“सांझ सवेरे, नैन तेरे मेरे, मिलते रहे हैं मिलते रहेंगे" - प्रेमेन्द्र
..…..शिशिर कृष्ण शर्मा
'प्रेमेन्द्र' एक ऐसा ही नाम हैं, जिन्होंने 1970 और 71 के दो सालों में 'होली आयी रे', 'दुनिया क्या जाने' और 'साज़ और सनम' समेत कुल 5 जानीमानी फ़िल्में बतौर हीरो करने के बाद फ़िल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया था| और फिर बदलती पीढ़ियों के साथ दर्शकों के ज़हन में बसी उनकी यादें धुंधलाती चली गयीं|
साल दर साल गुज़रते गए| प्रेमेन्द्र के बारे में लिखने की मेरी इच्छाशक्ति धूमिल होने लगी| लेकिन अचानक ही एक रोज़ ‘बीते हुए दिन' के प्रशंसक और सहयोगी, ग्वालियर के रहने वाले श्री आनंद पाराशर जी के माध्यम से फ़ोन पर मेरा संपर्क प्रेमेन्द्र के छोटे भाई श्री रामेश्वरनाथ उर्फ़ चुनचुन पाराशर जी से हुआ जो फ़तेहपुर सीकरी में रहते हैं| उन्होंने प्रेमेन्द्र जी के बारे में जानकारी तो दी ही, साथ ही अपने भतीजे यानी प्रेमेन्द्र जी के बेटे मुनीश से भी मेरी बात कराई जो मुम्बई के अंधेरी (पश्चिम) में रहते हैं, लेकिन उन दिनों फतेहपुर सीकरी में थे| और फिर लगभग डेढ़ महीने बाद, 7 अगस्त 2023 की दोपहर मुनीश जी के घर पर उनसे उनके पिता के बारे में मेरी विस्तार से बातचीत भी संपन्न हो ही गयी|
प्रेमेन्द्र जी का जन्म 2 दिसंबर 1942 को उनके ननिहाल आगरा में हुआ था| उनके पिता मुरारीलाल पाराशर जी की गिनती फ़तेहपुर सीकरी के नामी लोगों में होती थी| वो 86 गांवों के ज़मींदार होने के साथ साथ लगातार 25 सालों तक नगरपालिका के चेयरमैन भी रहे थे| उनके 3 बेटों और 3 बेटियों में प्रेमेन्द्र सबसे बड़े थे| उनसे छोटी 2 बहनें स्नेहलता और मंजु, चौथे नंबर पर भाई चुनचुन जी, फिर बहन संध्या और फिर सबसे छोटे भाई राजेन्द्रनाथ जी|
उन्हीं दिनों फ़िल्म 'लीडर' की शूटिंग के लिए दिलीप कुमार फ़तेहपुर आए तो 6 फ़ीट 2 इंच लम्बे खूबसूरत प्रेमेन्द्र को देखते ही उन्होंने कहा, ‘तुम बिल्कुल हीरो लगते हो, मुम्बई आ जाओ'| कुछ समय बाद अखबारों में, पूना में नये नये शुरू हुए फ़िल्म संस्थान का विज्ञापन छपा| प्रेमेन्द्र उन दिनों बी.एस.सी. फ़ाइनल में थे| अपने दोस्तों के ज़ोर देने पर उन्होंने फ़िल्म संस्थान का फार्म भर दिया| लिखित परीक्षा और इंटरव्यू दिल्ली में हुए| इंटरव्यू बोर्ड में जगतमुरारी, बीना राय और रोशन तनेजा थे| प्रेमेन्द्र को 1963 के बैच में दाखिला मिल गया|
उस बैच में उनके सहपाठी थे, शत्रुघ्न सिन्हा, अनिल धवन, असरानी, सुभाष घई और बलदेव खोसा| शत्रुघ्न सिन्हा से प्रेमेन्द्र की गहरी दोस्ती हो गयी थी| साल 1966 में पासआउट होने के बाद प्रेमेन्द्र जी पूना से मुम्बई आए| कुछ समय वो एक गेस्ट हाउस में रहे और फिर अंधेरी (पश्चिम) स्थित लल्लूभाई पार्क की ललिता बिल्डिंग के फ्लैट नंबर 5 में किराए पर रहने लगे| कुछ सालों बाद उन्होंने वोही फ्लैट ख़रीद लिया था, जिसमें आज मुनीश रहते हैं|
