"दो गज़ ज़मीन के नीचे" – इम्तियाज़ ख़ान
.........शिशिर
कृष्ण शर्मा
‘मधुमती’, ‘बीस
साल बाद’ और
‘वो कौन
थी’ जैसी
रहस्य-रोमांच
से भरपूर
फ़िल्में हमेशा
से मुझे
अपनी ओर
आकर्षित करती
आयी हैं
और मैं
आज भी
इन्हें देखने
का कोई
मौक़ा नहीं
छोड़ता| जब
कलर फ़िल्मों
का दौर
आया तो
इस रहस्य-रोमांच
के साथ
रामसे ब्रदर्स
की हॉरर
फिल्में भी
जुड़ गयीं| साल 1972
में रिलीज़
हुई
‘दो गज़
ज़मीन के
नीचे’
रामसे के
बैनर में
बनी पहली
हॉरर फिल्म
थी जिसकी
ज़बरदस्त कामयाबी
ने रामसे
को पूरी
तरह से
हॉरर फिल्मों
के निर्माण
में उतार
दिया था| मैंने ये
फ़िल्म इसकी
रिलीज़ के
क़रीब 7-8
साल बाद
अपनी किशोरावस्था
में तब
देखी थी
जब ये
उस दौर
के चलन
के मुताबिक़
मेरे शहर
देहरादून में
री-रिलीज़
हुई थी| इस फ़िल्म
में मुझे
विलेन इम्तियाज़
ख़ान ने
सबसे ज़्यादा
प्रभावित किया
था| पतला-छरहरा
शरीर, ऊंचा
क़द, रफ़-टफ़
चेहरा, सहज
अभिनय, कुल
मिलाकर बेहद
आकर्षक व्यक्तित्व| और जब
पता चला
कि ये
शोले के
गब्बरसिंह के
बड़े भाई
हैं तो
वो प्रभाव
और आकर्षण
और भी
ज़्यादा बढ़
गया था|
साल
दर साल
गुज़रते गए| अपना शहर
छोड़कर मैं
मुम्बई की
भीड़ का
हिस्सा हो
गया| इस
महानगर ने
मुझे एक
फ़िल्म इतिहासकार
और लेखक
की पहचान
दी| और
फिर एक
वक़्त ऐसा
आया जब
मेरी मुलाक़ात
इम्तियाज़ ख़ान
से हुई
और मुझे
कई महिनों
तक उनके
साथ एक
प्रोजेक्ट पर
काम करने
का मौक़ा
मिला| दरअसल
इम्तियाज़ जी
बतौर डायरेक्टर
और अमजद
ख़ान बतौर
एक्टर शुरू
से ही
नाटकों से
जुड़े हुए
थे| इनका
अंग्रेज़ी नाटक
‘लूट’अपने
दौर के
सुपरहिट नाटकों
में से
था जिसे
अब हिन्दी
में किये
जाने की
योजना थी| नाटक के
हिन्दी अनुवाद
में इम्तियाज़
जी का
सहयोग करने
के साथ
ही मैंने
इसमें एक
अहम किरदार
भी निभाया
था| अंग्रेज़ी
नाटक में
जो रोल
अमजद ख़ान
करते थे, हिन्दी में
वो रोल
टीवी के
जानेमाने अभिनेता
चैतन्य अदीब
ने किया
था|
चैतन्य स्वर्गीय
अभिनेता प्रेम
अदीब के
भाई के
पोते हैं| ‘लूट’ की तैयारियों
के दौरान
मैंने इम्तियाज़
जी का
इंटरव्यू भी
कर लिया
था,
जो दैनिक
राजस्थान पत्रिका
में छपा
था|
जयंत
ने आगे
चलकर बतौर
चरित्र अभिनेता
भी ख़ासी
लोकप्रियता बटोरी| 1970 के
दशक में
जयंत के
दोनों बेटे
भी पिता
के पदचिह्नों
पर चलकर
स्टार बने| छोटे बेटे
अमजद ख़ान
को जहां
1975 में रिलीज़
हुई मल्टीस्टारर
‘शोले’ ने
स्टार बनाया,
वहीं बड़े
बेटे इम्तियाज़
ख़ान को
कामयाबी मिली
