikala was seen playing hero Dilip Kumar’s sister. According to Shashikala, Sayyad Shauqat Hussain Rizvi was so happy with her work in the film “Jugnu” that he decided to cast Shashikala as his main lead in his next project. But then the partition took place and Shauqat and Noorjehan migrated to Pakistan. And so, Shashikala’s days of struggle returned once again. After playing small roles in movies like All India Pictures’sDoli” (1947) and “Pagree” (1948) and Amey Chakravorty’sGirls School(1949). Shashikala was cast as the main lead in Ranjit Movietone’s film Nazaare(1949). Her hero in the film was Agha.

After film Nazaare, Shashikala was seen as a heroine in Kedar Sharma’s film Thes(1949) with Bharat Bhushan and inKuldeep Picturesfilm Jaltarangwith Rehman. While she essayed the role of Meena Shourie’s Daughter in director Satish Nigam’s film Raj Rani(1950), she was once again got the chance to work with Dilip Kumar in the 1950 film “Aarzoo”. And then after doing a few films like Ajeeb Ladki(1952),Teen Batti Char Rasta”, “Jeewan Jyoti”, “Chacha Chawdhary(all 1953) and Shart(1954) she got married. According to Shashikala, her husband Om Sehgal was from, Kundanlal Sehgal’s family and he had his own flourishing Ghee business. After marriage her husband was inclined towards making a film. In Shashikala’s words, “I was the heroine, Kishore Kumar was the hero and Mohan Sehgal was the director. Music was composed by Shankar Jaikishan. Made in 6 years, our film Karodpati(1961) completely bankrupted us.

Om Sehgal kept sinking under debt during the making of the film Karodpati. Hence, to earn money, Shashikala had to make do with whatever films she was offered. During this phase she did stunt films, side and negative roles, Kar Bhala”, “Bhagambhag”, “Arab Ka Saudagar”, “Nau Do Gyarah”, “Lalbatti”, “Captain Kishore”, “12’O Clock”, “Madam XYZ”, “Singapore”, “Kanoon” “Sujataetc. are her films from this time. According to Shashikala, hard times refused to ease away. I hadn’t been able to establish myself as a heroine and hence frustrations were rising. And just then Tarachand Badjatya ji called on me as he was about to start his first film as a producer.

That was Tarachand Badjatya’s bannerRajshri Pictures’s film Aarti, which was released in the year 1962. Shashikala was given the role of Pradeep Kumar’s sister-in-law. According to Shashikala, “that was a negative role and I had become so frustrated that I had sworn to leave acting after this role. But the film’s Director Phani Majumdar said after this role you will be in high demand. And that’s what happened. For the filmAartiI received many awards like the Filmfare Awardand the Bengal Journalist Awardand I became a star. It took me 18 years to reach this stage.

In 1960’s Shashikala played many exceptional negative roles in films like Hariyali Aur Rasta”, “Gumrah”, “Humrahi”, “Phool Aur Patthar”, “Daadi Maa”, “Himalay Ki God Me”, “Anupama”, “Chhoti Si Mulaqat”, “Neel Kamal”, “Paisa Ya Pyar. She won another “Filmfare Award” for the film Gumrahand the Gujrat Government’s “Best Actress Award” for the Gujrati filmSatyawan Savitri. Shashikala Says, “preoccupations had tired me so much that I stopped work for some time. But then once again the industry beckoned me. During this new period, I got to do some good films like Dulhan Wohi Jo Piya Mann Bhaaye”, “SargamandKhoobsoorat” but till then the atmosphere had completely changed.  

Mother of two girls, according to Shashikala she had separated from her husband long back. But the effect of people’s behavior towards her due to her publicized “Bad Woman” image had started to bother her. At the same time, it was getting difficult for her to mold herself to the changed industry airs. Mental stress and failures started to take such a heavy toll on her that she started to visit the Igatpuri Ashram for Vipashyana. She started inclining towards spirituality. Shashikala says, “During the making of film Ghar Ghar Ki Kahani which released in 1988, some incidents shook her so deeply that I decided to separate myself from movies. I left Mumbai and wandered to many places in search of peace. I did the Char Dham Yatra, visited Ashrams in Rishikesh. But I found some peace only at Dwarkapuri and Ganeshpuri’s Raman Maharshi Ashram else I just found religion to be a business for the many others.