With Kumud Chhugani in 'Holi Aayi Re' |
मुनीश बताते हैं, “पापा चाहते थे कि वो त्रिलोकीनाथ की जगह किसी नये और आकर्षक नाम के साथ फ़िल्मों में डेब्यू करें| उन्हें 'प्रेम' नाम पसंद आया जो न्यूमरोलॉजी के हिसाब से भी उनपर सही बैठता था| ये वो समय था जब धर्मेन्द्र स्टार बन चुके थे और जीतेंद्र स्टारडम की तरफ़ बढ़ रहे थे| ऐसे में पापा के दोस्तों ने उन्हें भी धर्मेन्द्र और जीतेंद्र की तर्ज पर ही कोई फ़िल्मी नाम रखने की सलाह दी| और तब पापा ने अपना फ़िल्मी नाम 'प्रेम' से बदलकर 'प्रेमेन्द्र' रख लिया था|”
प्रेमेन्द्र जी की शादी साल 1968 में हुई| उनकी पत्नी मंदा लन्दन में रहने वाले एक गुजराती मूल के परिवार से थीं| उनका पूरा नाम मंदाकिनी पंड्या था| अपनी भारत यात्रा के दौरान वो फ़िल्म की शूटिंग देखने के लिए 'होली आयी रे' के सेट पर आयी थीं जहां उनकी मुलाक़ात प्रेमेन्द्र जी से हुई, दोनों में दोस्ती हुई और फिर उन्होंने शादी कर ली थी|
प्रेमेन्द्र का करियर केवल 6 साल और 5 फ़िल्मों तक ही सीमित रहा साल 1966 में वो फ़िल्म संस्थान से पासआउट होकर मुम्बई आए| फ़िल्म 'होली आई रे' और 'जोगी' के अलावा उन्होंने 3 और फ़िल्में, बतौर हीरो कीं| वो थीं ‘दीदार', 'दुनिया क्या जाने' और 'साज़ और सनम'| 'होली आई रे' और ‘दीदार' साल 1970 में रिलीज़ हुईं, और 'दुनिया क्या जाने' और 'साज़ और सनम' 1971 में| 'जोगी' लगभग 80 प्रतिशत पूरी होने के बाद पैसे की कमी की वजह से अटक गयी थी| इसे पूरा होने में लगभग 12 साल लगे और ये फ़िल्म साल 1982 में जाकर रिलीज़ हो पायी थी| हालांकि तब तक प्रेमेन्द्र जी को फ़िल्मों से अलग हुए एक दशक बीत चुका था|
'Deedar' |
निर्माता-निर्देशक जुगलकिशोर की फ़िल्म 'दीदार' में प्रेमेन्द्र की नायिका अंजना मुमताज़ थीं और इस फ़िल्म के दूसरे हीरो थे, धीरज कुमार| मद्रास की कंपनी 'चित्रालय पिक्चर्स' की फ़िल्म ‘दुनिया क्या जाने' के निर्देशक श्रीधर थे और संगीत शंकर जयकिशन का था| इसमें प्रेमेन्द्र की नायिका साउथ की मशहूर अभिनेत्री भारती थीं| 1930 के दशक से चली आ रही जानीमानी फ़िल्म कंपनी 'वाडिया मूवीटोन' के बैनर में बनी ‘साज़ और सनम' में प्रेमेन्द्र की नायिका रेखा थीं| जे.बी.एच.वाडिया द्वारा निर्मित और निर्देशित ‘साज़ और सनम' ‘वाडिया' के बैनर में बनी आख़िरी हिन्दी फ़िल्म थी|
इन 5 फ़िल्मों के अलावा करियर की शुरूआत में ही प्रेमेन्द्र जी ने 'आप से प्यार हुआ', ‘और पत्थर रो दिया', ‘दिल एक फूल है', ‘गंगा के उस पार', ‘मानो न मानो', ‘मुशायरा', ‘नादान बालमा' जैसी और भी लगभग 10 - 12 फ़िल्में साइन की थीं| लेकिन ये सभी फ़िल्में किसी न किसी वजह से बंद होती चली गयीं| एक संपन्न ज़मींदार ख़ानदान में जन्मे और राजसी माहौल में पलेबढ़े प्रेमेन्द्र जी के लिए तमाम असुरक्षाओं से भरी इन परिस्थितियों के साथ समझौता कर पाना संभव नहीं था| मुनीश के शब्दों में कहें तो - "पापा का रॉयल खून आड़े आ जाता था| और फिर वो हीरो के अलावा और कोई रोल करने को भी तैयार नहीं थे| इसलिए उन्होंने फ़ैसला कर लिया कि अब मैं फ़िल्में नहीं करूंगा|’’