थी 1972
में बनी
कम बजट,
लेकिन उस
दौर की
ब्लॉकबस्टर हॉरर
फ़िल्म
‘दो गज़
ज़मीन के
नीचे’ से| हालांकि इम्तियाज़
ख़ान कहते
हैं, “मेरी
दिलचस्पी डायरेक्शन
में थी
और मैं
कोशिश भी
इसी के
लिए कर
रहा था| रंगमंच के
क्षेत्र में
बतौर राईटर-डायरेक्टर
पहले से
ही मेरी
पहचान बन
चुकी थी| लेकिन एक्टिंग
में मुझे
मजबूरन आना
पड़ा था| हालांकि बचपन
में मैं
कुछ फ़िल्मों
में बतौर
चाइल्ड आर्टिस्ट
काम कर
ज़रूर चुका
था|”
इम्तियाज़
जी का
जन्म 15
अक्तूबर 1942
को पेशावर
में हुआ
था| जन्म
के कुछ
समय मां
उन्हें साथ
लेकर पति
के पास
मुम्बई आ
गयी थीं| इम्तियाज़ ख़ान
ने 1951 में बनी
फिल्म
‘नाज़नीन’ में
पहली बार
कैमरा फ़ेस
किया था| प्रोड्यूसर पी.एन.अरोड़ा
की इस
फिल्म के
नायक-नायिका
नासिर ख़ान
और मधुबाला
थे| संगीत
ग़ुलाम मोहम्मद
का था| इम्तियाज़ और
अमजद दोनों
ही भाई
इस फ़िल्म
में तलत
महमूद के
गाये गीत
‘चांदनी रातों
में जिस
दम याद
आ जाते
हो तुम’ में नज़र
आए थे|
इम्तियाज़
ख़ान बताते
हैं,
“फ़िल्म ‘नाज़नीन’
मेरे चाचा
नज़ीर
(एन.के.झिरी)
ने डायरेक्ट
की थी| इसके बाद
उन्होंने किशोर
कुमार और
श्यामा की
फ़िल्म
‘चार पैसे’ डायरेक्ट की
जो साल
1955 में
रिलीज़ हुई| फिर वो
पाकिस्तान चले
गए थे| मैंने
‘नाज़नीन’
के अलावा
नानाभाई भट्ट
की
‘वतन’ समेत
चार-पांच
फिल्मों में
बतौर चाइल्ड
आर्टिस्ट काम
किया|
ख्वाजा अहमद
अब्बास की
1962 में
बनी फिल्म
‘ग्यारह हज़ार
लड़कियां’ में
भी मेरा
अहम रोल
था| लेकिन
मेरा मन
बार-बार
डायरेक्शन की
तरफ़ भाग
रहा था|
उन दिनों
के.आसिफ़
‘लव एंड
गॉड’ बना
रहे थे, सो मैं
उनका असिस्टेंट
बन गया|”
‘लव
एंड गॉड’
के हीरो
गुरूदत्त थे|
फ़िल्म की
कुछ ही
रीलें बनी
थीं कि
उनका निधन
हो गया| उधर फ़ायनेंसर
शापुरजी पालनजी
ने भी
फिल्म से
हाथ खींच
लिया| फिर
कुछ समय
बाद के.आसिफ़
गुज़र गए| इस वजह
से रूक
रूक के
बन रही
ये फ़िल्म
अधूरी ही
रह गयी
थी| उस
दौरान इम्तियाज़
ख़ान ने
फ़िल्म
‘हमारा घर’
(1964) में
ख्वाजा अहमद
अब्बास को
भी असिस्ट
किया| साथ
ही कार्लोवी
वेरी इंटरनेशनल
फिल्म फेस्टिवल
में शामिल
होने जा
रही अब्बास
की फ़िल्म
‘शहर और
सपना’
(1963) की
स्क्रिप्ट का
अंग्रेज़ी रूपांतरण
भी किया| इम्तियाज़ कहते
हैं, “वो
मेरी ज़िंदगी
का सबसे
ख़ुशगवार दौर
था क्योंकि
तब मेरा
उठना-बैठना
साहिर, कृष्णचंदर
और अली
सरदार जाफ़री
जैसे ज़हीन
लोगों के
बीच होता
था|”
बतौर
स्वतन्त्र निर्देशक
जो पहली