Shashikala’s younger daughter Shailja used to live in Kolkata during that time. One day through her daughter’s family friend she happened to visit Mother Teresa’s Ashram. Shashikala says, “Firstly I was an actress and to top it up I had a “Bad Woman” image. Initially everyone looked at me with suspicion. Many interviews took place. I did service at Shishu Bhawan and then Pune’s Ashram towards the mentally ill, sick elderly, spastic children and leprosy patients and was tested in this way. To clean up after the patients, giving them a bath, bandaging them, these things gave me so much peace that I just forgot where I was. Ultimately, I passed all the tests. And then after 3 months when I first met mother in Kolkata, I just hugged her and cried in her arms for a long time. Mother’s touch reenergized me. And then the same routine started. Shishu Bhawan, ashrams of Mumbai and Goa, Surat and Asansol’s leprosy asylum, service of the terminally ill at Nirmal Hridaya-Kalighat, I have even carried dead bodies. I saw many of Mothers miracles at that time. I had completely devoted myself there.

When Shashikala returned home in 1993, she came to know that her elder daughter had cancer. Her daughter’s children were quite young. Her daughter passed away after 2 years. Shashikala says, “Mother gave me the strength to face this situation. With serials Junoonand Aah, I once again started acting. Other than serials like Sonpariand Kisey Apna Kahein, I also got busy with many films.” According to Shashikala her relations with her husband had become good to a large extent. Her husband had settled in Nainital by then.

Now Shashikala stays with her younger daughter in South Mumbai’s Colaba as she had shifted from Kolkata to Mumbai. During my recent conversations with Shailja I came to know that Shashikala ji is abroad these days. Hindi cinema’s most glamorous and beautiful “Bad Woman” Shashikala Javalkar Sehgal is about to turn 80 on the coming 3rd of August.

According to the latest but unconfirmed information, 87-year-old Shashjikala ji is now living with her granddaughter (daughter’s daughter) in Pune.

Shashikala died in Mumbai on 4 April 2021, aged 88. 

6 comments:

  1. Oh my God Shashikalaji,
    You have lived your life in struggle, but at last you have obtained mental peace and I believe, you will stand before almighty in HEAVEN with your head raised after your work has finished on earth.
    Dadu Chicago

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  2. What documentary was made on her? Is it still available? Incredible work on your part - didn't know she was still going strong at such a big age & was just wondering whether her voice was the same as it was all those years ago? Would love to see that documentary!

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  3. dear mr.chatterji, the documentary which i "on camera" spoke to shashikala ji for, was produced by some private producer...i'm not aware if the said documentary was telecast somewhere or not as i'm not in touch with the producer since long...still i'll inform you in case i get any information in this regard...!!!
    thnx for the appreciation !!!

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  4. कुछ दिनों पहले विविध भारती पर शशिकला जी का लम्बा इंटर्व्यू प्रसारित हुआ था। उसमें कुछ हिस्से सुनने से छूट गए थे, जो आज आपके लेख से पढ़ कर जान लिए।
    एक और सुन्दर लेख! बहुत अच्छा लगा। अब आपके अगले लेखों का इंतजार रहने लगा है।
    धन्यवाद

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  5. महान अभिनेत्री शशि कला जी के विविध संस्मरण पढ़कर के अति आनंदित हुआ l शशि कला जी की अभिनय प्रतिभा का मैं कायल हूं lइस महान अभिनेत्री ने अपने हाव-भाव से खलनायिका की छवि को इतने सुंदर रूप से प्रस्तुत किया है कि मैं इनको खलनायक प्राण के समकक्ष रखता हूं l यह बड़े दुख की बात है कि जिस तरह से पश्चिमी जगत में अभिनेताओं को , कलाकारों को जो सम्मान और दर्जा दिया जाता है हम उसका 1% भी नहीं दे पाते l शशि कला जी को मेरा शत-शत नमन और आपको बहुत-बहुत धन्यवाद l. ------ एसकेएम ओझा

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  6. प्रिय शिशिर जी, महान कलाकार नेमो जो लखनऊ से आए थे और जिन्होंने 1936 की फिल्म देवदास 1955 की फिल्म श्री 420 और 1956 की फिल्म जागते रहो में अविस्मरणीय अभिनय किया था lकृपया उनके बारे में कुछ बताइए दो महान फिल्म श्री 420 और जागते रहो में नेमो का अभिनय सभी कलाकारों के कंपैरिजन में सर्वश्रेष्ठ था मुझे आश्चर्य है जागते रहो के बाद में उनकी कोई फिल्म देखने को नहीं मिली --एसकेएम ओझा

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