साल 1992 तक प्रेमेन्द्र जी का बिज़नेस बहुत अच्छा चला| लेकिन साल 1993 में मुम्बई में बम धमाके हुए तो यहां का होटल व्यवसाय लगभग ठप्प ही हो गया| नतीजतन प्रेमेन्द्र जी के बिज़नेस का ग्राफ़ भी एकदम से नीचे आ गया| हालांकि तब तक बच्चे बड़े हो चुके थे, दोनों बेटे काम करने लगे थे, सो घर उन्होंने संभाल लिया| ऐसे में प्रेमेन्द्र जी अपने वृद्ध पिता की सेवा और पारिवारिक संपत्ति की देखभाल के लिए फ़तेहपुर चले गए| उन्हीं दिनों उनकी पत्नी मंदा जी को भी अपनी बीमार मां की देखभाल के लिए लन्दन जाना पड़ा| मंदा जी अब लन्दन में रहती हैं|
प्रेमेन्द्र जी के बड़े बेटे ऋषि भी अभिनेता थे| उन्होंने ईटीवी (उर्दू) के धारावाहिक 'हमारी ज़ीनत', दूरदर्शन के 'सिराजुद्दौला' और ज़ीटीवी के 'गैम्बलर' के अलावा दो गुजराती फ़िल्मों और कुछ टीवी विज्ञापनों में भी काम किया था| अनिल शर्मा की फ़िल्म 'क़त्लेआम' में उनका अहम रोल था, लेकिन ये फ़िल्म अधूरी रह गयी| ऋषि फ़िल्मों में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे| लेकिन बात नहीं बनी तो साल 2004 में वो भी मां के पास लन्दन चले गए| और फिर शादी करके वहीं बस गए|
मुनीश 'डी.एच.एल', 'शॉपर्स स्टॉप' और 'फारेस्ट एसेंशिअल्स' जैसी बड़ी कंपनियों से जुड़े रहे| वो मुम्बई में अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहते हैं|
प्रेमेन्द्र जी की सबसे छोटी बेटी शिखा एक वास्तुशास्त्री हैं और पति के निधन के बाद अब दिल्ली में रहती हैं|
साल 1991 में प्रेमेन्द्र जी को आंतों की बीमारी हुई, जिसने असाध्य रूप ले लिया| साल 2019 में उनकी गर्दन में एक गांठ हुई, जांच में कैंसर का पता चला, 23 अक्टूबर 2019 को प्रेमेन्द्र जी को मुम्बई लाया गया जहां टाटा अस्पताल में उनका इलाज शुरू हुआ लेकिन बीमारी बढ़ती चली गयी|
अफ़सोस, कि कोरोनाकाल की पाबंदियों की वजह से प्रेमेन्द्र की पत्नी मंदा, बेटी अंजली और बेटा ऋषि उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए भारत नहीं आ पाए थे|
We are thankful to –
Mr. Harish Raghuvanshi (Surat) & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ (Kanpur) for their valuable suggestion, guidance, and support.
Mr. Anand Parashar (Gwalior) for connecting me with Parashar family.
Dr. Ravinder Kumar (NOIDA) for the English translation of the write up.
Mr. S.M.M.Ausaja (Mumbai) for providing movies’ posters.
Mr. Manaswi Sharma (Zurich-Switzerland) for the technical support.
Premendra on YT Channel BHD
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