फ़िल्म इम्तियाज़
ख़ान को
मिली वो
थी
‘ज़िंदगी की
राहें’| शुरू
में इस
फिल्म के
हीरो-हिरोईन
संजय ख़ान
और अलका
थे|
फिर उनकी
जगह संजीव
कुमार और
राधा सलूजा
आ गए| लेकिन ये
फ़िल्म अधूरी
रह गयी| इम्तियाज़ जी
कहते हैं, “संघर्ष
का दौर
फिर से
शुरू हो
गया|
नतीजतन मुझे
फ़िल्म
‘हीर रांझा’ में चेतन
आनंद का
असिस्टेंट बनना
पड़ा,
हालांकि तब
तक ये
फ़िल्म क़रीब
क़रीब पूरी
हो चुकी
थी| उसके
बाद मैंने
कुछ वक़्त
तक चेतन
साहब को
‘हंसते ज़ख्म’ में भी
असिस्ट किया| उसी दौरान
रामसे से
‘दो गज़ ज़मीन के नीचे’ में
मेन विलेन
के रोल
का ऑफर
मिला तो
हालात ने
मुझे फ़ौरन
हां कहने
पर मजबूर
कर दिया|”
फ़िल्म
‘दो गज़
ज़मीन के
नीचे’
की ज़बरदस्त
कामयाबी ने
इम्तियाज़ ख़ान
के करियर
को एक
नया मोड़
दे दिया|
1970
के दशक
में उन्होंने
‘यादों की
बरात’, ‘धर्मात्मा’, ‘ज़ख़्मी’, ‘ज़ोरो’, ‘काला
सोना’, ‘क़बीला’ और
‘दरवाज़ा’ जैसी
कई हिट
फिल्मों में
एक से
बढ़कर एक
भूमिकाएं कीं| उनका करियर
लगातार नयी
ऊंचाइयां हासिल
करता जा
रहा था| लेकिन तभी
एक जाने
माने अख़बार
ने उस
दौर की
एक टॉप
हिरोईन के
साथ इम्तियाज़
के रिश्तों
को लेकर
बेहद चटपटा
लेख छाप
दिया| ऐसे
में उस
हिरोईन को
इम्तियाज़ से
न सिर्फ़
कन्नी काट
लेनी पड़ी,
बल्कि कम्प्लीशन
पर पहुंच
चुकी अपनी
उन चारों
फिल्मों के
लिए भी
उन्होंने डेट्स
देने से
साफ़ इनकार
कर दिया
जिनमें इम्तियाज़
काम कर
रहे थे| नतीजतन इम्तियाज़
ख़ान के
एक्टिंग करियर
का ग्राफ़
ज़मीन पर
आ गया|
इम्तियाज़
कहते हैं, “उस
दौर में
मेरा ध्यान
एक बार
फिर से
डायरेक्शन की
तरफ़ गया
और मुझे
फ़िल्में मिलने
भी लगीं| लेकिन 1982
में रिलीज़
हुई
‘प्यारा दोस्त’ के अलावा
बाक़ी सभी
फ़िल्में अलग-अलग
वजहों से
अधूरी रह
गयीं| इनमें
सुनील दत्त, रीना राय
की
‘कृष्ण करतार
रहीम’, जीतेंद्र, अमजद, बिंदु
की
‘पत्थर की
मुस्कान’ और
‘फ़ीरोज़ ख़ान, सुलक्षणा पंडित
‘शिकार शिकारी
का’ जैसी
बड़ी फ़िल्में
भी शामिल
थीं|”
फ़िल्मों
में इम्तियाज़
जी का
करियर भले
ही चल
नहीं पाया
हो लेकिन
टीवी शोज़
के टॉप
के डायरेक्टरों
में अपनी
जगह बनाने
में वो
जल्द ही
कामयाब हो
गए| उन्होंने
कई गुजराती
धारावाहिकों के
अलावा दूरदर्शन
के लिए
‘अनकही’, ‘नूरजहां’, ‘मानो
या न
मानो’ और
स्टार प्लस
के लिए
‘दीवारें’
जैसे हिट
शोज़ डायरेक्ट
किये|
इम्तियाज़
ख़ान का
निधन 77
साल की
उम्र में
15 मार्च
2020 को
मुम्बई में
हुआ|
We
are thankful to –
Mr.
Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.
Mr.
S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.
Ms.
Aksher Apoorva, Mr. Gajendra Khanna & Ms. Maitri Manthan for the English
translation of the write ups.
Mr.
Manaswi Sharma for the technical support including video
editing.
Imtiaz Khan on YT Channel BHD
"Do Gaz Zameen Ke Neeche" – Imtiaz Khan
.........Shishir
Krishna Sharma
Thrill-suspense based Films like ‘Madhumati’, ‘Bees Saal
Baad’ and ‘Who Kaun Thi’ have always attracted me and I never leave an
opportunity to watch such movies again and again. With the onset of colour
films, the horror films of Ramsay Brothers also joined them in attracting me.
The 1972 release ‘Do Gaz Zameen Ke Neeche’ was the first horror film made under
the ‘Ramsay Brothers’ whose runaway success made them dedicate themselves
completely to the production of horror films. I saw this film in my youth 7-8
years later when as per the culture then, it was re-released in my hometown
Dehradun. The movie’s villain Imtiaz Khan had impressed me the most. Thin, fair
skinned, tall, a rough and tough face as well as effortless acting gave him an
impressive personality. When I came to know that he is the elder brother of
Sholay’s Gabbar Singh, his impression and attraction increased manifold for me.
Time meanwhile flew by. I left my hometown and joined the
crowds of Mumbai. This megacity gave me recognition as a Film Historian and Writer.
One day I not only met Imtiaz Khan but also got an opportunity to work with him
on a project over many months. Imtiaz ji and Amjad Khan had been associated since
long with theatre as a director and actor respectively. Their English play
‘Loot’ was very popular during its time and now it
was proposed to be played in Hindi too. Along with assisting Imtiaz ji in the
Hindi translation of the play, I also played an important character in it. The
role which Amjad Khan used to play in the English original was played in Hindi by TV’s famous actor Chaitanya
Adeeb. Chaitanya is the grandson of the brother of the Late actor Prem Adeeb.
During the preparation of ‘Loot’, I also interviewed Imtiaz ji which was then
published in Rajasthan Patrika.
Imtiaz Khan’s paternal Grandfather Sayd Ahmed Khan belonged
to a Peshawar based Pathan family and was the ADC of His Royal Highness,
Maharaja Jai Singh of Alwar. Both his sons Jehangir and Zakaria Khan were also
holding government jobs there like their father. While, Jehangir Khan was Alwar’s
Superintendent of Police, Zakaria Khan was a Second Lieutenant in the Royal
Cavalry. This was in the beginning of 1930s and Talkie films had just arrived. They
both were so attracted by them that they resigned from their respective job and
came to Mumbai with dreams of working in films. Unfortunately, Jehangir Khan
sadly passed away in a road accident shortly after coming to Mumbai. By then
Zakaria Khan had already become a star with the screen name of Jayant after
working in movies under producer Shankarbhai Bhatt and Vijay Bhatt’s banner
‘Prakash Pictures’.
Jayant went on to become a popular character actor as well in
coming times. During the 1970s, both the sons of Jayant also went on to become stars.
While the younger son Amjad Khan became a star with the 1975 multistarrer
‘Sholay’, the elder son Imtiaz Khan became popular with the low budget sleeper
hit of 1972, ‘Do Gaz Zameen Ke Neeche’. However, Imtiaz Khan recalls, “I was
more interested in direction and my efforts were in the same direction. I had
already become known as a writer-director in the theatre world, but I was
forced to take up acting. Though I had already worked in a couple of films as a
child artist during my childhood”.
Imtiaz ji was born on 15th October 1942 in
Peshawar. Shortly after his birth, his mother joined his father in Mumbai.
Imtiaz Khan first faced the camera in ‘Naazneen’ (1951). The lead actor-actress
of this P N Arora production were Nasir Khan and Madhubala. Music of the film
was given by Ghulam Mohammad. Both the brothers, Imtiaz and Amjad were seen in
this film in Talat Mahmood song, ‘Chandni Raton Mein Jis Dum Yaad Aa Jaate Ho
Tum’.
Imtiaz Khan says, “Film Naazneen was directed by my paternal
uncle Nazir (N K Ziree). Later he directed Kishore Kumar-Shyama starrer ‘Chaar
Paise’ which released in 1955. He migrated to Pakistan after that. Apart from ‘Naazneen’
I acted as a child artist in 4-5 more films including Nanabhai Bhatt’s ‘Watan’.
I also played an important role in Khwaja Ahmed Abbas’s film ‘Gyarah Hazaar
Ladkiyaan’ (1962). However, my inclination towards becoming a director was
increasing day by day. K.Asif was making ‘Love and God’ at that time and I joined
him as an assistant for the same.”
The hero of ‘Love and God’ was Guru Dutt. Just a few reels
of the movie were canned when he suddenly passed away. On the other hand, financier
Shapoorji Pallonji also dissociated himself from the film. Then K.Asif also
passed away after some time. As a result, the production of this movie which
was progressing slowly, came to a grinding halt and it remained incomplete.
During this time, Imtiaz ji also assisted Khwaja Ahmed Abbas for his film
‘Hamara Ghar’ (1964). At the same time, he also did English translation of
Abbas’s film ‘Shahar aur Sapna’ which was being sent for the Karlovy Vary
International film Festival. Imtiaz ji says, “That was the happiest time of my
life as I was in regular company of distinguished personalities like Sahir,
Krishan Chander and Ali Sardar Jaffery”.
The first independent film as a director which Imtiaz Khan
got was ‘Zindagi Ki Raahen’. Initially its hero-heroine were Sanjay Khan and
Alka respectively. Later they were replaced by Sanjeev Kumar and Radha Salujba.
However, the film remained incomplete. Imtiaz ji says,
“My struggle period started once again.
As a result, I became Chetan Anand’s Assistant for ‘Heer Ranjha’ though it was
already nearing completion. After that I also assisted him for some time on
‘Hanste Zakham’. Around the same time, when Ramsays offered me the role of the
villain for ‘Do Gaz Zameen Ke Neeche’, I was forced to agree to it due to the
circumstances.”
The stupendous success of the movie ‘Do Gaz Zameen Ke
Neeche’ gave a new turn to his career. During the 1970s, Imtiaz ji played
important roles in many hit films like ‘Yaadon Ki Baaraat’, ‘Dharmatma’,
‘Zakhmi’, ‘Zorro’, ‘Kala Sona’, ‘Kabeela’ and ‘Darwaza’. His career was
reaching new heights. However, at that time, a well-known newspaper, published
a spicy writeup linking him to a top heroine of the time. This resulted into the
heroine not only dissociating herself from him but also she coldly refused to
give dates for all the four movies nearing completion which Imtiaz also was
working in. As a result, Imtiaz Khan’s career graph came to a halt with a dash.
Imtiaz says, “At the time, my concentration started
returning towards direction and I started getting films as well. Unfortunately,
except the 1982 release, ‘Pyara Dost’ all others remained incomplete due to
various reasons. These included big films like Sunil Dutt-Reena Roy’s ‘Krishna
Kartar Raheem’, Jeetendra-Amjad-Bindu’s ‘Patthar Ki Muskaan’ and Feroz
Khan-Sulakshana Pandit’s ‘Shikar Shikari Ka’.”
Though his film career did not last long, he managed to
establish himself as a top TV show director soon. Along with Gujarati serials, he
also directed hit shows like Doordarshan’s ‘Ankahi’, ‘Noorjehan’, ‘Maano Ya Na
Maano’ and Star Plus’s ‘Deewarein’.
Imtiaz Khan’s wife Kritika Desai is a popular TV serial
actor. After ‘Loot’, he was planning to revive his old play ‘Chunchun Karti
Aayi Chidiya’ which was based on Ken Kesey’s famous novel ‘One Flew Over the Cuckoo’s
Nest’. It was one of the most successful plays of its time with (Late) Amjad
Khan in the lead role. Now Amjad’s daughter Ahlam was planning to produce it.
Due to some reasons, ‘Loot’ was not staged after one show. After that, don’t
know what happened to the plan to stage ‘Chunchun Karti Aayi Chidiya’. Imtiaz
ji also remained away from the limelight after ‘Loot’.
Imtiaz Khan died at the age of 77 in Mumbai on 15 March 2020.
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